मंगलवार, मार्च 28, 2023

शांति और सद्भाव है अशोकाष्ठमी...


चैत्र शुक्ल अष्टमी को मगध सम्राट अशोक का जन्म मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में हुआ था । अशोकाष्ठमी  के दिन बैल, बकरा, भेड़ा, सुअर और इसी तरह के दूसरे जीवों का वध नहीं करने का आदेश जारी किया था।  वृहत्तर भारत का पृष्ठ संख्या 35 और 36 , पाटलिपुत्र की कथा पृष्ठ 152 , स्ट्रेबो की 64 ई.पू.. एवं 19 वीं ई. के पुस्तक अमेसिया  के अनुसार मगध साम्राज्य  में जन्मदिन मनाने की परंपरा मौर्यशासक अशोक द्वारा प्रारंभ हुई थी । सम्राट अशोक ने अपना  जन्मोत्सव के अवसर पर  अहिंसा , जीवों को बध नहीं करने  एवं कैदियों को मुक्त करने की प्रथा प्रारंभ की थी।चीनी यात्री फाहियान (399-411 ई.) ने उल्लेख किया है कि   चैत्र शुक्ल अष्टमी को अशोकाष्ठमी जयंती के अवसर पर  बीस बड़े और सुसज्जित रथों वाले विशाल जलूस प्रत्येक साल निकाले जाते थे ।कृत्यरत्नावली , कूर्मपुराण ,  पुराणकोश एवं गुप्त काल में फाह्यान यात्रा संलेख के अनुसार मौर्य वंशीय सम्राट अशोक का जन्मदिन चैत्र शुक्ल अष्टमी को हुआ था ।  पौराणिक संदर्भों की अशोकाष्टमी में अशोक वृक्ष का महत्व स्थापित है। अब आप अशोक वृक्ष और सम्राट अशोक के बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान में उल्लेख किया गया  कि नामसाम्य के कारण सम्राट अशोक को अशोक वृक्ष बहुत प्रिय था । चंवरधारणी यक्षिणी  मथुरा संग्रहालय में अशोक वृक्ष का पौधा लिए खड़ी है। मगध साम्राज्य का सम्राट मौर्य वंशीय अशोक  का शासनकाल 269 ई. पू. से 232 ई. पू. तक रहा था । अशोक द्वारा मगध साम्राज्य के  विस्तार की नीति बना कर  अखंड भारत पर राज करने वाला भारत के लगभग महाद्वीपो हिंदुकुश से गोदावरी नदी, बांग्लादेश, ईरान, और पश्चिम में अफगानिस्तान तक अपने राज्य का विस्तार किया और मौर्य वंश की नीव रखी गयी  थी । कलिंग युद्ध के पश्चात भयानक विनाश और खून खराबा देख कर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और बुद्ध की शिक्षा से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को अपनाया और बौद्ध धर्म के अनुयाई होने के बाद   पश्चिम एशिया, मिस्र, यूनान श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान) में भी जोर शोर से बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया था । मगध साम्राज्य का सम्राट चंद्रगुप्त का पौत्र एवं  बिंदुसार की पत्नी शुभद्रांगी के पुत्र सम्राट अशोक का जन्म चैत्र शुक्ल अष्टमी 304 ई. पू. पाटलिपुत्र में हुआ था । दिव्यावदन के अनुसार अशोक की पत्नी विदिशा की जेष्टपुत्री देवी थी । अशोक का निधन 232 ई.पू. मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र में हुई थी । मौर्य सम्राट अशोक बचपन से ही एक महान शासक एक अच्छे ज्ञानी और महान शक्तिशाली शासक एवं अर्थशास्त्र और गणित के महान ज्ञाता थे, सम्राट अशोक ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए स्कूल और कॉलेज बनवाए थे, इसके अलावा अशोक ने (284 ई.पू) बिहार में अध्ययन केंद्र व अन्य अध्ययन केंद्रों की स्थापना की थी । सम्राट अशोक की पांचों पत्नियों में  देवी, तिष्यरक्षिता, देवी, कारुवाकी, पद्मावती थी । अशोक की अंतिम पत्नी कौर्वकी से प्रेम विवाह , विदिशा महादेवी साक्याकुमारी से शादी की थी।। सम्राट अशोक ईलाज करवाने उज्जैन गए हुए थे उस वक्त अशोक की मुलाकात विदिशा की राजकुमारी महादेवी से हो गई, बाद में अशोक ने महादेवी साक्याकुमारी विवाह कर लिया था ।सम्राट अशोक की पुत्रों में  महेंद्र, संघमित्रा, तीवर, कनार, चारुमती था । तीवर- करूवाकी का पुत्र था, कुणाल- पद्मावती का पुत्र था, पुत्र महेंद्र पुत्री संघमित्रा और चारूमती देवी के पुत्र पुत्रियां थी । चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का साम्राज्य अखंड भारत में फैला हुआ था, अशोक महान के मन में बचपन से ही साम्राज्य विस्तार की नीति थी, जिसके चलते राज्य अभिषेक के बाद अखंड भारत के सभी महाद्वीपो हिंदुकुश से गोदावरी नदी, व बांग्लादेश, ईरान, और पश्चिम में अफगानिस्तान (वर्तमान के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और ईराक) तक अपने राज्य का विस्तार किया और मौर्य वंश की नीव रखी थी ।
मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था, चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिंदुसार था और बिंदुसार का उत्तराधिकारी सम्राट अशोक 269 ईसा पूर्व में मगध साम्राज्य की राज गद्दी पर बैठा था । सम्राट अशोक की माता  सुभद्रांगी थी । अशोक ने 273 ईसा पूर्व में ही सिंहासन प्राप्त कर लिया था लेकिन गृह  युद्ध होने के कारण राज्य अभिषेक 4 वर्षों के बाद 269 ईसा पूर्व में हुआ था ।अशोक की  पत्नियों में  देवी, तिष्यरक्षिता, देवी, कारुवाकी, पद्मावती थे । सम्राट अशोक के पुत्रों में महेंद्र, संघमित्रा, तीवर, कनार, चारुमती था । सम्राट अशोक ने राज्य अभिषेक के 8 वर्ष बाद अपने पिता की दिग्विजय की नीति को जारी रखा उस समय कलिंग का राज्य मगध साम्राज्य की संप्रभुता को चुनौती दे रहा था। अपने राज्य अभिषेक के आठवें वर्ष 261 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया, सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख के अनुसार  कलिंग युद्ध के परिणामों के बारे में अशोक के 13वे अभिलेखों से विस्तृत जानकारी मिलती है । सम्राट अशोक के ह्रदय में मानवता के प्रति दया, करुणा जाग उठी और सदा के लिए युद्ध क्रिया कलापों को बंद करने की घोषणा कर दी सम्राट अशोक पहले ब्राह्मण धर्म का अनुयाई था । कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक शैव धर्म का उपासक था । कलिंग युद्ध में हुए भीषण नरसंहार को देखकर सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया, बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद सम्राट अशोक ने अपने राज्य में लोगों को जीव और मानव के प्रति दया भाव रखने का संदेश दिया। मौर्य सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और अपनी पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा था । सम्राट अशोक के पिता की मृत्यु 273 ईसा पूर्व में हुई उसके बाद सम्राट अशोक महान का राज्याभिषेक हुआ और 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक अशोक का शासनकाल रहा था । सम्राट अशोक ने लगभग 36 साल तक शासन किया, ऐसा बताया जाता है कि सम्राट अशोक ने अपना अंतिम समय (232 ईसा पूर्व) पाटलिपुत्र पटना में बिताया था. सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद भारत व विश्व में अलग-अलग स्थानों पर शिलालेखों का निर्माण करवाया, अशोक द्वारा 269 से 232 ईसा पूर्व तक के अपने शासनकाल में चट्टानों और पत्थर के स्तंभों पर कई नैतिक, धार्मिक और राजकीय शिक्षा देते हुए लेख खुदवाए गए थे, जिन्हें के शिलालेख कहते है, आधुनिक भारत के अलावा अशोक ने पाकिस्तान, नेपाल अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भी शिलालेख(अभिलेख) गड़वाए थे. सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में युद्ध नही हारा, कलिंग युद्ध के भीषण नरसंहार और खून खराबा देख उनका हृदय परिवर्तनहुआ तभी से सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और मानवता के प्रति दया करुणा भाव रखने के संदेश दिया, बौद्ध धर्म प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र, अपनी पुत्री संघमित्रा और अपने दूत को श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान भेजा था ।  चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अशोकाष्ठमी को मनाया जाता है। अशोकाष्टमी के दिन मौर्य सम्राट अशोक की जयंती है। 
