मंगलवार, मार्च 04, 2025

सनातन धर्म संस्कृति और महिला सशक्तिकरण

: सनातन धर्म संस्कृति में महिला सशक्तिकरण
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
सनातन धर्म संस्कृति में महिला सशक्तिकरण का उल्लेख मिलता है। पुत्रियों का महत्व हमारे समाज में बहुत अधिक है। वे हमारे परिवार और समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई हैं। पुत्रियों के बिना हमारा जीवन अधूरा होगा। वे हमें खुशी, प्यार और समर्थन देती हैं। वेदों में नारी की स्थिति बहुत ही सम्मानजनक है। वेदों में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है। वेदों में नारी की शक्ति और महत्व का वर्णन किया गया है। वेदों में नारी को पुरुष के बराबर का दर्जा दिया गया है। वेदों में नारी के अधिकारों का वर्णन किया गया है। वेदों में नारी को शिक्षा, विवाह, संपत्ति और अन्य अधिकारों का वर्णन किया गया है। वेदों में नारी को पुरुष के बराबर का दर्जा दिया गया है। वेदों में नारी की शक्ति का वर्णन किया गया है। वेदों में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है। वेदों में नारी की शक्ति और महत्व का वर्णन किया गया है। वेदों में नारी को पुरुष के बराबर का दर्जा दिया गया है। वेदों में नारी की भूमिका का वर्णन किया गया है। वेदों में नारी को पत्नी, माता, बहन और बेटी के रूप में वर्णित किया गया है। वेदों में नारी की भूमिका को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है।
महिला  सशक्तिकरण और समाज के बीच एक गहरा संबंध है। नारी सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को उनके अधिकारों और स्वतंत्रता की प्राप्ति करने के लिए सशक्त बनाना। यह समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने और उन्हें पुरुषों के बराबर का दर्जा दिलाने के लिए किया जाता है। नारी सशक्तिकरण के लाभ में 1. *महिलाओं की स्वतंत्रता*: नारी सशक्तिकरण महिलाओं को उनके जीवन के निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। 2. *महिलाओं के अधिकारों की रक्षा*: नारी सशक्तिकरण महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें पुरुषों के बराबर का दर्जा दिलाता है। 3. *महिलाओं की शिक्षा*: नारी सशक्तिकरण महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करता है। 4. *महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता*: नारी सशक्तिकरण महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करता है और उन्हें अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के अवसर प्रदान करता है ।1. *महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन*: नारी सशक्तिकरण समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन लाता है।2. *महिलाओं के अधिकारों की रक्षा*: नारी सशक्तिकरण समाज में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है।3. *महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता*: नारी सशक्तिकरण समाज में महिलाओं को शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।4. *समाज में महिलाओं की भूमिका में परिवर्तन*: नारी सशक्तिकरण समाज में महिलाओं की भूमिका में परिवर्तन लाता है। वेदों में कई नारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालियों  में ऋग्वेद में नारियों की भूमिका . *सावित्री*: सावित्री ऋग्वेद में वर्णित एक महत्वपूर्ण नारी है, जिसने अपने पति सत्यवान को मृत्यु से बचाया था। *लोपामुद्रा*: लोपामुद्रा ऋग्वेद में वर्णित एक ऋषिका है, जिसने कई सूक्तों की रचना की थी। . *घोषा*: घोषा ऋग्वेद में वर्णित एक ऋषिका है, जिसने कई सूक्तों की रचना की थी। विश्ववरा*: विश्ववरा ऋग्वेद में वर्णित एक ऋषिका है, जिसने कई सूक्तों की रचना की थी। यजुर्वेद में नारियों की भूमिका में 1. *अदिति*: अदिति यजुर्वेद में वर्णित एक महत्वपूर्ण नारी है, जो देवताओं की माता है।  *दिति*: दिति यजुर्वेद में वर्णित एक महत्वपूर्ण नारी है, जो असुरों की माता है। 3. *दनु*: दनु यजुर्वेद में वर्णित एक महत्वपूर्ण नारी है, जो असुरों की माता है।सामवेद के  नारियों की भूमिका में 1. *शची*: शची सामवेद में वर्णित एक महत्वपूर्ण नारी है, जो इंद्र की पत्नी है।2. *प्रिथ्वी*: प्रिथ्वी सामवेद में वर्णित एक महत्वपूर्ण नारी है, जो पृथ्वी की देवी है।अथर्ववेद के नारियों की भूमिका में 1. *अरुंधती*: अरुंधती अथर्ववेद में वर्णित एक महत्वपूर्ण नारी है, जो वशिष्ठ की पत्नी है। 2. *अनुसूया*: अनुसूया अथर्ववेद में वर्णित एक महत्वपूर्ण नारी है, जो अत्रि की पत्नी है।
