सोमवार, अप्रैल 29, 2024

मानसिक चेतना का द्योतक नृत्य

: समृद्धि और एकता का द्योतक नृत्य 
 विश्व नृत्य दिवस  सामाजिक जीवन की एकता का द्योतक नृत्य है ।  प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस व इंटरनेशनल डांस डे डांस के जादूगर कहे जाने वाला जॉर्जेस नोवेरे को समर्पित है। नृत्य या डांस महज मनोरंजन का साधन नहीं  भावनाओं के साथ, कला व संस्कृति को दर्शाने और सेहतमंद रहने का माध्यम  है कथक, भरतनाट्यम, हिप हॉप, बैले, साल्सा, लावणी विश्व  में लोकप्रिय है । अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस का प्रारंभ 29 अप्रैल  1982 में अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान की अंतरराष्ट्रीय नृत्य समिति की ओर से की गई थी । संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को का गैर सरकारी संगठन  अंतरराष्ट्रीय नृत्य समिति  है। अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस, नृत्य के जादूगर फादर ऑफ वैले जीन जॉर्जेस नोवेरे के जन्म   29 अप्रैल 1727 को  हुआ था। नृत्य समिति ने जॉर्जेस नोवरे के जन्मदिन 29 अप्रैल1982  को अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस मना कर नोवरे को  श्रद्धांजलि अर्पित की थी।  नृत्य पर ‘लेटर्स ऑन द डांस’ नाम की पुस्तक में  नृत्य से जुड़ी एक-एक चीज़ मौजूद हैं।  अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस का मकसद ना विश्व   के डांसर्स का प्रोत्साहन बढ़ाना है, बल्कि लोगों को डांस से होने वाले फायदों के बारे में भी बताना है। नृत्य कला के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद को बढ़ावा मिलता है,। जिससे समृद्धि और एकता का वातावरण बनता है।  
विश्व की साम वेद , स्मृति ,संहिता भिन्न ग्रंथों में नृत्य का उल्लेख मिलता है।  नृत्य का उद्भव भगवान शिव द्वारा किया गया है । भगवान शिव को नटराज कहा गया है । नृत्य का  वैश्विक उत्सव  यूनेस्को की प्रदर्शन कलाओं के लिए मुख्य भागीदारी , इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट की नृत्य समिति द्वारा आयोजन प्रति वर्ष 29 अप्रैल समर्पित है। जीन-जॉर्जेस नोवरे (1727-1810) के जन्म की सालगिरह   बैले  शास्त्रीय या रोमांटिक बैले का "पिता" या निर्माता  है। हम आज इसे "आधुनिक बैले" के रूप में नहीं जानते हैं क्योंकि विश्व  में नृत्य दिवस  पर आयोजित कार्यक्रमों और त्योहारों के माध्यम से नृत्य में भागीदारी और शिक्षा को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है । यूनेस्को ने औपचारिक रूप से आईटीआई को कार्यक्रम के निर्माता और आयोजक के रूप में स्वीकृत किया है। अंतर्राष्ट्रीय नृत्य एवं गीत दिवस द्वारा अवलोकन किया गया संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश ने 29 अप्रैल 1982 में  निर्माण के बाद से प्रतिवर्ष  लेखक , नृत्यांगना , संगीतकार  द्वारा नृत्य प्रदर्शन, शैक्षिक कार्यशालाएं, मानवीय परियोजनाएं आयोजित किया  जाते हैं।  प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान सदस्यों को नर्तकों, कोरियोग्राफरों, नृत्य छात्रों और उत्साही लोगों के साथ  है। गाला उत्सव अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान की कार्यकारी परिषद द्वारा  2017 में  शंघाई , चीन   और 2018 में  हवाना , क्यूबा में था । प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस को अंतर्राष्ट्रीय थिएटर संस्थान लेखकों में ट्रिशा ब्राउन , एलिसिया अलोंसो और मर्स कनिंघम शामिल हैं । 2018 में नृत्य दिवस  की 70वीं वर्षगांठ 2018 को यूनेस्को क्षेत्रों में  जॉर्जेट गेबारा ( लेबनान , अरब देश), सालिया सानोउ ( बुर्किना फासो , अफ्रीका ), मारियानेला बोअन ( क्यूबा , ​​​​अमेरिका ), विली त्साओ ( चीन , एशिया-प्रशांत ) और ओहद नाहरिन ( इज़राइल , यूरोप , 2020 में ग्रेगरी वुयानी माकोमा दक्षिण अफ्रीका , 2019 में करीमा मंसूर , मिस्र , 2018 जॉर्जेट गेबारा , सालिया सानोउ , मारियानेला बोअन , विली त्साओ और ओहद नाहरिन लेबनान , बुर्किना फासो , क्यूबा , ​​चीन और इज़राइल। ,2017 तृषा ब्राउन यूएसए ,2016 लेमी पोनिफ़ासियो समोआ और न्यूजीलैंड , 2015 इज़राइल गैल्वान स्पैनिश ,2014 मौराड मेरज़ौकी फ़्रेंच ,2013 , लिन ह्वाई-मिन चीनी ताइपी , 2012 सिदी लार्बी चेरकौई बेल्जियम ,2011 में ऐनी टेरेसा डी कीर्समेकर बेल्जियम ,2010 में जूलियो बोक्का अर्जेंटीना ,2009 अकरम खान (नर्तक) यूनाइटेड किंगडम ,2008 मेंग्लेडिस अगुलहास दक्षिण अफ्रीका ,2007 साशा वाल्ट्ज जर्मनी ,2006 नोरोडोम सिहामोनी कंबोडिय, 2005 मियाको योशिदा जापान, 2004 स्टीफन पेज ऑस्ट्रेलिया ,2003 मैट एक स्वीडन ,2002 कैथरीन डनहम संयुक्त राज्य अमेरिका ,2001 विलियम फोर्सिथे (कोरियोग्राफर) संयुक्त राज्य अमेरिका ,2000 एलिसिया अलोंसो , जिरी काइलियान और सिरिएले लेक्यूर क्यूबा , ​​रूस और फ्रांस ,1999 महमूद रेडा मिस्र , 1998 काज़ुओ ओहनो जापान , 1997 मौरिस बेजार्ट फ्रांस ,1996 माया प्लिस्त्स्काया रूस ,1995 मरे लुईस संयुक्त राज्य अमेरिका ,1994 दाई अइलियन चीन और त्रिनिदाद और टोबैगो ,1993 मैगुय मारिन फ्रांस ,1992 जर्मेन एकॉग्नी बेनिन और सेनेगल ,1991 हंस वान मानेन नीदरलैंड ,1990 मर्स कनिंघम संयुक्त राज्य अमेरिका ,1989 डोरिस लाइन फिनलैंड ,1988 रॉबिन हावर्ड यूनाइटेड किंगडम, 1987 आईटीआई की नृत्य समिति अंतरराष्ट्रीय ,1986 चेतना जालान भारत ,1985 रॉबर्ट जोफ्रे संयुक्त राज्य अमेरिका ,1984 यूरी ग्रिगोरोविच रूस ,1983 कोई संदेश लेखक नहीं , एन/ए, 1982 हेनरिक न्यूबॉयर स्लोवेनिया नृत्य दिवस पर पुरस्कृत किए गए । संस्कृति के लिए यूनेस्को के सहायक महानिदेशक श्री पेरेज़ डी अर्मिनान द्वारा संदेश"  "नृत्य दिवस" ​2015  कहा है।
