शुक्रवार, जनवरी 27, 2023

भगवान सूर्य का अवतरण दिवस है अचलासप्तमी....

 
सनातन धर्म एवं सौर सम्प्रदाय के विभिन्न ग्रंथों में अचला सप्तमी का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है । माघ शुक्ल सप्तमी को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, भानु सप्तमी, अर्क सप्तमी और सूर्य अवतरणोत्सव आदि  नामों से किया गया है । भगवान  सूर्य की उपासना कर पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए और चतुर्दिक विकास के लिए अचला सप्तमी का व्रत  किया जाता है । स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान सूर्य प्रथम बार रथ पर माघ मास शुक्ल  सप्तमी को आरूढ़ हुए थे  जिसे रथसप्तमी कहा गया  हैं । अचला सप्तमी तिथि को दिया हुआ दान और  यज्ञ सब अक्षय माना जाता है । भविष्य पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि को भगवान् सूर्य का आविर्भाव हुआ था । भगवान सूर्य  अंड के साथ उत्पन्न होकर मार्तण्ड के रूप में ब्रह्मांड में प्रकाश की वृद्धि  की है ।भविष्यत पुराण में उल्लेख किया गया है कि भगवान श्रकृष्ण कहते है– राजन ! शुक्ल पक्षकी सप्तमी तिथि को यदि आदित्यवार (रविवार) हो तो उसे विजय सप्तमी कहते है । वह सभी पापोका विनाश करने वाली है । उस दिन किया हुआ स्नान ,दान्, जप, होम तथा उपवास आदि कर्म अनन्त फलदायक होता है । जो उस दिन फल् पुष्प आदि लेकर भगवान सूर्यकी प्रदक्षिणा करता है । वह सर्व गुण सम्पन्न उत्तम पुत्र को प्राप्त करता है ।नारद पुराण में माघ शुक्ल सप्तमी को “अचला व्रत”  एवं  “त्रिलोचन जयन्ती” , रथसप्तमी , भास्कर सप्तमी”  कहा गया  है । आक और बेर के सात-सात पत्ते सिर पर रखकर स्नान करने से सात जन्मों के पापों का नाश होता है । इसी सप्तमी को ‘’पुत्रदायक ” व्रत भी बताया गया है । सभगवान सूर्य ने कहा है -  माघ शुक्ल सप्तमी को विधिपूर्वक मेरी पूजा करेगा, उसपर अधिक संतुष्ट होकर मैं अपने अंश से उन्सका पुत्र होऊंगा’ । इसलिये उस दिन इन्द्रियसंयमपूर्वक दिन-रात उपवास करे और दूसरे दिन होम करके ब्राह्मणों को दही, भात, दूध और खीर आदि भोजन करावें ।अग्नि पुराण में उल्लेख  हैं कि माघ मासके शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथिको अष्टदल अथवा द्वादशदल कमल का निर्माण करके उसमें भगवान् सूर्यका पूजन करने से मनुष्य शोकरहित हो जाता है । चंद्रिका में लिखा है “सूर्यग्रहणतुल्या हि शुक्ला माघस्य सप्तमी। अरुणोदगयवेलायां तस्यां स्नानं महाफलम्॥ अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी सूर्यग्रहण के तुल्य होती है सूर्योदय के समय इसमें स्नान का महाफल होता है । नारद पुराण के अनुसार अरुणोदयवालायां शुक्ला माघस्य सप्तमी ॥ प्रयागे यदि लभ्येत सहस्रार्कग्रहैः समा॥ अयने कोटिपुण्यं स्याल्लक्षं तु विषुवे फलम् ॥११२॥चंद्रिका में विष्णु ने लिखा है “अरुणोदयवेलायां शुक्ला माघस्य सप्तमी ॥ प्रयागे यदि लभ्येत कोटिसूर्यग्रहैः समा अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी यदि अरुणोदय के समय प्रयाग में प्राप्त हो जाए तो कोटि सूर्य ग्रहणों के तुल्य होती है ।