शुक्रवार, सितंबर 29, 2023

बेगुसराय की विरासत

बेगुसराय की विरासत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
बेगूसराय जिले में गंगा ,  बूढ़ी गंडक और बागमती नदी प्रवाहित  एवं बरौनी में तेल फैक्ट्री है । बेगूसराय जिले का बेगूसराय से 22 किमी की दूरी पर  मंझौल में कांवर झील पक्षी अभ्यारण , जयमंगला पुर का कनवर झील के समीप जयमंगला गढ़ मंदिर के गर्भगृह में माता जयमंगला एवं मंदिर परिसर में हनुमान मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है । गढ़पुरा का बाबा हरिगिरि धाम में शिवमंदिर , बेगूसराय का 1981 में स्थापित बेगूसराय संग्रहालय  ,  काली स्थान मंदिर के गर्भगृह में माता काली की प्रतिमा , विशनपुर का नौलखा मंदिर के गर्भगृह में भगवान  श्री राम जी, माता सीता जी और लक्ष्मण जी की प्रतिमा एवं तलाव , पंचमुखी हनुमानमन्दिर  है।  काली मंदिर सिमरिया का गंगा किनारे स्थित कालीमंदिर के गर्भगृह में माता काली की प्रतिमा एवं कालीमंदिर परिसर में तंत्र , मंत्र , जादू टोने तथा तंत्र साधना स्थल है । सिमरिया घाट पर कुम्भ मेला लगता है । मगही और हिंदी भाषीय और  गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित मुंगेर प्रमंडल का बेगूसराय जिला का मुख्यालय बेगुसराय है। बेगुसराय अनुमंडल का सृजन ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा 1870 ई.  में स्थापित तथा 1918 वर्गकिमी क्षेत्रफल में फैले बेगुसराय जिला की स्थापना 02 अक्टूबर 1972 ई.  को की गई है । बेगुसराय जिले की 2011 जनगणना के अनुसार 2970541 आवादी में 567660 पुरुष एवं 1402881 महिला में साक्षरता दर 63.87 प्रतिशत लोग अनुमंडल 5 , प्रखंड 18 , पंचायत 229 , गाँव 1229 और बेगूसराय उत्तर बिहार में 25°15' और 25° 45' उतरी अक्षांश और 85°45' और 86°36" पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है।  उत्तर में समस्तीपुर, दक्षिण में गंगा नदी और लक्खीसराय, पूरब में खगड़िया और मुंगेर तथा पश्चिम में समस्तीपुर और पटना जिला की सीमाओं से घिरा बेगुसराय जिला का नगर परिषद बीहट नगर परिषद बखरी,नगर परिषद तेघरा तथा बेगूसराय  के  उद्योग में  इण्डियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड , बरौनी तेलशोधक कारखना, , बरौनी थर्मल पावर स्टेशन , हिंदुस्तान यूरिया रसायन लिमिटेड है । बेगूसराय की भूमि  राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि ,  दिनकर कला भवन ,  आकाश गंगा रंग चौपाल बरौनी ,द फैक्ट रंगमंडल. आशीर्वाद रंगमंडल है । साहित्यकार व प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय-महासचिव राजेन्द्र राजन, कवि अशांत भोला,जनकवि दीनानाथ सुमित्र,चर्चित कवि प्रफुल्ल मिश्र,गीतकार रामा मौसम, रंगकर्मी अनिल पतंग, कार्टूनिस्ट सीताराम, स्वामी चिदात्मन द्वारा आदि कुंभ स्थली सिमरिया धाम का पुनर्जागरण किया गया। आदि कुंभा स्थली की खोज संंत शिरोमणि करपात्री अग्निहोत् परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज नेे किया था ।और 2017 में सिमरिया महाकुंभ का प्रारंभ 12017 ई .हुआ था । बेगुसराय से 7 किलोमीटर दूर गोदरगांवा ग्राम में सन 1931 में स्थापित  विप्लवी पुस्तकालय है। गणेश दत्त महाविद्यालय, एसबीएसएस कॉलेज, श्री कृष्ण महिला कॉलेज. चंद्रमा असरफी भागीरथ सिंघ कॉलेज खमहार .एपीएसएम कॉलेज बरौनी. आरसीएस कॉलेज मन्झौल. जे.के. इंटर विधालय. बीएसएस इंटर कॉलेजिएट हाईस्कूल, आर. के. सी. +२ विद्यालय फुलवरिया बरौनी, बीपी हाईस्कूल,श्री सरयू प्रसाद सिंह विद्यालय विनोदपुर , सेंट पाउल्स स्कूल, डीएवी बरौनी, बीआर डीएवी,  केवी आईओसी, डीएवी इटवानगर,सुह्रद बाल शिक्षा मंदिर, साइबर स्कूल, जवाहर नवोदय विद्यालय है । कृषिभूमि में कुल क्षेत्र-1,87,967.5 हेक्टेयर में  सिंचित क्षेत्र-74,225.57 हेक्टेयर ,स्थायी सिंचित-6384.29 हेक्टेयर , मौसमी सिंचित-4866.37 हेक्टेयर ,बागवानी आदि-5000 हेक्टेयर ,खरीफ-22000 हेक्टेयर ,रबी- 10000 हेक्टेयर , गेहूं-61000 हेक्टेयर है । बेगूसराय जिला की -बूढ़ी गंडक, बलान, बैंती, बाया और लुप्त चंद्रभागा नदियाँ  है। बेगूसराय में आम, लीची, केले, अमरूद, नींबू के उद्यान हैं। मुबारकपुर शंख, चकमुजफ्फर और नावकोठी गांव केले के लिए मशहूर है।  कावरझील में विविध प्रकार की पक्षियां का वसेरा  हैं।
 बेगूसराय जिले के  विधानसभा क्षेत्र में 141-चेरिया बरियारपुर , 142-बछवाड़ा ,143-तेघड़ा ,144-मटिहानी 145-साहेबपुर कमाल , 146-बेगूसराय , 147-बखरी और बेगूसराय से लोक सभा सांसदों में 1 1952 मथुरा प्रसाद मिश्रा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस , 2 1957 मथुरा प्रसाद मिश्रा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस , 3 1962 मथुरा प्रसाद मिश्रा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस , 4 1967 योगेंद्र शर्मा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , 5 1971 श्याम नंदन मिश्रा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस , 6 1977 श्याम नंदन मिश्रा जनता पार्टी , 7 1980 कृष्णा साही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (I) ,8 1984 कृष्णा साही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस , 9 1989 ललित विजय सिंह जनता दल , 10 1991 कृष्णा साही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ,11 1996 रामेंद्र कुमार स्वतंत्र ,12 1998 राजो सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस , 13 1999 राजवंशी महतो राष्ट्रीय जनता दल , 14 2004 राजीव रंजन सिंह जनता दल (यूनाइटेड) , 15 2009 डॉ। मोनाज़िर हसन जनता दल (यूनाइटेड) ,16 2014 डॉ। भोला सिंह भारतीय जनता पार्टी ,17 2019 गिरिराज सिंह भारतीय जनता पार्टी है ।
बेगुसराय जिले का  विभिन्न कालों में भिन्न भिन्न नामों से विख्यात था ।  बुद्धकाल में अंगुत्तराय , मुगलकाल में बेगमसराय  , बेगसराय ब्रिटिश काल में बेगुसराय कहा गया है । बौद्ध धर्म के भदंत कोशल्यान द्वारा 500 ई.पू .  में अंगुतराय  स्थान महाबग्गा और निपात अतः कथा के अनुसार अंग - उत्तर  - अप्पा अर्थात अंग प्रदेश का उत्तर में प्रवाहित होने वाली गागा के तट पर अंगुत्तरनिकाय की रचना करने के कारण अंकुतराय नगर बसाया था ।  कर्नाटक के राजा बेगसराय द्वारा 1097 ई. में अंगुत्तराय का नाम परिवर्तन कर बेगसराय , फिरोज एटिगिन रुकबुद्दीन कॉकस ने 1291 ई. से 1302 ई. ताज बेगसराय का क्षेत्रीय प्रशासक , बादशाह अकबर कसल में1574 ई. में साम्हो राजा चक्रवार द्वारा साम्भ्हो व सिमरिया नगर बसाया  ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1734 ई. में राजबहादुर सिंह द्वारा बेगुसराय का विकास किया गया था। ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा बेगुसराय के क्षेत्रों में नील की खेती  बलिया परगना और 1870 ई. में अनुमंडल का दर्जा दिया गया । बिहार  डिस्ट्रिक्ट गजेटियर  मुंगेर 1957 के अनुसार बेगुसराय जिले का क्षेत्र में सप्त नदियों से परिपूर्ण होने के कारण अंगुत्तराय कहा गया है । मोहम्मद बेगूबेगम ने बेगमसराय का नगर बाद में बेगुसराय नामकरण किया गया है ।बरौनी का मकरदही को चाँदपुर में सूर्यमंदिर ,शिवाला , चमोबा स्थान ,पार्वती मंदिर , हनुमानमन्दिर , तेघरा का मधुरापुर में दुर्गा घटकिंथि, कत्ताने मैं स्थान ,ब्रह्मस्थान ,महावीर स्थान , मेहनदा शाहपुर में अवस्थित काली स्थान , भैरव धाम , बोरिया ठाकुरवाड़ी ,हनुमानमन्दिर प्रसिद्ध है ।

