शुक्रवार, जनवरी 26, 2024

सनातन संस्कृति की द्योतक सरयू नदी


पुराणों , आनंद रामायण के अनुसार के अनुसार भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रकट हुई सरयू नदी हैं। दैत्यराज  शंखासुर ने वेदों को चुराकर समुद्र में डाल कर छिपने के बाद भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध कर  ब्रह्मा जी को वेद सौंप दिया था । वेदों को वापस लाकर भगवान विष्णु पसंद होने के दौरान प्रेमाश्रु  की  एक बून्द आंसू टपकने से ब्रह्माजी ने  भगवान विष्णु के प्रेमाश्रु  को  मानसरोवर में डाल दिया था ।  भगवान विष्णु की पुत्री सरजू थी । सरयू नदी को ऋषि वशिष्ठ द्वारा  भूतल पर लाया गया था । कर भगवान सूर्य की भार्या एवं विश्वकर्मा की पुत्री माता संज्ञा के पौत्र एवं  विवस्वान के  पुत्र वैवस्वत मनु   ने भगवान विष्णु की आँसू से ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित आँसू युक्त सरोवर को बाण के प्रहार से धरती के बाहर निकालने के कारण  सरयू नदी की उत्पत्ति हुई थी । उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में सरयू नदी को शारदा , ब्रिटिश मानचित्रकार ने पूरे मार्ग पर्यंत घाघरा या गोगरा ,  सरयू ,  सरजू ,  देविका, रामप्रिया कहा जाता है। अयोध्या की सरयू नदी के तट पर भगवान राम का जन्म , क्रीड़ा क्षेत्र एवं जल समाधि थी । सरयू निचली घाघरा को भगवाब राम के जन्म स्थान अयोध्या शहर से होकर बहने वाली  अयोध्या के निवासियों के साथ सरयू नदी से वैकुंठ लोक गए और बाद में स्वर्ग में देवता बन गए थे । पुराणों के अनुसार सरयू भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रकट हुई थी । सरयू नदी का उद्गम भगवान विष्णु के आंसू से हुआ है. आनंद रामायण के यात्रा कांड के अनुसार, दैत्यराज शंखासुर  ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया था और खुद  छिपा था।  शारदा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी सरयू नदी है । सरयू नदी को घाघरा नदी  भारत के उत्तरी भाग में बहने वाली  उत्तराखण्ड के बागेश्वर ज़िले के। कुमाऊँ का  समुद्र तल से 4150 मीटर व 13620 फिट की ऊँचाई सरमूल पर्वत का नान्दीमुख  में उत्पन्न होती हुई  शारदा नदी में विलय होने के कारण  काली नदी उत्तरप्रदेश के  शारदा नदी फिर घाघरा नदी में विलय होने के निचले भाग को पुनः सरयू नदी कहा   है। सरयू नदी के किनारे इक्ष्वाकु वंशीय राजा अयोध्य द्वारा अयोध्या नगर बसाया हुआ है।  सरयू नदी के तट पर आजमगढ़, सीतापुर , बाराबंकी, बहरामघाट, बहराइच, गोंडा, अयोध्या, टान्डा, राजेसुल्तानपुर, दोहरीघाट नगर अवस्थित है। निर्देशांक 25°45′18″N 84°39′11″E / 25.755°N 84.653°E पर प्रविहित होने वाली सरयू नदी 350 किमी व 270 मील  है । सरयू नदी को सरयू , शारदा , घाघरा , सरयू , काली एवं गंगा कहा जाता है। सरयू नदी के ऊपरी हिस्से में काली नदी  उत्तराखंड में बहती हुई  मैदान में उतरने के पश्चात्  करनाली या घाघरा नदी आकर मिलने के कारण सरयू नदी  है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में सरयू नदी को शारदा नदी ,  ब्रिटिश मानचित्रकार मार्ग पर्यंत घाघरा या गोगरा के नाम से प्रदर्शितकर  सरयू  नाम देविका, रामप्रिया इत्यादि हैं। सरयू नदी बिहार के आरा और छपरा के पास गंगा में मिल जाती है। सरयुपारी व सरयुपारीण ब्राह्मण समूह का नाम सरयू नदी के कारण पड़ा है । सरयू नदी के तट पर निवास करने वाले ब्राह्मणों को सरयू  नदी के कारण सरयुपारीण ब्राह्मण कहा गया.है। वैदिक  नदी सरयू  ऋग्वेद 4.13.18 के अनुसार  इंद्र द्वारा दो आर्यों के वध की सरयू नदी के तट पर किया गया है ।  सरयू नदी की सहायक राप्ती नदी एवं  अरिकावती नदी  उल्लेख है। रामायण के अनुसार सरयू अयोध्या से होकर बहती है ।  सरयू नदी के किनारे राजा दशरथ की राजधानी और राम की जन्भूमि  है। वाल्मीकि रामायण बालकांड  के अनुसार  विश्वामित्र ऋषि के साथ शिक्षा के लिये जाते हुए श्रीराम द्वारा सरयू  नदी द्वारा अयोध्या से सरयू के गंगा संगम तक नाव से यात्रा वर्णित है। कालिदास के  रघुवंशम् , कम्ब रामायण एवं  रामचरित मानस में तुलसीदास ने सरयू  नदी का गुणगान किया है। बौद्ध ग्रंथों में  सरभ   ,  कनिंघम , मेगस्थनीज द्वारा वर्णित सोलोमत्तिस नदी , टालेमी  द्वारा वर्णित सरोबेस  नदी के रूप में मानते हैं।

रविवार, जनवरी 14, 2024

सौर संस्कृति और मकर संक्रांति

