रविवार, दिसंबर 31, 2023

सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक कल्पतरु दिवस

 परता कल्प वृक्ष व कल्पतरु दिवस
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
बिहार के औरंगाबाद जिले का  कुटुम्बा प्रखंड के परता में कल्पतरु मंदिर परिसर में कल्पतरु मंदिर एवं राधाकृष्ण मंदिर 18 वीं शताब्दी को   बनवायी गई थी । झारखंड से प्रवाहित होनेवाली   बटाने नदी किनारे कल्पतरु मंदिर   अवस्थित है ।और झारखंड की सीमा है । ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान विष्णुपुर का क्षेत्र का  जमींदार बंगाली द्वारा कल्पतरु क्षेत्र का विकास किया गया था । श्याम बाजार कोलकाता के जमींदार  बंगाली को पुत्र-प्राप्ति की मन्नतें मांगी पर  कल्पवृक्ष ने पूरा किया  और निर्माता के दर्द को हरकर मंदिर उठ खङा हुआ  था । कल्पवृक्ष परिसर आस्था का केंद्र ,  पुत्र प्राप्ति , बीमारी ठीक करने , बेटी के विवाह इत्यादि को पूरी करने में आ रहे व्यवधान को दूर करता  है । जमींदार  बंगाली ने  मंदिर बनवायी और  पुजारी  के खर्च के लिए पूरा इंतजाम के लिए पिचासी बीघा कल्पवृक्ष  मंदिर को दान दिया  था ।  कल्प वृक्ष मंदिर ईंट, चूना--गारा से निर्मित  और लकङी के मोटे--मोटे तख्तों को दरवाजे के ऊपर रखा गया है । मंदिर बेहद सामान्य ऊंचाई के हैं । मंदिर की दीवार पर दो जगह छोटे- छोटे शिलापट्ट लगे  भाषा संस्कृत है । चहारदीवारी से लगा हुआ गौशाला के गायों के दूध से कल्पवृक्ष का पटवन होता है । कार्तिक पूर्णिमा को सुथनिया मेला 9 एकड़ भूमि में हैं ।  भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किशुनपुर मेला का उल्लेख किया है । कल्पवृक्ष मंदिर के परिसर में ठाकुरवाड़ी , कल्पवृक्ष की पूजा होती है। कल्पवृक्ष का वनस्पतिक नाम एडेनसोनिया डिजटेटा की ऊंचाई लगभग साठ से सत्तर फीट होती है । तने का घेरा डेढ सौ फीट और  हजार दो हजार साल से  अधिक है । आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार कल्पवृक्ष के द्वारा सकारात्मक ऊर्जा विकसित  किया जाता है । वृक्ष किडनी, दमा, एलर्जी, हृदय और उदर रोगों के उपचार में बेहद उपयोगी तथा विटामिन सी और कैल्सियम का उम्दा स्रोत होता है ।  शास्त्रों  के अनुसार समुद्र मंथन की चौदह रत्न में निकलीं कल्पवृक्ष  है । कल्पवृक्ष को मनोकामना सिद्धि का उत्तम साधन माना जाता है । स्वर्ग से धरती पर कल्पवृक्ष आया है । कल्पवृक्ष का फूल पिले रंग और फल की लंबाई 6 इंच एवं   प्रजातियों में फल गोल  होता है । अम्बा वाले वृक्ष के फल का आवरण बेहद कठोर होता जिसे बिना भारी पत्थर के प्रहार के तोङना मुश्किल होता था । आवरण पर मखमली रोयां  हरा  और पकने पर हरापन लिये पीले रंग का होता था । तोङने पर भीतर सफेद रंग की सूखी परत जमी होती जिसके नीचे थोङी --थोङी दूरी पर काले-जामुनी रंग के बीज होते है। सफेद पदार्थ से युक्त बीज को मुंह में डालकर जब चूसने पर  स्वाद खट्ठा--मीट्ठा लगता है । कल्प वृक्ष के फल कोविलायती इमली कहा जाता है । कल्पवृक्ष की पहले दो शाखाएं गिरने के पश्चात 2010 में जाकर अंतिम रूप से गिर गया था  । रासायनिक उपचार से गिरा दिया गया !  व्यवसाय खूब फले--फूले इसके लिए उस वृक्ष को जाना पङा । असली कारण यह था कि किसी को पता ही नहीं चला कि यह कल्पवृक्ष है । कल्पवृक्ष ओरंगाबाद जिले की  पहचान है। झारखंड राज्य का  हरिहरगंज , बिहार का औरंगाबाद और नवीनगर के होते हुए अम्बा परता गांव में स्थित कल्पवृक्ष का दर्शन होता है ।
