बुधवार, जून 29, 2022

झारखंड की सांस्कृतिक विरासत ....


        झारखंड राज्य का रांची जिले के धुर्वा क्षेत्र में जगन्नाथपुर स्थित भगवान जगन्नाथ को समर्पित जगन्नाथ मंदिर का निर्माण  1691 में बरकागढ़ के नागवंशीय राजा जगन्नाथपुर ठाकुर अनी नाथ शाहदेव द्वारा कराया गया  था ।झारखंड की राजधानी रांची से 10 कि. मि.की दूरी पर पहाड़ी की श्रृंखला पर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण  25 दिसंबर, 1691 को पूर्ण  हुआ था । भौगोलिक निर्देशांक 23°19′1″N 85°16′54″E पर स्थित जगन्नाथपुर उड़ीसा शिल्पकला में निर्माण अनी नाथ शाहदेव ने 1691 ई. में पूर्ण किया था । रांची के जगन्नाथ मंदिर की उन्नीसवीं सदी में ओडिशा के पुरी में प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के समान , यह मंदिर उसी स्थापत्य शैली में बनाया गया है, हालांकि छोटा, और पुरी में रथ यात्रा के समान, इस मंदिर में आषाढ़ के महीने में एक वार्षिक मेला सह रथ यात्रा आयोजित की जाती है , हजारों आदिवासी और गैर-आदिवासी भक्तों को आकर्षित करना [3] न केवल रांची से बल्कि पड़ोसी गांवों और कस्बों से भी और बहुत धूमधाम और जोश के साथ मनाया जाता है। एक पहाड़ी की चोटी पर निर्मित, आगंतुक ज्यादातर सीढ़ियों पर चढ़ते हैं या वाहन लेते हैं। वर्ष 1691 में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा मंदिर को अपवित्र और तोड़ दिया गया था। जगन्नाथ मंदिर 6 अगस्त 1990 को ढह गया और 8 फरवरी 1992 को इसका पुनर्निर्माण किया गया। नागवंशी राजा ने  मानवीय मूल्यों की जगन्नाथ मंदिर स्थापना कर समाज को जोड़ने के लिए प्रत्येक  वर्ग के लोगों को जिम्मेदारी दी गयी थी । उरांव परिवार को मंदिर की घंटी देने और तेल व भोग के लिए सामग्री देने की जिम्मेदारी दी गयी.। 1691 में बड़कागढ़  में नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने रांची में धुर्वा के पास भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था । राजा  ठाकुर एनीनाथ शाहदेव के नौकर भगवान का भक्त  और कई दिनों तक भगवान जगन्नाथ की  उपासना करने के दौरान रात्रि में  भूख से व्याकुल हो उठा था । मन ही मन प्रार्थना की कि भगवान भूख मिटाइये । उसी रात भगवान जगन्नाथ ने रूप बदल कर अपनी भोगवाली थाली में खाना लाकर राजा के नौकर को खिलाया था ।भगवान  जगन्नाथ भक्त नौकर ने पूरी आपबीती राजा ठाकुर  को सुनायी थी । उसी रात भगवान ने राजा ठाकुर को स्वप्न में कहा कि यहां से लौटकर मेरे विग्रह की स्थापना कर पूजा-अर्चना करो । जगन्नाथ  पुरी से लौटने के बाद एनीनाथ ने पुरी मंदिर की तर्ज पर जगन्नाथ पुर में मंदिर की स्थापना की है । जगन्नाथपुर के राजा द्वारा भगवान जगन्नाथ मंदिर पर मुंडा परिवार को झंडा फहराने, पगड़ी देने और वार्षिक पूजा की व्यवस्था ,  रजवार और अहीर  के लोगों को भगवान जगन्नाथ को मुख्य मंदिर से गर्भगृह तक ले जाने , बढ़ई परिवार को रंग-रोगन की जिम्मेवारी , लोहरा परिवार रथ की मम्मत करने एवं कुम्हार परिवार मिट्टी के बरतन की व्यवस्था करने का भार दिया थ ।भगवान जगन्नाथ के याद में निकाली जाने वाली 'जगन्नाथ रथ यात्रा भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। झारखंड राज्य के तटवर्ती जगन्नाथपुर  में जगन्नाथ मंदिर 'जगत के स्वामी जगन्नाथ'  है।  जगन्नाथ मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव आषाढ़ शुक्ल   द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है और शुक्ल पक्ष के  एकादशी  तिथि को समाप्त होती है। रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत  ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण  रथों को खींचते है । रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। तीनों के रथ को खींचकर मौसी के घर यानी कि मौसी वाड़ी मंदिर लाया जाता है । बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' का रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या 'पद्म रथ' काले या नीले और लाल रंग  एवं  भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज'  रंग लाल और पीला होता है। रथ यात्रा का रथ खींचने से इंसान के सारे पापों का खात्मा होता है और उसे 100 जन्मों के पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सनातन धर्म संस्कृति में झारखंड राज्य में शैव , शाक्त , सौर , वैष्णव , बौद्ध एवं जैन  धार्मिकता के प्राचीन अवशेष  हैं।  छोटानागपुर के पठारों पर शैव धर्म के उपासकों का शिवलिंगों  बौद्ध एवं जैन धर्म से जुड़े प्राचीन स्थलों में हजारों वर्षों की  पुराने मेंगालिथ हैं। झारखंड के क्षेत्रों में शैल चित्रा और गुफा चित्र हजारीबाग-पलामू , लोहरदगा, गुमला, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम है। हजारीबाग के इस्को  एवं गुमला का कोजेन्गा में  रॉक पेंटिंग , पलामू के लिखलाही पहाड़ की गुफा में शैल चित्र का निर्माण  ,पांच हजार ई. पू. की है। मन्वंतर काल में झारखंड के क्षेत्र असुर , नाग , दैत्य ,दानव राक्षस , मारुत , देव , ऋक्ष संस्कृति के अनुयायी सौर , शैव , शाक्त  , वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी थे । ऋग्वेद में कीकट प्रदेश की स्थापना राजा कीकट ने  पुर का निर्माण किया है। लोहा  , कोयला , हीरे , तांबे , आदि पद्धतियों का अविष्कार किया गया था । रांची, खूंटी, लोहरदगा, हजारीबाग, चाइबासा आदि में असुर , नाग संस्कृति से जुड़ाव था । खूंटी जिले के कुथारटोली, कुंजला, सारीदकेल, कठारटोली एवं हांसा को संरक्षित स्मारक है। सारीदकेल करीब पचास एकड़ क्षेत्र  तजना नदी के तट में  अवशेष मिलते रहते हैं। 1915 में खूंटी के बेलवादाग में पुरातत्वविद शरत चंद्र रॉय ने 1915 में उत्खनन   की थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खुदाई मे मनके, चूडियां, चाकू, भाला, मकानों के अवशेष, मृदभांड आदि प्राप्त  हैं।  खूंटी से पश्चिम कुंजल  का तीन एकड़ ,  रांची से दक्षिण चाइबासा रोड पर कथारटोली में चैबीस एकड़ की  खुदाई में तांबे की चूडियां मिली हैं ।  जो पटना संग्रहालय में रखी हैं। खूंटी टोला भी तीन एकड़ में है। कोटरी नदी के किनारे खूंटी टोला के तीन एकड़ के गढ़ , राँची के हंसा गढ़ का उत्खनन के दौरान मिट्टी के दीये, चूडि़यां, घंटी, अंगूठी आदि प्राप्त हैं। 1944 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक ने हंसा  खोज के दौरान  ईंटों से बनाए गए मकान का अवशेष मिले थे । हैं। पलामू के हुसैनाबाद प्रखंड के पंसा व सहराविरा गांव में दो स्तूप बौद्धकालीन मूर्तियां व उनके अवशेष  हैं ।  स्तूप मिट्टी से निर्मित की परिधि 15 मीटर और ऊंचाई आठ मीटर में स्तूप के ऊपर ईंटों का  इस्तेमाल कर  10 गुणा 7 गुणा तीन है । सात गुणा पांच गुणा तीन तथा लाल रंग के मृदभांड हैं। गांव वाले इस स्तूप पर धान निकालते या ओसावन करते हैं।सहारविरा गांव का स्तूप  पंसा गांव से 5 किमी दूरी पर स्तूप की ऊंचाई तीन मीटर और परिधि आठ मीटर में पके ईंटों से निर्मित है। स्तूप के बीच में पत्थर स्तम्भ के ऊपरी हिस्से पर बौद्ध की आकृति है। स्तंभ स्तूप  6वीं-7वीं शताब्दी का  है। लोहरदगा जिले के खखपरता गांव से मां दुर्गा और भगवान विष्णु की प्राचीन मूर्तियां 7वीं से 8वीं सदी की हैं। दोनों मूर्तियां बलुआ पत्थर से निर्मित हैं। खखपरता में नागर शैली के भवन निर्माण कला है।  शिव मंदिर चट्टान के ऊपर बनाया गया है। मंदिर की प्रवेश द्वार पूरब दिशा में है । मंदिर के उत्तरी दिशा में आठ मंदिरों का समूह है। पश्चिमी सिंहभूम के मझगांव प्रखंड में बेनी सागर या बेणु सागर में  ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल पर दस हजार साल पुराने अवशेष मिले हैं। बेनीसागर के उत्खनन में शिव मंदिर, पंचायतन मंदिर, 35 से अधिक शिवलिंग, सूर्य, भैरव, लकुलिस, अग्नि, कुबेर, गणेश, महिषासुरमर्दिनी एवं द्वारपाल की मूर्तियां हैं।  