पुरातन और आधुनिक काल में कई विदुषी नारियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम निम्नलिखित हैं: पुरातन काल की विदुषी नारियाँ में  1. *गार्गी*: गार्गी एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक और विदुषी थीं, जिन्होंने यज्ञवल्क्य के साथ वेदों पर चर्चा की थी।  *मैत्रेयी*: मैत्रेयी एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक और विदुषी थीं, जिन्होंने यज्ञवल्क्य के साथ वेदों पर चर्चा की थी। अपाला*: अपाला एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। *घोषा*: घोषा एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। आधुनिक काल की विदुषी नारियाँ में सरोजिनी नायडू*: सरोजिनी नायडू एक भारतीय कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। *कमला सुरय्या*: कमला सुरय्या एक भारतीय कवयित्री और लेखिका थीं, जिन्होंने भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। *महाश्वेता देवी*: महाश्वेता देवी एक भारतीय लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। 4. *अरुंधती रॉय*: अरुंधती रॉय एक भारतीय लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रकृति और नारी दोनों ही जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं। यहाँ दोनों के बारे में कुछ विचार हैं: प्रकृति हमारे आसपास की दुनिया है, जिसमें जीव, वनस्पति, जल, वायु और भूमि शामिल हैं। प्रकृति हमारे जीवन को संचालित करने वाली शक्ति है, जो हमें जीवन देती है, हमें पोषण देती है और हमें संरक्षण प्रदान करती है। प्रकृति की सुंदरता और शक्ति हमें आकर्षित करती है और हमें जीवन के मूल्यों को समझने में मदद करती है। नारी जीवन की एक महत्वपूर्ण इकाई है, जो परिवार, समाज और राष्ट्र को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नारी की शक्ति और सुंदरता जीवन को समृद्ध बनाती है और हमें प्रेम, करुणा और सहानुभूति की शिक्षा देती है। नारी की भूमिका जीवन के विभिन्न पहलुओं में महत्वपूर्ण है, चाहे वह परिवार हो, शिक्षा हो, राजनीति हो या आर्थिक क्षेत्र सक्रिय हैं।
प्रकृति और नारी के बीच एक गहरा संबंध है। दोनों ही जीवन को संचालित करने वाली शक्तियाँ हैं और दोनों ही जीवन को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रकृति और नारी दोनों ही जीवन की सुंदरता और शक्ति को प्रदर्शित करती हैं और हमें जीवन के मूल्यों को समझने में मदद करती हैं।
 सत्येन्द्र कुमार पाठक एक प्रसिद्ध साहित्यकार हैं, जिन्होंने नारी की भूमिका पर विस्तार से लिखा है। उनके विचारों में नारी की भूमिका समाज में बहुत महत्वपूर्ण है: सत्येन्द्र कुमार पाठक के अनुसार, नारी की शक्ति समाज की सबसे बड़ी शक्ति है। वे समाज को संचालित करने वाली एक महत्वपूर्ण इकाई हैं। उनके अनुसार, नारी की भूमिका समाज में बहुत व्यापक है। वे परिवार, समाज और राष्ट्र को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे माता, पत्नी, बहन और बेटी के रूप में समाज में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।नारी की स्वतंत्रता समाज के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वे नारी को अपने जीवन के निर्णय लेने की स्वतंत्रता देने के पक्ष में हैं।उनके अनुसार, नारी की शिक्षा समाज के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वे नारी को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर देने के पक्ष में हैं। नारी की सामाजिक भूमिका समाज में बहुत महत्वपूर्ण है। वे समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। नारी की भूमिका समाज में बहुत व्यापक है। वह मां, बहन, पुत्री, पत्नी और सृष्टि दायिका के रूप में समाज में महत्वपूर्ण योगदान देती है। नारी की भूमिकाएँ में 1. *मां*: नारी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मां की है। वह अपने बच्चों को जन्म देती है, उन्हें पालती है और उनकी देखभाल करती है।2. *बहन*: नारी बहन के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह अपने भाइयों के साथ मिलकर परिवार को संचालित करती है।3. *पुत्री*: नारी पुत्री के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह अपने माता-पिता की देखभाल करती है और उनकी सेवा करती है।
4. *पत्नी*: नारी पत्नी के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह अपने पति के साथ मिलकर परिवार को संचालित करती है। 5. *सृष्टि दायिका*: नारी सृष्टि दायिका के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह अपने बच्चों को जन्म देती है और उनकी देखभाल करती है, जिससे सृष्टि की निरंतरता बनी रहती है। नारी की भूमिका समाज में बहुत व्यापक है। वह मां, बहन, पुत्री, पत्नी और सृष्टि दायिका के रूप में समाज में महत्वपूर्ण योगदान देती है। 1. *मां की भूमिका*: नारी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मां की है। वह अपने बच्चों को जन्म देती है, उन्हें पालती है और उनकी देखभाल करती है। मां की भूमिका समाज में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अपने बच्चों को जीवन के मूल्यों को सिखाती है और उन्हें समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है। 