मदनरत्न में भविष्योत्तर पुराण का कथन है की “माघे मासि सिते पक्षे सप्तमी कोटिभास्करा। दद्यात् स नानार्घदानाभ्यामायुरारोग्यसम्पदः॥ अर्थात माघ मास की शुक्लपक्ष सप्तमी कोटि सूर्यों के बराबर है उसमें सूर्य स्नान दान अर्घ्य से आयु आरोग्य सम्पदा करते है । सूर्य उपासना पर्व  माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी एवं  मां नर्मदा की जयंती मनाई जाती है। सप्तमी को जो भी सूर्य देव की उपासना तथा व्रत करते हैं उनके सभी रोग ठीक हो जाते हैं। माघ शुक्ल सप्तमी अचला सप्तमी या रथ सप्तमी में भगवान सूर्य की आराधना मनुष्य को हर कार्य में विजय की प्राप्ति करवाती है साथ ही मनुष्य के रोगों का नाश होकर वह आरोग्यवान हो जाता है।भगवान  सूर्य की नवग्रह में प्रधान होने के कारण  भगवान भास्कर की कृपा प्राप्त होने से जीवन मे ग्रहों का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। खरमास के पूर्ण होने के पश्चात भगवान सूर्य के रथ में अश्वों की संख्या 7 होकर पूर्ण हो जाती  एवं ऋतु परिवर्तन के साथ भगवान सूर्य का तेज  बढ़ने से  शीत ऋतु के पश्चात ग्रीष्म ऋतु के आगमन का होता है।सूर्य चिकित्सा का उपयोग आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से शारीरिक चर्म रोग आदि नष्ट और  संतान प्राप्ति के लिए एवं  श्रद्धा तथा विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है। शारिरिक कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी या जोड़ों में दर्द जैसी परेशानियों में भगवान सूर्य की आराधना करने से रोग से मुक्ति मिलने की  बनती है।  जलाशय, नदी, नहर में सूर्योदय से पूर्व  स्नान करने के बाद उगते हुए सूर्य की आराधना तथा अर्घ्य  करनी चाहिए। भगवान सूर्य को जलाशय, नदी अथवा नहर के समीप खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। दीप दान ,  प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर बहते हुए जल में स्नान करना चाहिए। स्नान करते समय अपने सिर पर बदर वृक्ष और अर्क पौधे की सात-सात पत्तियां रखना चाहिए। स्नान करने के पश्चात 7 प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देना चाहिए। 'ॐ घृणि सूर्याय नम: अथवा ॐ सूर्याय नम:' सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके अतिरिक्त आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वेदों , पुरणों और  स्मृतियों में सूर्य को आरोग्यदायक और  उपासना से रोग मुक्ति  होती है।  श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान के मद में उन्होंने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। शाम्ब की धृष्ठता को देखकर दुर्वासा ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया।  भगवान श्रीकृष्ण ने शाम्ब को सूर्य भगवान की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना की, जिसके फलस्वरूप उन्हें माघ शुक्ल सप्तमी व अचलासप्तमी को कष्ट से मुक्ति मिली थी ।



