गुरुवार, मई 19, 2022

लोक सांस्कृतिक चेतना का समन्वय लोक संगीत ...


        लोक मानस की अभिव्यक्ति लोक गीत , संगीत वादन और नृत्य है । मानव में बुद्धि विकास के साथ भावनाओं को लयात्मक तरीके से अभिव्यक्त है । जर्मनी के प्रसिद्ध लोक साहित्य विल्यप्रिय ने लोकगीत के विषय में सामूहिक उत्पत्ति का सिद्धान्त प्रतिपादित करते हुए लोकगीत का निर्माण सामूहिक रीति से हुआ है । रूसी लोक साहित्य सोकोलोव ने सामूहिक उत्पत्ति सिद्धान्त में  लोकगीत का सृजन बीज रूप में सर्वप्रथम व्यक्ति द्वारा हुआ  है । लोकगीत मौखिक परम्परा में जीवित रखने के लिए गीत का सृजन करते समय  लेखनी से अधिक कण्ठ तथा निष्ठा का प्रयोग करते हैं , फलस्वरूप मौखिक प्रक्रिया से हो गीत लोकप्रिय होने के बाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता रहता है । भारत की समप्र बोलियों एवं उपबोलियों में प्रचलित गीतों के अध्ययन के पश्चात् लोकगीतों के सजन में व्यक्ति विशेष अधिक सक्रिय रहा है । लोकगीतों का वर्गीकरण में लोकगीत , प्रकृति ,पारिवारिक  ,धार्मिक  , विविध विषयक लोकगीत है।. प्रकृति  लोकगीतों के अन्तर्गत प्राकृतिक ऋतु आधारित गीत में नायिका – नायक से ‘ जीरा ‘ फसल उपज में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन करते हुए ‘ जीरे ‘ की फसल नहीं बोने का आग्रह करती है । पारिवारिक लोकगीत में नायिका  नायक को दूसरे प्रदेश से अपने घर आने का आग्रह कर रही है ।  पारिवारिक लोक गीत माण्ड गायन शैली है।  विश्वभर में मांड गायन शैली  राजस्थान की पहचान है । धार्मिक  लोकगीतों के अन्तर्गत  इष्ट देव को रिझाने या प्रार्थना व पूजा करने के समय गीत गाए जाते हैं ।  राजस्थान के  लोक देवता को रिझाने हेतु पोखरण के पास रूणेचा गाँव में जाते  है । बिहार के छठ गीत , सूर्य गीत , देवी गीत , कोहबर , चौहट , विवाह गीत , पराती गीत  मगही , मैथिली , भोजपुरी , अंगिका , वज्जिका भाषाओं में अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गाती है । विविध  लोकगीत में पशु , पक्षियों ,  जीव , जंतुओं , वस्त्रों व आभूषणों पर आधारित गीत गाए जाते हैं  । विभिन्न प्रकारों के लोकगीत के माध्यम से जन – साधारण भावों की अभिव्यक्ति कर अपना मनोरंजन करता है ।लोकगीत में स्वतन्त्र रूप से ताल की संगत के साथ प्रस्तुत करने पर  प्रभावशाली होता है । लोक धुन में लोकगीत लयबद्ध एक ही धुन में गाए जाने में प्रायः सरलता मिलती है ।लोकगीत लोक भाषा में अति विलम्बित लय ,  धुनों में सात शुद्ध स्वरों कोमल , गन्धार व कोमल निषाद का विशेष प्रयोग होता है । लोकगीतों में अधिकतर सप्तक के पूर्वांग के स्वरों का प्रयोग मिलता है ।