गुरुवार, अक्टूबर 16, 2025

बिहार विधान सभा : लोकतंत्र का मंदिर

बिहार विधानसभा और जनतांत्रिक चुनाव 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
बिहार विधानसभा का इतिहास कई संवैधानिक सुधारों और महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलावों से होकर गुजरा है। इसका विकास 19वीं सदी की शुरुआत से ही विधायी परिषद के रूप में शुरू हुआ, जो आज एक पूर्ण विकसित द्विसदनीय विधानमंडल है। बिहार विधानसभा के विकास के प्रमुख चरण. बिहार एवं उड़ीसा राज्य का गठन (1912)।22 मार्च 1912 को, बंगाल से अलग होकर 'बिहार एवं उड़ीसा राज्य' अस्तित्व में आया। सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली इस नए राज्य के पहले उप राज्यपाल बने। इसकी विधायी प्राधिकार के रूप में 43 सदस्यीय विधायी परिषद् का गठन किया गया, जिसमें 24 सदस्य निर्वाचित और 19 सदस्य मनोनीत थे। इस परिषद् की पहली बैठक 20 जनवरी 1913 को पटना में हुई। . द्विसदनीयता की शुरुआत और विधानसभा भवन (1919-1937) भारत सरकार अधिनियम, 1919: इस अधिनियम ने केंद्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका की शुरुआत की और इसके साथ ही, कई प्रांतों (बिहार सहित) में भी विधायी परिषद् को द्विसदनीय विधानमंडल में बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई।
विधानसभा भवन: वर्तमान विधानसभा भवन मार्च 1920 में बनकर तैयार हुआ। 7 फरवरी 1921 को विधानसभा के नव-निर्मित भवन में पहली बैठक हुई थी, जिसे बिहार के पहले गवर्नर लॉर्ड सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा ने संबोधित किया था। भारत सरकार अधिनियम, 1935: इस अधिनियम के तहत, बिहार और उड़ीसा अलग-अलग प्रांत बन गए, और द्विसदनीय विधानमंडल प्रणाली (विधान सभा और विधान परिषद्) को औपचारिक रूप से लागू किया गया। पहली बिहार विधान परिषद् की स्थापना 22 जुलाई 1936 को हुई थी, जिसके पहले अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद थे।
बिहार विधानसभा के दोनों सदनों का पहला संयुक्त अधिवेशन 22 जुलाई 1937 को हुआ, जिसमें राम दयालु सिंह को बिहार विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया।. स्वतंत्रता और प्रथम सरकार (1946-1952) अंतरिम सरकार (1946): स्वतंत्रता से पहले, 25 अप्रैल 1946 को बिहार में अंतरिम सरकार का गठन किया गया। इस विधानसभा के वक्ता (स्पीकर) बिंदेश्वरी प्रसाद वर्मा थे। पहले मुख्यमंत्री: डॉ. श्री कृष्ण सिंह सदन के पहले नेता बने और उन्हें बिहार का पहला मुख्यमंत्री (1946 में अंतरिम और 1952 में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित) होने का गौरव प्राप्त हुआ। पहले उपमुख्यमंत्री: डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह सदन के पहले उपनेता और बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री चुने गए। स्वतंत्र भारत में विधानसभा (1952 से वर्तमान तक) पहला आम चुनाव (1952): स्वतंत्र भारत के संविधान के तहत बिहार विधानसभा का पहला चुनाव 1951 (परिणाम 1952) में हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस को भारी जीत मिली, और श्री कृष्ण सिंह मुख्यमंत्री बने।पहली विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 331 थी (जिसमें एक मनोनीत सदस्य भी शामिल था)। झारखंड का गठन (नवंबर 2000): बिहार पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के बाद झारखंड अलग राज्य बना। इसके परिणामस्वरूप, बिहार विधानसभा की सीटें घटकर वर्तमान में 243 रह गईं। मध्यवधि चुनाव: 1967 के चौथे आम चुनाव के बाद विधानसभा के विघटन के चलते 1969 में पहली बार मध्यावधि चुनाव हुए।  राज्य में अब तक पाँच बार राष्ट्रपति शासन के दौरान विधानसभा चुनाव हुए हैं। बिहार विधानसभा ने कई ऐतिहासिक कानून पारित किए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: चंपारण भूमि-संबंधी अधिनियम, 1918: महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के बाद 'तिनकठिया' व्यवस्था से किसानों को राहत दिलाने के लिए यह महत्वपूर्ण कानून विधान परिषद् में पारित हुआ था। जमींदारी उन्मूलन कानून: आजादी के तुरंत बाद, बिहार देश का पहला राज्य बना जिसने जमींदारी प्रथा को खत्म करने के लिए कानून बनाने की घोषणा की, जिसका मसौदा के.बी. सहाय ने तैयार किया था।।बिहार सिविल कोर्ट बिल, 2021: इस विधेयक के पारित होने के बाद, राज्य को 72 साल बाद सिविल कोर्ट के संचालन के लिए अपना कानून मिला, जो पुराने 1857 के अंग्रेजों के समय के कानून की जगह लेता है। 
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणभेरी बज चुकी है, और यह चुनाव एक बार फिर बिहार की राजनीति की चिर-परिचित विडंबना को उजागर करता है: जहाँ एक ओर विकास, रोज़गार, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर जनहित के मुद्दे अपनी जगह बनाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर चुनाव का माहौल जातीय और सामाजिक ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द सिमटता नज़र आ रहा है। यह चुनाव केवल राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि 'मुद्दों' और 'पहचान की राजनीति' के बीच भी एक निर्णायक संघर्ष है। जन विवरण के अनुसार, बिहार चुनाव का विमर्श विकास के बजाय निम्नलिखित प्रतीकात्मक और जातीय नारों में उलझ गया है: 'माई' (मुस्लिम-यादव), 'दम' (दलित-मुस्लिम), 'कम': ये जातीय समीकरण पर आधारित नारे हैं, जो पारंपरिक रूप से किसी एक विशिष्ट राजनीतिक धड़े की पहचान रहे हैं। भुराबाल साफ करो': यह नारा एक खास सवर्ण समूह (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) के वर्चस्व को खत्म करने का आह्वान करता है, जो स्पष्ट रूप से पुरानी जातीय दुश्मनी को हवा देने की कोशिश है। आरक्षण, एस सी / एस टी / एक्ट, और जातिवाद: इन विषयों को चुनावी बहस के केंद्र में लाकर, राजनीतिक दल समाज के एक बड़े वर्ग को भावनात्मक रूप से एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, भले ही इसके कारण रोज़मर्रा के जीवन से जुड़े वास्तविक मुद्दे पीछे छूट जाएँ। जनहित के मुद्दों का गौण होना: सबसे बड़ी आलोचना यह है कि बेरोज़गारी, पलायन, बदहाल शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे गंभीर मुद्दे, जो बिहार के युवाओं और आम जनता की सबसे बड़ी समस्याएँ हैं, चुनावी मंच से पीछे धकेल दिए गए हैं। हालाँकि, चुनावी खबरें बताती हैं कि विपक्ष (इंडिया गठबंधन/महागठबंधन) द्वारा रोज़गार, पलायन, अपराध और भ्रष्टाचार कृषि जैसे मुद्दों को लगातार उठाया जा रहा है, पर प्रमुख विमर्श अभी भी पहचान की राजनीति  पर टिका है।
जातिवाद का राजनीतिक हथियार: जातिवाद, जो सदियों से बिहार के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता रहा है, इस चुनाव में एक बार फिर राजनीतिक दलों का सबसे धारदार हथियार बन गया है। विभिन्न जातीय समूहों को साधने की यह रणनीति, तात्कालिक चुनावी लाभ तो दे सकती है, लेकिन यह समावेशी विकास और सामाजिक सद्भाव की राह में बड़ी बाधा है। प्रशासनिक और मूलभूत सुविधाओं पर कम ध्यान: बिहार को 19वीं सदी की शुरुआत से ही विधायी परिषद और विधानसभा भवन जैसी संस्थाओं के विकास का लंबा इतिहास मिला है, जिसने 1952 के बाद लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की स्थापना की। इतने लंबे राजनीतिक इतिहास के बावजूद, आज भी चुनाव की मुख्य चर्चा में सड़क, बिजली, पानी, बेहतर कानून व्यवस्था जैसे मूलभूत प्रशासनिक सुधारों पर कम और जातीय गोलबंदी पर ज़्यादा ज़ोर है। भले ही दोनों प्रमुख गठबंधन (एनडीए और इंडिया गठबंधन) अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हों, लेकिन यह चुनाव कई मायनों में नेतृत्व और विश्वसनीयता की कसौटी भी है। अनुभवी नेताओं के दावों और युवा नेतृत्व के वादों के बीच, मतदाताओं के लिए यह तय करना चुनौती होगा कि कौन बिहार के विकास के लिए अधिक विश्वसनीय चेहरा है। राजनीतिक अस्थिरता और दल-बदल की प्रवृत्ति ने भी नेताओं की विश्वसनीयता को प्रभावित किया है।
प्रमुख राजनीतिक खिलाड़ी और उनकी रणनीतियाँ में  गठबंधन प्रमुख दल मुख्य रणनीति में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास) आदि सत्ता विरोधी लहर को थामना, केंद्र की योजनाओं और सुशासन के दावों पर ज़ोर, नीतीश कुमार के नेतृत्व को बनाए रखना। लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण प्रशासनिक कमियों, खासकर रोज़गार सृजन और पलायन के मुद्दे पर जनता के सवालों का सामना करना। जातीय समीकरणों को साधने में संतुलन की चुनौती है। इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) राजद, कांग्रेस, वाम दल, वीआईपी आदि युवा चेहरा (तेजस्वी यादव), रोज़गार के वादे, सामाजिक न्याय के नारों से अतिपिछड़ा और दलित वोटों को एकजुट करना, केंद्र और राज्य की विफलताओं को उजागर करना। सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर आंतरिक खींचतान, पुराने 'जंगल राज' के आरोपों से खुद को मुक्त करने की चुनौती। क्षेत्रीय/अन्य दल जन सुराज, सुभासपा, एआईएमआईएम आदि क्षेत्रीय/जातीय आधार पर वोटों का बंटवारा करना और सत्ता विरोधी वोटों को खींचना। मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच होने के कारण इनकी प्रासंगिकता सीटों के समीकरण बिगाड़ने तक सीमित हो सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025, 'सत्ता में निरंतरता' और 'परिवर्तन की बयार'के बीच का चुनाव है। चुनाव आयोग की घोषणा और प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनावी विमर्श एक बार फिर जातीय गणित के चक्रव्यूह में फँस गया है। बिहार के इतिहास ने दिखाया है कि यहाँ की जनता ने समय-समय पर बड़े संवैधानिक सुधारों (जमींदारी उन्मूलन, 1918 का चंपारण भूमि अधिनियम) और लोकतांत्रिक बदलावों का समर्थन किया है। यह चुनाव एक अवसर है कि राजनीतिक दल 'माई', 'कम', और 'भुराबाल' जैसे प्रतीकों से ऊपर उठकर, बिहार को पलायन से मुक्त करने, औद्योगिकरण को बढ़ावा देने और शिक्षा-स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत करें। अंतिम रूप से, यह बिहार के प्रबुद्ध मतदाताओं पर निर्भर करेगा कि वे जातीय भावनाओं से संचालित होते हैं या फिर राज्य के उज्जवल भविष्य को सुनिश्चित करने वाले वास्तविक विकास के एजेंडे को चुनते हैं।
बिहार की 18वीं विधान सभा चुनाव 2025 के लिए भारत चुनाव आयोग द्वारा 243 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए बिहार विधानसभा चुनाव, 2025 हेतु 06 और 11 नवम्बर 2025 को मतदान होने वाला है और मत गणना 14 नवम्बर को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा आयोजित किया जाएगा। बिहार विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर 2025 को समाप्त होने वाला है। पिछला विधानसभा चुनाव अक्टूबर–नवंबर 2020 में हुआ था। चुनाव के बाद, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने राज्य सरकार बनाई और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। भारत निर्वाचन आयोग ने 06 अक्टूबर 2025 को बिहार विधान सभा चुनाव के कार्यक्रम का आधिकारिक रूप से घोषणा किया। बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में होने वाले हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का कार्यक्रम  - 
पहला चरण (121 सीटें) दूसरा चरण (122 सीटें)
अधिसूचना दिनांक 10 अक्टूबर 2025 10 अक्टूबर 2025
नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 17 अक्टूबर 2025 20 अक्टूबर 2025
नामांकन की जांच 18 अक्टूबर 2025 21 अक्टूबर 2025
नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 20 अक्टूबर 2025 23 अक्टूबर 2025
मतदान की तिथि 06 नवम्बर 2025 11 नवम्बर 2025
मतगणना की तिथि 14 नवम्बर 2025 14 नवम्बर 2025 को होगा।
बिहार विधानसभा के 243 निर्वाचन क्षेत्रों की सूची में : पश्चिमी चंपारण जिले में :वाल्मीकि नगर , राम नगर (एससी) , नरकटियागंज , बगहा ,लउरिया ,नौतन ,चनपटिया।बेतिया , सिकटा , पूर्वी चंपारण जिले : 10. रक्सौल 11. सुगौली 12. नरकटिया 13. हरसिद्धि 14. गोविंदगंज (लोजपा (आर) राजू तिवारी) 15. केसरिया 16. कल्याणपुर 17. पिपरा 18. मधुबन 19. मोतिहारी 20. चिरैया 21. ढाका ,शिवहर (22): 22. शिवहर ,सीतामढ़ी जिले (23-30): 23. रिगा (भाजपा बैद्यनाथ प्रसाद) 24. बथनाहा (एससी) 25. परिहार 26. सुरसंड 27. बाजपट्टी 28. सीतामढ़ी (भाजपा सुनील कुमार पिंटू) 29. रून्नीसैदपुर 30. बेलसंड ,मधुबनी जिले (31-40): 31. हरलाखी 32. बेनीपट्टी (भाजपा विनोद नारायण झा) 33. खजौली (भाजपा अरुण शंकर प्रसाद) 34. बाबूबरही 35. बिस्फी (भाजपा हरिभूषण ठाकुर बचौल) 36. मधुबनी (राष्ट्रीय लोक मोर्चा माधव आनन्द) 37. राजनगर (एससी) (भाजपा सुजीत पासवान) 38. झंझारपुर ,  39. फुलपरास 40. लौकाहा ,सुपौल जिले : 41. निर्मली 42. पिपरा 43. सुपौल 44. त्रिवेणीगंज (एससी) 45. छातापुर ,  ,अररिया जिले (46-51): 46. नरपतगंज ,  47. रानीगंज (एससी) 48. फारबिसगंज (भाजपा विद्या सागर केशरी) 49. अररिया 50. जोकीहाट 51. सिकटी , ,किशनगंज जिले (52-55): 52. बहादुरगंज 53. ठाकुरगंज 54. किशनगंज , 55. कोचाधामन , पूर्णिया जिले (56-62): 56. अमौर 57. बैसी 58. कस्बा 59. बनमनखी (एससी) , 60. रूपौल 61. धमदाहा 62. पूर्णिया ,  कटिहार जिले (63-69): 63. कटिहार , 64. कड़वा 65. बलरामपुर ,  66. प्राणपुर (भाजपा निशा सिंह) 67. मनिहारी (एसटी) 68. बरारी 69. कोरहा (एससी) ,  मधेपुरा जिले (70-73): 70. आलमनगर 71. बिहारीगंज 72. सिंहेश्वर (एससी) 73. मधेपुरा , सहरसा जिले (74-77): 74. सोनबर्षा (एससी) 75. सहरसा , 76. सिमरी बख्तियारपुर , 77. महिषी , दरभंगा जिले (78-87): 78. कुशेश्वर अस्थान (एससी) 79. 80. बेनीपुर 81. अलीनगर 82. दरभंगा ग्रामीण 83. दरभंगा , 84. हयाघाट 85. बहादुरपुर 86. केओटी  87. जाले मुजफ्फरपुर जिले में : 88. गायघाट 89. औराई (भाजपा) 90. मीनापुर 91. बोचाहन (एससी) 92. सकरा (एससी) 93. कुरहानी (भाजपा) 94. मुजफ्फरपुर , 95. कांति 96. बरूर 97. पारू  98. साहेबगंज (भाजपा) , गोपालगंज जिले  का 99. बैकुंठपुर (भाजपा) 100. बरौली 101. गोपालगंज 102. कुयायकोटे 103. भोरे (एससी) 104. हथुआ सिवान जिले का  105. सिवान (भाजपा मंगल पांडेय) 106. जिंरादेई 107. दरौली (एससी) 108. रघुनाथपुर 109. दारौंदा (भाजपा) 110. बरहरिया 111. गोरियाकोठी 112. महाराजगंज सारण जिले (113-122): 113. एकमा 114. मांझी 115. बनियापुर 116. तरैया  117. मढ़ौरा 118. छपरा  119. गरखा (एससी)   120. अमनौर 121. परसा 122. सोनपुर , वैशाली जिले (123-130): 123. हाजीपुर 124. लालगंज 125. वैशाली 126. महुआ 127. राजा पाकर (एससी) 128. राघोपुर , 129. महनार 130. पातेपुर (एससी)  समस्तीपुर जिले (131-140): 131. कल्याणपुर (एससी) 132. वारिसनगर 133. समस्तीपुर 134. उजियारपुर 135. मोरवा 136. सरायरंजन 137. मोहिउद्दीननगर  138. विभूतिपुर 139. रोसेरा (एससी) 140. हसनपुर बेगूसराय जिले (141-147): 141. चेरिया-बरियारपुर 142. बछवाड़ा  143. तेघरा  144. मटिहानी 145. साहेबपुर 146. बेगुसराय 147. बखरी (एससी) खगड़िया जिले (148-151): 148. अलौली (एससी) 149. खगरिया 150. बेलदौर 151. परबत्ता , भागलपुर जिले (152-158): 152. बिहपुर 153. गोपालपुर 154. पिरपैंती (एससी) 155. कहलगांव 156. भागलपुर 157. सुल्तानगंज 158. नाथनगर  बाँका जिले (159-163): 159. अमरपुर 160. धौरैया (एससी) 161. बांका 162. कटोरिया (एसटी)  163. बेलहर मुंगेर जिले (164-166): 164. तारापुर 165. मुंगेर 166. जमालपुर ,लखीसराय जिले में  167. सूर्यगढ़ा 168. लखीसराय शेखपुरा जिले (169-170): 169. शेखपुरा 170. बारबीघा , नालंदा जिले (171-177): 171. अस्थावान 172. बिहार शरीफ 173. राजगीर (एससी) 174. ईस्लामपुर 175. हिलसा 176. नालंदा 177. हरनौत पटना प्रमंडल/जिले (178-191): 178. मोकामा 179. (विधानसभा 179 ) , 180. बख्तियारपुर 181. दीघा 182. बांकीपुर 183. कुम्हरार 184. पटना साहिब 185. फतुहा 186. दानापुर 187. मनेर 188. फुलवारी (एससी) 189. मसौढ़ी (एससी) 190. पालीगंज 191. बिक्रम , भोजपुर जिले का  192. संदेश 193. बड़हरा 194. आरा 195. अगिआंव (एस सी ) 196. तरारी 197. जगदीशपुर 198. शाहपुरबक्सर जिले का  199. ब्रह्मपुर 200. बक्सर 201. डुमरांव 202. राजपुर (एससी)कैमूर जिले (203-206): 203. रामगढ़ 204. मोहनिया (एससी) 205. भभुआ 206. चैनपुर रोहतास जिले (207-213): 207. चेनारी (एससी) 208. सासाराम 209. करगहर 210. दिनारा 211. नोखा 212. डेहरी 213. काराकाट , अरवल जिले  का 214. अरवल 215. कुर्था , जहानाबाद जिले का : 216. जहानाबाद 217. घोसी 218. मखदुमपुर (एससी)औरंगाबाद जिले का  219. गोह 220. ओबरा 221. नबीनगर 222. कुटुम्बा (एससी) 223. औरंगाबाद 224. रफीगंज , गया जिले का  225. गुरूआ 226. शेर घाटी 227. इमामगंज (एससी) 228. बाराचट्टी (एससी) 229. बोधगया (एससी) 230. गया टाउन 231. टिकारी 232. बेलागंज 233. अतरी 234. वज़ीरगंज नवादा जिले (235-239): 235. रजौली (एससी) 236. हिसुआ 237. नवादा 238. गोविंदपुर 239. वारसलीगंज ,जमुई जिले : 240. सिकंदरा (एससी) 241. जमुई 242. झाझा 243. चकाई है ।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025: विकास का विमर्श बनाम पहचान की राजनीति का चक्रव्यूह 