मंगलवार, सितंबर 26, 2023

गोपालगंज की विरासत

गोपालगंज की विरासत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
सारन प्रमंडल अंतर्गत गंडक नदी के पश्चिमी तट पर बसा  भोजपुरी एवं हिंदी  भाषी जिला ईंख उत्पादन के लिए प्रसिद्ध गोपालगंज जिला का मुख्यालय गोपालगंज है। मध्यकाल में चेरों राजाओं तथा ब्रिटिश साम्राज्य  काल में  हथुवा राज का केंद्र गोपालगंज  रहा है। थावे दुर्गा मंदिर , नेचुआ जलालपुर दुर्गा मंदिर, रामबृक्ष धाम,बुद्ध मंदिर, बेलवनवा हनुमान मंदिर,दिधवादुबौली सिंहासनी मंदिर,बहुरहवा शिव धाम(हथुआ),पुरानी किला(हथुआ),गोपाल मंदिर(हथुआ) प्रमुख दर्शनीय स्थल है। गोपालगंज जिला  मेंं 14 प्रखण्ड एव 234 पंचायत 1534 गाँव , 5 कस्बा के लोगों में 67.04 प्रतिशत साक्षर है । वैदिक एवं विभिन्न ग्रंथों के अनुसार  आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर प्रस्थान किया था । आर्यों ने  सारन की स्थापना किया था ।   सारन प्रदेश कोशल गणराज्य का अंग बनने के पश्चात  शक्तिशाली मगध के मौर्य, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा था । गोपालगंज क्षेत्र के भिन्न भिन्न स्थलों  में 3000 ई. पू. शाक्त , सौर , शैव और वैष्णव अनुयायियों के उपासना स्थली थी ।   ३००० ईसा पूर्व में भी इस हिस्से में आबादी कायम थी। 13 वीं सदी में मुगल  शासक के पूर्व चेरों साम्राज्य के चेरो वंशीय राजाओं की  सत्ता  कायम थी । 1765 ई. में यूरोपियन व्यापारी डच द्वारा  श0 अपना आधिपत्य कायम कर लिया। गोपालगंज अनुमंडल का दर्जा 1875 ई. में प्राप्त करने के बाद 02 अक्टूबर 1972 ई. में गोपालगंज को सारन जिला से  स्वतंत्र जिला बना है। 
गोपालगंज जिले का २५० १२ से २६०३९ उत्तरी अक्षांश तथा ८३०५४ से ८४०५५ पूर्वी देशांतर के बीच  गोपालगंज जिला के उत्तर में पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारन, दक्षिण में सिवान एवं छपरा, पूर्व में मुजफ्फरपुर एवं पूर्वी चंपारन तथा पश्चिम में उत्तर प्रदेश का कुशीनगर जिला की सीमाओं से घिरा गोपालगंज जिले का क्षेत्रफल २०३३ वर्ग किमि में 2011 जनगणना के अनुसार 2562012 आवादी में महिला 1294346 एवं पुरुष 1267666  लोग गोपालगंज और हथुआ अनुमंडल , नदियाँ में गंडक, झरही, दाहा, खनुआ, घाघरा , सरयू  तथा सारन नदियाँ , प्रखंड - गोपालगंज, भोरे, माझा, उचकागाँव, कुचायकोट, कटेया, विजयपुर, बरौली, हथुआ, बैकुंठपुर, फुलवरिया, थावे, पंचदेवरी, एवं सिधवलिया है ।
गोपालगंज जिला का  समतल एवं उपजाऊ भूक्षेत्र गंडक नहर एवं इससे निकलने वाली वितरिकाएँ सिंचाई का  स्रोत है। चावल, गेहूँ, ईंख तथा मूंगफली जिले की प्रमुख फसलें हैं।  गोपालगंज में कृषि आधरित उद्योग  मे चीनी मिल तथा दाल मिल ,  कुटीर उद्योग , गोपालगंज, सिधवलिया, सासामुसा एवं हथुवा प्रमुख औद्योगिक केंद्र है। शिक्षा के क्षेत्र में  प्राथमिक विद्यालय- 290 ,माध्यमिक विद्यालय- 100 ,उच्चतर माध्यमिक विद्यालय- 8 , डिग्री महाविद्यालय:- सभी 5 अंगीभूत महाविद्यालय , व्यवसायिक शिक्षा:- पॉलिटेक्निक कॉलेज, औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र, एक्युप्रेशर काउंसिल, सैनिक स्कूल है । पर्यटन स्थल में  हथुवा राजा द्वारा थावे में  निर्मित  दुर्गा मन्दिर ,  सबसे महत्वपूर्ण स्थल है।   गोपालगंज से 40  किलोमीटर दक्षिण-पूरब तथा छपरा मशरख रेल लाईन पर 56 किलोमीटर उत्तर में दिघवा-दुबौली का  पिरामिड के आकार के दो टीले चेरों राजा द्वारा बनवाए गए थे । हुसेपुर: गोपालगंज से २४ किलोमीटर उत्तर-पचिम में झरनी नदी के किनारे हथुआ महाराजा का हुसेपुर में निर्मित  किला का खंडहर ,  किले के चारों तरफ बने खड्ड , किले के सामने निर्मित  टीला हथुवा राजा की पत्नी का सती स्थान  है। पटना के मुस्लिम संत शाह अर्जन के दरगाह पर लकड़ी दरगाह है।  कुचायकोट प्रखण्ड का बेलवनवा हनुमान मन्दिर, नेचुआ जलालपुर रामबृक्ष धाम ,बुद्ध मंदिर,दुर्गा मंंदिर, कुचायकोट बंगलामुखी माँ मन्दिर,सूर्य मंदिर, बंगरा शिवं मंंदिर  है। भोरे गोपाल गंज जिला का एक प्रखण्ड है। भोरे से 2 किलोमीटर दक्षिण में शिवाला और रामगढ़वा डीह स्थित है। शिवाला में शिव का मंदिर ,  रामगढ़वा डीह के बारे में महाभारत काल के राजा भुरिश्वा की राजधानी रामगढ़वा की महलों के खण्डहरों के भग्नावशेष हैं ।  भोरे राजा भुरिश्वा महाभारत के युद्ध में कौरवों के चौदहवें सेनापति थे। महाराज भुरिश्वा के नाम पर भोरे है । हथुआ में स्थित गोपालमंदिर , पोखरा और संगीत महाविद्यालय हैं । और एक मैरिज हॉल भी हैं। गोपेश्वर महाविद्यालय सैनिक स्कूल तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद हाई स्कूल+2 तथा इंपीरियल स्कूल  हथुआ के राजा के अधीन था ।  गली मंडी के समीप  किला  ,  बोरावा शिव धाम कोईरोली में स्थित , महाइचा में स्थित बेलवती धाम  में   अनेक देवी देवताओं के मंदिर तथा मूर्तियां हैं। हथवा पैलेस  300 कमरें है ।रूम है । गोपालगंज में 41 डाकघर तथा 11 टेलिग्राफ केंद्र है जहाँ से सभी प्रकार की डाक सेवाएँ , भारतीय स्टेट बैंक तथा केनरा बैंक, पंजाब नैशनल बैंक एटीएम,द गोपालगंज सेन्ट्रल कोऑपरेटिव बैंक,एचडीएफसी बैंक,तथा युको बैंक है। थावे दुर्गा मंदिर का निर्माण हथुआ का राजा शाही बहादुर द्वारा 1714 ई. में कराया था। चेरो वंशीय राजा मदन सिंह ने शाक्त स्थल पर सिंहवाहिनी ,राशु भवानी , थावेवाली की स्थापना एवं थावे माता के उपासक शाक्त तांत्रिक संत  रहसु थे । लौह युगीन संस्कृति प्रमुख स्थल 1700 ई. पू. शाक्त उपासना का केंद्र था । आर्यों का आदि स्थान में थावे को थाव , ठाव , ठाँव , ठहराव शाक्त उपासकों एवं अग्नि को दर्शन देने के लिए कामाख्या माता प्रकट हुई थी । ऋग्वैदिक। एवं पूर्व वैदिक काल में द्वारिकाधीश के गपाल को समर्पित गोपालनगर बाद में गोपालगंज कहा गया है । वैदिक काल में थावे तंत्र मंत्र , जादू टोना का स्थल था । बंगाल का पाल राजवंशों ने 637 ई. के बाद पल वंश के संस्थापक एवं विद्वान दयित विष्णु का पौत्र तथा सैनिक वाप्यट पुत्र  गोपाल द्वारा गोपाल नगर का विकास और समृद्धि करायी और थावेवाली माता को शाक्त स्थल के रूप में विकसित किया था । विग्रह पाल द्वितीय का शासन काल 988 ई. तक , चोल वंशीय 1023 ई.  , महिपाल , राजपाल 1120 ई. तक गोपालनगर प्रसिद्ध था । बल्ललसेन द्वारा 179 ई. में शैव एवं शाक्त स्थलों को विकसित किया था । उचायकटउचायकोट में सूर्य मंदिर एवं सूर्यकुंड है ।