 रामकृष्ण मठ मठवासी व  रामकृष्ण मिशन के अनुयायियों ,  वेदांत सोसायटी ,  भारतीय रहस्यवादी और हिंदू पुनर्जागरण के व्यक्ति रामकृष्ण की शिक्षाओं का पालन हेतु प्रत्येक वर्ष 01 जनवरी को कल्पतरु दिवस एवं कल्पतरु दिवस मनाया जाता  हैं । रामकृष्ण अनुयायियों के अनुसार  रामकृष्ण ने खुद को अवतार , या पृथ्वी पर अवतार लेने वाले भगवान के रूप में 01 जनवरी 1886 ई. को प्रकट किया था ।  उत्सव कोसीपोर गार्डन हाउस या कोलकाता के पास उद्यानबाती , रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण आदेश की स्थान  रामकृष्ण ने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे। भारत में 1 जनवरी 2010 को, अन्य वर्षों की तरह, "देश भर से 01 जनवरी 2010 ई. से रामकृष्ण परमहंस के  भक्त द्वारा  कल्पतरु उत्सव के लिए दक्षिणेश्वर में प्रसिद्ध काली मंदिर , भारत के पूर्वी रेलवे ने  काली मंदिर तक ले जाने के लिए १ जनवरी २०१० को दो विशेष ट्रेनें निर्धारित कीं गयी थी ।  प्रथम  कल्पतरु दिवस, 1 जनवरी 1886, रामकृष्ण और उनके अनुयायियों के जीवन में "असामान्य परिणाम और अर्थ की घटना" थी। रामकृष्ण उस समय गले के कैंसर से पीड़ित होने के कारण  स्वास्थ्य गिर रहा था। उनके निकटतम अनुयायी उत्तरी कलकत्ता के कोसीपोर के पड़ोस में एक बगीचे के घर में चले गए थे । 1 जनवरी 1886 ई. उसके लिए अपेक्षाकृत अच्छा दिन और वह बगीचे में टहलने लगा। वहाँ, उन्होंने अपने  अनुयायी गिरीश से  प्रश्न पूछा, जो वे अक्सर पहले पूछते थे, "आप कौन कहते हैं कि मैं हूँ?"  गिरीश ने जवाब दिया कि उनका मानना ​​​​है कि रामकृष्ण "भगवान के अवतार थे, मानव जाति के लिए दया से पृथ्वी पर आए"। रामकृष्ण ने उत्तर दिया, "मैं और क्या कहूं? आप जाग्रत हों।" रामकृष्ण ने तब एक "उत्साही अवस्था" में प्रवेश किया और अपने सभी अनुयायियों को छूना शुरू कर दिया। जिन लोगों को उन्होंने छुआ, उन्होंने चेतना की विभिन्न नई अवस्थाओं का अनुभव करने की सूचना दी, जिसमें विशद दर्शन भी शामिल थे। एक के लिए, वैकुंठ, दर्शन बने रहे और दैनिक जीवन में हस्तक्षेप किया, ताकि उसे डर हो कि कहीं वह पागल न हो जाए।   शिष्य, रामचंद्र दत्ता ने समझाया कि रामकृष्ण, वास्तव में, कल्पतरु व कल्पवृक्ष है ), संस्कृत साहित्य और हिंदू पौराणिक कथाओं का "इच्छा-पूर्ति करने वाला वृक्ष" बन गया था । रामचंद्र  दत्ता ने  रहस्यमय घटना के स्मरणोत्सव का नाम "कल्पतरु दिवस" ​​रखा।  घटना ने "चेलों के लिए ब्रह्मांडीय आयात के अर्थ और यादें और उन्हें रामकृष्ण की मृत्यु के लिए भी तैयार होने के बाद, १६ अगस्त १८८६ को हुआ था । शरतचंद्र चक्रवर्ती को स्वामी सरदानंद द्वारा  पौराणिक इच्छा-पूर्ति करने वाला पेड़ (कल्पतरु) कुछ भी अच्छा या बुरा देता है, और रामकृष्ण ने केवल वही दिया जो आध्यात्मिक रूप से लाभकारी था। सारदानंद ने इस घटना को "स्वयं को प्रकट करके सभी भक्तों को भय से मुक्ति का उपहार" के रूप में संदर्भित किया है। कल्पवृक्ष व कल्पतरु दिवस सकारात्मक व ज्ञान का प्रतीक है ।

बुधवार, दिसंबर 20, 2023

patna gaya railway line

Patna -  Gaya Railways
Satyendra kumar pathak
The district is singularly well served by  railways , which have made the headquarters station the center of a number of radiating line and of a busy railway system . In the old district Gazetteer of Gaya , published on in 1906 and Bihar district Gazetteers Gaya , published  on in1957 , it is mentioned .  The patna Gaya  Railway which runs in the north was 0pend in the year 1876 . It  connects Gaya  with the main line of the East Indian railway now Eastern railway at patna junction , 34 . 5 miles of it and 6 station excluding Gaya fall within the district . The station are Gaya junction , chakand , Bela , Makhdumpur ,rehata , jehanabad court , jehanabad  , Nadawan ,  Taregana , Nadaul , punpun , parasabazar and patna junction .