लोहे की चूडि़यां, अंगूठी, तीर, भाला, चाकू, मिट्टी के मनके आदि भी प्राप्त हुए हैं। बेनुसागर स्थान पांचवीं सदी ईसा से लेकर सोलहवीं-सत्राहवीं शताब्दी तक विकसित था ।देवघर के बाबा बैजनाथ, वासुकीनाथ ,  रांची पहाड़ी पर पहाड़ी बाबा एवं नाग गुफा  एवं सरायकेला जगन्नाथ मंदिर, गढ़वा का वंशीधर, गुमला का टांगीनाथ, रांची जिले की सोलहभुजी मां दुर्गा का देउड़ी मंदिर, महामाया, चतरा की मां भद्रकाली, पारसनाथ का जैन तीर्थ, पहाड़ी मंदिर, रामगढ़ का रजरप्पा व कैथा, दुमका का बासुकीनाथ व मालूटी आदि मंदिर प्राचीन है।रांची शहर में बोड़ेया ग्राम मोरहाबादी स्थित टैगोर हिल से तीन किलोमीटर उत्तर मदन मोहन मंदिर का निर्माण नागवंशी शासक रघुनाथ शाह द्वारा 1665 में कराया गया था। पूरबमुखी मंदिर का सिंह द्वार उत्तर दिशा में निर्माणकर्ता  शिल्पकार अनिरुद्ध  है। राधा-कृष्ण मंदिर स्थापत्य कला के गर्भ-गृह एवं भोग मंडप है। रांची-कांके मार्ग पर रांची से 16 किलोमीटर उत्तर की ओर पिठोरिया का प्रस्तर मंदिर  150 वर्ष प्राचीन है । पिठोरिया मंदिर   40 फीट ऊंचाई का प्रस्तर मंदिर एशलर में सोनरी तकनीक से बना है। पिठोरिया मंदिर के  गर्भ गृह में शिव-पार्वती, राम-सीता-लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियां स्थापित हैं। पूर्वी सिंहभूम जिले में घाटशिला प्रखंड के महुलिया ग्राम में रंकिनी देवी  मंन्दिर है। रंकनी  मंदिर में स्थापित देवी अष्टभुजी है ।  माता रंकनी के ऊपर के दो हाथों में ΄हाथी, एक दाएं हाथ में डाकिनी एवं बाएं हाथ में जोगिनी तथा अन्य चार हाथों में ढाल-तलवार आदि अस्त्रा-शस्त्रा है। रेखा देवल शैली में निर्मित रंकनी  मंदिर का निर्माण काल स्थापत्य शैली के आधार पर 14वीं-15वीं शताब्दी  है। हजारीबाग जिले के  कैथा मंदिर के भग्नावशेष रामगढ़-बोकारो मार्ग पर रामगढ़ से ठीक तीन किमी की दूरी पर मुख्य सड़क की बाईं ओर स्थित कीकट शैली के 12-14 मंदिर रामगढ़ के क्षेत्र में निर्मित थे । टाटी झरिया गांव में कीकट शैली का मंदिर स्थित है।पंश्चिमी  सिंहभूम के चाइबासा के समीप ईचाक स्थित सप्तचूड़ा का राम मंदिर , देवल शैली  में निर्मित है। पंचायतन मंदिर का निर्माण 1803 में स्थानीय शासक दामोदर सिंह देव ने कराया था।
गुमला जिला मुख्यालय से उत्तर-पश्चिम दिशा में डुमरी प्रखंड के मझगांव गांव में टांगीनाथ मंदिर के अवशेष स्थित हैं। यह स्थल पुरातात्विक दृष्टिकोण से राज्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। एक छोटी सी पहाड़ी पर ईंट निर्मित इर्द-गिर्द सैकड़ों प्राचीन प्रस्तर मूर्तियां एवं  शिवलिंग, उमा-महेश्वर, महिष-मर्दिनी, सूर्य, गणेश एवं विष्णु की मूर्ति है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर स्थल पर प्राचीन प्रस्तर स्तंभ ,  लौह त्रिशूल भी भग्न है। गुप्तकालीन स्तम्भ  अभिलेख  8 सौ वर्ष पुरानी है । तेलियागढ़ का किला , पलामू किला , कुंडा किला ,नवरतनगढ़ के किले को  हंपी  सौ एकड़ में फैला हुआ है। भगवान बुद्ध का पलामू में मूर्तियां एवं स्तूप , लातेहार जिले का बालूमाथ बौद्ध मठ ,  धनबाद क्षेत्रा में दालमी तथा बारहमसिया गांवों के बीच लाथोनटोंगरी पहाड़ी पर 20 वीं शती के बौद्ध अवशेष , पुरुलिया के निकट कर्रा व घोलमारा में बौद्ध खंडहर हैं। रांची-मूरी मार्ग पर गौतमधारा पर बुद्ध की प्रतिमा स्थापित , चतरा जिले का ईटखोरी में तीन बौद्ध  स्तूप हैं। चतरा के कौलेश्वरी पहाड़ पर बौद्ध और जैन धर्म की  प्रतिमाएं हैं। कौलेश्वरी  पहाड़ पर  हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के  दसवें जैन तीर्थंकर शीतलनाथ का जन्मस्थल है। डिस्ट्रिक्ट  गजेटियर आफ हजारीबाग 1957 के अनुसार  जिनसेन ने  तपस्या की थी। जैन धर्मावलंबी कौलेश्वरी देवी  मंदिर , राम अपने वनवास काल मे भ्राता लक्षमण एवं धर्मपत्नी सीता के साथ रहे थे । जैन धर्म के पारसनाथ हिल तो जैन धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। श्री सम्मेमें द शिखरजी के पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ ने निर्वाण  प्राप्त किया। सम्मेमें द शिखर की उत्तरी तलहटी पर प्रकृति की गोद पर मंदिरों की नगरी मधुवन में  घुमावदार रास्ते, पहाड़ों की सुंदरता आंखों को सुकून देती है। मानभूम जैनियों का गढ़ में  पाकबीरा, पवनपुर, पलमा, चर्रा तथा गोलमारा में  मंदिर में अनेक मूर्तियां स्थापित थीं। बलरामपुर, करा, कतरास में जैनियों के खंडहर , तेलकुप्पी में जैन संस्कृति का विशिष्ट केंद्र था। सिंहभूम के सरक जैन श्रावक थे। हो जातियों का स्थल था ।  दुमका से पूरब 55 किमी दूर शिकारीपाड़ा प्रखंड में मंदिरों का गांव मालूटी में  108 शिवलिंग एवं  75 से 80 मंदिर  स्पतंत्रा साधना का बड़ा केंद्र था। गुमला जिले के गुमला  से 18 कि.मी. दूर आंजन गांव के माता अंजनी के पुत्र  हनुमान जी चार किमी की दूरी पर अंजनी गुफा में जन्म हुआ था । अंजनी गुफा में माता अंजनी के गोद में  हनुमान जी की प्रतिमा हैं।
झारखंड राज्य के क्षेत्रों के  झरनों में   रांची से लगभग 28 किमी की दूरी पर हुंडरू झरना के 320 फिट की ऊँचाई से गिरती हुई जलप्रपात से स्वर्णरेखा नदी प्रवाहित होती है ।  राँची से 40 कि .मि. की दूरी पर ताइमारा ग्राम के समीप दसम घाघ  जलप्रपात 144 फीट ऊँचाई से जलप्रपात से कांची नदी प्रवाहित  है । जोन्हा ग्राम का  जोन्हा फौल के समीप जोन्हा नदी में  भगवान बुद्ध ने  स्नान कि था। गिरिडीह के समीप  हिरणी फौल रांची से 75 किमी की दूरी पर स्थित है। रामगढ़ जिले का रजरप्पा फौल  रजरप्पा क्षिणनमस्तिके  मंदिर के कारण भी प्रसिद्ध है। मंदिर के पास के नदी में बोटिंग भी किया जाता है। रजरप्पा में  भैरवी और दामोदर नदी  संगम है। झारखंड के  डैम (जलाशय ) में  मसानजोर डैम -  झारखंड के दुमका जिले में स्थित  मयूराक्षी नदी के तट पर मसानजोर जलासय है।  मसानजोर की ऊंचाई  47.25 मी और लंबाई 661.58 मी . एवं  67.4 वर्ग किमी में फैला हुआ है। मसानजोर जलासय को  कनाडा डैम के नाम से  जानते हैं।  मैथन डैम -  धनबाद जिले से 48 किमी दूर पर स्थित मैथन डैम की ऊंचाई 165 फीट और लंबाई 15,712 फीट मापी गई है । मैथन डैम बराकर नदी के तट पर स्थित  मैथन डैम है। तिलैया डैम - कोडरमा जिले में बराकर नदी पर स्थित  तिलैया डैम की ऊंचाई लगभग 99 फीट और लंबाई 1201 फीट है । पतरातु डैम -  रांची से 40 किमी की दूरी पर स्थित पतरातु डैम को नलकरी के जल संरक्षण से बनाया गया है ।  सूर्यास्त के समय का वो दृश्य सभी का में मोह लेता है ।कांके डैम - रांची  जिले का  गोंदा हिल्स की निचले भाग में स्थित कांके डैम  शाम के वक्त की दृश्य काफी मनमोहक होती है । सूर्य की लालिमा पूरे बादल को लाल कर देती है जो कि काफी आकर्षित होता है । कोनार डैम - हजारीबाग जिले के कोनार नदी पर स्थित कोनार डैम की ऊंचाई लगभग 160 फीट और लंबाई 14,879 फीट है ।  केलाघाघ डैम - सिमडेगा जिले के  सिमडेगा से 4 कि . मि. की दूरी पर छिंद नदी पर स्थित कैलाघाघ डैम है । पलना डैम - सरायकेला जिले में चंडिल के पास  स्थित  स्वर्णरेखा नदी के तट पर पलना डैम  स्थित है ।  पञ्चेत डैम -  धनबाद जिले के दामोदर नदी पर बने पंचेत डैम की ऊंचाई 147 फीट और लंबाई 22,234 फीट है । रो – रो डैम - पश्चिमी सिंहभूम जिले के रोरो पर बने रो - रो  डैम  के समीप  रो – रो की पहाड़ियां  अवस्थित हैं । जमशेदपुर का डिमना डैम , राँची जिले के धुर्वा में धुर्वा डैम पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र है । औद्योगिक क्षेत्र में हटिया , जमशेदपुर , बोकारो , है । झारखंड में अबरख , कोयला , अनेक खनिज संपदा से परिपूर्ण है ।