2. *बहन की भूमिका*: नारी बहन के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह अपने भाइयों के साथ मिलकर परिवार को संचालित करती है। बहन की भूमिका समाज में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अपने भाइयों को जीवन के मूल्यों को सिखाती है और उन्हें समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है। *पुत्री की भूमिका*: नारी पुत्री के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह अपने माता-पिता की देखभाल करती है और उनकी सेवा करती है। पुत्री की भूमिका समाज में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अपने माता-पिता को जीवन के मूल्यों को सिखाती है और उन्हें समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है।*पत्नी की भूमिका*: नारी पत्नी के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह अपने पति के साथ मिलकर परिवार को संचालित करती है। पत्नी की भूमिका समाज में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अपने पति को जीवन के मूल्यों को सिखाती है और उन्हें समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है।*सृष्टि दायिका की भूमिका*: नारी सृष्टि दायिका के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह अपने बच्चों को जन्म देती है और उनकी देखभाल करती है, जिससे सृष्टि की निरंतरता बनी रहती है। सृष्टि दायिका की भूमिका समाज में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह सृष्टि को आगे बढ़ाने में मदद करती है।नारी की भूमिका का समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। वह समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है, सृष्टि को आगे बढ़ाने में मदद करती है और समाज में जीवन के मूल्यों को सिखाती है। *समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद*: नारी समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है। वह अपने बच्चों को जीवन के मूल्यों को सिखाती है । समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद*: नारी समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है। वह अपने बच्चों को जीवन के मूल्यों को सिखाती है और उन्हें समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है।सृष्टि को आगे बढ़ाने में मदद*: नारी सृष्टि में बेटियां पढ़ाओ से समाज को कई फायदे में बेटियों को शिक्षा देने से वे शिक्षित और आत्मनिर्भर बनती हैं। इससे वे अपने जीवन के निर्णय लेने में सक्षम होती हैं और अपने परिवार और समाज के लिए भी योगदान कर सकती हैं।बेटियों को शिक्षा देने से समाज में सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं। इससे समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार हो सकता है और वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकती हैं। बेटियों को शिक्षा देने से आर्थिक विकास भी हो सकता है। इससे वे अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकती हैं और समाज के लिए भी योगदान कर सकती है। बेटियों को शिक्षा देने से सामाजिक न्याय भी हो सकता है। इससे समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव में कमी आ सकती है और वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकती हैं। बेटियों को शिक्षा देने से राष्ट्रीय विकास भी हो सकता है। इससे वे अपने देश के लिए योगदान कर सकती हैं और राष्ट्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। त्रेतायुग की  मिथिला की माता सीता , उर्मिला , मांडवी , श्रुतिकीर्ति की कीर्तित्व और विचार , द्वापरयुग की राधा जी , सुभद्रा , यशोदा , देवकी आदि की वात्सल्य , त्रेतायुग की  राम माता कौशल्या , सुमित्रा आदि की कीर्तित्व और योगदान , अहिल्या , तारा , द्रोपदी कुंती और मंदोदरी पवित्र कही गयी है।
 नारी की भूमिका समाज में बहुत महत्वपूर्ण है। वह मां, बहन, पुत्री, पत्नी और सृष्टि दायिका के रूप में समाज में महत्वपूर्ण योगदान देती है। नारी की शक्ति और सुंदरता जीवन को समृद्ध बनाती है और हमें प्रेम, करुणा और सहानुभूति की शिक्षा देती है। नारी की भूमिका समाज में बहुत व्यापक है, और वह समाज में एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है, सृष्टि को आगे बढ़ाने में मदद करती है और समाज में जीवन के मूल्यों को सिख बिहार की महिलाएं विदुषी की सूची में कई प्रमुख नाम शामिल हैं: *अपाला*: अपाला एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी।*घोषा*: घोषा एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। मध्यकाल की विदुषी महिलाएं में . *विद्यापति की पत्नी*: विद्यापति की पत्नी एक मध्यकालीन विदुषी थीं, जिन्होंने अपने पति के साथ मिलकर कई साहित्यिक कृतियों की रचना की थी।. *रानी केमावर*: रानी केमावर एक मध्यकालीन विदुषी थीं, जिन्होंने अपने पति के साथ मिलकर कई साहित्यिक कृतियों की रचना की थी। गौतमी , गुणवती विदुषी थी । आधुनिक काल की विदुषी महिलाएं में *सरस्वती चौधरी*: सरस्वती चौधरी एक आधुनिक काल की विदुषी थीं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।*कुसुम कुमारी*: कुसुम कुमारी एक आधुनिक काल की विदुषी थीं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। *निर्मला पुतुल*: निर्मला पुतुल एक आधुनिक काल की विदुषी हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारती एवं सरस्वती  वैदिक विदुषी एवं आधुनिक काल की संस्कृत साहित्य के विद्वान मंडन मिश्र की पत्नी भारती विदुषी थी । 