रविवार, जनवरी 15, 2023

पालनहार : भगवान विष्णु आदित्य...


सनातन धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु  आदित्य का उल्लेख है । भगवान सूर्य के 9 वें अंशावतार  दक्ष प्रजापति की पुत्री अदिति और महर्षि मरीचि के पुत्र ऋषि कश्यप के पुत्र विष्णु आदित्य का अवतरण हुआ है । भगवान विष्णु आदित्य  की स्तुति में ऋग्वेद में सूक्त के अनुसार विष्णु का उद्देश्य संसार को दुख मुक्त कर पृथ्वी को आवास योग्य बनाना है।  विष्णु को पालनहार देवता विश्व  के रक्षक और संरक्षक हैं। ऋग्वेद सूक्त में विष्णु आदित्य को त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश  प्रमुख स्थान दिलाता है। विष्णु सूक्त में विष्णु के तीन चरणों में  बालसूर्य, मध्याह्न सूर्य और सायं काल के सूर्य के स्थान हैं।  तीनों काल  में उच्चतम स्थान मध्याह्न सूर्य का है। मध्याह्न सूर्य का स्थान विष्णुलोक अथवा गोलोक है। विष्णु लोक में  भूरिश्रृंग गौएं यानी किरणें विचरती  और मधु की धाराएं प्रवाहित होती हैं।  'विष्णुसहस्त्रनाम्' में विष्णु के एक हजार पर शंकराचार्य ने भाष्य में विष्णु के रहस्य बताया  है। विष्णु आदित्य का  प्रसिद्ध नाम हरि  का   पाप और दुख को हरने या दूर करने वाले। एक नाम शेषशायी अथवा अनंतशायी है। विष्णु जब शयन करते हैं तब संपूर्ण विश्व अपनी अव्यक्त अवस्था में पहुंच जाता है। व्यक्त सृष्टि के अवशेष प्रतीक 'शेष' हैं,  शेषनाग के रूप में कुंडली मारकर अनंत जल राशि पर तैरते हैं।  शेषशायी विष्णु को नारायण व 'नार' यानी जल में निवास करने वाले और  नारायण में समस्त नरों का आवास है। ऋग्वेद के अनुसार संपूर्ण विश्व और भूत विष्णु के  चरण हैं। आकाश का अमर अंश  विष्णु का त्रिपाद यानी तीसरा चरण है। ब्रह्मा से विराट उत्पन्न हुए और विराट से अधिपुरुष है । गीता में कृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप दिखाया वह समस्त लोकों से युक्त रूप था। पुराणों में वर्णन है कि विराट ब्रह्मा के प्रथम पुत्र हैं। ब्रह्मा के दो अंश स्त्री और पुरुष हैं। स्त्री अंश से विराट हुए जिससे अपने आप उत्पन्न मनु से प्रजापतियों की उत्पत्ति हुई थी । पद्म पुराण के पाताल खंड के अनुसार भगवान विष्णु आदित्य की 24 प्रकार की मूर्तियां विश्व में प्राप्त हुई है । पद्म पुराण और रूपमंडल ग्रंथों में  मूतिर्यों की व्याख्या के अनुसार केशव यानी लंबे केश वाले, माधव यानी मायापति और ज्ञानपति, गोविंद यानी पृथ्वी के रक्षक, विष्णु यानी सर्वव्यापक, जनार्दन यानी भक्तों के पालनहार, उपेंद्र यानी इंद के भाई, हरि यानी दुख, दरिद्र और पाप का हरण करने वाले, वासुदेव यानी विश्वात्मा, कृष्ण यानी आकर्षित करने वाले और श्याम यानी कृष्ण वर्ण वाले है। विष्णु के चार आयुधों सहित पीतांबर और यज्ञोपवीत उपकरण हैं। विष्णु की मूर्ति में चंवर, ध्वज और छत्र का अंकन होता है। विष्णु का वाहन गरुड़  वैदिक मंत्रों में शक्ति, गति, और प्रकाश का प्रतीक और  पंखों पर विष्णु को वहन करता है। विष्णु के पार्षदों में योग से प्राप्त अष्ट विभूतियां यानी आठ सिद्धियां है। भागवत के अनुसार विष्णु के शंख का नाम, पांचजन्य, चक्र का सुदर्शन, गदा का कौमुदकी और तलवार का नंदक है। आकाश, अंतरिक्ष और क्षीरसागर को विष्णुपद कहते हैं। ब्रह्मा ने विष्णु के पैर का अंगूठा धोकर गंगा की सृष्टि की, इसलिए गंगा को विष्णुपदी भी कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र में एकादशी और द्वादशी को विष्णु की तिथि मानते हैं। अठारह पुराणों में तीसरा विष्णु पुराण में तेईस हजार श्लोक हैं। पश्चिम के विद्वान एफ. विलसन के अनुसार भारतीय पुराणों में विष्णु पुराण प्राचीनतम है।.ॐ मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय। मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।7.7।।  अष्टावक्र गीता 9.2 के अनुसार ॐ एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय। अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस् । अष्टावक्र गीता 9.1 में ॐ अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्। जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।7.5।। उल्लेख मिलता है ।  बिहार के गया जिले के गया का फल्गु नदी के किनारे प्रातः , मध्य एवं संध्या काल भगगवन विष्णु आदित्य है । गया में भगवान विष्णु का चरण , औरंगाबाद जिले के उमगा पर्वत पर व8विष्णु आदित्य प्रातः काल एवं महेश तथा गणेश , देव में  प्रातः , मध्यान्ह एवं संध्या काल की मूर्ति स्थापित है ।