लोक धुनें स्वर की अपेक्षा लय प्रधान के साथ  ध्येय मनोरंजन प्रदान करना है । लोकगीत  देश की प्राचीन संस्कृति , सभ्यता और विचारों से अवगत कराते हैं । लोकगीतों के माध्यम से  देश , समाज के भिन्न – भिन्न रीति – रिवाजों , रहन – सहन , तीज – त्यौहारों आदि की पहचन के माध्यम से जीवन में सुधार  कर सकते हैं । लोकगीतों से प्राचीन इतिहास , घटनाओं , प्रवृत्तियों और तत्कालीन मनोभावों की पहचान कर  लोकगीतों के संग्रह से गाँवों को शहरों के निकट लाने में सफल होते हैं । लोक गीतों के संग्रह से  कण्ठस्थ साहित्य लिपिबद्ध होकर सुरक्षित रखने से महिलाओं – पुरुषों के मस्तिष्क की महिमा दृष्टिगोचर होती है । लोकगीतों द्वारा  देश और समाज के भिन्न – भिन्न रीति – रिवाजों , रहन – सहन , तीज – त्यौहारों आदि का परिचय  प्रप्ति के साथ  प्राचीन , इतिहास , घटनाओं , धार्मिक प्रवृत्तियों और तत्कालीन मनोभावों का भी परिचय के साथ ही साथ भाई – बहनों के पवित्र स्नेह बन्धन , माता – पिता के लाड़ – प्यार , पति – पत्नी के पुनीत सम्बन्ध , परिवारों के मेल – मिलाप , गृहस्थ जीवन की समस्याओं आदि की जानकारी होती है । वृक्ष की जड़ें की तरह लोक गीत , वाद्य एवं नाट्य  अतीत काल में गढ़ी हुई   स्वयं अविराम गति से नई टहनियाँ ,  पत्तियाँ ,  फल और नए – नए पक्षी उत्पन्न होते हैं । । लोक कला संस्कृति की आत्मा है । भूस्थल पर इंसान की उद्भव में लोक कला , संगीत , वाद्य का महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।ब्रह्मांड में व्याप्त  नाद ध्वनि ऋषियों द्वारा विकसित की गई थी । सिंधु सभ्यता के स्थल से संगीत वाद्ययंत्र सप्तछेद की वासुरी, लंका की होला  सभ्यता  से रावण हत्था ,  सामवेद से  संगीत का साहित्यिक राग खरहरप्रिया , गंधर्व वेद , ऐतरेय आरण्यक ,, जैमिनी ब्राह्मण में ओम स्वरों का सिद्धंत का उल्लेख किया गया है । पाणिनि ने संगीत एवं लोक कला का 4 थीं शताब्दी ई.पू. तथा भरत ने 200 ई. पू. से 200 ई.के मध्य में नाट्यशास्त्र का विकास किया है ।भारतीय संगीत , लोक संगीत , वाद्य , नाट्य का विकास उत्तर वैदिक काल  में संगम संगीत , जातिमान संगीत में स्वर, ताल और ताल का विकास हुआ था । 
पश्चिमी ओडिशा के नौपाड़ा जिले में रहने वाली जनजाति की भुजिया एवं अंडमान की जरवा , झारखंड में संथाली ,हो , बिहार में मगही, भोजपुरी , मैथिली  अंगिका , वज्जिका भाषा में लोक संगीत एवं विभिन्न वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हैं ।
भाषा वैज्ञानिक के अनुसार 70000 वर्ष पूर्व आदि मानव ने विश्व से -फूलते रहे है। भारत और दुनिया की हजारों भाषाओं ईवा? लोक संगीत विलुप्त हो रही है । युनेस्को द्वारा जारी “एटलस ऑफ वर्ल्ड लैंग्वेज इन डैंजर” के अनुसार 1950 तक  विश्व में   230 भाषाएं विलुप्त हो गई थी परंतु युनेस्को ने 2001 में प्रथम बार एटलस के अनुसार  900 भाषाओं पर विलुप्ति का खतरा पाया था ।  2017 में अद्यतन किया गया एटलसमें उल्लेख किया है कि विलुप्त भाषाओं की संख्या 2,464 तक पहुंच गई। युनेस्को की सूची में अहोम, आंद्रो, रांगकास, सेंगमई और तोल्चा तथा  भारत की 197 भाषाएं   तथा  अमेरिक में 191 भाषाएं ,  ब्राजील में  190 भाषाएं विलुप्त हो रही है ।