 अनेकता में एकता को संजोये हुए भारत के  विभिन्न राज्यों एवं क्षेत्रों की  भाषा एवं संस्कृति के साथ साथ इन क्षेत्रों की  लोक गीतों व लोक नृत्यों की समृद्ध विरासत हैः।  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चकाचौंध में लोक नृत्य  लुप्त होती जा रही है। साहित्यसंगीतकला विहीनः साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीनः। जो मनुष्य सगीत साहित्य कला से विहीन है वे साक्षात् पशु के समान है, यद्यपि उनके सींग और पूँछ नहीं होते फिर भी वे पशु समान है।  मृदंग, रणसिंगा, झांझ, डेढ़ताल, घुँघरू, घंटी बजाकर नाचा जाने वाला  नृत्य  उत्सव में  सर पर पगड़ी, कमर में फेंटा, पावों में घुँघरू, हातों में करताल के साथ कलाकारों के बीच काठ का सजा घोडा ठुमुक- ठुमुक नाचने , गायक - नर्तक झूम उठता , .टेरी, गीत, चुटकुले के रंग, साज के संग को धोवी नृत्य ,  
लोरिकी, बिरहा, गड़थैया, कुर्री-फुर्री-कलैया,  अहीर नृत्य पुरुष डोर, चौरासी, शहनाई, घुँघरू पहनकर हाथ में धुधुकी लेकर धोती कुरता पहनकर सिर पर पगड़ी बांधकर उछाल कूद करते हुए गीत की पंक्तियाँ   'संघाती' घड़े पर ताल देने और ठुमकने , ओरी-ओरियानी खड़ी होकर महिलाएं गीत दुहराने , नृत्य, गीत, वाद्य का समवेत समन्वय को 'कंहरही' नृत्य कहते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश का   बस्ती आनंद और आल्हाद के लिए, श्रम -परिहार के लिए, मधुर धुन, लय, ताल में नाचने-गाने लगते है । पूर्वांचल के गोरखपुर, देवरिया और बलिया जिलों में 'गोड़उ' व हरबोल , हर्बोलाई नृत्य है।
 पहली फसल कट जाने पर फाल्गुन -चैत की चांदनी रात में यह द्वार-द्वार जाकर नाचते-गाते और बदले में अनाज या पैसा प्राप्त कर बरी-भात और पूड़ी पर नटुआ नृत्य  नाचते थे। वृत्त - अर्धवृत्त बनाकर घुमते हुए नाचते और हास्य - व्यंग में अभिनय करते हैं। रंग - बिरंगी गुदड़ी पहने चूना कालिख लगाये प्रहसक अश्लील् चुटकुले बोलता है। नर्तक बीच में टेढ़ी छड़ी ढोल, छड, घंटी, झांझ, छल्ला, पावों में पैरी, कमर में कौड़ी बांधे नर्तक हास्य का माहौल सृजित कर नटुआ नृत्य करते  हैं।'कोल' शिकारी वर्ग की जनजाति हकवा' करके जानवरों का अथवा गोटी - गुलेल से उड़ती चिड़ियों का शिकार करती गोला या अर्धगोला बनाकर, ढोल बजाकर, बैठकर अथवा खड़े होकर, दिन भर के परिश्रम के बाद, चौपाल लगाकर कोलदह नृत्य नृत्य किया जाता है। साग-सब्जी बेचने, सूअर पालने का काम करने वाली खटिक  आनंद आल्हाद के लिए विवाह, गवना, पूजा, पालकी के अवसरों पर झंडा लेकर जुलुस निकालकर पालकी में दूल्हे को बिठाकर तेज चलते हुए बीच - बीच में रुक- रुक कर, कभी नीचे स्वर में और कभी ऊंचे स्वर में आवाज़ निकालते हुए, नृत्य करती हैं। छड़, थाली, ढोल, झाल के समवेत स्वर से खटिक नृत्य है । मुसहर' जाति पूर्वांचल में सवरी' लेकर खेत खलिहान में पूरे परिवार के साथ निकल जाते हैं। खेत खलिहानों में बिल के भीतर चूहों द्वारा एकत्र किये गए अनाज को उसमें पानी भरकर निकालते हैं। इनका एक पंथ दो काज हो जाता है। एक ही गोटी से दो शिकार-चूहा और अनाज दिनभर की इस कमाई को लेकर आते और गांजा का दम लगाकर झंडे गाड़कर 'ढोल' और 'हुडुक' बजाकर झूमकर नाचते हैं। यह हुडुक वाद्य 'गोहटी' के चमड़े से बनाते हैं। पूर्वांचल में मुख्य रूप से सोनभद्र जनपद के सुदूर वनों-पहाड़ों के मध्य 'घसिया' अनुसीचित जन जाति के लोग निवास करते हैं। कैमूर की गुफाओं में न जाने कब से निवासित तथा मादल, ढोल, नगाड़ा, बांसुरी, निशान, शहनाई आदि वाद्य बनाकर बेचते और बजाकर नाचते - गाते की क्रिया को डोमकच नृत्य हैं।  राजाओं के यहाँ घोड़ों की 'सईसी' करते थे। इन्होने एक बार अस्पृश्य मानी जाने वाली डोम जाती जो एक आदिवासी जाती है का स्पर्श करके नाच - गाकर खुशियां मनाई तभी से विवाह, गवना, अन्नप्राशन, मुंडन अथवा होली, दशहरा, दीपावली आदि अवसरों पर पूरे परिवार के साथ नाचने की परंपरा इनमें चल पड़ीं। ये लोग नाचते समय कई कलाओं का प्रदर्शन करते हैं।
'अगरही' पूर्वांचल के आदिवासियों का एक प्रमुख नृत्य है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसे अगरिया जनजाति के पुरुष वर्ग के लोग जुलूस के रूप में करते हैं। सोनभद्र जनपद में शक्तिनगर के समीप ज्वालामुखी देवी का धाम है। वहां दोनों नवरात्रों में मध्य प्रदेश के सीधी - सरगुजा, बिहार के रोहतास - पलामू, उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर - सोनभद्र के हजारों आदिवासी मादल, ढोल, मजीरा बजाते हुए लंगोटी लगाकर, बाल मुंडवाकर, रोली लगाकर, बाना त्रिशूल लेकर यहाँ आकर मंदिर के चारों ओऱ नृत्य करते और त्रिशूल, नारियल, माला चढ़ाकर अथवा बकरे की बलि चढ़ाकर पूजा करते हैं। यह दृश्य तब रोमांचकारी हो जाता है जब वे अपनी जिव्हा में तीखा बाना धंसा लेते हैं और देवी कृपा से रक्त की एक बूँद भी नहीं छूती। अगरिया पत्थर को पिघलाकर लोहे से बर्तन - औजार बना