सोमवार, जनवरी 09, 2023

मित्र आदित्य : सूर्य सप्तमी ,,


वेदों , पुरणों और संहिता में सूर्य सप्तमी का महत्व है । दक्ष प्रजापति की कन्या अदिति और महर्षि मरीचि के पुत्र  ऋषि कश्यप के संसर्ग से उत्पन्न भगवान सूर्य के अंशावतार 12 आदित्यों में मित्र आदित्य का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को हुआ था । मित्र सप्तमी को भगवान सूर्य को अर्घ्य और उपासना करने से सर्वांगीण सुख की प्राप्ति होती है । भगवान सूर्य की आराधना  गंगा-यमुना या  पवित्र नदी ,  पोखर के किनारे सूर्य देव को अर्घ देने से सर्वांगीण समृद्धि की प्राप्ति होती  हैं। मित्र सप्तमी का व्रत करने से सूर्य भगवान प्रसन्न हो कर उसके सारे दुखों को हर लेते है और घर में धन धान्य की वृद्धि साथ ही सुख समृद्धि का आगमन और सभी प्रकार के रोगों चर्म तथा नेत्र रोग दूर  तथा दीर्घआयु की प्राप्ति होती है। मित्र सप्तमी को सूर्य की किरणों को जरुर ग्रहण करना चाहिए एवं   फल, दूध, केसर, कुमकुम बादाम इत्यादि से सूर्य देव की पूजा की जाती है। स्वच्छता का विशेष ध्यान रख कर  मित्र सप्तमी के व्रत से मनुष्य कठिन कार्यों को संभव बनाने की ताकत रखता है और शत्रु को  मित्र बनाने की क्षमता रखता है। स्मृतियों के अनुसार एक बार राजा ने सपना देखा कि कोई साधु उससे कह रहा है कि कल रात एक विषैले सांप के ड़सने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। वह पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है। सपने की बात से घबराया राजा अपनी आत्मरक्षा के लिए उपाय ढूंढने मे लग गया सोचते-सोचते राजा इस निर्णय पर पहुंचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई उपाय नहीं अतः उसने पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह-जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो उसे किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाने की कोशिश न की जायें। रात को सांप अपनी बांबी से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल पड़ा। वह जैसे आगे बढ़ता गया, मार्ग मे अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, जगह-जगह पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता था। जैसे-जैसे वह आगे चलता गया, उसका क्रोध कम होता गया क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव बढ़ने लगे। राजमहल मे प्रहरी और द्वारपाल उसे हानि नहीं पहुंचा रहे है। यह दृश्य देखकर सांप के मन में प्रेम की भावना उमड़ पड़ी। सदव्यवहार, नम्रता, मधुरता के व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुआ। राजा के पास पहुंचने तक सांप का निश्चय पूरी तरह से बदल गया। सांप ने राजा से कहा, राजन! मैं पूर्व जन्म का बदला लेने आया था, परन्तु आपके सदव्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया। अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूं। मित्रता के उपहार स्वरुप अपनी बहुमूल्य मणि तुम्हें दे रहा हूं| मित्र आदित्य द्वारा भूस्थल पर सौर धर्म का संचालन किया गया था । सौर सम्प्रदाय का संचालन में शाकद्वीप के मग ने सम्पूर्ण विश्व में सूर्योपासना और प्रकृति पूजा का महत्व विकसित की था ।