गुरुवार, दिसंबर 14, 2023

खरमास और तुलसी उपासना

खरमास और तुलसी की उपासना 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
सनातन धर्म की संस्कृति का वैदिक , ज्योतिष शास्त्र औरविभिन्न  पंचांग के अनुसार भगवान सूर्य 12 राशियों का भ्रमण करते हुए बृहस्पति की राशियों, धनु और मीन में प्रवेश करने पर 30 दिनों यानि एक महीने की अवधि को खरमास कहा गया  हैं। खर मास में सभी प्रकार के हवन, विवाह चर्चा, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, द्विरागमन, यज्ञोपवीत, विवाह, हवन या  धार्मिक कर्मकांड आदि कार्य निषेध हैं । खरमास में सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, खरमास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नरक का भागी होता है। खरमास भारतीय पंचांग पद्धति में प्रति वर्ष सौर पौष  हैं। उत्तराखण्ड में  'मलमास' या 'काला महीना' और खरमास विभन्न क्षेत्रों में कहा जाता है। खरमास के दौरान सनातन  में धार्मिक कृत्य और शुभ मांगलिक कार्य  , अनेक प्रकार के घरेलू और पारम्परिक शुभ कार्यों की चर्चाओं के लिए वर्जित है। देशाचार के अनुसार नवविवाहिता कन्या  खरमास के अन्दर पति के साथ संसर्ग नहीं करती महीने के दौरान अपने मायके में आकर रहना पड़ता है। खर मास में भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण  खरमास में किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्तिनरकका भागी होता है।  गरुड़ पुराण में  पौष मास की मृत्यु का अधोगामी परलोक  है।  महाभारत में  खरमास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से वेध दिया था। सैकड़ों बाणों से विद्ध हो जाने के बावजूद भीष्म पितामह का प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण खरमास  था । खरमास में प्राण त्याग करने पर उनका अगला जन्म नरक की ओर जाएगा।  अर्जुन से पुनः  तीर चलाने के लिए कहा जो उनके सिर पर विद्ध होकर तकिए का काम करे। इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास के अन्दर अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे रहे और  सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई थी । उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा के दौरान कहीं  सूर्य को एक क्षण  रुकने की इजाजत नहीं है। सूर्य के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने की दयनीय स्थिति से निबटने के लिए सूर्य तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने हेतु रुकने जाते हैं।  तभी उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा में विराम नहीं लेना है। नहीं तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा। सूर्य भगवान ने चारों ओर देखा, तत्काल भगवान सूर्य जल कुंड के आगे खड़े दो गधों को  रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए है । गधे यानी खर, अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमज़ोर होकर धरती पर प्रकट हुआ था ।  पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभी  सूर्य की तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं। सूर्य की धनु संक्रांति के कारण मलमास होता है। सूर्य जब बृहस्पति की राशि धनु अथवा मीन में होता है  दोनों राशियां सूर्य की मलीन राशि मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का बृहस्पति में परिभ्रमण श्रेष्ठ नहीं माना जाता है।  वर्ष में दो बार सूर्य बृहस्पति की राशियों में संपर्क में आता है। प्रथम द्रष्टा आंग्ल पंचांग के अनुसार 16 दिसंबर से 15 जनवरी तथा द्वितीय द्रष्टा14 मार्च से 13 अप्रैल है । द्वितीय दृष्टि में सूर्य मीन राशि में रहते हैं। सूर्य की गणना के आधार पर पौष  माह को धनुर्मास एवं मीन मास कहा जाता है। खरमास में तुलसी उपासना एवं भगवान सूर्य , विष्णु , शिव एवं तुलसी  की उपासना मत्वपूर्ण है । पौष मास में चावल से बनी पीठा खाने का महत्व है । 