बिहार विधानसभा का इतिहास संवैधानिक सुधारों और लोकतांत्रिक बदलावों की एक लंबी यात्रा है, जिसकी शुरुआत 19वीं सदी की विधायी परिषद् से हुई और जो आज एक पूर्ण विकसित द्विसदनीय विधानमंडल के रूप में स्थापित है। इस ऐतिहासिक विकास में, 1912 में बिहार एवं उड़ीसा राज्य का गठन, 1935 के अधिनियम के तहत औपचारिक द्विसदनीय प्रणाली की शुरुआत, और 1952 में स्वतंत्र भारत के संविधान के तहत पहले आम चुनाव ने महत्वपूर्ण मोड़ दिए। इस गौरवशाली लोकतांत्रिक विरासत के बावजूद, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एक बार फिर विकास, रोज़गार, और मूलभूत सुविधाओं जैसे जनहित के मुद्दों के बजाय, जातीय और सामाजिक ध्रुवीकरण के चक्रव्यूह में फँसता दिख रहा है।
बिहार विधानसभा का ऐतिहासिक सफर: एक लोकतांत्रिक विरासत
बिहार विधानसभा का विकास दर्शाता है कि राज्य ने समय-समय पर प्रगतिशील विधायी कदम उठाए हैं।
आरंभिक गठन 1912 बिहार एवं उड़ीसा राज्य का गठन (22 मार्च 1912), 43 सदस्यीय विधायी परिषद् का गठन। सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली पहले उप राज्यपाल बने। परिषद् की पहली बैठक 20 जनवरी 1913 को पटना में हुई। द्विसदनीयता और भवन 1919-1937 भारत सरकार अधिनियम, 1919 (प्रांतीय स्तर पर द्विसदनीयता की शुरुआत), वर्तमान विधानसभा भवन का निर्माण (मार्च 1920)। 7 फरवरी 1921 को नव-निर्मित भवन में पहली बैठक। भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने द्विसदनीय विधानमंडल (विधान सभा और विधान परिषद्) को औपचारिक रूप से लागू किया। राम दयालु सिंह पहले विधानसभा अध्यक्ष चुने गए (22 जुलाई 1937)।
स्वतंत्रता और प्रथम सरकार 1946-1952 अंतरिम सरकार का गठन (25 अप्रैल 1946)। पहला आम चुनाव (1951-52)। डॉ. श्री कृष्ण सिंह पहले मुख्यमंत्री (अंतरिम 1946, लोकतांत्रिक 1952) और डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह पहले उपमुख्यमंत्री बने। पहली विधानसभा में 331 सदस्य थे।
आधुनिक विधानमंडल 1952-वर्तमान झारखंड का गठन (नवंबर 2000)। सीटों की संख्या घटकर 243 हुई। मध्यावधि चुनाव (1969 में पहली बार)। विधानसभा ने चंपारण भूमि-संबंधी अधिनियम, 1918 और जमींदारी उन्मूलन कानून (देश का पहला राज्य) जैसे ऐतिहासिक कानून पारित किए। बिहार सिविल कोर्ट बिल, 2021 से 72 साल पुराना कानून बदला। बिहार ने देश को कई प्रगतिशील कानून दिए हैं: चंपारण भूमि-संबंधी अधिनियम, 1918: महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के बाद यह कानून 'तिनकठिया' व्यवस्था से किसानों को मुक्ति दिलाने के लिए पारित हुआ था। जमींदारी उन्मूलन कानून: आज़ादी के तुरंत बाद, बिहार देश का पहला राज्य बना जिसने जमींदारी प्रथा को खत्म करने के लिए कानून बनाने की घोषणा की। यह एक युगांतकारी सामाजिक-आर्थिक सुधार था।
 बिहार चुनाव 2025: पहचान की राजनीति का बोलबाला
ऐतिहासिक विकास और संवैधानिक परिपक्वता के बावजूद, 18वीं बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का विमर्श विकास के वास्तविक मुद्दों से भटककर जातीय और प्रतीकात्मक नारों में उलझ गया है।
जातीय प्रतीकों का वर्चस्व का चुनावी खबरें बताती हैं कि चुनाव का माहौल 'विकास' के रोडमैप के बजाय निम्नलिखित जातीय नारों और प्रतीकों के इर्द-गिर्द सिमटा हुआ है:
'माई', 'दम', 'कम': ये सीधे तौर पर मुस्लिम-यादव, दलित-मुस्लिम जैसे जातीय समीकरणों पर आधारित नारे हैं। ये नारे वोटबैंक की पहचान की राजनीति को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।'भुराबाल साफ करो': यह नारा भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला (कायस्थ) जैसे सवर्ण समूहों के पारंपरिक राजनीतिक वर्चस्व को खत्म करने का आह्वान करता है। यह पुरानी जातीय कटुता को राजनीतिक लाभ के लिए पुनर्जीवित करने का प्रयास है। आरक्षण और जातिवाद: राजनीतिक दल आरक्षण, SC/ST एक्ट, और जातिवाद को चुनावी बहस के केंद्र में लाकर समाज के बड़े वर्गों को भावनात्मक रूप से एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार के लोगों की सबसे गंभीर समस्याएँ, जैसे बेरोज़गारी, पलायन, बदहाल शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था, चुनावी मंच से पीछे धकेल दी गई हैं। रोज़गार सृजन की कमी के कारण बिहार का युवा बड़े पैमाने पर राज्य से बाहर जाने को मजबूर है। यह चुनाव का सबसे ज्वलंत आर्थिक मुद्दा होना चाहिए।प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक की गुणवत्ता बदहाल है। स्वास्थ्य सेवाएँ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं ।कृषि एक प्रमुख आर्थिक आधार है, लेकिन इसका आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण का अभाव राज्य के विकास में बाधा डाल रहा है। हालांकि, विपक्ष (इंडिया गठबंधन/महागठबंधन) द्वारा रोज़गार, पलायन, और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लगातार उठाया जा रहा है, लेकिन मुख्य विमर्श पहचान की राजनीति पर ही टिका हुआ है, जो प्रशासनिक और मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता को कम कर रहा है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन केंद्र की योजनाओं, सुशासन के दावे और नीतीश कुमार के अनुभवी नेतृत्व को बनाए रखने पर ज़ोर। सत्ता विरोधी लहर को थामने की कोशिश। लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण प्रशासनिक कमियों, विशेषकर रोज़गार सृजन और पलायन पर जनता के सवालों का सामना करना। जातीय समीकरणों को साधने में संतुलन बनाए रखना। इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) युवा चेहरा (तेजस्वी यादव), बड़े पैमाने पर रोज़गार के वादे, सामाजिक न्याय के नारों से अतिपिछड़ा और दलित वोटों को एकजुट करना, केंद्र और राज्य की विफलताओं को उजागर करना। सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर आंतरिक मतभेद। पुराने 'जंगल राज' के आरोपों से खुद को मुक्त करने की चुनौती।
बिहार विधानसभा में 243 निर्वाचन क्षेत्र है। बिहार का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि यहाँ की जनता ने बड़े संवैधानिक और लोकतांत्रिक बदलावों का समर्थन किया है, चाहे वह 1918 का चंपारण भूमि अधिनियम हो या जमींदारी उन्मूलन। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 बिहार के लिए एक निर्णायक अवसर है। राजनीतिक दलों को 'माई', 'कम', और 'भुराबाल' जैसे प्रतीकों से ऊपर उठकर एक स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत करना चाहिए, जो:पलायन से मुक्ति दिलाए। औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दे। शिक्षा और स्वास्थ्य , कृषि  की गुणवत्ता में सुधार करे। यह चुनाव केवल दो गठबंधनों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि 'मुद्दों' और 'पहचान की राजनीति' के बीच एक निर्णायक संघर्ष है। बिहार के प्रबुद्ध मतदाताओं पर यह निर्भर करेगा कि वे जातीय भावनाओं से संचालित होते हैं या फिर राज्य के उज्जवल भविष्य को सुनिश्चित करने वाले वास्तविक विकास के एजेंडे को चुनते हैं। समावेशी विकास और सामाजिक सद्भाव की स्थापना के लिए प्रशासनिक और मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करना बिहार की सबसे बड़ी जरूरत है, न कि केवल जातीय गोलबंदी है। 
मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ:में एनडीए अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से चल रही मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को उजागर करेगा। इसमें गंगा पथ विस्तार योजना, पुलों का निर्माण, सड़कों का जाल, और नए हवाई अड्डों का विकास शामिल है। इसे 'डबल इंजन' सरकार की सफलता के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। केंद्र की कल्याणकारी योजनाएँ: प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान सम्मान निधि, मुफ्त अनाज योजना (फ्री बिजली/मुफ्त अनाज) और अन्य केंद्रीय योजनाओं के लाभार्थियों को साधने पर ज़ोर दिया जाएगा
एनडीए  विशेष रूप से जद यू नीतीश कुमार के दशकों के प्रशासनिक अनुभव और राज्य में 'जंगलराज' को समाप्त करने के उनके दावे को प्रमुखता देगा। हालांकि नीतीश कुमार की लोकप्रियता कम हुई है, फिर भी वह सुशासन के प्रतीक बने हुए हैं। स्थिरता का आश्वासन: केंद्र में भी गठबंधन सरकार होने के कारण, एनडीए राज्य में राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने का वादा करेगा, ताकि बार-बार होने वाले पाला बदलने की प्रवृत्ति को एक पूर्ण विराम दिया जा सके। एनडीए ने सीट-बंटवारा लगभग फाइनल कर लिया है: भाजपा , जदयू ,  लोजपा (रामविलास) , हम और आरएलएम । भाजपा और जदयू के बीच समान सीटों का वितरण इस बात का संकेत है कि दोनों बड़े सहयोगी अब बराबर की शक्ति रखते हैं। चिराग पासवान (लोजपा-रा) और जीतन राम मांझी (हम)  सहयोगियों को सम्मानजनक सीटें देकर एनडीए  अपने जातीय आधार (खासकर पासवान और महादलित वोट) को एकजुट रखने की कोशिश कर रहा है, भले ही उनके द्वारा अधिक सीटों की मांग की गई थी । लगभग दो दशकों से सत्ता में रहने के कारण, राज्य सरकार के खिलाफ एक स्वाभाविक सत्ता विरोधी लहर है। रोज़गार सृजन, पलायन और प्रशासनिक कमियों जैसे मुद्दों पर जनता के सवालों का सामना करना एनडीए   के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।।सहयोगियों के बीच खींचतान: हालांकि सीट बंटवारे की घोषणा हो गई है, लेकिन छोटे सहयोगियों को कम सीटें मिलने पर आंतरिक नाराज़गी उभर सकती है। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी  नेताओं ने अतीत में JD(U) की सीटों पर नुक्सान पहुंचाया है। मुख्यमंत्री चेहरे की बहस: नीतीश कुमार के घटते समर्थन के बीच,भाजपा को अपने सहयोगियों को साधते हुए अपने दीर्घकालिक लक्ष्य को भी साधने में संतुलन बिठाना होगा । इंडिया गठबंधन, जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय जनता दल  कर रहा है और जिसमें कांग्रेस , वाम दल आदि शामिल हैं, सत्ता विरोधी लहर को भुनाने और अपने युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने की कोशिश में है। हुए कुछ हद तक पूरा भी किया। एनडीए  की सबसे बड़ी विफलता के रूप में बेरोज़गारी और पलायन को उजागर करना महागठबंधन की प्राथमिक रणनीति है। महागठबंधन का मूल आधार 'My (मुस्लिम-यादव) समीकरण रहा है। इस बार, वे इस आधार को अतिपिछड़ा वर्ग  और दलितों तक विस्तारित करने की कोशिश कर रहे हैं, सामाजिक न्याय के पुराने नारों के माध्यम से। जातिगत गणना (Caste Census): हाल ही में हुई जातिगत गणना के आंकड़ों का उपयोग करके, गठबंधन सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े वर्गों को गोलबंद करने का प्रयास करेगा और सरकारी नौकरियों/कल्याणकारी योजनाओं में उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का वादा करेगा।
गठबंधन राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार, लचर कानून-व्यवस्था (अपराध), और बदहाल स्वास्थ्य-शिक्षा व्यवस्था को एनडीए की विफलताओं के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। राष्ट्रीय नेताओं का हस्तक्षेप: राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे कांग्रेस के बड़े नेता अब बिहार में अधिक रैलियां कर रहे हैं, जो इस बात का संकेत है कि गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति को मजबूती से दर्शाना चाहता है। पहले चरण के नामांकन की समय सीमा नज़दीक होने के बावजूद, महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी रही है। कांग्रेस, जो पिछली बार 70 सीटों पर लड़ी थी और कम जीती थी, इस बार अधिक 'जिताऊ' सीटें मांग रही है। राजद जो सबसे बड़ा घटक है ।  जिससे छोटे सहयोगियों (वाम दल, आदि) को साधना मुश्किल हो रहा है। इस चुनाव में कुछ गैर-गठबंधन खिलाड़ी और मुद्दे दोनों गठबंधनों के लिए चुनौती पेश कर जन सुराज (प्रशांत किशोर) विकास-केंद्रित पिच के साथ सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। प्रशांत किशोर (PK) युवा मतदाताओं और विकास की चाह रखने वाले वर्गों के बीच एक तीसरी ताकत बन सकते हैं। ओपिनियन पोल में उन्हें CM पद के लिए दूसरा सबसे लोकप्रिय चेहरा बताया गया है। उनकी पार्टी वोट कटवा के रूप में दोनों गठबंधनों को नुकसान पहुंचा सकती है।  ए आई एम आई एम सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम वोटों को साधने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। पिछली बार (2020) में 5 सीटें जीतकर उन्होंने महागठबंधन को नुक्सान पहुँचाया था। इस बार लगभग 100 सीटों पर लड़ने की घोषणा से मुस्लिम वोटों का विभाजन हो सकता है, जिससे एनडीए को अप्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना है।
जातीय बनाम विकास विमर्श यह चुनाव 'मुद्दों' (विकास, रोज़गार, पलायन) और 'पहचान की राजनीति' (जातिगत गोलबंदी) के बीच एक निर्णायक संघर्ष है। जो गठबंधन इन दोनों ध्रुवों के बीच संतुलन बिठा पाएगा, उसे निर्णायक बढ़त मिलेगी।, ।बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एनडीए  की संगठनात्मक शक्ति और अनुभवी नेतृत्व बनाम इंडिया गठबंधन की युवा ऊर्जा और 'काम' के वादे का मुकाबला है, जिसमें जातीय समीकरण और आंतरिक कलह का प्रबंधन दोनों गठबंधनों के लिए अंतिम परिणाम निर्धारित करेगा।