शुक्रवार, सितंबर 22, 2023

सारण की सांस्कृतिक विरासत

सारण की सांस्कृतिक विरासत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
 बिहार राज्य का सारण  जिला एवं प्रमंडल का गंगा , गंडक और घाघरा नदियों से घिरा मुख्यालय छपरा   है। भोजपुरी एवं हिंदी भाषी क्षेत्र सारण जिला सोनपुर मेला, चिरांद पुरातत्व स्थल राजनीतिक चेतना के लिए प्रसिद्ध है। सारण जिले का क्षेत्रफल 2641 वर्गकिमी में फैले क्षेत्र में 324870 आवादी में 3 अनुमंडल , 36 थाने , 1807 गाँव , 20 प्रखण्ड है । सारण जिला 1829 ई. में पटना प्रमंडल , 1866 ई. में चंपारण , 1908 ई. में तिरहुत प्रमंडल  का हिस्सा होने के बाद दिसंबर 1972 ई. में छपरा स्वतंत्र जिला का सृजन किया गया गया है। सारण की भूमि वनों के असीम विस्तार और विचरने वाले हिरणों के कारण प्रसिद्ध था। हिरण (सारंग) एवं वन (अरण्य) के कारण  सारंग अरण्य  कालक्रम में बदलकर सारन बना है। ब्रिटिस साम्राज्य का जेनरल कनिंघम ने मौर्य सम्राट अशोक के काल में सारण में लगाए गए धम्म स्तंभों को 'शरण' कहा  था । छपरा  से ११ किलोमीटर स्थित, चिराद   स्थल 2000 ई . पू . में  सारण की भूमि कोसल का अंग था । कोसल राज्य के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में सर्पिका (साईं) नदी, पुरब में गंडक नदी तथा पश्चिम में पांचाल प्रदेश था। कोशल साम्राज्य के अंतर्गत उत्तर प्रदेश का फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर तथा देवरिया जिला के बिहार का सारण क्षेत्र  है। आठवीं सदी में सारण पर  पाल शासकों का आधिपत्य था। सारण  जिले के दिघवारा के निकट दुबौली से महेन्द्रपाल देव के समय ८९८ ई.  में जारी किया गया ताम्रफलक प्राप्त हुआ है। बाबर काल में  सारण मुगल शासन का हिस्सा  था। अकबर के शासनकाल पर लिखे गए आईना-ए-अकबरी के  अनुसार कर संग्रह के लिए बनाए गए ६ राज्यों (राजस्व विभाग) में सारण  राज्य था ।  बक्सर युद्ध में विजय के बाद सन 1755 ई.  में ब्रिटिश साम्राज्य का दिवानी अधिकार प्राप्त था । पटना प्रमंडल का सृजन 1829 ई.  बनने के बाद सारन और चंपारण  जिला बना परंतु 1866 ई. में चंपारण को जिला बनाकर सारण से अलग कर दिया गया।था ।   तिरहुत प्रमंडल 1908 ई. में सृजन होने  पर सारण को शामिल किया गया था । स्वतंत्रता पश्चात 1981 ई.  में सारण  प्रमंडल का दर्जा प्राप्त हुआ है ।  स्वतंत्रता की लड़ाई में सारण जिले  के मजहरुल हक़, भारत का प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद , लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्म भूमि    महान सेनानियों नें बिहार का नाम ऊँचा किया है।  अगस्त क्रांति 1942 में पटना के सचिवालय पर तिरंगा फहराने के क्रम में शहीद होने वालों में सारण जिले के युवा नरेंद्रपुर गाँव के उमाकांत प्रसाद सिंह और बनवारी चक - नयागांव के राजेन्द्र सिंह है । गंगा, गंडक तथा घाघरा नदियों से घिरा सारण जिला 25°36' से 26°13' उअत्तरी अक्षांश तथा 84°24' से 85°15' पूर्वी देशांतर के बीच बसा है। जिले के उत्तर में सिवान तथा गोपालगंज, दक्षिण में गंगा एवं घाघरा नदियों के पार पटना एवं भोजपुर जिला, पूर्व में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली जिला तथा पश्चिम में सिवान तथा उत्तर प्रदेश का बलिया जिला अवस्थित है। सारण जिले के कुल 270245 हेक्टेयर भूमि में से 199300 हेक्टेयर खेती योग्य , 3789.20 हेक्टेयर स्थायॉ रूप से जल से ढँका है। कृषि योग्य भूमि में से 27% ऊँची भूमि, 7% मध्यम ऊँची भूमि, 15% मध्यम भूमि, 12% नीची भूमि, 21% चौर एवं 15% दियार क्षेत्र है।[16] गेंहूँ, धान, मक्का, आलू, दलहन एवं तिलहन मुख्य फसलें हैं। कुल जोत का सार्वाधिक हिस्सा गेंहूँ एवं धान की बुआई में इस्तेमाल होता है। जिले में कोई वन क्षेत्र नहीं है और आम, इमली, सीसम जैसी लकड़ियाँ निजी भूक्षेत्र पर ८२७० हेक्टेयर में  हैं। सारण जिले में रेल पहिया कारखाना, बेला, दरियापुर ,डीजल रेल इंजन लोकोमोटिव कारखाना, मढ़ौरा , सारण इंजीनियरिंग, मढ़ौरा ,सारणडिटेलरी, मढ़ौरा ,चीनी मिल, मढ़ौरा ,मोरर्न मिल, मढ़ौरा ,रेल कोच फैक्ट्री, सोनपुर , बी. सरकार शिक्षण संस्थान , लोकनायक जय प्रकाश प्रौद्योगिकी संस्थान ,जयप्रकाश विश्वविद्यालय ,राजेंद्र कॉलेज ,राम जयपाल कॉलेज , जगडम कॉलेज ,पॉलिटेक्निक कॉलेज, मढ़ौरा ,आईटीआई मढ़ौरा , जिला स्कूल ,राजेंद्र कॉलेजिएट , छपरा मेडिकल कॉलेज , आईटीबीपी हेडक्वाटर, कोठेया, जलालपुर प्रखण्ड  , शिक्षा के क्षेत्र में  प्राथमिक विद्यालय- 1265 , बुनियादी विद्यालय- 22 ,मध्य विद्यालय- 607 (266) ,उच्च विद्यालय- 116 , उच्चतर विद्यालय (१०+२) 6  ,केन्द्रीय विद्यालय- 3 (छपरा, सोनपुर एवं मसरख) ,संस्कृत विद्यालय- 17 , मदरसा- 4 ,शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय- 3 (२ डिप्लोमा एवं १ डिग्री स्तरीय) डिग्री महाविद्यालय- 11 (अंगीभूत इकाई) + 6 (संबद्ध इकाई) ,संत जलेश्वर अकादमी उच्चतर विद्यालय  बड़ा लौवा बनियापुर सारण है। सारण जिले का  अनुमंडलः छपरा सदर, सोनपुर, मढ़ौरा , प्रखंड:में छपरा, मांझी, दिघवारा, रिवीलगंज, परसा, बनियापुर, अमनौर, तरैया, सोनपुर, गरखा,एकमा, दरियापुर, जलालपुर, मढ़ौरा, मसरख, मकेर, नगरा, पानापुर, इसुआपुर, लहलादपुर ,पंचायतों की संख्या: ३३० ,गाँवों की संख्या: १७६७ ,शहरों की संख्या: ५ (नगर निगम-१, नगर पंचायत-४) ,नगर पंचायत:दिघवारा ,सोनपुर , मढ़ौरा, रिवीलगंज और  साक्षरता दर 68.57% है। भोजपुरी व हिंदी भाषायी क्षेत्र  1972 ई. का सृजन जिला सारण  की 2641 वर्गकिमी क्षेत्र में  2011 जनगणना के अनुसार 3951862 आवादी में 2022821 पुरुष एवं 1929041 महिला  निवास करती है । गंगा का उत्तरी मैदान बालसुन्दरी मृदा  सरयू नदी का गुठनी ( सारण )  में मिलान है ।
पर्यटन स्थल  में छपरा से ११ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में डोरीगंज बाजार के निकट  सारण जिले का पुरातात्विक स्थल चिराद  है। घाघरा नदी के किनारे निर्मित स्तूपनुमा भराव हिंदू ,  बौद्ध तथा मुस्लिम प्रभाव क्षेत्र चिराद  नव पाषाण काल का पहला ज्ञात स्थल है। चिराद उत्खनन से नव-पाषाण काल 2500 ई.पू. से 1345 ई.पू.   तथा ताम्र युग की  हड्डियाँ, गेंहूँ की बालियाँ तथा पत्थर के औजार प्राप्त  हैं । चिरांद टीले को द्वापर युग में राजा मौर्यध्वज (मयूरध्वज) के किले का अवशेष एवं च्यवन ऋषि का आश्रम था । चिराद का उत्खनन 1960 ई. में बुद्ध की मूर्तियाँ एवं धम्म की विरासत  मिली है ।  द्वापरयुग  में सारंग प्रदेश का राजा  मयूरध्वज की राजधानी चिराद थी । सोनपुर -  गंगा और गंडक नदी के संगम पर अवस्थित सोनपुर को हरिहर क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष लगने वाला पशु मेला विश्व प्रसिद्ध एवं  नगर पंचायत और पूर्व मध्य रेलवे  मंडल है।  भागवत पुराण एवं गजेंद्र मोक्ष के अनुसार में  हरिहर क्षेत्र में गज-ग्राह की लडाई में भगवान विष्णु ने ग्राह (घरियाल) को मुक्ति देकर गज (हाथी) को जीवनदान दिया था।   प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को गंडक स्नान तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा  तक चलनेवाला मेला लगता है। सोनपुर का गंडक नदी के तट पर  हरिहरनाथ मंदिर के गर्भगृह में  अर्थात भगवान विष्णु एवं भगवान शिव लिंग स्थापित है ।  काली मंदिर , गज ग्राह की मूर्ति  है। मांझी: छपरा से २० किलोमीटर पश्चिम गंगा के उत्तरी किनारे पर 1400' x 1050' के दायरे में प्राचीन किले का अवशेष  ३० फीट ऊँचे खंडहर में लगी ईंटे 18" x 10" x 3” की है। मांझी  से प्राप्त दो मूर्तियों को  मधेश्वर मंदिर में भगवान बुद्ध की भू स्पर्श मूर्ति  है । मांझी का राजा चेरो वंशीय मांझी मकेर की राजधानी थी ।  टीले के संबंध में अबुल फजल लिखित आइन-ए-अकबरी में मांझी को प्राचीन शहर बताया गया है। अंबा स्थान, आमी: छपरा से 37 किलोमीटर पूर्व तथा दिघवारा से 4 किलोमीटर दूर आमी में प्राचीन अंबा स्थान है। दिघवारा को  दीर्घ बड़ा द्वार के कारण नामकरण   है। आमी मंदिर के समीप यज्ञ कूप   है । दधेश्वरनाथ मंदिर: परसागढ से उत्तर  गंडक के किनारे भगवान दधेश्वरनाथ मंदिर में विशाल शिवलिंग स्थापित है। गौतम स्थान: छपरा से ५ किलोमीटर पश्चिम में घाघरा नदी  के किनारे स्थित रिवीलगंज (पुराना नाम-गोदना) में गौतम स्थान है। दर्शन शास्त्र की न्याय शाखा के प्रवर्तक गौतम ऋषि का आश्रम गोदना में  था। त्रेतायुग  रामायण काल में भगवान राम ने गौतम ऋषि की शापग्रस्त पत्नी अहिल्या का उद्धार किया था। राहुल गेट: राहुल सांकृत्यायन ने "परसा गढ़" गाँव में कई साल बिताने के कारण  गाँव के प्रवेश द्वार का नाम "राहुल गेट" है। गढ़देवी मंदिर : मढ़ौरा के एक कोने में स्थित , सारण जिले में बेस इस क्षेत्र में एक मंदिर है जो देवी माँ दुर्गा को अर्पित है। इस मंदिर को गढ़ देवी मंदिर कहते है। मंदिर के इतिहास के अनुसार यह माना जाता है की माँ दुर्गा यहाँ मढ़ौरा में थावे (गोपालगंज) तक की अपनी यात्रा में रुकी थी। इस मंदिर की यात्रा करने वाले भक्तों को बड़े शहरों की सुविधायें प्राप्त नहीं होती प्रान्तों गाँव में बेस इस मंदिर की अपनी अलग ही सुंदरता है। यहाँ गढ़देवी मेले में स्थानीय व्यवसाय करने वाले खिलोने, खाने पिने की वास्तु, अन्य घर की वस्तुए बेचने आते है। इस हर सोमवार व शुक्रवार को मेला लगता है जहां सैकड़ों श्रद्धालु माता की पुजा करते हैं मान्यता है कि यहाँ आये हुए जो भी भक्त माता से मन्नत मांगते हैं और माता पूरी करती है यहाँ खासकर चैत नवरात्र व शरदी्यनवरात्र में काफी भीड़ लगती है। बाबा शिलानाथ मंदिर: मढौरा से 1 किलोमीटर दूर सिल्हौरी के बारे में ऐसी मान्यता है कि शिव पुराण के बाल खंड में वर्णित नारद का मोहभंग इस स्थान पर हुआ था। प्रत्येक शिवरात्रि को बाबा शिलानाथ के मंदिर में जलार्पण करनेवाले भक्त यहाँ जमा होते हैं। गढ़देवी मंदिर पटेढ़ा: सारण जिले के नगरा प्रखंड अंतर्गत पटेढा चौक से करीब 200 मीटर उत्तर गंडकी नदी किनारे स्थित  13 23 ई. की काली मंदिर के गर्भगृह में माता काली की मूर्ति स्थापित और    काली मंदिर  से 500 मीटर की दूरी पर निर्मित  गढ़देवी मंदिर  है। पटेढ़ा का शासक राजा  धमसी राम  द्वारा 12 वीं सदी में धमसी नगर वसया गया  था । धमसी राम हवेली के निर्माता राजा धमसी राम   के द्वारा कुएं के ऊपर गढ़देवी मंदिर का निर्माण करवाया गया था। द्वारिकाधीश मंदिर :- छपरा से 8 किलोमीटर की दूरी पर छपरा-जलालपुर के बगल में स्थित द्वारिकाधीश मंदिर का निर्माण गुजरात के कारीगरों ने  14 वर्षों में किया है। डच मकबरा :- छपरा से 5 किलोमीटर के दूरी पर छपरा- जलालपुर पर करिंगा गाँव में डच मकबरा अवस्थित है । करिंगा गाँव  1770 तक यूरोपीय व्यपारी डच के नियंत्रण में था। डच गवर्नर जैकवॉर्न का कब्र करिंगा में  बनाया गया था । करिंगा में  1770 ई. तक  डच सिमेट्री का  डच गर्वनर जैकवस वैन हर्न की याद में स्मारक बनाया गया था । यूरोपियन व्यापारी कंपनी 18 वी सदी तक करिंगा में थी । विक्रम संबत 1122  में राजा बलि वंशीय राजा सारण द्वारा चिरांग नगर बसाया और सरन प्रदेश की राजधानी बनाया गया था । सारण को सारंग , सारन , सरन कह गया है । महामहोपाध्याय राहुल संस्कृत्यान की कर्म स्थली , भोजपुरी ऑफ शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का जन्म 11 दिसंबर 1887 ई . में हुआ और निधन 10 जुलाई 1971 ई. में छपरा का कुतुबपुर दियारा में हुआ था । पुरबिया सम्राट महेंद्र मिसिर व महेंद्र मिश्र का जन्म जमालपुर प्रखण्ड के कांही मिश्रबलिया में 16 मार्च 1865 ई. और निधन 26 अक्टूबर 1946 ई. में हुआ था । लोकनायक एवं सम्पूर्णक्रन्ति के संस्थापक सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 में सिताबदियारा के निवासी देवकी बाबू की पत्नी फुलरानी देवी के पुत्र थे ।

बुधवार, सितंबर 20, 2023

बांका की सांस्कृतिक विरासत

बांका की सांस्कृतिक विरासत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
ऐतिहासिक और विभिन्न सनातन धर्म ग्रंथों में बांका का उल्लेख मिलता है । बांका जिले का मुख्यालय बांका पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र/सीमा  झारखंड राज्य ,  पश्चिमी सीमा जमुई  तथा उत्तर-पश्चिमी सीमा से मुंगेर तथा भागलपुर से जोड़ती है। भौगोलिक क्षेत्रफल 3020 वर्ग किलोमीटर में फैले बांका  जिला की स्थापना 21 फरवरी, 1991 को हुई है। बांका जिले के सृजन   पूर्व में  भागलपुर जिला का अनुमंडल था। बांका जिले का  अनुमंडल बांका तथा 11 प्रखंडों, 2111 गांवों, 185 पंचायतों , बांका नगर परिषद् व अमरपुर नगर पंचायत  है। बांका  जिला की  समृद्ध विरासत ,   ग्रंथों एवं पुरानों के अनुसार वैवस्वत मन्वंतर काल  के वैवस्वत मनु का  वंशज , कश्यप ऋषि की पत्नी एवं दक्ष प्रजापति की पुत्री दिति के पुत्र हिरण्यकश्यप वंशीय बलि के  पुत्रों में  अनवा साम्राज्य की स्थापना के  तत्परश्चात साम्राज्य  अंग, बंग, कलिंगा, पुदीना और सुमहा का नामकरण किया गया था  । स्वायंभुव मन्वंतर का त्रेतायुग में अंग राजाओं के  संदरव  लोमापादा   अयोध्या के राजा दशरथ का मित्र था । अथर्ववेद के अनुसार अंग का प्रपोत्र चम्पा ने  अंग की राजधानी मालिनी से हटा कर चंपा नगर निर्माण कर चंपा में रखा था । बौद्ध धर्म-ग्रंथों के अनुसार, अंग साम्राज्य का-राजा ब्रह्मदत्त  ने मगध साम्राज्य  के राजा भट्टिय को पराजित किया था । मगध साम्राज्य के राजा भट्टिय के पुत्र बिम्बसार द्वारा  545 ई.  पू.में अंग को मगध के अधीन कर लिया था । मगध साम्राज्य की राजधानी चंपा में राजा अजातशत्रु द्वारा   स्थानांतरित कर ली थी। सम्राट अशोक की मां   चम्पा की सुभद्रांगी का विवाह मगध साम्राज्य का राजा  विन्दुसार का विवाह हुआ था ।  अंग नंद वंश, मोर्य वंश 324-185 ई.  पू ., शुंग वंश (185-75 ई .पू.  और कण्व वंश 75-30 ईसा पू .  मगध साम्राज्य के शासकों के अधीन बना रहा। कण्व वंश के शासन-काल में कलिंग के राजा खारवेल ने मगध और अंग पर चढ़ाई कर दी गयी थी । चन्द्र गुप्त 1 (320 ईसवी) का राज्याभिषेक  के बाद अंग महान गुप्त साम्राज्य (320-455 ईसवी) का हिस्सा  बना रहा। गुप्त काल तक अंग भौतिक एवं सांस्कृतिक विकास का काल था। गुप्त वंश के पतन के बाद , गौड़ शासक शशांक ने बांका क्षेत्र में 602-ई . से 625 ई.  तक  नियंत्रण किया ।  अंग क्षेत्र राजा हर्षवर्धन के द्वारा माधवगुप्त को मगध का राजा घोषित किया। माधव गुप्त का  पुत्र आदित्यसेन ने मंदार-पहाड़ी पर शिलालेख के अनुसार  नरसिंहा या नरहरि मंदिर का निर्माण कराई थी। चीनी यात्री यूआन चेंग ने  चम्पा का वर्णन यात्रा-वृतांत में किया है। बंगाल के पाल शासक गोपाल के नेतृत्व में 755 ई . में शासन में आया।धर्मपाल उनके उत्तराधिकारी बने। विग्रहपाल ने  राज-स्थापना अंग में की थी । ताम्र-पत्र अभिलेख के अनुसार नारायणपाल द्वारा भागलपुर में मिला दिया गया था ।। पल वंशीय राजा गोपाल द्वारा  विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। सेन वंश ने   अंग-क्षेत्र में शासन किया।अंग शासक सेन वंश के राजा लक्ष्मण सेन 1185-1206 जब शासन में बख्तियार खिलजी ने 12वीं शताब्दी में  बिहार और बंगाल की ओर कूच कर नालंदा एवं विक्रमशिला की प्राचीन विश्व–विद्यालयों को लूट कर ध्वस्त कर दिया था । बख्तियार खिलजी दिल्ली के तुर्क-अफगान शासकों के अधीन बिहार और बंगाल का प्रथम प्रतिनिधि द्वारा दक्षिण बिहार पूरी तरह से 1330 ई में  दिल्ली के अधीन हो गया था। चौदहवीं सदी में  बिहार जौनपुर साम्राज्य द्वारा हड़प लिया था । बंगाल के हुसैन शाह ने जौनपुर के शासन को सफलतापूर्वक अभियान से समाप्त कर दिया।  हूमायूं ने 1540 ई . में बंगाल पर चढ़ाई करने के दौरान भागलपुर से होकर  राजमहल पहाडि़यों एवं गंगा की संकीर्ण पट्टी में शेरशाह ने रोक दिया। अकबर के बादशाह बनने पर 1556 ई. में  अफगान ताकत को समाप्त कर मुगल साम्राज्य  की स्थापना कर दी थी । अकबर की सेना ने भागलपुर के रास्ता 1573 ई.  और 1575ई.  में मार्च किया। 1580 ई.  में अकबर के विरूद्ध सैन्य-विद्रोह होगया था । ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा 1769 ई.  में सुपरवाइजर के रूप में काम करने के तहत मुगल  प्रतिनिधित्व हटा दिया गया। आगस्ट्स क्ली‍वलैंड 1779 ई0 में भागलपुर  जिला के प्रथम कलेक्टर बनाये गए। अपने चार वर्ष के छोटे से कार्यकाल में क्लीवलैंड ने पहाड़ी जनजातियों के विद्रोह को शांत करने में कमयाबी पाई। भागलपुर सिटी  पिरामिड-स्मारक क्लीवलैंड का अस्तित्व है। संथाल विद्रोह के कारण एक नई मन-रेगुलेशन जिला संथाल परगना की स्थापना 1955-56 में हुई थी । 1857 का विद्रोह में बांका के क्रांतिकारी आंदोलन था । बांका क्षेत्र का वैरुनसी मंदार पर्वत को मंदराचल पर्वत कहा गया है । मंदराचल पर्वत की गुफाएं , ब्राह्मण धर्म , सनातन धर्म  बौद्ध एवं जैन धर्म की मूर्तियां , चैत्य  , पापहरणी कुंड , लक्षद्वीप कुंड , मदसूदन , भगवान शिव मंदिर प्रसिद्ध है । चंदन नदी के किनारे रूपस में काली मंदिर ,बिहार का गवर्नर शाह उमर वजीरने द्वारा अमरपुर की स्थापना , जैन धर्म के। वासुपूज्य निर्वाण भूमि , रूपस , असिता ,जेष्ठ गौर मठ में काली मंदिर , ओढ़नी डैम प्रसिद्ध है । द्वापर युग व महाभारत काल में असुर संस्कृति का राजा बकासुर द्वारा बका नगर का निर्माण कराया था । बकासुर जरासंध और मथुरा के राजा कंश का मित्र था ।  असुरराज बकासुर ने बका साम्राज्य की राजधानी बका में स्थापित किया था ।  18 53 ई. में बांका को अनुमंडल का दर्जा मिला था । स्वायम्भुव मनु के मन्वंतर काल में बांका विकसित था ।   शंभुगंज प्रखण्ड का तेलड़िहा में 1603 ई. में दुर्गा मंदिर , चांदन नदी के तट पर बाबा जेष्ठ गौरनाथ महादेव मंदिर , बाराहाट दुर्गा मंदिर ,जगतपुर दुर्गामंदिर ,मंदारेश्वर मंदिर ,पंचमुखी शिवमंदिर ,माँ तारा मंदिर , जैन धर्म का 12 वें तीर्थंकर वासुपूज्य निर्वाण स्थल  प्रसिद्ध है । अमरपुर प्रखण्ड का कलिंग राजा शशांक द्वारा स्थापित 108 शिव लिंग , शाम्भगंज प्रखंड के तेलड़िहा में हिरबल्लभ दास द्वारा 1603 ई. में स्थापित माता कृष्णकाली मंदिर , है । मंदराचल व मंदार पर्वत की 800 ऊँचाई  पर अवस्थित बौसी में अवस्थित है । वैवस्वत मन्वंतर काल में देव , दैत्य , दानव द्वारा समुद्र मंथन के लिए मंदार पर्वत को मथनी एवं वासुकी नाग मथनी का डोर बनाया गया था । समुद्र मंथन करने के दौरान नवरत्न प्राप्त हुए थे । मंदार पर्वत के चारो तरफ नाग का चिह्न अवस्थित है । मंदार पर्वत पर मंदारेश्वर शिवलिंग , भगवान विष्णु मंदिर, कुंड , गुफाएं , भीटी चित्र अवस्थित है । झारखंड राज्य का दुमका जिले का जरमुंडी प्रखंड के वासुकी नाग को समर्पित वासुकीनाथ मंदिर के गर्भगृह में बाबा बासुकीनाथ स्थापित है । 