संयुक्त राज्य अमेरिका के गैर लाभकारी संगठन एनडेंजर्स लैंग्वेज फंड और भारतीय भाषाओं पर किया गया पीपुल्स लिंग्विस्टि सर्वे ऑफ इंडिया भयावह तस्वीर पेश करता है। देश के विभिन्न राज्यों में किए गए भाषायी सर्वेक्षण में पाया गया है कि 50 सालों में 220 भाषाएं दम तोड़ चुकी हैं। सर्वेक्षण में 780 भारतीय भाषाओं का पता लगाया था। 600 भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है। पीएलएसआई ने डाउन टू के प्रतिवेदन में घुमंतू समुदाय और तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की भाषा सबसे अधिक खतरे में है। दुनियाभर में भाषाओं पर नजर रखने वाले गैर लाभकारी संगठन एथनोलॉग से भी इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं। समय-समय पर भाषाओं को अपडेट करने वाले इस संगठन के अनुसार, इस समय दुनियाभर बोली जाने वाली 7,139 भाषाओं में 42 प्रतिशत (3,018) भाषाएं संकट ग्रस्त हैं।  एथनोलॉग के अनुसार, दुनिया की आधी आबादी 24 भाषा में चीनी मंदारिन, स्पेनिश, अंग्रेजी, हिंदी, पुर्तगाली, बंगाली, रूसी, जापानी, जावानी और जर्मनी शामिल हैं। विश्व की आधी आबादी 7,000 भाषाएं बोलती है। एथनोलॉग ने अपने विश्लेषण में पाया है कि दुनिया की आधी भाषाओं को 10 हजार से कम बोलने वाले लोग बचे हैं। विश्व की केवल एक प्रतिशत आबादी लगभग 5,000 भाषाएं बोलती हैं। भाषा कोकी 81 प्रतिशत, ब्राजील-इंडोनिशया की 62 प्रतिशत, नेपाल की 61 प्रतिशत देसज भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है। भारत की 30 प्रतिशत देसज भाषाएं है। भाषा, संस्कृति और पर्यावरण एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं । इंडोनिशिया (712 भाषा), नाइजीरिया (522 भाषा) और भारत (454 भाषा) में सबसे अधिक भाषाएं लोक संगीत , वाद्य और नाट्य में  बोली जाती हैं। ये ऊष्णकटिबंधीय देश भी जैव विविधता से परिपूर्ण हैं। “बायोकल्चरण डायवर्सिटी टूलकिट : एन इंट्रोडक्शन टु बायोकल्चरल डायवर्सिटी” के अनुसार, सबसे अधिक भाषाओं वाले देशों में मैक्सिको में दुनिया की करीब 10 प्रतिशत जैव विविधता पाई जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में सबसे अधिक प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा है और यही देश भी बड़े पैमाने पर भाषाओं से हाथ धो बैठे हैं। अनुमान है मुताबिक, पिछले 45 वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका 64 प्रतिशत और ऑस्ट्रेलिया 50 प्रतिशत भाषाएं खो चुका है। उत्तराखंड में गढ़वाली , उत्तरप्रदेश में अवधि , ब्रजभाषा , तमिल , कर्नाटकी , असमिया , बांग्ला , मलयालम , उड़िया , गुजराती , नेपाली , मैथिली ,मगही , भोजपुरी , वज्जिका एवं अंगिका संगीत , वाद्य और नाट्य में लोक भाषा में प्रचलन है ।लोक संगीत एवं पर्व लोक संस्कृति  समन्वय की पहचान है ।




गुरुवार, मई 12, 2022

प्रेम और मोह की देवी है मोहनी ...