वैदिक काल में बिहार की कई विदुषी महिलाएं थीं, जिन्होंने वेदों और उपनिषदों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यहाँ कुछ प्रमुख नाम हैं: ऋग्वेद की विदुषी महिलाएं 1. *अपाला*: अपाला एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। 2. *घोषा*: घोषा एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। 3. *विश्ववरा*: विश्ववरा  प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। 4. *शश्वती*: शश्वती एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। यजुर्वेद की विदुषी महिलाएं 1. *अदिति*: अदिति एक प्राचीन भारतीय विदुषी ने यजुर्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। 2. *दिति*: दिति एक प्राचीन भारतीय विदुषी ने यजुर्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी। 3. *दनु*: दनु एक प्राचीन भारतीय विदुषी ने यजुर्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी।
उपनिषदों की विदुषी महिलाएं1. *गार्गी*: गार्गी एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने उपनिषदों में कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे थे। 2. *मैत्रेयी*: मैत्रेयी एक प्राचीन भारतीय विदुषी थीं, जिन्होंने उपनिषदों में कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे थे।
वैदिक काल की प्रमुख महिला विद्वानों में बिहार की  मैत्रेयी, गार्गी, लोपामुद्रा, विश्वम्भरा, अपाला, घोषा, सकटा, और निवावरी शामिल हैं । मैत्रेयी एक ब्रह्मवादिनी और विद्वान महिला ने समय की सबसे विद्वान महिलाओं में से एक माना जाता था. मैत्री ऋषि की पुत्री मैत्रेयी थीं । ऋषि मैत्री मिथिला में विदेह साम्राज्य में रहते थे । ऋषि वाचकन्वी की पुत्री गार्गी   वैदिक समय की महान विद्वान थीं. लोपामुद्रा, अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपमुद्रा ने ऋग्वेद के दो छंदों की रचना की थी.  अत्रि ऋषि की पुत्री अपाला थीं ।ब्रह्मवादिनी - वह महिला जो कभी विवाह नहीं करती और अपना जीवन वेदों के अध्ययन में बिताती थी । गार्गी, मैत्रेयी और लोपामुद्रा वैदिक युग की प्रमुख महिला दार्शनिक थीं। गार्गी, ऋषि वाचकन्वी की बेटी थी और वह वैदिक समय की एक महान विद्वान थी। अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा ने ऋ... वेदों में, गार्गी, मैत्रेयी, विश्वम्भरा, और अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, सकता, और निवावरी जैसी कुछ महिला विद्वानों का उल्लेख किया गया है। मैत्रेयी एक दार्शनिक और विद्वान थीं, जो वैदिक काल में रहीं। उन्हें अपने समय की सबसे विद्वान महिलाओं में से एक माना जाता था। उत्तर: मैत्रेयी और गार्गी दो विद्वान महिलाएँ थीं जो प्रारंभिक वैदिक काल के दौरान रहती थीं। वैदिक काल के दौरान, शैक्षणिक महिलाओं के दो मुख्य वर्ग क्या थे? ब्रह्मवादिनी वह महिला है जिसने कभी विवाह नहीं किया । अपाला अत्रि ऋषि की कन्या थीं । और लोपामुद्रा अगस्त्य ऋषि की पत्नी थी । वैदिक काल की विदुषी घोषा, लोपामुद्रा, विश्वहारा, इंद्राणी का पूरी दुनिया में डंका  था । वैदिक काल की विदुषी घोषा, लोपामुद्रा, विश्वहारा, इंद्राणी, शची, अपाला व अन्य का पूरी दुनिया में डंका बजता था। प्राचीन काल में शिक्षिकाओं की चार श्रेणियां थी। वे शिक्षा के आधार पर आचार्या, उपाध्याया, श्रोत्रिया और अध्यापिका  थी ।अध्ययनों के अनुसार प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को बराबरी का दर्जा और अधिकार मिलता था। ... कुछ समुदायों में सती, जौहर और देवदासी जैसी परंपराओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और आधुनिक भारत में ये काफ़ी हद तक समाप्त हो चुकी हैं। वैदिक काल में कन्या. अपनी इच्छा से विवाह कर सकती थी । नारियों में बाल विवाह पर्दा प्रथा नहीं थी । वे घर से बाहर स्वछन्दतापूर्वक. आ-जा सकती थीं । विधवाएँ पुनर्विवाह कर सकती थीं । अथर्ववेद में .विदुषी सुलभा महाराज जनक के राज्य की परम विदुषी थी। इन्होंने शास्त्रार्थ में राजा जनक को हराया एवं स्त्री शिक्षा के लिए शिक्षणालय की स्थापना की। विदुषी लोपामुद्रा:थी ।
विश्व की महिलाएं विदुषी , समाज , राजनीत , शिक्षा , आर्थिक आदि लोकप्रिय कार्य में सक्रिय रही है।  यूरोपीय और ब्रिटिश की ओलिम्पे डी गौजेस : फ्रांसीसी क्रांति में, घोषित किया गया कि महिलाएं पुरुषों के बराबर थीं । मैरी वोलस्टोनक्राफ्ट : ब्रिटिश लेखिका और दार्शनिक, आधुनिक नारीवाद की जननी , हेरिएट मार्टिनो : राजनीति, अर्थशास्त्र, धर्म, दर्शन पर एमेलिन पंकहर्स्ट : प्रमुख ब्रिटिश महिला मताधिकार क्रांतिकारी; संस्थापक, महिला सामाजिक और राजनीतिक संघ, 1903 सिमोन डी बोवुआर : 20वीं सदी की नारीवादी सिद्धांतकार ,अमेरिकियों में जूडिथ सार्जेंट मरे : अमेरिकी लेखिका जिन्होंने प्रारंभिक नारीवादी निबंध लिखा ,मार्गरेट फुलर : ट्रान्सेंडैंटलिस्ट लेखिका ,एलिजाबेथ कैडी स्टैंटन : महिला अधिकार और महिला मताधिकार सिद्धांतकार और कार्यकर्ता