शनिवार, सितंबर 16, 2023

देव शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा


सृष्टिकर्ता है  देव शिल्पी विश्वकर्मा 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
 विश्वकर्मा पुराण उपनिषद एवं पुराण आदि काल से देव शिल्पी  विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण मानवों गंधर्व द्वारा  पूजित और वंदित है। भगवान विश्वकर्मा के निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी पुष्पक विमान का निर्माण तथा  देवों के भवन और  दैनिक उपयोगी होनेवाले देव शिल्पी द्वारा  बनाया गया है। कर्ण का कुण्डल, दिव्य रथों और द्वारिकापुरी के भवनों का निर्माण विश्वकर्मा देव ने ही किया है। विश्वकर्मा देव जी को अन्य देवताओं की तरह ब्रम्हाजी ने उत्पन किया और उन्हे देवलोक और पृथ्वी लोक में भवन निर्माण हेतु नियुक्त किया। वह देवराज इंद्र की सभा में बैठते हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का अवतार में   विराट विश्वकर्मा - सृष्टि के रचेता  , धर्म वंशी- महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र , अंगिरावंशी - आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र ,  सुधन्वा - महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी के पात्र,  भृंगुवंशी- उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र) देव विश्वकर्मा से विशाल विश्वकर्मा समाज का विस्तार हुआ है। शिल्पशास्त्रो के प्रणेता विश्वकर्मा  आचार्य शिल्पी ने पदार्थ के आधार पर शिल्प विज्ञान को पाँच प्रमुख धाराओं में विभाजित करते हुए तथा मानव समाज को ज्ञान से लाभान्वित करने के निर्मित पाणच  शिल्पायार्च पुत्र ने अयस, काष्ट, ताम्र, शिला एंव हिरण्य शिल्प के अधिषश्ठाता मय, त्वष्ठा, शिल्पी एंव दैवज्ञा के रूप में जाने गये।  स्कन्दपुराण  नागर खण्ड में विश्वकर्मा देव के वशंजों की चर्चा है। विश्वकर्मा पंचमुख है। विश्वकर्मा जी का पंचमुख  पुर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऋषियों को मत्रों व्दारा में मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ। ऋषि मनु विष्वकर्मा "सानग गोत्र"  लोहे के कर्म के उध्दगाता होने के कारण  लोहकार , सनातन ऋषि मय  सनातन गोत्र को बढई के कर्म के उद्धगाता के वंशंज काष्टकार , अहभून ऋषि त्वष्ठा - इनका दूसरा नाम त्वष्ठा गोत्र अहंभन के वंशज ताम्रक है। प्रयत्न ऋषि शिल्पी का गोत्र प्रयत्न के वशंज शिल्पकला के अधिष्ठाता संगतराश को  मुर्तिकार हैं। देवज्ञ ऋषि  गोत्र सुर्पण के वशंज स्वर्णकार के द्वारा  रजत, स्वर्ण धातु के शिल्पकर्म करते है,। विश्वकर्मा देव के  पुत्रं, मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी और देवज्ञ शस्त्रादिक निर्माण करते है।विश्वकर्मा जी के कुल में अग्निगर्भ, सर्वतोमुख, ब्रम्ह आदथे ।। विश्वकर्मा के पुत्र मय का विवाह कन्या सौम्या देवी के साथ हुआ था। मय ने इन्द्रजाल सृष्टि की रचना किया है। मय के कुल में विष्णुवर्धन, सूर्यतन्त्री, तंखपान, ओज, महोज महर्षि प है। विश्वकर्मा के  पुत्र महर्षि त्वष्ठा का विवाह कौषिक की कन्या जयन्ती के साथ हुआ था। त्वष्टा के कुल में लोक त्वष्ठा, तन्तु, वर्धन, हिरण्यगर्भ शुल्पी अमलायन ऋषि है। त्वष्टा  देवताओं में  ऋषि थे। विश्वकर्मा के  महर्षि शिल्पी का विवाह करूणाके साथ हुआ था। ऋषि शिल्पी के कुल में बृध्दि, ध्रुन, हरितावश्व, मेधवाह नल, वस्तोष्यति, शवमुन्यु आदि ऋषि की कलाओं का वर्णन मानव जाति क्या देवगण  नहीं कर पाये है। विश्वकर्मा के पुत्र महर्षि दैवज्ञ का विवाह चंद्रिका के साथ हुआ था। दैवज्ञ के कुल में सहस्त्रातु, हिरण्यम, सूर्यगोविन्द, लोकबान्धव, अर्कषली  शिल्पी हुये। विश्वकर्मा जी के  पुत्रो ने  छीनी, हथौडी, कील, रंदा और अपनी उँगलीयों से निर्मित कलाये विकासित किया था ।
 वास्तु के 18 उपदेष्टाओं में विश्वकर्मा  प्रमुख है।  मय ग्रंथों एवं वराहमिहिर ,  विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का वर्धकी देव तथा शिल्पावतार तथा  शिल्प के ग्रंथों में सृष्टिकर्ता विश्वकर्मा हैं। स्कंदपुराण में  देवायतनों का सृष्टा  है।  शिल्पदेव विश्वकर्मा द्वारा  जल पर चल सकनेवाला  खड़ाऊ , सूर्य की मानव जीवन संहारक रश्मियों के ताप से रक्षा,  वावास्तुकल थी। राजवल्लभ वास्तुशास्त्र में उनका ज़िक्र मिलता है। विश्वकर्मीयम ग्रंथ में  वास्तुविद्या, बल्कि रथादि वाहन व रत्नों ,  विश्वकर्माप्रकाश,  वास्तुतंत्र है ।,विश्वकर्मा द्वारा साढ़े सात हज़ार श्लोकों में 239 सूत्रों तक उपलब्ध  है।  विश्वकर्मा ने  पुत्रों जय, विजय और सिद्धार्थ को ज्ञान दिया।स्कन्द पुराण  काशी खंड में भगवान शिव ने माता पार्वती जी से कहा है कि हे पार्वती मैं आप से पाप नाशक कथा कहता हूं। इसी कथा में महादेव जी ने पार्वती जी को विश्वकर्मा उत्पन्न करने की कथा कहते हुए कहा कि देव शिल्पी  त्वष्टा प्रजापति के पुत्र विश्वकर्मा  के रूप मे उत्पत्ति हुयी है।त्वष्टा प्रजापति का पुत्र प्रत्यक्ष आदि विश्वकर्मा  प्रथम अवतार  , स्कन्द पुराण प्रभास खंड सोमनाथ माहात्म्य सोम का  पुत्र   विश्वकर्मा के द्वितीय अवतार है। शिल्पोत्पत्तिं प्रवक्ष्यामि श्रृणु षण्मुख यत्नतः। विश्वकर्माSभवत्पूर्व शिल्पिनां शिव कर्मणाम्।। मदंगेषु च सभूंताः पुत्रा पंच जटाधराः। हस्त कौशल संपूर्णाः पंच ब्रह्मरताः सदा।। शिल्प के प्रवर्त्तक विश्वकर्मा विभिन्न रूपों मे मनु, मय, शिल्प, त्वष्टा, दैवेज्ञ थे। वायुपुराण अध्याय 22 उत्तर भाग के अनुसार आर्दव वसु प्रभास की योगसिद्ध से विवाही गई और अष्टम वसु प्रभाव पुत्र उत्पन्न विश्वकर्मा हुआ जो शिल्प प्रजापति कहलाया है।बृहस्पतेस्तु भगिनो वरस्त्री ब्रह्मचारिणी। योगसिद्धा जगत्कृत्स्नमसक्ता चरते सदा।। प्रभासस्य तु सा भार्या वसु नामष्ट मस्य तु। विश्वकर्मा सुत स्तस्यां जातः शिल्प प्रजापतिः।।मत्स्य पुराण अध्याय 5 के अनुसार विश्वकर्मा प्रभासस्य पुत्रः शिल्प प्रजापतिः। प्रसाद भवनोद्यान प्रतिमा भूषणादिषु। तडागा राम कूप्रेषु स्मृतः सोमSवर्धकी।। प्रभास का पुत्र शिल्प प्रजापति विश्वकर्मा देव, मन्दिर, भवन, देवमूर्ति, जेवर, तालाब, बावडी और कुएं निर्माण करने देव आचार्य थे।आदित्य पुराण मे उल्लेख मिलता है कि विश्वकर्मा प्रभासस्य धर्मस्थः पातु स ततः।।ऋग्वेद का  विश्वकर्मा सूक्त  में 14 ऋचायें के  सूक्त का देवता विश्वकर्मा और मंत्र दृष्टा ऋषि विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा सूक्त 14 उल्लेख इसी ग्रन्थ विश्वकर्मा-विजय प्रकाश में दिया है। 14 सूक्त मंत्र औ यजुर्वेद 4/3/4/3 विश्वकर्मा ते ऋषि   विश्वकर्मा है । 
रथकार शिल्पी का  अष्टाध्यायी पाणिनि सूत्र पाठ सूत्र - शिल्पिनि चा कुत्रः 6/2/76 सज्ञांयांच 6/2/77 सिद्धांत कौमुदी वृतिः- शिल्पि वाचिनि समासे अष्णते। परे पूर्व माद्युदात्तं, स चेदण कृत्रः परो न भवति। ततुंवायः शिल्पिनि किम- काडंलाव, अकृत्रः किं-कुम्भकारः। सज्ञां यांच अणयते परे तंतुवायो नाम कृमिः। अकृत्रः इत्येव रथकारों नाम शिल्पीः।।पाणिनिसूत्र 4/1-151 कृर्वादिभ्योण्यः। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने ब्राम्हण ऋषियों में  कुरू, गर्ग, मगुंष, अजमार, ऱथकार, बाबदूक, कवि, मति, काधिजल इत्यादि, कौरव्यां, ब्राह्मणा, मार्ग्य, मांगुयाः आजमार्याः राथकार्याः वावद्क्याः कात्या मात्याः कापिजल्याः ब्राह्मणाः इति सर्वत्र है। वराह पुराण ,  शैवागम , वास्तु शास्त्र , पुष्टि कोष , स्थापत्य शास्त्र , भागवत स्कन्द 3 , वायुपुराण अध्याय 4 , में पांचाल एवं भगवान विश्वकर्मा को भृगु ऋषि कुल में उत्पन्न होने का उल्लेख  है  वायु पुराण अध्याय 4 के अनुसार भार्ये भृगोर प्रतिमे उत्तमेSभिजाते शुभे।। हिरण्य कशिपोः कन्या दिव्यनाम्नी परिश्रुता।। पुलोम्नश्चापि पौलोमि दुहिता वर वर्णिनी।। भृगोस्त्वजनयद्विव्या काव्यवेदविंदा वरं।। देवा सुराणामाचार्य शुक्रं कविसुंत ग्रहं।। पितृंणा मानसी कन्या सोमपाना य़शस्विनी।। शुक्रस्य भार्यागीराम विजये चतुरः सुतान्।। अर्थत  हिरण्यकश्यप की बेटी दिव्या और पुलोमी की बेटी पौलीमी उत्तम कुलीन, यह दोनों मृग ऋषि को विवाही गई। दिव्या नाम वाली स्त्री के गर्भ से शुक्राचार्य पैदा हुए। सोम्य पितरों की मानसी कन्या अगीं नाम वाली शुक्राचार्य को विवाही गई। शुक्राचार्य जी के सूर्य के समान तेज वाले त्वष्टा, वस्त्र, शंड और अर्मक यह पुत्र पैदा हुए। त्रिशिरा विश्वरूपस्तु त्वष्टाः पुत्राय भवताम्।। विस्वरूपानुजश्चापि विश्वकर्मा प्रजापतिः।। अर्थः त्वष्टा प्रजापति के त्रिशिरा जिसका नाम विश्वरूप था बडा पराक्रमी औऱ उसका भाई विस्वकर्मा प्रपति यह दो पुत्र इसी विश्वकर्मा प्रजपति के विषय में स्कन्द पुराण प्रभास खंड में  है। ग्रन्थकार बोधयन  सूत्रकार ने वरिष्ठ शुनक अत्रि, भृगु, कण्व, वाध्न्यश्वा, वाधूल, यह गोत्र  नाराशंस पांचालों के आर्षेय गोत्र  है । ब्रह्मा जी , के मुख से अंगिरा ऋषि उत्पन्न हुय़े। इनका वर्णन वेद, ब्राह्मण ग्रथं, श्रुति, स्मृति, रामायण, महाभारत और सभी पुराणों में ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि अंगों व अंगिरा उल्लेख है। अंगिरा ऋषि का  मत्स्य पुराण, भागवत, वायु पुराण महाभारत और भारतवर्षीय प्राचीन ऐतिहासिक कोष में वर्णन किया गया है। मत्स्य पुराण में अंगिरा ऋषि की उत्पत्ति अग्नि से कही गई है।   ब्रह्मा के मुख से यज्ञ हेतु अंगिरा उत्पन्न हुए। महाभारत अनु पर्व अध्याय 83 में कहा गया है कि अग्नि से अंगिरा भृगु आदि प्रजापति ब्रह्मदेव है। ऋग्वेद 10-14-6 मेउल्लेख है किःअर्थः जिसके कुल में भरद्वाज, गौतम और अनेक महापुरूष उत्पन्न हुए । अग्नि के पुत्र महर्षि अंगिरा  के पुत्र  अंगिरस देव धनुष और बाण धारी थे । अंगिरस  को ऋषि मारीच की बेटी सुरूपा व कर्दम ऋषि की बेटी स्वराट् और मनु ऋषि कन्या पथ्या व्याही  गई।
 सुरूमा के गर्भ से बृहस्पति, स्वराट् से गौतम, प्रबंध, वामदेव उतथ्य और उशिर यह पांछ पुत्र जन्में, पथ्या के गर्भ से विष्णु संवर्त, विचित, अयास्य असिज, दीर्घतमा, सुधन्वा यह सात पुत्र उत्पन्न हुए। उतथ्य ऋषि से शरद्वान, वामदेव से बृहदुकथ्य उत्पन्न हुए। महर्षि सुधन्वा के ऋषि विभ्मा और बाज पुत्र हुए। यह ऋषि पुत्र हुए। महर्षि सुधन्वा के ऋषि विभ्मा और बाज ऋषि पुत्र ऱथकार में  देवता थे । , तो भी इनकी गणना ऋषियों में की गई है। शिल्प के निर्माण वाले रथकार थे । 
ब्रह्मा जी के प्रपौत्र धर्म के पौत्र वास्तुदेव की पत्नीएवं ऋषि अंगिरा की पुत्री अगिरसी के गर्भ से विश्वकर्मा का जन्म सनातन धर्म पंचांग भद्र शुक्ल कन्या संक्रांति सतयुग , आंग्ल पंचांग के अनुसार  17 सितंबर को हुआ था । समुद्र मंथन के तहत विश्वकर्मा का अवतरण हुआ था। भगवान विश्वकर्मा की पत्नी आकृति ,रति , प्रप्ति और नंदी से चाक्षुष मनु , माया ,त्वस्तार ,शिल्पी, विश्वजना , शाम ,काम हर्ष , विश्वरूप ,वृतासुर। पुत्री में बहिंर्मति का विवाह राजा प्रियब्रत  , रिद्धि एवं सिद्धि का विवाह भगवान शिव की भार्या माता पार्वती के पुत्र गणेश जी से हुआ था । शुभ और लाभ पुत्र हुए । चाक्षुष मन्वंतर में विश्वकर्मा के पुत्र मय द्वारा मय संस्कृति की स्थापना कर दैत्य शिल्पिकार और त्वष्टा द्वारा देवा संस्कृति की स्थापना कर देवशिल्पिकार थे । भगवान विश्वकर्मा की उपासना एवं मंदिर गुवाहाटी असम , मुम्बई का मीरारोड , खैराने , आंध्रप्रदेश के मछलीपट्टनम ,झारखंड के रांची ,में 1930 ई. में स्थापित विश्वकर्मा मंदिर है। एलोरा में विश्वकर्मा गुफा ,पाताल भुवनेश्वर गुफा ,छत्तीसगढ़ का रायपुर में  राजीव लोचन मंदिर , नांदवेल ,उत्तराखंड का ऋषिकेश में मायाकुंड , दक्षिण भारत के भृगु क्षेत्र बलिया नगर , हृदप्रसार में विश्वकर्मा मंदिर है । 
9472987491