पुरणों एवं महाभारत के अनुसार भगवान विष्णु का महिला  अवतार मोहनी द्वारा  ब्रह्मांड को मोहित कर  प्रेम में रहने का मार्ग प्रशस्त किया गया है । प्रेम , मोह और वासना की देवी  भगवान विष्णु का स्त्री अवतार मोहनी का जन्म वैशाख शुक्ल एकादशी को अवतरण हुआ था । भगवान शिव की अर्धांगनी मोहकता , सुदर्शन चक्र अस्त्र धारिणी मोह , प्रेम और वासना की देवी मोहनी का पुत्र  अय्यप्पा था । । समुद्र मंथन के समय जब देवताओं व असुरों को सागर से अमृत मिला था । देवताओं को डर था कि असुर कहीं अमृत पीकर अमर न हो जायें। तब वे भगवान विष्णु के पास गये व प्रार्थना की कि ऐसा होने से रोकें। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत देवताओं को पिलाया ब्रह्मवैवर्तव असुरों को मोहित कर अमर होने से रोका। भगवान श्री विष्णु ने मोहनी  नारी बनकर  संसार  को देवों व असुरों से रक्षा की थीं।  मोहिनी द्वारा  मानव जाति  दुनिया से लुप्त होने के लिए वचाव की थी ।  भगवान शिव से दैत्य राज भष्मासुर वरदान माँगा की सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। दैत्यराज  भस्मासुर ने भगवान शिव से प्राप्त वरदान के  शक्ति का गलत प्रयोग शुरू किया और स्वयं शिव जी को भस्म करने चला था। भगवान विष्णु  ने मोहनी  स्त्री का रूप धारण कर भस्मासुर को आकर्षित किया और नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय भस्मासुर मोहनी की  तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर मोहनी  ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसकी नकल शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर अपने वरदान से भस्म हो गया। समुद्र मन्थन के दौरान अमृत कलश लेकर भगवान विष्णु का अवतार धनवंतरी रूप में प्रकट हुए। असुर भगवान धन्वंतरि से अमृत कलश लेकर असुर भाग गया था । भगवान विष्णु का अवतार नारी  मोहिनी  ने असुरों से अमृत लिया और देवताओं के पास गईं। मोहनी ने असुरों को अपनी ओर मोहित कर लिया और देवताओं को अमृत पिलाने लगीं। मोहिनी की चाल दानवराज स्वरभानु द्वारा  देवता का भेष  लेकर अमृत पीने चला गया। मोहिनी को  पता चली तब  मोहनी द्वारा दानव राज  स्वरभानु का सिर सुदर्शन चक्र से काट दिया गया परंतु  दानवराज स्वरभानु के गले से अमृत की घूंट नीचे चली गई और वह अमर हो गया था । मोहनी द्वारा सुदर्शन चक्र से दानवराज स्वरभानु का सिर और धड़ अलग होने के कारण राहु के नाम से स्वरभानु का सिर और केतु के नाम से स्वरभानु का धड़ प्रसिद्ध हुआ है ।वविश्व के विभिन्न क्षेत्रों में यूनानी ग्रीक , मिश्र और पश्चिमी देशों में मोहनी मंदिर में मिश्र की देवी हैकटी ,ग्रीक यूनान में सेमरानेरा ,लियोनार्डो द विंची , कर्नाटक , गोवा में महालसा मंदिर ,आंध्रप्रदेश के गोदावरी जिले के रायली में मोहनी मंदिर , हेलेबीड़ू होयसलेश वारा टेम्पल ,भुवनेश्वर , चिदंबरम , झाँझर ,ओड़िसा , इंडियन कोलम्बस टेम्पल ,चेन्नके , बेलूर , अलंपुरम में मोहनी मंदिर प्रसिद्ध है । मोहनी का उल्लेख भागवत , महाभारत , ब्रह्मवैवर्त एवं पुरणों में किया गया है । सनातन संस्कृति एवं पंचांगों में वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि मोहनी देवी को समर्पित मोहनी एकादशी है ।





मंगलवार, मई 10, 2022

मातृ पितृ भक्त श्रवण का स्थल सरवन देवड़ी ....