सुसान बी. एंथोनी : महिला अधिकार और महिला मताधिकार की प्रवक्ता और नेता ,लूसी स्टोन : उन्मूलनवादी, महिला अधिकार अधिवक्ता , एलिस पॉल : महिलाओं के मताधिकार के अंतिम विजयी वर्षों की प्रमुख आयोजक , कैरी चैपमैन कैट : महिला मताधिकार के लिए लंबे समय से आयोजक, अंतर्राष्ट्रीय मताधिकार नेताओं को संगठित किया ,बेट्टी फ्राइडन : नारीवादी जिनकी पुस्तक ने तथाकथित "दूसरी लहर" को शुरू करने में मदद की ,ग्लोरिया स्टीनम : सिद्धांतकार और लेखिका जिनकी सुश्री पत्रिका ने "दूसरी लहर" को आकार देने में मदद की ,हत्शेपसुत : मिस्र का फिरौन जिसने पुरुष शक्तियों को अपने लिए ले लिया , मिस्र की क्लियोपेट्रा : मिस्र की अंतिम फ़राओ, रोमन राजनीति में सक्रिय ,गैला प्लासिडिया : रोमन महारानी और रीजेंट ,बौडीका (या बोआडिसिया) : सेल्ट्स की योद्धा रानी थियोडोरा , बाइज़ैन्टियम की महारानी, ​​जस्टिनियन से विवाहित , कैस्टिले और आरागॉन की इसाबेला प्रथम , स्पेन की शासक, जिन्होंने अपने पति के साथ एक साझेदार शासक के रूप में, मूरों को ग्रेनेडा से खदेड़ दिया, अपरिवर्तित यहूदियों को स्पेन से बाहर निकाल दिया, क्रिस्टोफर कोलंबस की नई दुनिया की यात्रा को प्रायोजित किया, इनक्विजिशन की स्थापना की , इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम , जिनके लंबे शासन को सम्मान देते हुए उस समय को एलिजाबेथ युग कहा गया। आधुनिक काल में रूस की कैथरीन द ग्रेट : रूस की सीमाओं का विस्तार किया और पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया ,स्वीडन की क्रिस्टीना : कला और दर्शन की संरक्षक, रोमन कैथोलिक धर्म में धर्मांतरण के बाद धर्म त्याग दिया ,महारानी विक्टोरिया : एक और प्रभावशाली रानी जिसके नाम पर एक पूरा युग अंकित है ,सिक्सी (त्ज़ु-हसी या ह्सियाओ-चिन) , चीन की अंतिम विधवा महारानी, ​​जिन्होंने विदेशी प्रभाव का विरोध करते हुए अपार शक्ति का प्रयोग किया और आंतरिक रूप से मजबूती से शासन किया , इंदिरा गांधी : भारत की प्रधानमंत्री , गोल्डा मेयर : योम किप्पुर युद्ध के दौरान इजरायल की प्रधानमंत्री ,मार्गरेट थैचर : ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने सामाजिक सेवाओं को खत्म कर दिया , कोराजोन एक्विनो : फिलीपींस के राष्ट्रपति, सुधारवादी राजनीतिक उम्मीदवा , सरोजिनी नायडू : कवियित्री और राजनीतिक कार्यकर्ता, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष ,यूरोपीय और ब्रिटिश का जोन ऑफ आर्क : महान संत और शहीद ,मैडम डी स्टेल: बुद्धिजीवी और सैलूनिस्ट ,अमेरिकी की बारबरा जॉर्डन : कांग्रेस के लिए निर्वाचित पहली दक्षिणी अफ्रीकी अमेरिकी महिला ,मार्गरेट चेस स्मिथ : मेन से रिपब्लिकन सीनेटर, सदन और सीनेट दोनों के लिए चुनी गई पहली महिला, रिपब्लिकन पार्टी के सम्मेलन में नामांकन में अपना नाम रखने वाली पहली महिला ,एलेनोर रूजवेल्ट : फ्रेंकलिन डेलानो रूजवेल्ट की पत्नी और विधवा, पोलियो से पीड़ित राष्ट्रपति के रूप में उनकी "आंखें और कान", और स्वयं एक मानवाधिकार कार्यकर् ,बिंजेन की हिल्डेगार्ड : मठाधीश, रहस्यवादी और दूरदर्शी, संगीत की रचयिता और अनेक धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक विषयों पर पुस्तकों की लेखिका ,कीव की राजकुमारी ओल्गा : उनके विवाह के कारण कीव (जो बाद में रूस बन गया) ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गया, उन्हें रूसी रूढ़िवादी चर्च का पहला संत माना जाता है ,जीन डी'अल्ब्रेट  (नवरे की जीन): फ्रांस में ह्यूगनॉट प्रोटेस्टेंट नेता, नवरे की शासक, हेनरी चतुर्थ की मां ,अमेरिकी मैरी बेकर एडी : क्रिश्चियन साइंस की संस्थापक, उस धर्म के प्रमुख धर्मग्रंथों की लेखिका, द क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर की संस्थापक , आविष्कारक और वैज्ञानिक हाइपेटिया : दार्शनिक, गणितज्ञ, और ईसाई चर्च द्वारा शहीद ,सोफी जर्मेन : गणितज्ञ जिनके काम का उपयोग आज भी गगनचुंबी इमारतों के निर्माण में किया जाता है । एडा लवलेस : गणित में अग्रणी, ऑपरेटिंग सिस्टम या सॉफ्टवेयर की अवधारणा बनाई ,मैरी क्यूरी : आधुनिक भौतिकी की जननी, दो बार नोबेल पुरस्कार विजेता ,मैडम सीजे वाकर : आविष्कारक, उद्यमी, करोड़पति, परोपकारी ,मार्गरेट मीड : मानवविज्ञानी ,जेन गुडॉल : प्राइमेटोलॉजिस्ट और शोधकर्ता, अफ्रीका में चिम्पांजी के साथ काम किया , चिकित्सा एवं नर्सिंग ,ट्रोटा या ट्रोटुला : एक मध्यकालीन चिकित्सा लेखक (संभवतः) ,फ्लोरेंस नाइटिंगेल : नर्स, सुधारक, नर्सिंग के लिए मानक स्थापित करने में मदद की ,डोरोथिया डिक्स : मानसिक रूप से बीमार लोगों की वकील, अमेरिकी गृहयुद्ध में नर्सों की पर्यवेक्षक ,क्लारा बार्टन : रेड क्रॉस की संस्थापक, अमेरिकी गृहयुद्ध में नर्सिंग सेवाओं का आयोजन किया ,एलिजाबेथ ब्लैकवेल : मेडिकल स्कूल से स्नातक (एमडी) करने वाली पहली महिला और चिकित्सा में महिलाओं को शिक्षित करने में अग्रणी  ,एलिजाबेथ गैरेट एंडरसन : ग्रेट ब्रिटेन में चिकित्सा योग्यता परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण करने वाली प्रथम महिला; ग्रेट ब्रिटेन में प्रथम महिला चिकित्सक; महिलाओं के मताधिकार और