 अशोक के वृक्ष और शंकर भगवान की पूजा होती है। भोले नाथ को अशोक का वृक्ष प्रिय लगता है यही वजह है कि इस दिन अशोक के वृक्ष की पूजा के साथ साथ शिव भगवान की पूजा और व्रत किया जाता है । पुराणों एवं सनातन धर्म के स्मृतियों में वासंती नवरात्र  चैत्र शुक्ल अष्टमी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अशोकाष्टमी माता  पार्वती और भगवान शिव एवं माता गौरी को समर्पित है। अशोकाष्ठमी  पूर्वी क्षेत्रों में और उड़ीसा में भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर तथा  दक्षिणी क्षेत्रों में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।  अशोक अष्टमी में त्रेतायुग में भगवान राम ने रावण पर हमला करने से पहले अनुष्ठान करने के बाद  विजयी हुए। शक्ति की गौरी अष्टमी या अशोकाष्टमी दिव्य देवी की पूजा के लिए समर्पित है । अशोकाष्टमी महोत्सव भगवान लिंगराज के आसपास केंद्रित है ।  भगवान लिंगराज के प्रतिनिधि देवता चंद्रशेखर को सजे हुए रथ यात्रा  रामेश्वर मंदिर ले जाया जाता है। कैलाशहर के उनाकोटी तीर्थ में अशोकाष्टमी महोत्सव का आयोजन त्रिपुरा निवासी पत्थरों पर उकेरी गई देवताओं की छवियों की विशेष पूजा भी करते हैं। अशोकाष्टमी पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में मनाया जाता है।  भगवान शिव को समर्पित  और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक अशोकाष्ठमी  को "आनंद का त्योहार" या "फूलों का त्योहार" है। पद्मपुराण के अनुसार भगवान शिव और माता  पार्वती की पुत्री एवं विघ्नहर्ता गणेश जी देव सेनापति  की बहन अशोकसुन्दरी  को  दक्षिण भारत में बाला त्रिपुरसुंदरी के रूप में पूजा जाता है । अशोक सुंदरी को लावण्या, अनवी, बाला त्रिपुर सुंदरी, विरजा कहा गया है । अशोक सुंदरी का पति नहुष एवं पुत्र ययाति और 100 पुत्रियां थी । माता पार्वती ने अपने अकेलेपन को कम करने के लिए  मनोकामना पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष से अशोकसुंदरी की उत्पत्ति की थी । माता  पार्वती ने  भगवान  शिव से विश्व  के सबसे खूबसूरत बगीचे में ले जाने का अनुरोध किया। उसकी इच्छा के अनुसार, शिव उसे नंदनवन ले गए, जहाँ पार्वती ने कल्पवृक्ष के नाम से जाना जाने वाला एक पेड़ देखा जो किसी भी इच्छा को पूरा कर सकता था। माता  पार्वती के पुत्र कार्तिकेय बड़े हो गए थे । उन्होंने कैलाश छोड़ दिया था, एक माँ के रूप में इसने उन्हें बहुत दुःख और अकेलापन दिया। उसने अपना अकेलापन दूर करने के लिए मनोकामना पूर्ण वृक्ष से पुत्री मांगी। उसकी इच्छा पूरी हुई और अशोकसुंदरी का जन्म हुआ। पार्वती ने भविष्यवाणी की कि अशोकसुंदरी चंद्र वंश के नहुष से शादी करेगी । अशोकसुंदरी अपनी नौकरानियों के साथ नंदनवन में घूम रही थी । राक्षस राज  हुंडा  ने उसे देखा और उससे प्यार हो गया। हालाँकि, देवी ने दानव की सलाह को अस्वीकार कर दिया और उसे नहुष से विवाह करने के अपने भाग्य के बारे में सूचित किया। हुंडा ने खुद को एक विधवा के रूप में प्रच्छन्न किया, जिसका पति उसके द्वारा मारा गया था, और अशोकसुंदरी को उसके साथ उसके आश्रम में जाने के लिए कहा। देवी भेष बदल कर राक्षस के साथ चलीं और उसके महल में पहुंचीं। उसने अपने विश्वासघात का पता लगाया और उसे नहुष द्वारा मारे जाने का श्राप दिया और अपने माता-पिता के निवास, कैलाश पर्वत पर भाग गई । हुंडा अपने महल से शिशु नहुष का अपहरण कर लेता है । राक्षस राज  हुंडा की   दासी द्वारा नहुष को बचाने के लिए  ऋषि वशिष्ठ की देखरेख में दिया जाता है। ऋषि वशिष्ठ आश्रम में , नहुष बड़ा होता है और हुण्ड को मारने के अपने भाग्य के बारे में समझता है। हुंडा अशोकसुंदरी का अपहरण कर लेता है और उसे बताता है कि उसने नहुष को मार डाला था। देवी को एक किन्नर दंपत्ति ने सांत्वना दी, जिन्होंने उन्हें नहुष की भलाई के बारे में बताया और भविष्यवाणी की कि वह ययाति नामक एक शक्तिशाली पुत्र और सौ सुंदर बेटियों की माँ बनेगी। नहुष ने हुंड से युद्ध किया और एक भयंकर युद्ध के बाद उसे हरा दिया और अशोकसुंदरी को छुड़ाया, जिससे उसने विवाह किया।  इंद्र की अनुपस्थिति में नहुष को अस्थायी रूप से स्वर्ग का शासक बना दिया गया है।




सोमवार, मार्च 20, 2023

ज्ञान और मोक्ष की भूमि है बिहार...


सनातन धर्म ,बौद्ध व जैन धर्म ग्रंथों , वेदों , स्मृति , उपनिषदों , वाल्मीकीय रामायण , पुराणों ,में बिहार के विभिन्न क्षेत्रों के संबंध में उल्लेख किया गया है । भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में  बिहार राज्य की स्थापना 22 मार्च 1912  में हुई तथा गंगा नदी के तट पर अवस्थित पटना में  बिहार की राजधानी  है। बिहार के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में झारखण्ड, पूर्व में पश्चिम बंगाल, और पश्चिम में उत्तर प्रदेश स्थित है। निर्देशांक 25°24′N 85°06′E / 25.4°N 85.1°E पर स्थित बिहार को प्रान्त के दर्जा एवं 26 जनवरी 1950 को राज्य का दर्जा मिला है । क्षेत्रफल 94163 वर्गकीमि व 36357 वर्गमील में फैले बिहार  की 2011 जनगणना के अनुसार 104099457  आवादी में 9 प्रमंडल , 38 जिले , विधानसभा के सदस्य 243 , विधान परिषद सदस्य 75 , लोक सभा सदस्य 40 और राज्यसभा सदस्य 16 सदस्य है । प्राचीन काल में विशाल साम्राज्यों, शिक्षा केन्द्रों एवं संस्कृति का गढ़ होने के कारण प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से 'बिहार' है।  कीकट ने कीकट प्रदेश , मागध ने मगध , मुगल शासकों ने सूबे के विहार , बौद्धों ने विहार और ब्रिटिश सरकार ने बिहार नामकरण किया था । बिहार को मगध साम्राज्य , मुगलों द्वारा बिहार सूबा , ब्रिटिश काल में बिहार को प्रोविंस और स्वतंत्रता के बाद बिहार को राज्य अर्थात बिहार राज्य कहा गया है ।
गध, मिथिला ,  अंग और वज्जि  सनातन , बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों एवं महाकाव्यों में बिहार का  उल्लेख मिलता हैं। बिहार की भाषाओं में मगही , भोजपुरी , मैथिली , अंगिका और वज्जिका भाषा और हिंदी भाषी प्रमुख है । सारण जिले में गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर 4500 से 3345 ई.पू. का चिरांद, नवपाषाण युग और 2345 से 1726 ई.पू . के ताम्र युग का पुरातात्विक धरोहर है।मिथिला को प्रथम  बार इंडो-आर्यन लोगों ने विदेह साम्राज्य की स्थापना ब एवं 1600 ई.पू में वैदिक काल के दौरान, विदेह् दक्षिण एशिया के प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्रों कुरु और पंचाल् के साथ था । विदेह साम्राज्य के राजा जनक थे। मिथिला के राजा सिरध्वज जनक की पुत्री माता  सीता भगवान राम की पत्नी है। विदेह राज्य के वैशाली  गणतंत्र  शासन था । वज्जि को 6 ठी शताब्दी ई. पू . से गणराज्य के रूप में स्थापित किया गया था,।  563 ई.पू. का पहला गणतंत्र राज्य वैशाली था। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली में हुआ था।आधुनिक-पश्चिमी पश्चिमी बिहार के क्षेत्र में मगध १००० वर्षों के लिए भारत में शक्ति, शिक्षा और संस्कृति का केंद्र बने। ऋग्वेदिक् काल मे मगध साम्राज्य  बृहद्रथ वंश का शासन था। 684 ई.पू.  में  हरयंक वंश, राजगृह  के शहर से मगध पर शासन किया। हर्यक  वंश के  राजा बिंबिसार ,  अजातशत्रु और उदयन थे । उदयन ने  पाटलिपुत्र शहर की स्थापना कर  मगध की राजधानी बनाई थी ।  