    मातृ पितृ भक्त  श्रवण कुमार  के माता पिता अंधें थे । श्रवण कुमार अपने माता पिता की बहुत सेवा करते थे उनकी तीर्थ की इच्छा पूरी करने उन्हें दो टोकरी में कांवर बना बैठाकर ले जा रहे थे तभी माता पिता नें प्यास लगने पर श्रवण कुमार को नदी का पानी लेने भेजा तभी शिकार के इंतजार में बैठे अयोध्या के राजा दशरथ नें शब्द भेदी बाण चला दिया जिससे श्रवण कुमार की मृत्यू हो गई लेकिन माता पिता की सेवा और आशीर्वादकी वजह से उन्हें  पितृ भक्त श्रवण कुमार के नाम विख्यात है। छत्तीसगढ़ राज्य का बिलासपुर जिला मुख्यालय विलासपुर से  पच्चीस किलोमीटर दूर और महामाया कि नगरी रतनपुर से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरवन देवरी में श्रवण कुमार की पाषाण प्रतिमा स्थापित है। 1222 ई. में  डबरापरा को  देवरी नामकरण  किया गया  था । डबरापरा में  निषाद  निवासी  को स्वप्न में श्रवण कुमार की प्रतिमा  गांव के निकट बहने वाली खारुन नदी के दहरे में से निकाल कर गांव में स्थापित किये जाने की बात कही जाती थी । निषादों  ने श्रवणकुमार की प्रतिमा के संबंध में  जानकारी प्राप्त करने के बाद  निषादों एवं ग्रामीणों द्वारा  खारुन नदी पर जाल फेंकते गांव के लोग हतप्रभ रह गये जब जाल खींचने पर ना केवल श्रवण कुमार की पाशाण प्रतिमा के साथ पाषाण प्रतिमा  गणेश ,  नागदेवता ,  शिवलिंग ,  नंदी ,  हनुमान जी की प्रतिमा निकली थी । ग्रामीणों द्वारा  खारुन नदी के किनारे खारुन नदी से प्राप्त पाषाण मूर्तियां श्रवणकुमार , शिवलिंग, नाग ,नंदी एवं हनुमान जी   स्थापित किया गया है । कैंसर पीडित राधेश्याम  ने श्रवणकुमार मंदिर बनाने के लिये अपने परिवार को अपनी मौत से पूर्व ही कहा  था कि श्रवण कुमार के मंदिर का निर्माण मेरी मौत के बाद आप लोगों को करना है। परिवार के लोगों नें भी उनको दिया वचन पूरा करते हुए गांव में श्रवन कुमार के मंदिर की स्थापना कर उनकी प्रतिमा स्थापित किया था । खाॅरुन नदी के दहरा का  भगवान श्रवण कुमार  को समर्पित गाँव सरवन देवरी में  प्रतिवर्ष माघ शुक्ल  पुर्णिमा के दिन खारुन नदी  का दहरे से श्रवण कुमार की प्रतिमा निकाली गई थी ।  महिलाएं  श्रवण कुमार पूजा करतीं और  श्रवण कुमार कि तरह माता -पिता की सेवा करने वाला पुत्र उनकी कोख से जन्म लेने की मन्नते मानती है । त्रेतायुग में ब्रह्मा जी द्वारा शापित ऋषि शांतनु की पत्नी ज्ञानवती का पुत्र श्रवण कुमार का  जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के बुजुर्ग जिले का बटिया गढ़ तहसील के अंतर्गत करवाना में हुआ था । शास्त्रों के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की बहन रूपवती एवं यज्ञदत्त का पुत्र श्रवण था। यगदत्त ज्ञानवान और भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी का भक्त थे।  