 बिहार विधानसभा चुनाव 2025: विश्लेषणात्मक  -  बिहार की 18वीं विधानसभा के चुनाव (नवम्बर 2025) राज्य के समृद्ध लोकतांत्रिक इतिहास और वर्तमान की गहन सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के बीच एक निर्णायक संघर्ष हैं। यह चुनाव केवल सत्ता के संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि विकास के एजेंडे और पहचान की राजनीति के बीच के द्वंद्व को भी दर्शाता है। लोकतांत्रिक इतिहास की विरासत और वर्तमान विडंबना -  - बिहार विधानसभा का इतिहास (1912 से) प्रगतिशील विधायी कदमों का साक्षी रहा है। चंपारण भूमि-संबंधी अधिनियम (1918) महात्मा गांधी के पहले सफल सत्याग्रह का परिणाम, 'तिनकठिया' व्यवस्था का अंत। इतना प्रगतिशील इतिहास होने के बावजूद, आज भी चुनावी विमर्श मूलभूत प्रशासनिक सुधारों (शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली) के बजाय जातीय ध्रुवीकरण पर केंद्रित है।जमींदारी उन्मूलन कानून आज़ादी के बाद देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय की स्थापना की दिशा में बिहार का नेतृत्व, बिचौलियों का अंत। जमींदारी उन्मूलन के बाद भी, पलायन और बेरोज़गारी राज्य की सबसे बड़ी समस्याएँ बनी हुई हैं, जिन्हें राजनीतिक मंच से लगातार दरकिनार किया जाता है। जिस राज्य में संवैधानिक चेतना इतनी मज़बूत रही है, वहाँ आज भी चुनाव के केंद्र में 'मुद्दे' नहीं, बल्कि 'पहचान के नारे' (  माई ,  दम ,  भुराबाल )   हैं। चुनावी रणनीतियाँ: NDA बनाम इंडिया गठबंधन -  दोनों प्रमुख गठबंधन सत्ता हासिल करने के लिए अपनी-अपनी शक्तियों और केंद्रीय मुद्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहलू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) - मुख्य चेहरा जदयू  (अनुभव और सुशासन का दावा) राजद कोर विमर्श/मुद्दे 'डबल इंजन' सरकार की उपलब्धि, मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी (मुफ्त अनाज/आवास) रोज़गार (10 लाख नौकरियों का वादा), पलायन, एनडीए  की सत्ता विरोधी लहर का फायदा, सामाजिक न्याय (जातिगत गणना) , जातीय समीकरण  (अतिपिछड़ा वर्ग), सवर्ण, और सहयोगियों के माध्यम से दलित दम ( दलित मुस्लिम ) , MY  (मुस्लिम + यादव) कोर आधार, साथ ही अतिपिछड़ा वर्ग और दलितों को 'सामाजिक न्याय' के नाम पर खींचने का प्रयास है।
सत्ता विरोधी लहर, रोज़गार सृजन में विफलता पर जवाबदेही, सहयोगियों  के बीच संतुलन और खींचतान है। सीट बंटवारे में अंतिम गतिरोध, 'जंगलराज' के आरोपों से मुक्ति, युवा नेतृत्व की विश्वसनीयता सिद्ध करना एनडीए में भाजपा , जदयू , लोजपा , हम, आरएलएम है वही चुनौतीपूर्ण कांग्रेस , राजद , सीपीआई माले , भाकपा , माकपा , जनसुराज  अनेक क्षेत्रीय दल है । बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है, लेकिन कुछ 'अन्य' खिलाड़ी परिणामों की दिशा बदल सकते हैं जन सुराज प्रशांत किशोर का विकास-केंद्रित, गैर-जातीय विमर्श युवाओं और एंटी-इनकम्बेंसी वोटों को आकर्षित कर सकता है। जिससे सीधे मुकाबले वाली सीटों पर दोनों गठबंधनों को नुक्सान होगा। ए आई एम आई एम सीमांचल और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सक्रिय। मुस्लिम वोटों को विभाजित करके महागठबंधन को सीधे तौर पर नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे एनडीए  को अप्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। मतदाता जातीय भावनाओं और पारंपरिक वफादारी से संचालित होता है या फिर रोज़गार और मूलभूत विकास के एजेंडे को चुनता है। यह अंतिम परिणाम तय करेगा। तेजस्वी का रोज़गार एजेंडा युवा मतदाताओं के बीच एक सकारात्मक परिवर्तन का संकेत है: नेतृत्व और विश्वसनीयता की कसौटीकी  चुनाव नीतीश कुमार की 'निरंतरता' और तेजस्वी यादव के 'परिवर्तन' के वादे के बीच एक जनमत संग्रह है।
एनडीए  के लिए जीत का अर्थ है केंद्र और राज्य में मजबूत पकड़, जो उसे देश की राजनीति में एक निर्णायक ताकत बनाए रखेगी। इंडिया गठबंधन के लिए जीत का अर्थ है बिहार के सामाजिक न्याय की राजनीति में युवा नेतृत्व का उदय और देश के विपक्षी दलों के लिए एक नई उम्मीद।  बिहार विधानसभा चुनाव 2025 उस सामाजिक-आर्थिक न्याय की प्रतिज्ञा की कसौटी है, जिसे बिहार ने 1918 और 1952 में शुरू किया था। मतदाताओं का निर्णय यह तय करेगा कि बिहार पीछे खींचने वाली पहचान की राजनीति के चक्रव्यूह में फँसा रहता है, या विकास और रोज़गार के एजेंडे को आगे बढ़ता है।

रविवार, अक्टूबर 05, 2025

सिरसा में बाल साहित्यकार सम्मान

सिरसा में बाल साहित्यकारों का भव्य अलंकरण समारोह 
सिरसा (हरियाणा) । विश्व शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में, मातेश्वरी विद्यादेवी बाल साहित्य शोध एवं विकास संस्थान, सिरसा द्वारा अखिल भारतीय बाल साहित्य पुस्तक एवं पत्र-पत्रिका विमोचन तथा बाल साहित्यकार अलंकरण समारोह का भव्य आयोजन किया गया। यह समारोह श्रीयुवक साहित्य सदन के डॉ. जी.डी. चौधरी सभागार में संपन्न हुआ, जिसमें देशभर से आए 39 बाल साहित्यकारों को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
समारोह का मुख्य आकर्षण बिहार के सुप्रसिद्ध साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक रहे, जिन्हें राष्ट्रभाषा हिन्दी  के सर्वांगीण विकास एवं  बाल साहित्य में उनकी उत्कृष्ट सेवाओं और आलेख विधा में बच्चों के लिए लेखन के लिए 'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मान 2025' से अलंकृत किया गया। उन्हें सम्मान पत्र, अंगवस्त्र, मेडल और ₹1,100 की नकद राशि प्रदान की गई। इस अवसर पर, बिहार के मुजफ्फरपुर की लेखिका एवं कवियित्री डॉ. उषा किरण श्रीवास्तव को 'अखिल भारतीय माधव प्रसाद मिश्र बाल साहित्य शिखर सम्मान 2025' से नवाज़ा गया। सम्मानित होने वाले अन्य प्रमुख साहित्यकारों में बिहार से सतीस चंद्र भगत, हरियाणा से त्रिलोक चंद फतेहपुरी और दानवीर फूल, तथा कानपुर से कैलाश बजपेयी शामिल रहे। संस्थान के संयोजक सह अध्यक्ष राजकुमार निजात और मंत्री मदन शर्मा ने बाल साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले इन रचनाकारों को सम्मानित कर उनके कार्यों की सराहना की। अलंकरण समारोह के दौरान कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। इनमें रेवाड़ी, हरियाणा के त्रिलोक चंद फतेहपुरी की पुस्तकें 'बाल सौरभ बाल कविताएं', 'नेपाल दर्शन 1 (यात्रा वृतांत)', और 'ये हीरे हिंदुस्तान के काव्य संग्रह', तथा दलबीर फूल की पुस्तक 'गेडा नेपाल का' और त्रिवेणी केवम सहित अन्य रचनाकारों की पुस्तकें शामिल रहीं। संस्थान ने इस पहल के माध्यम से बाल साहित्य के उन्नयन और राष्ट्रभाषा हिंदी के विकास में योगदान देने वाले रचनाकारों को प्रोत्साहित किया।
समारोह के दौरान सम्मान प्रदान करने के पूर्व अलंगकरण में चर्चा करते हुए श्री पाठक के संबंध में कहा गया कि सत्येन्द्र कुमार पाठक बिहार के सुप्रसिद्ध साहित्यकार व इतिहासकार हैं, जिन्हें विशेष रूप से बाल साहित्य और इतिहास के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। सिरसा में विश्व शिक्षक दिवस पर उन्हें बाल साहित्य में उनकी उत्कृष्ट सेवाओं और आलेख विधा में बच्चों के लिए लेखन के लिए 'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मान 2025' से अलंकृत किया गया। सत्येन्द्र कुमार पाठक को हाल के वर्षों में साहित्य और इतिहास के क्षेत्र में उनके सतत प्रयासों के लिए कई सम्मानों से नवाज़ा गया है, जो उनके कार्यों की व्यापक चर्चा का प्रमाण है:
'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मान 2025' (सिरसा, हरियाणा): यह सम्मान उन्हें बाल साहित्य के उन्नयन और राष्ट्रभाषा हिन्दी के सर्वांगीण विकास में उनके अनुपम योगदान के लिए प्रदान किया गया।
डॉ. तारा सिंह विशिष्ट राष्ट्रीय सम्मान' (मुंबई): उन्हें हिंदी साहित्य सेवा और इतिहास के क्षेत्र में उनकी सराहनीय एवं उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया। विशेष रूप से सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में उनके प्रयासों को सराहा गया। 'जीवन धारा नमामी गंगे सम्मान 2025' को उन्हें पर्यावरण संरक्षण के उत्कृष्ट कार्यों और समर्पण के लिए यह सम्मान प्राप्त हुआ। राष्ट्रीय संगोष्ठियों में : उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भी सम्मानित किया गया है, जो साहित्य, संस्कृति और इतिहास के क्षेत्र में उनके सतत प्रयासों का प्रतीक है।  श्री पाठक के संबंध में सम्मान देते हुए कहा गया कि सत्येन्द्र कुमार पाठक के लेखन की चर्चाएँ मुख्यतः हिंदी साहित्य, इतिहास और बाल साहित्य पर केंद्रित रहती हैं। खोज परिणामों में उनके कुछ विशिष्ट लेखन संदर्भ में  'जासूसी उपन्यास के जनक गोपालराम गहमरी' पर लेख: उनका यह लेख हिंदी साहित्य में जासूसी उपन्यास की परंपरा पर गहराई से प्रकाश डालता है, जिससे इतिहासकार और शोधकर्ता के रूप में उनकी भूमिका स्पष्ट होती है। बाल साहित्य में योगदान: सिरसा सम्मान में विशेष रूप से 'बाल साहित्य में बच्चों के लिए आलेख विधा में उत्कृष्ट लेखन' के लिए उन्हें सम्मानित किया गया, जो बाल साहित्य के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। वह बाल पत्रिकाओं के संपादन से भी जुड़े रहे हैं।  उनके लेखन की चर्चा उनके निबंधों, ऐतिहासिक शोध कार्यों और बाल साहित्य में आलेख विधा में उनके महत्वपूर्ण योगदान पर आधारित है। 
संस्थान के संयोजक सह अध्यक्ष राजकुमार निजात एवं मंत्री मदन शर्मा ने इस पहल के माध्यम से बाल साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले रचनाकारों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन बाल साहित्य की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने और नई पीढ़ी के रचनाकारों को प्रेरित करने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। समारोह में संस्थान के संरक्षक राजकुमार निजात सहित अन्य अधिकारीगण शामिल रहे।
अंग्रेजी
Grand Honouring Ceremony of Children's Literature Writers in Sirsa
Sirsa (Haryana). On the occasion of World Teachers' Day, the Mateshwari Vidyadevi Bal Sahitya Shodh Evam Vikas Sansthan (Mateshwari Vidyadevi Children's Literature Research and Development Institute), Sirsa, organized a grand function for the All India Children's Literature Book and Periodical Release and Children's Litterateur Honouring Ceremony. The event was held at the Dr. G.D. Choudhary Auditorium of Shri Yuvak Sahitya Sadan, where 39 children's literature writers from across the country were honoured for their outstanding contributions.
The main attraction of the ceremony was the famous litterateur and historian from Bihar, Satyendra Kumar Pathak, who was decorated with the 'Akhil Bharatiya Vaidya Virwal Das Bal Sahitya Shikhar Samman 2025' (All India Vaidya Virwal Das Children's Literature Peak Award 2025) for his exceptional services to the overall development of the National Language Hindi and for his outstanding writing for children in the article genre (आलेख विधा) within children's literature. He was presented with a certificate of honour, a shawl, a medal, and a cash prize of ₹1,100. On this occasion, Dr. Usha Kiran Srivastava, a writer and poetess from Muzaffarpur, Bihar, was honoured with the 'Akhil Bharatiya Madhav Prasad Mishra Bal Sahitya Shikhar Samman 2025' (All India Madhav Prasad Mishra Children's Literature Peak Award 2025). Other prominent honoured litterateurs included Satish Chandra Bhagat from Bihar, Trilok Chand Fatehpuri and Dalbir Phool from Haryana, and Kailash Bajpai from Kanpur. Rajkumar Nijat, the Convener-cum-President of the institute, and Madan Sharma, the Secretary, commended the work of these creators for their notable contributions to the field of children's literature.
Several important books were also released during the honouring ceremony. These included 'Bal Saurabh Bal Kavitayen' (Children's poems), 'Nepal Darshan 1 (Travelogue)', and 'Ye Heere Hindustan Ke Kavya Sangrah' (These Diamonds of India Poetry Collection) by Trilok Chand Fatehpuri from Rewari, Haryana, as well as the book 'Geda Nepal Ka' by Dalbir Phool, and books by Triveni Kewam and other writers. Through this initiative, the institute encouraged writers who contribute to the upliftment of children's literature and the development of the National Language Hindi. Prior to presenting the award, while discussing the honours, it was said that Mr. Pathak is a well-known litterateur and historian from Bihar, especially recognized for his contribution to children's literature and history. He was honoured in Sirsa on World Teachers' Day with the 'Akhil Bharatiya Vaidya Virwal Das Bal Sahitya Shikhar Samman 2025' for his excellent services in children's literature and his writing for children in the article genre. Satyendra Kumar Pathak has been honoured with several awards in recent years for his sustained efforts in the field of literature and history, which is a testament to the wide discussion of his work:
'Akhil Bharatiya Vaidya Virwal Das Bal Sahitya Shikhar Samman 2025' (Sirsa, Haryana): This award was given for his incomparable contribution to the enhancement of children's literature and the all-round development of the National Language Hindi. 'Dr. Tara Singh Distinguished National Honour' (Mumbai): He received this prestigious honour for his commendable and outstanding achievements in the service of Hindi literature and the field of history, with special appreciation for his efforts toward cultural renaissance. 'Jeevan Dhara Namami Gange Samman 2025' was awarded for his excellent work and dedication to environmental protection.
At National Seminars: He has also been honoured at various national seminars, which symbolizes his continuous efforts in the fields of literature, culture, and history.।While presenting the award, it was mentioned regarding Mr. Pathak that discussions about his writing primarily focus on Hindi literature, history, and children's literature. Specific references to his writing found in search results include:Article on 'Gopalram Gahmari, the Father of Detective Novels': This article sheds deep light on the tradition of detective novels in Hindi literature, clarifying his role as a historian and researcher. Contribution to Children's Literature: The Sirsa award specifically honoured him for 'Outstanding writing for children in the article genre in children's literature', which reflects his dedication to the genre. He has also been associated with the editing of children's magazines. Discussions of his writing are based on his essays, historical research works, and his significant contributions in the article genre within children's literature.
Rajkumar Nijat, the Convener-cum-President of the institute, and Madan Sharma, the Secretary, encouraged the creators who have made notable contributions to the field of children's literature through this initiative. They stated that such events are extremely essential for advancing the rich tradition of children's literature and inspiring the new generation of writers. The institute's patron, Rajkumar Nijat, along with other officials, attended the ceremony.