'करमा' आदिवासियों का विश्वप्रसिद्ध नृत्य है। आदिवासी जहाँ भी है करमा नृत्य अवश्य करते हैं। खरीफ की फसल बो दिए जाने के बाद अनंत चतुर्दशी और फिर रबी की फसल करने के साथ होली के अवसर पर यह नृत्य स्त्री -पुरुष, बाल - वृद्ध सभी एक साथ समूह में करते हैं। उनका यह अनुष्ठान लगभग एक माह पूर्व से ही प्रारम्भ हो जाता है। 'जयी' जमाई जाती है। करम वृक्ष की डाल युवा अथवा गांव का बैगा द्वारा एक ही बार में काट कर लाई जाती है। गांव अथवा गांवों के सभी आदिवासी उसे जमीन पर धरे बिना नाचते गाते किसी सार्वजानिक स्थल पर लाते हैं, उसे वहीँ रोपते हैं। प्रसाद चढ़ाते और फिर नाचना शुरू करते हैं, तो वह सिलसिला चौबीस घंटे चलता है, यदा- कदा युवक -युवती के पांवों के यदि अंगूठे मिल जाते हैं, तो वहीँ उनका विवाह भी करा दिया जाता है।
'धरकार' एक ऐसी जनजाति है जो मुख्य रूप से वाद्य यंत्र बनाकर अथवा डलिया - सूप बनाकर अपनी जीविका चलाती है और जब वाद्य यंत्र बनाती ही है तो नाचना गाना भी होता ही है। पूर्वांचल के सोनभद्र सहित अन्य जनपदों में बांस-वनों के समीप निवास करने वाली यह जनजाति निशान (सिंहा), डफला, शहनाई, बांसुरी, ढोल, मादल बना कर और बजाकर, झूम कर जाने कब से नाचती -गाती आ रही हैं। विवाह, गवना, मेले - ठेलों में या फिर बाजारों में भी होली - दीपावली, दशहरा, करमा आदि पर्वों पर ये लोग इन्द्रवासी नृत्य करके सबको मुग्ध कर देते हैं
विवाह, गवना, यज्ञोपवीत, मुंडन, अन्नप्राशन आदि संस्कारों तथा दीपावली, दशहरा, अनंत चतुर्दशी के अवसरों पर महिलाएं हाथ में हाथ मिलाकर वृत्त या अर्धवृत्त बनाकर झूमर नाचती और गाती हैं। टेक की बार- बार आवृति तथा द्रुतगति और लय के आरोह- अवरोह के साथ गाकर नाच जाने वाला यह नृत्य पूर्वांचल की एक प्रमुख नृत्य है। आदिवासी महिलाएं 'कछाड़' मार कर अपने वन्य वेश -भूषा में जब झूमकर नाचने लगती समां बंध जाता है। यदा -कदा थपोरी भी बजाती हैं। महुआ बीनने, पत्ता तोड़ने, गोदना गोदने का कार्य के साथ अभिनय करती हैं। इसे धांगर, धरकार, घसिया, गोड जाति की महिलाएं बीया गडनी के अवसर पर विशेष उत्साह के साथ किसी नदी या तालाब के किनारे एकत्र होकर नाचती हैं। नृत्य के बीच-बीच में वन की बोली 'हूं-हूं' करती रहती हैं।
शैला, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में आदिवासियों के मध्य एक लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य में पूरे गांव के युवक सम्मिलित हो सकते हैं। इसकी तैयारी भी 'करमा' की तरह एक माह पूर्व से ही आरम्भ जाती है। युवक आदिवासी पोषक में मोरपंख कमर में बांध कर वृत्त या अर्धवृत्त बनाकर नाचते हैं। हर युवक के हाथ में दो-दो फुट का डंडा होता है जिसे लेकर वे नाचते हुए ही आगे -पीछे होते रहते हैं। घुँघरू बांधकर मादल लेकर बजाते हुए बीच-बीच में 'कू-कू ' या 'हूं-हूं' की आवाज़ करते हैं जिसे 'छेरवा' कहा जाता है। होली, दीपावली, दशहरा, अनंत चतुर्दशी, शिवरात्रि के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है।'बिदेसिया' बिहार राज्य की उपज है, किन्तु पूर्वांचल में भी यह विधा अत्यंत ही लोकप्रिय है। इसके जनक श्री भिखारी ठाकुर हैं। नाट्य प्रधान इस नृत्य विधा में विदेश जाते या चले गए पति के साथ पत्नी की वार्ता का करुण दृश्य प्रदर्शित की जाती है। भोजपुरी बोली में प्रस्तुत यह नृत्य आज भी बहुत ही लोकप्रि
यह ऋतुगीत है जो सावन - भादों के महीनों में खेतों खलिहानों से लेकर शहरों तक गाया व नाचा जाता है। पूर्व में इसके अखाड़े हुआ करते थे, बड़े - बड़े दंगल हुआ करते थे। स्त्री - पुरुष सभी प्रतियोगिताओं में सम्मिलित होते थे। नगर की वेश्याएं भी भाग लेती थीं। गायन के रूप में उत्पन्न यह विधा अब पूर्णतः नृत्य में परिवर्तित हो चुकी है।
होली मूलतः गायन विधा ही है किन्तु अब विशेष रूप से अवध क्षेत्र में इसे नृत्यात्मक बना दिया गया है। होरी, जोगीरा, कबीरा इसकी शैलियाँ है। होली के अवसर पर अथवा पूरी फाल्गुन माह भर यह गीत विशेष रूप से पुरुषों को उन्मुक्त और मतवाला बना देता है। युवक - युवतियां दोनों इस नृत्य में सम्मिलित होते हैं और ढोल, मंजीरा, हारमोनियम, झांझ, मृदंग के संग गीत की पंक्तियों के बीच 'जोगीरा' छोड़ते जाते हैं। 1) करमा नृत्य : मध्य प्रदेश के गोंड और बैगा आदिवासियों का प्रमुख नृत्य है। करमा नृत्य कर्मराजा और कर्मरानी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है इसमें प्रायः आठ पुरुष व आठ महिलाएं नृत्य करती है। ये गोलार्ध बनाकर आमने सामने खड़े होकर नृत्य करते है। एक दल गीत उठता है और दूसरा दल दोहराता है । वाध्य यन्त्र मादल का प्रयोग किया जाता है नृत्य में युवक युवती आगे पीछे चलने में एक दुसरे के अंगुठे को छूने की कोशिश करते है | बैगा आदिवासियों के करमा को बैगानी करमा कहा जाता है ताल और लय के अंतर से यह चार प्रकार का होता है। 