       

मानव जीवन संस्कृति का द्योतक है भगवान जगन्नाथ व रथयात्रा
सत्येंद्र कुमार पाठक 
 भारतीय संस्कृति ,  सभ्यता,  पुरणों और स्मृतियों में जगन्नाथ पुरी का  उल्लेख है । उड़ीसा राज्य का पुरी जिले पूरी क्षेत्र को   पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र में भगवान श्री जगन्नाथ की भूमि है। उत्कल प्रदेश या कलिंग प्रदेश  के प्रधान भगवान श्री जगन्नाथ  हैं। पूरी का क्षेत्र  श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं की है । भगवान श्री जगन्नाथ  रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है।भगवान जगन्नाथ की मूर्ति, स्थापत्य कला और समुद्र का मनोरम किनारा पर है। उत्कल प्रदेश की कोणार्क का अद्भुत सूर्य मन्दिर, भगवान बुद्ध की अनुपम मूर्तियों से सजा धौल-गिरि और उदय-गिरि की गुफाएँ, जैन मुनियों की तपस्थली खंड-गिरि की गुफाएँ, लिंग-राज, साक्षी गोपाल और भगवान जगन्नाथ के मन्दिर , पुरी और चन्द्रभागा का मनोरम समुद्री किनारा, चन्दन तालाब, जनकपुर और नन्दनकानन अभ्यारण्य है। स्कन्द पुराण के अनुसार  रथ-यात्रा मे  श्री जगन्नाथ का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है । भगवान जगन्नाथ रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अन्त में गरुण ध्वज पर या नन्दीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी सबसे पीछे चलते हैं। तालध्वज रथ ६५ फीट लंबा, ६५ फीट चौड़ा और ४५ फीट ऊँचाई में ७ फीट व्यास के १७ पहिये लगे रहते  हैं। बलभद्र जी का रथ तालध्वज और सुभद्रा जी का रथ को देवलन जगन्नाथ जी के रथ से कुछ छोटे हैं। सन्ध्या तक ये तीनों ही रथ मन्दिर में जा पहुँचते हैं। अगले दिन भगवान रथ से उतर कर मन्दिर में प्रवेश कर सात दिन रहते हैं। गुंडीचा मन्दिर में नौ दिनों में श्री जगन्नाथ जी के दर्शन को आड़प-दर्शन  है। श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद माना जाता है। श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद का स्वरूप महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के द्वारा मिला है ।  महाप्रभु बल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए उनके एकादशी व्रत के दिन पुरी पहुँचने पर मन्दिर में किसी ने प्रसाद दे दिया। महाप्रभु ने प्रसाद हाथ में लेकर स्तवन करते हुए दिन के बाद रात्रि भी बिता दी। अगले दिन द्वादशी को स्तवन की समाप्ति पर उस प्रसाद को ग्रहण किया और उस प्रसाद को महाप्रसाद का गौरव प्राप्त हुआ। नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद मिलता है।जनकपुर मौसी का घर - जनकपुर में भगवान जगन्नाथ दसों अवतार का रूप धारण करते हैं। जनकपुर  स्थान जगन्नाथ जी की मौसी के घर  पकवान खाकर भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं । जनकपुर में  पथ्य का भोग लगाया जाता है जिससे भगवान शीघ्र ठीक हो जाते हैं। रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी को लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ को ढूँढ़ते हुए जनकपुर में  द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं जिससे लक्ष्मी जी नाराज़ होकर रथ का पहिया तोड़ देती है और हेरा गोहिरी साही पुरी का एक मुहल्ला जहाँ लक्ष्मी जी का मन्दिर है, वहाँ लौट जाती हैं। बाद में भगवान जगन्नाथ लक्ष्मी जी को मनाने जाते हैं। उनसे क्षमा माँगकर और अनेक प्रकार के उपहार देकर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। इस आयोजन में एक ओर द्वैताधिपति भगवान जगन्नाथ की भूमिका में संवाद बोलते हैं । दूसरी ओर देवदासी लक्ष्मी जी की भूमिका में संवाद करती है।  लक्ष्मी जी को भगवान जगन्नाथ के द्वारा मना लिए जाने को विजय का प्रतीक मानकर वापसी को बोहतड़ी गोंचा कहा जाता है। रथयात्रा में पारम्परिक सद्भाव, सांस्कृतिक एकता और धार्मिक सहिष्णुता का अद्भुत समन्वय मिलता है। देवर्षि नारद को वरदान .श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा में भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी नहीं होतीं बल्कि बलराम और सुभद्रा होते हैं। द्वारिका में श्री कृष्ण रुक्मिणी आदि राज महिषियों के साथ शयन करते हुए एक रात निद्रा में अचानक राधे-राधे बोल पड़े थे । जागने पर श्रीकृष्ण ने अपना मनोभाव प्रकट नहीं होने दिया, लेकिन रुक्मिणी ने अन्य रानियों से बाटे करने लगी वृन्दावन में राधा नाम की गोपकुमारी है जिसको प्रभु ने हम सबकी इतनी सेवा निष्ठा भक्ति के बाद भी नहीं भुलाया है। राधा की श्रीकृष्ण के साथ रहस्यात्मक रास लीलाओं के बारे में माता रोहिणी भली प्रकार जानती थीं। उनसे जानकारी प्राप्त करने के लिए सभी महारानियों ने अनुनय-विनय की। पहले तो माता रोहिणी ने टालना चाहा लेकिन महारानियों के हठ करने पर कहा, ठीक है। सुनो, सुभद्रा को पहले पहरे पर बिठा दो, कोई अंदर न आने पाए, भले ही बलराम या श्रीकृष्ण ही क्यों न हों।माता रोहिणी के कथा शुरू करते ही श्री कृष्ण और बलरम अचानक अन्त:पुर की ओर आते दिखाई दिए। सुभद्रा ने उचित कारण बता कर द्वार पर ही रोक लिया। अन्त:पुर से श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला की वार्ता श्रीकृष्ण और बलराम दोनो को सुनाई दी। उसको सुनने से श्रीकृष्ण और बलराम के अंग अंग में अद्भुत प्रेम रस का उद्भव होने लगा। साथ ही सुभद्रा भी भाव विह्वल होने लगीं। तीनों की ही ऐसी अवस्था हो गई कि पूरे ध्यान से देखने पर किसी के  हाथ-पैर आदि स्पष्ट नहीं दिखते थे। सुदर्शन चक्र विगलित हो गया। उसने लंबा-सा आकार ग्रहण कर लिया। यह माता राधिका के महाभाव का गौरवपूर्ण दृश्य था।अचानक नारद के आगमन से वे तीनों पूर्व वत हो गए। नारद ने  श्री भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान आप चारों के जिस महाभाव में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्य जनों के दर्शन हेतु पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहे। भगवान कृष्ण ने तथास्तु कह दिया था ।रथ यात्रा -  राजा इन्द्रद्युम्न सपरिवार नीलांचल सागर (उड़ीसा) के पास रहने पर समुद्र में  विशालकाय काष्ठ दिखा। राजा के उससे विष्णु मूर्ति का निर्माण कराने का निश्चय करते  वृद्ध बढ़ई के रूप में विश्वकर्मा जी स्वयं प्रस्तुत हो गए थे । उन्होंने मूर्ति बनाने के लिए एक शर्त रखी कि मैं जिस घर में मूर्ति बनाऊँगा उसमें मूर्ति के पूर्णरूपेण बन जाने तक कोई न आए। राजा के परिवारजनों को यह ज्ञात न था कि वह वृद्ध बढ़ई कौन है। कई दिन तक घर का द्वार बंद रहने पर महारानी ने सोचा कि बिना खाए-पिये वह बढ़ई कैसे काम कर सकेगा। अब तक वह जीवित भी होगा या मर गया होगा। महारानी ने महाराजा को अपनी सहज शंका से अवगत करवाया। महाराजा के द्वार खुलवाने पर वह वृद्ध बढ़ई कहीं नहीं मिला लेकिन उसके द्वारा अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की काष्ठ मूर्तियाँ  मिली थी ।महाराजा और महारानी दुखी हो उठे। लेकिन उसी क्षण दोनों ने आकाशवाणी सुनी, 'व्यर्थ दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो।' जगन्नाथ मंदिर में अपूर्ण और अस्पष्ट मूर्तियाँ पुरुषोत्तम पुरी की रथयात्रा और मन्दिर में सुशोभित व प्रतिष्ठित हैं। रथयात्रा माता सुभद्रा के द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण व बलराम ने अलग रथों में बैठकर करवाई थी। रथयात्रा में जगन्नाथ जी को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, उनमें विष्णु, कृष्ण और वामन और बुद्ध है । भगवान जगन्नाथ विभिन्न धर्मो, मतों और विश्वासों का अद्भुत समन्वय है। भुवनेश्वर के भास्करेश्वर मन्दिर में अशोक स्तम्भ  है। भुवनेश्वर के  मुक्तेश्वर और सिद्धेश्वर मन्दिर की दीवारों में शिव मूर्तियों के साथ राम, कृष्ण और अन्य देवताओं ,  जैन और बुद्ध की भी मूर्तियाँ हैं । जगन्नाथ मन्दिर के समीप विमला देवी की मूर्ति के समीप पशुओं की बलि दी जाती है । मन्दिर की दीवारों में मिथुन मूर्तियाँ है।  तांत्रिकों के प्रभाव के जीवंत हैं। सांख्य दर्शन के अनुसार शरीर के 24 तत्वों के ऊपर आत्मा होती है। ये तत्व हैं- पंच महातत्व, पाँच तंत्र माताएँ, दस इन्द्रियां और मन के प्रतीक हैं। रथ का निर्माण बुद्धि, चित्त और अहंकार से होती है। ऐसे रथ रूपी शरीर में आत्मा रूपी भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं।  पुरी का श्री जगन्नाथ मन्दिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित  है। मन्दिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और  सुभद्रा अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा के लिए  निकलते हैं। भगवान श्री जगन्नथ को  नील माघव के रूप में  भील सरदार विश्वासु के द्वारा  आराध्य देव की उपासना किया जाता था  हजारों वर्ष पुर्व भील सरदार विष्वासु नील पर्वत की गुफा के अन्दर नील माघव जी की पुजा किया करते थे । मध्य-काल में वैष्णव कृष्ण मन्दिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथ मंदिर वैष्णव परम्पराओं और सन्त रामानन्द से जुड़ा हुआ है।  गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान के उपासक थे ।
श्री जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कलिंग शैली में कलिंग राजा अनंतवर्द्धन चोडगंग देव तथा जीर्णोद्धार ओडिशा के राजा अनंग भीमदेव द्वारा 1174 ई. में  कराया गया था । जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित ध्वज और  चक्र सुदर्शन चक्र का प्रतीक तथा  लाल ध्वज भगवान जगन्नाथ  मंदिर के भीतर हैं । गंग वंश के ताम्र पत्रों के अनुसार  मन्दिर के निर्माण कार्य को कलिंग राजा अनन्तवर्मन चोडगंग देव ने आरम्भ कराया था। मन्दिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल (१०७८ - ११४८) में बने थे। सन ११९७ में जाकर ओडिआ शासक अनंग भीम देव ने  मन्दिर रूप दिया था। मन्दिर में जगन्नाथ अर्चना सन १५५८ तक होती रही। अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के भाग ध्वंस किए और पूजा बन्द करा दी, तथा विग्रहो को गुप्त मे चिलिका झील मे स्थित  द्वीप मे रखागया था। रामचन्द्र देब के खुर्दा में स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने पर, मन्दिर और इसकी मूर्तियों की पुनर्स्थापना हुई । इतिहास में वर्णित तथ्यों  के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की इन्द्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यही मूर्ति दिखाई दी थी।इन्द्रद्युम्न की  कड़ी तपस्या करने के बाद  भगवान विष्णु ने उसे बताया कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाये और उसे एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण कराये। राजा ने ऐसा ही किया और उसे लकड़ी का लठ्ठा मिल भी गया। उसके बाद राजा को विष्णु और विश्वकर्मा बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में उसके सामने उपस्थित हुए। किन्तु उन्होंने यह शर्त रखी, कि वे एक माह में मूर्ति तैयार कर देंगे, परन्तु तब तक वह एक कमरे में बन्द रहेंगे और राजा या कोई  उस कमरे के अन्दर नहीं आये। माह के अंतिम दिन जब कई दिनों तक कोई भी आवाज नहीं आयी, तो उत्सुकता वश राजा ने कमरे में झाँका और वह वृद्ध कारीगर द्वार खोलकर बाहर आ गया और राजा से कहा, कि मूर्तियाँ अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे। राजा के अफसोस करने पर, मूर्तिकार ने बताया, कि यह सब दैववश हुआ है और यह मूर्तियाँ ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जायेंगीं। जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ मन्दिर में स्थापित की गयीं। भगवान द्वारिकाधिश के अध जले शव प्राचि मे प्रान त्याग के बाद समुद्र किनारे अग्निदाह दिया गया । भगवान कृष्ण ,  बल्भद्र और शुभद्रा अग्नि संस्कार स्थल  पर  आते समुद्र उफान पर होकर  आधे जले शव को बहाकर ले गया था ।   पुरी  मे निकले शव को ,पुरि के राजा ने तिनो शव को अलग अलग रथ मे रख कर  पूरी नगर मे लोगो ने खुद रथो को खिंच कर घुमया और अंत मे जो दारु का लकडा शवो के साथ तैर कर आयाथा उशि कि पेटि बनवाके उसमे धरति माता को समर्पित किया था । बौद्ध इतिहासकारों के अनुसार जगन्नाथ मन्दिर के स्थान पर पूर्व में एक बौद्ध स्तूप होता था। उस स्तूप में गौतम बुद्ध का एक दाँत रखा था। बाद में इसे इसकी वर्तमान स्थिति, कैंडी, श्रीलंका पहुँचा दिया गया। दसवीं शताब्दी के उड़ीसा में सोमवंशी राज्य चल रहा था। महाराजा रणजीत सिंह, महान सिख सम्राट ने  मन्दिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था । पुरी जगन्नाथ मंदिर का वृहत क्षेत्र 400,000 वर्ग फुट (37,000 वर्गमीटर में फैला और चहारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के मंदिर वक्ररेखीय आकार का है । मंदिर के शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) मंडित है। इसे नीलचक्र कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित और अति पावन माना जाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट (65 मी॰) ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना है। मंदिर के  गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्चस्व वाला है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गये हैं। यह एक पर्वत को घेर ेहुए अन्य छोटे पहाड़ियों, फिर छोटे टीलों के समूह रूपी बना है। मुख्य मढ़ी (भवन) एक 20 फीट (6.1 मी॰) ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, इस मंदिर के मुख्य देव हैं। इनकी मूर्तियां, एक रत्न मण्डित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं। इतिहास अनुसार इन मूर्तियों की अर्चना मंदिर निर्माण से कहीं पहले से की जाती है। सम्भव है, कि यह प्राचीन जनजातियों द्वारा भ  रथ यात्रा आषाढ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आयोजित होता है। उत्सव में तीनों मूर्तियों को अति भव्य और विशाल रथों में सुसज्जित होकर, यात्रा पर निकालते हैं। थेन्नणगुर का पाण्डुरंग मंदिर, पुरी  है । जगन्नाथ मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई है।  विशाल रसोई घर में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए ५०० रसोईए तथा उनके ३०० सहयोगी काम करते हैं।  मंदिर में प्रविष्टि प्रतिबंधित है। जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिन्दू लोगों का प्रवेश सर्वथा वर्जित है।
भारत के चार पवित्रतम स्थानों में  पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर को  समुद्र  धोता है। पुरी, भगवान जगन्नाथ , सुभद्रा और बलभद्र की पवित्र नगरी , हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक पुरी स्थान को समुद्र के आनंद के साथ-साथ यहां के धार्मिक तटों और 'दर्शन' की धार्मिक भावना के साथ कुछ धार्मिक स्थलों का आनंद है। पुरी एक ऐसा स्थान हजारों वर्षों से  नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलाचल, पुरुषोत्तम, शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी को जाना जाता है। पुरी में दो महाशक्तियों का प्रभुत्व है, एक भगवान द्वारा सृजित है और दूसरी मनुष्य द्वारा सृजित है। पुरी  भील शासकों द्वारा शासित क्षेत्र था , सरदार विश्वासु भील को सदियों पहले भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति प्राप्त हुई थी । पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर यह 65 मी. ऊंचा मंदिर पुरी के महत्वपूर्ण स्मारक है।  मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोड़गंग ने अपनी राजधानी दक्षिणी उड़ीसा से मध्य उड़ीसा में स्थानांतरित करने की खुशी में करवाया था।  मंदिर नीलगिरी पहाड़ी के आंगन में बना है। मंदिर के चारों ओर से 20 मी. ऊंची दीवार से घीरे मंदिर में कई छोट-छोटे मंदिर बने हैं। मंदिर के शेष भाग में पारंपरिक तरीके से बना सहन, गुफा, पूजा-कक्ष और नृत्य के लिए बना खंबों वाला एक हॉल है। सड़क के एक छोर पर गुंडिचा मंदिर के साथ भगवान जगन्नाथ का ग्रीष्मकालीन मंदिर है। यह मंदिर ग्रांड रोड के अंत में चार दीवारी के भीतर एक बाग में बना है। यहां एक सप्ताह के लिए मूर्ति को एक साधारण सिंहासन पर विराजमान कराया जाता है। जगन्नाथ मंदिर परिसर के बाहर से गैर हिन्दू  दर्शन करते  हैं । भगवान साक्षीगोपाल मंदिर पुरी से  20 कि॰मी॰ की दूरी पर है।  'आँवला नवमी' में श्री राधा जी के पवित्र पैरों के दर्शन किया जाता है । रथयात्रा में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ,  भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा की पूजा-अर्चना करते हैं। यह भव्य त्योहार नौ दिनों तक मनाया जाता है।रथयात्रा जगन्नाथ मन्दिर से प्रारम्भ होती है तथा गुंडिचा मन्दिर तक समाप्त होती है। भारत में चार धामों में से जगन्नाथ पुरी  है। पूरी  विश्व का सबसे बड़ा समुद्री तट स्थित है। जगन्नाथ मंदिर से एक कि. मि. पर भदावं राम द्वारा स्थापित लोकनाथ शिवलिंग स्थापित है । बालीघाई में  प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर कोणार्क में स्थित है । कोणार्क सूर्यमंदिर 13वीं सदी की वास्तुकला और मूर्तिकला है । झारखंड राज्य का रांची जिले के जगन्नाथ पुर में भगवान जगन्नाथ मंदिर है ।जगन्नाथपुर से  रथयात्रा प्रतिवर्ष रांची के विभिन्न स्थानों में भ्रमण कर श्रद्धालुओं को दर्शन कराया जाता है । जय भगवान जगन्नाथ ।














सोमवार, जून 20, 2022

संस्कृति की आत्मा संगीत....