शनिवार, जनवरी 07, 2023

वैदिक ऋषि भारद्वाज ,,,

सनातन धर्म के  वैदिक ऋषि भारद्वाज चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ने इन्द्र द्वारा आयुर्वेद का ज्ञान एवं ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद  चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे। प्राक्तंत्र 1.4 और वाल्मीकि रामायण के अनुसार  महर्षि भृगु ने धर्मशास्त्र का उपदेश एवं  तमसा नदी के -तट पर क्रौंचवध के समय भारद्वाज महर्षि वाल्मीकि के साथ थे । देव गुरु वृहस्पति की पत्नी ममता के पुत्र भारद्वाज द्वारा यमुना नदी , गंगा नदी और सरस्वती नदी त्रिवेणी संगम पर प्रयाग  की नींव रखा गया था । ऋषि भारद्वाज की पत्नी ध्वनि 


के पुत्रों में द्रोण , गर्ग तथा पुत्रियों में इलविदा और कात्यायनी पुत्री थी ।
महर्षि भारद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद संहित, धनुर्वेद, राजनीतिशास्त्र, यंत्रसर्वस्व, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा आदि पर अनेक ग्रंथों के रचयिता हैं। वायुपुराण के अनुसार उन्होंने एक पुस्तक आयुर्वेद संहिता 8 भागों में लिखी थी। चरक संहिता के अनुसार ऋषि भारद्वाज ने आत्रेय पुनर्वसु को कायचिकित्सा का ज्ञान प्रदान किया था। ऋषि भारद्वाज ने   घरती पर प्रथम गुरूकुल की स्थापना कर  हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे।  शिक्षाशास्त्री, राजतंत्र मर्मज्ञ, अर्थशास्त्री, शस्त्रविद्या विशारद, आयुर्वेेद विशारद,विधि वेत्ता, अभियाँत्रिकी विशेषज्ञ, विज्ञानवेत्ता और मँत्र द्रष्टा ऋषि भारद्वाज  थे। ऋग्वेेद के छठे मंडल के 765 मंत्र का   द्रष्टा ऋषि भारद्वाज और अथर्ववेद में  ऋषि भारद्वाज के 23 मंत्र हैं। तैतरीय ब्राह्मण 3/ 10 /11 के अनुसार प्रजापति ब्रह्मा जी द्वारा ऋषि भारद्वाज को आयुर्वेद और सावित्र्य अग्नि विद्या का ज्ञान इन्द्र और कालान्तर में प्राप्त किया एवं अग्नि के सामर्थ्य को आत्मसात कर भारद्वाज  ऋषि ने अमृत तत्व प्राप्त किया था और स्वर्ग लोक जाकर आदित्य से सायुज्य प्राप्त किया था।  चरक ऋषि ने चरक संहिता सूत्र स्थान 1 / 26  में उल्लेखानुसार भारद्वाज ऋषि को  अपरिमित आयु वाला कहा है।  