संस्कृत
सिरसायां बालसाहित्यकाराणां भव्यं अलंकरणसमारोहम्
सिरसा (हरियाणा)। विश्वशिक्षकदिवसस्य उपलक्ष्ये, मातेश्वरी विद्यादेवी बालसाहित्यशोध एवं विकास संस्थानम्, सिरसा इत्यनेन अखिल भारतीय बालसाहित्यपुस्तक एवं पत्र-पत्रिका विमोचन तथा बालसाहित्यकार अलंकरण समारोहस्य भव्यं आयोजनं कृतम्। एषः समारोहः श्रीयुवक साहित्य सदनस्य डॉ. जी.डी. चौधरी सभागारे सम्पन्नः अभवत्, यत्र देशभरेभ्यः आगताः ३९ बालसाहित्यकाराः स्वस्य उत्कृष्टयोगदानाय सम्मानिताः कृताः। समारोहस्य मुख्यं आकर्षणं बिहारस्य सुप्रसिद्धः साहित्यकारः इतिहासकारः च सत्येन्द्र कुमार पाठकः आसीत्, यः राष्ट्रभाषायाः हिन्दीयाः सर्वांगीणविकासाय तथा बालसाहित्ये तस्य उत्कृष्टसेवाभ्यः आलेखविधायां बालकेभ्यः लेखनार्थं च 'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मानम् २०२५' इत्यनेन अलंकृतः कृतः। तस्मै सम्मानपत्रं, अंगवस्त्रं, पदकं, तथा ₹१,१०० नगदराशिः प्रदत्ता। अस्मिन् अवसरे, बिहारस्य मुजफ्फरपुरस्य लेखिका कवयित्री च डॉ. उषा किरण श्रीवास्तव 'अखिल भारतीय माधव प्रसाद मिश्र बाल साहित्य शिखर सम्मानम् २०२५' इत्यनेन सम्मानिता कृता। सम्मानितेषु अन्येषु प्रमुखेषु साहित्यकारेषु बिहारतः सतीस चंद्र भगतः, हरियाणातः त्रिलोक चंद फतेहपुरी तथा दानवीर फूलः, तथा कानपुरतः कैलाश बजपेयी च समाविष्टाः आसन्। संस्थानस्य संयोजकः सह-अध्यक्षः राजकुमार निजातः तथा मन्त्री मदन शर्मा एतेषां बालसाहित्यक्षेत्रे उल्लेखनीयं योगदानं दत्तवतां रचनाकाराणां सम्माननं कृत्वा तेषां कार्याणां प्रशंसां कृतवन्तौ।
अलंकरणसमारोहस्य समये बहवः महत्त्वपूर्णाः पुस्तकाः अपि विमोचिताः। एतेषु रेवाड़ी, हरियाणातः त्रिलोक चंद फतेहपुरी इत्यस्य 'बाल सौरभ बाल कविताएं', 'नेपाल दर्शन १ (यात्रा वृतांत)', तथा 'ये हीरे हिंदुस्तान के काव्य संग्रह' नामिकाः पुस्तकाः, तथा दलबीर फूल इत्यस्य 'गेडा नेपाल का' नामिका पुस्तिका तथा त्रिवेणी केवम इत्यस्य अन्येषां रचनाकाराणां च पुस्तकानि समाविष्टाः आसन्। संस्थानम् अस्याः पहलस्य माध्यमेन बालसाहित्यस्य उन्नयने राष्ट्रभाषायाः हिन्दीयाः विकासे च योगदानं दत्तवतः रचनाकारान् प्रोत्साहितं कृतवान्। सम्मानप्रदानात् पूर्वं, अलंकरणे चर्चां कुर्वन् श्री पाठकस्य विषये उक्तं यत् सत्येन्द्र कुमार पाठकः बिहारस्य सुप्रसिद्धः साहित्यकारः इतिहासकारः च अस्ति, यः विशेषतया बालसाहित्ये इतिहासे च स्वयोगदानाय ज्ञायते। सिरसायां विश्वशिक्षकदिवसे सः बालसाहित्ये तस्य उत्कृष्टसेवाभ्यः आलेखविधायां बालकेभ्यः लेखनार्थं च 'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मानम् २०२५' इत्यनेन अलंकृतः कृतः। सत्येन्द्र कुमार पाठकः इदानीं वर्षेषु साहित्यस्य इतिहासस्य च क्षेत्रे स्वस्य निरन्तरप्रयासेभ्यः अनेकैः सम्मानैः अलंकृतः अस्ति, यत् तस्य कार्याणां व्यापकचर्चायाः प्रमाणम् अस्ति: 'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मानम् २०२५' (सिरसा, हरियाणा): एषः सम्मानः तस्मै बालसाहित्यस्य उन्नयने राष्ट्रभाषायाः हिन्दीयाः सर्वांगीणविकासे च तस्य अनुपमयोगदानाय प्रदत्तः।
'डॉ. तारा सिंह विशिष्ट राष्ट्रीय सम्मानम्' (मुंबई): सः हिन्दी साहित्यसेवायां इतिहासक्षेत्रे च स्वस्य प्रशंसनीयेभ्यः उत्कृष्टेभ्यः च सिद्धीभ्यः एतत् प्रतिष्ठितं सम्मानं प्राप्तवान्। विशेषतया सांस्कृतिकपुनर्जागरणस्य दिशि तस्य प्रयत्नाः प्रशंसिताः। 'जीवन धारा नमामी गंगे सम्मानम् २०२५' पर्यावरणसंरक्षणस्य उत्कृष्टकार्येभ्यः समर्पणात् च तस्मै प्राप्तम्।
राष्ट्रियगोष्ठीषु: सः विविधे राष्ट्रीयगोष्ठीषु अपि सम्मानितः अस्ति, यत् साहित्यस्य, संस्कृतेः, इतिहासस्य च क्षेत्रे तस्य सततप्रयासानां प्रतीकम् अस्ति। श्री पाठकस्य विषये सम्मानं ददत् उक्तं यत् सत्येन्द्र कुमार पाठकस्य लेखनस्य चर्चाः मुख्यतया हिन्दी साहित्ये, इतिहासे, बालसाहित्ये च केन्द्रिताः भवन्ति। अन्वेषणपरिणामेषु तस्य केचन विशिष्टाः लेखनसन्दर्भाः:'जासूसी उपन्यासस्य जनकः गोपालराम गहमरी' इति विषये लेखः: तस्य एषः लेखः हिन्दी साहित्ये जासूसी उपन्यासस्य परम्परायाम् गहनतया प्रकाशं पातयति, येन इतिहासकाररूपेण शोधकरूपेण च तस्य भूमिका स्पष्टा भवति। बालसाहित्ये योगदानम्: सिरसासम्मानः तस्मै विशेषतया 'बालसाहित्ये बालकेभ्यः आलेखविधायां उत्कृष्टलेखनार्थं' सम्मानितं कृतवान्, यत् बालसाहित्यं प्रति तस्य समर्पणं दर्शयति। सः बालपत्रिकाणां सम्पादनेन अपि सम्बद्धः अस्ति। तस्य लेखनस्य चर्चा तस्य निबंधेषु, ऐतिहासिकशोधकार्येषु, बालसाहित्ये आलेखविधायां तस्य महत्त्वपूर्णयोगदानं च आधारीकृता अस्ति।
संस्थानस्य संयोजकः सह-अध्यक्षः राजकुमार निजातः तथा मन्त्री मदन शर्मा अस्याः पहलस्य माध्यमेन बालसाहित्यक्षेत्रे उल्लेखनीयं योगदानं दत्तवतः रचनाकारान् प्रोत्साहितवन्तौ। तौ उक्तवन्तौ यत् एतादृशाः आयोजनाः बालसाहित्यस्य समृद्धपरम्पराम् अग्रसारयितुं नूतनपीढ्याः रचनाकारान् प्रेरयितुं च अत्यन्तं आवश्यकाः सन्ति। समारोहे संस्थानस्य संरक्षकः राजकुमार निजात: अन्ये च अधिकारिणः उपस्थिताः आसन्।
हरियाणवी 
सिरसा में बाल साहित्यकारां का घणा बढ़िया सम्मान समारोह
सिरसा (हरियाणा)। विश्व शिक्षक दिवस के मौके पै, मातेश्वरी विद्यादेवी बाल साहित्य शोध एवं विकास संस्थान, सिरसा नै अखिल भारतीय बाल साहित्य पोथी अर पर्चे-पत्रिका विमोचन अर बाल साहित्यकार सम्मान समारोह का तगड़ा प्रोग्राम करा। यो समारोह श्रीयुवक साहित्य सदन के डॉ. जी.डी. चौधरी सभागार में होया, जिब देशभर तै आए ३९ बाल साहित्यकारां नै उणके चोखे काम खातर मान-सम्मान दिया गया।
समारोह का मुख्य आकर्षण बिहार के नामी साहित्यकार अर इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक रहे, जिननै राष्ट्रभाषा हिन्दी के सारे तरहां के विकास अर बाल साहित्य में उणकी चोखी सेवावां अर आलेख विधा में बाळकां खातर लिखण खातर 'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मान २०२५' तै नवाज्या गया। उणनै सम्मान पत्र, शाल, मेडल अर ₹१,१०० नकद रूपिये दिए गए। इस मौके पै, बिहार के मुजफ्फरपुर की लिखण आळी अर कवियित्री डॉ. उषा किरण श्रीवास्तव नै 'अखिल भारतीय माधव प्रसाद मिश्र बाल साहित्य शिखर सम्मान २०२५' तै सम्मानित करी गई। और जो मुख्य साहित्यकार सम्मानित होए, उणमें बिहार तै सतीस चंद्र भगत, हरियाणा तै त्रिलोक चंद फतेहपुरी अर दानवीर फूल, अर कानपुर तै कैलाश बजपेयी शामिल थे। संस्थान के संयोजक-सह-अध्यक्ष राजकुमार निजात अर मन्त्री मदन शर्मा नै बाल साहित्य के क्षेत्र में बढ़िया काम करण आळे इन रचनाकारां नै सम्मान दे कै उणके कामां की तारीफ करी।
सम्मान समारोह के टेम पै कई जरूरी पोथियां का विमोचन भी होया। इणमें रेवाड़ी, हरियाणा के त्रिलोक चंद फतेहपुरी की पोथियां 'बाल सौरभ बाल कविताएं', 'नेपाल दर्शन १ (यात्रा वृतांत)', अर 'ये हीरे हिंदुस्तान के काव्य संग्रह', अर दलबीर फूल की पोथी 'गेडा नेपाल का' अर त्रिवेणी केवम समेत और रचनाकारां की पोथियां शामिल थी। संस्थान नै इस पहल तै बाल साहित्य नै ऊँचा उठाण अर राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास में योगदान देण आळे रचनाकारां का हौंसला बढ़ाया।
सम्मान देण तै पहलयां, श्री पाठक के बारे में चर्चा करदे होए कह्या गया कि सत्येन्द्र कुमार पाठक बिहार के सुप्रसिद्ध साहित्यकार अर इतिहासकार सैं, जिननै खास तौर पै बाल साहित्य अर इतिहास के क्षेत्र में उणके योगदान खातर जाणया जा सै। सिरसा में विश्व शिक्षक दिवस पै उणनै बाल साहित्य में उणकी चोखी सेवावां अर आलेख विधा में बाळकां खातर लिखण खातर 'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मान २०२५' तै सम्मानित करया गया। सत्येन्द्र कुमार पाठक नै हाल के सालां में साहित्य अर इतिहास के क्षेत्र में उणकी लगातार कोशिशां खातर कई सम्मानां तै नवाज्या गया सै, जो उणके कामां की घणी चर्चा का सबूत सै:
'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सम्मान २०२५' (सिरसा, हरियाणा): यो सम्मान उणनै बाल साहित्य नै चोखा बणाण अर राष्ट्रभाषा हिन्दी के सारे तरहां के विकास में उणके घणे बढ़िया योगदान खातर दिया गया।
'डॉ. तारा सिंह विशिष्ट राष्ट्रीय सम्मान' (मुंबई): उणनै हिन्दी साहित्य की सेवा अर इतिहास के क्षेत्र में उणकी काबिले तारीफ अर उत्कृष्ट उपलब्धियां खातर यो प्रतिष्ठित सम्मान मिल्या। खास तौर पै सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में उणकी कोशिशां की तारीफ करी गई। 'जीवन धारा नमामी गंगे सम्मान २०२५' उणनै पर्यावरण बचाण के बढ़िया कामां अर लगन खातर प्राप्त होया।
राष्ट्रीय गोष्ठी-सम्मेलनां में: उणनै अलग-अलग राष्ट्रीय गोष्ठी-सम्मेलनां में भी सम्मानित करया गया सै, जो साहित्य, संस्कृति अर इतिहास के क्षेत्र में उणकी लगातार कोशिशां का प्रतीक सै। श्री पाठक के बारे में सम्मान देंदे होए कह्या गया कि सत्येन्द्र कुमार पाठक के लिखण की चर्चाएं मुख्य रूप तै हिन्दी साहित्य, इतिहास अर बाल साहित्य पै केन्द्रित रहवैं सैं। खोजां के नतीज्यां में उणके कुछ खास लिखण के सन्दर्भ:'जासूसी उपन्यास के जनक गोपालराम गहमरी' पै लेख: उणका यो लेख हिन्दी साहित्य में जासूसी उपन्यास की परम्परा पै गहरी रौशनी गेरै सै, जिसतै इतिहासकार अर शोधकर्ता के रूप में उणकी भूमिका साफ़ हो सै।बाल साहित्य में योगदान: सिरसा सम्मान में खास तौर पै उणनै 'बाल साहित्य में बाळकां खातर आलेख विधा में उत्कृष्ट लिखण' खातर सम्मानित करया गया, जो बाल साहित्य खातर उणकी लगन नै दिखावै सै। वे बाल पत्रिकावां के संपादन तै भी जुड़ राखे सैं। उणके लिखण की चर्चा उणके निबंधां, ऐतिहासिक शोध कामां अर बाल साहित्य में आलेख विधा में उणके खास योगदान पै टिकी सै।
संस्थान के संयोजक-सह-अध्यक्ष राजकुमार निजात अर मन्त्री मदन शर्मा नै इस पहल तै बाल साहित्य के क्षेत्र में बढ़िया योगदान देण आळे रचनाकारां का हौंसला बढ़ाया। उणनै कह्या कि ऐसे प्रोग्राम बाल साहित्य की समृद्ध परम्परा नै आगै बढाण अर नई पीढ़ी के रचनाकारां नै प्रेरित करण खातर घणे जरूरी सैं। समारोह में संस्थान के संरक्षक राजकुमार निजात समेत और अधिकारी भी शामिल रहे।

Gujarati 
સિરસામાં બાળ સાહિત્યકારોનો ભવ્ય સન્માન સમારોહ
સિરસા (હરિયાણા)। વિશ્વ શિક્ષક દિવસના ઉપલક્ષ્યમાં, માતેશ્વરી વિદ્યાદેવી બાળ સાહિત્ય શોધ એવં વિકાસ સંસ્થાન, સિરસા દ્વારા અખિલ ભારતીય બાળ સાહિત્ય પુસ્તક અને પત્ર-પત્રિકા વિમોચન તથા બાળ સાહિત્યકાર અલંકરણ સમારોહનું ભવ્ય આયોજન કરવામાં આવ્યું. આ સમારોહ શ્રીયુવક સાહિત્ય સદનના ડો. જી.ડી. ચૌધરી સભાગૃહમાં સંપન્ન થયો, જેમાં દેશભરમાંથી આવેલા ૩૯ બાળ સાહિત્યકારોને તેમના ઉત્કૃષ્ટ યોગદાન માટે સન્માનિત કરવામાં આવ્યા.
સમારોહનું મુખ્ય આકર્ષણ બિહારના સુપ્રસિદ્ધ સાહિત્યકાર અને ઇતિહાસકાર સત્યેન્દ્ર કુમાર પાઠક રહ્યા, જેમણે રાષ્ટ્રભાષા હિન્દીના સર્વાંગીણ વિકાસ અને બાળ સાહિત્યમાં તેમની ઉત્કૃષ્ટ સેવાઓ તથા આલેખ વિધામાં બાળકો માટેના લેખન માટે 'અખિલ ભારતીય વૈદ્ય વીરવલ દાસ બાળ સાહિત્ય શિખર સન્માન ૨૦૨૫' થી સન્માનિત કરવામાં આવ્યા. તેમને સન્માન પત્ર, અંગવસ્ત્ર, મેડલ અને ₹૧,૧૦૦ ની રોકડ રકમ આપવામાં આવી. આ પ્રસંગે, બિહારના મુઝફ્ફરપુરના લેખિકા અને કવયિત્રી ડો. ઉષા કિરણ શ્રીવાસ્તવને 'અખિલ ભારતીય માધવ પ્રસાદ મિશ્ર બાળ સાહિત્ય શિખર સન્માન ૨૦૨૫' થી નવાજવામાં આવ્યા. સન્માનિત થનારા અન્ય મુખ્ય સાહિત્યકારોમાં બિહારમાંથી સતીસ ચંદ્ર ભગત, હરિયાણામાંથી ત્રિલોક ચંદ ફતેહપુરી અને દાનવીર ફૂલ, તથા કાનપુરથી કૈલાશ બજપેયી સામેલ રહ્યા. સંસ્થાના સંયોજક સહ અધ્યક્ષ રાજકુમાર નિજાત અને મંત્રી મદન શર્માએ બાળ સાહિત્યના ક્ષેત્રમાં નોંધપાત્ર યોગદાન આપનાર આ રચનાકારોને સન્માનિત કરીને તેમના કાર્યોની પ્રશંસા કરી.
અલંકરણ સમારોહ દરમિયાન કેટલીક મહત્વપૂર્ણ પુસ્તકોનું વિમોચન પણ કરવામાં આવ્યું. આમાં રેવાડી, હરિયાણાના ત્રિલોક ચંદ ફતેહપુરીની પુસ્તકો 'બાલ સૌરભ બાલ કવિતાએં', 'નેપાલ દર્શન ૧ (યાત્રા વૃતાંત)', અને 'યે હીરે હિન્દુસ્તાન કે કાવ્ય સંગ્રહ', તથા દલબીર ફૂલની પુસ્તક 'ગેડા નેપાલ કા' અને ત્રિવેણી કેવમ સહિત અન્ય રચનાકારોની પુસ્તકોનો સમાવેશ થાય છે. સંસ્થાએ આ પહેલ દ્વારા બાળ સાહિત્યના ઉત્થાન અને રાષ્ટ્રભાષા હિન્દીના વિકાસમાં યોગદાન આપનાર રચનાકારોને પ્રોત્સાહિત કર્યા.
 (मराठी ) 
सिरसा येथे बाल साहित्यकारांचा भव्य सत्कार समारंभ
सिरसा (हरियाणा)। विश्व शिक्षक दिनानिमित्त, मातेश्वरी विद्यादेवी बाल साहित्य शोध एवं विकास संस्थान, सिरसा यांच्या वतीने अखिल भारतीय बाल साहित्य पुस्तक व नियतकालिक विमोचन आणि बाल साहित्यकार सत्कार समारंभाचे भव्य आयोजन करण्यात आले. हा समारंभ श्रीयुवक साहित्य सदनच्या डॉ. जी.डी. चौधरी सभागृहात पार पडला, ज्यात देशभरातून आलेल्या ३९ बाल साहित्यकारांना त्यांच्या उत्कृष्ट योगदानाबद्दल सन्मानित करण्यात आले.