    भूस्थल पर इंसान की सृष्टि के बाद भगवान  शिव द्वारा माता सरस्वती को संगीत की देवी कहा गया है । दवार्षि नारद ने पृथ्वी पर संगीत कला का प्रारंभ कर ब्रह्मांड में व्याप्त ध्वनि के संबंध में इंसान को संगीत की जानकारी दी थी । ऐतरेय भारतीय संगीत का विकास संगम संगीत माध्यम से उतर वैदिक काल में हुआ था । भारतीय संगीत का रचना विज्ञान में स्वर, राग और ताल से जाना जाता है । जैमिनी ब्राह्मण , संगीत रत्नाकर में संगीत का उल्लेख किया गया है । ग्रीष्म संक्रांति और उत्तरी गोलार्ध में खगोलीय गर्मी की प्रारम्भ  में प्रत्येक वर्ष 21 जून को सार्वभौमिकता से युक्त  विश्व संगीत दिवस, फेटे डे ला , म्यूजिक डे मनाया जाता है।  फ्रांस के तत्कालीन फ्रांसीसी कला और संस्कृति मंत्री जैक लैंग ने संगीतकार मौरिस फ्लेरेट के साथ पेरिस की सड़कों पर फेटे डे ला म्यूजिक का प्रारंभ 1982 में   किया था। जैक लैंग ने युवाओं को संगीत समारोहों की ओर आकर्षित करने एवं संगीत का जश्न मनाने के लिए संगीत कार्यक्रम 21 जून, 1982 को पेरिस के सार्वजनिक स्थानों पर  देश के सभी हिस्सों के पेशेवर और शौकिया संगीतकारों का जश्न मनाया गया था । फ्रांसीसी सरकार ने विश्व संगीत दिवस का समर्थन कर  आधिकारिक कार्यक्रम बना दिया था । यूरोपीय संगीत 1985 में    देशों ने संगीत और कलाकारों को मनाने के लिए वार्षिक संगीत कार्यक्रम को अपनाने हेतु  बुडापेस्ट में एक चार्टर पर हस्ताक्षर किए 1997 ई .को करने के पश्चात विश्व संगीत दिवस के रूप में चिह्नित किया गया है। विश्व संगीत ग्रीष्म संक्रांति और उत्तरी गोलार्ध में खगोलीय गर्मी की प्रारम्भ  में प्रत्येक वर्ष 21 जून को सार्वभौमिकता से युक्त  विश्व संगीत दिवस, फेटे डे ला , म्यूजिक डे मनाया जाता है।  फ्रांस के तत्कालीन फ्रांसीसी कला और संस्कृति मंत्री जैक लैंग ने संगीतकार मौरिस फ्लेरेट के साथ पेरिस की सड़कों पर फेटे डे ला म्यूजिक का प्रारंभ 1982 में   किया था। जैक लैंग ने युवाओं को संगीत समारोहों की ओर आकर्षित करने एवं संगीत का जश्न मनाने के लिए संगीत कार्यक्रम 21 जून, 1982 को पेरिस के सार्वजनिक स्थानों पर  देश के सभी हिस्सों के पेशेवर और शौकिया संगीतकारों का जश्न मनाया गया था । फ्रांसीसी सरकार ने विश्व संगीत दिवस का समर्थन कर  आधिकारिक कार्यक्रम बना दिया था । यूरोपीय संगीत 1985 में    देशों ने संगीत और कलाकारों को मनाने के लिए वार्षिक संगीत कार्यक्रम को अपनाने हेतु  बुडापेस्ट में एक चार्टर पर हस्ताक्षर किए 1997 ई .को करने के पश्चात विश्व संगीत दिवस के रूप में चिह्नित किया गया है। विश्व संगीत दिवस पर संगीत कलाकारों द्वारा युवा कलाकारों को अपनी संगीत प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए दुनिया भर में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं1998 में विश्व संगीत दिवस के लिए एक डाक टिकट समर्पित किया गया था । मॉक म्यूजिक डे आर्गेनाइजेशन के अनुसार, विश्व संगीत दिवस 21 जून को 120 देशों के 1,000 से अधिक शहरों में आयोजित किया जाता है । विश्व संगीत दिवस पर युवा, बूढ़े, शौकिया, पेशेवरलोग  मुफ़्त और जनता के लिए साज और आवाज के साथ संगीत दिवस मानते हैं।दिवस पर संगीत कलाकारों द्वारा युवा कलाकारों को अपनी संगीत प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए दुनिया भर में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं1998 में विश्व संगीत दिवस के लिए एक डाक टिकट समर्पित किया गया था । मॉक म्यूजिक डे आर्गेनाइजेशन के अनुसार, विश्व संगीत दिवस 21 जून को 120 देशों के 1,000 से अधिक शहरों में आयोजित किया जाता है । विश्व संगीत दिवस पर युवा, बूढ़े, शौकिया, पेशेवरलोग  मुफ़्त और जनता के लिए साज और आवाज के साथ संगीत दिवस मानते हैं।  भारतीय रागों में भैरव ,हिंडोल ,दीपक ,मेघ ,श्री  मालकौंस  तथा रास में  श्रृंगार ,हास्य ,करुणा ,रौद्र ,भयानक , वीर ,अद्भुत , वीभत्स एवं शांत है । भारतीय उपमशद्वीप में शास्त्रीय संगीत ,भारतीय शैली ,कर्नाटक शैली ,लोक संगीत ,सुगम संगीत ,रवींद्र संगीत , हवेली संगीत ,गण संगीत तथा आधुनिक संगीत में रॉक , पॉप, ट्रांस ,जैज़ और साइकेडेलिक संगीत है ।कर्नाटक संगीत का प्रारंभ 1408 ई. से 1503 ई तक अन्नमाचार्य , 1484 ई. से 1564 ई. तक पुरंदर दास , तेलगु कवि 1600 ई. से 1680 ई. तक क्षेत्रय्या तथा 1620 ई. से 1680 ई. तक भक्त राम दासु , बिहार का सोहर , छठ गीत , डोमकच ,,कोहबर ,विवाह गीत , असम के जिकिर ,अरुणाचल का जा जिन जा , इओगे नागालैंड का हेलिएमल्यू , न्यूल्यु , हेरेल्यू , तमिलनाडु के नाट्टू पुरापट्टू , ओड़िसा का पाला, पंजाब में  धाडी , झारखंड के छऊ , सूफी मत वाले कब्बाली ,सिख धर्म में शबद ,उत्तरभारत में भसजन , कीर्तन है । 1901 ई. में वी डी पलुस्कर ने गंधर्व महाविद्यालय लाहौर व 1915 ई. में मुम्बई , प्रयाग संगीत समिति की स्थापना 1926 ई. तथा विष्णु नारायण भातखंडे ने मेरिस संगीत महाविद्यालय की स्थापना कर संगीत का विकास किया है ।





रोग मुक्त व स्वास्थ्य युक्त है योग....


        सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और स्मृति , संहिताओं आदि ग्रंथों में योग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । भगगवन शिव को योग का पिता  कहा जाता है । भक्ति योग , कर्मयोग और ज्ञान योग से मानवीय शक्ति का चतुर्दिक विकास का माध्यम योग   है । पुरातन काल में योग करने वाले पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है ।योग ज्ञान से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है । अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है । योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। प्रथम बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार प्रगट किया था । योग, ध्यान, सामूहिक मन्थन, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का मंथन योग है । भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक और इंसान तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य , विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला , स्वास्थ्य और भलाई के लिए  समग्र दृष्टिकोण को  प्रदान करने वाला है।  संयुक्त राष्ट्र के  11 दिसंबर 2014 ई. को विश्व योग दिवस का पारित प्रस्ताव के अनुसार विश्व  के 177 देशों के  सदस्यों द्वारा 21 जून 2015  को "अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी थी । सर्वप्रथम  21 जून 2015 को विश्व में विश्व योग दिवस विश्व शान्ति के लिए द्विदिवसीय  विज्ञान' सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011  आयोजित किया गया। लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउण्डेशन और योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा आयोजित किया गया। योग गुरु अमृत सूर्यानन्द के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार  10 साल पहले आया था । भारत की ओर से योग गुरु एवं श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे । विज्ञान सम्मेलन में श्री श्री रवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ़ लिविंग; आदि चुन चुन गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ; स्वामी पर्मात्मानन्द, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव; बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणे; स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार; डॉ॰ नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू; जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महा राज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्ष; अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्ष; डा डी॰आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली शामिल थे । प्रधानमन्त्री मोदी के प्रस्ताव का नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइराला , संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने समर्थन किया है। "अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसम्बर 2014 को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' मनाने 21 जून को स्वीकृति  दी गयी थी । भारत में पहले अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 2015 को  विश्व योग दिवस को यादगार बनाने और पूरे विश्व को योग के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के सफल होने के साथ विश्व रिकार्ड कायम कर लिए थे । प्राचीन काल से  सनातन धर्म के ऋषि, महर्षियों‌ ,साधु – संतों द्वारा योग को अपनाया जाता रहा है।  सिंधु घाटी सभ्यता में योग को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग 10,000 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है। ऋषि ,मुनि, साधु प्राय: परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया करते थे। 
शैव , शाक्त , वैष्णव , सौर , ब्राह्मण धर्म  में योग संस्कृति थी । ऋषभदेव, महावीर स्वामी , गौतम , बुद्ध, चरक , पतंजलि , चुणक ऋषि, गौरख नाथ व नाथ परंपरा में शामिल  ऋषि , मुनि , भगवान  शिव  , ब्रह्मा जी, विष्णु जी और नारद  , हनुमान  हठयोग किया करते थे । योग के जनक भगवान शिव द्वारा  नृत्य क्रियाएं एवं हठयोग किया करते थे । योग का प्रयोग शरीर को सुंदर, सुडौल,स्वस्थ और रोगों से दूर रहने के लिए किया जाता है । योगीजन स्वच्छ  वातावरण में रह कर  वायु शुद्ध, विचार शुद्ध , खान-पान  अच्छा और सेहतमंद हुआ करते थे । सतभक्ति न करने से 84 लाख योनियों की मार झेलनी पड़ती है। विश्व के 192 देशों में योग दिवस मनाया जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता के 16 /, 23 और 24 तथा 17 / 5 - 6 अनुसार शास्त्रविधि रहित घोर तप हठ योग अहंकार और पाखण्ड से युक्त कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से युक्त हैं। मन, आत्मा और शरीर सभी का भला होता है। पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि  तत्वज्ञान को  सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे उस तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। मनु स्मृति 6 / 71 , योग चूड़ामणि 109, योग दर्शन 2 / 13 , चरक संहिता , शांगधर पद्धति , तैतिरियोपनिषद , अथर्वेद , हठयोगप्रदीपिका , ऋग्वेद 10,16 ,2 , ऋषि वशिष्ठ ,पतंजलि , देव गुरु वृहस्पति , दैत्य गुरु शुक्राचार्य , आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । इंसान को ठड्डियान बंध ,अनुलोम विलोम  प्रणायाम ,भ्रामरी प्राणायाम, मूलाधार चक्र ,स्वाधिष्ठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,हृदय चक्र , विशुद्धि चक्र ,गायत्री ध्यान , सूर्य नमस्कार , अनाहत चक्र ,सौष्णुम्न ,एवं ध्यानादि योग क्रियाओं से इंसान मानसिक और शारीरिक क्षमता में सकारात्मक ऊर्जा  को बढ़ाती है । अष्टांग योग संस्थान, मैसूर अष्टांग योग अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक के मैसूर में  योग केंद्र देश नहीं बल्कि विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है।  डेस्टिनेशन कृष्णमाचार्य योग संस्थान, चेन्नई कृष्णमाचार्य योग संस्थान, तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है।  फेस्टिवल की सभी जानकारी राममणि अयंगर मेमोरियल योगा संस्थान, पुणे यह संस्थान, पुणे के एक अयंगर परिवार द्वारा संचालित है। योग संस्थान, मुंगेर बिहार योग संस्थान, भारत के प्रमुख योग संस्थान को  1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यहां संपूर्ण योग जीवन शैली प्रदान की जाती है।  निकेतन आश्रम, ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम, भारत के सबसे प्रमुख योग केंद्र उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में स्थित संस्थान में  1000 कमरे हैं। प्रत्येक वर्ष  मार्च  में  विश्व प्रसिद्ध योग उत्सव का आयोजन  किया जाता है। शिवानंद वेदांत योग संस्थान, त्रिवेंद्रम शिवानंद वेदांत योग संस्थान केरल के त्रिवेंद्रम में स्वामी शिवानंद के शिष्य विष्णुदेवानंद द्वारा बनाया गया था। वेदांत  संस्थान आसन स्वास्थ्य विश्राम ध्यान और आहार सहित योग्य पांच बिंदु अवधारणा की नींव है। ओडिशा ,  उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , बंगलोर , भोपाल आदि स्थानों में योग केंद्र है ।



        सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और स्मृति , संहिताओं आदि ग्रंथों में योग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । भगगवन शिव को योग का पिता  कहा जाता है । भक्ति योग , कर्मयोग और ज्ञान योग से मानवीय शक्ति का चतुर्दिक विकास का माध्यम योग   है । पुरातन काल में योग करने वाले पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है ।योग ज्ञान से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है । अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है । योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। प्रथम बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार प्रगट किया था । योग, ध्यान, सामूहिक मन्थन, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का मंथन योग है । भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक और इंसान तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य , विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला , स्वास्थ्य और भलाई के लिए  समग्र दृष्टिकोण को  प्रदान करने वाला है।  संयुक्त राष्ट्र के  11 दिसंबर 2014 ई. को विश्व योग दिवस का पारित प्रस्ताव के अनुसार विश्व  के 177 देशों के  सदस्यों द्वारा 21 जून 2015  को "अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी थी । सर्वप्रथम  21 जून 2015 को विश्व में विश्व योग दिवस विश्व शान्ति के लिए द्विदिवसीय  विज्ञान' सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011  आयोजित किया गया। लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउण्डेशन और योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा आयोजित किया गया। योग गुरु अमृत सूर्यानन्द के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार  10 साल पहले आया था । भारत की ओर से योग गुरु एवं श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे । विज्ञान सम्मेलन में श्री श्री रवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ़ लिविंग; आदि चुन चुन गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ; स्वामी पर्मात्मानन्द, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव; बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणे; स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार; डॉ॰ नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू; जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महा राज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्ष; अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्ष; डा डी॰आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली शामिल थे । प्रधानमन्त्री मोदी के प्रस्ताव का नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइराला , संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने समर्थन किया है। "अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसम्बर 2014 को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' मनाने 21 जून को स्वीकृति  दी गयी थी । भारत में पहले अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 2015 को  विश्व योग दिवस को यादगार बनाने और पूरे विश्व को योग के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के सफल होने के साथ विश्व रिकार्ड कायम कर लिए थे । प्राचीन काल से  सनातन धर्म के ऋषि, महर्षियों‌ ,साधु – संतों द्वारा योग को अपनाया जाता रहा है।  सिंधु घाटी सभ्यता में योग को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग 10,000 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है। ऋषि ,मुनि, साधु प्राय: परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया करते थे। 
शैव , शाक्त , वैष्णव , सौर , ब्राह्मण धर्म  में योग संस्कृति थी । ऋषभदेव, महावीर स्वामी , गौतम , बुद्ध, चरक , पतंजलि , चुणक ऋषि, गौरख नाथ व नाथ परंपरा में शामिल  ऋषि , मुनि , भगवान  शिव  , ब्रह्मा जी, विष्णु जी और नारद  , हनुमान  हठयोग किया करते थे । योग के जनक भगवान शिव द्वारा  नृत्य क्रियाएं एवं हठयोग किया करते थे । योग का प्रयोग शरीर को सुंदर, सुडौल,स्वस्थ और रोगों से दूर रहने के लिए किया जाता है । योगीजन स्वच्छ  वातावरण में रह कर  वायु शुद्ध, विचार शुद्ध , खान-पान  अच्छा और सेहतमंद हुआ करते थे । सतभक्ति न करने से 84 लाख योनियों की मार झेलनी पड़ती है। विश्व के 192 देशों में योग दिवस मनाया जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता के 16 /, 23 और 24 तथा 17 / 5 - 6 अनुसार शास्त्रविधि रहित घोर तप हठ योग अहंकार और पाखण्ड से युक्त कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से युक्त हैं। मन, आत्मा और शरीर सभी का भला होता है। पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि  तत्वज्ञान को  सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे उस तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। मनु स्मृति 6 / 71 , योग चूड़ामणि 109, योग दर्शन 2 / 13 , चरक संहिता , शांगधर पद्धति , तैतिरियोपनिषद , अथर्वेद , हठयोगप्रदीपिका , ऋग्वेद 10,16 ,2 , ऋषि वशिष्ठ ,पतंजलि , देव गुरु वृहस्पति , दैत्य गुरु शुक्राचार्य , आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । इंसान को ठड्डियान बंध ,अनुलोम विलोम  प्रणायाम ,भ्रामरी प्राणायाम, मूलाधार चक्र ,स्वाधिष्ठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,हृदय चक्र , विशुद्धि चक्र ,गायत्री ध्यान , सूर्य नमस्कार , अनाहत चक्र ,सौष्णुम्न ,एवं ध्यानादि योग क्रियाओं से इंसान मानसिक और शारीरिक क्षमता में सकारात्मक ऊर्जा  को बढ़ाती है । अष्टांग योग संस्थान, मैसूर अष्टांग योग अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक के मैसूर में  योग केंद्र देश नहीं बल्कि विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है।  डेस्टिनेशन कृष्णमाचार्य योग संस्थान, चेन्नई कृष्णमाचार्य योग संस्थान, तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है।  फेस्टिवल की सभी जानकारी राममणि अयंगर मेमोरियल योगा संस्थान, पुणे यह संस्थान, पुणे के एक अयंगर परिवार द्वारा संचालित है। योग संस्थान, मुंगेर बिहार योग संस्थान, भारत के प्रमुख योग संस्थान को  1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यहां संपूर्ण योग जीवन शैली प्रदान की जाती है।  निकेतन आश्रम, ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम, भारत के सबसे प्रमुख योग केंद्र उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में स्थित संस्थान में  1000 कमरे हैं। प्रत्येक वर्ष  मार्च  में  विश्व प्रसिद्ध योग उत्सव का आयोजन  किया जाता है। शिवानंद वेदांत योग संस्थान, त्रिवेंद्रम शिवानंद वेदांत योग संस्थान केरल के त्रिवेंद्रम में स्वामी शिवानंद के शिष्य विष्णुदेवानंद द्वारा बनाया गया था। वेदांत  संस्थान आसन स्वास्थ्य विश्राम ध्यान और आहार सहित योग्य पांच बिंदु अवधारणा की नींव है। ओडिशा ,  उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , बंगलोर , भोपाल आदि स्थानों में योग केंद्र है ।









        सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और स्मृति , संहिताओं आदि ग्रंथों में योग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । भगगवन शिव को योग का पिता  कहा जाता है । भक्ति योग , कर्मयोग और ज्ञान योग से मानवीय शक्ति का चतुर्दिक विकास का माध्यम योग   है । पुरातन काल में योग करने वाले पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है ।योग ज्ञान से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है । अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है । योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। प्रथम बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार प्रगट किया था । योग, ध्यान, सामूहिक मन्थन, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का मंथन योग है । भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक और इंसान तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य , विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला , स्वास्थ्य और भलाई के लिए  समग्र दृष्टिकोण को  प्रदान करने वाला है।  संयुक्त राष्ट्र के  11 दिसंबर 2014 ई. को विश्व योग दिवस का पारित प्रस्ताव के अनुसार विश्व  के 177 देशों के  सदस्यों द्वारा 21 जून 2015  को "अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी थी । सर्वप्रथम  21 जून 2015 को विश्व में विश्व योग दिवस विश्व शान्ति के लिए द्विदिवसीय  विज्ञान' सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011  आयोजित किया गया। लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउण्डेशन और योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा आयोजित किया गया। योग गुरु अमृत सूर्यानन्द के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार  10 साल पहले आया था । भारत की ओर से योग गुरु एवं श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे । विज्ञान सम्मेलन में श्री श्री रवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ़ लिविंग; आदि चुन चुन गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ; स्वामी पर्मात्मानन्द, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव; बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणे; स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार; डॉ॰ नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू; जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महा राज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्ष; अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्ष; डा डी॰आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली शामिल थे । प्रधानमन्त्री मोदी के प्रस्ताव का नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइराला , संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने समर्थन किया है। "अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसम्बर 2014 को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' मनाने 21 जून को स्वीकृति  दी गयी थी । भारत में पहले अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 2015 को  विश्व योग दिवस को यादगार बनाने और पूरे विश्व को योग के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के सफल होने के साथ विश्व रिकार्ड कायम कर लिए थे । प्राचीन काल से  सनातन धर्म के ऋषि, महर्षियों‌ ,साधु – संतों द्वारा योग को अपनाया जाता रहा है।  सिंधु घाटी सभ्यता में योग को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग 10,000 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है। ऋषि ,मुनि, साधु प्राय: परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया करते थे। 
शैव , शाक्त , वैष्णव , सौर , ब्राह्मण धर्म  में योग संस्कृति थी । ऋषभदेव, महावीर स्वामी , गौतम , बुद्ध, चरक , पतंजलि , चुणक ऋषि, गौरख नाथ व नाथ परंपरा में शामिल  ऋषि , मुनि , भगवान  शिव  , ब्रह्मा जी, विष्णु जी और नारद  , हनुमान  हठयोग किया करते थे । योग के जनक भगवान शिव द्वारा  नृत्य क्रियाएं एवं हठयोग किया करते थे । योग का प्रयोग शरीर को सुंदर, सुडौल,स्वस्थ और रोगों से दूर रहने के लिए किया जाता है । योगीजन स्वच्छ  वातावरण में रह कर  वायु शुद्ध, विचार शुद्ध , खान-पान  अच्छा और सेहतमंद हुआ करते थे । सतभक्ति न करने से 84 लाख योनियों की मार झेलनी पड़ती है। विश्व के 192 देशों में योग दिवस मनाया जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता के 16 /, 23 और 24 तथा 17 / 5 - 6 अनुसार शास्त्रविधि रहित घोर तप हठ योग अहंकार और पाखण्ड से युक्त कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से युक्त हैं। मन, आत्मा और शरीर सभी का भला होता है। पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि  तत्वज्ञान को  सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे उस तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। मनु स्मृति 6 / 71 , योग चूड़ामणि 109, योग दर्शन 2 / 13 , चरक संहिता , शांगधर पद्धति , तैतिरियोपनिषद , अथर्वेद , हठयोगप्रदीपिका , ऋग्वेद 10,16 ,2 , ऋषि वशिष्ठ ,पतंजलि , देव गुरु वृहस्पति , दैत्य गुरु शुक्राचार्य , आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । इंसान को ठड्डियान बंध ,अनुलोम विलोम  प्रणायाम ,भ्रामरी प्राणायाम, मूलाधार चक्र ,स्वाधिष्ठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,हृदय चक्र , विशुद्धि चक्र ,गायत्री ध्यान , सूर्य नमस्कार , अनाहत चक्र ,सौष्णुम्न ,एवं ध्यानादि योग क्रियाओं से इंसान मानसिक और शारीरिक क्षमता में सकारात्मक ऊर्जा  को बढ़ाती है । अष्टांग योग संस्थान, मैसूर अष्टांग योग अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक के मैसूर में  योग केंद्र देश नहीं बल्कि विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है।  डेस्टिनेशन कृष्णमाचार्य योग संस्थान, चेन्नई कृष्णमाचार्य योग संस्थान, तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है।  फेस्टिवल की सभी जानकारी राममणि अयंगर मेमोरियल योगा संस्थान, पुणे यह संस्थान, पुणे के एक अयंगर परिवार द्वारा संचालित है। योग संस्थान, मुंगेर बिहार योग संस्थान, भारत के प्रमुख योग संस्थान को  1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यहां संपूर्ण योग जीवन शैली प्रदान की जाती है।  निकेतन आश्रम, ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम, भारत के सबसे प्रमुख योग केंद्र उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में स्थित संस्थान में  1000 कमरे हैं। प्रत्येक वर्ष  मार्च  में  विश्व प्रसिद्ध योग उत्सव का आयोजन  किया जाता है। शिवानंद वेदांत योग संस्थान, त्रिवेंद्रम शिवानंद वेदांत योग संस्थान केरल के त्रिवेंद्रम में स्वामी शिवानंद के शिष्य विष्णुदेवानंद द्वारा बनाया गया था। वेदांत  संस्थान आसन स्वास्थ्य विश्राम ध्यान और आहार सहित योग्य पांच बिंदु अवधारणा की नींव है। ओडिशा ,  उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , बंगलोर , भोपाल आदि स्थानों में योग केंद्र है ।









        सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और स्मृति , संहिताओं आदि ग्रंथों में योग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । भगगवन शिव को योग का पिता  कहा जाता है । भक्ति योग , कर्मयोग और ज्ञान योग से मानवीय शक्ति का चतुर्दिक विकास का माध्यम योग   है । पुरातन काल में योग करने वाले पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है ।योग ज्ञान से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है । अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है । योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। प्रथम बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार प्रगट किया था । योग, ध्यान, सामूहिक मन्थन, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का मंथन योग है । भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक और इंसान तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य , विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला , स्वास्थ्य और भलाई के लिए  समग्र दृष्टिकोण को  प्रदान करने वाला है।  संयुक्त राष्ट्र के  11 दिसंबर 2014 ई. को विश्व योग दिवस का पारित प्रस्ताव के अनुसार विश्व  के 177 देशों के  सदस्यों द्वारा 21 जून 2015  को "अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी थी । सर्वप्रथम  21 जून 2015 को विश्व में विश्व योग दिवस विश्व शान्ति के लिए द्विदिवसीय  विज्ञान' सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011  आयोजित किया गया। लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउण्डेशन और योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा आयोजित किया गया। योग गुरु अमृत सूर्यानन्द के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार  10 साल पहले आया था । भारत की ओर से योग गुरु एवं श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे । विज्ञान सम्मेलन में श्री श्री रवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ़ लिविंग; आदि चुन चुन गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ; स्वामी पर्मात्मानन्द, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव; बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणे; स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार; डॉ॰ नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू; जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महा राज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्ष; अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्ष; डा डी॰आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली शामिल थे । प्रधानमन्त्री मोदी के प्रस्ताव का नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइराला , संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने समर्थन किया है। "अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसम्बर 2014 को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' मनाने 21 जून को स्वीकृति  दी गयी थी । भारत में पहले अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 2015 को  विश्व योग दिवस को यादगार बनाने और पूरे विश्व को योग के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के सफल होने के साथ विश्व रिकार्ड कायम कर लिए थे । प्राचीन काल से  सनातन धर्म के ऋषि, महर्षियों‌ ,साधु – संतों द्वारा योग को अपनाया जाता रहा है।  सिंधु घाटी सभ्यता में योग को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग 10,000 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है। ऋषि ,मुनि, साधु प्राय: परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया करते थे। 
शैव , शाक्त , वैष्णव , सौर , ब्राह्मण धर्म  में योग संस्कृति थी । ऋषभदेव, महावीर स्वामी , गौतम , बुद्ध, चरक , पतंजलि , चुणक ऋषि, गौरख नाथ व नाथ परंपरा में शामिल  ऋषि , मुनि , भगवान  शिव  , ब्रह्मा जी, विष्णु जी और नारद  , हनुमान  हठयोग किया करते थे । योग के जनक भगवान शिव द्वारा  नृत्य क्रियाएं एवं हठयोग किया करते थे । योग का प्रयोग शरीर को सुंदर, सुडौल,स्वस्थ और रोगों से दूर रहने के लिए किया जाता है । योगीजन स्वच्छ  वातावरण में रह कर  वायु शुद्ध, विचार शुद्ध , खान-पान  अच्छा और सेहतमंद हुआ करते थे । सतभक्ति न करने से 84 लाख योनियों की मार झेलनी पड़ती है। विश्व के 192 देशों में योग दिवस मनाया जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता के 16 /, 23 और 24 तथा 17 / 5 - 6 अनुसार शास्त्रविधि रहित घोर तप हठ योग अहंकार और पाखण्ड से युक्त कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से युक्त हैं। मन, आत्मा और शरीर सभी का भला होता है। पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि  तत्वज्ञान को  सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे उस तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। मनु स्मृति 6 / 71 , योग चूड़ामणि 109, योग दर्शन 2 / 13 , चरक संहिता , शांगधर पद्धति , तैतिरियोपनिषद , अथर्वेद , हठयोगप्रदीपिका , ऋग्वेद 10,16 ,2 , ऋषि वशिष्ठ ,पतंजलि , देव गुरु वृहस्पति , दैत्य गुरु शुक्राचार्य , आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । इंसान को ठड्डियान बंध ,अनुलोम विलोम  प्रणायाम ,भ्रामरी प्राणायाम, मूलाधार चक्र ,स्वाधिष्ठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,हृदय चक्र , विशुद्धि चक्र ,गायत्री ध्यान , सूर्य नमस्कार , अनाहत चक्र ,सौष्णुम्न ,एवं ध्यानादि योग क्रियाओं से इंसान मानसिक और शारीरिक क्षमता में सकारात्मक ऊर्जा  को बढ़ाती है । अष्टांग योग संस्थान, मैसूर अष्टांग योग अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक के मैसूर में  योग केंद्र देश नहीं बल्कि विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है।  डेस्टिनेशन कृष्णमाचार्य योग संस्थान, चेन्नई कृष्णमाचार्य योग संस्थान, तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है।  फेस्टिवल की सभी जानकारी राममणि अयंगर मेमोरियल योगा संस्थान, पुणे यह संस्थान, पुणे के एक अयंगर परिवार द्वारा संचालित है। योग संस्थान, मुंगेर बिहार योग संस्थान, भारत के प्रमुख योग संस्थान को  1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यहां संपूर्ण योग जीवन शैली प्रदान की जाती है।  निकेतन आश्रम, ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम, भारत के सबसे प्रमुख योग केंद्र उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में स्थित संस्थान में  1000 कमरे हैं। प्रत्येक वर्ष  मार्च  में  विश्व प्रसिद्ध योग उत्सव का आयोजन  किया जाता है। शिवानंद वेदांत योग संस्थान, त्रिवेंद्रम शिवानंद वेदांत योग संस्थान केरल के त्रिवेंद्रम में स्वामी शिवानंद के शिष्य विष्णुदेवानंद द्वारा बनाया गया था। वेदांत  संस्थान आसन स्वास्थ्य विश्राम ध्यान और आहार सहित योग्य पांच बिंदु अवधारणा की नींव है। ओडिशा ,  उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , बंगलोर , भोपाल आदि स्थानों में योग केंद्र है ।











        सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और स्मृति , संहिताओं आदि ग्रंथों में योग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । भगगवन शिव को योग का पिता  कहा जाता है । भक्ति योग , कर्मयोग और ज्ञान योग से मानवीय शक्ति का चतुर्दिक विकास का माध्यम योग   है । पुरातन काल में योग करने वाले पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है ।योग ज्ञान से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है । अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है । योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। प्रथम बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार प्रगट किया था । योग, ध्यान, सामूहिक मन्थन, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का मंथन योग है । भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक और इंसान तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य , विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला , स्वास्थ्य और भलाई के लिए  समग्र दृष्टिकोण को  प्रदान करने वाला है।  संयुक्त राष्ट्र के  11 दिसंबर 2014 ई. को विश्व योग दिवस का पारित प्रस्ताव के अनुसार विश्व  के 177 देशों के  सदस्यों द्वारा 21 जून 2015  को "अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी थी । सर्वप्रथम  21 जून 2015 को विश्व में विश्व योग दिवस विश्व शान्ति के लिए द्विदिवसीय  विज्ञान' सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011  आयोजित किया गया। लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउण्डेशन और योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा आयोजित किया गया। योग गुरु अमृत सूर्यानन्द के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार  10 साल पहले आया था । भारत की ओर से योग गुरु एवं श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे । विज्ञान सम्मेलन में श्री श्री रवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ़ लिविंग; आदि चुन चुन गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ; स्वामी पर्मात्मानन्द, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव; बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणे; स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार; डॉ॰ नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू; जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महा राज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्ष; अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्ष; डा डी॰आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली शामिल थे । प्रधानमन्त्री मोदी के प्रस्ताव का नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइराला , संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने समर्थन किया है। "अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसम्बर 2014 को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' मनाने 21 जून को स्वीकृति  दी गयी थी । भारत में पहले अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 2015 को  विश्व योग दिवस को यादगार बनाने और पूरे विश्व को योग के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के सफल होने के साथ विश्व रिकार्ड कायम कर लिए थे । प्राचीन काल से  सनातन धर्म के ऋषि, महर्षियों‌ ,साधु – संतों द्वारा योग को अपनाया जाता रहा है।  सिंधु घाटी सभ्यता में योग को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग 10,000 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है। ऋषि ,मुनि, साधु प्राय: परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया करते थे। 
शैव , शाक्त , वैष्णव , सौर , ब्राह्मण धर्म  में योग संस्कृति थी । ऋषभदेव, महावीर स्वामी , गौतम , बुद्ध, चरक , पतंजलि , चुणक ऋषि, गौरख नाथ व नाथ परंपरा में शामिल  ऋषि , मुनि , भगवान  शिव  , ब्रह्मा जी, विष्णु जी और नारद  , हनुमान  हठयोग किया करते थे । योग के जनक भगवान शिव द्वारा  नृत्य क्रियाएं एवं हठयोग किया करते थे । योग का प्रयोग शरीर को सुंदर, सुडौल,स्वस्थ और रोगों से दूर रहने के लिए किया जाता है । योगीजन स्वच्छ  वातावरण में रह कर  वायु शुद्ध, विचार शुद्ध , खान-पान  अच्छा और सेहतमंद हुआ करते थे । सतभक्ति न करने से 84 लाख योनियों की मार झेलनी पड़ती है। विश्व के 192 देशों में योग दिवस मनाया जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता के 16 /, 23 और 24 तथा 17 / 5 - 6 अनुसार शास्त्रविधि रहित घोर तप हठ योग अहंकार और पाखण्ड से युक्त कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से युक्त हैं। मन, आत्मा और शरीर सभी का भला होता है। पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि  तत्वज्ञान को  सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे उस तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। मनु स्मृति 6 / 71 , योग चूड़ामणि 109, योग दर्शन 2 / 13 , चरक संहिता , शांगधर पद्धति , तैतिरियोपनिषद , अथर्वेद , हठयोगप्रदीपिका , ऋग्वेद 10,16 ,2 , ऋषि वशिष्ठ ,पतंजलि , देव गुरु वृहस्पति , दैत्य गुरु शुक्राचार्य , आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । इंसान को ठड्डियान बंध ,अनुलोम विलोम  प्रणायाम ,भ्रामरी प्राणायाम, मूलाधार चक्र ,स्वाधिष्ठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,हृदय चक्र , विशुद्धि चक्र ,गायत्री ध्यान , सूर्य नमस्कार , अनाहत चक्र ,सौष्णुम्न ,एवं ध्यानादि योग क्रियाओं से इंसान मानसिक और शारीरिक क्षमता में सकारात्मक ऊर्जा  को बढ़ाती है । अष्टांग योग संस्थान, मैसूर अष्टांग योग अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक के मैसूर में  योग केंद्र देश नहीं बल्कि विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है।  डेस्टिनेशन कृष्णमाचार्य योग संस्थान, चेन्नई कृष्णमाचार्य योग संस्थान, तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है।  फेस्टिवल की सभी जानकारी राममणि अयंगर मेमोरियल योगा संस्थान, पुणे यह संस्थान, पुणे के एक अयंगर परिवार द्वारा संचालित है। योग संस्थान, मुंगेर बिहार योग संस्थान, भारत के प्रमुख योग संस्थान को  1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यहां संपूर्ण योग जीवन शैली प्रदान की जाती है।  निकेतन आश्रम, ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम, भारत के सबसे प्रमुख योग केंद्र उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में स्थित संस्थान में  1000 कमरे हैं। प्रत्येक वर्ष  मार्च  में  विश्व प्रसिद्ध योग उत्सव का आयोजन  किया जाता है। शिवानंद वेदांत योग संस्थान, त्रिवेंद्रम शिवानंद वेदांत योग संस्थान केरल के त्रिवेंद्रम में स्वामी शिवानंद के शिष्य विष्णुदेवानंद द्वारा बनाया गया था। वेदांत  संस्थान आसन स्वास्थ्य विश्राम ध्यान और आहार सहित योग्य पांच बिंदु अवधारणा की नींव है। ओडिशा ,  उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , बंगलोर , भोपाल आदि स्थानों में योग केंद्र है ।








शनिवार, जून 18, 2022

धैर्य और त्याग की प्रतिमूर्ति पिता ....