हर्यक  वंश के बाद शिशुनाग वंश का शासन  था।  नंद वंश ने बंगाल से पंजाब तक फैले विशाल साम्राज्य पर शासन किया।मगध साम्राज्य का शासक नंद वंश का घनानंद को मौर्य साम्राज्य द्वारा नंद वंश को समाप्त कर मगध साम्राज्य का शासक  था। मौर्य साम्राज्य और बौद्ध धर्म का क्षेत्र होने से  बिहार बना  है। 325 ई.पू.  में मगध से उत्पन्न मौर्य साम्राज्य, चंद्रगुप्त मौर्य ने स्थापित किया था । मौर्य सम्राजय का  पश्चिम मे ईरान से लेकर पूर्व मे बर्मा तक और उत्तर मे मध्य-एशिया से लेकर दक्षिण मे श्रीलंका तक फैला था। मगध सम्राजय के पूर्व  राजा चन्द्रगुप्त मौर्य ने कै ग्रीक् को  हराकर अफ़ग़ानिस्तां के हिस्से को जीता और ग्रीस से पश्चिम-एशिया के यूनानी राजा सेलेक्यूज़ निकेटर को हराकर पर्शिया का बड़ा हिस्सा जीत लिया  और संधि मे यूनानी सेल्क्युस निकेटर की पुत्री राजकुमारी हेलेन से विवाह किया था । मगध साम्राज्य का प्रधानमंत्री आचार्य  चाणक्य ने अर्थशास्त्र के  रचनाकार एवं  चंद्रगुप्त का गुरु और मार्गदर्शक थे। मगध साम्राज्य का सम्राट चंद्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार ने सम्राजय  दक्षिण तक स्थापित किया था ।  मगध साम्राज्य का सम्राट अशोक को देवानामप्रिय प्रियादर्शी राजा महान सम्राट अशोक था। मगध सम्राट अशोक ने  उपदेश स्तंभ, पहाद्, शीलालेख लिखाया तथा  लेख् ब्राह्मी, ग्रीक, मे मगध  सम्राज्य मे अंकित् किया था । मगध  सम्राज्य का मौर्य वंशीय का अंतिम राजा वृहद्रथ  को मगध साम्राज्य का   सेनापति पुष्यमित्र शूंग ने मौर्य वंशीय शासक वृहद्रथ को  मारकर वे मगध साम्राज्य पर  शासन स्थापित किया। सन् 240  ई.  में मगध में उत्पन्न गुप्त साम्राज्य को विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, वाणिज्य, धर्म और भारतीय दर्शन में भारत का स्वर्णिम युग कहा गया। गुप्त  वंश के समुद्रगुप्त ने मगध  सम्राजय को  दक्षिण एशिया मे स्थापित किया। समुद्रगुप्त के पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपना क्षेत्र का विकास किया था । गुप्त राजाओं मे स्कंदगुप्त ने पश्चिम मे पर्शिया ,  बग़दाद से पूर्व मे बर्मा तक और उत्तर मे मध्य एशिया से लेकर दक्षिण मे कांचीपुरम तक फैला था।  मगध की राजधानी पाटलिपुत्र था। मगध  साम्राज्य का प्रभाव रोम, ग्रीस, अरब और दक्षिण-पूर्व एशिया तक था ।
  मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के आक्रमण द्वारा 12वीं शताब्दी में  बिहार के नालंदा और विक्रमशिला के विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया गया था । सासाराम के शेर शाह सूरी ने 1540 ई. में हुमायूं की मुगल सेना को हराकर मुगलों से उत्तरी भारत गया था । शेर शाह ने अपनी राजधानी दिल्ली की घोषणा की थी । बिहार के बाबू कुंवर सिंह ने 1857 का सिपाही विद्रोह में  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बंगाल का 1909 ई. में बंगाल विभाजन के फलस्वरूप बिहार राज्य  का अस्तित्व में आया।   बिहार से उड़ीसा राज्य 01 अप्रैल 1936 ई.में  अलग कर दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार में चंपारण के विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ बग़ावत फैलाने में अग्रण्य घटनऐं  है। स्वतंत्रता के बाद बिहार का  विभाजन 15  नवंबर 2000 ई. में झारखंड राज्य को  अलग कर दिया गया था ।  24 ° 20 '10 " ~ 27 ° 31 '15 " उत्तरी अक्षांश तथा 83 °19' 50 " ~ 88 ° 17 ' 40 " पूर्वी देशांतर के बीच  हिंदी भाषी राज्य बिहार  का क्षेत्रफल 94163  वर्ग किलोमीटर में 92 25751 वर्ग किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्र भूमि  नदियों के मैदान एवं कृषियोग्य समतल भूभाग है। गंगा के पूर्वी मैदान में स्थित बिहार  राज्य की औसत ऊँचाई 173  फीट है। भौगोलिक तौर पर बिहार का प्राकृतिक विभागो में  उत्तर का पर्वतीय एवं तराई भाग, मध्य का विशाल मैदान तथा दक्षिण का पहाड़ी किनारा एवं  उत्तर का पर्वतीय प्रदेश सोमेश्वर श्रेणी का हिस्सा है। सोमेश्वर श्रेणी की औसत उचाई 455   मीटर और  सर्वोच्च शिखर 874   मीटर उँचा है।  प्रदेश का  वाल्मिकीनगर में स्थित अभ्यारण्य है। मध्यवर्ती विशाल मैदान बिहार के  95 % भाग को समेटे हुए हैं।
नदियां में उत्तरी बिहार की बागमती, कोशी, बूढी गंडक, गंडक, घाघरा और दक्षिण बिहार में सोन, पुनपुन, फल्गू , बटाने , आद्री , नीलांजन ,  मोरहर तथा किऊल नदी बिहार में दक्षिण से गंगा में मिलनेवाली सहायक नदियाँ है।
धान, गेंहूँ, दलहन, मक्का, तिलहन, तम्बाकू,सब्जी तथा केला, आम और लीची , मखाना  फलों की खेती की जाती है। हाजीपुर का केला एवं मुजफ्फरपुर की लीची , गया का तिलकुट , मनेर का लड्डू , सिलाव का खाजा  , लिट्टी चोखा , चूड़ा दही , मालपुआ ,प्रसिद्ध है । हिंदी बिहार की राजभाषा और संस्कृत , अंग्रेजी , उर्दू भाषा है। मैथिली भारतीय संविधान के अष्टम अनुसूची में सम्मिलित  बिहारी भाषा है। भोजपुरी, मगही, अंगिका तथा बज्जिका बिहार में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं और बोलियाँ हैं।  पर्वों में छठ, होली, दीपावली, दशहरा, महाशिवरात्रि, नागपंचमी, वसंतपंचमी , बुद्ध पूर्णिमा , दीपावली , मुहर्रम, ईद,तथा क्रिसमस , सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म स्थान होने के कारण पटना सिटी (पटना) में उनकी जयन्ती , जन्माष्टमी , रामनवमी , जानकी नवमी , कर्मा , जिउतिया , पितृपक्ष ,श्रद्धार्पण है। चावल-दाल-सब्जी और रोटी बिहार का सामान्य भोजन है। बिहार की मालपुआ काफी स्वादिष्ट होता है। बिहार की बाकी व्यंजनों में दालपूरी, खाजा, मखाना खीर, पुरूकिया (गुजिया), पीठा ,  ठेकुआ, भेलपुरी, खजुरी, बैगन का भरता आदि है। बिहार में  क्रिकेट ,  फुटबॉल, हाकी, टेनिस, खो-खो और गोल्फ , कबड्डी  है। 
बिहार राज्य में  9 प्रमंडल तथा 38 जिला , 101 अनुमंडल, 534 प्रखंड  व अंचल ,  8,471 पंचायत, 45,103 गाँव ,  नगर निगमों की संख्या 19, नगर परिषदों की संख्या 49 और नगर पंचायतों की संख्या 80 है । पटना, तिरहुत, सारण, दरभंगा, कोशी, पूर्णिया, भागलपुर, मुंगेर तथा मगध प्रमंडल के तहत  बिहार के जिले में अररिया , अरवल , औरंगाबाद कटिहार , किशनगंज , खगड़िया , गया , गोपालगंज , छपरा , जमुई , जहानाबाद  ,दरभंगा , नवादा , नालंदा , पटना , पश्चिम चंपारण , पूर्णिया , पूर्वी चंपारण , बक्सर , बाँका , बेगूसराय , भभुआ  , भोजपुर , भागलपुर , मधेपुरा , मुंगेर , मुजफ्फरपुर , मधुबनी , रोहतास , लखीसराय , वैशाली , सहरसा , समस्तीपुर , सीतामढी , सीवान , सुपौल , शिवहर,  शेखपुरा है। 