समारंभाचे मुख्य आकर्षण बिहारचे सुप्रसिद्ध साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक हे होते, ज्यांना राष्ट्रभाषा हिंदीच्या सर्वांगीण विकासासाठी आणि बाल साहित्यातील त्यांच्या उत्कृष्ट सेवांसाठी तसेच आलेख (लेख) या साहित्यप्रकारात मुलांसाठी केलेल्या लेखनासाठी 'अखिल भारतीय वैद्य वीरवल दास बाल साहित्य शिखर सन्मान २०२५' ने अलंकृत करण्यात आले. त्यांना सन्मानपत्र, शाल, पदक आणि ₹१,१०० ची रोख रक्कम प्रदान करण्यात आली. या प्रसंगी, बिहारमधील मुजफ्फरपूरच्या लेखिका व कवयित्री डॉ. उषा किरण श्रीवास्तव यांना 'अखिल भारतीय माधव प्रसाद मिश्र बाल साहित्य शिखर सन्मान २०२५' ने गौरविण्यात आले. सन्मानित झालेल्या इतर प्रमुख साहित्यकारांमध्ये बिहारमधील सतीस चंद्र भगत, हरियाणातील त्रिलोक चंद फतेहपुरी आणि दानवीर फूल, तसेच कानपूरचे कैलाश बजपेयी यांचा समावेश होता. संस्थेचे संयोजक सह-अध्यक्ष राजकुमार निजात आणि मंत्री मदन शर्मा यांनी बाल साहित्याच्या क्षेत्रात उल्लेखनीय योगदान देणाऱ्या या रचनाकारांना सन्मानित करून त्यांच्या कार्याची प्रशंसा केली.
सत्कार समारंभादरम्यान अनेक महत्त्वाच्या पुस्तकांचे विमोचनही करण्यात आले. यामध्ये रेवाडी, हरियाणा येथील त्रिलोक चंद फतेहपुरी यांची 'बाल सौरभ बाल कविताएं', 'नेपाल दर्शन १ (प्रवासवर्णन)', आणि 'ये हीरे हिंदुस्तान के काव्य संग्रह', तसेच दलबीर फूल यांचे 'गेडा नेपाल का' आणि त्रिवेणी केवम यांच्यासह अन्य रचनाकारांच्या पुस्तकांचा समावेश होता. या उपक्रमाद्वारे संस्थेने बाल साहित्याच्या उन्नतीसाठी आणि राष्ट्रभाषा हिंदीच्या विकासासाठी योगदान देणाऱ्या रचनाकारांना प्रोत्साहित केले.
Tamil 
சிரசாவில் குழந்தைப் படைப்பாளர்களுக்கு பிரம்மாண்ட கௌரவிப்பு விழா
சிரசா (ஹரியானா). உலக ஆசிரியர் தினத்தை முன்னிட்டு, மாத்தேஸ்வரி வித்யா தேவி குழந்தைப் படைப்பாய்வு மற்றும் மேம்பாட்டு நிறுவனம் (Mateshwari Vidyadevi Bal Sahitya Shodh Evam Vikas Sansthan), சிரசா சார்பில் அகில இந்திய குழந்தைப் படைப்புகள் புத்தகம் மற்றும் இதழ்கள் வெளியீடு மற்றும் குழந்தைப் படைப்பாளர்கள் கௌரவிப்பு விழா பிரம்மாண்டமாக ஏற்பாடு செய்யப்பட்டது. இந்த விழா ஸ்ரீயுவக் சாகித்ய சதன் வளாகத்தில் உள்ள டாக்டர். ஜி.டி. சௌத்ரி அரங்கத்தில் நடைபெற்றது, இதில் நாடு முழுவதிலுமிருந்து வந்த 39 குழந்தைப் படைப்பாளர்கள் அவர்களது சிறந்த பங்களிப்புக்காகக் கௌரவிக்கப்பட்டனர்.
விழாவின் முக்கிய ஈர்ப்பு, பீகாரின் புகழ்பெற்ற இலக்கியவாதியும் வரலாற்றாசிரியருமான சத்யேந்திர குமார் பதக் ஆவார். தேசிய மொழியான ஹிந்தியின் ஒட்டுமொத்த வளர்ச்சிக்கும் மற்றும் குழந்தை இலக்கியத்தில் அவரது சிறந்த சேவைகளுக்காகவும், கட்டுரைப் பிரிவில் (ஆலேக் விதா) குழந்தைகளுக்காக அவர் எழுதியதற்காகவும் அவருக்கு ‘அகில இந்திய வைத்யா வீர்வால் தாஸ் பால் சாகித்ய சிகர் சம்மான் 2025' (Akhil Bharatiya Vaidya Virwal Das Bal Sahitya Shikhar Samman 2025) வழங்கி கௌரவிக்கப்பட்டார். அவருக்குச் சான்றிதழ், சால்வை, பதக்கம் மற்றும் ₹1,100 ரொக்கப் பரிசு வழங்கப்பட்டது. இந்தச் சந்தர்ப்பத்தில், பீகார் மாநிலம் முசாபர்பூரைச் சேர்ந்த எழுத்தாளரும் கவிஞருமான டாக்டர். உஷா கிரண் ஸ்ரீவஸ்தவாவுக்கு ‘அகில இந்திய மாதவ் பிரசாத் மிஸ்ரா பால் சாகித்ய சிகர் சம்மான் 2025' வழங்கப்பட்டது. கௌரவிக்கப்பட்ட மற்ற முக்கிய படைப்பாளர்களில் பீகாரைச் சேர்ந்த சதீஸ் சந்திர பகத், ஹரியானாவைச் சேர்ந்த த்ரிலோக் சந்த் ஃபதேபுரி மற்றும் தான்வீர் பூல், மற்றும் கான்பூரைச் சேர்ந்த கைலாஷ் பாஜ்பேயி ஆகியோர் அடங்குவர். நிறுவனத்தின் ஒருங்கிணைப்பாளரும் இணைத் தலைவருமான ராஜ்குமார் நிஜாத் மற்றும் அமைச்சர் மதன் ஷர்மா ஆகியோர் குழந்தைப் படைப்புத் துறையில் குறிப்பிடத்தக்கப் பங்களிப்பை வழங்கிய இந்தப் படைப்பாளர்களைக் கௌரவித்துப் பாராட்டினர்.
கௌரவிப்பு விழாவின்போது பல முக்கியமான புத்தகங்களும் வெளியிடப்பட்டன. இவற்றுள் ஹரியானாவின் ரேவாரியைச் சேர்ந்த த்ரிலோக் சந்த் ஃபதேபுரியின் ‘பால் சௌரப் பால் கவிதாஏன்’ (குழந்தைப் பாடல்கள்), ‘நேபால் தர்ஷன் 1 (பயணக் கட்டுரை)’, மற்றும் ‘யே ஹிரே ஹிந்துஸ்தான் கே காவ்ய சங்க்ரஹ்’ (இந்த வைரங்கள் இந்தியாவின் கவிதைத் தொகுப்பு), அத்துடன் தல்பீர் பூல்லின் ‘கேடா நேபால் கா’ மற்றும் த்ரிவேணி கேவம் உள்ளிட்ட பிற படைப்பாளர்களின் புத்தகங்களும் அடங்கும். இந்தக் கடமையின் மூலம், குழந்தைப் படைப்புகளின் வளர்ச்சிக்கும் தேசிய மொழியான ஹிந்தியின் மேம்பாட்டிற்கும் பங்களித்த படைப்பாளர்களை நிறுவனம் ஊக்குவித்தது.
Urdu  (اردو ترجمہ)
سرسا میں بچوں کے ادیبوں کا شاندار اعزازی تقریب
سرسا (ہریانہ)۔ عالمی یوم اساتذہ کے موقع پر، ماتیشوری ودیا دیوی بال ساہتیہ شودھ ایوم وکاس سنستھان (Mateshwari Vidyadevi Bal Sahitya Shodh Evam Vikas Sansthan)، سرسا کے زیر اہتمام آل انڈیا بچوں کے ادب کی کتاب اور جریدے کی رسم رونمائی اور بچوں کے ادیبوں کا اعزازی تقریب کا شاندار انعقاد کیا گیا۔ یہ تقریب شری یوک ساہتیہ سدن کے ڈاکٹر جی ڈی چودھری آڈیٹوریم میں منعقد ہوئی، جس میں ملک بھر سے آئے ۳۹ بچوں کے ادیبوں کو ان کی بہترین خدمات کے لیے اعزاز سے نوازا گیا۔
تقریب کی خاص توجہ کا مرکز بہار کے مشہور ادیب اور مورخ ستیندر کمار پاٹھک رہے، جنہیں قومی زبان ہندی کی ہمہ جہت ترقی اور بچوں کے ادب میں ان کی شاندار خدمات اور مضمون نگاری کی صنف (آلیکھ ودھا) میں بچوں کے لیے لکھنے کے لیے 'اکھل بھارتیہ ویدیہ ویرول داس بال ساہتیہ شیکھر سمان ۲۰۲۵' (Akhil Bharatiya Vaidya Virwal Das Bal Sahitya Shikhar Samman 2025) سے سرفراز کیا گیا۔ انہیں اعزاز نامہ، شال، میڈل اور ۱,۱۰۰ روپے کی نقد رقم پیش کی گئی۔ اس موقع پر، بہار کے مظفر پور سے تعلق رکھنے والی ادیبہ اور شاعرہ ڈاکٹر اوشا کرن شریواستو کو 'اکھل بھارتیہ مادھو پرساد مشرا بال ساہتیہ شیکھر سمان ۲۰۲۵' سے نوازا گیا۔ اعزاز حاصل کرنے والے دیگر اہم ادیبوں میں بہار سے ستیس چندر بھگت، ہریانہ سے ترلوک چند فتح پوری اور دان ویر پھول، اور کانپور سے کیلاش باجپائی شامل رہے۔ ادارے کے کنوینر سہ صدر راجکمار نجات اور وزیر مدن شرما نے بچوں کے ادب کے میدان میں نمایاں خدمات انجام دینے والے ان تخلیق کاروں کو سراہا اور اعزاز سے نوازا
اس اعزازی تقریب کے دوران کئی اہم کتابوں کی رسم رونمائی بھی کی گئی۔ ان میں ہریانہ کے ریواڑی  چند فتح پوری کی کتابیں 'بال سؤربھ بال کویتائیں' (بچوں کی نظمیں)، 'نیپال درشن ۱ (سفر نامہ)'، اور 'یہ ہیرے ہندوستان کے کاویہ سنگرہ' (ہندوستان کے ہیرے: مجموعہ کلام)، نیز دلبر پھول کی کتاب 'گیڈا نیپال کا' اور تریوینی کیوم سمیت دیگر تخلیق کاروں کی کتابیں شامل تھیں۔ ادارے نے اس اقدام کے ذریعے بچوں کے ادب کے فروغ اور قومی زبان ہندی کی ترقی میں اپنا کردار ادا کرنے والے تخلیق کاروں کی حوصلہ افزائی کی

रविवार, सितंबर 28, 2025

शक्ति की उपासना और नवरात्र

01 . देवी शैलपुत्री: धैर्य, शक्ति और पुनर्जन्म की अद्भुत गाथा
सनातन धर्म के शाक्त संप्रदाय में आदिशक्ति देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान है, और इनमें देवी शैलपुत्री प्रथम स्वरूप हैं। यह नाम "शैल" यानी पर्वत और "पुत्री" यानी बेटी से बना है, जो उनके हिमालय पर्वत की पुत्री होने का प्रतीक है। मां शैलपुत्री का वर्णन न केवल पुराणों में, बल्कि ऋग्वेद और उपनिषदों जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। उनकी कहानी धैर्य, त्याग, शक्ति और पुनर्जन्म की एक गहन और प्रेरक गाथा है, जो हमें जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों का बोध कराती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा के साथ ही नौ दिनों का यह पावन पर्व आरंभ होता है। योग साधक इस दिन अपने ध्यान को मूलाधार चक्र पर केंद्रित करते हैं, जो आध्यात्मिक यात्रा की नींव माना जाता है। मूलाधार चक्र स्थिरता, सुरक्षा और अस्तित्व की भावना से जुड़ा है, और मां शैलपुत्री की उपासना के साथ इस चक्र को जाग्रत करना व्यक्ति को जीवन में संतुलन और धैर्य प्रदान करता है। उनका स्वरूप भी इसी स्थिरता और शक्ति का प्रतीक है: वह वृषभ (बैल) पर सवार हैं, जो धर्म और धैर्य का प्रतीक है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है, जो कर्म, ज्ञान और भक्ति का त्रिशक्ति रूप है, और बाएं हाथ में कमल का फूल है, जो पवित्रता और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है।
मां शैलपुत्री की कथा उनके पिछले जन्म से जुड़ी हुई है, जब वह प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थीं। सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था, लेकिन दक्ष इस विवाह से प्रसन्न नहीं थे। एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जानबूझकर भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया।
जब सती को इस यज्ञ के बारे में पता चला, तो वह अपने पिता के घर जाने के लिए बहुत उत्सुक हो गईं। भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण के जाना उचित नहीं है, खासकर जब दक्ष उनसे रुष्ट हों। फिर भी, सती का मन नहीं माना और उन्होंने वहां जाने की अनुमति मांगी। भगवान शिव ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें जाने दिया।
जब सती अपने पिता के घर पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि कोई भी उनसे स्नेहपूर्वक बात नहीं कर रहा है। उनकी माता के अलावा सभी ने उनका तिरस्कार किया और उनकी बहनें भी व्यंग्य करती रहीं। सबसे बढ़कर, उन्होंने वहां अपने पति भगवान शिव के प्रति अपमानजनक बातें सुनीं। दक्ष ने स्वयं शिव का अपमान किया। इस अपमान को देखकर सती का हृदय क्रोध, ग्लानि और पीड़ा से भर गया। उन्होंने महसूस किया कि भगवान शिव की बात न मानकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है। पति के अपमान को वह सहन नहीं कर पाईं। आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए और अपमान के विरोध में, सती ने वहीं पर योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया। इस दुखद घटना से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने गणों को भेजा और दक्ष के यज्ञ को पूरी तरह से नष्ट करा दिया। सती ने अपने जीवन का त्याग इसलिए किया ताकि वह अगले जन्म में भगवान शिव की पत्नी बनने के लिए एक पवित्र और शक्तिशाली रूप में जन्म ले सकें। इसी त्याग और पुनर्जन्म की प्रक्रिया के बाद उन्होंने हिमालयराज हिमवान और उनकी पत्नी मैना देवी की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम और सम्मान हमेशा त्याग की मांग करते हैं।
पुनर्जन्म के बाद मां शैलपुत्री को पार्वती (पर्वत की पुत्री), हैमवती (हिमवान की पुत्री) और गिरिजा (पर्वत से जन्मी) जैसे नामों से भी जाना गया। उपनिषदों में उनका हैमवती स्वरूप विशेष रूप से वर्णित है, जहां उन्होंने देवताओं के अभिमान को भंग किया था। उनकी शादी भगवान शिव से हुई और इस तरह वे भगवान शिव की जीवनसंगिनी बनीं। मां शैलपुत्री का यह पुनर्जन्म हमें यह भी बताता है कि प्रेम और भक्ति की राह में आने वाली बाधाएं हमें और भी मजबूत बनाती हैं।
भारत के विभिन्न हिस्सों में मां शैलपुत्री को समर्पित कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो भक्तों के लिए आस्था के केंद्र हैं।
वाराणसी, उत्तर प्रदेश: यहां के अलईपुरा में वरुणा नदी के तट पर एक प्राचीन शैलपुत्री मंदिर स्थित है। यह मंदिर विशेष रूप से नवरात्र के दौरान भक्तों से भरा रहता है।रतनपुर, छत्तीसगढ़: रतनपुर के महामाया मंदिर परिसर में भी मां शैलपुत्री का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण मंदिर है।जम्मू और कश्मीर: बारामूला में एक गुफा के भीतर मां शैलपुत्री का मंदिर है, जो हिमालय की गोद में उनकी उपस्थिति का प्रतीक है। गुड़गांव और दिल्ली: झंडेवालान मंदिर सहित दिल्ली और गुड़गांव में भी कई मंदिर हैं जो शैलपुत्री की पूजा का मुख्य केंद्र हैं। हिमाचल प्रदेश: नैना देवी मंदिर भी एक महत्वपूर्ण शक्ति पीठ है जहां मां शैलपुत्री की पूजा होती है। इन मंदिरों में जाकर भक्तगण मां शैलपुत्री से धैर्य, साहस और शक्ति की कामना करते हैं। वे मानते हैं कि मां उन्हें जीवन की बाधाओं से लड़ने की शक्ति और स्थिरता प्रदान करती हैं। शैलपुत्री: देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण और ऋग्वेद में शाक्त संप्रदाय के विभिन्न ग्रंथों में, जैसे कि देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण, मां शैलपुत्री के विभिन्न नामों और उनके स्वरूपों का विस्तृत वर्णन है। उन्हें भवानी, हेमवती, गिरिजा और पार्वती जैसे नामों से भी पुकारा जाता है, जो उनके विभिन्न पहलुओं और शक्तियों को दर्शाते हैं। ये ग्रंथ देवी की शक्ति को सर्वोच्च मानते हैं और शैलपुत्री को इस ब्रह्मांड की आदि शक्ति के रूप में चित्रित करते हैं। मां शैलपुत्री की कथा केवल एक देवी की कहानी नहीं है, बल्कि यह मानवीय जीवन के संघर्ष, त्याग और पुनरुत्थान का एक शक्तिशाली रूपक है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में कितनी भी बाधाएं आएं, धैर्य, दृढ़ता और आत्म-सम्मान के साथ हम हर चुनौती का सामना कर सकते हैं। उनका पुनर्जन्म हमें यह विश्वास दिलाता है कि अंत में सत्य और धर्म की ही जीत होती है। पुराणों के अनुसार, प्रजापति दक्ष की पुत्री स्वधा का विवाह पितृदेव पितरेश्वर से हुआ था। उनकी पुत्री मैना का विवाह हिमालय (हिमवान) से हुआ था, और इन्हीं के घर में मां शैलपुत्री का जन्म हुआ। मैना देवी और हिमवान के अन्य पुत्र-पुत्रियां भी थे, जिनमें गंगा और मेनाक प्रमुख हैं। यह वंशावली देवी के महत्व को और भी बढ़ाती है, जो उन्हें इस पवित्र परिवार से जोड़ती है। मां शैलपुत्री की कहानी त्याग, प्रेम, धैर्य और शक्ति का एक अनूठा संगम है। वे न केवल एक देवी हैं, बल्कि एक प्रेरणा भी हैं, जो हमें जीवन के हर मोड़ पर अडिग रहने का साहस देती हैं।
02 . माता ब्रह्मचारिणी: तप, त्याग और संयम की शक्ति
नवरात्रि के नौ पावन दिनों में, दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित है, जो तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की साक्षात प्रतीक हैं। उनका नाम ही उनके स्वरूप को परिभाषित करता है: 'ब्रह्म' का अर्थ है तपस्या और 'चारिणी' का अर्थ है आचरण करने वाली। यानी, वह देवी जो तपस्या का आचरण करती हैं। देवी ब्रह्मचारिणी की कथा, उनके स्वरूप और उनके महत्व को समझना हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। सनातन धर्म का शाक्त पंथ के देवीभागवत केवम स्मृति ग्रंथों  के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी पूर्व जन्म में हिमालय के राजा हिमवंत और उनकी पत्नी मैना की पुत्री थीं। उनका जन्म उत्तराखंड के चमोली जिले में, कर्णप्रयाग के पास नंद पर्वत की श्रृंखला पर हुआ था। जब वे छोटी थीं, तब देवर्षि नारद के उपदेशों से प्रेरित होकर उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने का संकल्प लिया। भगवान शिव को पाने के लिए उन्होंने घोर तपस्या की। उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि उन्हें तपश्चारिणी नाम से भी जाना जाने लगा। उन्होंने हजारों वर्षों तक केवल फल और फूल खाकर तप किया। इसके बाद उन्होंने पत्तों का भी त्याग कर दिया, जिसके कारण उन्हें अपर्णा (बिना पत्तों वाली) भी कहा गया। उनकी कठोर तपस्या से तीनों लोक कांप उठे और देवगण भी उनकी लगन से चकित थे। अंततः, भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि वे ही उनके पति होंगे। इस प्रकार, माता ब्रह्मचारिणी की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची लगन और कठोर परिश्रम से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत सरल, शांत और सौम्य है। वह सफेद वस्त्र धारण करती हैं, जो शुद्धता और सादगी का प्रतीक है। उनके दाहिने हाथ में जप की रुद्राक्ष की माला है, जो तप और एकाग्रता का प्रतीक है, और बाएं हाथ में कमंडल है, जो त्याग और वैराग्य का प्रतीक है। उनकी सवारी उनके अपने चरण हैं, जो यह दर्शाते हैं कि वह अपनी शक्ति और तपस्या से स्वयं ही आगे बढ़ती हैं माता ब्रह्मचारिणी का प्रिय रंग पीला, सफेद और हरा है, और उन्हें मिश्री व हविष्य का भोग प्रिय है। उनका ध्यान हमें मन को शांत करने, बाहरी भौतिक सुखों का त्याग करने और आंतरिक शांति की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता  है। सत्य सनातन धर्म में माता ब्रह्मचारिणी की उपासना का विशेष महत्व है। ऋग्वेद, देवीभागवत, मार्कण्डेय पुराण और भविष्य पुराण जैसे कई प्रमुख ग्रंथों में उनकी महिमा का उल्लेख मिलता है। नवरात्रि के दूसरे दिन, साधक और भक्त अपने मन को स्वाधिष्ठान चक्र पर केंद्रित करते हैं, जो माता ब्रह्मचारिणी का प्रतीक है। यह चक्र जीवन शक्ति, सृजनात्मकता और भावनात्मक संतुलन से जुड़ा है।इस दिन की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य और संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। जो लोग अपने जीवन में किसी बाधा का सामना कर रहे हैं, उन्हें माता ब्रह्मचारिणी की साधना से शक्ति मिलती है। देवी की कृपा से व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर पाता है और जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