करपी , अरवल , बिहार 
94 72987491

मुजफ्फरपुर की विरासत

मुजफ्फरपुर की सांस्कृतिक विरासत 
सत्येंद्र कुमार पाठक
 भारत के बिहार राज्य के तिरहुत प्रमण्डल के मुज़फ्फरपुर ज़िले में स्थित  का मुख्यालय मुजफ्फरपुर  बूढ़ी गण्डक नदी के किनारे बसा हुआ है। निर्देशांक: 26°07′23″N 85°23′28″E / 26.123°N 85.391°E पर मुज़फ्फरपुर  की जनसंख्या 2011 के अनुसार 3,93,724 में भाषा हिन्दी, बज्जिका, मैथिली , भोजपुरी , मगही  बोली जाती है । 3122 .56 वर्ग कि. मि. क्षेत्रफल में विकशित एवं ब्रिटिश साम्राज्य का आमिल व राजस्व अधिकारी मुजफ्फर खां के नामकरण पर मुजफ्फरपुर रख कर 01 जनवरी  1875 ई. को मुजफ्फरपुर जिला का सृजन किया गया है ।  मुजफ्फरपुर जिले की जनसंख्या 2011 जनगणना के अनुसार 4801062 आबादी 387 ग्रामपंचायत , 1811 गावँ ,16 प्रखंड एवं थाने 29 है । मुजफ्फरपुर के पूरब दरभंगा ,पश्चिम में चंपारण ,दक्षिण में वैशाली उत्तर में सीतामढ़ी जिले की सीमाओं से घीरा है । मुज़फ़्फ़रपुर उत्तरी बिहार  में सूती वस्त्र उद्योग, लाह की चूड़ियों, शहद तथा आम और लीची  फलों के उम्दा उत्पादन के लिये जाना जाता है । बिहार के जर्दालु आम, मगही पान और कतरनी धान को जीआइ टैग (ज्योग्रफिकल इंडिकेशन) मिल चुका है। मुज़फ़्फ़रपुर थर्मल पावर प्लांट  बिजली उत्पादन केंद्र  है। प्राचीन काल में मुजफ्फरपुर मिथिला  राज्य का अंग था। बाद में मिथिला में वज्जि गणराज्य की स्थापना हुई। तीसरी सदी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों से यह पता चलता है कि यह क्षेत्र काफी समय तक महाराजा हर्षवर्धन के शासन में रहा। उनकी मृत्यु के बाद स्थानीय क्षत्रपों का कुछ समय शासन रहा तथा आठवीं सदी के बाद यहाँ बंगाल के पाल वंश के शासकों का शासन शुरु हुआ जो 1019 तक जारी रहा। तिरहुत पर लगभग 11 वीं सदी में चेदि वंश का शासन रहा। सन 1211 से 1226 बीच गयासुद्दीन एवाज़ तिरहुत का पहला मुसलमान शासक बना। चम्पारण के सिमराँव वंश के शासक हरसिंह देव के समय 1323 ई . में तुग़लक वंश के शासक गयासुद्दीन तुग़लक ने  अधिकार कर लिया लेकिन उसने सत्ता मिथिला के शासक कामेश्वर ठाकुर को सौंप दी। चौदहवीं सदी के अंत में तिरहुत समेत पूरे उत्तरी बिहार का नियंत्रण जौनपुर के राजाओं के हाथ में चला गया जो तबतक जारी रहा जबतक दिल्ली सल्तनत के सिकन्दर लोदी ने जौनपुर के शासकों को हराकर अपना शासन स्थापित नहीं किया। इसके बाद विभिन्न मुग़ल शासकों और बंगाल के नवाबों के प्रतिनिधि इस क्षेत्र का शासन चलाते रहे। पठान सरदार दाऊद खान को हराने के बाद मुगलों ने नए बिहार प्रांत का गठन किया जिसमें तिरहुत को शामिल कर लिया गया।1764 में बक्सर की लडाई के बाद यह क्षेत्र सीधे तौर पर अंग्रेजी हुकूमत के अधीन हो गया। सन 1875 में प्रशासनिक सुविधा के लिये तिरहुत का गठन कर मुजफ्फरपुर जिला बनाया गया। मुजफ्फरपुर ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूरण भूमिका निभाई है। महात्मा गाँधी की दो यात्राओं ने  क्षेत्र के लोगों में स्वाधीनता के चाह की नयी जान फूँकी थी। खुदीराम बोस, जुब्बा साहनी तथा पण्डित सहदेव झा जैसे अनेक क्रांतिकारियों की कर्मभूमि रही है। 