सौर संस्कृति  और मकर संक्रांति
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
 सनातन धर्म संस्कृति एवं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान सूर्य उतरायण में  मकर पर आने के कारण  मकर संक्रांति कहा गया है।  भगवान सूर्य  मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण  और मकर राशि में प्रवेश  77 वर्ष  अर्थात  15 जनवरी 1947 ई. के बाद 15 जनवरी 2014 को  वरीयान योग , , रवि योग का संयोग और बुध एवं मंगल धनु राशि मे विराजमान होने तथा मकर संक्रांति पर 3 राशियों पर पलटने के कारण दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है ।  खरमास की समाप्ति  होती है ।. सूर्य के उत्तरायण होने पर खरमास भी समाप्त होगा और मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे.  मकर संक्रांति बहुत खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन सालों बाद कुछ दुर्लभ योग का संयोग बन रहा है । मकर संक्रांति का दिन सूर्य की पूजा के लिए विशेष होता है. । राजनीति, लेखन में कार्य कर रहे लोगों के लिए  लाभदायक होती है.। मकर संक्रांति  15 जनवरी 2024 सोमवार को वरीयान योग प्रात: 2 बजकर 40 मिनट से लेकर रात 11 बजकर 11 मिनट तक तथा रवि योग -सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा रहेगा । 
पांच साल व 2019 के बाद  मकर संक्रांति सोमवार के दिन पड़ने से भगवान सूर्य संग भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होगा । सिंह राशि - मकर संक्रांति पर सूर्य का उत्तरायण आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा. रवि और वरीयान योग का संयोग करियर में आपको सफलता के साथ संपन्नता भी प्रदान करेगा. नौकरीपेशा लोगों के कार्य में वृद्धि होगी, नई जिम्मेदारियां मिलेंगी जो लंबे समय तक शुभ परिणाम दे सकती हैं. व्यापार में बढ़ोत्तरी के प्रबल योग है. वैवाहिक जीवन में खुशियां लौटेंगी और लव पार्टनर से रिश्ते मधुर होंगे. ।मेष राशि - मकर संक्रांति पर सूर्य मेष राशि के 10वें भाव में प्रवेश करेंगे. कुंडली का ये भाव करियर और व्यवसाय से जुड़ा होता है. ऐसे में मकर संक्रांति पर बन रहे शुभ संयोग का आपको धन और प्रतिष्ठा में लाभ देगा. कार्यक्षेत्र में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा. उन्नति में आ रही बाधाएं दूर होंगी. सैलेरी में वृद्धि के संकेत हैं. बिजनेस में पार्टनरशिप के काम में कामयाबी मिलेगी. । मीन राशि - मीन राशि वालों के लिए मकर संक्रांति बहुत लाभदायी रहेगी. इस दौरान आपकी आय के स्त्रोत बढ़ेंगे. लंबे समय से व्यापार को लेकर चल रही डील फाइनल हो सकती है. लव लाइफ भी पहले से और बेहतर होगी. वर्कप्‍लेस पर बहुत ही बेहतरीन माहौल रहेगा, लोग आपके काम की तारीफ करेंगे. नौकरी के संबंध में अच्‍छा प्रस्‍ताव मिल सकता है।पौष मास ,  जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन भगवान  सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करने के कारण मकर संक्रांति है। तमिलनाडु में पोंगल ,  कर्नाटक, केरल,तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में संक्रांति , उत्तरप्रदेश एवं   बिहार में 'तिला संक्रांत' ,  उत्तरायण , मकर संक्रांति भी कहते हैं। 14 जनवरी के बाद से भगवान सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर होने के  कारण 'उतरायण'  कहते है। वैज्ञानिक पद्धति के मुख्य कारण पृथ्वी का निरंतर 6 महीनों के समय अवधि के उपरांत भगवान सूर्य  उत्तर से दक्षिण की ओर जाने के कारण होता है। मकर संक्रांति छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर,राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु , उत्तरायण  : गुजरात, उत्तराखण्ड , उत्तरैन , माघी संगरांद : जम्मू , शिशुर , सेंक्रात : कश्मीर घाटी , माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब ,भोगाली बिहु : असम , खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार , पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल ,मकर संक्रमण : कर्नाटक , उत्तर प्रदेश  में , चुड़ा दही , तील , गुड़ , खिचड़ी ,  बांग्लादेश :में शकरैन , पौष संक्रान्ति , नेपाल में  माघे संक्रान्ति या 'माघी संक्रान्ति' 'खिचड़ी संक्रान्ति' , थाईलैण्ड में सोंगकरन , लाओस में  : पि मा लाओ ,   ,म्यांमार :थिंयान ,कम्बोडिया : मोहा संगक्रान ,श्री