बिहार के कटिहार जिले के अंतर्गत कुर्सेला प्रखंड के कटरिया गांव के समीप गंगा , कोशी और कलबलिया नदी का  त्रिमोहिनी संगम पर 12 फरवरी वर्ष 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश विसर्जित किया गया था । पटना  के पटना के प्राचीन  कुम्रहार परिसर, अगमकुआँ, महेन्द्रूघाट, शेरशाह के द्वारा बनवाए गए किले का अवशेष , ब्रिटिश कालीन भवन: जालान म्यूजियम, गोलघर, पटना संग्रहालय, विधान सभा भवन, हाईकोर्ट भवन, सदाकत आश्रम ,  महावीर मंदिर,बड़ी पटनदेवी,छोटी पटनदेवी,शीतला माता मंदिर,इस्कॉन मंदिर,हरमंदिर , गया जिले के बोधगया में महाबोधि मंदिर , गया में स्थित विष्णुपद , मंगलागौरी , बँगला माता , बागेश्वरी , पितमहेश्वर , प्रातःकाल बागवान सूर्य , मध्यकालीन भगवान सूर्य ,सांध्यकालीन भगवान सूर्य  , ब्रह्मयोनि पर्वत समूह , जहानाबाद जिले का बराबर पर्वत समूह , राजगीर पर्वत समूह  , कौवाडोल पर गुफा संस्कृति , गुहा लेखन , भित्तिचित्र , मूर्तिकला एवं वास्तुकला  , सीतामढ़ी का माता सीता की जन्मस्थली, मधुबनी का कवि विद्यापति सह उगना महादेव मंदिर , सुपौल में  द•भारत स्थापत्यकला विष्णु मंदिर , मधेपुरा में सिहेश्वरनाथ मंदिर , अररिया में सबसे ऊँची काली मंदिर , पूर्णियां में  नृसिंह अवतार स्थल ,  सूर्य मंदिर,नवलख्खा मंदिर,थावे(गोपालगंज) में माँ दुर्गा माता मंदिर,नेचुआ जलालपुर रामबृक्ष धाम, दुर्गा मंदिर, अमनौर वैष्णो धाम ,आमी अम्बिका दुर्गा मंदिर,माँ दुर्गा की मंदिर छपरा, सीता जी का जन्म स्थान, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, बेगू ह्ज्जाम की मस्जिद, पत्थर की मस्जिद, जामा मस्जिद, फुलवारीशरीफ में बड़ी खानकाह, मनेरशरीफ - सूफी संत हज़रत याहया खाँ मनेरी की दरगाह, जहानाबाद जिले के काको में भारत की प्रथम महिला सूफी संत हजरत बीबी कमाल का मजार , सूर्य मंदिर , मखदुमपुर प्रखंड  के बराबर पर्वत समूह पर सतघरवा गुफा , भित्तिचित्र , गुहलेखन , मूर्तिकला , वास्तुकला , बाबा सिद्धेश्वरनाथ मंदिर , घेजन में भगवान बुद्ध की मूर्ति , दबथु में प्राचीनमूर्तियाँ , जहानाबाद ठाकुरवाड़ी में पंचलिंगी शिव , मुजफ्फरपुर में गरीबनाथ मंदिर ,  अरवल जिले का करपी जगदम्बा स्थान में माता जगदम्बा , भगवान चतुर्भुज , भगवान शिव माता पार्वती विहार , मदसर्वा में चयवनेश्वर शिव मंदिर ,  है । सारण जिले का  सोनपुर मेला , सारण जिला का नवपाषाण कालीन चिरांद गाँव ,  कोनहारा घाट, नेपाली मंदिर, रामचौरा मंदिर, १५वीं सदी में बनी मस्जिद, दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल, महात्मा गाँधी सेतु, गुप्त एवं पालकालीन धरोहरों वाला चेचर गाँव वैशाली का छठी सदी ई.पू.में वज्जिसंघ द्वारा स्थापित विश्व का प्रथम गणराज्य के अवशेष, अशोक स्तंभ, बसोकुंड में भगवान महावीर की जन्म स्थली, अभिषेक पुष्करणी, विश्व शांतिस्तूप, राजा विशाल का गढ, चौमुखी महादेव मंदिर, भगवान महावीर के जन्मदिन पर वैशाख महीने में आयोजित होनेवाला वैशाली महोत्सव नालंदा जिले का राजगीर  में राजगृह मगध साम्राज्य की पहली राजधानी तथा हिंदू, जैन एवं बौध धर्म का एक प्रमुख दार्शनिक , पावापुरी में जैन धर्म के 24 वन तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी जी का मोक्षमन्दिर स्थल है । वेणुवन, सप्तपर्णी गुफा, गृद्धकूट पर्वत, जरासंध का अखाड़ा, गर्म पानी के कुंड, मख़दूम कुंड आदि राजगीर के महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष, पावापुरी में भगवान महावीर का परिनिर्वाण स्थल एवं जलमंदिर, बिहारशरीफ में मध्यकालीन किले का अवशेष एवं १४वीं सदी के सूफी संत की दरगाह (बड़ी दरगाह एवं छोटी दरगाह), नवादा के  ककोलत जलप्रपात , आती में पातालेश्वर मंदिर , रूपौ में चंडी मंदिर , मछेन्द्र नाथ , अपसढ़ का वराह अवतार मूर्ति , दरियापुर पार्वती , गया का विष्णुपद मंदिर , मंगलागौरी , ब्रह्मयोनि पर्वत समूह में प्राचीन विरासत , , रामशिला , प्रेतशिला , रामशिला , बँगला माता , बागेश्वरी माता , बेल का विभूक्षणि मंदिर , बेलागंज का कौवाडोल पर्वत पर पशासन धर्मचक्र , वैदिक धर्म , बौद्ध धसर्म , भित्तिचित्र , हिंदू धर्म ,  बौद्ध धर्म , जैन धर्म का दार्शनिक स्थल है। पितृपक्ष के अवसर पर गया  में विश्व के सनातन धर्म के लोग फल्गू नदी किनारे पितरों को तर्पण करते हैं। विष्णुपद मंदिर, बोधगया में भगवान बुद्ध से जुड़ा पीपल का वृक्ष तथा महाबोधि मंदिर के अलावे तिब्बती मंदिर, थाई मंदिर, जापानी मंदिर, बर्मा का मंदिर, बौधनी पहाड़ी { इमामगंज } , त्रेतायुग में राक्षसी तड़का , मारीच , सुबाहु का स्थल एवं सहस्त्रबाहु , महर्षि विश्वामित्र का कर्म स्थल बक्सर , पाल शासकों द्वारा बनवाये गये प्राचीन विश्व विख्यात विक्रमशिला विश्वविद्यालय का अवशेष, वैद्यनाथधाम मंदिर, सुलतानगंज, मुंगेर में बनवाया मीरकासिम का किला और मंदार पर्वत बौंसी बाँका एक प्रमुख धार्मिक स्थल जो तीन धर्मो का संगम स्थल है। विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र मंथन  संपन्न हुआ था ।  मंदार  पर्वत व मंद्राचल पर्वत मथनी के रूप में प्रयुक्त हुआ था।
चंपारण में सम्राट अशोक द्वारा लौरिया में स्थापित स्तंभ, लौरिया का नंदन गढ़, नरकटियागंज का चानकीगढ़, वाल्मीकिनगर जंगल, बापू द्वारा स्थापित भीतीहरवा आश्रम, तारकेश्वर नाथ तिवारी का बनवाया रामगढ़वा हाई स्कूल, स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी एवं अन्य सेनानियों की कर्मभूमि तथा अरेराज में भगवान शिव का मन्दिर, केसरिया में दुनिया का सबसे बड़ा बुद्ध स्तूप जो पूर्वी चंपारण में एक आदर्श पर्यटन स्थल है | .सीतामढी तथा पुनौरा में देवी सीता की जन्मस्थली, जानकी मंदिर एवं जानकी कुंड, हलेश्वर स्थान, पंथपाकड़, यहाँ से सटे नेपाल के जनकपुर जाकर भगवान राम का स्वयंवर स्थल है।सासाराम में अफगान शैली में बनाया गया अष्टकोणीय शेरशाह का मक़बरा वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। औरंगाबाद जिले का देव सूर्य मंदिर की तस्वीर अद्भुत शिल्प कला है । देव सूर्य मंदिर, देवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध,  बिहार के औरंगाबाद जिले में देव एवं उमगा पर्वत समूह  पर स्थित भगवान सूर्य को समर्पित है। देव सूर्य मंदिर पश्चिमाभिमुख और उमगा सूर्यमंदिर पूर्वाभिमुख शिल्पकला के लिए है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए सूर्य  मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित देव और उमगा सूर्य मंदिर   हैं। सनातन धर्म ग्रंथो एवं गजेटियर गया 1906 , 1957 के अनुसार कृष्ण के पुत्र, साम्ब द्वारा निर्मित बारह सूर्य मंदिरों में  माना जाता है। देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।  पुरुरवा ऐल, और शिवभक्त राक्षसद्वय माली-सुमाली से जुड़ी हुई है । यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत में  बिहार राज्य का नालंदा जिले के नालंदा विश्वविद्यालय एवं गया जिले का बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर शामिल है । बिहार का प्रहम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह थे । बिहार के मगध साम्राज्य में गयासुर , वसु , करूष , मागध , बुध , इल , एल ,अंग , कर्ण , मिथिला का राजा जनक , वृहद्रथ , जरासंध , विशाल राजा हुए ।ऋषियों में  च्यवन , भृगु , वाल्मीकि , करूष , शर्याति , यगवल्क्य , बाणभट्ट , मयूरभट्ट विदूषक में मिथिला में गोनू झा , मगध में देवन मिश्र , आध्यत्मिक संत राधाबाबा ,  1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अरवल जिले का जीवधसिंह थे । बिहार का प्राचीन नाम 12 वीं  शदी  में बौद्ध भिक्षुओं का विश्राम गृह का कारण मुगल शासकों द्वारा विहार , मगध था ।
 बिहार का वाद्ययंत्र नरसिंघ , लोक गीत में छठ  गीत , कजरी  , बारह मास , लोरिकायन , बिरहा , पराती , विवाहगीत आदि है । महिलाओं का सशक्तिकरण के लिए जीविका , मद्यनिषेद प्रारम्भ है ।  मधुबनी पेंटिंग प्रसिद्ध है। बिहार के चतुर्दिक विकास एवं ऐतिहासिक महत्व का रूप हेतु बिहार का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 22 मार्च 2010 ई. से बिहार दिवस प्रारम्भ किया गया है । प्रति वर्ष 22 मार्च को बिहार के वासियों द्वारा बिहार दिवस मानते हुए गौरवान्वित होते है ।







बुधवार, मार्च 15, 2023

आध्यामिक चेतना के संत राधाबाबा....