उच्च शिक्षा में महिलाओं के अवसरों की समर्थक; इंग्लैंड में मेयर के रूप में निर्वाचित होने वाली प्रथम महिला ,सामाजिक सुधार अमेरिकियों में  जेन एडम्स : हल-हाउस और सामाजिक कार्य पेशे की संस्थापक ,फ्रांसिस विलार्ड : संयम कार्यकर्ता, वक्ता, शिक्षक , हेरिएट टबमैन : स्वतंत्रता साधक; भूमिगत रेल कंडक्टर; उन्मूलनवादी; जासूस, सैनिक, और गृहयुद्ध में नर्स; महिला मताधिकार कार्यकर्ता ,सोजर्नर ट्रुथ : अश्वेत उन्मूलनवादी जिन्होंने महिला मताधिकार की भी वकालत की और व्हाइट हाउस में अब्राहम लिंकन से मुलाकात की , मैरी चर्च टेरेल : नागरिक अधिकार नेता, नेशनल एसोसिएशन ऑफ कलर्ड वीमेन की संस्थापक, चार्टर सदस्य ,इडा वेल्स-बार्नेट : लिंचिंग विरोधी योद्धा, रिपोर्टर, नस्लीय न्याय के लिए एक प्रारंभिक कार्यकर्ता ,रोजा पार्क्स : नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, विशेष रूप से मोंटगोमरी, अलबामा में बसों में भेदभाव समाप्त करने के लिए जानी जाती हैं ।अधिक ,एलिजाबेथ फ्राई : जेल सुधार, मानसिक शरण सुधार, अपराधी जहाजों का सुधार , वांगारी मथाई : पर्यावरणविद्, शिक्षक ,लेखक सप्पो : प्राचीन ग्रीस की कवियित्री , अफ्रा बेहन: लेखन के माध्यम से आजीविका चलाने वाली पहली महिला; नाटककार, उपन्यासकार, अनुवादक और कवि , लेडी मुरासाकी : उन्होंने दुनिया का पहला उपन्यास,  द टेल ऑफ़ जेनजी लिखा था। ,हेरिएट मार्टिनो: अर्थशास्त्र, राजनीति, दर्शन, धर्म के बारे में लिखा ,जेन ऑस्टेन : रोमांटिक काल के लोकप्रिय उपन्यास लिखे ,चार्लोट ब्रोंटे : अपनी बहन एमिली के साथ, 19वीं सदी के आरंभिक महिलाओं द्वारा लिखे गए प्रमुख उपन्यासों की लेखिका ,एमिली डिकिंसन : आविष्कारशील कवि और एकान्तवासी , सेल्मा लेजरलोफ : साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला ,टोनी मॉरिसन : साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली अफ्रीकी अमेरिकी महिला (1993) ,एलिस वाकर :  द कलर पर्पल की लेखिका ; पुलित्जर पुरस्कार; ज़ोरा नील हर्सटन की पुनःस्थापित कृति; महिला खतने के विरुद्ध किया था । प्रेरणादायक माई जेमिसन ,शिमोन सोलोमन द्वारा लिखित माइटेलीन गार्डन में सप्पो और एरिना ,प्राचीन विश्व की महिला लेखिकाएँ ,लूसी स्टोन, लगभग 1865 ,लुसी स्टोन की जीवनी, उन्मूलनवादी और महिला अधिकार सुधारक, "बोडिसिया और उसकी सेना" 1850 उत्कीर्णन ,प्राचीन एवं शास्त्रीय विश्व की महिला शासक , मार्था वॉशिंगटन लगभग 1790 ,मार्था वाशिंगटन - अमेरिका की प्रथम प्रथम महिला थी ।

बुधवार, फ़रवरी 05, 2025

त्याग और सौंदर्य का द्योतक है माता नर्मदा नदी

स्मृति ग्रथों के अनुसार माता नर्मदा का जन्म माघ शुक्ल पंचमी को अवतरण हुआ था । माता  नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुंवारी रहने का फैसला किया लेकिन क्या सचमुच वह गुस्से की आग में चिरकुवांरी बनी रही या फिर प्रेमी शोणभद्र को दंडित करने का यही बेहतर उपाय लगा कि आत्मनिर्वासन की पीड़ा को पीते हुए स्वयं पर ही आघात किया जाए। नर्मदा की प्रेम-कथा लोकगीतों और लोककथाओं में अलग-अलग मिलती है लेकिन हर कथा का अंत कमोबेश वही कि शोणभद्र के नर्मदा की दासी जुहिला के साथ संबंधों के चलते नर्मदा ने अपना मुंह मोड़ लिया और उलटी दिशा में चल पड़ीं। सत्य और कथ्य का मिलन देखिए कि नर्मदा नदी विपरीत दिशा में ही बहती दिखाई देती है। नर्मदा और शोण भद्र की शादी होने वाली थी। विवाह मंडप में बैठने  वक्त पर नर्मदा को पता चला कि शोण भद्र की दिलचस्पी उसकी दासी जुहिला(यह आदिवासी नदी मंडला के पास बहती है) में अधिक है। प्रतिष्ठत कुल की नर्मदा यह अपमान सहन ना कर सकी और मंडप छोड़कर उलटी दिशा में चली गई। शोण भद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह भी नर्मदा के पीछे भागा यह गुहार लगाते हुए' लौट आओ नर्मदा'... लेकिन नर्मदा को  नहीं लौटी थी । नर्मदा भारतीय प्रायद्वीप की प्रमुख नदियों गंगा और गोदावरी से विपरीत दिशा में पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित हैं । नर्मदा शोण नद से अलग होती दिखाई पड़ती है। नर्मदा को  चिरकुंवारी नदी कहा गया है । ग्रहों के किसी विशेष मेल पर स्वयं गंगा नदी भी यहां स्नान करने आती है। 
मत्स्यपुराण के अनुसार  सर्वत्र पवित्र नर्मदा नदी  , कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र और कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी  है। यमुना का जल सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।’ एक ग्रन्थ में सप्त सरिताओं का गुणगान गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।। 