लंका : पोंगल, उझवर तिरुनल ,नेपाल में मकर-संक्रान्ति कहा जाता है। नेपाल में मकर संक्रांति  को माघे-संक्रांति (माघे-संक्रान्ति), सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में 'माघी'  , नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिये जाते हैं। तीर्थस्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर आन्ध्र प्रदेश और तेलंगण राज्यों में विशेष 'भोजनम्' का आस्वादन , मकर संक्क्रान्ति के अवसर पर मैसुरु में एकगाय को अलंकृत किया गया है। जम्मू में  उत्तरैन' और 'माघी संगरांद ,  उत्रैण, अत्रैण' अथवा 'अत्रणी', माघी संगराद , डोगरा घरानों में इस दिन माँह की दाल की खिचड़ी का मन्सना (दान) के उपरांत माँह की दाल की खिचड़ी को खाया जाता है। इसलिए इसको 'खिचड़ी वाला पर्व' भी कहा जाता है। जम्मू में 'बावा अम्बो' जी का  जन्मदिवस मनाया जाता है। उधमपुर की देविका नदी के तट पर, हीरानगर के धगवाल में और जम्मू के अन्य पवित्र स्थलों पर पुरमण्डल और उत्तरबैह्नी पर  मेले लगते है भद्रवाह के वासुकी मन्दिर की प्रतिमा को आज के दिन घृत से ढका जाता है।उत्तर प्रदेश का प्रयागराज में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला को  माघी  नाम से जाना जाता है। गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में  खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व  है। बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी , उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। महाराष्ट्र में  विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा  है।  बिहारवासी दिन में दही चुरा खाकर और रात के समय उरद दाल और चावल की खिचड़ी बनाकर ,  लाई या ढोंढा चुरा या मुरमुरे का लड्डू का  महत्व है। बंगाल में स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मकर संक्रांति के  दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था।  गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। 
तमिलनाडु में  पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल मानते हैं। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करतहै।असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। राजस्थान में सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।  महिलाएँ  सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।  देवभूमि उत्तराखंड में इस मुख्य पर्व मकर सक्रांति को घुघुतिया त्योहार के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड के लोग अपने दिन की शुरुआत सुबह नहाने से करते हैं। घर की महिलाओं द्वारा रसवाडें को मोल मिट्टी की सहायता से लिपाई पुताई की जाती है। उसके बाद सभी लोगों द्वारा अपने घर के देवता स्वरूप देवी देवताओं की पूजा की जाती है। और दिन के भोजन में घुघुतिया बनाए जाते हैं। घुघुतिया आटे की सहायता से बनाए जाते हैं। जिसमें विभिन्न प्रकार की आकृतियों के माध्यम से घुघुतिया तैयार किए जाते हैं।  घुघुतिया को परिवार के छोटे बच्चों द्वारा कागा (कौवा) अपने हाथ के माध्यम से खिलाया जाता है।  जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवात है। माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥। मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं,के स्वामी एवं न्याय देव  किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। मकर संक्रांति का उत्सव भगवान सूर्य की पूजा के लिए समर्पित है. भक्त इस दिन भगवान सूर्य की पूजा कर आशीर्वाद मांगते हैं ।वसंत ऋतु की शुरुआत और नई फसलों की कटाई शुरू होती है. मकर संक्रांति पर भक्त यमुना, गोदावरी, सरयू और सिंधु नदी में पवित्र स्नान करते हैं और भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं ।यमुना स्नान और जरूरतमंद लोगों को भोजन, दालें, अनाज, गेहूं का आटा और ऊनी कपड़े दान करना शुभ माना जाता है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर भारत के विभिन्न भागों में, गुजरात में, पतंग उड़ाने की प्रथा है। भगवान भास्कर अपने पुत्र मकर राशि के स्वामी एवं न्याय देव शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं।  मकर संक्रान्ति के दिन  गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
करपी , अरवल , बिहार 804419
9472987491

मंगलवार, जनवरी 09, 2024