ऋषि भारद्वाज ने प्रयाग के अधिष्ठाता भगवान श्री माधव  श्री हरि के निदेशानुसार पावन परिक्रमा की स्थापना एवं भगवान श्री शिव  के आशीर्वाद से की थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री द्वादश माधव परिक्रमा सँसार की पहली परिक्रमा है। ऋषि भारद्वाज ने  परिक्रमा की तीन स्थापनाएं में जन्मों के संचित पाप का क्षय होगा, जिससे पुण्य का उदय होगा। सभी मनोरथ की पूर्ति होगी , -प्रयाग में किया गया कोई भी अनुष्ठान/कर्मकाण्ड जैसे अस्थि विसर्जन, तर्पण, पिण्डदान, कोई संस्कार यथा मुण्डन यज्ञोपवीत आदि, पूजा पाठ, तीर्थाटन,तीर्थ प्रवास, कल्पवास आदि पूर्ण और फलित नहीं होंगे जबतक स्थान भगवान श्री द्वादश माधव की परिक्रमा न की जाए। आयुर्वेद सँहिता, भारद्वाज स्मृति, भारद्वाज सँहिता, राजशास्त्र, यँत्र-सर्वस्व(विमान अभियाँत्रिकी) आदि ऋषि भारद्वाज के रचित प्रमुख ग्रँथ हैं। शाकद्वीप के मग ब्राह्मण और भगवान सूर्य एवं अग्नि के उपासक ऋषि भारद्वाज ने कहा है कि अग्नि को देखो यह मरणधर्मा मानवों स्थित अमर ज्योति है। यह अति विश्वकृष्टि है अर्थात सर्वमनुष्य रूप है। यह अग्नि सब कार्यों में प्रवीणतम ऋषि है जो मानव में रहती है।   सनातन धर्मो के लिए ऋषि भारद्वाज सप्तऋषियों में कहे जाते है।अंगिरावंशी भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। बृहस्पति ऋषि का अंगिरा के पुत्र होने के कारण ये अंगिरा वंशीय कहलाए। ऋषि भारद्वाज ने अनेक ग्रंथों की रचना की उनमें से यंत्र सर्वस्व और विमानशास्त्र है। ऋषि भरद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्र द्रष्टा और उनकी  पुत्री  ‘रात्रि’ द्वारा रात्रि सूक्त की मन्त्रद्रष्टा की गई  है। भारद्वाज के मन्त्रद्रष्टा पुत्रों में  ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। ऋग्वेद की सर्वानुक्रमणी के अनुसार ‘कशिपा’ भारद्वाज की पुत्री है। ऋषि भारद्वाज की 12 संताने मन्त्रद्रष्टा ऋषियों की कोटि में सम्मानित थीं। भारद्वाज ऋषि ने बड़े गहन अनुभव किये थे । महाभारत और हेमाद्रि के अनुसार  भारद्वाज ने आयुर्वेद-संहिता , पांचरात्र भक्ति सम्प्रदाय की भारद्वाज  संहिता  एवं  ‘भारद्वाज-स्मृति’,  की रचना किया था । ऋषि भारद्वाज ने ‘धनुर्वेद’- पर प्रवचन और  ‘राजशास्त्र’ का प्रणयन किया था। कौटिल्य ने अपने पूर्व में हुए अर्थशास्त्र के रचनाकारों में ऋषि भारद्वाज को सम्मान से स्वीकारा है।ऋषि भारद्वाज की रचना में ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। यंत्र सर्वस्व  ग्रन्थ का स्वामी ब्रह्ममुनि ने ‘विमान-शास्त्र’ प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिये विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन है। व्याकरणशास्त्र, धर्मशास्त्र, शिक्षा-शास्त्र, राजशास्त्र, अर्थशास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद और भौतिक विज्ञानवेत्ता ऋषि भारद्वाज थे ।