1) करमा खरी 2) करमा खाय 3) करमा झुलनी ४) करमा लहकी  करमा नृत्य है ।  2 . राई नृत्य : मध्य प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य राई को इसके क्षेत्र के आधार पर दो भागों में बांटा गया  है। बुंदेलखंड का राई नृत्य और बघेलखंड का राई नृत्य | बुंदेलखंड का राई नृत्य : राई नृत्य बुंदेलखंड का एक लोकप्रिय नृत्य  विवाह, पुत्रजन्म आदि के अवसर पर किया जाता है। अशोकनगर जिले के करीला मेले में राई नृत्य का आयोजन सामूहिक रूप से किया जाता है। मन्नत पूर्ण होने पर देवी के मंदिर के समक्ष लगे मेले में राई नृत्य कराते है।  राई नृत्य के केंद्र में एक नर्तकी होती है जिसे स्थानीय बोली में बेडनी कहा जाता है। नृत्य को गति देने का कार्य  मृदंगवादक पुरुष द्वारा किया जाता है। राई नृत्य के विश्राम की स्थिति में स्वांग नामक लोकनाट्य  किया जाता है । हंसी मजाक व गुदगुदाने का कार्य करता है। विश्राम के उपरांत पुनः राई नृत्य प्रारंभ किया जाता है।  बुंदेलखंड में राई नृत्य बेडनी द्वारा किया जाता है।  बघेलखंड में पुरुष  स्त्री वेश धारण कर राई नृत्य प्रस्तुत करते है। बुन्देलखंड में वाद्ययंत्र के तौर पर मृदंग का प्रयोग किया जाता है वहीँ बघेलखंड में ढोलक व नगड़िया का उपयोग किया जाता है। बघेलखंड में राई नृत्य विशेष रूप से अहीर पुरुषों द्वारा किया जाता है । ब्राम्हण स्त्रीयों में  प्रचलन पाया जाता है | पुत्र जन्म पर प्रायः वैश्य महाजनों  राई नृत्य का आयोजन किया जाता है। स्त्रियाँ हाथों, पैरों और कमर की विशेष मुद्राओं में नृत्य करती है। राई नृत्य के गीत श्रृंगार परक होते है। स्त्री नर्तकियों की वेश-भूषा व गहने परंपरागत होते है। पुरुष धोती, बाना , साफा, और पैरों में घुंघरू बांधकर नाचते है। 3) बधाई नृत्य : बुंदेलखंड क्षेत्र में जन्म, विवाह और त्योहारों के अवसरों पर ‘ बधाईं ' लोकप्रिय है। इसमें संगीत वाद्ययंत्र की धुनों पर पुरुष और महिलाएं सभी , ज़ोर-शोर से नृत्य करते हैं। 
4) भगोरिया नृत्य : भगोरिया नृत्य अपनी विलक्षण लय और डांडरियां नृत्य के माध्यम से मध्यप्रदेश की बैगा आदिवासी जनजाति की सांस्कृतिक विरासत है। 
भारतीय राज्यों के लोकनृत्य में 1.उत्तर प्रदेश-नौटंकी, रासलीला, कजरी, झूला,जद्दा, चाप्पेली, जैता, आदि , 2.मध्य प्रदेश-जवारा, मटकी, अडा, खाड़ा नाच, फूलपति, ग्रिदा नृत्य, सालेलार्की, सेलाभडोनी, मंच, आदि। 3.बिहार- जाट-जाटिन, बक्खो– बखैन, पनवारिया, सामा चकवा, बिदेसिया आदि।4.उत्तराखंड-गढ़वाली, कुंमायुनी, कजरी, रासलीला, चपादी आदि।5.राजस्थान-झूमर, चाकरी, गणगौर, फूंदी, पनिहारी, जिन्दाद, नेजा, लीला, झूमा, सुईसिनी, घापाल, कालबेलियाआदि।6.पंजाब-भांगड़ा, गिद्दा, दफ्फ, धमान, भांड, नकूला आदि , 7.हरियाणा-झूमर, फाग, डाफ, धमाल, लूर, गुग्गा, खोर, जागोर आदि।8.तमिलनाडु- भरतनाट्यम(शास्त्रीय), कुमी, कोलट्टम,कावड़ी आदि।9.आंध्र प्रदेश-कुचिपुड़ी(शास्त्रीय), घंटामर्दाला, कुम्मी, छड़ी, मोहिनीअट्टम (शास्त्रीय), सिद्धि मधुरि,वेदी नाटकम आदि।10.असम- बिहू, बिछुवा, नटपुजा महारास, खेल गोपाल, झुमुरा होब्जानाई,कलिगोपाल,नागानृत्य, बुगुरुम्बा,तबाल चोनग्ली, आदि।11.गुजरात- गरबा, डांडिया, रासलीला,पणिहारी टिप्पानी जुरियुन,भवई,, लास्या,,भावई आदि।12.हिमांचल प्रदेश- धमान, छपेली, महाथू,नटी, डांगी, चम्बा,थाली,झैँता,डफ,डंडानाच,झोला, झाली,छारही,महासू आदि13.जम्मू-कश्मीर- रउफ,हिकात,मंदजास,कूद दण्डीनाच,दमाली आदि 14.कर्नाटक- यक्षगान,कुनीता, कर्गा, लाम्बी, वीरगास्से आदि। 15.केरल- कथकली(शास्त्रीय), ओट्टम,थुलाल,पादयानी, कालीअट्टमल,मोहिनीअट्टम(शास्त्रीय) आदि।16.महाराष्ट्र- तमाशा,लावणी,नकटा,कोली,लेझिम,गफा,, गौरीचा, ललिता, मौनी,लेजम,पोवाड़ा,दहिकला दशावतार या बोहदा आदि। 17.ओडिसा- ओडिसी(शास्त्रीय),सवारी, धूमरा,पैंका,मुणरी छऊ, अया आदि। 18.पश्चिम बंगाल- काठी, गंभीरा, ढाली, जात्रा, बाउल,मरसिया, कीर्त्तन,महाल आदि19.गोवा-तरंगमेल, कोली, देक्खनी, फुग्दी, शिग्मो, घोडे, मोडनी, समायी नृत्य, जगर, रणमाले, गोंफ, टून्नया मेल।20.छत्तीसगढ़-गौर मारिया, पैंथी, राउत नाच, पाण्डवानी, वेडामती, टपाली, नवारानी,भारथरी चरित्र, चंदनानी,दिवारी,करमा, पाली,डागला आदि। 21.झारखंड एवं बिहार में  छऊ, सरहुल,जट-जटिन, करमा, डांगा, विदेशिया, सोहराई,अलकप, कर्मा मुंडा, अग्नि, झूमर, जनानी झूमर, मर्दाना झूमर, पैका, फगुआ, हूंटा नृत्य, मुंदारी नृत्य, फिरकल, बाराओ, झीटका, डांगा, डोमचक, घोरा नाच लौंडा नृत्य आदि , 22.अरुणांचल प्रदेश- मुखौटा नृत्य,बुईया, छालो, वांचो, पासी कोंगकी, पोनुंग, पोपीर, बारडो छाम,युद्ध नृत्य आदि23.मणिपुर- मणिपुरी(शास्त्रीय), राखाल, नटरास, महारास,राखत,डोल चोलम, थांग टा, लाई हाराओबा, पुंग चोलोम, खांबा थाईबी, नूपा नृत्य,, खूबक इशेली, लोहू शाह।24.मेघालय-लाहो, बांग्ला,मिनसेईन आदि।25.मिजोरम- छेरव नृत्य, खुल्लम, चैलम, स्वलाकिन, च्वांगलाईज्वान, जंगतालम, पर लाम, सोलाकिया, लंगलम,पखुपिला, चेरोकान आदि।26.नागालैंड- चोंग,खैवा, लीम, नुरालीम,रंगमा, बांस नृत्य, जीलैंग, सूईरोलियंस, गीथिंगलिम, तिमांगनेतिन, हेतलईयूली आदि।27.त्रिपुरा- होजागिरी आदि। 28.सिक्किम-छू फाट नृत्य, सिकमारी, सिंघई चाम या स्नो लायन डांस, याक छाम, डेनजोंग नेनहा, ताशी यांगकू नृत्य, खूखूरी नाच, चुटके नाच, मारूनी नाच। 29.लक्षद्वीप- लावा, र्तेंडेस्कटॉप नृत्य है।