मानवीय समन्वय स्थापित करता है पतंगोत्सव

अतीत से जुड़ाव का प्रतीक। पतंगोत्सव
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
शास्त्रों और सनातन धर्म की भिन्न भिन्न ग्रंथों में पतंग उत्सव  पतंगों का त्योहार  मकर संक्रांति के अवसर पर मनाए जाने का उल्लेख मिलता है । सनातन धर्म संस्कृति में प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को  अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव मनाया जाता है ।नए वर्ष का प्रारम्भ   उत्तर भारत में लोहड़ी , मकर संक्रांति,  भारत में पतंग उड़ाने ,  पवित्र नदियों में स्नान करने , खिचड़ी का सेवन करने ,  तिल और गुड़ दूध , चुड़ा खाने का रिवाज है ।.  मकर संक्रांति को कोलकता में पौष सांगक्रान्ति , तमिलनाडु में पोंगल , और गुजरात में उत्तरायण ,  पतंग जरूर उड़ाने की परंपरा है। सनातन  धर्म एवं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान सूर्य  मकर राशि के अंदर दाखिल होने  के बाद से मौसम में  बदलाव आता है और ठण्ड थोड़ी कम हो जाती है ।. किसान अपनी फसलों की कटाई करना शुरू कर देते हैं. वर्ष  में  बारह संक्रांति में  जनवरी के महीने में आने वाली मकर  संक्रांति को काफी शुभ है । मकर संक्रांति का भगवान सूर्य  की उत्तरायण गति प्रारम्भ करते हैं ।अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव ( उत्तरायण) इंटरनेशनल काइटडे गुजरात राज्य प्रत्येक वर्ष  उत्तरायण या मकर संक्रांति के दिन अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव का बड़े स्तर पर आयोजन करता है ।   पतंग उड़ाने का प्रारम्भ 2800 वर्ष पूर्व चीन द्वारा की गई  थी ।. चीन में पतंग का आविष्कार मोजी और लू बैन  ने किया था ।  पतंग का इस्तेमाल बचाव अभियान के लिए  संदेश के रूप में, हवा की तीव्रता और संचार के लिए किया जाता था । पाचवीं  शताब्दी ई. पू . पतंग का आविष्कार किया था । चीन से  पतंग उड़ाने का ये चलन धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया और विश्व  के देशों में पतंग उड़ाई जाती है । पतंग देशों  में भारत, अमेरिका, मलेशिया और जर्मनी में चिली देश में स्वतंत्रता दिवस के दौरान वहां के निवासी पतंग उड़ाकर अपना स्वतंत्रता दिवस , जापान में भी पतंग बाजी देवता को खुश करने के लिए ,  अमेरिका में जून के महीने में पतंग से जुड़े कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ।  भारत में मकर संक्रांति के दिन पतंगें आसमान में उड़ाते हैं ।
 यजुर्वेद तृतीय अध्याय मंत्र 8 के अनुसार सूर्य का  उत्तरायण होने पर मकर संक्रांति व पतंगोत्सव . मन्त्र. : त्रि शद्धाम विराजति वाक् *पतङ्गाय* धीयते प्रति वस्तोरह द्युभि: ।। और मनुस्मृति के श्लोक (1/21) के अनुसार ““संसार की सारी वस्तुओं के नाम, कर्मों के नाम का मूल-आदि-स्रोत वेद है । महर्षि दयानन्द जी के अनुसार  पतङ्गाय पद  “पतति गच्छतीति पतङ्गस्तस्मा अग्नये (धीयते) धार्यताम्” अर्थात् चलने चलाने आदि गुणों से प्रकाशयुक्त अग्नि के लिए  पतन-पातन आदि गुणों से प्रकाशित एवं गतिशील अग्नि के लिए  पतंग दिखती या उड़ती हैं । रामचरित मानस में मकर संक्रांति के अवसर पर त्रेतायुग में  प्रथम बार भगवान राम  ने बचपन में पतंग उड़ाने का उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति त्योहार पर पतंगबाजी की शुरुआत हुई थी । मुगल बादशाह और नवाब तो खासतौर पर पतंगबाजी किया करते थे. साइमन कमीशन के विरोध के लिए भी पतंग की भूमिका रही है।मकर संक्रांति को पंतग पर्व के अवसर पर बाजार रंग-बिरंगे पतंगों से सजे नजर आने लगते हैं । तमिल की तन्दनानरामायण के अनुसार  भगवान राम ने पतंग उड़ाने के बाद पतंग  इन्द्रलोक में चली गई थी ।वैज्ञानिक कारण पतंग उड़ाने का संबंध स्वास्थ्य , पतंग उड़ाने से कई व्यायाम ,  सर्दियों की सुबह पतंग उड़ाने की शरीर को ऊर्जा मिलती और त्वचा संबंधी विकार दूर होते हैं । भगवान सूर्य उत्तरायण  होने का प्रारंभ  मकर रेखा में प्रवेश करनेके कारण मकर संक्रांति  है । मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति प्रमुख हैं.रामचरितमानस का बालकांड के अनुसार 'भगवान श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी । 'राम इक दिन चंग उड़ाई। इंद्रलोक में पहुँची जाई॥' पंपापुर से हनुमान को बुलवाया बाल रूप में मकर संक्रांति' का पर्व के अवसर पर श्रीराम भाइयों और मित्र मंडली के साथ पतंग उड़ाने लगे. वह पतंग उड़ते हुए देवलोक तक जा पहुंची थी । जब भगवान राम ने पतंग उड़ाई तो ये इंद्रलोक तक जा पहुंची. जहां इेद्र के बेटे जयंत की पत्नी इस पतंग पर मोहित हो गई थी । पतंग को देख कर इंद्र के पुत्र जयंत की पत्नी बहुत आकर्षित हो गई. वह उस पतंग और पतंग उड़ाने वाले के प्रति सोचने लगी थी । उसने तुरंत पतंग पकड़कर अपने पास रख ली ।  सोचने लगी कि पतंग उड़ाने वाला उसे लेने के लिए जरूर आएगा. जब पतंग दिखाई नहीं दी, तब बालक श्रीराम ने बाल हनुमान को पता लगाने के लिए रवाना किया. पवन पुत्र हनुमान आकाश में उड़ते हुए इंद्रलोक पहुंचे. वहां उन्होंने देखा कि एक स्त्री पतंग को हाथ में पकड़े है ।जब उन्होंने पतंग मांगी तब उस स्त्री ने "यह पतंग किसकी है? " हनुमानजी ने रामचंद्रजी का नाम बताया. उसने उनके दर्शन की इच्छा प्रकट की. हनुमान ये सुनकर लौट आए. सारी बात श्रीराम से कही. श्रीराम ने हनुमान को वापस वापस भेजा. ये कहलवाया कि वे उन्हें चित्रकूट में अवश्य ही दर्शन देंगे. हनुमान ने ये जवाब जयंत की पत्नी को कह सुनाया, जिसे सुनकर जयंत की पत्नी ने पतंग छोड़ दी थी ।चीन के बौद्ध तीर्थयात्रियों द्वारा पतंगबाज़ी का शौक़ भारत पहुंचा था ।
संत नाम्बे ,  मुग़ल बादशाहों के शासन काल में पतंगों की शान थी । बादशाह और शाहज़ादे पतंगबाजी खेल को बड़ी रुचि से खेला करते थे । पतंगों के पेंच लड़ाने की प्रतियोगिताएं में जीतने वाले को इनाम मिलता था.। मुगल बादशाह और नवाब  पतंगबाजी शौकीन थे । वाजिद अली शाह प्रत्येक वर् पतंगबाजी के लिए  दिल्ली आता था.। मुग़ल सम्राट बहादुरशाह ज़फ़र भी पतंगबाज़ी का शौकीन था।  लखनऊ, रामपुर, हैदराबाद आदि शहरों के नवाबों में पतंगों में अशरफियां बांधकर कर उड़ाया करते थे.। वर्ष 1927 में 'गो बैक' वाक्य के साथ लिखी हुई पतंगों को उड़ाया गया था ।
योकाइची विशाल पतंग महोत्सव्स, जो हर वर्ष मई के चौथे रविवार को जापान के हिगाशियोमी में मनाया जाता है। हवा से  हल्की पतंग को  हैलिकाइट या  हैलिकाइट पतंगे कहते है। पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व तीसरी सदी में चीन का दार्शनिक हुआंग थीम  द्वारा रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस का प्रयोग किया गया था । चीन के बाद पतंगों का फैलाव जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तर अफ़्रीका तक हुआ है । चीन में पतंग का अंधविश्वासों में भी विशेष स्थान है। चीन में किंन राजवंश के शासन के दौरान पतंग उड़ाकर उसे अज्ञात छोड़ देने को अपशकुन माना जाता था। साथ ही किसी की कटी पतंग को उठाना  बुरे शकुन के रूप में देखा जाता था। थाईलैंड में पतंग धार्मिक आस्थाओं के प्रदर्शन का माध्यम से थाइलैंड का  राजा द्वारा पतंग जाड़े के मौसम में भिक्षु और पुरोहित देश में शांति और खुशहाली की आशा में उड़ाते थे। थाइलैंड के लोग अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाने के लिए वर्षा ऋतु में पतंग उड़ाते थे। विश्व  के देशों में 27  नवम्बर को पतंग उडा़ओ दिवस (फ्लाई ए काइट डे) के रूप में मनाते हैं।यूरोप में पतंग उड़ाने का चलन नाविक मार्को पोलो के आने के बाद आरंभ हुआ। मार्को पूर्व की यात्रा के दौरान प्राप्त हुए पतंग के कौशल को यूरोप में लाया था ।  यूरोप के लोगों और फिर अमेरिका के निवासियों ने वैज्ञानिक और सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पतंग का प्रयोग किया था । ब्रिटेन के  वैज्ञानिक डाक्टर नीडहम ने चीनी विज्ञान एवँ प्रौद्योगिकी का इतिहास (ए हिस्ट्री ऑफ चाइनाज साइंस एण्ड टेक्नोलोजी)  पुस्तक में पतंग को चीन द्वारा यूरोप को दी गई  वैज्ञानिक खोज बताया है।  पतंग को देखकर मन में उपजी उड़ने की लालसा ने  मनुष्य को विमान का आविष्कार करने की प्रेरणा थी ।पतंग उड़ाने का शौक चीन, कोरिया और थाइलैंड समेत दुनिया के कई अन्य भागों से होकर भारत में पहुंचा था । राजस्थान में  पर्यटन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष तीन दिवसीय पतंगबाजी प्रतियोगिता होती है । दिल्ली और लखनऊ में भी पतंगबाजी के प्रति आकर्षण है। दीपावली के अगले दिन जमघट के दौरान तो आसमान में पतंगों की कलाबाजियां देखते ही बनती हैं। दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी पतंग उडा़ने का चलन है।