क्रांति और भक्ति के साधक राधा बाबा के नाम से विख्यात श्री चक्रधर मिश्र का जन्म बिहार राज्य का अरवल जिले के अरवल प्रखंडान्तर्गत  फखरपुर में 1913 ई. की पौष शुक्ल नवमी को शाकद्वीपीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 1928 में गांधी जी के आह्वान पर गया के सरकारी विद्यालय में उन्होंने यूनियन जैक उतार कर तिरंगा फहरा दिया था। शासन विरोधी भाषण के आरोप में उन्हें छह माह के लिए कारावास में रहना पड़ा।गया में जेल अधीक्षक एक अंग्रेज था। सब उसे झुककर ‘सलाम साहब’ कहते थे; पर इन्होंने ऐसा नहीं किया। अतः इन्हें बुरी तरह पीटा गया। जेल से आकर ये क्रांतिकारी गतिविधियों में जुट गये। गया में राजा साहब की हवेली में इनका गुप्त ठिकाना था। एक बार पुलिस ने वहां से इन्हें कई साथियों के साथ पकड़ कर ‘गया षड्यन्त्र केस’ में कारागार में बंद कर दिया। जेल में बंदियों को रामायण और महाभारत की कथा सुनाकर वे सबमें देशभक्ति का भाव भरने लगे।  इन्हें तनहाई में डालकर अमानवीय यातनाएं दी गयीं; पर ये झुके नहीं। जेल से छूटकर इन्होंने कथाओं के माध्यम से धन संग्रह कर स्वाधीनता सेनानियों के परिवारों की सहायता की। जेल में कई बार हुई दिव्य अनुभूतियों से प्रेरित होकर उन्होंने 1936 में शरद पूर्णिमा पर संन्यास ले लिया। कोलकाता में उनकी भेंट स्वामी रामसुखदास जी एवं सेठ जयदयाल गोयन्दका जी से हुई। उनके आग्रह पर वे गीता वाटिका, गोरखपुर में रहकर गीता पर टीका लिखने लगे। गोरखपुर ( उतरप्रदेश ) के  गीता प्रेस से प्रकाशित कल्याण के संपादक भाई जी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी से हुई भेंट से उनके मन की अनेक शंकाओं का समाधान हुआ। इसके बाद  वे भाई जी के परम भक्त बन गये। गीता पर टीका पूर्ण होने के बाद वे वृन्दावन जाना चाहते थे; पर सेठ गोयन्दका जी एवं भाई जी की इच्छा थी कि राधा बाबा के  साथ हिन्दू धर्मग्रन्थों के प्रचार-प्रसार में योगदान दें। भाई जी के प्रति अनन्य श्रद्धा होने के कारण उन्होंने यह बात मान ली। 1939 में उन्होेंने शेष जीवन भाई जी के सान्निध्य में बिताने तथा आजीवन उनके चितास्थान के समीप रहने का संकल्प लिया।बाबा का श्रीराधा माधव के प्रति अत्यधिक अनुराग था। समाधि अवस्था में वे नित्य श्रीकृष्ण के साथ लीला विहार करते थे। हर समय श्री राधा जी के नामाश्रय में रहने से उनका नाम ‘राधा बाबा’ पड़ गया। 1951 की अक्षय तृतीया को भगवती त्रिपुर सुंदरी ने उन्हें दर्शन देकर निज मंत्र प्रदान किया। 1956 की शरद पूर्णिमा पर उन्होंने काष्ठ मौन का कठोर व्रत लिया।बाबा का ध्यान अध्यात्म साधना के साथ ही समाज सेवा की ओर भी था। उनकी प्रेरणा से निर्मित हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर अस्पताल से हर दिन सैंकड़ों रोगी लाभ उठा रहे हैं। 26 अगस्त, 1976 को भाई जी के स्मारक का निर्माण कार्य पूरा हुआ। गीता वाटिका में श्री राधाकृष्ण साधना मंदिर भक्तों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। इसके अतिरिक्त भक्ति साहित्य का प्रचुर मात्रा में निर्माण, अनाथों को आश्रय, अभावग्रस्तों की सहायता, साधकों का मार्गदर्शन, गोसंरक्षण आदि अनेक सेवा कार्य बाबा की प्रेरणा से 1971 में भाई जी के देहांत के बाद बाबा उनकी चितास्थली के पास एक वृक्ष के नीचे रहने लगे। 13 अक्तूबर, 1992 को गीता वाटिका गोरखपुर में राधा बाबा की  आत्मा सदा के लिए श्री राधा जी के चरणों में लीन हो गयी। यहां बाबा का एक सुंदर श्रीविग्रह विराजित है, जिसकी प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा होती है।
 श्रीचक्रधर मिश्र विद्यार्थी जीवन में सभी उनकी प्रतिभा के कायल थे। नेतृत्व की अद्भुत क्षमता रखने वाले चक्रधर ने आठवीं कक्षा के बाद भारत को अंग्रेजी-पाश से मुक्त कराने के लिए राजनैतिक कार्यक्रमों में भाग लेना आरंभ कर दिया। हालांकि इस क्रम में उन्हें दो बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी।जेल से बाहर आने के बाद स्वाध्याय करते-करते उनका झुकाव वेदांत की ओर होने लगा और वह शांकर मतानुयायी हो गए। जब वह इंटर कक्षा के विद्यार्थी थे, तभी शारदीय पूर्णिमा के दिन संन्यास ले लिया। अपनी ब्राšाी स्थिति की परीक्षा लेने के लिए वह कलकत्ते में गंगा के किनारे कुष्ठ रोगियों के बीच बैठने लगे।एक बार कलकत्ते में उनकी मुलाकात श्रीरामसुखदासजी महाराज से हुई और उनके माध्यम से वह सेठ श्री जयदयाल जी से मिले। उनकी निष्ठा एकमात्र निराकार में थी। जयदयाल जी  गयंदका के परामर्श से बाबा गोरखपुर आकर गीताप्रेस और फिर गीतावाटिका गए। गोरखपुर की गीतावाटिका में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के साथ स्वामीजी रहा करते थे। स्वामी जी आगे चलकर श्री राधा बाबा के नाम से विख्यात हुए। कहते हैं कि बाबा को अद्वैत तत्व की साधना करते हुए सिद्धि मिली। श्रीराधा बाबा के नयनों में, प्राणों में, रोम-रोम में श्री राधारानी बसी हुई थीं। उनका मन नित्य वृन्दावनी-लीला में रमा रहता था। श्रीराधामाधव की प्रीति के साकार स्वरूप बाबा सदा नि:स्पृह भाव से जनसेवा में लीन रहते थे। गीतावाटिका में विख्यात श्रीराधाष्टमी महोत्सव का शुभारंभ राधाबाबा ने ही किया। उन्होंने श्रीकृष्णलीला चिंतन,जय-जय प्रियतम,प्रेम सत्संग सुधा माला आदि शीर्षकों से साहित्य का प्रणयन भी किया। बाबा अपनी साधनावस्था में प्रतिदिन तीन लाख नाम जप किया करते थे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे-इसकी 64 माला जप करने से एक लाख नाम जप होता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक बार श्रीमद्भागवतमहापुराण का अखंड पाठ किया। राधा बाबा 13 अक्टूबर, 1992 को सदा के लिए अंतर्हित हो गए। बाबा का सुंदर एवं प्रेरक श्रीविग्रह गीतावाटिका के नेह-निकुंज में प्रतिष्ठित है ।
 श्रीचक्रधर मिश्र  विद्यार्थी जीवन में सभी उनकी प्रतिभा के कायल थे। नेतृत्व की अद्भुत क्षमता रखने वाले चक्रधर ने आठवीं कक्षा के बाद भारत को अंग्रेजी-पाश से मुक्त कराने के लिए राजनैतिक कार्यक्रमों में भाग लेना आरंभ कर दिया। हालांकि इस क्रम में उन्हें दो बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी।जेल से बाहर आने के बाद स्वाध्याय करते-करते उनका झुकाव वेदांत की ओर होने लगा और वह शांकर मतानुयायी हो गए। जब वह इंटर कक्षा के विद्यार्थी थे, तभी शारदीय पूर्णिमा के दिन संन्यास ले लिया। अपनी ब्राšाी स्थिति की परीक्षा लेने के लिए वह कलकत्ते में गंगा के किनारे कुष्ठ रोगियों के बीच बैठने लगे। एक बार कलकत्ते में उनकी मुलाकात श्रीरामसुखदासजी महाराज से हुई और उनके माध्यम से वह सेठ श्री जयदयाल जी से मिले। उनकी निष्ठा एकमात्र निराकार में थी। जयदयाल जी के परामर्श से बाबा गोरखपुर आकर गीताप्रेस और फिर गीतावाटिका गए। गोरखपुर की गीतावाटिका में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के साथ स्वामीजी रहा करते थे। स्वामी जी आगे चलकर श्री राधा बाबा के नाम से विख्यात हुए। राधा  बाबा को अद्वैत तत्व की साधना से सिद्धि  प्राप्त हुई थी । बाबा के नयनों में, प्राणों में, रोम-रोम में श्री राधारानी बसी तथा मन नित्य वृन्दावनी-लीला में रमा रहता था। श्रीराधामाधव की प्रीति के साकार स्वरूप बाबा सदा नि:स्पृह भाव से जनसेवा में लीन रहते थे। गीतावाटिका में विख्यात श्रीराधाष्टमी महोत्सव का शुभारंभ राधाबाबा द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