सोमवार, सितंबर 11, 2023

मुंगेर की विरासत

मुंगेर की सांस्कृतिक विरासत
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
सनातन धर्म ग्रंथों , पुराणों ईवा इतिहास के पन्नों में मुंगेर का उल्लेख मिलता है ।  गंगा नदी के दक्षिणी तट पर वसा मुंगेर जिला एवं प्रमंडल का मुख्यालय मुंगेर है ।त्रेता युग और द्वापर युग में मुंगेर का अस्तित्व  मिलता है। महाभारत काल में अंग की राजधानी मुंगेर को  अंगराज कर्ण द्वारा रखी गयी थी ।  त्रेतायुग में मुंगेर के सीता कुंड में माता सीता ने अग्नि परीक्षा के बाद स्नान किया था। ऋषि  मुदगल  का तपो स्थली मुग्दलगिरी , गुप्त वंशीय राजाओं द्वारा मुंगेर की स्थापना , 1447 ई. में सूफी संत शाह मुश्क नफा का कर्म स्थल एवं बंगाल का नबाब मीर कासिम ने 1763 ई. में राजधानी ब्रिटिश साम्राज्य ने 1832 ई. में जिला  का दर्जा मुंगेर को बनाया था । मुंगेर को मुग्दल , मुद्गलगिरी ,, मोदागिर, मोदागिरी  , मोंगर पत्र के अनुसार  1066 ई. में नार्मन ने मुंगेर को ऑफ डेला मोंसेड अर्थात पहाड़ी का टीला  कज़ह गया था ।  बंगाल का अंतिम नबाब मीरकासिम द्वारा मुंगेर में किला का निर्माण कराया था । हिंदी , मगही सुर अंगिका भाषीय मुंगेर जिले  का क्षेत्रफल 1419.7 वर्ग कि.मी. में 2011 जनगणना के अनुसार 13,67,765 आवादी , 03 अनुमंडल ,  9 प्रखण्ड , 923 गाँव में साक्षरता 76 .87 प्रतिशत है ।मुंगेर का प्राचीन  नाम मुद्रलपुरी, मॉड-गिरि, मोदागिरि, मुद्रलगिरी है। त्रेतायुग में मुद्गलगिरी एवं द्वापरयुग  में  मुद्गलपूरी मुंगेर को मुद्रलपुरी अंग प्रदेश की राजधानी कलांतर में मुद्रलगिरी से मुंगेर के नाम से ख्याति  है। गंगा नदी के पावन तट पर स्थित मुंगेर का  प्रमुख गंगा घाट  कष्टहरणी घाट के  बगल में गंगा के समीप  मध्य सीता चरण मंदिर  है।  चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में  मुंगेर की स्थापना का श्रेय गुप्त बंश के राजाओं के अधीन था ।  कलांतर में   बख्तियार खिलजी के अधिकार में मुंगेर  रहा था । ब्रिटिश साम्राज्य  काल द्वारा 1812 ई. मुंगेर  पृथक प्रशासनिक केंद्र बनाया था । मुंगेर जिला बन गया है।  सन 1934 के विनाशकारी भूकम्प से मीर कासिम द्वारा मुंगेर का निर्मित किले ध्वस्त हो गया।  चार द्वार वाला मीरकासिम  किला वास्तुकला से परिपूर्ण और  सुंदर है। हिन्दू और बौद्ध शैली में निर्मित मीरकासिम किले के प्रमुख दरवाजा लाल दरवाजा , कीले में निर्मित सुरंग को  आकर्षित करता है। मुंगेर स्थित  सीता कुंड  माता सीता को समर्पित एवं  श्रृंगी ऋषि को समर्पित ऋषि कुंड , मुंगेर के गंगा नदी के किनारे स्थित बिहार स्कूल ऑफ योगा  , कष्ट हरणी घाट , गंगा नदी के किनारे स्थित माँ चंडिका दरवार प्मंदिर शक्ति पीठ हैं। सती  माँ का बाईं आँख गिरी थी । मनपत्थर सीता चरण, पीर शाह नफाह मकबरा,गोयनका शिवालय मिर्ची तालाब, ,श्रीकृष्ण वाटिका, ,भीमबंध वन्यजीव अभयारण्य  एवं मुंगेर में  बंदूक और सिगरेट फैक्ट्ररी  है। मुंगेर जिले में मुंगेर शहर ,हवेली खड़गपुर ,तारापुर अनुमंडल एवं सदर ,जमालपुर ,वरियापुर ,धरहरा ,खड़गपुर ,रेडिया, बम्बर ,तारापुर ,असरगंज और संग्रामपुर प्रखण्ड है । गंगानदी के तट पर मगध साम्राज्य का राजा जरासंध द्वारा निर्माण कराया था । मगध साम्राज्य का राजा चंद्रगुप्त ने मुंगेर नगर की स्थापना कर चंपानगर में मुंगेर की राजधानी स्थापित किया था । ब्रिटिश साम्राज्य ने मुंगेर को मॉंगीर व मोंगिर कहा गया है । 1964 ई. में मुंगेर योगाश्रम की स्थापना , तारापुर में योगाचार्य ब्रजेश मिश्र की जन्मभूमि , 15 फरवरी 1932 ई. में मुंगेर का कलेक्टर एल .ओ ली एवं एस पी डब्लू एस मैंडोप द्वारा तारापुर में 38 स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी पर गोली से मौत के घाट उतार दिया था । शहीदों के सम्मान में प्रतिवर्ष 15 फरवरी को सहादत दिवस मनाया जाता है । 03 दिसंबर 1883 ई. में तारापुर में जन्मे चित्रकार नंदलाल बोस को 1954 ई. में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया ।वसु का निधन कलकत्ता में 16 अप्रैल 1966 ई. में हुई थी ।
मुंगेर का प्राचीन किला 