मानव सभ्यता के विकास में कितना महत्वपूर्ण योगदान पतंग है। आसमान में उड़ने की मनुष्य की आकांक्षा को तुष्ट करने और डोर थामने वाले की उमंगों को उड़ान देने वाली पतंग दुनिया के विभिन्न भागों में अलग अलग मान्यताओं परम्पराओं तथा अंधविश्वास की वाहक  रही है। मानव की महत्त्वाकांक्षा को आसमान की ऊँचाईयों तक ले जाने वाली पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है । ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित है। चीन और जापान में पतंगों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिये  किया जाता था। चीन में किंग राजवंश के शासन के दौरान उड़ती पतंग को यूं  छोड़ देना दुर्भाग्य और बीमारी को न्यौता देने के समान माना जाता था। कोरिया में पतंग पर बच्चे का नाम और  जन्म की तिथि लिखकर उड़ाया जाता था ताकि उस वर्ष उस बच्चे से जुड़ा दुर्भाग्य पतंग के साथ ही उड़ जाए। थाईलैंड में बारिश के मौसम में लोग भगवान तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने के लिये पतंग उड़ाते थे जबकि कटी पतंग को उठाना अपशकुन माना है। विश्व में 14 जनवरी 1989 से विश्व पतंग दिवस मनाने के अवसर पर पतंगोत्सव प्रारम्भ है । मानवीय समन्वय स्थापित करने सशक्त माध्यम पतंगोत्सव है । गुजरात , राजस्थान , दिल्ली तमिलनाडु , उड़ीसा , बिहार , झारखंड , असम , उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र  आदि राज्यों में पतंगोत्सव मनाया जाता है। स्वतंत्रता एवं व्यक्तित्व का प्रतीक एवं अतीत से जुड़ाव का रूप और देवताओं की याद करता है पतंगोत्सव । पतंग को पतंग , गुड्डी ,कनकोवा, चंग , कत्माप , झिमुआन , तिलंगी कहा जाता है । फाह्यान ने 5 वी शताब्दी ह्वेनसांग ने 7वी शताब्दी  में पतंग महोत्सव का उल्लेख किया है ।
करपी , अरवल , बिहार 804419
9472987491 

शनिवार, जनवरी 06, 2024

मानवीय चेतना की दर्पण लेखन और कैथी लिपि

मानवीय चेतना है दर्पण लेखन  और कैथी लिपि 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
लिपि शास्त्रों में दर्पण लिपि या दर्पण लेखन का उल्लेख मिलता है। दर्पण लेखन उस दिशा में लिखने से बनता है जिससे  किसी भाषा के लिए प्राकृतिक तरीके से विपरीत होता है । मिरर राइटिंग का  आधुनिक उपयोग एम्बुलेंस के सामने पाया जा सकता है । इंग्लैंड  में एम्बुलेंस के हुड पर मिरर लेखन एम्बुलेंस", समान टाइपोग्राफी के साथ दिखाई देता है । लियोनार्डो दा विंची ने अपने व्यक्तिगत नोट्स मिरर लेखन सुलेख तुर्क साम्राज्य में लोकप्रिय बनाया था । प्रतिबिंबित पाठ लिखने की क्षमता ऑस्ट्रेलियाई अखबार के प्रयोग ने 65 हजार पाठकों की संख्या में 10 सच्चे दर्पण-लेखकों की पहचान थी । बाएं हाथ के लोगों का उच्च अनुपात दाएं हाथ के लोगों की तुलना में बेहतर दर्पण लेखक हैं ।  जापान के साप्पोरो में होक्काइडो यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में न्यूरोसर्जरी विभाग द्वारा किए गए प्रयोग में, वैज्ञानिकों ने प्रस्तावित किया कि दर्पण लेखन की उत्पत्ति आकस्मिक मस्तिष्क क्षति या तंत्रिका संबंधी बीमारियों, में कंपकंपी, पार्किंसंस रोग, या के कारण हुई क्षति से होती है। स्पिनो-अनुमस्तिष्क अध: पतन। बाएं हाथ की तरह, बच्चों में कभी-कभी दर्पण लेखन को "सही" किया जाता है। लियोनार्डो दा विंची की प्रसिद्ध विट्रुवियन मैन छवि पर नोट्स दर्पण लेखन में हैं। माटेओ ज़ाकोलिनी ने 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में दर्पण लिपि में प्रकाशिकी, रंग और परिप्रेक्ष्य पर खंड ग्रंथ लिखा था । तुर्क सुलेख में अठारहवीं शताब्दी का दर्पण लेखन कार्य किया था । 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के दौरान बेक्ताशी आदेश के बीच ओटोमन साम्राज्य में दर्पण समरूपता में व्यवस्थित सुलेख के रूप में जाना जाने वाला चित्रमय ग्रंथ लोआकप्रिय थे ।  दर्पण लेखन परंपरा की उत्पत्ति पश्चिमी अरब प्रायद्वीप के रॉक शिलालेखों में पूर्व-इस्लामिक काल  है। हालिया अध्ययन  ग्रीक में दर्पण लेखन  सीरिया-फिलिस्तीन, मिस्र और कॉन्स्टेंटिनोपल के लिए देर से पुरातनता के दर्पण शिलालेखों की प्रारंभिक है। इस्लामी कला में, दर्पण सुलेख को मुथन्ना या मुसेना के रूप में जाना जाता है। बौस्ट्रोफेडन , अम्बिग्राम , अहरीमन के लिए मध्य फ़ारसी , पारंपरिक रूप से उल्टा लिखा जाता है ।  न्यूज इन साइंस - मिरर राइटिंग: माय जीन्स मेड मी डू इट ,  ,  मुथन्ना / इस्लामी सुलेख में मिरर लेखन: इतिहास, सिद्धांत, और सौंदर्यबोध , जे ए गॉटफ्राइड, क्रुबा सुंदर, फैजा शंकर, अंजन चटर्जी । "एक्वायर्ड मिरर राइटिंग एंड रीडिंग: एविडेंस फॉर रिफ्लेक्टेड ग्रैफेमिक रिप्रेजेंटेशन" , मिरर राइटिंग: एक असामान्य घटना पर न्यूरोलॉजिकल रिफ्लेक्शन में दर्पण लेखन का उल्लेख किया गया है। दर्पण लेखन को गोडी लिपि का रूप 1928 ई. में लेवोग्रफी क्रिटली ने सिनिस्टर्ड लेखन , 1896 ई. में एफ जेम्स , 1879 ई. में एमेंन ग्रीयर , 1928 ई. में क्रीचलि 1920 ई. में गार्डेन एवं 1976 ई. में स्ट्रिकल ऑफ मैन में दर्पण लेखन का उल्लेख मिलता है। 