नर्मदा को रेवा नदी और शोणभद्र को सोनभद्र के नाम से जाना गया है।  राजा मेखल की पुत्री राजकुमारी नर्मदा  थी। राजा मेखल ने अपनी अत्यंत रूपसी पुत्री के लिए यह तय किया कि जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प उनकी पुत्री के लिए लाएगा वे अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ संपन्न करेंगे। राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल ले आए अत: उनसे राजकुमारी नर्मदा का विवाह तय हुआ था । नर्मदा अब तक सोनभद्र के दर्शन ना कर सकी थी लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं सुनकर मन ही मन वह भी उसे चाहने लगी। विवाह होने में कुछ दिन शेष थे लेकिन नर्मदा से रहा ना गया उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों प्रेम संदेश भेजने की सोची। जुहिला को सुझी ठिठोली। उसने राजकुमारी से उसके वस्त्राभूषण मांगे और चल पड़ी राजकुमार से मिलने। सोनभद्र के पास पहुंची तो राजकुमार सोनभद्र उसे ही नर्मदा समझने की भूल कर बैठा। जुहिला की ‍नियत में भी खोट आ गया। राजकुमार के प्रणय-निवेदन को वह ठुकरा ना सकी। इधर नर्मदा का सब्र का बांध टूटने लगा। दासी जुहिला के आने में देरी हुई तो वह स्वयं चल पड़ी सोनभद्र से मिलने। वहां पहुंचने पर सोनभद्र और जुहिला को साथ देखकर वह अपमान की भीषण आग में जल उठीं। तुरंत वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी फिर कभी ना लौटने के लिए। सोनभद्र अपनी गलती पर पछताता रहा लेकिन स्वाभिमान और विद्रोह की प्रतीक बनी नर्मदा पलट कर नहीं आई। 
भौगोलिक दृष्टिकोण से जैसिंहनगर के ग्राम बरहा के निकट जुहिला  नर्मदा का सोनभद्र नद से वाम-पार्श्व में दशरथ घाट पर संगम है । रूठी राजकुमारी नर्मदा कुंवारी और अकेली उल्टी दिशा में बहती दिखाई देती है। रानी और दासी के राजवस्त्र बदलने का उल्लेख इलाहाबाद के पूर्वी भाग में प्रचलित है।  नर्मदा जी नदी बनकर जन्मीं। सोनभद्र नद बनकर जन्मा। दोनों के घर पास थे। दोनों अमरकंट की पहाड़ियों में घुटनों के बल चलते। चिढ़ते-चिढ़ाते। हंसते-रुठते। दोनों का बचपन खत्म हुआ। दोनों किशोर हुए। लगाव और बढ़ने लगा। गुफाओं, पहाड़‍ियों में ऋषि-मुनि व संतों ने डेरे डाले। चारों ओर यज्ञ-पूजन होने लगा। पूरे पर्वत में हवन की पवित्र समिधाओं से वातावरण सुगंधित होने लगा।
इसी पावन माहौल में दोनों जवान हुए। उन दोनों ने कसमें खाई। जीवन भर एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ने की। एक-दूसरे को धोखा नहीं देने की। एक दिन अचानक रास्ते में सोनभद्र ने सामने नर्मदा की सखी जुहिला नदी आ धमकी। सोलह श्रृंगार किए हुए, वन का सौन्दर्य लिए वह भी नवयुवती थी। उसने अपनी अदाओं से सोनभद्र को भी मोह लिया। सोनभद्र अपनी बाल सखी नर्मदा को भूल गया। जुहिला को भी अपनी सखी के प्यार पर डोरे डालते लाज ना आई। नर्मदा ने बहुत कोशिश की सोनभद्र को समझाने की। लेकिन सोनभद्र तो जैसे जुहिला के लिए बावरा हो गया था। माँ नर्मदा ने असहनीय क्षण में निर्णय लिया कि ऐसे धोखेबाज के साथ से अच्छा है इसे छोड़कर चल देना। नर्मदा ने अपनी दिशा बदल ली। सोनभद्र और जुहिला ने नर्मदा को जाते देखा। सोनभद्र को दुख हुआ। बचपन की सखी उसे छोड़कर जा रही थी। उसने पुकारा- 'न...र...म...दा...रूक जाओ, लौट आओ नर्मदा। लेकिन नर्मदा जी ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया। युवावस्था में ही सन्यासिनी बन गई। रास्ते में घनघोर पहाड़ियां आईं। हरे-भरे जंगल आए। पर वह रास्ता बनाती चली गईं। कल-कल छल-छल का शोर करती बढ़ती गईं। मंडला के आदिमजनों के इलाके में पहुंचीं। कहते हैं आज भी नर्मदा की परिक्रमा में कहीं-कहीं नर्मदा का करूण विलाप सुनाई पड़ता है। नर्मदा ने बंगाल सागर की यात्रा छोड़ी और अरब सागर की ओर दौड़ीं। भौगोलिक तथ्य देखिए कि हमारे देश की सभी बड़ी नदियां बंगाल सागर में मिलती हैं लेकिन गुस्से के कारण नर्मदा अरब सागर में समा गई। नर्मदा की कथा जनमानस में कई रूपों में प्रचलित है लेकिन चिरकुवांरी नर्मदा का सात्विक सौन्दर्य, चारित्रिक तेज और भावनात्मक उफान नर्मदा परिक्रमा के दौरान हर संवेदनशील मन महसूस करता है। नर्मदा  नदी का  भक्त-गण माँ नर्मदा का मानवीयकरण कर ही लेते है। अमरकंटक पर्वत की श्रंखला से प्रवाहित होने वाली नर्मदा नदी है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव का नृत्य करने के  दौरान पसीने से नर्मदा का अवतरण हुई थी । कही कही ब्रह्मा जी की तपस्या के दौरान ब्रह्मा जी की आखों से दो बूंदे आंसू गिरने के कारण नर्मदा जी की उत्पन्न होने का उल्लेख मिलता है। नर्मदा नदी को नर्मदा , रीवा , टिफ्ट वैली , उल्टी नदी ,नेरबुड्डा नदी कही गई है । नर्मदा को भगवान शिव , ब्रह्मा जी और मैखल कि पुत्री कही जाती है । मध्य प्रदेश राज्य का अनुपुर जिले के अमरकंटक पर्वत से उत्पन्न 1312 किमी व 815 . 2 मील पश्चिम की ओर प्रवहित होकर गुजरात राज्य के भड़ोच जिले। के अरबसागर की खंभात की खाड़ी मिलत्ती है। नर्मदा नदी मध्यप्रदेश राज्य का शहडोल ,मंडला ,जबलपुर ,नरसिंहपुर होसंगबाद , नर्मदापुरम , ढिंढोरी , महेश्वर ,  भेड़ाघाट ,खंडवा , मकरेश , ओम्कारेश्वर , खरगोल ,महाराष्ट्र , गुजरात आदि 16 जिलों में प्रवाहित होती है । नर्मदा नदी शहडोल , ताप्ती बैलून ,माही धार , गोदावरी व वेन गंगा बालाघाट में प्रवाहित होती हुई नर्मदा में मिलत्ती ह। नर्मदा नदी के सहायक नदियों में  हालर ,बजार ,वरना ,हिरण ,मेदोनी ,वर्मा ,कोलार ,मैन ,उरी , ओआँग ,हावी , वेन गंगा , ताप्ती ,माही नदिया है। नर्मदा नदी के हर कंकड़ में नर्मदेश्वर शिवलिंग है । गोदावरी और नर्मदा का संगम ओम्कारेश्वर में संगम है । मंडला में बजगर , अन्य नदी नर्मदा का संगम को त्रिवेणी संगम है। मान्धाता पर्वत पर ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के किनारे स्थापित है। 