माता ब्रह्मचारिणी के कई प्रमुख मंदिर और स्थान हैं, जो उनके भक्तों के लिए आस्था के केंद्र हैं: कर्णप्रयाग, उत्तराखंड: चमोली जिले में स्थित नंद पर्वत पर उनका मूल ब्रह्मचारिणी मंदिर है। यह स्थान उनके जन्म और तपस्या से जुड़ा हुआ है। वाराणसी, उत्तर प्रदेश: वाराणसी के सप्तसागर क्षेत्र में, पंचगंगा घाट और दुर्गाघाट के पास उनके मंदिर स्थापित हैं, जहां भक्त विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान दर्शन के लिए आते हैं।पुष्कर, राजस्थान: पुष्कर में ब्रह्म सरोवर के पास भी ब्रह्मघाट क्षेत्र में उनका मंदिर है।उमानंद मंदिर, असम: गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित नीलांचल पर्वत पर उमानंद मंदिर के गर्भगृह में माता ब्रह्मचारिणी स्थापित हैं। यह स्थान उनके उमा रूप का प्रतीक है। इनके अलावा, सूरत, बरेली, अल्मोड़ा, टिहरी, और चंपावत जैसे कई स्थानों पर भी उनके मंदिर स्थित हैं, जो उनकी व्यापक लोकप्रियता को दर्शाते हैं।नवरात्रि के दूसरे दिन, माता ब्रह्मचारिणी की उपासना के लिए कई मंत्रों और श्लोकों का जाप किया जाता है। इनमें से दो प्रमुख श्लोक हैं:
"दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||"
"या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।"
इन श्लोकों के जाप से साधक को न केवल देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बल्कि वह अपने जीवन में यश, सिद्धि और विजय भी प्राप्त करता है। यह देवी के प्रति हमारी श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करने का एक तरीका है।
आज के भागदौड़ भरे जीवन में, माता ब्रह्मचारिणी का महत्व और भी बढ़ जाता है। उनकी कथा हमें बताती है कि जीवन में सफल होने के लिए भौतिकवादी इच्छाओं से परे जाकर एकाग्रता और धैर्य से काम करना जरूरी है। मोबाइल, सोशल मीडिया और अन्य बाहरी distractions से भरे इस युग में, उनकी तपस्या हमें मन को शांत करने और अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देती है। माता ब्रह्मचारिणी की उपासना से हमें यह सीख मिलती है कि बाहरी सुंदरता या धन से अधिक महत्वपूर्ण आंतरिक शांति, नैतिकता और आत्म-अनुशासन है। यह हमें जीवन में सही दिशा में आगे बढ़ने और अपनी आत्मा को शुद्ध करने का मार्ग दिखाती है। इस प्रकार, माता ब्रह्मचारिणी केवल एक देवी नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक शक्ति हैं, जो हमें जीवन के हर मोड़ पर तप, त्याग और संयम की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।
03 .  माँ चंद्रघंटा: नवदुर्गा का तीसरा रूप और शक्ति की उपासना
नवरात्रि, शक्ति उपासना का महापर्व, नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ दिव्य रूपों की आराधना का अवसर प्रदान करता है। इन नौ देवियों में से तीसरी शक्ति हैं माँ चंद्रघंटा। इनका नाम इनके मस्तक पर सुशोभित घंटे के आकार के अर्धचंद्र के कारण पड़ा है। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप जितना भव्य और शांतिदायक है, उतनी ही उनकी शक्ति कल्याणकारी और पराक्रमी है। शाक्त संप्रदाय के ग्रंथों, विशेष रूप से देवीभागवत पुराण और देवी पुराण में, उनके महत्व, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन मिलता है। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला और अलौकिक है। वे दस भुजाओं से सुसज्जित हैं, जिनमें से प्रत्येक हाथ में खड्ग, बाण, धनुष, त्रिशूल, गदा, चक्र और कमंडलु जैसे विभिन्न अस्त्र-शस्त्र और कमल का फूल धारण किए हुए हैं। उनका वाहन पराक्रमी सिंह है, जो शक्ति, साहस और निर्भयता का प्रतीक है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र घंटे के आकार में सुशोभित है, जिसकी ध्वनि साधक को प्रेतबाधा और सभी नकारात्मक शक्तियों से बचाती है।
शाक्त साधकों के लिए माँ चंद्रघंटा की उपासना का विशेष महत्व है।  साधक का मन नवरात्रि के तीसरे दिन 'मणिपूर' चक्र में समर्पित होता है। इस चक्र के जागृत होने से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन, दिव्य सुगंधियों का अनुभव और अद्भुत ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। माँ की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं, और वह सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। उनकी आराधना सद्यः फलदायी है, और वे भक्तों के कष्टों का निवारण बहुत शीघ्र करती हैं। माँ चंद्रघंटा के प्राकट्य से जुड़ी दो प्रमुख कथाएँ शाक्त परंपरा में वर्णित हैं। जब अहंकारी दैत्यराज महिषासुर ने अपनी शक्तियों के बल पर देवताओं पर आक्रमण किया और उन्हें पराजित कर दिया, तो सभी देवता त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के पास सहायता के लिए पहुँचे। देवताओं की करुण पुकार सुनकर त्रिदेवों को अत्यधिक क्रोध आया। उनके क्रोध से एक दिव्य और तेजस्वी शक्ति का प्राकट्य हुआ, जो दस भुजाओं वाली माँ चंद्रघंटा थीं। सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्ति और अस्त्र-शस्त्र उन्हें प्रदान किए। भगवान शंकर ने त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, इंद्र ने घंटा और सूर्य ने तेज तलवार भेंट की। इसी प्रकार, सभी देवी-देवताओं ने उन्हें अपने शस्त्र-अस्त्र अर्पित किए और सिंह को उनके वाहन के रूप में प्रदान किया। इस प्रकार, शक्ति से परिपूर्ण होकर माँ चंद्रघंटा ने महिषासुर के साथ घमासान युद्ध किया और उसका वध कर दिया। इस विजय ने न केवल देवलोक को बचाया, बल्कि भूमंडल को भी दैत्यों के आतंक से मुक्त कर दिया, जिससे मानव, जीव-जंतु और पर्यावरण को संरक्षण प्राप्त हुआ।
देवी पुराण के अनुसार, यह कथा भगवान शिव और पार्वती के विवाह से जुड़ी है। जब भगवान शिव अपनी बारात लेकर राजा हिमवान के महल पहुँचे, तो उनका रूप अत्यंत भयानक था। उनके बालों में सर्प, गले में मुंडमाला और साथ में भूत, अघोरी, ऋषि और तपस्वियों का अजीब जुलूस था। यह भयावह रूप देखकर पार्वती की माता मैना देवी बेहोश हो गईं। माता पार्वती ने अपनी माता को इस स्थिति में देखकर तुरंत देवी चंद्रघंटा का रूप धारण किया। उन्होंने अपने दिव्य रूप से भगवान शिव से अनुरोध किया कि वे अपना राजकुमार वाला रूप धारण करें। पार्वती के अनुरोध पर, भगवान शिव ने अपना सौम्य और आकर्षक रूप धारण किया, जिसके बाद विवाह संपन्न हुआ। यह कथा दर्शाती है कि माँ चंद्रघंटा न केवल युद्ध की देवी हैं, बल्कि वे जीवन में शांति और सौहार्द भी लाती हैं।
माँ चंद्रघंटा की उपासना के लिए साधक को मन, वचन, कर्म और काया से पूर्णतः पवित्र होकर उनकी शरण में जाना चाहिए। इस दिन साधक को भूरे या भगवा रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा के दौरान माँ को सौभाग्य सूत्र, हल्दी, चंदन, रोली, सिंदूर, दूर्वा, बिल्वपत्र, फल-फूल और खीर का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
बीज मंत्र: ॐ ऐं श्रीं शक्तयै नमः महामंत्र: या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ यह महामंत्र माँ की सार्वभौमिक शक्ति को नमन करता है और उनसे समस्त पापों से मुक्ति की प्रार्थना करता है। माँ चंद्रघंटा का ध्यान और स्तोत्र पाठ उनकी कृपा पाने के लिए अत्यंत लाभकारी माने जाते हैं।
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चंद्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नवरात्रि के तीसरे दिन, सांवले रंग की ऐसी विवाहित महिला को भोजन कराना शुभ माना जाता है, जिनके चेहरे पर तेज हो। उन्हें दही और हलवा खिलाकर, कलश और मंदिर की घंटी भेंट करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
भारत के प्रमुख  स्थानों पर माँ चंद्रघंटा के मंदिर स्थापित हैं, जहाँ भक्तगण उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिर हैं: , बिहार का चंदौत मंदिर (पंचलक्खी) , उत्तर प्रदेश के बनारस की लक्खी चौराहा गली में स्थित मंदिर , राजस्थान के जयपुर का मुरलीपुरा मंदिर , अंबाला, नोवामुंडी और बाराबंकी में स्थित शाक्त स्थल  मंदिरों में माँ की उपासना से साधक के सभी सांसारिक कष्ट दूर होते हैं और वह सहज ही परमपद का अधिकारी बनता है। माँ चंद्रघंटा की उपासना हमें साहस, शांति और आत्मबल प्रदान करती है, ताकि हम जीवन की सभी चुनौतियों का सामना निर्भय होकर कर सके ।
:04 . ब्रह्मांड की सृष्टिकर्ता: माता कूष्माण्डा और उनकी महिमा
सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय में  शक्ति की उपासना का विशेष महत्व है, और नवरात्रि का पर्व इसका सबसे जीवंत उदाहरण है। इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है, जिनमें से चौथे दिन माता कूष्माण्डा की उपासना की जाती है। शाक्त संप्रदाय के ग्रंथों में इन्हें ब्रह्मांड की आदि शक्ति और सृष्टिकर्ता के रूप में पूजा जाता है। 'कूष्माण्डा' शब्द का गहरा अर्थ है। यह दो शब्दों, 'कूष्म' (कुम्हड़ा) और 'अण्डा' (ब्रह्मांड), से मिलकर बना है। ऐसी मान्यता है कि जब चारों ओर केवल गहन अंधकार था और सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, तब माता कूष्माण्डा ने अपनी मंद, हल्की हंसी से इस पूरे ब्रह्मांड की रचना की। इस कारण उन्हें 'अण्ड' (ब्रह्मांड) की जननी कहा जाता है।
देवी का निवास सूर्यमंडल के भीतर माना जाता है, जहाँ उनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित होती हैं। ब्रह्मांड के सभी प्राणियों और वस्तुओं में जो ऊर्जा और तेज है, वह उन्हीं की छाया है। देवी कूष्माण्डा का स्वरूप अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली है। उन्हें अष्टभुजी माता भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी आठ भुजाएँ हैं। इन भुजाओं में वे कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं। उनका वाहन सिंह है और उनके जीवनसाथी स्वयं भगवान शिव हैं। नवरात्रि के चौथे दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में स्थित होता है। यह चक्र हृदय के पास होता है और माना जाता है कि यहाँ ध्यान केंद्रित करने से व्यक्ति आध्यात्मिक शक्ति, आंतरिक शांति और आत्मविश्वास प्राप्त करता है।
माँ कूष्माण्डा को उनकी अल्प सेवा और सच्ची भक्ति से ही प्रसन्न होने वाली देवी माना जाता है। उनकी उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक दूर हो जाते हैं, और उनकी आयु, यश, बल और आरोग्य में वृद्धि होती है। इस दिन उनके विशेष मंत्र 'या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।' का जाप किया जाता है, जिसका अर्थ है, "हे माँ! जो सभी प्राणियों में कूष्माण्डा के रूप में विराजमान हैं, मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सभी पापों से मुक्ति प्रदान करें।" शास्त्रों  के अनुसार, संस्कृत में 'कूष्माण्ड' का अर्थ 'कुम्हड़ा' (पेठा) होता है। माँ को कुम्हड़े की बलि अत्यंत प्रिय है, जिसके कारण भी उन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है।नवरात्रि में, विशेषकर नवविवाहित महिलाओं के लिए, माँ कूष्माण्डा की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन भोजन में दही और हलवा का भोग लगाया जाता है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करने से माता प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करती हैं।
माँ कूष्माण्डा के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर भारत में मौजूद हैं, जो उनके भक्तों के लिए प्रमुख तीर्थस्थल हैं।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले का कुमंडी मंदिर: यहाँ की एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि अगस्त ने अपनी बाईं काँख से माता कूष्माण्डा का आह्वान किया था, जिन्होंने दैत्यों और दानवों का संहार किया। इस मंदिर का निर्माण टिहरी की महारानी ने करवाया था।उत्तर प्रदेश के घाटमपुर (कानपुर) का मंदिर: यह मंदिर भी देवी के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है।महोबा (उत्तर प्रदेश) में पिपरा माफ का मंदिर: यह एक प्राचीन मंदिर है जहाँ देवी की पूजा सदियों से की जा रही है।दिल्ली के झंडेवालान मंदिर और वाराणसी के दक्षिण क्षेत्र के मंदिर: ये भी देवी की उपासना के लिए प्रसिद्ध हैं। माँ कूष्माण्डा की उपासना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड की सृजन शक्ति और जीवन के मूल को समझने का एक माध्यम है। उनका आशीर्वाद भक्तों को न केवल आध्यात्मिक शक्ति देता है, बल्कि उन्हें सांसारिक जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्य भी प्रदान करता है।
05 . स्कंदमाता: मोक्ष का द्वार खोलने वाली, शौर्य की शिक्षिका 
सनातन धर्म के शाक्त सम्प्रदाय में, नवरात्रि के नौ दिन शक्ति की विभिन्न लीलाओं का उत्सव मनाते हैं। इस पावन पर्व का पंचम दिवस एक विशेष देवी को समर्पित है—जो हैं माँ स्कंदमाता। यह वह स्वरूप है जहाँ वात्सल्य (ममता) और शौर्य (शक्ति) का अद्भुत संगम होता है। स्कंदमाता की उपासना केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि मोक्ष का द्वार खोलने वाली और भक्तों को अलौकिक तेज प्रदान करने वाली एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है। नवदुर्गाओं में पंचम स्थान पर विराजमान, माँ स्कंदमाता का नाम उनके पुत्र देव सेनापति कार्तिकेय के नाम पर पड़ा, जिन्हें स्कंद या कुमार भी कहा जाता है। वह केवल जन्मदात्री नहीं हैं, बल्कि अपने पुत्र की गुरु और मार्गदर्शिका भी हैं। माँ का स्वरूप पूर्णतः शुभ्र (सफेद) वर्ण का है, जो पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है। उनके विग्रह की चार भुजाएँ हैं: वह सिंह की सवारी करती हैं, जो शौर्य और निर्भयता का प्रतीक है।उनकी दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल पुष्प है।बाईं तरफ की नीचे वाली भुजा भी ऊपर की ओर उठी है और इसमें कमल पुष्प है, जबकि ऊपर वाली बाईं भुजा वरमुद्रा में है, जो भक्तों को अभयदान देती है। सबसे महत्वपूर्ण, उनके गोद में उनके पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) बालरूप में बैठे होते हैं। उनकी महिमा का बखान करने वाला यह श्लोक उनके स्वरूप को स्पष्ट करता है:
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।।
अर्थात्, जो नित्य सिंहासन पर विराजमान हैं और जिनके दोनों हाथों में कमल है, वह यशस्वी देवी स्कंदमाता हमें सदा शुभ प्रदान करें।  स्कंदमाता की पहचान केवल एक देवी के रूप में नहीं है, बल्कि देवों की सेनापति को शिक्षित करने वाली गुरु के रूप में भी है। स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान स्कंद ('कुमार कार्तिकेय') देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे। दैत्यराज तारकासुर के आतंक को समाप्त करने के लिए उनका जन्म हुआ था। आपके दिए गए विवरण के अनुसार: माँ स्कंदमाता ने स्वयं देव सेनापति कार्तिकेय को दैत्यों एवं दानवों के संहार हेतु देवों, वेदों, एवं जनकल्याण का मंत्र तथा शिक्षा दी थी। इसी शिक्षा के बल पर देव सेनापति कार्तिकेय द्वारा दैत्यराज तारकासुर एवं अन्य दैत्यों और दानवों का संहार कर जनता को खुशहाल जीवन स्थापित किया गया। इस प्रकार, स्कंदमाता भक्तों को यह संदेश देती हैं कि संसार रूपी युद्ध में विजय पाने के लिए केवल शक्ति ही नहीं, बल्कि सही मार्गदर्शन (ज्ञान) और नैतिकता भी आवश्यक है। वह अपने भक्तों को जीवन के संघर्षों में विजयी होने की कला सिखाती हैं। नवरात्रि के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व है, जो आंतरिक शुद्धि और चक्र जागरण से जुड़ा है। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है। यह चक्र गले (कंठ) में स्थित है और शुद्धिकरण, आत्म-अभिव्यक्ति तथा सत्य का प्रतिनिधित्व करता है। शुभ्र चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप होने लगता है। साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है। इस तल्लीनता से साधक मोक्ष द्वार की ओर अग्रसर होता है, इसीलिए उन्हें 'मोक्ष द्वार खोलने वाली माता' कहा जाता है। माँ स्कंदमाता को सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है। यह उपाधि उनकी उपासना करने वाले साधकों के लिए अलौकिक फल प्रदान करती है। उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न होता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त है। माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। भक्त इस मृत्युलोक में ही परम शांति और सुख का अनुभव करने लगता है। स्कंदमाता की उपासना से एक अद्वितीय लाभ मिलता है: बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। स्कंद (कार्तिकेय) शक्ति, शौर्य और धर्म के रक्षक हैं, जबकि माँ ममता और ज्ञान की प्रतीक हैं। इस प्रकार, साधक को शक्ति और ज्ञान दोनों का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक अत्यंत सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन स्कंदमाता की उपासना करने से सर्वांगीण फल की प्राप्ति होती है:
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ: हे माँ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ और मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। स्कंदमाता के प्रसिद्ध शाक्त स्थल में भारत और नेपाल में स्कंदमाता को समर्पित कई प्राचीन और पूजनीय मंदिर हैं, जो शाक्त भक्तों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थल हैं: उत्तराखंड: टिहरी में सुरकुट पर्वत। उत्तरप्रदेश: वाराणसी क्षेत्र में जगतपुरा स्थित स्कंदमाता मंदिर, अहिरौली, बलरामपुर और कानपुर। मध्य प्रदेश: इंदौर का मंडलेश्वर, विदिशा और जैतपुरा। राजस्थान का पुष्कर, रुढ़की और बिलासपुर जिले का मल्हार, तथा नेपाल के शाक्त स्थल है। माँ स्कंदमाता की उपासना हमें सिखाती है कि जीवन में सफलता (स्कंद का शौर्य) तभी संभव है जब वह वात्सल्य और ज्ञान (माँ का स्वरूप) के मार्ग पर चले। वह हमें शुद्ध मन (विशुद्ध चक्र), अलौकिक तेज (सूर्यमंडल), और अंततः मोक्ष (बंधन मुक्ति) की ओर ले जाने वाली परम शक्ति हैं। नवरात्रि के इस पंचम दिवस पर, हमें उनके स्वरूप का ध्यान करते हुए, अपने भीतर के शौर्य को जागृत करने और ज्ञान के कमल को विकसित करने का संकल्प लेना चाहिए।
06 . माता कात्यायनी  मंदिर और जिज्ञासा 
कात्यायनी मंदिर से बाहर निकलकर सभी बच्चे और बड़े एक शांत जगह पर विश्राम कर रहे थे। वृंदावन की हवा में अब भी भक्ति और मिठास घुली हुई थी। प्रशांत, जिसने पहले महिषासुर के बारे में पूछा था, वह अब भी उसी सोच में डूबा हुआ था। उसने अपने पिताजी नवीन से पूछा, "पिताजी, आपने कहा था कि माता कात्यायनी ने महिषासुर नाम के एक राक्षस को मारा था। वह कैसा दिखता था? क्या वह शेर से भी ज़्यादा ताकतवर था?" प्रवीण मुस्कुराए। उन्होंने बच्चों को अपने चारों ओर बिठाया, जैसे कोई जादू की कहानी सुनाने जा रहा हो। अनिता, कुमुद, और प्रियंका भी उत्सुकता से सुनने लगीं। कुमुद  ने कहानी शुरू की: "बहुत, बहुत साल पहले की बात है। धरती पर एक राक्षस राज करता था जिसका नाम था महिषासुर। महिषासुर का सिर तो भैंसे जैसा था, लेकिन उसके पास मनुष्यों की तरह हाथ-पैर और बुद्धि थी। उसने तपस्या करके इतने वरदान प्राप्त कर लिए थे कि उसे कोई भी देवता या पुरुष मार नहीं सकता था। उसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड हो गया।"
पुच्ची डर के मारे अपनी मम्मी बेबी के पास चिपक गई। "क्या वह बहुत बुरा था, मम्मा जी ?" "हाँ, पुच्ची रानी," नवीन ने प्यार से कहा। "वह बहुत बुरा था। वह देवताओं को उनके घरों से निकाल देता था, अच्छे लोगों को परेशान करता था और पूरी पृथ्वी पर अत्याचार फैलाता था। उसका डर इतना बढ़ गया था कि देवता भी छिपने लगे।" दिव्यांशु ने अपनी आँखें बड़ी करते हुए पूछा, "तो फिर क्या हुआ? देवताओं को तो वरदान तोड़ना आता होगा, है ना?" प्रवीण ने कहानी को आगे बढ़ाया: "हाँ, दिव्यांशु! जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) तीनों देवताओं ने देखा कि उनका कोई भी पुरुष रूप महिषासुर को मार नहीं सकता, तो वे क्रोध और संकट में आ गए। तब उन तीनों देवताओं ने मिलकर एक अद्भुत योजना बनाई।" प्रियांशु उछलकर बोला, "क्या योजना बनाई?" "सभी देवताओं ने अपने-अपने भीतर का सारा तेज (ऊर्जा) बाहर निकाल दिया," प्रवीण ने बताया। "जैसे हम सब मिलकर एक बड़ा-सा टॉर्च जला दें, वैसे ही देवताओं के तेज से एक विशाल, प्रकाशमय पुंज पैदा हुआ। वह पुंज इतना चमकीला था कि आँखें चौंधिया जाएं।"
उर्वशी ने बीच में कहा, "और प्यारे बच्चों, वही प्रकाश पुंज धीरे-धीरे एक अत्यंत सुंदर, तेजस्वी और शक्तिशाली देवी के रूप में बदल गया! वही देवी थीं हमारी माता कात्यायनी!"
दिव्यांशु ने पूछा, "माता कात्यायनी को तो केवल चार हाथ होते हैं, पर क्या उनको महिषासुर को मारने के लिए और भी हथियार मिले?" प्रवीण ने उत्तर दिया, "बिल्कुल! हर देवता ने उन्हें अपना सबसे खास हथियार दिया। शंकर भगवान ने उन्हें त्रिशूल दिया, विष्णु भगवान ने चक्र, इंद्र ने वज्र और हिमालय ने उन्हें एक तेजस्वी शेर (सिंह) दिया, जिस पर वे सवार होकर युद्ध लड़ सकें। यही सिंह उनका वाहन बना।"
कहानी अब अपने रोमांचक मोड़ पर थी। सभी बच्चे शांत होकर सुन रहे थे। प्रवीण ने गहरी आवाज़ में कहा, "जब यह तेजस्वी देवी, कात्यायनी, पहली बार प्रकट हुईं और दहाड़ लगाई, तो तीनों लोक काँप उठे। महिषासुर ने जब यह दहाड़ सुनी, तो वह हँसा। उसे लगा कि कोई स्त्री उसका क्या बिगाड़ लेगी!"
"लेकिन माता कात्यायनी तो साक्षात शक्ति थीं। उन्होंने विंध्याचल पर्वत पर निवास किया और दस दिनों तक महिषासुर की विशाल सेना से भयंकर युद्ध किया। उनके हाथों में तलवार ऐसे चमकती थी जैसे बिजली चमक रही हो।"
प्रशांत ने उत्साह से पूछा, "और फिर क्या हुआ?" "दसवें दिन, माता कात्यायनी और महिषासुर का आमना-सामना हुआ। महिषासुर बार-बार अपना रूप बदलता रहा—कभी भैंसा, कभी मनुष्य, कभी हाथी—लेकिन माता की शक्ति के सामने उसकी कोई चाल काम नहीं आई। अंत में, जब महिषासुर फिर से भैंसे का रूप ले रहा था, तभी माता कात्यायनी ने अपने त्रिशूल से उस पर ज़ोरदार वार किया।"
"महिषासुर चीख़ता रहा, लेकिन माता ने उसे तुरंत मार डाला। उसके मरते ही पूरी धरती पर शांति छा गई। देवताओं ने आसमान से फूल बरसाए, और हर तरफ जय-जयकार होने लगी।"कुमुद ने कहानी खत्म करते हुए बच्चों से कहा, "बस, इसी वजह से माता कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी (महिषासुर का वध करने वाली) कहा जाता है। उन्होंने हमें सिखाया कि सच्चाई और धर्म की रक्षा के लिए शक्ति का उपयोग करना कितना ज़रूरी है।" दिव्यांशु ने गहरी साँस ली और कहा, "तो माता कात्यायनी सचमुच सबसे ताकतवर हैं, जो हमें अभय (डर से मुक्ति) देती हैं और बृहस्पति (गुरु) को भी मज़बूत करती हैं।" प्रियांशु ने अपनी छोटी-सी मुट्ठी बाँध ली, "अगर कोई शैतान बनेगा तो माता कात्यायनी उसे मारेंगी!" नवीन ने सभी बच्चों के सिर पर हाथ रखा। "हाँ मेरे बच्चों! माता कात्यायनी की पूजा हमें यही हिम्मत देती है कि हमें कभी भी अन्याय के सामने झुकना नहीं चाहिए और हमेशा अच्छाई का साथ देना चाहिए।" सभी बच्चों के चेहरे पर अब डर की जगह श्रद्धा और साहस का भाव था। वे अपनी तीर्थयात्रा के अगले चरण की ओर बढ़ने के लिए तैयार थे, मन में माता कात्यायनी की दिव्य गाथाएँ लिए हुए।
07.  माँ कालरात्रि: काल का नाश करने वाली शुभंकारी शक्ति 
माँ कालरात्रि सनातन धर्म में पूजी जाने वाली नवदुर्गाओं की सप्तम शक्ति हैं। उनका नाम 'काल' (समय/मृत्यु) और 'रात्रि' (अंधकार) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है जो काल के अंधकार का भी नाश कर दे। उनका स्वरूप भले ही अत्यंत भयंकर है, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए सदैव शुभ फल देने वाली हैं, इसीलिए उन्हें 'शुभंकारी' भी कहा जाता है।देवी कालरात्रि का स्वरूप प्राचीन स्मृतियों, पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है, जो उनकी परम शक्ति को दर्शाता है। उनका शरीर घने अंधकार की तरह काला (कृष्णा) है। उनके बाल बिखरे हुए रहते हैं और वे अपने गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला धारण करती हैं। नेत्र और श्वास: उनके तीन नेत्र हैं, जो ब्रह्मांड के समान गोल और विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत करते हैं। सबसे भयंकर है उनकी नासिका के श्वास-प्रश्वास से निकलने वाली अग्नि की ज्वालाएँ, जो नकारात्मक ऊर्जाओं को पल भर में भस्म कर देती हैं। वाहन और आयुध: उनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। वे चतुर्भुजी हैं, जिनके ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा भक्तों को वर प्रदान करती है, और दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में होता है (भय से रक्षा)। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा (असुरों को नियंत्रित करने हेतु) तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।  उन्हें काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, चामुंडा, चंडी, रौद्री, धूम्रवर्णा और मृत्यू-रुद्राणी जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जो उनकी शक्ति के विभिन्न आयामों को दर्शाते हैं। जीवनसाथी: वे भगवान शिव की शक्ति हैं। निवास स्थान: उनका निवास मणिद्वीप (देवताओं का परम निवास) और श्मशान (जहाँ भौतिकता का अंत होता है) दोनों ही हैं, जो उनके जन्म और मृत्यु के चक्र पर नियंत्रण को सिद्ध करता है
माँ कालरात्रि की उपासना नवदुर्गा साधना में अत्यंत उच्च स्थान रखती है, जिसका सीधा संबंध कुंडलिनी जागरण से है। साधक का मन उपासना के दौरान 'सहस्रार' चक्र में पूर्णतः अवस्थित रहता है। यह चक्र परम चेतना का द्वार है, जिसके जागरण से ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार साधक के लिए खुल जाता है।इस स्थिति में साधक को अक्षय पुण्य लोकों की प्राप्ति होती है और वह ज्ञान, शक्ति और धन की निधियाँ प्राप्त करता है। माँ कालरात्रि की उपासना का सबसे बड़ा फल भय से पूर्ण मुक्ति है। उनके भक्तों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि किसी प्रकार के भय से चिंतित होने की आवश्यकता नहीं होती। वे दैत्य, दानव, राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और समस्त नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश करने वाली हैं। उनके स्मरण मात्र से ही ये सभी शक्तियाँ दूर भाग जाती हैं। वे ग्रह-बाधाओं को भी दूर करती हैं। उनकी उपासना से साधक के समस्त पापों-विघ्नों का नाश होता है और उसके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है। साधक को माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए।
उनके बीज मंत्र: "ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः |" का जाप परम फलदायी माना जाता है। माँ कालरात्रि के प्राकट्य का मुख्य पौराणिक कारण रक्तबीज नामक दैत्य का संहार है, जिसकी कथा दुर्गा सप्तशती में वर्णित है: रक्तबीज का वरदान: रक्तबीज एक ऐसा मायावी राक्षस था जिसके शरीर के रक्त की एक भी बूंद धरती पर गिरते ही उसके जैसे लाखों नए रक्तबीज उत्पन्न हो जाते थे। कालरात्रि का प्राकट्य: जब देवी दुर्गा (चंडिका) ने इस राक्षस पर प्रहार किया और उसके रक्त की बूंदों से नए राक्षस पैदा होने लगे, तब इस असाध्य संकट को समाप्त करने के लिए माँ दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। माँ कालरात्रि ने तब अपनी लंबी जीभ से रक्तबीज के शरीर से निकलने वाले समस्त रक्त का पान कर लिया और उसकी एक भी बूँद धरती पर नहीं गिरने दी। रक्तबीज का रक्त अवशोषित हो जाने से नए दैत्य उत्पन्न नहीं हो पाए, और माँ दुर्गा ने अंततः उसका गला काट कर संहार कर दिया। यह आख्यान सिद्ध करता है कि माँ कालरात्रि ही वह शक्ति हैं जो बुराई को उसकी जड़ों सहित समाप्त करती हैं, ताकि वह पुन: उत्पन्न न हो सके।
भारत में माँ कालरात्रि की पूजा उनके विभिन्न रूपों में होती है, जिसके दो विशिष्ट उदाहरण हैं:माँ कालरात्रि मंदिर, वाराणसी: यह मंदिर मीर घाट के समीप कालिका गली में स्थित है और इसे काशी के एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। यहाँ दर्शन मात्र से ही भक्त अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाते हैं। रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर, दरभंगा: यह मंदिर अत्यंत विशिष्ट है क्योंकि यह महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता भूमि परश्मशान घाट में स्थापित है। यहाँ माँ काली की पूजा वैदिक और तांत्रिक दोनों विधियों से होती है। माँ कालरात्रि की उपासना साहस, वीरता, और आंतरिक अंधकार पर विजय का प्रतीक है। वे काल और मृत्यु के भय को मिटाकर भक्तों के जीवन में शुभत्व और परम सिद्धि का प्रकाश लाती हैं।
08.  नवदुर्गा की अष्टम शक्ति: माँ महागौरी—तपस्या, सौंदर्य, और करुणा 
सनातन धर्म के शाक्त संप्रदाय में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों, यानी नवदुर्गा का अत्यंत महत्व है। इन नौ देवियों में, माँ महागौरी आठवाँ स्वरूप हैं, जिनकी आराधना नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर की जाती है। पुराणों और स्मृतियों में वर्णित यह देवी केवल शक्ति ही नहीं, बल्कि सौंदर्य, शांति और कठोर तपस्या का भी प्रतीक हैं। यह आलेख माँ महागौरी के दिव्य स्वरूप, उनकी कथाओं, पूजा विधि और उनके प्रसिद्ध मंदिरों पर एक गहरा प्रकाश डालता है।