दर्पण लिपि का प्रयोग देवर्षि नारद द्वारा रत्नाकर को शिक्षा दी गयी थी । दर्पण लेखन कसे ज्ञान प्राप्त करने के बाद रत्नाकर बाल्मीकि बन गए थे । उत्तरप्रदेश के गौतमनगर का दादरी ,  आदर्श नगर निवासी देवेंद्र कुमार गोयल की पत्नी रविकान्ता गोयल के पुत्र 10 फरवरी1967 ई. में जन्मे यांत्रिक अभियंता पीयूष गोयल द्वारा दर्पण लेखन में कई पुस्तकें लिखी है । दर्पण लेखनकार पीयूष गोयल द्वारा 2003 से 2022 ई. तक 17 पुस्तकों में श्रीमद्भगवद्गीता , हिंदी और  इंग्लिश , हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला को सुई की नोक से और रविन्द्र नाथ ठाकुर की पुस्तक गीतांजलि को  मेहंदी विष्णु शर्मा की पंचतंत् कार्बन , पुर प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की मेरी इक्यावन  कविताओं को मैजिक सीट पर लकड़ी की कलम और गोयल की पीयूष वाणी कविता को फैब्रिक पेन लाइनर से लिखा गया है ।
 विश्व की 64 लिपियों में कैथी लिपि आ उल्लेख किया गया है ।कैथी लिपि को कायथी" , अबुगिडा ,  "कायस्थी"कयती , कयथी , बिहारी लिपि  का अंग   ब्राह्मी लिपि का उपयोग उत्तरी और पूर्व भारत के  उत्तर प्रदेश , झारखंड और बिहार क क्षेत्रों  राज्यों में   कानूनी, प्रशासनिक और निजी रिकॉर्ड लिखने के लिए किया जाता था।  कैथी लिपि का उपयोग अंगिका , बज्जिका , अवधी , भोजपुरी , हिंदुस्तानी , मगही , मैथिली , और सहित विभिन्न इंडो-आर्यन भाषाओं के लिए किया गया है । शेरशाह केयाल में १६वीं-२०वीं शताब्दी के मध्य गुप्त काल , मुगल काल , ब्रिटिश साम्राज्य काल तक कैथी लिपि को पारंपरिक रूप से प्रशासक और लेखाकार , रियासतों और ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकारों के साथ निकटता से जुड़ा रहने के कारण  राजस्व लेनदेन, कानूनी दस्तावेजों और शीर्षक कार्यों के रिकॉर्ड लिखने और बनाए रखने के लिए नियोजित किया गया था । शाही अदालतों , जमींदारों , मुनिबों , दीवान  और संबंधित निकायों के सामान्य पत्राचार और कार्यवाहीएवं  इस्तेमाल की गई कैथी लिपि में किया गया है । कैथी लिपि का एक मुद्रित रूप, 19वीं शताब्दी के मध्य तक था । शेर शाह सूरी के सिक्कों पर कैथी लिपि में है। मुगल काल के दौरान लिपि का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था । 1880 के दशक में, ब्रिटिश राज के दौरान , स्क्रिप्ट को बिहार की कानून अदालतों की आधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी गई थी । कैथी बंगाल के पश्चिम में उत्तर भारत की सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली लिपि थी। 1854 में, 77,368 स्कूल प्राइमर कैथी लिपि में थे, जबकि देवनागरी में 25,151 और महाजनी में 24,302 थे । हिंदी पट्टी ' में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली तीन लिपियों में कैथी को व्यापक रूप से तटस्थ माना जाता था, क्योंकि इसका उपयोग हिंदू और मुस्लिम दोनों द्वारा दिन-प्रतिदिन के पत्राचार, वित्तीय और प्रशासनिक गतिविधियों के लिए समान रूप से किया जाता था, जबकि देवनागरी धार्मिक साहित्य और शिक्षा के लिए मुसलमानों द्वारा हिंदुओं और फारसी लिपि द्वारा उपयोग किया जाता है। इसने कैथी को समाज के अधिक रूढ़िवादी और धार्मिक रूप से इच्छुक सदस्यों के लिए प्रतिकूल बना दिया, जिन्होंने हिंदी बोलियों के देवनागरी-आधारित और फ़ारसी-आधारित प्रतिलेखन पर जोर दिया। उनके प्रभाव के परिणामस्वरूप और कैथी की अविश्वसनीय रूप से बड़ी परिवर्तनशीलता के विपरीत देवनागरी प्रकार की व्यापक उपलब्धता के कारण, देवनागरी को विशेष रूप से उत्तर पश्चिमी प्रांतों में बढ़ावा दिया गया था, जिसमें वर्तमान उत्तर प्रदेश शामिल है । कैथी को शिकास्ता नास्तिक के साथ सादृश्य द्वारा "शिकस्ता नगरी" भी उपनाम दिया गया था , क्योंकि कैथी का देवनागरी से संबंध उस समय के व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले डॉट-लेस शिकास्ता नास्तिक और अधिक औपचारिक मुद्रित नास्तिक लिपियों के बीच संबंधों के समान माना जाता था। 