1930 के नमक आन्दोलन से लेकर 1942 के भारत छोडो आन्दोलन के समय तक यहाँ के क्रांतिकारियों के कदम लगातार आगे बढ़ते रहे। मुजफ्फरपुर का वर्तमान नाम ब्रिटिस काल के राजस्व अधिकारी मुजफ्फर खान के नाम पर पड़ा है। मुजफ्फरपुर को इस्लामी और हिन्दू सभ्यताओं की मिलन स्थली के रूप में भी देखा जाता रहा है। दोनों सभ्यताओं के रंग यहाँ गहरे मिले हुये हैं और यही इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान भी है। मुजफ्फरपुर जिले  का क्षेत्रफलः 3172 वर्ग  कि . मि .में नदियाँ: गंडक, बूढी गंडक, बागमती तथा लखनदेई प्रवाहित है मुज़फ्फरपुर जिले में प्रखंड में औराई, बोचहाँ, गायघाट, कटरा, मीनापुर, मुरौल, मुसहरी, सकरा, काँटी, कुढनी, मोतीपुर, पारु, साहेबगंज, सरैयाबंदरा मरवां है । साहित्यकार : रामबृक्ष बेनीपुरी , जानकी बल्लभ शास्त्री का स्मारक है । बसोकुंड: जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली के निकट बसोकुंड में लिच्छवी कुल में हुआ था। वसोकुण्ड जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र है। यहाँ अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान है। जुब्बा साहनी पार्क: भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा साहनी ने १६ अगस्त १९४२ को मीनापुर थाने के इंचार्ज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था। बाद में पकड़े जाने पर उन्हें ११ मार्च १९४४ को फांसी दे दी गयी थी ।
बा‍बा गरीबनाथ मंदिर: मुजफ्फरपुर के बाबा गरीबनाथ  शिव मंदिर है। सावन के महीने में गरीबनाथ  शिवलिंग का जलाभिषेक करने वालों भक्तों की  भीड़ उमड़ती है। मुजफ्फरपुर का चतुर्भुज स्थान में स्थित भगवान चतुर्भुज मंदिर में भगवान चतुर्भुज , बैरवा नातन , भगवान सूर्य मूर्ति , भगवान शिवलिंग है ।साहू पोखर परिसर में स्थापित मंदिरों में  भगवान राम , राधाकृष्ण , रामभक्त हनुमान जी की मूर्ति  , शिव मंदिर  , तलाव , काली मंदिर , शिरूकहीं शरीफ (कांटी) का तेगे अली शाह का मज़ार , , कोठिया मजार , मुजफ्फरपुर का शहीद भगवानलाल एवं शहीद खुदीराम स्‍मारक , मुजफ्फरपुर का मज़ार हज़रत दाता कम्मल शाह मजार  , मुजफ्फरपुर का हज़रत दाता मुज़फ़्फ़रशाह मजार , कटरा का बागमती नदी के तट पर स्थित चामुडा स्थान, इस्लामपुर का सूफी मौलाना इब्राहिम रहमानी मजार  , कांटी का छह्न्न्मास्तिका मन्दिर , प्रतापपुर का बाबाजी मनोकामनामहादेव ब्रह्म , मां मनोकामना मंदिर , हैं ।
1875 में प्रशासनिक सुविधा के लिए तिहुत के पहले जिले को विभाजित करके बनाया गया था। वर्तमान जिला मुजफ्फरपुर 18 वीं शताब्दी में अपने अस्तित्व में आया और ब्रिटिश राजवंश के तहत एक अमील (राजस्व अधिकारी) मुजफ्फर खान के नाम पर रखा गया। पूरब में चंपारण और सीतामढ़ी जिलों के उत्तर, दक्षिण वैशाली और सारण जिलों पर, पूर्व दरभंगा और समस्तीपुर जिलों पर और पश्चिम सारण से गोपालगंज जिलों से घिरा है। मुजफ्फरपुर अब इसके स्वादिष्ट शाही लीची और चाईना लीची के लिए प्रसिद्ध है । भारतीय महाकाव्य रामायण के माध्यम से एक मजबूत विरासत की धारा को बहुत लंबा रास्ता खोज सकते हैं, जो अब भी भारतीय सभ्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किंवदंती के साथ शुरू करने के लिए, राजर्षि जनक, विदेह पर शासन कर रहे थे, इस पूरे क्षेत्र का पौराणिक नाम पूर्वी नेपाल और उत्तरी बिहार भी शामिल था। इस क्षेत्र में एक जगह सीतामढ़ी, पवित्र हिंदू विश्वास का महत्व रखती है, जहां वैदेही: विदेह के राजकुमारी सीता  एक मिट्टी के बर्तन से बाहर जीवन में उठे थे, जबकि राजर्षि जनक ने भूमि में हल चलाई थी। मुजफ्फरपुर का इतिहास वृज्ज्न गणराज्य के उदय के समय में है। वृज्ज्न गणराज्य आठ समूहों का एक सम्मिलन था, जिसमें लिच्छवी सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली थे।  