विश्व में आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर, धार्मिक प्रवृत्ति एवं परम्पराओं के संरक्षण एवं संवर्धन तथा प्रचार-प्रसार के लिए समय-समय पर महान संतों-विभूतियों का अविर्भाव होता रहा है। भारतीय विभूतियों की पावन श्रृंखला में गोरखपुर का  "कल्याण" के सम्पादक हनुमान प्रसाद पोद्दार  एवं नित्य जीवन सहचर "प्रीतिरसावतार" राधा बाबा थे ।राधा बाबा का  बचपन का नाम चक्रधर मिश्र था। उनके परिवार का पालन-पोषण पौरोहित्य कार्य से होता था। बालक चक्रधर की विशिष्ट योग्यता के बारे में अध्यापकों को प्रारंभ में ही ज्ञान हो गया था।  आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भारत माता को अंग्रेजी पाश से मुक्त कराने के लिए उन्होंने आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। इस कारण दो बार जेल-यात्रा करनी पड़ी। जेल का जेलर बड़ा क्रूर था। उन कठोर यातनाओं के मध्य उन्हें कई बार भगवत्कृपा की विशिष्टानुभूति हुई। इन दिव्य अनुभूतियों ने बालक चक्रधर के मन में प्रेरणा जगा दी कि जेल से बाहर आने के बाद भगवदीय जीवन व्यतीत करना है।जेल से बाहर आने के बाद उनके बड़े भाइयों ने उन्हें आगे के अध्ययन के लिए कलकत्ता बुला लिया। वहां स्कूली अध्ययन के साथ उनका स्वाध्याय भी होता रहता था। स्वाध्याय करते-करते उनके मन का झुकाव वेदान्त की ओर होने लगा और आप शांकरमतानुयायी हो गए। जब वे इण्टर कक्षा के विद्यार्थी थे, तब भगवदीय प्रेरणा से शारदीय पूर्णिमा के दिन उन्होंने संन्यास ले लिया। इससे उनके परिजनों को मर्मान्तक पीड़ा हुई, परन्तु सब जानते थे कि चक्रधर अपने निश्चय से डिगने वाला नहीं है।इण्टर की परीक्षा देकर वे एकान्त वास के लिए अज्ञात स्थान पर चले गए। वहां कठिन साधना की। फलस्वरूप उन्हें शीघ्र ही सिद्धि मिलने के पश्चात  कलकत्ता लौट आए थे । एक दिन जब वे कलकत्ता के गोविन्द भवन में पूज्य रामसुखदास जी महाराज से सम्पर्क हुआ था । रामसुख दास के माध्यम से सेठ जयदयाल गोयन्दका जी से मिलन हुआ। सेठजी साकार एवं निराकार-दोनों प्रकार की निष्ठाओं के विश्वासी तथा  बाबा की निष्ठा  निराकार में थी। कई दिनों तक पारस्परिक विचार-विनिमय हुआ परन्तु सेठजी चक्रधर बाबा की विचारधारा में परिवर्तन नहीं ला सके। फिर भी यह तय हुआ कि श्रीमद् भागवत् पर टीका-लेखन का कार्य गोरखपुर की गीताप्रेस से हो। अत: सेठजी के परामर्श के अनुसार चक्रधर बाबा गोरखपुर की गीता वाटिका गए। उस समय गीता वाटिका में एक वर्षीय अखण्ड भगवन्नाम-संकीर्तन का भव्यानुष्ठान चल रहा था। वहां बाबू जी (हनुमान प्रसाद पोद्दार)आए और उन्होंने गैरिक वस्त्रधारी युवक संन्यासी के चरण छूकर प्रणाम किया। इस प्रणाम का चमत्कार अनोखा था। सेठ जयदयाल जी के साथ कई दिवस विचार-विनिमय के उपरान्त भी जो परावर्तन नहीं हो पाया, वह कार्य इस क्षणिक स्पर्श ने कर दिखाया। निराकार निष्ठा तिरोहित हो गयी और साकारोपासना का बीजारोपण इस युवा संन्यासी चक्रधर बाबा के अन्तर में हो गया।राधा बाबा सन् 1939 तक सेठ जयदयाल जी के साथ रहे और टीका-लेखन का कार्य पूर्ण हो गया। प्रश्न था कि बाबा अब कहां रहें। बाबा की चाह थी कि संन्यास का व्रत लेकर श्री वृन्दावन धाम में वास किया जाए और सेठ जी चाहते थे कि बाबा उनके साथ रहें, जिससे चारों दिशाओं में श्रीमद् भागवत का प्रचार-प्रसार हो सके। इस बीच भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दी गई अन्त: प्रेरणा से 11 मई, 1939 को कलकत्ता में गंगा का जल हाथ में लेकर चक्रधर बाबा ने संकल्प लिया कि अब मैं भविष्य में बाबूजी अर्थात् श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के साथ रहूंगा। इस संकल्प का एक उप-संकल्प भी था कि जहां बाबूजी की चिता जलेगी, उसी स्थान के समीप अपना जीवन व्यतीत कर दूंगा। पूज्य बाबूजी (श्रद्धेय हनुमान प्रसाद पोद्दार) गीता वाटिका में रहा करते थे। चक्रधर बाबा भी बाबूजी के साथ रहने लगे थे। बाबा भगवद् भाव राज्य में प्रवेश करके अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के साथ नित्य लीला-विहार किया करते थे। बाबा के अन्तर में प्रेम का स्रोत निरन्तर प्रवाहित रहता था। पहले वे कट्टर वेदान्ती थे। अद्वैत तत्व की साधना करते समय उन्हें सिद्धि मिली थी। और अब ब्राहृस्वरूप होकर ब्राहृसायुज्य की स्थिति को भी उन्होंने प्राप्त कर लिया। बाबा के नयनों में, ह्मदय में, प्राणों में, रोम-रोम में श्रीराधारानी छायी हुई थीं। सन् 1951 की अक्षय तृतीया के दिन राधा बाबा को  भगवती श्रीत्रिपुरसुन्दरी जी ने दर्शन देकर निज मंत्र का दान दिया। सन् 1956 की शरद पूर्णिमा के दिन उन्होंने काष्ठ-मौन का कठोर व्रत लिया। श्रीराधा भाव मधुरोपासना और सन् 1957 के 8 अप्रैल को बाबा की श्रीराधा भाव में प्रतिष्ठा हुई। श्री राधाभाव में प्रतिष्ठा होने से और श्रीराधा नाम का आश्रय लेने से आप "राधा बाबा" के नाम से विख्यात हुए।राधा बाबा की प्रेरणा से 16 फरवरी, 1975 को हनुमान प्रसाद पोद्दार कैन्सर अस्पताल की स्थापना का संकल्प लिया गया, जहां आज भी अनेक रोगी चिकित्सा लाभ प्राप्त कर रहे हैं। आपके ही संकल्प से 26 अगस्त, 1976 को बाबू जी के स्मारक के निर्माण का कार्य पूर्ण हुआ। सबसे अधिक महत्वपूर्ण आपका कार्य है गीता वाटिका में श्रीराधाकृष्ण साधना मन्दिर, जो भक्तजनों के आकर्षण का केन्द्र है। इस मन्दिर के श्री विग्रहों में प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य राधा बाबा की देख-रेख में सन् 1985 में सम्पन्न हुआ। इसके अतिरिक्त "श्रीकृष्णलीला-चिन्तन", "जय-जय प्रियतम", "प्रेम-सत्संग-सुधा-माला", आदि-आदि नव साहित्य का प्रणयन, आत्र्तजनों को आश्रय, अभावग्रस्तों को आश्वासन, साधकों का मार्ग प्रदर्शन, गोमाता का संरक्षण आदि अनेक-अनेक ऐतिहासिक कार्य आपके द्वारा सम्पन्न होते रहे। श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ने अपनी जीवन लीला का संवरण सन् 1971 में किया। उनकी अन्तेष्टि गीता वाटिका में राधा बाबा की कुटिया के पास ही हुई। बाबा ने कुटिया के आवास को विसर्जित कर दिया और चितास्थली के समक्ष एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाया। इस स्थान पर बाबा अपने तिरोहण, सन् 1992 तक नित्य विराजित रहे। श्रीराधाभाव के मूर्तिमान स्वरूप राधा बाबा 13 अक्तूबर, 1992 को हम सभी से सदा के लिए विदा लेकर अन्तर्हित हो गए। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर स्थित गीता वाटिका परिसर में राधा बाबा का मंदिर ,  गिरिराज परिसर  और भाई जी हनुमानप्रसाद पोद्दार का समाधिस्थल आध्यत्मिक और शांति महास्थल है ।





बुधवार, मार्च 08, 2023

महिला सशक्तिकरण का द्योतक है महिला दिवस ....