गुरुवार, अप्रैल 18, 2024

मानव संस्कृति का अतीत है धरोहर

मानव संस्कृति की  अतीत का धरोहर है विरासत  
सत्येन्द्र कुमार पाठक
विश्व में त्योहारों, परंपराओं और स्मारकों के माध्यम से अतीत की  संस्कृति और विरासत का मानव सभ्यता के संयुक्त इतिहास और विरासत को  सम्मान देने के लिए प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है। विश्व  की विभिन्न संस्कृतियों को प्रोत्साहित करने और सांस्कृतिक स्मारकों और स्थलों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दुनिया की संस्कृतियों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के महत्व को दर्शाने के लिए मनाया जाता है । स्मारक और स्थलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय परिषद प्रिंसिपल्स वेनिस चार्टर में  स्थापना 1982 में की गई थी। स्मारकों और स्थलों के लिए  विश्व विरासत दिवस में कई आर्किटेक्ट, इंजीनियर, सिविल इंजीनियर, भूगोलवेत्ता, पुरातत्वविद् और कलाकार  हैं। इंटरनेशनल कौंसिल ऑन मोनुमेंट एंड सीट्स की स्थापना के बाद से, विश्व के 150 देशों में 10,000 से  सदस्यों में  10,000 सदस्यों में से 400 विभिन्न संस्थानों, अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समितियों और राष्ट्रीय समितियां हैं। भारत के 42 स्थलों को यूनेस्को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल हैं। प्राचीन स्मारक, इमारतें और विरासत स्थल भारत में पर्यटन के माध्यम  इन्हें दुनिया के लिए एक संपत्ति  है। विश्व धरोहर स्थलों में भारत के अजंता गुफाएं , एलोरा गुफाएं, आगरा किला और ताज महल , बिहार का बोधि मंदिर बोधगया एवं नालंदा विश्वविद्यालय , बंगाल का शांतिनिकेतन ,  चीन की महान दीवार, माचू पिचू, गीज़ा के पिरामिड और कई अन्य शामिल हैं। पहला विश्व विरासत दिवस ट्यूनीशिया में मनाया गया था।  ताज महल, हुमायूँ का मकबरा, कुतुब मीनार और लाल किला जैसी धरोवर सुरक्षित  है। विश्व में 1,092 विश्व धरोहर स्थल हैं। इन्हें 845 सांस्कृतिक, 209 प्राकृतिक और 38 मिश्रित स्थल में 32 देश    10 विश्व धरोहर स्थल हैं, 13 देश में  20 स्थल हैं, 8 देश में 30 स्थल और 5 देश में 40 स्थल हैं।विश्व धरोहर स्थल किरिबाती में फीनिक्स द्वीप संरक्षित का  क्षेत्रफल 408,250 वर्गकिमी है। विश्व धरोहर स्थल चेक गणराज्य के ओलोमौक में होली ट्रिनिटी कॉलम है।  नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में नंदा देवी शिखर  7816 मीटर पर स्थित सबसे ऊंची चोटी है। ‘भीमबेटक गुफाएँ’ भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के शुरुआती निशान प्रदर्शित करती हैं। विश्व विरासत दिवस मनाने का प्रारंभ यूनेस्को महासभा द्वारा 18 अप्रैल 1982 ई. में कई गयी है। बिहार में जहानाबाद जिले के बराबर पर्वत समूह की गुफाएं , भित्तिचित्र , गुहा लेखन , मूर्तियां , सिद्धेश्वर नाथ मंदिर , गया जिले का विष्णुपद मंदिर , मंगलागौरी मंदिर , बोधगया का बोधि मंदिर  अरवल जिले का करपी जगदम्बा स्थान की मूर्तियां , औरंगाबाद जिले की उमगा पर्वत समूह का सूर्यमंदिर , देव सूर्यमंदिर , सतबहिनी मंदिर , नवादा जिले का अपसढ़ का बारह मंदिर , आंति का पातालपुरी , रूपौ का चामुंडा ,  दरियापुर पार्वती , पटना के अगमकुवां , पटनदेवी , गोलघर , नालंदा जिले का नालंदा विश्वविद्यालय , पावापुरी का जलमंदिर , राजगिर पर्वत समूह , रोहतास जिले का रोहतासगढ़ किला , गुप्ताधाम , तुतला भवानी , कैमूर , बक्सर , भोजपुर जिले में विरासत भारी पड़ी है । बिहार शिक्षा का स्वर्ग और सांस्कृतिक और राजनीतिक शक्तियों का केंद्र था। बिहार में सांस्कृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में 2002 ई. को महाबोधि मंदिरबोधगया का  सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित, महाबोधि मंदिर प्राचीन काल की  5वीं-6वीं शताब्दी ई. को समाहित करता है। भारत के 4 पवित्र स्थलों में  गौतम बुद्ध के जीवन,ज्ञान प्राप्ति स्थल  है । नालन्दा विश्वविद्यालय के खंडहर को यूनेस्को द्वारा 2016 में  शामिल किया गया है। एशियाई एकता और शक्ति का प्रतीक, नालंदा विश्वविद्यालय हमें प्राचीन भारत की समृद्ध विरासत की याद दिलाता है। शैक्षिक और मठवासी केंद्र के पुरातात्विक खंडहर तीसरी शताब्दी ई .और 13वीं शताब्दी ई. के मध्य में निर्मित हैं। बिहार में अस्थायी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में प्राचीन वैशाली के खंडहर और विक्रमशिला प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष बिहार में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में हैं। प्राचीन वैशाली के खंडहर महाभारत काल के राजा विशाल के नाम पर पड़ा। वैशाली को विश्व का प्रथम गणतंत्र माना जाता है। कोल्हुआ में बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश  और अपने निर्वाण की घोषणा की थी। महान बौद्ध तीर्थ होने के साथ-साथ भगवान महावीर की जन्मस्थली  है। विक्रमशिला प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष भागलपुर का एंटीचक  में स्थित आठवीं शताब्दी ई .में स्थापित विक्रमशिला विश्वविद्यालय  मठ  बौद्ध धर्मग्रंथों की प्रतिलिपि बनाने, अनुवाद करने और संरक्षित करने का पवित्र कार्य किया जाता था। बौद्ध और हिंदू देवताओं को चित्रित करने वाले शिलालेख, पट्टिकाएं और कलाकृतियां भी इस विश्वविद्यालय की दीवारों पर अंकित हैं।