मगध के शक्तिशाली साम्राज्य ने 51 9 ई०पू० में अपने पड़ोसी लिच्छवी से वैवाहिक संबंधों को समाप्त करना था। लिच्छवी के पड़ोसी सम्पदा के साथ अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण किया और तिरहुत पर अपना प्रभाव बढ़ाया। यह वही समय था कि पाटलीपुत्र की स्थापना अजातशत्रु ने पवित्र नदी गंगा के किनारे गांव पाटली में की थी, जिसने नदी के दूसरी तरफ लिच्छवीयों पर सतर्क रहने के लिए एक अजेय गढ़ का निर्माण किया था। अंबाराती, मुजफ्फरपुर से 40 किलोमीटर दूर वैशाली के प्रसिद्ध शाही नर्तक अमरापाली का गांव है। वैशाली, धार्मिक पुनर्जागरण का केंद्र, बसु कंड, महावीर का जन्मस्थान, 24 वें जैन तीर्थंकर और भगवान बुद्ध के एक समकालीन, अंतरराष्ट्रीय बोर्डर से दर्शकों को आकर्षित करना जारी रखते।
ह्यूएन त्सांग की यात्रा से पाल राजवंश के उदय तक, मुजफ्फरपुर उत्तरी भारत के एक शक्तिशाली महाराजा हर्षवर्धन के नियंत्रण में था। 647 ए डी के बाद जिला स्थानीय प्रमुखों को पारित कर दिया। 8 वीं शताब्दी के ए.ए. में, पाला राजाओं ने तिहुत पर 101 9 ए.यू. तक केन्द्रीय भारत के चेदी राजाओं तक अपना कब्ज़ा करना जारी रखा और सेना वंस के शासकों द्वारा 11 वीं सदी के नजदीक तक जगह ले ली। 1211 और 1226 के बीच, बंगाल के शासक घैसुद्दीन इवाज, तिहुत का पहला मुस्लिम आक्रमणकारी था। हालांकि, वह राज्य को जीतने में सफल नहीं हो पाए लेकिन श्रद्धांजलि अर्पित कीं।सन 1323 में गयासुद्दीन तुगलक ने जिले के ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित किया। मुजफ्फरपुर का इतिहास सिमरॉव वंश (चंपारण के पूर्वोत्तर भाग में) और इसके संस्थापक नुयुपा देव के संदर्भ के बिना अधूरे रहेगा, जिन्होंने पूरे मिथिला और नेपाल पर अपनी शक्ति बढ़ा दी थी। राजवंश के अंतिम राजा हरसिंह देव के शासनकाल के दौरान, तुगलक शाह ने 1323 में तिरहुत पर आक्रमण किया और क्षेत्र पर नियंत्रण प्राप्त किया। तुगलक शाह ने तीरहुत के प्रबंधन को कामेश्वर ठाकुर को सौंप दिया। इस प्रकार, तिरहुत की संप्रभु शक्ति हिंदू प्रमुखों से मुसलमानों तक जाती रही, परन्तु हिंदू प्रमुख निरंतर पूर्ण स्वायत्तता का आनंद उठाते रहे। चौदहवीं शताब्दी के अंत में उत्तरी हिंदुओं सहित पूरे उत्तर बिहार में तहहुत जौनपुर के राजाओं के पास चले गए और लगभग एक सदी तक उनके नियंत्रण में बने रहे, जब तक दिल्ली के सिकंदर लोदी ने जौनपुर के राजा को हरा दिया। इस बीच, बंगाल के नवाब हुसैन शाह इतना शक्तिशाली हो गए थे कि उन्होंने तिरहूत समेत बड़े इलाकों पर अपना नियंत्रण का प्रयास किया। दिल्ली के सम्राट 14 99 में हुसैन शाह के खिलाफ थे और राजा को हराने के बाद तिरहुत पर नियंत्रण मिला। बंगाल के नवाबों की शक्ति कम हो गई और महुद शाह की गिरावट और पतन के साथ तिरहुत सहित उत्तर बिहार शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। यद्यपि मुजफ्फरपुर पूरे उत्तर बिहार के साथ कब्जा कर लिया गया था, लेकिन बंगाल के नवाब, दाऊद खान के दिनों तक, इस क्षेत्र पर छोटे-छोटे प्रमुख सरदारों ने प्रभावी नियंत्रण जारी रखा था। दाद खान का पटना और हाजीपुर में गढ़ और उसके बाद मुगल वंश के तहत बिहार का एक अलग सुबादा गठित हुआ और तिरहुत ने इसका एक हिस्सा बना लिया। 