मुजफरपुर का बाबा गरीबनाथ

सर्वार्थ मनोकामना स्थल है गरीबनाथ 
सत्येन्द्र कुमार पाठक। 
सनातन धर्म की विभिन्न ग्रंथों एवं ऐतिहासिक दस्तावेज के अनुसार बिहार राज्य का  मुजफ्फरपुर जिला का मुख्यालय मुजफरपुर  में ब्राह्मण टोली पुरानी बाजार  स्थित गरीबनाथ मंदिर में स्थापित  बाबा गरीबनाथ शिव लिग  पवित्र स्थान है ।  मुजफ्फरपुर का गरीबनाथ मंदिर परिसर में महा शिवरात्रि , श्रावणी  मेला, नाग पंचमी मनाई जाती है । बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड द्वारा भौगोलिक निर्देशांक 26°7′28″एन  85°23′25″ ई पर अवस्थित गरीबनाथ मंदिर का रखरखाव किया जाता है। विभिन्न स्रोतों के अनुसार के अनुसार 1723 ई. में नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी शैव संत गरीब  दास द्वारा  सप्त  पीपल वृक्ष के समीप रह कर भगवान शिव की उपासना किया करते थे । पीपल वृक्षों की  कटाई के दौरान रक्त-लाल पदार्थ निकलने लगे और  शिवलिंग मिला था । जमीनदार के स्वप्न में बाबा गरीब आ कर पीपल वृक्ष को कटाई रोकने के लिए कहा था । बाबा गरीबनाथ मंदिर  मुजफ्फरपुर के पुरानी बाजार के पास स्थित है । 1971 ई.  की शिवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा बाबा गरीबनाथ की बाराती एवं वार्षिक आयोजन प्रारम्भ किया गया है । वज्जि प्रदेश की राजधानी गंडक नदी के तट पर तीरह व तिरहुत में  600 ई. पू . थी । बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय एवं महापरिनिर्वाण सूत्र  में तीरभुक्ति का उल्लेख किया गया है । मुजफ्फरपुर को तिरह , तिरहुत , तीरभुक्ति गुप्त काल तक नाम था । संस्कृत साहित्य में लिंगोपासना , नागोपसना में भगवान शिव का नागयुक्त  शिव लिंग लिंगायत सम्प्रदाय का मुख्य केंद्र गंडक नदी के तट पर आधुनिक मुजफरपुर में स्थापित है । यह का झील को मन कहा गया है । 1893 ई. में मुजफरपुर का सेठ शिवदत्त राय द्वारा गरीबनाथ क्षेत्र का बंदोबस्त कराने के पश्चात वनों की कटाई प्रारंभ करने के दौरान शिवलिंग प्रकट हुआ था । शिवदत्त राय के वंशज सुरेश चनानेवाम विश्वनाथ चानन  गरीबनाथ मंदिर का निर्माण  एवं भूमिदाता थे । धर्म संसद एवं वीणा कला आश्रम के संथापक  पूर्व विधायक केदारनाथ प्रसाद द्वारा शिव महिमा ग्रंथ में बाबा गरीबनाथधाम, मुझफरपुर की महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है ।
सनातन धर्म  का शैव सम्प्रदाय का लिंगायत पंथ के संस्थापक वसवन्ना  द्वारा 12 वीं सदी में भगवान शिव की स्तुति ,  आराधना और उपासना का मंत्र दिया गया है। लिंगायत पंथ के मुख्य देव भगवान शिव है । लिंगायत मत के उपासक लिंगायत कन्नड़:कहलाते हैं। लिंगवंत लोग मुख्यतः महात्मा बसवण्णा की शिक्षाओं के अनुगामी हैं। लिंगायतों में गुरु बसवेश्वर  है। 'वीरशैव' पंथ  शिव का परम भक्त ,  वीरशैव का तत्वज्ञान दर्शन, साधना, कर्मकांड, सामाजिक संघटन, आचारनियम वीरशैव देश के अन्य भागों - महाराष्ट्र, आंध्र, तमिल क्षेत्र में में फैले है।  शैव लोग अपने धार्मिक विश्वासों और दर्शन का उद्गम वेदों तथा 28 शैवागमों से मानते हैं। वीरशैव भी वेदों में अविश्वास नहीं प्रकट करते किंतु उनके दर्शन, कर्मकांड तथा समाजसुधार आदि विकसित  हैं । शैवागमों तथा अंतर्दृष्टि 12वीं से 16 वीं शती के बीच  तीन शताब्दियों में 300 वचनकार प्रमुख महात्मा बसवेश्वर के अनुयायी   30 स्त्रियाँ रही थी ।  महात्मा बसवेश्वर  कल्याण (कर्नाटक) के जैन राजा विज्जल (12वीं शती) का प्रधान मंत्री थे। वह योगी महात्मा बसवेश्वर द्वारा  वीरशैव संप्रदाय की स्थापना की। महात्मा बसवेश्वर का लक्ष्य  आध्यात्मिक समाज बनाना था । वीरशैवों ने आध्यात्मिक अनुशासन की परंपरा स्थापित शतस्थल शास्त्र'  हैं। वीरशैववाद मूलत: अद्वैतवादी दर्शन है ।आध्यात्मिक गुरु प्रत्येक वीरशैव को इष्ट लिंग अर्पित कर उसके कान में पवित्र षडक्षर मंत्र 'ओम्‌ नम: शिवाय' फूँक देता है। प्रत्येक वीरशैव स्नानादि कर हाथ की गदेली पर इष्ट लिंग रखकर चिंतन और ध्यान द्वारा आराधना करता है। वीरशैव में सत्यपरायणता, अहिंसा, बंधुत्वभाव जैसे उच्च नैतिक गुणों के होने की आशा की जाती है। महाराष्ट्र वारकरी संप्रदाय का विकास काल  १२ वी मे कर्नाटक मे लिंगायत सम्प्रदाय का परीचय आया । लिंगायत सम्प्रदाय के अनुयाय ने  शरीर पर शिवलिंग धारण करने के कारण लिंगायत सम्प्रदाय है | पेड ,  फुल ,फल लगते है उसी तरह भगवान शिव से विश्व कि निर्माण हुया है । ओम नम: शिवाय मंत्र लिंगायत सम्प्रदाय ने स्वीकार किया है । बिहार राज्य का मुजफरपुर गंडक नदी के तट पर लिंगायत पंथ द्वारा शिवलिंग की स्थापना कर उत्तर बिहार का प्रमुख केंद्र 12 वीं सदी में स्थापित किया था । वासव पुराण में गरीबनाथ का उल्लेख किया गया है । वासव द्वारा शिवलिंग की वासव स्थल पर वसवेश्वर नाथ की स्थापना की थी । वसवेश्वर नाथ स्थल को लिंगायत पंथ का केंद्र विंदु 12वी सदी और 18 वी सदी में गरीब दास की उपासना स्थल के कारण गरीबनाथ के नाम प्रख्यात हुआ । प्रत्येक वर्ष गरीबनाथ के श्रद्धालुओं द्वारा कावरिया के रूप में  हाजीपुर की गंगा नदी की जल ले कर मुजफ्फरपुर स्थित गरीबनाथ बाबा पर जल का अभिषेक करते है । मुजफरपुर में माता रानी सती , सत्यनारायण मंदिर , कालीमंदिर , चतुर्भुजमन्दिर , सूर्यमंदिर , भैरवमन्दिर दर्शनीय स्थल है।