महाराष्ट्र का सिंगनापुर का शनि देव की पाषाण युक्त , औरंगाबाद जिले के  एलोरा की गुफाएं , घृनेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर , नासिक जिले का त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर , पंचवटी का सीता गुफा , कालाराम मंदिर , पुणे जिले का भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर , मध्यप्रदेश का उज्जैन महाकाल मंदिर ,  खंडवा जिले का ओमकारेश्वर मंदिर , मुम्बई का एलिफेंटा गुफा ,  अजंता गुफा , नेपाल का काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर , जनकपुर का जानकी मंदिर , उत्तराखंड का केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर , बद्रीनाथ मंदिर , असम के कामाख्या मंदिर , उमानंद मंदिर , उत्तरप्रदेश के सारनाथ अशोक स्तंभ , काशी का विश्वनाथ मंदिर , ज्ञानवापी , मिर्जापुर का विंध्याचलमाता मंदिर , अयोध्या में रामजन्म भूमि आदि भारतीय सांस्कृतिक विरासत पारी पड़ी है ।

मंगलवार, अप्रैल 02, 2024

जनचेतना का आत्मीय ज्ञान लघुकथा

जान चेतना का आईना है लघु कथा 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
मानवीय चेतना का प्रारंभिक चरण में गद्य कथा का हिस्सा लघुकथा है । लघु कथाएं  एकल प्रभाव या मनोदशा को उजागर करने का  स्व-निहित घटना या जुड़ी घटनाओं की श्रृंखला पर ध्यान केंद्रित है। लघुकथा साहित्य  प्राचीन समुदायों में किंवदंतियों , पौराणिक कथाओं , लोक कथाओं , परियों की कहानियों , लंबी कहानियों , दंतकथाओं और उपाख्यानों  में मौजूद है। आधुनिक लघुकथा का विकास 19वीं सदी की प्रारंभिक में हुआ। है।  गढ़ी हुई विधा  लघुकथाएँ एक उपन्यास की तरह कथानक, प्रतिध्वनि और  गतिशील घटकों का उपयोग हैं । एडगर एलन पो के निबंध " द फिलॉसफी ऑफ कंपोजिशन " (1846) के अनुसार व्यक्ति को लघुकथा पढ़ने में सक्षम होना चाहिए ।एचजी वेल्स ने लघुकथा के किसी चीज़ को बहुत उज्ज्वल और गतिशील बनाने की मनोरंजक कला; यह भयानक या दयनीय या मज़ेदार या गहराई से रोशन करने वाली हो सकती है, जिसमें केवल यह आवश्यक है कि इसे पंद्रह से लेकर ज़ोर से पढ़ने के लिए पचास मिनट।"  विलियम फॉल्कनर के अनुसार, एक लघु कहानी चरित्र-चालित होती है । समरसेट मौघम ने कहा कि  लघुकथा का "एक निश्चित डिज़ाइन होना चाहिए, जिसमें एक प्रस्थान बिंदु, एक चरमोत्कर्ष और एक परीक्षण बिंदु शामिल हो; दूसरे शब्दों में, इसमें एक कथानक होना चाहिए "। ह्यू वालपोल ने  "एक कहानी को एक कहानी होनी चाहिए; घटनाओं, तेज गति, अप्रत्याशित विकास से भरी चीजों का एक रिकॉर्ड, रहस्य के माध्यम से चरमोत्कर्ष और एक संतोषजनक अंत तक ले जाना। सुकुमार अझिकोड ने एक लघु कहानी को "गहन प्रासंगिक या उपाख्यानात्मक प्रभाव के साथ एक संक्षिप्त गद्य कथा ,  फ्लैनेरी ओ'कॉनर ने वर्णनकर्ता का लघु ​​कथाकार अपने कार्यों को कलात्मक और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के हिस्से के रूप है। "लघु कहानी" शब्द ने 1880 ई. में अपना आधुनिक अर्थ प्राप्त कर लिया है। शुरुआत में इसका संदर्भ बच्चों की कहानियों से था।  20वीं सदी की प्रारम्भ  से लेकर मध्य के दौरान, लघुकथा में व्यापक प्रयोग से व्यापक रूप से परिभाषा प्रदान करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई।  छोटी कहानियों के लिए शब्द संख्या आम तौर पर 1,000 से 4,000 तक होती है ।  लघुकथा के रूप में वर्गीकृत कुछ कृतियों में 15,000 शब्द तक हैं। 1,000 शब्दों से कम की कहानियों को कभी-कभी "लघु लघु कथाएँ" या " फ्लैश फिक्शन " कहा गया  है। लघु कथाएँ मौखिक कहानी कहने की परंपरा मूल रूप से रामायण , महाभारत और होमर के इलियड और ओडिसी  महाकाव्यों का निर्माण किया । अझिकोड के अनुसार, लघुकथा "सबसे प्राचीन काल में दृष्टांत, पुरुषों, देवताओं और राक्षसों की साहसिक कहानी, दैनिक घटनाओं का विवरण, मजाक" के रूप में मौजूद थी। लघुकथा का प्राचीन रूप, उपाख्यान , रोमन साम्राज्य के तहत लोकप्रिय था । जीवित रोमन उपाख्यानों को 13वीं या 14वीं शताब्दी में गेस्टा रोमानोरम के रूप में एकत्र किया गया था । सर रोजर डी कवरली के काल्पनिक उपाख्यानों के प्रकाशन के साथ 18वीं शताब्दी तक उपाख्यान यूरोप है। यूरोप में, मौखिक कहानी कहने की परंपरा 14वीं शताब्दी की शुरुआत में लिखित रूप में विकसित होनी शुरू हुई थी । जेफ्री चौसर की कैंटरबरी टेल्स और जियोवानी बोकाशियो की डिकैमेरॉन लघुकथा को अपनाया गया था।  यूरोप मे 16 वी शताब्दी का  लोकप्रिय लघुकथाओं में  माटेओ बंदेलो की  " उपन्यास " थीं । फ्रांस में 17वीं शताब्दी के मध्य में मैडम डी लाफायेट  द्वारा  परिष्कृत लघु उपन्यास, "नोवेल है । चाल्स पेरेल्ट की पारंपरिक परीकथाएँ 17वीं सदी की प्रकाशित लघुकथा  चार्ल्स पेरौल्ट का था । एंटोनी गैलैंड के 1001 अरेबियन नाइट्स पूर्व आधुनिक अनुवाद की उपस्थिति , मध्य पूर्वी लोक और परी कथाओं का भंडार, थाउज़ेंड एंड वन है । 