ब्रह्मा जी के शापित होने से अंधा होने के कारण यगदत्त एवं पत्नी चंद्रकला  को अंधक एवं शांतनु तथा पत्नी को ज्ञानवती ,ज्ञानमती ,ज्ञानवन्ति ,ज्ञानवाणी अंधी हो गयी थी । यगदत्त के पुत्रों में वंशीलाल ,राजू ,महेंद्र ,जगपाल एवं श्रवणकुमार एवं पुत्री शांता थी । शांतनु की भर्या ज्ञानवती के पुत्र श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कावर में बैठा कर तीर्थ भ्रमण कार्य कर रहे थे । श्रवणकुमार का ससुराल उत्तरप्रदेश के मेरठ स्थित मयराष्ट्र में था । रामायण के अनुसार श्रवण कुमार ने अपने माता पिता को प्यास बुझाने के लिए नदी में जल भरने के दौरान अयोधया के राजा दशरथ द्वारा शब्दभेदी बाण चला कर हत्या कर दी ग्सई थी । जब श्रवणकुमार के अंधे माता पिता को यह ज्ञात हुआ कि मेरा पुत्र दशरथ द्वारा मारा गया है । अंधे माता पिता द्वारा अयोध्या के राजा दशरथ को शसप दिया कि जिस तरह मैं अपने पुत्र श्रवण के वियोग में अपना प्राण त्याग करता हु उसी तरह है दशरथ तुम्हे अपने पुत्र के वियोग में तुम्हारी मृत्यु होगी । फलत: भगवान राम के वन गमन के दौरान राजा दशरथ ने अपने पुत्र राम के वियोग में अपने प्राण त्याग किए थे । श्रवण के चार भाइयो द्वारा उत्तराखंड के  पलवल का फुलवारी से अपने माता रूपवती एवं पिता चंद्रपाल को काँवर में बैठाकर हरिद्वार का भ्रमण कराया गया था । छत्तीसगढ़ का मातृ पितृ भक्त सरवन का स्थल सरवन देवड़ी है ।



रविवार, मई 08, 2022

माता की ममता की आँचल है सर्वांगीण सुख ...


    सनातन धर्म की मातृ शक्ति को समर्पण प्रत्येक वर्ष वासंति , माघी , श्रावणी एवं शारदीय नवरात्र सहस्त्र वर्षों से है । माता को पृथिवी और स्वर्ग कहा गया है । कुपुत्रो जायत: माता सुमता भवति । ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जार्विस के द्वारा समस्त माताओं तथा मातृत्व के लिए  पारिवारिक एवं आपसी सम्बन्धों को सम्मान देने के लिए विश्व मातृ दिवस आरम्भ किया गया था। मातृ दिवस विश्व  के अलग-अलग दिनों में मनाया जाता हैं।  ग्रीस के ग्रीक देवताओं की मां  स्बेलोथीं के सम्मान में मातृ दिवस मनाया जाता है।  अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस ने माँ से प्यार जताने के लिए मदर्स डे की शुरूआत वर्ष के मई माह के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया  है। प्राचीन रोमवासी द्वारा जूनो को समर्पित मेट्रोनालिया में  माताओं को उपहार दिये जाते थे। यूरोप और ब्रिटेन में रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित दिवस को मदरिंग सन्डे कहा जाता था। मदरिंग सन्डे समारोह, अन्ग्लिकान्स सहित, लितुर्गिकल कैलेंडर का ईसाई उपाधियों और कैथोलिक कैलेंडर में लेतारे सन्डे, चौथे रविवार लेंट में वर्जिन मेरी और "मदर चर्च" को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता हैं। जुलिया वार्ड होवे द्वारा सर्वप्रथम अमेरिका में मातृ दिवस 1870 में रचित "मदर डे प्रोक्लामेशन" में अमेरिकन सिविल वार और फ्रांको-प्रुस्सियन वार में हुई-मारकाट में शांतिवादी प्रतिक्रिया लिखी गयी थी। यह प्रोक्लामेशन होवे का नारीवादी विश्वास था । 