 महिला अधिकार आंदोलन के केंद्र बिंदु और लैंगिक समानता , प्रजनन अधिकार और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार  मुद्दों पर ध्यान  का केंद्र विंदु अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है । जर्मन साम्राज्य द्वारा  8 मार्च, 1914 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के लिए जर्मन पोस्टर  पर प्रतिबंध लगा दिया गया था । सार्वभौमिक महिला का  मताधिकार आंदोलन द्वारा प्रेरित  न्यूजीलैंड में प्रारम्भ इंटरनेशनल वोमेन डे  तथा  20वीं सदी की शुरुआत में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में श्रमिक आंदोलनों से हुई थी।  न्यूयॉर्क शहर में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्वारा 28 फरवरी 1909 ई. को "महिला दिवस" ​​आयोजित था।  अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में जर्मन प्रतिनिधियों को 1910 ई. में  प्रस्तावित करने के लिए प्रेरित किया। यूरोप में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का पहला प्रदर्शन और स्मरणोत्सव के रूप में  इंटरनेशनल वोमेन डे 8 मार्च 1917 को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया था ।  1960 के दशक के उत्तरार्ध में वैश्विक नारीवादी आंदोलन द्वारा अपनाए जाने तक अवकाश  आंदोलनों और सरकारों से जुड़ा था। 1977 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1977 ई. में महिला दिवस अपनाए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस   मुख्यधारा का वैश्विक अवकाश बन गया है। संयुक्त राष्ट्र महिलाओं के अधिकारों में मुद्दे, अभियान या विषय के संबंध में छुट्टी मनाता है। विश्व में ?महिला दिवस राजनीतिक उत्पत्ति  दर्शाता है । सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका  द्वारा 28 फरवरी 1909 ई. को कार्यकर्ता थेरेसा मल्कील के सुझाव पर न्यूयॉर्क शहर में आयोजित किया गया था । 8 मार्च, 1857 को न्यूयॉर्क में महिला परिधान श्रमिकों द्वारा एक विरोध प्रदर्शन की याद में मनाया गया था । कोपेनहेगन, डेनमार्क मेंसोशलिस्ट सेकेंड इंटरनेशनल की आम बैठक से पूर्व अगस्त 1910 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन आयोजित किया गया था। अमेरिकी समाजवादियों से प्रेरित होकर, जर्मन प्रतिनिधियों क्लारा ज़ेटकिन , केट डनकर , पाउला थिएडे और वार्षिक "महिला दिवस" ​​​​की स्थापना का प्रस्ताव रखा था ।  17 देशों के  100 प्रतिनिधियों ने महिलाओं के मताधिकार सहित समान अधिकारों को बढ़ावा देने की रणनीति के विचार के साथ सहमति व्यक्त की थी । 19 मार्च, 1911 को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में दस लाख से अधिक लोगों ने पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। ऑस्ट्रिया-हंगरी में,  प्रदर्शन हुए, पेरिस कम्यून के शहीदों के सम्मान में बैनर लेकर विएना में रिंगस्ट्रैस पर परेड करने वाली महिलाओं के साथ  यूरोप में, महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई थी । भारतीय राष्ट्रीय महिला दिवस व इंडियन नेशनल वोमेन्स डे   13 फरवरी को सरोजिनी नायडू  की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हैदराबाद में जन्मी और कैब्रिज में शिक्षित महिलाओं की शक्तिशाली नेत्री    सरोजनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हुआ था।  ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया ’ या ‘भारत कोकिला ’ सरोजिनी नायडू को साहित्य में  योगदान  में जाना जाता है। साम्राज्यवाद-विरोधी, सार्वभौमिक मताधिकार, महिला अधिकार कार्यकर्ता श्रीमती नायडू ने भारत में महिला आंदोलनों का मार्ग प्रशस्त किया।। 1925 में सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष एवं 1947 में संयुक्त प्रांत में राज्यपाल और भारत के डोमिनियन में राज्यपाल का पद संभालने वाली पहली महिला थी । महिलाओं के अधिकारों, मताधिकार और संगठनों और विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व के लिए  1917 में महिला भारत संघ की स्थापना की थी । दिवस स्थापना महासभा के 2007 का  संकल्प संख्या 62 / 136 के अनुसार अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है ।  महिला गण के  1995 में आंदोलन के पश्चात  15 अक्टूबर 2008 को प्रथम बार  अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया गया था ।  न्यूयॉर्क में 8 मार्च 1908 को महिलाओं द्वारा मताधिकार के लिए रैली , सोसलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्वारा थेरेसा मल्किल के प्रस्ताव पर 28 फरवरी 1909 को राष्ट्रीय महिला दिवस  , वोलिटीकेन के अनुसार 1908 में शिकागो में प्रथम महिला दिवस ,संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च 1975 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की मनाए जाने की स्वीकृति दी थी । महिलाओं में  शैशवावस्था ,यौवन ,यौनप्रिपक्वता ,क्लीमेक्ट्रिक और पोस्ट क्लीमेंक्टेरिक  है । वेदों , स्मृति ग्रंथों में महिलाओं नारी की महत्वपूर्ण प्रधानता का उल्लेख मिलता है ।



गुरुवार, मार्च 02, 2023

प्रेम और सद्भावना का मिलन है होलिकोत्सव....


वेदों स्मृतियों और संहिताओं में होली का उल्लेख है । भक्ति, प्रेम ,  सच्चाई के प्रति आस्था और मनोरंजन का पर्व होली  विश्व  में  मनाया जाता है । होली में यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू मेक्सिको में रंग खेलते विद्यार्थी है । नेपाल में होली के अवसर पर काठमांडू में एक सप्ताह के लिए  दरबार और नारायणहिटी दरबार में बाँस का स्तम्भ गाड़ कर आधिकारिक रूप से होली के आगमन की सूचना दी जाती है। पाकिस्तान, बंगलादेश, श्री लंका और मरिशस , कैरिबियाई देशों में फगुआ  धूमधामसे  होली का त्यौहार मनाया जाता है। १९वीं सदी के आखिरी और २०वीं सदी के प्रारम्भ  में भारतीय  मजदूरी करने के लिए कैरिबियाई देश गए थे। इस दरम्यान गुआना और सुरिनाम तथा ट्रिनीडाड  देशों में भारतीय जा बसे। फगुआ गुआना और सूरीनाम ,  गुआना में होली के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है । लड़कियों और लड़कों को रंगीन पाउडर और पानी के साथ खेलते  है। गुआना ,  कैरिबियाई देशों में हिंदू संगठन और सांस्कृतिक संगठन नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के ज़रिए फगुआ मनाते हैं। ट्रिनीडाड एंड टोबैगो , विदेशी विश्वविद्यालयों में होली का आयोजन होता रहा है।  विलबर फ़ोर्ड के स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी कैंपस और  रिचमंड हिल्स में होली मनाया जाता  हैं। मुगल बादशाहों में अकबर, हुमायूँ, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुरशाह ज़फर होली के आगमन से बहुत पहले ही रंगोत्सव की तैयारियाँ प्रारंभ करवा देते थे। अकबर के महल में सोने चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और राजा अपनी बेगम और हरम की सुंदरियों के साथ होली खेलते थे। शाम को महल में उम्दा ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से मेहमानों का स्वागत किया जाता था और मुशायरे, कव्वालियों और नृत्य-गानों की महफ़िलें जमती थीं। जहाँगीर के समय में महफ़िल-ए-होली का भव्य कार्यक्रम आयोजित होता था। शाहजहाँ होली को 'ईद गुलाबी' के रूप में धूमधाम से मनाता था। बहादुरशाह ज़फर होली खेलने के बहुत शौकीन थे और होली को लेकर सरस काव्य रचनाएँ हैं। मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पिछवाड़े यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली के मेले लगते थे। मुगल शैली के एक चित्र में औरंगजेब के सेनापति शायस्ता खाँ को होली खेलते हुए दिखाया गया है। बरसाने' की लठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। नंद गाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और जम कर बरसती लाठियों के साए में होली खेली जाती है ।मथुरा से 54 किलोमीटर दूर कोसी शेरगढ़ मार्ग पर फालैन में एक पंडा मात्र एक अंगोछा शरीर पर धारण करके २०-२५ फुट घेरे वाली विशाल होली की धधकती आग में से निकल कर अथवा उसे फलांग कर दर्शकों में रोमांच पैदा करते हुए प्रह्लाद की याद करता है। मालवा में होली के दिन लोग एक दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। उनका विश्वास है कि इससे होलिका नामक राक्षसी का अंत हो जाता है। राजस्थान में होली के अवसर पर तमाशे की परंपरा है। मध्य प्रदेश के भील होली को भगौरिया कहते हैं। भील युवकों के लिए होली अपने लिए प्रेमिका को चुनकर भगा ले जाने का त्योहार है। होली से पूर्व हाट के अवसर पर हाथों में गुलाल लिए भील युवक 'मांदल' की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हैं। बिहार में 