                वेदों , पुरणों और स्मृति ग्रंथों में पिता को धैर्य और त्याग की प्रतिमूर्ति का उल्लेख किया गया है ।पिता की छाया और मां की ममता से पुत्र का चतुर्दिक विकास संभव है ।  कर्म , ज्ञान और चतुर्दिक विकास का शिल्पी  , पालनकर्ता के रूप में पिता है ।स्मृति ग्रंथों के अनुसार सतोगुण , तमोगुण और रजोगुण का समावेश पिता में समाहित है और पुत्रों को सतोगुण के मार्ग पर चलने का मार्गदर्शक है । शास्त्रों में पितृ ऋण और मातृ ऋण से उद्धार कसभी नही हो सकता है । सनातन संस्कृति में प्रत्येक वर्ष का आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों को समपर्ण किया गया है और प्रत्येक मास की अमावस्या पितरों के लिए समर्पित है । पिताओं के सम्मान के लिए पितृ दिवस , पितरी दिवस ,  पितृत्व दिवस  , फादरहुड ,फादर्स डे दिवस  विश्व के 111 देशों में  मनाया जाता है। फादर्स डे को विश्व में विभिन तारीखों पर उपहार देना, पिता के लिये विशेष भोज एवं पारिवारिक गतिविधियाँ शामिल हैं।  फादर्स डे  पश्चिम वर्जीनिया के फेयरमोंट में 19 जून 1910 एवं 6 दिसम्बर 1907 को मोनोंगाह, पश्चिम वर्जीनिया में खान दुर्घटना में मारे गए 210 पिताओं के सम्मान में पितृ  दिवस का आयोजन श्रीमती ग्रेस गोल्डन क्लेटन ने किया था। प्रथम फादर्स डे  सेन्ट्रल यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च से फेयरमोंट में मौजूद है । थम फादर्स डे स्पोकाने, वाशिंगटन के सोनोरा स्मार्ट डोड के प्रयासों से दो वर्ष बाद 19 जून 1910 को आयोजित किया गया था। 1909 में स्पोकाने के सेंट्रल मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च के बिशप द्वारा मदर्स डे पर दिए गए धर्मउपदेश को सुनने के बाद, डोड को लगा कि पिताधर्म को विशप ने पिता विलियम स्मार्ट पिताओं के सम्मान में उत्सव आयोजित करना चाहती थीं  विशप सेवानिवृत्त सैनिके ने छठे बच्चे के जन्म के समय सोनोरा 16 वर्ष की थी, अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद अपने परिवार की अकेले परवरिश की थी । अगले वर्ष ओल्ड सेन्टेनरी प्रेस्बिटेरियन चर्चवaz के पादरी डॉ कोनराड ब्लुह्म की सहायता से सोनोरा इस विचार को स्पोकाने वायएमसीए के पास ले गयी। स्पोकाने वायएमसीए तथा मिनिस्टीरियल अलायन्स ने डोड के इस विचार का समर्थन किया और 1910 में प्रथम फादर्स डे मना कर इसका प्रचार किया। सोनोरा ने सुझाव दिया कि उनके पिता का जन्मदिन, 5 जून को सभी पिताओं के सम्मान के लिये तय कर दिया जाये. चूंकि पादरी इसकी तैयारी के लिए कुछ और वक़्त चाहते थे इसलिये 19 जून 1910 को वायएमसीए के युवा सदस्य गुलाब का फूल लगा कर चर्च गये, लाल गुलाब जीवित पिता के सम्मान में और सफेद गुलाब मृतक पिता के सम्मान में.डोड घोड़ा-गाड़ी में बैठकर पूरे शहर में घूमीं और बीमारी के कारण घरों में रह गये पिताओं को उपहार बांटे थे। फादर्स डे की छुट्टी को राष्ट्रीय मान्यता देने के लिये सन् 1913 में एक बिल कांग्रेस में पेश किया गया। सन 1916 में, राष्ट्रपति वुडरो विल्सन एक फादर्स डे समारोह में भाषण देने स्पोकाने गये थे ।अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कूलिज ने 1924 में सिफारिश की कि फादर्स डे  पूरे राष्ट्र द्वारा मनाया जाये किंतु इसकी राष्ट्रीय घोषणा का प्रस्ताव लाया था। 1966 में, राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने प्रथम राष्ट्रपतीय घोषणा जारी कर जून महीने के तीसरे रविवार को पिताओं के सम्मान में, फादर्स डे के रूप में तय किय था । 1972 में वह दिन आया जब राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इस कानून पर हस्ताक्षर किये और यह एक स्थायी राष्ट्रीय छुट्टी बना.। 2010 में, 'फादर्स डे' की स्मृति में स्पोकाने में 'फादर्स डे' शताब्दी समारोह मनाया गया था । 1930  में एसोसिएटेड मेन्स वियर रिटेलर्स ने न्यूयार्क शहर में राष्ट्रीय फादर्स डे समिति बनाई थी । 1938 में फादर्स डे समिति को फादर्स डे के प्रोत्साहन के लिये राष्ट्रीय परिषद रख दिया गया था ।1937 में फादर्स डे परिषद ने गणना की गयी थी । विश्व के भीन्न भीन्न  देशों में पितृदिवस व फादर्स डे ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 6 जनवरी में सर्बिया सर्बिया ("पेटरिस")* , 23 फ़रवरी में रूस (फादर लैंड डे का प्रतिरक्षक) , 19 मार्च में अण्डोरा एन्डोर्रा (डिया डेल पेर) बोलिविया बोलीविया , हौण्डुरस होन्डुरस , इटली इटली (फेस्टा डेल पापा) ,लिख्टेंश्टाइन लिकटेंस्टीन , पुर्तगाल पुर्तगाल(डिया डू पाई) , स्पेन स्पेन (डिया डेल पेद्रे, डिया डेल पेरे, डिया डू पाई) ,साँचा:देश आँकड़े  एंटवर्प (बेल्जियम) , मई का दूसरा रविवार को मई साँचा , :परोमानिया रोमानिया जियू टाटालुइ में 8 मई को दक्षिण कोरिया दक्षिण कोरिया में पैरेंट्स डे , मई का तीसरा रविवार में मई साँचा व टोंगा टोंगा  अर्सेशन दिवसथि को एकीकृत परियोजना के रूप में 24 अगस्त करने के लिये अनेक प्रस्ताव 'अर्जेंटाइन कैमरा डे डिपुटाडोस' के सामने रखे गये।[28] मंजूर होने पर परियोजना को अर्जेंटीना की सीनेट के पास अंतिम समीक्षा तथा मंजूरी के लिये भेजा गया। सीनेट ने नई तारीख को बदल कर अगस्त का तीसरा रविवार कर के मंजूरी के लिये प्रस्तुत किया था ।
पुरणों के अनुसार सनातन परंपरा के  देशों में पित्तरों की  पूजा के रूप में अगस्त के अंत में या सितम्बर के प्रारंभ में आश्विन कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। पितृदिवस भारत तथा नेपाल में प्रचलित है। सनातन धर्मावलंबियों द्वारा में माता पिता एवं पूर्वजों को याद करने के लिए अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या को पितृपक्ष १५ दिन प्रत्येक वर्षमानते हैं । पितृपक्ष के  दिनों में पूर्वजों को याद करने के साथ साथ वैदिक परम्पराओं अनुसार जल देकर  पूर्वज संतुष्ट करते  हैं ।  पितृपक्ष में सनातन धर्म एवं हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा अपने पितरों को बिहार के गया जिले के गया में अवस्थित 108 स्थानों व भगवान विष्णु के चरण को पितृ ऋण से मुक्ति और  आशीष  वंशज चतुर्दिक विकास करते  है।
जापान में 'फादर्स डे' जून के तीसरे रविवार व सेशेल्स में 'फादर्स डे' 16 जून को मनाया जाता है । नेपाल में हिंदू लोग अगस्त के अंत में या सितम्बर के प्रारम्भ में गोकर्ण ऑन्सी ('फादर्स डे') पर पित्तरों की पूजा  'बुबाको मुख हेरने दिन '  के रूप में  जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष की अश्विन कृष्ण अमावस्या के दिन लोग काठमांडू के उपनगर गोकर्ण स्थित गोकर्णेश्वर महादेव के शिव मंदिर जाते हैं। न्यूजीलैंड में 'फादर्स डे' सितम्बर के पहले रविवार , फिलीपींस में 'फादर्स डे'को  जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। रोमन कैथोलिक परंपरा में पितृ उत्सव 19 मार्च को सेंट जोसेफ दिवस, सिंगापुर में 'फादर्स डे' जून के तीसरे रविवार , ताइवान में 'फादर्स डे' 8 अगस्त को मनाया जाता है। मंडारिन चीनी में संख्या 8 का उच्चारण बा दिवस , ताइवानी लोग 8 अगस्त को बाबा दिवस" ,थाईलैंड में 'फादर्स डे' राजा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान राजा भूमिबोल अदुल्यादेज (राम IX) का जन्मदिन 5 दिसम्बर को है। थाई लोग अपने पिता या दादा को भंग फूल (दोक पुत ता रुक सा), जो एक मर्दाना फूल माना जाता है, भेंट कर के उत्सव मनाते हैं। थाई लोग इस दिन राजा के प्रति सम्मान दिखाने के लिए पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं, क्योंकि पीला रंग सोमवार का रंग है, जिस दिन राजा भूमिबोल अदुल्यादेज का जन्म हुआ था। ब्रिटेन में 'फादर्स डे' जून के तीसरे रविवार एवं अमेरिका में, 'फादर्स डे' जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। पहली बार यह उत्सव 19 जून 1910 को स्पोकाने, वाशिंगटन में मनाया , फेयरमोंट तथा क्रेस्टन में पिताओं का सम्मान करने के लिए 'फादर्स डे' की शुरुआत क्रेस्टन, वाशिंगटन में जन्मी सोनोरा स्मार्ट डोड ने की थी तथा उन्हीं की प्रेरणा से यह स्थापित हुआ। उनके पिता, सिविल युद्ध के सेवानिवृत्त विलियम जैक्सन स्मार्ट ने अकेले स्पोकाने, वाशिंगटन में अपने 6 बच्चों की परवरिश की थी।[3] वह एन्ना जार्विस के 'मदर्स डे' की स्थापना के प्रयासों से प्रेरित हुई थी। हालांकि उन्होंने शुरू में अपने पिता के जन्म दिन 5 जून का सुझाव दिया था, किंतु वह आयोजकों को व्यवस्था करने के लिये पर्याप्त समय नहीं दे सकी इसलिये उत्सव को जून के तीसरे रविवार तक खिसका दिया गया। पहली बार, 'फादर्स डे' 19 जून 1910 को स्पोकाने, वाशिंगटन के स्पोकाने वायएमसीए में मनाया गया था ।विलियम जेनिंग्स ब्रायन जैसी हस्तियों से मिलने वाला अनौपचारिक समर्थन तात्कालिक और व्यापक था। 1916 में राष्ट्रपति वूड्रो विल्सन का उनके परिवार द्वारा व्यक्तिगत रूप से उत्सवपूर्वक सम्मान किया गया था। 1924 में राष्ट्रपति कैल्विन कूलिज ने इसके लिये राष्ट्रीय अवकाश की सिफारिश की है। 'फादर्स डे' का  प्रथम बार  5 जुलाई 1908 को फेयरमोंट, पश्चिम वर्जीनिया में विलियम्स मेमोरियल मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च दक्षिण (जिसे अब सेन्ट्रल यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च के रूप में जाना जाता है । वर्ष के प्रत्येक  जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है। फादर्स डे  विश्व  में भिन्न भिन्न  तिथियों पर मनाया जाता है । यूरोप में 19 मार्च को 'सेंट जोसेफ दिवस व  संयुक्त राज्य अमेरिका में जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है  । , वाशिंगटन  ने  19 जून 1910 रविवार  दिन को 'फादर्स डे' के रूप में घोषित करने के बाद साल 1916 के तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने इस दिन को मनाने को स्वीकृति दी थी।  1924 में राष्ट्रपति कैल्विन कुलिज ने फादर्स डे को राष्ट्रीय आयोजन घोषित किया था । जून के तीसरे रविवार को मनाने का फैसला 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने लिया था । प्रथम बार   नियमित अवकाश के रूप में 1972 ई. को घोषित किया है । पितृत्व का सम्मान करते हुए  बच्चे अपने पिता के प्रयासों और परिवार में योगदान को स्वीकारते हैं । पिता का सम्मान से व्यक्ति का विकास संभव है ।