1912 में एना जार्विस ने "सेकंड सन्डे इन मे" और "मदर डे" को ट्रेडमार्क बनाया और मदर डे इंटरनेशनल एसोसिएशन का सृजन किया गया था । लेंट में मदरिंग सन्डे की ब्रिटिश परंपरा से चौथे सन्डे (रविवार) और मई के दूसरे सन्डे है। कैथोलिक देशों में वर्जिन मेरी डे अथवा इस्लामी देशों में पैगंबर मुहम्मद की बेटी के जन्मदिन एवं  अन्य देशों ने बोलीविया ने उस खास युद्ध की तारीख का उपयोग करने के कारण  महिलाओं ने हिस्सा लिया था । कैथोलिक धर्म में यह छुट्टी वर्जिन मेरी के श्रद्धांजली देने की प्रथा के साथ जुड़ा हुआ हैं। सनातन संस्कृति में  "माता तीर्थ औंशी" या "मदर पिल्ग्रिमेज फोर्टनैट" कहा जाता हैं ।
अफ्रीकी देशों ने मातृ दिवस मनाने का तरीका ब्रिटिश परंपरा से अपनाया हैं । बोलीविया में, मातृत्व दिवस 27 मई को मनाया जाता हैं। कोरोनिल्ला युद्घ को स्मरण करने के लिए 8 नवम्बर 1927 को कानून पारित किया गया। यह युद्ध 27 मई 1812 को उस जगह हुआ था।  इस लड़ाई में, उन महिलाओं का स्पेनिश सेना द्वारा सरेआम कत्ल कर दिया गया जो देश की आजादी के लिए लड़ रही थी। चीन में, मातृ दिवस में उपहार के रूप में गुलनार का फूल,सबसे अधिक बिकते हैं। ग्रीस में मातृ दिवस प्रस्तुति मंदिर में यीशु के रूप में पूर्वी रूढ़िवादी द्वारा मनाया जाता था। थियोटोकोस (परमेश्वर की मां), मसीह को यरूशलेम के मंदिर तक लाने के कारण प्रमुख रूप से  उत्सव हैं । ईरान में मुहम्मद की बेटी फातिमा का सालगिरह 20 जुमादा अल-ठानी को मनाया जाता है। जापान में  मातृ दिवस जापान में शोवा अवधि के दौरान महारानी कोजुन के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मेक्सिको में अलवारो ओब्रेगोन की सरकार ने एक्सेलसियर अख़बार के साथ मिलकर 1922 में यह छुट्टी अमेरिका से अपनाई है । लाज़रो कार्देनस की सरकार ने सन्न 1930 के मध्य में मातृ दिवस को "देशभक्ति का त्यौहार" के रूप में बढ़ावा दिया। कार्देनस सरकार ने इस छुट्टी का उपयोग विभिन्न प्रयासों के लिए एक साधन के रूप में यह सोचते हुए किया कि परिवार का राष्ट्र के विकास में बहुत योगदान होता हैं और मेक्सिकन लोगों में अपनी मां के प्रति वफादारी का लाभ उठाते हुए चर्च और कैथोलिक प्रथाओं के प्रभावों को कम करते हुए मेंक्सिकन महिलाओं में नई नैतिकता का सूत्रपात किया। सरकार ने स्कूलों में छुट्टी को प्रायोजित किया है।
सोलेदाद ओरोज्को गार्सिया, राष्ट्रपति मैनुअल एविला कामाचो की पत्नी ने,मातृदिवस  अवकाश  को सन् 1940 के दशक के दौरान  राज्य प्रायोजित समारोह बनाने में बढ़ावा दिया है। कैथोलिक राष्ट्रीय स्य्नार्चिस्ट संघ ने 1941 के आसपास की छुट्टियों पर ओरोज्कोस की तरक्की के लिए ध्यान देना शुरू कर दिया था। मैक्सिकन क्रांति के सदस्यों जिनकी दुकानें थीं, उनका रिवाज था कि विनम्र वर्ग की महिलाएं मात् दिवस पर उनकी दुकानों पर जाकर कोई भी उपहार मुफ्त में लेकर अपने घर आकर परिवार वालों को दे सकती हैं। स्य्नार्चिस्ट्स  1940 का नज़र रखा था ।