1704 और 1710-12  का वोल्टेयर का 1704 और 1710 से 1712 ई.  , डाइडेरॉट औ 18 वीं सदी की यूरोपीय लघु कथाओं का रूप आया था । भारत में लोककथाओं की समृद्ध विरासत के साथ लघु कथाओं का  संकलित संग्रह में भारतीय लघुकथा की संवेदनशीलता को आकार किंवदंतियों, लोककथाओं, परी कथाओं और दंतकथाओं के संस्कृत संग्रह पंचतंत्र , हितोपदेश और कथासरित्सागर हैं । पाली भाषा की जातक कथाएँ हैं ।  भगवान गौतम बुद्ध के पिछले जन्मों से संबंधित कहानियों का संकलन  है ।पश्चिमी कैनन में शैली के नियमों के अग्रदूत , अन्य लोगों में, रुडयार्ड किपलिंग (यूनाइटेड किंगडम), एंटोन चेखव (रूस), गाइ डे मौपासेंट (फ्रांस), मैनुअल गुतिरेज़ नजेरा (मेक्सिको) और रूबेन डारियो (निकारागुआ) थे।लघुकथाओं का 1790 और 1810 के मध्य में प्रकाशित किए गए थे । लघुकथाओं का पहला सच्चा संग्रह 1810 और 1830 के मध्य  देशों में सामने आया था । यूनाइटेड किंगडम में पहली लघु कथाएँ रिचर्ड कंबरलैंड की "उल्लेखनीय कथा", "द पॉइज़नर ऑफ़ मॉन्ट्रेमोस" (1791) की  गॉथिक कहानियाँ थीं। सर वाल्टर स्कॉट और चार्ल्स डिकेंस जैसे उपन्यासकारों ने  लघु कथाएँ लिखीं थी । जर्मनी ने लघु कथाएँ तैयार करके यूनाइटेड किंगडम का अनुसरण किया था ।; लघु कथाओं का पहला संग्रह हेनरिक वॉन क्लिस्ट द्वारा 1810 और 1811 में था। संयुक्त राज्य अमेरिका में, वाशिंगटन इरविंग अमेरिकी पहली लघु कहानियों, " द लीजेंड ऑफ स्लीपी हॉलो " और " रिप वान विंकल " के निर्माण के लिए जिम्मेदार थे। .एडगर एलन पो ने  प्रारंभिक अमेरिकी लघु कथाकार बने भारत में उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की प्रारम्भ  में, लेखकों ने दैनिक जीवन और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के सामाजिक परिदृश्य पर केंद्रित लघु कथाएँ बनाईं है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने औपनिवेशिक कुशासन और शोषण के तहत गरीबों और पीड़ितों  किसानों, महिलाओं और ग्रामीणों के जीवन पर 150 से अधिक लघु कहानियाँ , शरत चंद्र चट्टोपाध्याय , बंगाली लघु कथाओं मे अग्रणी थे। चट्टोपाध्याय की कहानियाँ ग्रामीण बंगाल के सामाजिक परिदृश्य और आम लोगों, विशेषकर उत्पीड़ित वर्गों के जीवन पर केंद्रित थीं। लघु कथाओं के भारतीय लेखक मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी भाषा में विपुल शैली की शुरुआत यथार्थवाद और भारतीय समाज की जटिलताओं में  अनौपचारिक और प्रामाणिक आत्मनिरीक्षण शैली में 200 लघु कथाऐं लिखे थे । नाटकीय साहित्य के पहले अमेरिकी प्रोफेसर ब्रैंडर मैथ्यूज ने 1884 ई. में  द फिलॉसफी ऑफ द शॉर्ट-स्टोरी प्रकाशित की और , मैथ्यूज ने लघु कहानी  शैली को विकसित किए थे। कथा साहित्य के सिद्धांतकार हेनरी जेम्स ने लघु आख्यानों का निर्माण किया था । जान चेतना का आईना है लघुकथा 
लघुकथा आंदोलन का प्रसार दक्षिण अमेरिका,  ब्राज़ील में जारी  था । यूरोपीय लघु कथा आंदोलन इंग्लैंड के लिए अद्वितीय नहीं था। आयरलैंड में, जेम्स जॉयस ने 1914 में  लघु कहानी संग्रह डबलिनर्स प्रकाशित किया । उनके बाद के उपन्यासों की तुलना में अधिक सुलभ शैली में लिखी गई थी । उरुग्वे में , होरासियो क्विरोगा स्पेनिश भाषा के  प्रभावशाली लघु कथाकारों में बन गए थे । एडगर एलन पो के स्पष्ट प्रभाव के साथ , जीवित रहने के लिए मनुष्य और जानवर के संघर्ष को दिखाने के लिए अलौकिक और विचित्र का उपयोग करने में उनके पास महान कौशल था । उन्होंने मानसिक बीमारी और मतिभ्रम की स्थिति को चित्रित करने में भी उत्कृष्टता हासिल की थी । भारत में, उर्दू भाषा में लघुकथा के उस्ताद सआदत हसन मंटो को उनकी असाधारण गहराई, व्यंग्य और व्यंग्यात्मक हास्य के लिए सम्मानित किया जाता है। 250 लघु कहानियों, रेडियो नाटकों-अमेरिकी जीवन की कहानियाँ  है । काव्यात्मक  विज्ञान कथा कहानियाँ रे ब्रैडबरी द्वारा बड़ी लोकप्रिय सफलता के साथ विकसित की गई एक शैली थी । स्टीफन किंग ने 1960 और उसके बाद पुरुषों की पत्रिकाओं में कई विज्ञान कथा लघु कथाएँ प्रकाशित कीं। राजा की रुचि अलौकिक एवं वीभत्स में होती है। डोनाल्ड बार्थेल्मे और जॉन बार्थ ने 1970 के दशक में कृतियों का निर्माण कर  उत्तर  लघुकथा के उदय को प्रदर्शित करती हैं। रेमंड कार्वर  एवं एन किट्टी का परंपरावाद 1980 के दशक में अतिसूक्ष्मवाद ने व्यापक प्रभाव प्राप्त किया था ।, विशेष रूप से रेमंड कार्वर और एन बीट्टी के काम में । [ उद्धरण वांछित ] कार्वर ने "अत्यधिक न्यूनतम सौंदर्यशास्त्र" का प्रारंभ किया है। लिडियाअर्जेंटीना के लेखक जॉर्ज लुइस बोर्गेस स्पेनिश भाषा में लघु कथाओं के लेखक  हैं । " द लाइब्रेरी ऑफ बैबेल " (1941) और " द एलेफ " (1945) अनंत जैसे कठिन विषयों को संभालते हैं । बोर्गेस ने एलेरी क्वीन्स मिस्ट्री मैगज़ीन के अगस्त 1948 अंक में प्रकाशित " द गार्डन ऑफ़ फोर्किंग पाथ्स " से अमेरिकी प्रसिद्धि हासिल की । जादुई यथार्थवाद शैली के सबसे अधिक प्रतिनिधि लेखकों में से दो व्यापक रूप से ज्ञात अर्जेंटीना के लघु कथाकार, एडोल्फो बायोय कैसरेस और जूलियो कॉर्टज़ार हैं । नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ और उरुग्वे के लेखक जुआन कार्लोस ओनेटी हिस्पैनिक दुनिया के महत्वपूर्ण जादुई यथार्थवादी लघु कथाकार हैं। ब्राजील में, जोआओ एंटोनियो ने गरीबी और गरीबों के बारे में लिखकर अपना नाम कमाया । वहां जासूसी साहित्य का नेतृत्व रुबेम फोंसेका ने किया । [ उद्धरण वांछित ] जोआओ गुइमारेस रोजा ने मौखिक परंपरा की कहानियों पर आधारित एक जटिल, प्रयोगात्मक भाषा का उपयोग करते हुए सागराना पुस्तक में लघु कथाएँ लिखीं ।