सोमवार, जनवरी 02, 2023

गहमर की विरासत ..


उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा गांव गहमर पटना और मुगलसराय रेल मार्ग पर स्थित है । गाजीपुर जिला मुख्यालय से 40 किमि की दूरी पर  1530 ई. में राजा कुसुमदेव राव द्वारा गंगा नदी के किनारे सकरा डीह बसाया गया था । गहमर के 22 विभिन्न टोले भिन्न भिन्न प्रसिद्ध सैनिक का नाम पर है । प्रथम, द्वितीय विश्व युद्ध , 1971 के युद्ध ,कारगिल युद्ध में गहमर के सैनिकों द्वारा महत्वपुर्ण कार्य किया गया था । गहमर  के  10 हजार लोग इंडि‍यन आर्मी में जवान से लेकर कर्नल एवं  14 हजार से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक हैं। विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक में 21 शहीद होने की याद में  गहमर में  शिलालेख है। गहमर के भूतपूर्व सैनिकों द्वारा पूर्व सैनिक सेवा समिति नामक संस्था के माध्यम से गांव के युवक  गंगा तट पर स्थित मठिया चौक पर सुबह-शाम सेना की तैयारी करते  हैं। इंडियन आर्मी गहमर में 1986 तक भर्ती शिविर लगाया करती थी । सैनिकों की भारी संख्या को देखते हुए भारतीय सेना ने गांव के लोगों के लिए सैनिक कैंटीन की भी सुविधा उपलब्ध कराई थी । गाजीपुर जिले के जिला मुख्यालय गाजीपुर से 38 किमी दूर गंगा नदी के किनारे गहमर में दो डाकघर, 2 यूबीआई, 1 एसबीआई, 1 एचडीएफसी बैंक और 10 से अधिक एटीएम, सार्वजनिक पुस्तकालय और  पंचायत भवन है। निर्देशांक: 25.497°N 83.822°E पर महाराजा धामदेव सिंह द्वारा 1530 में स्थापित गहमर का क्षेत्र 1,766 हेक्टेयर (4,364 एकड़) में जनसंख्या  (2011) के अनुसार  25,994 आबादी में 13367 पुरुष और 12627 महिला  है । गहमर को धामदेव सिकरवार के वंशीय राजपूतों द्वारा  1527 ईस्वी में बाबर द्वारा कब्जा करने के बाद फतेहपुर सीकरी के आसपास से आए थे। फतेहपुर सीकरी से पूर्व की ओर चलने के बाद सिकरवार वंशज  सकरडीह में बस गए परन्तु गंगा की  बाढ़ के कारण धामदेव गहमर के पास मां कामाख्या धाम में चले गए और कामदेव रेतीपुर में बस गए। धाम देव के दो बेटे थे- रूप राम राव और दीवान राम राव। रूप राम के पुत्रों में से एक, सैनु मल राव और उनके वंशज बड़े पैमाने पर गहमर में बस गए। 1800 ईस्वी तक, गहमर में 23 पट्टियां कबीले के सदस्यों द्वारा स्थापित की गई थीं। यातायात साधन में  गहमर में पटना और मुगलसराय जंक्शन रेलवे स्टेशन से जुड़ा एक रेलवे स्टेशन और रोडवेज गहमर NH-124C पर स्थित जिला मुख्यालय गाजीपुर से लगभग 35 किमी दूर जुड़ा हुआ गहमर है।
गहमर में मां कामाख्या मंदिर , मणिभद्र महादेव मंदिर, नारायण घाट ,  गहमर के गंगा नदी के किनारे हनुमान गढ़ी का 16 वीं  सदी में कलवार द्वारा स्थापित दक्षिणेश्वर हनुमान जी की मूर्ति  हनुमान मंदिर में विराजमान ,  अष्टभुजी मंदिर में सकरहट से प्राप्त 10 वी सदी  की राजा चेरो खरवार की कुल देवी मूसा काला पाषाण में निर्मित के अवस्थित माता अष्टभुजी , 18 वी सदी की माता त्रिपुर सुंदरी , एवं 20 वीं  सदी की माता लक्ष्मी , शिव मंदिर में स्थापित शिव लिंग स्थापित है । गहमर में सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों  में 15 निजी स्कूल और 10  प्राथमिक विद्यालय , गहमर इंटर कॉलेज और सरकारी गर्ल्स इंटर कॉलेज गहमर , आरएसएम पब्लिक स्कूल, सुभाष चंद्र बोस इंटर कॉलेज ,  राम रहीम महाविद्यालय और माँ कामाख्या महाविद्यालय  है । त्रय मासिक पत्रिका साहित्य सरोज एवं गोपालराम गहमरी सेवा संस्थान गहमर वेलफेयर सोसाइटी रघुवर सिंह का कटरा में स्थापित है ।जासूसी उपन्यास के जनक गोपालराम गहमरी की जन्म भूमि है ।