होली खेलते समय सामान्य रूप से पुराने कपड़े पहने जाते हैं। होली खेलते समय लड़कों के झुंड में एक दूसरे का कुर्ता फाड़ देने की परंपरा है। होली का समापन रंग पंचमी के दिन मालवा और गोवा की शिमगो में वसंतोत्सव पूरा हो जाता है। तेरह अप्रैल को ही थाईलैंड में नव वर्ष 'सौंगक्रान' प्रारंभ में वृद्धजनों के हाथों इत्र मिश्रित जल डलवाकर आशीर्वाद लिया जाता है। लाओस में पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है। म्यांमर में  जल पर्व जाना जाता है। जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है। लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं। हंगरी का ईस्टर होली है। अफ्रीका में 'ओमेना वोंगा' मनाया जाता है। ओमेना वोंगा  अन्यायी राजा को लोगों ने ज़िंदा जला डाला था।  वोमेना वोंगा का पुतला जलाकर नाच गाने से अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। अफ्रीका  में सोलह मार्च को सूर्य का जन्म दिन मनाया जाता है।  पोलैंड में 'आर्सिना' पर लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं। यह रंग फूलों से निर्मित होने के कारण काफ़ी सुगंधित होता है। अमरीका में 'मेडफो'  पर्व मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होकर  गोबर तथा कीचड़ से बने गोलों से एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं। ३१ अक्टूबर को अमरीका में सूर्य पूजा होबो की  होली   मनाया जाता है। चेक और स्लोवाक क्षेत्र में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवा लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे पर पानी एवं इत्र डालते हैं। हालैंड का कार्निवल होली सी मस्ती का पर्व है। बेल्जियम की होली भारत सरीखी होती है और लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं। यहाँ पुराने जूतों की होली जलाई जाती है। इटली में रेडिका त्योहार फरवरी के महीने में एक सप्ताह तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। लकड़ियों के ढेर चौराहों पर जलाए जाते हैं। लोग अग्नि की परिक्रमा करके आतिशबाजी करते हैं। एक दूसरे को गुलाल भी लगाते हैं। रोम में इसे सेंटरनेविया कहते हैं तो यूनान में मेपोल। ग्रीस का लव ऐपल होली भी प्रसिद्ध है। स्पेन में भी लाखों टन टमाटर एक दूसरे को मार कर होली खेली जाती है। जापान में १६ अगस्त रात्रि को टेमोंजी ओकुरिबी नामक पर्व पर तेज़ आग जला कर यह त्योहार मनाया जाता है। चीन में होली की शैली का त्योहार च्वेजे पंद्रह दिन तक मनाया जाता है। लोग आग से खेलते हैं और अच्छे परिधानों में सज धज कर परस्पर गले मिलते हैं। साईबेरिया में घास फूस और लकड़ी से होलिका दहन है। नार्वे और स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली है। शाम को किसी पहाड़ी पर होलिका दहन की भाँति लकड़ी जला कर के चारों ओर नाचते गाते परिक्रमा करते हैं। इंग्लैंड में मार्च के अंतिम दिनों में मित्रों और संबंधियों को रंग भेंट करते हैं ।  वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार होली  है। विक्रम संवत के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण होली को  वसंतोत्सव,  कामोत्सव एवं रतिउत्सव -महोत्सव  कहा गया है। आर्यों में जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र ,  नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण में होली पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष का अभिलेख तथा संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव  कवियों के प्रिय विषय रहे हैं। मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। शाहजहाँ काल  में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था । मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे । विजयनगर की राजधानी हंपी के  १६वी शताब्दी की अहमदनगर की  वसंत रागिनी  है। पुरणों के  अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप अपनी पूजा करने को कहता था ।उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का उपासक भक्त था। हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को बुलाकर राम का नाम न जपने को कहा तो प्रहलाद ने स्पष्ट रूप से कहा, पिताजी! परमात्मा ही समर्थ है। प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है। मानव समर्थ नहीं है। यदि कोई भक्त साधना करके कुछ शक्ति परमात्मा से प्राप्त कर लेता है तो वह सामान्य व्यक्तियों में तो उत्तम हो जाता है, परंतु परमात्मा से उत्तम नहीं हो सकता। यह बात सुनकर अहंकारी हिरण्यकश्यप क्रोध से लाल पीला हो गया और नौकरों सिपाहियों से बोला कि इसको ले जाओ मेरी आँखों के सामने से और जंगल में सर्पों में डाल आओ। सर्प के डसने से यह मर जाएगा। ऐसा ही किया गया। परंतु प्रहलाद मरा नहीं, क्योंकि सर्पों ने डसा नहीं। होली  पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से  जुड़ा है। होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने  द पूतना नामक राक्षसी का वध होने के कारण  खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था। वैदिक काल में होली पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला  से होलिकोत्सव पड़ा है । भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र कृष्ण  प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का आरंभ माना जाता है। पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक  है।  प्रथम पुरुष मनु का जन्म होने के कारण  मन्वादितिथि  हैं। फाल्गुन शुक्लपक्ष पूर्णिमा को होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। माघ शुक्लपक्ष पंचमी से होली की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। होलिका दहन में चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र कर  होली जलाई जाती है। होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए गाय के गोबर से बने उपले में छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय उपला की  माला होलिका के साथ जलाकर  होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए। लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है । आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को  भूना जाता है। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। बिहार , झारखंड  में बाबा हरिहरनाथ , तेगबहादुर सिंह , बाबा वैद्यनाथ , बाबा दुग्धेश्वर नाथ आदि देवों की होली गाते हुए भगवान की उपासना क्रस्ट है । फाल्गुन शुक्लपक्ष पूर्णिमा को होलिका दहन के बाद चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को होली में रंग गुलाल , जल , मिट्टी जल मिश्रित , होलिका भष्म एक दूसरे पर लगाते है । होली कामदेव और रति का मिलान समारोह मानते है । प्रेम और भाईचारे का प्रतीक होली है ।
 हालोष्टक के समय मुंडन, नामकरण, उपनयन, सगाई, विवाह आदि  संस्कार और गृह प्रवेश, नए मकान, वाहन आदि की खरीदारी आदि  शुभ कार्य तथा  नई नौकरी या नया बिजनेस प्रारंभ नहीं  करते है । शास्त्रों के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित होने से होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है ।.इन दिनों गृह प्रवेश मुंडन संस्कार विवाह संबंधी वार्तालाप सगाई विवाह किसी नए कार्य नींव आदि रखने नया व्यवसाय आरंभ , मांगलिक कार्य आदि का आरंभ शुभ नहीं किया जाता  है । हाेलिका दहन के समय पूर्व को हवा चलने से प्रजा को सुखी , दक्षिण में हवा चलने से  दुर्योग , हवा पश्चिम में चलने से तृण वृद्धि एवं उत्तर में हवा चलने पर धन-धान्य की वृद्धि और सीधी लंबी लपटे आकाश की ओर उठने से जनप्रतिनिधियों को नुकसान पहुंचता है। ज्योतिषीय दृष्टि से  समस्त काम्य अनुष्ठानो के लिऐ श्रेष्ठ है । होलिका दहन के आठ दिन पुर्व का समय होलाष्टक है । होलाष्टक में  तंत्र व मंत्र की साधना पूर्ण फल प्राप्त होती है। अष्टमी को चन्द्र,नवमी को सूर्य,दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र,द्वादशी को गुरू,त्रयोदशी को बुध,चतुदशर्शी को मंगल व पूर्णीमा को राहु उग्र होने से  मनुष्य को शारिरीक व मानसिक क्षमता को प्रभावित और  निर्णय व कार्य क्षमता को कमजोर करते है। अष्टमी को चंद्रमा नवमी को सूर्य दशमी को शनि एकादशी को शुक्र द्वादशी को गुरु त्रयोदशी को बुध चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। ग्रहों के निर्बल होने से मानव मस्तिष्क की निर्णय क्षमता क्षीण और गलत फैसले लिए जाने के कारण हानि होने की संभावना रहती है। विज्ञान के अनुसार  पूर्णिमा के दिन ज्वार भाटा सुनामी  आपदा एवं पागल व्यक्ति और उग्र होता है।   अष्ट ग्रह दैनिक कार्यकलापों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। 8 दिनों में मन में उल्लास लाने और वातावरण को जीवंत बनाने के लिए लाल या गुलाबी रंग का प्रयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है। लाल परिधान ,  लाल रंग मन में उत्साह उत्पन्न करता है । भगवान कृष्ण  8 दिनों में गोपियों संग होली खेलते रहे और अंततः होली में रंगे लाल वस्त्रों को अग्नि को समर्पित कर दिया। होली मनोभावों की अभिव्यक्ति का पर्व है ।  भगवान  शिवजी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर प्रेम के देवता कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था, जिसके बाद संसार में शोक की लहर फैल गई थी । इसके बाद कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमायाचना की गई तब शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया । भगवान हरिभक्त प्रह्लाद को दैत्य राज हिरण्यकश्यप द्वारा फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक अनेक यातनाएं दी गयी और अंत में पूर्णिमा को होलिका जल गई भक्त प्रह्लाद जीवित हो कर प्रेम और हरि भक्ति हुए ।    होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होली होती है । होलाष्टक मे मनुष्य को अधिक से अधिक देव व इष्ट आराधना व मंत्र साधना करनी चाहिऐ।इस समय तंत्र क्रिया करने वाले जातको को विशेष उर्जा प्राप्त होती है।। जातको को राहु,मंगल,शनि या सूर्य की महादशा चल रही है या ये ग्रह शुभ नही है,इनके शत्रु ग्रह 4, 8 ,  12 मे अस्त या वक्री होने पर  उन्हे काफी कष्ट भोगना पडता है । जातक महामृत्युंजय जाप,नारायण कवच,दुर्गासप्तशति या सुन्दरकाण्ड का पाठ करे या योग्य ब्राह्मण से करवाने से सर्वाधिक चेतन शक्ति जगृत होती है ।