महागौरी नाम ही उनके अत्यंत उज्ज्वल और गौर वर्ण को दर्शाता है। उनका स्वरूप इतना तेजोमय है कि वे शंख, चंद्रमा और कुंद के फूल की तरह धवल और कांतिमान दिखती हैं।: उनका वर्ण पूर्णतः गौर (श्वेत) है और पुराणों के अनुसार उनकी आयु आठ वर्ष है—'अष्टवर्षा भवेद् गौरी' है। वस्त्र और आभूषण: उनके समस्त वस्त्र और आभूषण श्वेत हैं, जो पवित्रता और सादगी का प्रतीक हैं। वाहन: उनका प्रमुख वाहन वृषभ (बैल) है। एक कथा के अनुसार, उन्हें सिंह पर भी आरूढ़ बताया गया है, जो उनकी तपस्या का फल था। माँ महागौरी की चार भुजाएँ हैं।ऊपर का दाहिना हाथ: अभय मुद्रा (भय मुक्ति का आशीर्वाद)।नीचे का दाहिना हाथ: त्रिशूल (दुष्टों का नाश)।ऊपर का बायाँ हाथ: डमरू (सृष्टि की ध्वनि और लय)।नीचे का बायाँ हाथ: वर-मुद्रा (मनचाहा वरदान देने का आशीर्वाद)। निवास और संबंध: उनका निवास स्थान कैलाश पर्वत है और उनके जीवनसाथी भगवान शिव हैं। उन्हें सभी ग्रहों की आराध्या भी माना जाता है। ध्यान श्लोक: उनका ध्यान श्लोक उनके स्वरूप का सार बताता है:
श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः |
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ||
(जो श्वेत वृषभ पर आरूढ़ हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जो पवित्र हैं, और महादेव को आनंदित करती हैं, वह महागौरी हमें शुभता प्रदान करें।)
माँ महागौरी के स्वरूप के पीछे उनकी अत्यंत कठोर तपस्या की एक मार्मिक और प्रेरणादायक कथा निहित है, जिसका उल्लेख विशेष रूप से देवी भागवत में मिलता है। यह कथा बताती है कि कैसे उन्होंने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक साधना की। देवी भागवत  के अनुसार, पार्वती जी ने जब शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या शुरू की, तो वर्षों तक धूप, वर्षा, और ठंड सहन करने के कारण उनका शरीर काला (श्यामल) पड़ गया। जब भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनके पास पहुँचे, तो उन्होंने पार्वती के इस तप से मलिन हुए शरीर को देखा।अपनी प्रिय उमा को यह कष्ट देखकर शिव अत्यंत करुणा से भर उठे। उन्होंने गंगा-जल से उनके शरीर को धोया। गंगा के पवित्र जल से स्नान करते ही देवी का वर्ण विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान और गौर हो गया। इस अद्भुत गौरवर्ण को प्राप्त करने के कारण ही वे महागौरी नाम से विख्यात हुईं। यह रूप करुणा, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखता है।
पुराणों  के अनुसार, जब दानव राज दुर्गम के अत्याचारों से त्रिलोकी संतप्त थी, तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवती शाकंभरी की शरण में आने पर माता ने त्रिलोकी को मुग्ध करने वाले महागौरी रूप का प्रादुर्भाव किया। माता महागौरी ने शिवालिक पर्वत के शिखर पर आसन लगाकर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए। यही कारण है कि शाकंभरी और महागौरी के स्वरूपों का कई संदर्भों में एक-दूसरे से जुड़ाव दिखता है। महागौरी का वाहन वृषभ है, लेकिन वह सिंह पर भी आरूढ़ होती हैं। इसके पीछे भी एक प्रेरणादायक कथा है जो मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है: देवी पार्वती जब कठोर तपस्या में लीन थीं, तब एक भूखा सिंह भोजन की तलाश में उनके तपस्या स्थल पर पहुँचा। उसने तपस्वी देवी को देखा, और उसकी भूख और बढ़ गई। परंतु, सिंह ने तपस्या भंग करने के बजाय यह निश्चय किया कि वह देवी के तप से उठने का इंतजार करेगा।वर्षों तक देवी की तपस्या चलती रही, और सिंह भी वहीं बैठा रहा। इंतजार करते-करते वह अत्यंत कमज़ोर हो गया। जब देवी तपस्या से उठीं और सिंह की यह दयनीय दशा देखी, तो उन्हें उस पर बहुत दया आई।देवी ने माना कि सिंह ने भी एक प्रकार से उनके साथ तपस्या ही की है। अपनी करुणा के वशीभूत होकर माँ गौरी ने उस सिंह को अपना वाहन बना लिया और उसे अपनी सेवा में स्वीकार किया। इस प्रकार, माँ महागौरी के वाहन के रूप में बैल (वृषभ) और सिंह दोनों का उल्लेख मिलता है।
महागौरी की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि की अष्टमी तिथि को की जाती है। उनकी आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी मानी गई है।माँ महागौरी की पूजा का विधान पूर्ववत है, जैसा कि सप्तमी तिथि तक किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित क्रियाएँ शामिल हैं: शुद्धिकरण: पूजा से पूर्व स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करना। ध्यान और आह्वान: माता महागौरी का ध्यान करते हुए उनका आह्वान करना है। उन्हें श्वेत वस्त्र, श्वेत फूल (जैसे कुंद), और नैवेद्य (भोग) अर्पित करना। माता का प्रिय रंग श्वेत है, इसलिए सफेद रंग की वस्तुओं का प्रयोग करना शुभ माना जाता है। माँ महागौरी की प्रार्थना के दौरान देवों और ऋषियों द्वारा उच्चारित यह महामंत्र सभी संकटों को दूर करने वाला माना जाता है:
सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते॥
(अर्थ: हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतों का प्रतिपालन करने वाली, तीन नेत्रों वाली गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।)
माँ महागौरी की आराधना करने से भक्तों को सुख-समृद्धि, शांति और कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह स्वरूप हमें सिखाता है कि कठोर तपस्या के बाद ही सर्वोच्च सौंदर्य और शक्ति की प्राप्ति होती है।एक अन्य प्रसिद्ध मंत्र है, जो देवी के स्वरूप का वर्णन करते हुए उनकी कृपा की याचना करता है:
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
(अर्थ: हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करें।)
माँ महागौरी के प्रसिद्ध मंदिर में  भारत के विभिन्न कोनों में माँ महागौरी के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहाँ भक्त अपनी आस्था और श्रद्धा अर्पित करते हैं। राज्य/स्थान मंदिर में उत्तराखंड गौरी कुंड (चमोली जिले के मंदाकनी नदी के तट पर) यह स्थान केदारनाथ यात्रा के मार्ग पर स्थित है और धार्मिक महत्व रखता है।उत्तराखंड पोखरी, नाइ टिहरी बौराड़ी (गढ़वाल) गढ़वाल क्षेत्र में देवी गौरी के मंदिर स्थापित हैं, जो स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र हैं। बिहार मंगलागौरी मंदिर (गया, भष्मपहाड़ी पर) यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और अत्यंत प्राचीन है।उत्तरप्रदेश काशी (वाराणसी) - पंचगंगा घाट काशी में देवी के नौ गौरी स्वरूपों के मंदिर हैं, जिनमें महागौरी का भी महत्वपूर्ण स्थान है।हरियाणा फरीदाबाद में माता महागौरी मंदिर यह मंदिर आधुनिक समय में भी भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध है।तमिलनाडु कांचीपुरम दक्षिण भारत में भी माँ गौरी के प्राचीन मंदिर पाए जाते हैं, जो उनकी व्यापक उपस्थिति दर्शाते हैं।छत्तीसगढ़ रायपुर (अवंति बिहार) स्थानीय लोग विशेषकर नवरात्रि के दौरान यहाँ पूजा-अर्चना करते हैं।पंजाबलुधियाना (चिमनी रोड़ स्थित शिमलापुरी) उत्तर भारत में भी देवी की पूजा अत्यंत धूमधाम से की जाती है।
माँ महागौरी का स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि तपस्या की अग्नि में तपकर ही आत्मिक और बाहरी सौंदर्य प्राप्त होता है। उनका गौर वर्ण केवल शारीरिक सुंदरता नहीं, बल्कि पवित्रता, शांति और दिव्यता का प्रतीक है। वह महादेव को आनंदित करने वाली हैं और अपने भक्तों को वरदान तथा अभय प्रदान करती हैं। नवरात्रि के आठवें दिन उनकी पूजा करके भक्तजन अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और जीवन में मंगल की कामना करते हैं। उनकी करुणा और शांति का भाव हमें जीवन की कठिनाइयों में भी स्थिर रहने की प्रेरणा देता है।
09.  माँ सिद्धिदात्री: सभी सिद्धियों की प्रदाता
नवरात्रि का पावन पर्व, जो आदि शक्ति माँ दुर्गा के नौ दिव्य स्वरूपों की उपासना का उत्सव है, नवमी तिथि को आकर अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है। यह अंतिम दिन माँ सिद्धिदात्री को समर्पित है। वेदों, पुराणों, स्मृतियों, और विशेष रूप से मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, माँ शक्ति का यह नौवां अवतार सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन, शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह उपासना साधक को ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य प्रदान करती है। सिद्धिदात्री माँ की स्तुति में कहा गया है:
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि |
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||
अर्थात्: गंधर्व, यक्ष, असुर, देवता आदि सभी के द्वारा पूजित माँ सिद्धिदात्री, जो सब प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं, हमें वे सिद्धियाँ प्रदान करें। माँ सिद्धिदात्री को सिद्धियों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, मुख्य रूप से आठ सिद्धियाँ हैं: अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। वहीं, ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में अठारह सिद्धियों का वर्णन है। माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में पूर्णतः समर्थ हैं। देवीपुराण में एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग है, जिसके अनुसार स्वयं भगवान शिव ने माँ सिद्धिदात्री की कृपा से इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन सिद्धियों की प्राप्ति के कारण ही भगवान शिव को 'अर्द्धनारीश्वर' कहा गया। यह स्वरूप दर्शाता है कि माँ शक्ति का अंश शिव में समाहित है और सिद्धियों का मूल स्रोत यही दिव्य शक्ति है।
माँ सिद्धिदात्री का विग्रह संपूर्णता और समृद्धि का प्रतीक है। उनका स्वरूप अत्यंत शांत, सौम्य और कल्याणकारी है, जो भक्तों को अभीष्ट फल देने वाला है। वाहन और आसन: माँ का वाहन सिंह है, जो पराक्रम और शौर्य का प्रतीक है, किंतु वे प्रायः कमल पुष्प पर आसीन दिखाई देती हैं, जो पवित्रता और दिव्यता का द्योतक है। चतुर्भुजा स्वरूप: वे चार भुजाओं वाली हैं। ऊपर के दाहिने हाथ में चक्र नीचे वाले दाहिने हाथ में कमल पुष्पऊपर के बाएँ हाथ में शंखनीचे वाले बाएँ हाथ में गदाआभूषण: उनके गले में दिव्य माला शोभित होती है।
यह स्वरूप समस्त दैत्यों का दमन करके प्रत्येक भक्त को वांछित परिणाम देने वाला है। वे भक्तों के कष्ट, रोग, शोक और भय को समाप्त करके सर्वविधि कल्याण करने वाली हैं। वे परम कल्याणी और मोक्ष को देने वाली हैं।
नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। प्रतिपदा से लेकर नवमी तक, भक्त अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा-उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए, नवमी के दिन इनकी उपासना में प्रवृत्त होते हैं। यह दिन नवरात्रि की पूर्णाहुति का दिन होता है।माँ सिद्धिदात्री की स्तुति और अर्चना नवरात्रि के नौवें दिन करने का नियम होता है। इनकी पूजा अर्चना न केवल मानव, बल्कि देव, दानव, गंधर्व द्वारा भी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में की जाती है। पवित्रता और संयम: पूजा के नियम पहले की ही भाँति रहेंगे, जिसमें पूरी पवित्रता का ध्यान रखना, संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नैवेद्य और प्रसाद: सुगंधित पुष्प अर्पित किए जाते हैं। नैवेद्य में खीर व हलुवे का प्रसाद और श्रीफल (नारियल) चढ़ाने का विशेष विधान है। हवन और कन्या पूजन: विधि-विधान से पूजा करने के बाद हवन किया जाता है। इसके बाद, प्रत्येक देवी के निमित्त एक कन्या—इस प्रकार नौ कन्याओं का और एक बालक का पूजन करें। उन्हें भोजन खिलाएँ और सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा करें। इस प्रकार श्रद्धा सहित पूजन को सम्पन्न करने से ही वांछित फल प्राप्त होते हैं। इस उपासना से अष्ट सिद्धि और नव निधियों की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। माँ की कृपा से भक्तों को जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। माँ सिद्धिदात्री का ध्यान और आह्वान इस मंत्र से किया जाता है:
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात्: हे माँ! जो सर्वत्र विराजमान हैं और माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध हैं, उन अम्बे को मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।
दुर्गा सप्तशती के प्रसंगों में माँ सिद्धिदात्री की महिमा का वर्णन है, जिसमें वे भक्तों को सिद्धि, बुद्धि, सुख-शांति की प्राप्ति कराती हैं और क्लेश दूर कर परिवार में प्रेम भाव का उदय करती हैं।
दुर्गा सप्तशती के अंतिम अध्याय में, जब देवी ने शुम्भ और निशुम्भ आदि समस्त दैत्यों का वध कर दिया, तब समस्त देवियाँ अम्बिका देवी के शरीर में लीन हो गईं। यह दर्शाता है कि देवी सर्वमय हैं। देवी स्वयं ने स्वीकार किया था:
“इस संसार में मेरे सिवा दूसरी कौन है? देख, ये मेरी ही विभूतियाँ हैं, अतः मुझमें ही प्रवेश कर रही हैं।” इसके बाद, देवी और दैत्यराज शुम्भ के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। अंत में, देवी ने त्रिशूल से शुम्भ की छाती छेदकर उसे पृथ्वी पर गिरा दिया। दुरात्मा शुम्भ के मारे जाने पर संपूर्ण जगत् प्रसन्न एवं पूर्ण स्वस्थ हो गया। आकाश स्वच्छ दिखायी देने लगा, उत्पात सूचक मेघ और उल्कापात शांत हो गए, और नदियाँ भी ठीक मार्ग से बहने लगीं।माँ सिद्धिदात्री का अवतरण देवताओं सहित सभी भक्तों की वांछित कामना सिद्धि करने के लिए होता है। वे सभी प्रकार के दैत्यों का दमन करके जगत में धर्म की स्थापना करती हैं। माँ सिद्धिदात्री की पूजा अत्यंत कल्याणकारी है। यह माँ सभी सिद्धियों को देने वाली तो हैं ही, साथ ही कई प्रकार के भय व रोग को भी दूर करती हैं और जीवन को सुखद बनाती हैं। देवता, दनुज, मनुज, गंधर्व आदि सदैव इनकी भक्ति व पूजा कर रहे हैं। देवताओं ने इनकी स्तुति करते हुए कहा:“शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवि! हम पर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो। तुम इस जगत् का एकमात्र आधार हो... तुम्हीं प्रसन्न होने पर इस पृथ्वी पर मोक्ष की प्राप्ति कराती हैं।” एक अन्य मंत्र जो मोक्षदायिनी महिमा का बखान करता है:
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी ।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ।।
अर्थात्: जब देवी सभी प्राणियों को स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं, तब उनकी स्तुति में कहे गए उत्तम वचन क्या हो सकते हैं? उनकी महिमा शब्दों से परे है।
माँ सिद्धिदात्री, जिन्हें माँ सिद्धेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है, की उपासना स्थल भारत और इसके पड़ोसी देशों में भी व्यापक रूप से फैले हुए हैं। उत्तराखंड का नैना पर्वत पर नैनादेवी।उत्तरप्रदेश के काशी में सिद्धेश्वरी। बिहार के बराबर पर्वत समूह की सूर्यान्क गिरी पर माता सिद्धेश्वरी, बागेश्वरी, गया। झारखण्ड राज्य का गढ़वा में माता सिद्धेश्वरी मंदिर है।  सिद्धेश्वरी की उपासना बिहार, बंगाल, असम, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका आदि क्षेत्रों में बड़े श्रद्धा भाव से की जाती है।
नवदुर्गा क्रम की पूर्णतामाँ आदि शक्ति दुर्गा के विभिन्न पहलुओं और शक्तियों को दर्शाता है, माँ सिद्धिदात्री पर आकर पूर्ण होता है:
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चंद्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:॥
माँ सिद्धिदात्री न केवल नवदुर्गाओं की अंतिम कड़ी हैं, बल्कि वे समस्त इच्छाओं और सिद्धियों को प्रदान करने वाली शक्ति का सर्वोच्च रूप हैं। उनकी उपासना हमें यह सिखाती है कि भक्ति, संयम और पूर्ण निष्ठा से की गई साधना से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और साधक जीवन में सुख-शांति प्राप्त करते हुए अंततः मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।