बंगाली लघुकथा के विकास में द्विमासिक पत्रिका देश (पहली बार 1933 में प्रकाशित) की भूमिका महत्वपूर्ण थी। बंगाली साहित्य के दो सबसे लोकप्रिय जासूसी कहानीकार शरदिंदु बंद्योपाध्याय ( ब्योमकेश बख्शी के निर्माता ) और सत्यजीत रे ( फेलुदा के निर्माता ) हैं। 21वीं सदी के लघु कथाकारों की संख्या में महिला लघु कथाकारों ने आलोचनात्मक ध्यान आकर्षित किया है । व ब्रिटिश लेखकों के लेखन में आधुनिक नारीवादी राजनीति की खोज की है। ऐलिस मुनरो  एवं  अभिनेता टॉम हैंक्स ने 2017 ई.  में डिजिटल उपकरण, और लघु कथा कंपनी पिन ड्रॉप स्टूडियो का  लघु कथा सैलून का पुनरुद्धार किया है। यूके में 2017 ई. को 690,000 से अधिक लघु कथाएँ और संकलन विक्रय एवं ; सैम बेकर ने इसे "21वीं सदी के लिए आदर्श साहित्यिक विधा" कहा है । पिन ड्रॉप स्टूडियो ने 2012 ई. में  लंदन और  नियमित लघु कथा सैलून लॉन्च में  लघु कथाकार बेन ओकरी , लियोनेल श्राइवर , एलिजाबेथ डे , एएल कैनेडी , विलियम बॉयड , ग्राहम स्विफ्ट , डेविड निकोल्स , विल सेल्फ , सेबेस्टियन फॉल्क्स , जूलियन बार्न्स , एवी वाइल्ड शामिल हैं। क्लेयर फुलर कनाडाई लघु कथाकारों में ऐलिस मुनरो , मेविस गैलेंट और लिन कोएडी शामिल हैं। 2013 में, ऐलिस मुनरो साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली लघु कथाओं  पहली लेखिका बनीं है  ।  पुरस्कार विजेता लघु कहानी संग्रहों में डांस ऑफ द हैप्पी शेड्स , लाइव्स ऑफ गर्ल्स एंड वुमेन , हू डू यू थिंक यू आर शामिल हैं । प्यार की प्रगति ,  अच्छी औरत का प्यार और भगोड़ा लघुकथा प्रसिद्ध है।  लघु कथा पुरस्कार में द संडे टाइम्स शॉर्ट स्टोरी अवार्ड , बीबीसी नेशनल शॉर्ट स्टोरी अवार्ड, रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर का वीएस प्रिटचेट शॉर्ट स्टोरी पुरस्कार, लंदन मैगज़ीन शॉर्ट स्टोरी पुरस्कार, पिन ड्रॉप स्टूडियो शॉर्ट स्टोरी अवार्ड और कई अन्य अवार्ड प्रत्येक वर्ष  आकर्षित करता हैं। ऐलिस मुनरो को 2013 ई. में साहित्य  नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ।"हारे हुए और अकेले, निर्वासित, महिलाएँ, अश्वेत - लघुकथा लेखक   ज्ञानमीमांसा का हिस्सा नहीं वल्कि समाज का अनुभवात्मक ढाचा का रूप दिया लघु कथा है।
कहानी एवं लघुकथा  कहने की कला का वैश्विक उत्सव विश्व कहानी  दिवस है । विश्व कहानी दिवस की जड़ें  1991- 02 में स्वीडन में कहानी कहने के राष्ट्रीय दिवस से संबंध  हैं । उ, स्वीडन में 20 मार्च के लिए  कार्यक्रम आयोजन "अल्ला बेरेटारेस डेग" सभी कहानीकार दिवस व  स्वीडिश द्वारा  1997 में, पर्थ, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में कहानीकारों ने 20 मार्च को मौखिक कथाकारों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाते हुए, कहानी के पांच सप्ताह तक चलने वाले उत्सव का आयोजन किया। मेक्सिको और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों में 20 मार्च को पहले से  राष्ट्रीय कहानीकार दिवस के रूप में मनाया जाता था। स्कैंडिनेवियाई कहानी कहने वाला वेब-नेटवर्क, रैटाटोस्क, 2001 ई.  स्कैंडिनेवियाई कहानीकारों ने   2002 में,  कार्यक्रम स्वीडन से नॉर्वे , डेनमार्क , फिनलैंड और एस्टोनिया तक फैल गया है । कनाडा और अन्य देशों में 2003 ई. में फैला , 2004 में  फ़्रांस ने जर्स मोंडियल डू कॉन्टे कार्यक्रम में भाग लिया था  । विश्व कहानी दिवस 20 मार्च 2005 का रविवार को भव्य समापन में  5 महाद्वीपों के 25 देशों में कार्यक्रम हुए और 2006 में कार्यक्रम का विस्तार हुआ है । 2007 में पहली बार न्यूफ़ाउंडलैंड , कनाडा में कहानी कहने का संगीत कार्यक्रम आयोजित किया गया था। 2008 में नीदरलैंड ने 20 मार्च को 'वर्टेलर्स इन डे आंवल' कार्यक्रम के साथ विश्व कहानी दिवस में भाग लिया था । 2009 में, यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में विश्व कहानी दिवस कार्यक्रम हुए है। विश्व कहानी व लघुकथा दिवस के अवसर पर 2004 - पक्षी , 2005 - पुल , 2006 - द मून ,2007 - द वांडरर , 2008 - सपने , 2009 - पड़ोस , 2010 - प्रकाश और छाया , 2011 - पानी , 2012 - पेड़ , 2013 - भाग्य और नियति , 2014 - राक्षस और ड्रेगन 2015 - शुभकामनाएं , 2016 - सशक्त महिलाएँ , 2017 - परिवर्तन , 2018 - बुद्धिमान मूर्ख , 2019 - मिथक, किंवदंतियाँ और महाकाव्य , 2020 - यात्राएँ , 2021 - नई शुरुआत , 2022 - खोया और पाया , 2023 - हम एक साथ हो सकते हैं और 2024 - पुलों का निर्माण पर कहानीकारों द्वारा  कहानी और लघुकथा प्रारम्भ किया गया  है