मंगलवार, जनवरी 28, 2025

महाकुंभ , मौनी अमावस्या और प्रयागराज


चतुर्दशी व अमावस्या एवं व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। गत कलि युगाब्द 5126 विक्रम संवत 2081 शक संबत 1946 संबतसर पिंग 45 आंग्ल संबत 2025 माघ कृष्ण अमावस्या व 29 जनवरी को ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः20 , 27 , 29और 38 एवं वराह पुराण  के अनुसार २९ जनवरी २०२५ बुधवार को रात्रि १०:२| से ३० जनवरी रात्रि ८:१४  तक व्यतिपात योग है। व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग स्नानादि करने पर  लाख गुना फल मिलता है। ।  व्यतिपात योग की माघ-मौनी अमावस्या २९ जनवरी  २०२५ बुधवार है । माघ अमावस्या को मौनी व मुनि का अवतरण हुआ था । मौन रहकर प्रयाग संगम अथवा पवित्र नदी व पवित्र जल  में स्नान करना चाहिए।* ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु को उत्पन्न कर सृष्टि का निर्माण कार्य आरम्भ किया था । पद्म पुराण’ के अनुसार माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को सूर्योदय से पहले  तिल और जल से पितरों का तर्पण करने पर  स्वर्ग में अक्षय सुख भोगता है। पितृ पूजा, श्राद्ध, तर्पण, पिण्ड दान, नारायणी आदि कर सकते है। वैसे तो प्रत्येक अमावस्या पितृ कर्म के लिए विशेष होती है परंतु युगादि तिथि तथा मकरस्थ रवि होने के कारण मौनी अमावस्या का महत्व कहीं ज्यादा है। अगर आप पितृदोष से पीड़ित हैं अथवा आपको लगता है की आपके पिता, माता अथवा गुरु के कुल में किसी को अच्छी गति प्राप्त नहीं हुई है तो आज तर्पण (विशेषतः गंगा किनारे स्कन्द पुराण के अनुसार गंगा स्नान कर तर्पण कृत्य हैं।  पितरों के उद्देश्य से भक्तिपूर्वक गुड़, घी और तिल के साथ मधुयुक्त खीर गंगा में डालते हैं, उसके पितर सौ वर्षों तक तृप्त बने रहते हैं और वे संतुष्ट होकर अपनी संतानों को नाना प्रकार की मनोवाञ्छित वस्तुएं प्रदान करते हैं। पितरों के उद्देश्य से गंगाजल के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराते हैं, उनके पितर यदि भारी नरक में पड़े हों तो भी तृप्त हो जाते हैं। ताँबे के पात्र में रखे हुए अष्टद्रव्ययुक्त (जल, दूध, कुश का अग्रभाग, घी, मधु, गाय का दही, लाल कनेर तथा लाल चंदन गंगाजल से भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं, वे अपने पितरों के साथ सूर्यलोक में जाकर प्रतिष्ठित होते हैं।  गंगा के तट पर एक बार भी पिण्डदान करता है, वह तिलमिश्रित जल के द्वारा अपने पितरों का भवसागर से उद्धार कर देता है। पिता/माता/गुरु/भाई/मित्र/रिश्तेदार किसी के भी कुल में कोई किसी भी तरह, किसी भी अवस्था में मरा हो (चाहे अग्नि से या विष से या आत्मदाह अथवा अन्य  प्रकार से मृत्यु पितरों का उद्धार संभव है। माघ कृष्ण पक्ष की अमावस्या युगादि तिथि को चार युगों में से एक युग का आरम्भ हुआ था। स्कंदपुराण के अनुसार “माघे पञ्चदशी कृष्णा द्वापरादिः स्मृता बुधैः” द्वापरएवं  कलियुग की प्रारम्भ तिथि मानते हैं। युगादि तिथियाँ बहुत ही शुभ होती हैं, इस दिन किया गया जप, तप, ध्यान, स्नान, दान, यज्ञ, हवन कई गुना फल देता है l साधु, महात्मा तथा  के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिए तथा उन्हें रजाई, कम्बल आदि जाड़े के वस्त्र देने चाहिए।  गौशाला में गायों के निमित्त हरे चारे, खल, चोकर, भूसी, गुड़ आदि पदार्थों का दान देना चाहिए तथा गौ की चरण रज को मस्तक पर धारण कर उसे साष्टांग प्रणाम करना चाहिए। माघी अमावस्या को प्रात: स्नान के बाद ब्रह्मदेव और गायत्री का पूजन करें। गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, पलंग, दर्पण आदि का मंत्रोपचार के साथ ब्राह्मण को दान करें। पवित्र भाव से ब्राह्मण एवं परिजनों के साथ भोजन करें।  पीपल में आघ्र्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत कर मीठा भोजन करें। मौनी अमावस्या के दिन भूखे प्राणियों को भोजन कराने का भी विशेष महत्व है।  सुबह स्नान आदि करने के बाद आटे की गोलियां बनाएं। गोलियां बनाते समय भगवान का नाम लेते रहें। इसके बाद समीप स्थित किसी तालाब या नदी में जाकर यह आटे की गोलियां मछलियों को खिला दें। इस उपाय से आपके जीवन की अनेक परेशानियों का अंत हो सकता है। अमावस्या के दिन चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं। ऐसा करने से आपके पाप कर्मों का क्षय होगा और पुण्य कर्म उदय होंगे। यही पुण्य कर्म आपकी मनोकामना पूर्ति में सहायक होंगे। महाभारत अनुसाशन पर्व 25 ,36 38 के अनुसार दशतीर्थसहस्राणि तिस्रः कोटयस्तथा पराः॥ समागच्छन्ति मध्यां तु प्रयागे भरतर्षभ। माघमासं प्रयागे तु नियतः संशितव्रतः॥ स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मलः स्वर्गमाप्नुयात्। अर्थात माघ मास की अमावस्या को प्रयाग राज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।