शुक्रवार, सितंबर 08, 2023

पटना की सांस्कृतिक विरासत

पटना की सांस्कृतिक विरासत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार राज्य की राजधानी  एवं पटना प्रमंडल और  पटना  का मुख्यालय गंगा नदी के किनारे  पटना है । पटना  डच वास्तुकला और ब्रिटिश वास्तुकला की शैली और 200 वर्षों का निर्मित कलक्ट्रिट  भवन परिसर को 2008 में, बिहार सरकार द्वारा  कलक्ट्रीयट को विरासत भवन के रूप में सूचीबद्ध  था ।  निदेशांक 25°37′17″N 85°8′53″E एवं समुद्रतल से ऊंचाई 58 मीटर (190 फीट) पर अवस्थित पटना के जिला का सृजन 1857 ई. में कलेक्टर का आवास 1867 मिर्मित हुआ थ । डच प्रथम बार 17 वीं शताब्दी में  पटना की भूमि पर इमारत का निर्माण डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा किया गया  और  डच काल के दौरान गोदाम के रूप में इस्तेमाल किया गया था । [ब्रिटिश राज के दौरान, ब्रिटश साम्राज्य  ने इमारत को कलेक्ट्रेट के रूप में पुन: उपयोग किया। पटना समाहरणालय  परिसर का  १८५७ से काम करना प्रारम्भ एवं 1867 ई. में भवन पूर्ण  किया । १९३८ में, जिला बोर्ड भवन 1938 ई. में   ब्रिटिश वास्तुकला में बनाया गया था ।पटना के  डच 1740-1825 ई  की कार्यशैली का भवन , . पटना विश्वविद्यालय, 1948 , पटना प्रमंडल का सृजन 1829 ई. , पटना जिला का सृजन राजस्व जिला 1770  ई. , और 22 मार्च 1972 ई. को बिहार प्रोविन्स का सृजन किया गया है।  पटना जिला का क्षेत्रफल 3202 वर्गकिमी व 1236 वर्गमील में 2011 जनगणना के अनुसार 5838564 आबादी में पुरुष 3078512 एवं महिला 2759953 लोग 1395 गाँव , 309 पंचायत 23 प्रखंड तथा पटना ,पटना साहिब ,बाढ़ ,मसौढ़ी ,दानापुर और पालीगंज अनुमंडल का साक्षरता दर 70. 68 प्रतिशत है । पटना के उत्तर गंगा नदी ,दक्षिण में  जहानाबाद , अरवल , नालंदा , पश्चिम में भोजपुर और पूरब में बेगूसराय ,लखीसराय तथा नालंदा जिले की सीमाओं से घिरा तथा गंगानदी  , सोन नद , पुनपुन नदी प्रवाहित है।
बिहार राज्य की राजधानी पटना तीन हजार वर्ष  से  गौरवशाली शहर होने का दर्जा प्राप्त है। गंगानदी के किनारे सोन  नद और   पुनपुन नदी के संगम पर लंबी पट्टी के रूप में बसा हुआ है।  पाटलीपुत्र के नाम से ख्याति प्राप्त पटना छठी सदी ई.पू. में प्रारम्भ और तीसरी सदी ई .पू . में  मगध साम्राज्य  की राजधानी पाटलिपुत्र  बना। अजातशत्रु,उदयन ,  चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त शासक हुए। मेगास्थनिज, फाह्यान, ह्वेनसांग के आगमन का पटना  साक्षी है। महानतम कूटनीतिज्ञ कौटिल्‍यने अर्थशास्‍त्र तथा विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र की  रचना स्थल एवं  मौर्य-गुप्तकाल, मुगलों तथा ब्रिटिश साम्राज्य शासन का वाणिज्यिक स्थल पटना शहर रहा है। बंगाल विभाजन के बाद 1912 में पटना संयुक्त बिहार-उड़ीसा तथा आजादी मिलने के बाद बिहार राज्‍य की राजधानी बना है । पटना  के  मध्य-पूर्व भाग में कुम्रहार में  मौर्य-गुप्त सम्राटाँ का महल, पूर्वी भाग में पटना सिटी के आसपास शेरशाह तथा मुगलों के काल का नगरक्षेत्र , बाँकीपुर और उसके पश्चिम में ब्रिटिश साम्राज्य का  बिहार की  राजधानी पटना है।  पटना सिटी में  सिखधर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह की जन्मभूमि , हरमंदिर, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, जलान म्यूजियम, अगमकुँआ, पटनदेवी; अन्नपूर्णा मंदिर , शीतला माता मंदिर ,  मध्यभाग में कुम्‍हरार परिसर, पत्थर की मस्जिद, गोलघर, पटना संग्रहालय तथा पश्चिमी भाग में जैविक उद्यान, सदाकत आश्रम , शाहिद स्मारक  आदि  स्‍थल हैं। मौर्य-गुप्तकालीन स्थल में अगम कुआँ – मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक के काल का अगम कुआँ गुलजा़रबाग स्टेशन के समीप स्थित है। अशोक शासक बनने के लिए अशोक ने अपने 99 भाईयों को मरवाकर अगम  कुएँ में डाल दिया था। राजद्रोहियों को यातना देकर अगमकुएँ में फेंक दिया जाता था। अगमकुआं स्थित शीतला मन्दिर है । पटना की गंगा नदी के तट पर स्थित महराजगंज में माता सती का पट व वस्त्र गिरने के कारण पाटन नगर का निर्माण किया गया था । पटना को विभिन्न शासकों द्वारा पाटन को पाटली , मगध साम्राज्य का राजा आजादशत्रु के पुत्र उदयन द्वारा पाटलिपुत्र , मुगलों ने अजीमाबाद , ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा पटना कहा गया था । मगध साम्राज्य का राजा चंद्रगुप्त ने पाटलिपुत्र को विस्तार , महान कुटिनीतिज्ञ अर्थशास्त्री चाणक्य की कर्म स्थली को गंगा तट के समीप चाणक्य गुफा , गुप्तकाल तक व्यापारिक केंद्र को गंगा नदी के तट पर पट्टन , पत्तन  , अशोक काल में बौद्ध संगति , जैन धर्म में अगम  , कदम और ब्रिटिश साम्राज्य ने पटना , फतेहबहादुर सिंह ने फतुहा , आयभट्ट की वेधशाला  को खगोलीय स्थल को खगोल  कहा जाता  था । 
कुम्हरार -पटना जंक्शन से 6 किलोमीटर पूर्व कंकड़बाग रोड पर स्थित कुम्भरार  600 ई.पू. से 600 ई. के मध्य में निर्मित  भवनों की चार स्तरों मे उत्खनन से प्राप्त  मगध के शासकों द्वारा प्रारम्भ  में बनवाए गए लकड़ी के महल , पत्थर से बने 80 स्तंभों का महल और कुम्‍हरार मौर्य कालीन अवशेष है। मगध साम्राज्य का चंद्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार तथा , उदयन , अशोक कालीन पाटलिपुत्र के भग्नावशेष  है।  बंगाल के शासक अलाउद्दीन शाह द्वारा 1489 ई. में निर्मित बेगुहज्जम  मस्जिद ,  बिहार के  शासक शेरशाह सूरी द्वारा 1540-1545 के मध्य में अफगान शैली में  निर्मित शेरशाह मस्जिद  पटना सिटी क्षेत्र में धवलपुरा के पश्चिम तथा पूरब-दरवाजा़ के दक्षिण-पश्चिम कोने पर अवस्थित है। 
 ईसाई मिशनरियों द्वारा पटना सिटी में सन 1713 में स्थापित संत मेरी चर्च व पादरी की हवेली  70 फीट लंबा, 40 फीट चौड़ा और 50 फीट ऊँचा चर्च सन 1772 में कलकत्ता का  इटालियन वास्तुकार तिरेतो द्वारा संत मेरी चर्च का निर्माण कराया गया था ।  मीर कासिम के सैनिकों द्वारा 25 जून 1763 ई. में  चर्च को रौंदा गया पुनः सन 1857 की क्रांति के दौरान  नुकसान पहुँचा। मदर टेरेसा ने 1948 ई. में पादरी की हवेली में रहकर नर्सिंग का प्रशिक्षण लिया और कोलकाता जाकर पीड़ितों की सेवा में लग गयीं थी । क़िला हाउस (जालान हाउस) दीवान बहादुर राधाकृष्ण जालान द्वारा शेरशाह के किले के अवशेष पर निर्मित किला हाउस व जालान हाउस में हीरे जवाहरात, चीनी पेंटिग तथा यूरोपीय कलात्मक वस्तुओं का निजी संग्रहालय है। जहाँगीर के पुत्र तथा शाहजहां के अग्रज शाह परवेज़ द्वारा 1621 में निर्मित सैफ  अलीखान व चिमनी घाट मस्जिद अशोक राजपथ पर सुलतानगंज में स्थित है। हरमंदिर साहेब, पटना सिटी में तख्त श्रीहरमंदिर पटना सिक्खों के दशवें और अंतिम गुरु गोबिन्द सिंह की जन्मस्थली है। नवम गुरु तेगबहादुर के पटना में रहने के दौरान गुरु गोविन्दसिंह ने  बचपन के  पटना सिटी में बिताए थे। सिक्खों के लिए हरमंदिर साहब पाँच प्रमुख तख्तों में  है। गुरु नानक देव की वाणी से अतिप्रभावित पटना के श्री सलिसराय जौहरी ने अपने महल को धर्मशाला बनवा दिया। भवन के हरमंदिर साहिब  हिस्से को मिलाकर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है।  गुरु गोविंद सिंह व बालक गोविन्दराय के बचपन का पंगुरा (पालना), लोहे के चार तीर, तलवार, पादुका तथा 'हुकुमनामा' गुरुद्वारे में सुरक्षित है। यह स्‍थान दुनिया भर में फैले सिक्ख धर्मावलंबियों के लिए पवित्र है।  बाँकीपुर में  अशोक राजपथ पर स्थित पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 ई.  में स्थापित है । गाँधी घाट एन आई टी पटना व  1900 ई. में स्थापित बिहार अभियंत्रण महाविद्यालय) परिसर के पीछे गंगा नदी के तट पर निर्मित  गाँधी घाट से राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की अस्थियाँ विसर्जित की गई थी। सन 1900 में बना अभियंत्रण महाविद्यालय का प्रशासनिक भवन  है। दरभंगा हाउस इसे नवलखा भवन का निर्माण दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने करवाया था। गंगा के तट पर अवस्थित काली मन्दिर है। खुदाबक़्श लाइब्रेरी की स्थापना 1891 ई. में छपरा निवासी मौलवी मुहम्मद बक्श द्वारा  अशोक राजपथ स्थित स्थापित स्थापित किया गया था । पटना  के मध्यभाग में स्थित गाँधीमैदान मैदान को ब्रिटिश शासन के दौरान  पटना लॉन्स या बाँकीपुर मैदान कहा जाता था। गोलघर 1770 ईस्वी में बिहार क्षेत्र में आए भयंकर अकाल के बाद 137000 टन अनाज भंडारण के लिए बनाया गया है ।  गोलाकार का निर्माण 1786 ईस्वी में जॉन गार्स्टिन द्वारा निर्माण के बाद से 29 मीटर ऊँचा गोलघ‍र पटना शहर का प्रतीक चिह्न बन गया।  गोलघर का आधार पर 3.6 मीटर चौड़े दिवाल के शीर्ष पर दो तरफ बनी घुमावदार सीढियों से ऊपर चढकर पास ही बहनेवाली गंगा और  परिवेश का अवलोकन किया जाता है। डा• सैय्यद महमूद (बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. सैय्यद महमूद  के घर 1947 ई. में महात्मा गाँधी के  विश्राम करने के कारण  विश्राम घर को गाँधी संग्रहालय कहा जाता  है। गोलघर के सामने बना बाँकीपुर बालिका उच्च विद्यालय के पास ही महात्मा गाँधी की स्मृतियों से जुड़ी चीजों का नायाब संग्रह देखा जा सकता है। गाँधी मैदान के उत्तर-पश्चिम हिस्से में स्थित इस परिसर में नवस्थापित चाणक्य विधि विश्वविद्यालय का अध्ययन केंद्र भी अवलोकन योग्य है।गांधी मैदान दक्षिण पश्चिम में श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल गुम्बदाकार है। गाँधी मैदान के उत्तरी भाग में कारगिल स्मारक के साथ बना यह भवन शहर के राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र , श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र , छज्जुबाग में आकाशवाणी केंद्र , दूरदर्शन केंद्र , पटना स्टेशन के समीप  1967 ई. में निर्मित हनुमान मंदिर , 1917 ई. में निर्मित पटना संग्रहालय व काशी प्रसाद जायसवाल संग्रहालय व जादूगर , न्यू मार्केट में निर्मित मस्जिद ,  1917 में निर्मित  म्यूज़ियम में मौर्य, शक, कुषाण तथा गुप्त काल के हिन्दू, जैन तथा बौद्ध धर्म की कला कीर्तियाँ   करोड़ वर्ष पुराने पेड़ के 16 मीटर लंबा तने का फॉसिल, भगवान बुद्ध की अस्थियाँ तथा दीदारगंज, पटना सिटी से प्राप्त यक्षिणी की मूर्ति धरोहर है। बिहार के पुरातत्‍वविदों द्वाराएकत्रित  मौर्य और गुप्‍त काल की मूर्तियाँ (पत्‍थर, टेराकोटा, और लोहे की बनी हुई), मुगलकाल के सिक्के, तिब्बती थंग्का चित्र आदि संरक्षित है। विधान सभा तथा हाईकोर्ट भवन बंगाल विभाजन के बाद बिहार-उड़ीसा की संयुक्त राजधानी बनने पर पटना में  प्रशासनिक तथा न्यायिक भवनों का निर्माण वास्तुविद आई•एफ•मुन्निंग के निर्देशन में 1916-1917 तक निर्मित  हुआ। भारतीय-गॉथिक शैली में बने अधिकांश भवन ब्रिटिस शासकों की शानदार पसंद का नमूना है। पटना संग्रहालय भवन की तरह ही विधान सभा तथा उच्च न्यायालय भवन पश्चिमी पटना में बेली रोड का नाम बिहार के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स स्टुआर्ट बेली के नाम पर निर्मित सड़क के किनारे  अवस्थित है। शहीद स्मारक, पटना बिहार विधान सभा के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बना स्मारक पटना के स्कूलों से आजा़दी की लड़ाई में जान देनेवाले सात शहीदों के प्रति श्रद्धांजली है। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय विधान सभा भवन के ऊपर भारतीय तिरंगा फहराने के प्रयास में मारे गए पटना के इन शहीदों को याद रखने के लिए बिहार के पहले राज्यपाल जयरामदास दौलतराम ने 15 अगस्त 1947 को स्मारक की नींव रखी थी। मूर्तिकार श्री देवीप्रसाद रायचौधुरी द्वारा शहीद स्मारक  भव्य आदमकद मूर्तियों को ईटली में निर्मित होकर स्थापित की गई है। महात्मा गाँधी द्वारा बिहार रत्न मज़हरूल हक़ द्वारा दी गयी भूमि पर 03 दिसंबर 1920  को सदाक़त आश्रम की स्थापना किया गया। भारत के प्रथम राष्ट्रपति  देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद की  कर्मभूमि पश्चिमी पटना में गंगा तट पर बना है। यहाँ बापू द्वारा 06 जनवरी 1921 ई.  को स्थापित बिहार विद्यापीठ का मुख्यालय तथा भारत के प्रथम राष्ट्र्पति डा• राजेन्द्र प्रसाद की स्मृतियों से  संग्रहालय है। पटना जंक्शन से ७ किलोमीटर पश्चिम में हजरत पीर मुजीबुल्लाह कादरी द्वारा स्थापित खानकाह मुजीबिया या बड़ी खानकाह लाल पत्थर की बनी संगी मस्जिद में पैगम्बर मुहम्मद साहब की दाढी का बाल सुरक्षित है । संग्रहालय के समीप  इन्दिरा गाँधी विज्ञान परिसर में बना ताराघर है। संजय गांधी जैविक उद्यान - राज्यपाल के सरकारी निवास राजभवन के पीछे स्थित जैविक उद्यान है। कदम कुआं में आयुर्वेदिक कॉलेज , बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन , सैदपुर में संस्कृत महाविद्यालय , राजेंद्रनगर में राजेंद्रनगर टर्मिनल ,    वेली रोड व जवाहरलाल नेहरु मार्ग के किनारे इंदिरागांधी आयुर्विज्ञान संस्थान , राजवंशीनगर में हनुमानमन्दिर  , फ्रेजर रोड को मजरुलहक पथ , वेली रोड को जवाहरलाल नेहरुमार्ग कहा जाता । दानापुर में रेलवे स्टेशन जंक्शन , पाटलिपुत्र जंक्शन ,  मनेर में यहियमनेरी का मजार व मस्जिद , पुनपुन नदी के किनारे स्थित पुनपुन स्टेशन , पुनपुनघाट पर गया पिण्ड दान करने के पूर्व पिंडदानियों द्वारा पितृपक्ष में पितृश्राद्ध स्थल है ।उलार में सूर्यमंदिर में भगवान उल्यार्क़ सूर्य की प्राचीन मूर्ति स्थापित एवं सूर्यकुंड , पंडारक म सूर्यमंदिर में  भगवान  पुण्यार्क सूर्य स्थापित है ।
 पटना जिले का गंगा नदी के किनारे बाढ़ का निर्देशांक: 25°29′N 85°43′E / 25.48°N 85.72°E पर 2011 जनगणना के अनुसार 61470 आवादी है। बाढ़ शहर के 12 शताब्दी में स्थापित शिव मन्दिर ऊमानाथ को समर्पित, बाढ़ शहर के मध्य मे 18वीं सदी में निर्मित  दुर्गा मन्दिर , गंगा नदी के तट पर  अलखनाथ मंदिर में बाबा अलख नाथ और  सीढ़ी घाट में  नवनिर्मित शनि मंदिर है। मुगल और ब्रिटिश काल में  बिहार का बाढ़  व्यापारिक  शहर , पटना और कोलकाता में नदी व्यापार के बीच मध्यवर्ती शहर था।  बेरहना गाँव की  युवा विधवा, सम्पति कुएर ने अपने मृत पति के अंतिम संस्कार की चिता पर 1928 ई. में  सती हुई। ब्रिटिश सरकार ने गुंडागर्दी पर संदेह किया और 10 लोगों को जेल भेज दिया, जिसमें उनके भाई मुरलीधर पांडे  शामिल थे । ब्रिटिश सरकार ने 100 साल पहले सती प्रथा का बहिष्कार किया था। बैरहना सती स्थान प्रसिद्ध है । पटना के बर्खास्त होने के बाद, 1425 ई. में सिकंदर लोदी बंगाल की ओर बढ़ने के बाद  दिल्ली और बंगाल सेनाओं के बीच  गैर-आक्रामक समझौता के बाद बाढ़ के पूर्व का क्षेत्र बंगाल के शासक द्वारा नियंत्रित किया जाएगा और पश्चिम में स्थित दिल्ली साम्राज्य द्वारा नियंत्रित किया जाएगा । नमक व्यापार के लिए बाढ़ महत्वपूर्ण पारगमन बिंदु का व्यापक रूप से विस्फोटकों, कांच बनाने, और उर्वरकों में उपयोग किया जाता था। बाढ़ को उच्च गुणवत्ता वाले चमेली के तेल के निर्यात के लिए  जाना जाता है। गुरु तेग बहादुर 1666 में पूर्वी जिलों का  दौरे के दौरान बाढ़ का चूना खारी मुहल्ले के बड़ी संगत  में रुके थे । 934 के बाढ़ में 1934 ई. का भूकंप से इमारत को नष्ट कर दिया गया था ।  नानक पंथी उदासीन मठ से संबंधित एक पुराना कुआं और पुजारी खुले स्थान पर कायम हैं। देशी सिखों के लिए तिराहा चौक के पास बालीपुर मोहल्ले, पिपल ताल में तख्त हरिमंदर साहिब द्वारा बाढ़ में  गुरुद्वारा स्थापित किया गया था। बंगाल का नबाब अलीवर्दी खान ने 1748 ई. को  बाढ़ में डेरा डाला और बंगाल के मराठा आक्रमण के दौरान पटना को बर्खास्त करने के बाद बख्तियारपुर के निकट काला दियारा में मराठों मीर हबीब के अधीन को हरा दिया। बाढ रेलवे लाइन 10 नवंबर 1877 को बाढ़ ​​रेलवे स्टेशन को जनता के लिए खोल दिया गया । बाढ़ के पूर्व में लखीसराय जिला, पश्चिम में पटना शहर, उत्तर में गंगा नदी एवं समस्तीपुर तथा दक्षिण में नालंदा एवं बरबीघा है। पुराणों एवं स्मृति , बौद्ध , जैन ग्रंथों के अनुसार हर्यक या शिशुनाग वंश के राजाओं में  विम्बिसार ,आजातशत्रु ने गंगा नदी एवं सोन नद के संगम तट पर पाटली नगर बसाया था ।  जैन ग्रंथ एवं बौद्ध ग्रंथों के अनुसार मगध साम्राज्य के राजा अजातशत्रु की पत्नी पद्मावती के पुत्र उदयन द्वारा 460 ई.पू. में गंगा और सोन नद के संगम तट पर पाटलिपुत्र नगर नगर की स्थापना की थी । उदयन द्वारा पाटलीपुत्र के मध्य में चैत्यगृह का निर्माण कराया गया था । हर्यक वंश 544 ई.पू. से 412 ई.पू. तक का अंतिम राजा नागदशक  , शिशुनाग वंश 412 ई.पू. से 344 ई.पू. तक , नंदवंश 344 ई.पू. से 324 ई.पू. तक शासन पाटलिपुत्र से किया जाता था । नंदवंश का अंतिम राजा सुंदर स्वरूप का पुत्र घनानंद  था । मौर्य राजवंश 324 ई.पू. से 184 तक शासन किया ।  मौरिय नगर का राजा सर्वार्थ सिद्धि की पत्नी मुरा का पुत्र चंद्रगुप्त ने  तक्षशिला का महान विद्वान चाणक्य के नेतृत्व में  नंद वंश का अंतिम राजा घनानंद को समाप्त कर मगध साम्राज्य का राजा बना ।  322 ई.पू. में चंद्रगुप्त सार्वभौम सम्राट बन कर मगध साम्राज्य का विस्तार किया था । चंद्रगुप का पुत्र बिंदुसार 298 ई. पू. से 273 ई.पू . , अशोक ने 273 ई. पू. से 236 ई. पू . एवं चंद्रगुप्त मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहद्रथ विलासी और अयोग्य होने के कारण पुष्यमित्र शुंग मगध साम्राज्य का राजा 184 ई.पू. से 30 ई. पू.  तक एवं मगध साम्राज्य का  शुंगवशीय अंतिम  राजा देवभूति था ।  पाटलिपुत्र का विकास एवं संबर्द्धन विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न राजाओं द्वारा किया गया था । पाटलिपुत्र क्षेत्रों का चतुर्दिक विकास कण्व , हर्षवर्द्धन , गुप्त , सेन वंशीय राजाओं द्वारा किया गया था । 