 लियोन नगर के पादरी ने सरकारी कार्यों में यह देखा कि वे छुट्टी को किसी लौकिक-कार्य में लगा कर समाज में महिलाओं की सक्रिय भूमिका को बढ़ावा देने के साथ, पुरुषों को दीर्घकालिक आत्मिक रूप से कमजोर बना दिया जब महिलाओं ने अपनी पारंपरिक भूमिका को परित्यक्त कर दिया।  मैक्सिकन सरकार ने 1940 में मैक्सिको में मातृ दिवस और वर्जिन मेरी दोनों ही छुट्टी का एक उत्सव हैं। नेपाल  में "माता तीर्थ औंशी", "मदर पिल्ग्रिमेज फोर्टनाईट"  बैशाख के महीने के कृष्ण पक्ष  अमावस्या में "माता तीर्थ औंशी" जीवित और स्वर्गीय माताओं के स्मरणोत्सव और सम्मान में मनाया जाता है, जिसमें जीवित माताओं को उपहार देने तथा स्वर्गीय माताओं का स्मरण किया जाता हैं। नेपाल की परंपरा में माता तीर्थ की तीर्थयात्रा पर जाना प्रचलित परंपरा में  काठमांडू घाटी के माता तीर्थ मनाया जाता है । द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण की मां देवकी एवं यशोदा प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए घर से बाहर निकल गयी। उन्होंने कई स्थानों का दौरा किया और घर लौटने में बहुत देर कर दी। भगवान कृष्ण अपनी मां के न लौटने पर दुखी हो गए। वे अपनी मां की तलाश में कई स्थानों पर घूमते रहे परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली एवं  "माता तीर्थ कुंड" पहुंने पर  देखा कि उनकी मां तालाब के फुहार में नहा रही हैं। भगवान कृष्ण अपनी मां को देख कर बहुत खुश हुए और अपनी समस्त शोकपूर्ण घटना जो उनकी माता की अनुपस्थिति में हुई थी । मां देवकी ने कृष्ण भगवान से कहा कि "ओह!बेटा कृष्णा फिर तो इस स्थान को बच्चों की उनकी स्वर्गीय माताओं से मिलने का पवित्र स्थल ही रहने दिया जाये ।"  स्थान एक पवित्र तीर्थयात्रा बन गया हैं जहां श्रद्धालु एवं भक्तगण अपनी स्वर्गीय माताओं को श्रद्धा अर्पण करने आते हैं। पुत्र ने अपनी मां की छवि को तालाब में देखा और उसके अंदर गिर कर उसकी मृत्यु हो गई। आज भी वहां एक छोटे से तालाब को चरों तरफ से लोहे की सिकल से बांध दिया गया हैं। पूजा करने के पश्चात तीर्थयात्री वहां पूरे दिन गाने-बजाने का संपूर्ण आनद उठाते हैं। थाईलैंड में मातृत्व दिवस थाइलैंड की रानी के जन्मदिन पर मनाया जाता है। रोमानिया में मातृ दिवस मनाया जाता है । यूनाइटेड किंगडम और आयरलैंड में, मदरिंग सन्डे लेंट के चौथे रविवार को पड़ता है, इस्टर सन्डे के प्रादुर्भाव 16वीं सदी में ईसाइयों द्वारा प्रत्येक साल अपनी मां के गिरिजाघर में जाने से हुआ हैं । यीशु मसीह की मां मदर मैरी और साथ में परंपरागत संकल्पना 'मदर चर्च' को समर्पित है । संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और कनाडा मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाते हैं। वियतनाम में मातृ दिवस को ले वू-लैन  है । मातृ दिवस पर माता की ममता और शांति का आँचल में रहने वाला प्रत्येक इंसान सर्वांगीण विकास करता है । मातृ देवो भव : ।