1764 में बक्सर की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत ने उन्हें पूरे बिहार पर नियंत्रण दिया और वे पूरे जिले को जीतने में सफल हुए। 1857 में दिल्ली में विद्रोहियों की सफलता ने मुजफ्फरपुर  जिले के अंग्रेजी निवासियों को गंभीर चिंता का सामना करना पड़ा और क्रांतिशील उत्साह पूरे जिले में व्याप्त हो गया। मुजफ्फरपुर ने अपनी भूमिका निभाई और 1 9 08 ई.  के प्रसिद्ध बम मामले की स्थल थी। युवा बंगाली क्रांतिकारी, खुदी राम बोस, केवल 18 साल के लड़के को प्रिंगल कैनेडी की गाड़ी में बम फेंकने के लिए फांसी पर लटका दिया गया था । वास्तव में किंग्सफोर्ड के लिए गलत था, मुजफ्फरपुर जिला न्यायाधीश स्वतंत्रता के बाद, इस युवा क्रांतिकारी देशभक्त के लिए एक स्मारक मुज़फ्फरपुर में बनाया गया था, जो अब भी खड़ा है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद देश में राजनीतिक जागृति ने मुजफ्फरपुर जिले में राष्ट्रवादी आंदोलन को  प्रेरित किया।
 नदियों के के तट पर  भोग और ऐश्वर्य के बीच वैराग्य और निष्कामता का सन्देश का स्थल  वज्जिका भाषा मे तीरभुक्ति अपभ्रंश भाषा में तिरहुत आधुनिक मुजफ्फरपुर नामकरण किया गया है । बुद्ध काल में मुजफ्फरपुर को तीरभुक्ति कहा जाता था । मुजफ्फरपुर में सन 1908 ई० में महान क्रांतिकारी अमर शहीद खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी द्वारा घटित बमकांड ने जिस प्रकार अंग्रेजी सत्ता की नींव हिलाकर चुनौती दी एवं शहीद जुब्बा सहनी, वैकुण्ठ शुक्ल और भगवान् लाल के नाम  शहादत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं ।  मुजफ्फरपुर के युवाओं की राजनीतिक-वैचारिक चेतना की प्रखर पहचान में राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी की चंपारण यात्रा के क्रम में  मुजफ्फरपुर आगमन से हुई थी ।. चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों पर  नीलहे अंग्रेज अफसरों के दमन के विरुद्ध महात्मा गाँधी के आन्दोलन में संगठित किसानों के नेता पं० राजकुमार शुक्ल के साथ यहाँ के कुछ समर्पित सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चंपारण में अथक संघर्ष किया था । महात्मा गाँधी, डॉ.राजेन्द्रप्रसाद एवं जे.बी.कृपलानी के नेतृत्व में गाँधी के समर्पित अनुयायी ध्वजा प्रसाद साहू और बाबू लक्ष्मी नारायण ने बिहार खादी आन्दोलन की ज़मीन तैयार की थी । धार्मिक क्षेत्र में,बाबा गरीबनाथ , नगर के मध्य रमना में स्थित बाबू उमाशंकर प्रसाद द्वारा स्थापित वरदायिनी भगवती त्रिपुरसुन्दरी के अष्टधातु निर्मित कच्ची सराय रोड स्थित माता बगलामुखी मंदिर  सिद्ध पीठ ,  वैष्णव आस्था का प्रतीक चतुर्भुज स्थान मंदिर  सात सौ वर्ष का है । काव्य भाषा के रूप में खड़ीबोली की स्वीकृति का उद्घोष सर्वप्रथम मुजफ्फरपुर से बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री ने 1887 ई० में किया था. प्रसिद्ध  उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री की “ चंद्रकांता “ और  “चंद्रकांता संतति” की रचना ,  भारतीय कथाजगत के शलाकापुरुष शरतचंद्र ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास “श्रीकांत “ के महत्वपूर्ण अंश इसी शहर में लिखे. कवीन्द्र रवींद्र नाथ टैगोर की  बड़ी पुत्री माधवीलता बंगाली परिवार में ब्याही थीं । .1913 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त होने के बाद गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर  का