बुधवार, सितंबर 06, 2023

ज्ञान , कर्म और भक्ति का द्योतक है कृष्णाष्टमी

कर्म , ज्ञान और भक्ति का द्योतक कृष्णाष्टमी 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
 पुराणों एवं स्मृतियों में भगवान विष्णु के 22 वें एवं आठवें अवतार भगवान कृष्ण का उल्लेख किया गया है । भगवान कृष्ण के जन्म दिवस पर कृष्ण जन्माष्टमी , गोकुलाष्टमी , जन्माष्टमी मनाया जाता है । मथुरा का राजा कंश की बहन एवं आनकदुन्दुम्भी के पुत्र वासुदेव के आठवें पुत्र भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी नक्षत्र रोहिणी ,  दिन बुधवार द्वापरयुग में  कंस के मथुरा स्थित  कारागार में अर्धरात्रि में अवतरण हुआ था । भागवत पुराण के अनुसार कृष्ण के जीवन के नृत्य-नाटक की परम्परा, कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि में भक्ति गायन, उपवास ,  रात्रि जागरण ,  और जन्ममहोत्सव व  जन्माष्टमी समारोह , झारखंड , उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश , मणिपुर, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा भारत के सभी राज्यों में पाए जाने वाले  वैष्णव और निर्सांप्रदायिक समुदायों के द्वारा  विशेष रूप से मनाया जाता है ।भगवान कृष्ण  का जन्म अराजकता के क्षेत्र , जनता का उत्पीड़न बड़े पैमाने पर था, स्वतंत्रता से वंचित ,  बुराई, और जब  राजा कंस द्वारा  संकट था।भगवान कृष्ण  तीनों लोकों के तीन गुणों सतगुण, रजगुण तथा तमोगुण में से सतगुण विभाग के प्रभारी हैं । भगवान का अवतार होने के कारण से श्रीकृष्ण जी में जन्म से ही सिद्धियां उपस्थित थी। कृष्ण के माता पिता वसुदेव और देवकी जी के विवाह के समय मामा कंस जब अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुँचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई थी जिसमें बताया गया था कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का अन्त करेगा। अर्थात् यह होना पहले से ही निश्चित था अतः वसुदेव और देवकी को कारागार में रखने पर भी कंस कृष्ण जी को नहीं समाप्त कर पाया। मथुरा के बंदीगृह में जन्म के तुरंत उपरान्त, उनके पिता वसुदेव आनकदुन्दुभि कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं, जिससे बाल श्रीकृष्ण को गोकुल में नन्द और यशोदा का लल्ला कहा गया है । गुजरात के द्वारिका में लोग  श्रीकृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया था । दही हांडी के समान परम्परा के साथ त्योहार मनाते हैं । लोग मंदिरों में लोक नृत्य करते हैं, भजन गाते हैं, कृष्ण मंदिरों जैसे द्वारिकाधीश मन्दिर व नाथद्वारा मन्दिर जाते हैं।  कच्छ मण्डल के क्षेत्र में, किसान अपनी बैलगाड़ियों को सजाते  और सामूहिक भजन गायन और नृत्य के साथ श्रीकृष्ण जीवन से सम्बन्धित प्रदर्शनी निकालते हैं। वैष्णव परम्परा के पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय के महान सन्त दयाराम की कवितायें और रचनाएँ, गुजरात और राजस्थान में जन्माष्टमी के मनाते हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखण्ड, हिमाचल और पंजाब के सभी नगरों और गाँवों में जन्माष्टमी विशेष रूप से मनाते हैं।  जन्माष्टमी  पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के हिंदू वैष्णव समुदायों द्वारा  कृष्ण जन्माष्टमी को मनाने की व्यापक परंपरा का श्रेय १५वीं और १६वीं शताब्दी के शंकरदेव और चैतन्य महाप्रभु के प्रयासों और शिक्षाओं को जाता है।   मीतेई वैष्णव समुदाय में बच्चे लिकोल बनाते हैं। ओड़िशाऔर पश्चिम बंगाल के नबद्वीप में, जनमाष्टमी त्योहार को श्री कृष्ण जयंती व श्री जयंती के रूप में और  भागवत पुराण में श्रीकृष्ण जी के जीवन को समर्पित , १०वें अध्याय को पढ़ा जाता है। अगले दिन को "नन्द उत्सव" श्रीकृष्ण के पालक माता-पिता नन्द और यशोदा के हर्ष के उत्सव का प्रतीक है।  केरल में,  मलयालम कैलेंडर के अनुसार सितंबर को मनाते हैं।  तमिलनाडु में, लोग फर्श को कोलम  से सजाते हैं।  गीता गोविंदम और ऐसे ही अन्य भक्ति गीत कृष्ण की स्तुति में गाए जाते हैं। आंध्र प्रदेश में, श्लोकों और भक्ति गीतों का पाठ त्योहार है।कृष्ण को समर्पित दक्षिण भारतीय मंदिर हैं, तिरुवरुर जिले के मन्नारगुडी में राजगोपालस्वामी मंदिर, कांचीपुरम में पांडवधूथर मंदिर, उडुपी में श्री कृष्ण मंदिर और गुरुवायुर में कृष्ण मंदिर विष्णु के कृष्ण अवतार की स्मृति को समर्पित हैं।  किंवदंती कहती है कि गुरुवायुर में स्थापित श्री कृष्ण की मूर्ति है। नेपाल और जन्माष्टमी बांग्लादेश में  राष्ट्रीय अवकाश है।   जन्माष्टमी पर, बांग्लादेश के राष्ट्रीय मंदिर, ढाकेश्वरी मंदिर ढाका से एक जुलूस शुरू होता है, और फिर पुराने ढाका की सड़कों से आगे बढ़ता है।  जुलूस 1902 का है, लेकिन 1948 में रोक दिया गया परंतु जुलूस 1989 में फिर से प्रारम्भ  किया था। फिजी में जन्माष्टमी को "कृष्णा अष्टमी" के रूप में आठ दिनों तक  जाना जाता है।  फ़िजी में अधिकांश हिंदुओं के पूर्वज उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु से उत्पन्न हुए हैं, एरिज़ोना, संयुक्त राज्य अमेरिका में, गवर्नर जेनेट नेपोलिटानो इस्कॉन को स्वीकार करते हुए जन्माष्टमी पर संदेश देने वाले पहले अमेरिकी नेता थे।  जनमाष्टमी त्योहार कैरिबियन में गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, जमैका और पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश फिजी के साथ-साथ सूरीनाम के पूर्व डच उपनिवेश में हिंदुओं द्वारा व्यापक रूप से मनाया जाता है।  सनातन धर्म  तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और बिहार , तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और उड़ीसा के क्षेत्र में मनाया जाता है । गोकुल , वृंदावन और मथुरा में भगवान कृष्ण का अवतरणोत्सव मनाते हैं ।
 कृष्ण जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर 2023 , भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार विक्रमसंबत 2080  को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। गृहस्थ जीवन वालें  6 सितंबर को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाएंगे। अर्ध कालीन अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र , बुधवार , वृष के चंद्रमा का दुर्लभ संयोग  1993 ई. अर्थात 30 वर्षों में प्रथम  बार एक  साथ जन्माष्टमी  हैं। पुराणों एवं ज्योतिष शास्त्रों  के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि ,  रोहिणी नक्षत्र जन्माष्टमी अर्थात  6 सितम्बर, बुधवार की रात को रोहिणी नक्षत्र और वृष का चंद्रमा दोनों का योग  है। बिना रोहिणी नक्षत्र की जन्माष्टमी को केवला कहा जाता है। वहीं जब रोहिणी नक्षत्र के साथ जन्माष्टमी पड़ेने पर  उसे जयंती योग कहा जाता है। 2023 का  वर्ष का जन्माष्टमी योग के दिन बुधवार भी पड़ने से अति उत्कृष्ट दिन बन जाता है। जयंती योग की जन्माष्टमी के दिन व्रत, अर्चना और उत्सव मनाने से कोटि जन्म के पाप भी नष्ट और  साथ ही इस दिन पूजन से पितरों को भी मोक्ष और शान्ति की प्राप्ति होती है। श्री कृष्ण का जन्म मां देवकी की कोख से कंस के कारावास में  मध्य रात्रि में हुआ था और आधी रात में  मां यशोदा के आँचल में पहुंचाया गया था।