मंगलवार, जून 14, 2022

सांस्कृतिक विरासत के साधक सत्येन्द्र कुमार पाठक ...

      बिहार राज्य के अरवल जिले का करपी प्रखंड मुख्यालय करपी में सत्येन्द्र कुमार पाठक का जन्म 15 जून 1957 ई. को शाकद्वीपीय ब्राह्मण में हुआ है । इनके पिता सच्चिदानंद पाठक ज्योतिष एवं कर्मकांड के  विद्वान , माता ललिता देवी तथा पत्नी सत्यभामा देवी धर्मपरायण थी । सत्येंद्र कुमार पाठक के नवीन कुमार पाठक , जीविका मुजफ्फरपुर के ट्रेनिंग ऑफिसर प्रवीण कुमार पाठक पुत्र तथा इंदु , कुमुद , मेनका , एस. एस . कॉलेज जहानाबाद के प्रो.  उर्वशी तथा प्रियंका पुत्री और दिव्यांशु पौत्र , तीन भाई है । इन्होंने शास्त्री प्रतिष्ठा , आई ए , विशारद , बी टी योग्यता हासील करने के बाद सरकारी विद्यालयों में 1 नवंबर 1977 ई. से 30 जून 2017 तक शिक्षक के पद पर कार्य कर सेवानिवृत हुए  है ।
पत्रकारिता -  1975 से विभिन्न साप्ताहिक , दैनिक समाचार पत्रों में संबाद प्रेषण का कार्य किया है । पत्रकारिता के क्षेत्र में सत्येन्द्र कुमार पाठक ने गया से प्रकाशित गया समाचार , मगध धरती , मगधाग्नि हिंदी साप्ताहिक , पटना से प्रकाशित हिंदी दैनिक आर्यावर्त , आत्मकथा , पाटलिपुत्र टाइम्स , हिंदुस्तान , आज , जयपुर राजस्थान  से प्रकाशित यंगलीडर में संबाद , टिकरी गया का समस्या दूत का सह संपादक , शिप्रा का उपसंपादक , 1981में हिंदी  मासिक पत्रिका मगध ज्योति तथा 1983 में हिंदी साप्ताहिक  मगध ज्योति का संपादक के रूप में कार्य किया है । पटना से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र आर्यावर्त , प्रदीप , पाटलिपुत्र टाइम्स , आज , जनशक्ति , आत्मकथा , हिंदुस्तान , प्रभात खबर में सबद प्रेषण किया । 2019 ई . से बुलंद समाचार , दिब्य रश्मि पोर्टल में संलेख प्रकाशित तथा मगध ज्योति ब्लॉग पॉट में संलेख प्रकाशित कर रहे है ।सार्वभौम शाकद्वीपीय ब्राह्मण महासंघ झारखण्ड से संबद्ध  रांची से प्रकाशित मगबन्धु (अखिल) जुलाई दिसम्बर 2020 का स्वतंत्रता सेनानी विशेषांक में संलेख प्रकाशित किया गया है। औरंगाबाद से प्रकाशित चित्रा दर्पण 2021 , समकालीन जबाबदेही 2021 , अरवल  स्थापना दिवस 2011 की स्मारिका , संस्कार न्यूज़ , साहित्य धारा अकादमी झारखंड की यात्रा काव्य संकलन , भारत के रचनाकार , हिंदी साप्ताहिक आकृति साहित्य पत्र पत्रिकाओं  ,  सरोज साहित्य , बम्बई हिंदी विद्यापीठ मुम्बई से हिंदी मासिक पत्रिका भारती 2023 , मुजफ्फरपुर बिहार से प्रकाशित हिंदी पाक्षिक निर्माण भारती 2023 , बूंदी राजस्थान से हिंदी साप्ताहिक पत्र लेखक हिंदी के 2023 में  आलेख प्रकाशित है ।
समाज सेवा - सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में समाजसेवा का कार्य किया है । 1976 ई. में करपी अरवल प्रखंड में आई भीषण बाढ़ में करपी प्रखंड दुग्ध  दलिया समिति गया का सदस्य बन कर बढ़  पीड़ितों की सहायता की वहीं करपी प्रखंड परिवार कल्याण समिति गया का सदस्य , जीवन ज्योति मंसूरी का सदस्य , शास्त्र धर्म प्रचार सभा कलकत्ता का सदस्य , जहानाबाद अनुमंडल किसान सुरक्षा समिति का अध्यक्ष , अखिल भारतीय सामाजिक स्वास्थ्य संघ का सदस्य , मगही मंच करपी प्रखंड के अध्यक्ष , भारतीय समाज सुधारक संघ जहानाबाद का अध्यक्ष ,पंडित नेहरू क्लब करपी का अध्यक्ष , करपी प्रखंड विद्युत उपभोक्ता समिति का अध्यक्ष , मगध बुद्धि मंच , बिहार राज्य मगही विकास मंच के महासचिव 1978 ई. में इमममगंज प्रखंड शिक्षा समिति गया का सदस्य , 1980 में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का सदस्य , 2007 बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना के स्थायी समिति के सदस्य  1992 ई . में सच्चिदानंद शिक्षा एवं समाज कल्याण संस्थान का सचिव , जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन जहानाबाद के उपाध्यक्ष , जहानाबाद जिला विरासत विकास समिति का अध्यक्ष , बिहार अराजपत्रित प्रारंभिक शिक्षक संघ जिला जहानाबाद का उप संजोजक , बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ ( गोप गुट ) जहानाबाद का संयुक्त  सचिव , 2008 ई. में बिहार राज्य क्रांतिकारी शिक्षक संघ का राज्य प्रवक्ता , 1996 ई. में ज्ञान गुहार अरवल का मुख्य साधन सेवी , 2003 ई. में भारतीय पुनर्वास परिषद द्वारा आयोजित अखिल भारतीय विकलांगता  कन्वेंशन दिल्ली में विकलांगो के विकाश में शामिल हुए । 1989 ई. में इंडियन प्रेस काउंसिल भोपाल का सदस्य हुए हैं । भारतीय विरासत संगठन के अध्यक्ष पद पर 18 अप्रैल 2021 , श्रीसत्य इंदिरा फाउंडेशन जयपुर ,राजस्थान के विशिष्ट सदस्य दिनांक 04 फरवरी  2023 में  चयनित हुए है । जिला गजेटियर समिति जहानबाद के सदस्य के रूप में चयनित किए गए। 









सम्मान - सत्येन्द्र कुमार पाठक को 14 सितंबर 1998 ई . हिंदी दिवस पर जैमिनि अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा हिंदी पत्रकारिता के उत्कृष्ट कार्य के लिए आचार्य उपाधि से अलंकृत किये गए , 23 अक्तूवर 2013 को मगही अकादमी पटना द्वारा मगही साहित्य में विशेष योगदान के लिये महाकवि योगेश मगही अकादमी शिखर सम्मान 2013  से सम्मानित , स्नातकोत्तर हिंदी विभाग मगध विश्वविद्यालय बोधगया द्वारा आयोजित  16 - 17 अप्रैल 2012 दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्टी में हिंदी साहित्य को मगध प्रक्षेत्र का योगदान विषय डॉ सुनील कुमार की संपादन कला पर सम्मान , 2 मार्च 2019 को बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना द्वारा आयोजित 40 वें तथा 2 - 3 अप्रैल 2016 को  37 वें  महाधिवेशन के परिसंबाद  पर सम्मानित हुए है। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना की ओर से हिंदी भाषा एवं साहित्य की उन्नति में मूल्यवान सेवाओं के लिए सम्मेलन के 101 वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में पंडित जनार्दन प्रसाद झा द्विज सम्मान से विभूषित कर उपाधि पत्र 19 अक्तूवर 2020 को प्रदान किया गया है । समाजवादी लोक परिषद की ओर से  गया में विश्व हिंदी दिवस के पूर्व संध्या पर 09 जनवरी 2021 को सतीस कुमार मिश्र सम्मान समारोह 2021के अवसर पर साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में समर्पित सेवा के लिये सम्मानित  , 26 सितंबर 2021 को नागरिक मोर्चा , अखिल भारतीय आदित्य परिषद एवं श्री नवयुवक समिति ट्रस्ट  मुजफ्फरपुर की ओर से हिंदी को बढ़ावा देने साहित्य जगत में सराहनीय योगदान एवं उत्कृष्ट कार्य हेतु हिंदी दिवस के अवसर पर कलम के जादूगर महान साहित्यकार एवं स्वतंत्रता सेनानी रामवृक्ष वेनिपुरी सम्मान पत्र 2021 एवं 28 सितंबर 2021 को राष्ट्र की रक्षा , समाज सेवा एवं कोरोना काल  मे योगदान हेतु शाहिद के आजम भगत सिंह एवं शहीद भगवानलाल सम्मान समारोह मुजफ्फरपुर की ओर से शहीद भगतसिंह एवं शहीद भगवानलाल सम्मान पत्र 2021 से सम्मानित  किये गए है । बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना के 41 वें महाधिवेशन 2-3 अप्रैल 2022  के विभिन्न कार्यक्रमों ,संगोष्ठियों, परिसंबादों , काव्य पाठ के लिए सम्मान पत्र प्राप्त कर सम्मानित किए गए है । प्रसिध्द जासूसी उपन्यासकार गोपालराम गहमरी की स्मृति में साहित्य सरोज एवं धर्म क्षेत्र गहमरी द्वारा  आयोजित  वां गोपालराम गहमरी साहित्यकार महोत्सव 2022 के अवसर पर 23 - 25 दिसंबर 2022 , उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के गहमर के समारोह में 25 दिसंबर 2022 को  हिंदी साहित्य के लेख - आलेख विधा में बहुमूल्य योगदान हेतु गोपालराम गहमरी लेखक गौरव सम्मान 2022 , श्रीसत्य इंदिरा फाउंडेशन जयपुर , राजस्थान से रवींद्र नाथ 
प्रकाशित रचनाएं - गधाँचाल ,  राज्य सरकार राजभाषा विभाग द्वारा अनुदानित से प्रकाशित वाणावर्त , बराबर , विरासत  है। वही अप्रकाशित रचनाए  उषा , यात्रा  है।आत्मा से पंजिकृत जिला किसान संगठन जहानाबाद का सचिव के रूप में कार्य कर रहे हैं । 1999 से जहानाबाद में रह कर सामाजिक  , साहित्यिक साधना में लगे हुए हैं । अंतरराष्ट्रीय साहित्य परिषद , आकृति साहित्य ई साप्ताहिक समाचार पत्र ,मगमिहिर महासभा  का सदस्य ,भारतीय जनक्रांति दल डेमोक्रेटिक का राष्ट्रीय कमिटि सदस्य  तथा बिहार राज्य पत्रकार संघ के सदस्य है ।
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