19वीं शताब्दी के अंत में , अवध में जॉन नेस्फील्ड , बिहार में इनवर्नेल के जॉर्ज कैंपबेल और बंगाल की  शिक्षा में कैथी लिपि के उपयोग की वकालत की।  कैथी में कानूनी दस्तावेज लिखे गए, और 1950 से 1954 ई.  तक कैथी लिपि  बिहार के  जिला अदालतों की आधिकारिक कानूनी लिपि थी।  कैथी लिपि का रूप देवनागरी , सिलहेती नगरी , गुजराती लिपि में उल्लेख है। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने कैथी कैरेक्टर 1899 ,  किंग, क्रिस्टोफर आर. 1995. वन लैंग्वेज, टू स्क्रिप्ट्स: द हिंदी मूवमेंट इन नाइनटीन्थ सेंचुरी नॉर्थ इंडिया। न्यू योर्क, ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस में कैथी लिपि की प्रमुखता से उल्लेखनीय है । 
गुप्त लिपि 319 से 518 ई. तक कैथी लिपि , 1540 ई. में कैथी लिपि को अर्बक लिपि , शिवस्था लिपि कहा जाता था । बंगाल का लेफ्टिनेंट गवर्नर सर ऑसले हार्नले  ने 1840 ई.  में कैथी लिपि की महत्ता बतायी थी । सारण का धुर्व कुमार ने कैथी लिपि : एक परिचय , प्यास कौवा , भावेश कुमार का भूमि मापन  में कैथी का उल्लेख मिलता है । ओरंगाबाद जिले का कुटुंबा प्रखण्ड के परता कल्पवृक्ष मंदिर परिसर का ठाकुरवाड़ी में कयथी लिपि का प्रयोग किया गया है । 

मंगलवार, जनवरी 02, 2024

Historical place Nabinagar

 NabNabinagar A village undar the police station of the some name situated on the left bank of the punpun river 18 miles south of Aurangabad . It hasa railway station on the Barun Dalte ganj railway .Nabinagar is the centre of a considerable trade in blankets, brass ,vessels and contains a tiled hut known as the temple of shokha baba a legendary saint ,. Persons suffering from snake bite are brought there as a last resource . If the patient recovers clarified butter and molasses  are offered to sikha Baba . Nahin agar thana  has an area of 308 square milles  the number of occupied house is 23283 and the number of inhabited villages 547 . Chandragarh which is very close to Nabinagar is the resistance of family of chauhan Rajputs who come originally from Mewad . The family rendered valuable service to the British government during the insurrection in 1857 and the British government granted to three members of the family the titel of Rai Bahadur  a sword and a lakhan. The village Contains in old fort built in 1694 AD . The entire Nabinagar thana had an excellent system of  irrigation in the past . The traces of the old Bolega and Mukki pains have now almost disappeared . Kanchan bandh has-been taken now under Major irrigation scheme and is under repairs. Nabinagar thana has rocky stratum and there a dry belt about three to four miles board on either side of the railway line from Anootha to Nabinagar railway station . The place suffer actually due to scarcity of water during summer season and people suffers acutely due to scarcity of water during summer season and people have to fetch water from the river Son at a distance of three to four miles on Bullock carts . Boring system is not possible due to rocky stratum.  Tanks for storage of water are  popular . The greatest need of the area is the supply of water both for drinking water purposes as well as for irrigation purposes.
In Nabinagar proper just in  front of the thana building there is. A suraj mandir where during kartik and chaiti chhath a mela is held to worship the sun god . There. Are many cattle fair in the Nahin agar police station  such as at Anjania , sonaura and Bariawan villages . In  the village Ganana there is temple of goddess  Bhagwati where several goats are daily slughtered in the month of health . There is also a mela patronised by women at the village Tatwa on the kartik purnima day .