 कामाख्या मंदिर  गहमर -  महाराज धामदेव द्वारा महवन में माता कामाख्या  स्थापित किया गया था | कामाख्या मंदिर के गर्भ गृह में 12 फीट लंबा, 15 फीट ऊंचा बना  माता की तीन मूर्तियां है ।  मंदिर के मध्य  में माता कामाख्या  के दाएं हाथ पर माता  महालक्ष्मी  विराजमान , बाएं हाथ पर श्री कामाख्या जी पिंडी के रूप में विद्यमान है ।  पिंडी के बगल में पीतल का बाघ एक फीट ऊंची  है । मुख्य कामाख्या देवी श्यामवर्ण और मस्तक पर चांदी का मुकुट शोभित है |
चांदी का छत्र  से युक्त माता कामाख्या सिंह पर सवार है। माता के सामने चांदी का पद चिन्ह ,आंखों में सोने का पत्र चढ़ा हुआ और मां का स्वरूप दिव्य है । मां लक्ष्मी जी की प्रतिमा संगमरमर की 2 फीट ऊंची  गौरव वर्ण है| लाल चुनरी में फूलों के हार से मां सज्जित हैं| कामाख्या देवी लाल वस्त्र एव गले में हार धारण किए हुए हैं| संपूर्ण गर्भ ग्गृह  संगमरमर से सज्जित है । गर्भ गृह में मुख्य तीन द्वार में -मुख्य द्वार पूर्व, उत्तर और दक्षिण दिशा की ओर खुलता है |द्वार पर पीतल का फाटक  है । गर्भ ग्रह के चारों तरफ परिक्रमा मार्ग की संगमरमर का बना हुआ है। 15 फीट ऊंचे स्थान पर कामख्या मंदिर है । मन्दिर के दक्षिण की ओर  धर्मशाला ,  विशाल सभाकक्ष भी निर्मित ,  मंदिर के ठीक सामने हवन कुंड है। कामाख्या  मंदिर के बाई और गुफा की तरफ मंदिर में  सरस्वती माता , श्री दुर्गा माता की ढाई फीट की सुंदर आकर्षक संगमरमर की प्रतिमाएं स्थापित एवं  मंदिर के ठीक सामने नीम का वृक्ष और  भैरव महाराज का मंदिर है ।  मुख्य मंदिर के दाएं तरफ उत्तर दिशा में दूसरी गुफा में महाकाली  की प्रतिमा 3 फीट ऊंची  श्याम वर्ण  हाथ में खड़क धारण किए हैं । मंदिर का भीतरी भाग पत्थर से सज्जित है| मंदिर के  कुआं के समीप   पर पुराणिक मां कामाख्या की प्रतिमा का अवशेष है। कामख्या मंदिर निर्मित भवन 2 एकड़ में है । कामाख्या मंदिर का क्षेत्रफल 35 एकड़ है ।
अष्टभुजी मंदिर -  गहमर का गंगा नदी के किनारे हनुमान गढ़ी में   अष्टभुजी मंदिर परिसर में सकरहट से प्राप्त चेरो खरवार की 10 वीं सदी का  अष्टभुजी मंदिर में कुल देवी मूसा काला पाषाण  से युक्त   माता अष्टभुजी , 18 वीं सदी की उजले पाषाण में निर्मित माता त्रिपुर सुंदरी एवं 20 वी सदी में उजले पाषाण में  निर्मित माता लक्ष्मी  की मूर्ति स्थापित है । हनुमान मंदिर में 16 वीं सदी में गहमर का कलवार द्वारा दक्षिणेश्वर हनुमान जी , शिव मंदिर में भगवान शिव का शिवलिंग , बल गिरी बाबा की समाधि है । हनुमान  मंदिर के पुजारी वीर बहन चौवे के अनुसार  हनुमान गढ़ी स्थित दक्षिणेश्वर हनुमान एवं माता अष्टभुजी की महानता प्रसिद्ध है । 








गोपालराम गहमरी सेवा संस्थान एवं साहित्य सरोज के संयुक्त  तत्वावधान में 8 वीं जासूसी उपन्यास के जनक गोपालराम गहमरी साहित्यकार महोत्सव 2022 एवं सम्मान समारोह 23 दिसंबर से 25 दिसंबर 2022 को आयोजित कार्यक्रम में साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक  शामिल होने के बाद गहमर की सांस्कृतिक विरासत का परिभ्रमण 25 दिसंबर 2022 को किया गया । गहमरी साहित्यकार महोत्सव एवं सम्मान समारोह 2022 के अवसर पर साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक को गोपालराम गहमरी लेखक गौरव  सम्मान एवं माता कामाख्या की प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान समारोह के संचालक अखंड गहमरी द्वारा 25 दिसंबर 2022 में किया गया । 24 दिसंबर को मुम्बई हिंदी विद्यापीठ के संस्कृति मंत्री विनोद कुमार दुबे द्वारा भारती दिसंबर 2022 एवं आरोग्य धाम शरद ऋतु 2022 का अंक देकर साहित्यकार  व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक को सप्रेम भेट देकर सम्मानित किया गया ।