पहला नागरिक अभिनन्दन  मुजफ्फरपुर में हुआ था. ललित कुमार सिंह “नटवर” जैसे बहुविध साहित्यकार एवं अभिनेता , रामवृक्ष बेनीपुरी, रामजीवन शर्मा जीवन और मदन वात्स्यायन ,  उत्तर छायावाद के शिखर पुरुष महाकवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का सम्पूर्ण जीवन  “निराला निकेतन “  स्मृतियों की धरोहर के रूप में जाता है । मुजफ्फरपुर की  जनभाषा बज्जिका में लोकजीवन और लोकसाहित्य की विशाल सम्पदा है । मगनीराम, हलधर दास, बुनियाद दास ,  डॉ. अवधेश्वर अरुण रचित “बज्जिका रामाएन” के रूप में इसकी काव्य चेतना शिखर पर पहुँच चुकी है संगीत परंपरा 18 वीं सदी में पं. विष्णुपद मिश्र की हवेली संगीत गायकी से शुरू होती है. वे नगर के एक प्राचीन मंदिर में ध्रुपद शैली में भजन गाया करते थे.उसके बाद 19 वीं सदी में अब्दुल गनी खां खयाल गायक ,  पं. सीताराम हरि दांडेकर राष्ट्रीय स्तर के संगीतज्ञ थे । चित्रकला के क्षेत्र में महादेव बाबू,सरोजिनी वाजपेयी, तपेश्वर विजेता और लक्ष्मण भारती ने अपने कलात्मक चित्रों और पेंटिग्स से प्रान्त के बाहर भी प्रसिद्धि प्राप्त की है । विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक दुर्गाप्रसाद चौधरी की वैज्ञानिक खोज को देश स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त है । मुजफ्फरपुर में स्थित रामकृष्ण मिशन में मेरिटेशन ध्यान कक्ष , काली मंदिर है वहीं नवयुवक समिति ट्रष्ट की स्थापना 1916 ई. एवं गांधी पुस्तकालय 1935 ई. में स्थापित कर साहित्य चेतना जगाया गया हसि । नटवर साहित्य परिषद की ओर से सहित्यिकी गतिविधियों में सक्रिय है । महात्मा गांधी द्वारा 1916 ई. 1920 ई. 1927 ई. एवं 1934 ई. में मुजफ्फरपुर का दौरा कर आजादी की चेतना जगाई थी । गांधी जी द्वारा लगाई गई वट वृक्ष लंगट सिंह कॉलेज परिसर में मूक गवाह है । गांधी जी की स्मृति में एल .एस. कॉलेज परिसर में कूप , गांधी जी का स्नान मुद्रा का तैल चित्र है । बिहार विश्वविद्याल , भारत के प्रथम राष्ट्र पति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की कीर्तियाँ  पड़ी है । पूर्व मंत्री केदारनाथ प्रसाद द्वारा गरीबनाथ झांकियां निकाल कर शैव धर्मालंबियों की इक्षाएँ कर रहे है । मुजफ्फरपुर से हिंदी पाक्षिक निर्माण भारती द्वारा संस्कृति और क्षेत्र की विरासत को प्रकाशित कर रहे है । 
519 ई.पू. तिरहुत विकसित थी । तिरहुत को  राजा हर्षवर्धन के अधीन 647 ई. में विकसित कर वैष्णव , शैव , सौर , शाक्त सम्प्रदाय का क्षेत्र की स्थापना हुई थी । चेदि एवं पाल वंश का शासन 1019 ई.  , 1211 ई. में बंगाल का शासक धैसउद्दीन खां , 1323 ई. में गयासुद्दीन तुगलक द्वारा तिरहुत का प्रबंधक कामेश्वर ठाकुर , बंगाल का गवर्नर ग्यासुद्दीन खान द्वारा  1213 ई. और 1227 ई. में त्रिभुक्ति का शासक नरसिंहदेव को नियुक्त किया था ।। बादशाह  औरंगजेब काल में  बिहार का गवर्नर दाऊद खां ने 1660 ई. में तिरहुत को सूबा घोषित किया था । मुजफ्फरपुर को त्रिभुक्त , त्रिभुक्ति , तिरहुत कहा गया है । नागवंशीय काल में  त्रिभुक्त और  बुद्धकाल में तीरभुक्ति , हर्षवर्द्धन काल 647 ई. में तिरहुत  ,    एवं 1875 ई. में मुजफ्फरपुर  कहा गया है । ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा तिरहुत प्रमंडल का सृजन 15 मई 1908 ई. में की गई  ।  महात्मा गांधी द्वारा दिसंबर 1920 एवं जनवरी 1927 को मुजफ्फरपुर का दौरा कर आजादी का मंत्र दिया गया था । तिरहुत वज्जिका भाषीय क्षेत्र में वज्जिका प्रदेश का मुख्यालय तिरहुत था ।