रविवार, जून 23, 2024

लोक संस्कृति संरक्षण से संभव है सामाजिक एकता

मगही और लोक संस्कृति के संरक्षण ससंभव है सामाजिक एकता 
नवादा । युगलकिशोर मिश्र मगही लोक संस्कृति संरक्षण सम्मान 2024 का आयोजन कोशिश फाउंडेशन बुधौल नवादा की ओर से वीणापाणि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बुधौल की परिसर में सम्पन्न किया गया । सम्मान समारोह की अध्यक्षता सुमन कोशिश फाउंडेशन की अध्यक्षा कवित्री लेखिका वीणा कुमारी मिश्र ने की एवं  अपार समाहर्ता चंद्रशेखर आजाद मुख्य अतिथि  , साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक , स्वंर्णिम कला केंद्र मुजफ्फरपुर की अध्यक्षा उषा किरण श्रीवास्तव , मगही साहित्य के कवि नरेंद्र सिंह  , मगही मगध नागरिक संघ के अध्यक्ष पारस सिंह आदि शामिल हुए ।नवादा । युगलकिशोर मिश्र मगही लोक संस्कृति संरक्षण सम्मान 2024 का आयोजन कोशिश फाउंडेशन बुधौल नवादा की ओर से वीणापाणि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बुधौल की परिसर में सम्पन्न किया गया । सम्मान समारोह की अध्यक्षता सुमन कोशिश फाउंडेशन की अध्यक्षा कवित्री लेखिका वीणा कुमारी मिश्र ने की एवं  अपार समाहर्ता चंद्रशेखर आजाद मुख्य अतिथि  , साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक , स्वंर्णिम कला केंद्र मुजफ्फरपुर की अध्यक्षा उषा किरण श्रीवास्तव , मगही साहित्य के कवि नरेंद्र सिंह  , मगही मगध नागरिक संघ के अध्यक्ष पारस सिंह आदि शामिल हुए । सम्मान समारोह में लेखिका वीणा मिश्रा की पुस्तक अनकही रागिनी कविता संग्रह एवं  यादों के वो पल स्व. श्री युगल किशोर मिश्रा जी को श्रद्धा सुमन का विमोचन एवं युगल किशोर मिश्र मगही लोकसंस्कृति  संरक्षण सम्मान 2024 के अंतर्गत 60 विभिन्न मगही लोक संस्कृति संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लेखन , गायन , आदि क्षेत्रों में कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया । समारोह में साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक को मगही साहित्य और लोक संरक्षण हेतु समर्पित सेवा के लिए सांस्कृतिक विरासत एवं मगही के संरक्षण सम्मान में मोमेंटो , अंगवस्त्र एवं प्रस्सति पत्र एवं स्वंर्णिम कला केंद्र एवं वसुंधरा की संपादिका उषा किरण श्रीवास्तव को लोक संस्कृति संरक्षण सम्मान से मेमन्टो , अंग वस्त्र एवं प्रसस्ति पत्र देकर सम्मनित किया गया । आगत अतिथियों का स्वागत कोशिश फाउंडेशन बुधौल नवादा के सचिव नीरज कुमार नई किया । साहित्यकार व इतिहासकार  सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि मगही और लोक संस्कृति का संरक्षण से  भावी पीढ़ियों एवं समाज की एकता और विरासत का बिम्ब संभव है । मगही साहित्य और लोक संस्कृति में हमारी पुरातन सांस्कृतिक विरासत को विकसित और संरक्षित करना आवश्यक है । मगही और लोक संस्कृति के संरक्षण से एकता और समन्वय संभव है।

गुरुवार, जून 20, 2024

मानवीय गुणों का सकारात्मक ऊर्जा है योग

मानव जीवन का सकारात्मक ऊर्जा स्रोत ह योग
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
  सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और स्मृति , संहिताओं आदि ग्रंथों में योग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । भगगवन शिव को योग का पिता  कहा जाता है । भक्ति योग , कर्मयोग और ज्ञान योग से मानवीय शक्ति का चतुर्दिक विकास का माध्यम योग   है । पुरातन काल में योग करने वाले पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है ।योग ज्ञान से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है । अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है । योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। प्रथम बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार प्रगट किया था । योग, ध्यान, सामूहिक मन्थन, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का मंथन योग है । भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक और इंसान तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य , विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला , स्वास्थ्य और भलाई के लिए  समग्र दृष्टिकोण को  प्रदान करने वाला है।  संयुक्त राष्ट्र के  11 दिसंबर 2014 ई. को विश्व योग दिवस का पारित प्रस्ताव के अनुसार विश्व  के 177 देशों के  सदस्यों द्वारा 21 जून 2015  को "अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी थी । सर्वप्रथम  21 जून 2015 को विश्व में विश्व योग दिवस विश्व शान्ति के लिए द्विदिवसीय  विज्ञान' सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011  आयोजित किया गया। लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउण्डेशन और योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा आयोजित किया गया। योग गुरु अमृत सूर्यानन्द के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार  10 साल पहले आया था । भारत की ओर से योग गुरु एवं श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे । विज्ञान सम्मेलन में श्री श्री रवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ़ लिविंग; आदि चुन चुन गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ; स्वामी पर्मात्मानन्द, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव; बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणे; स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार; डॉ॰ नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू; जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महा राज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्ष; अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्ष; डा डी॰आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली शामिल थे । प्रधानमन्त्री मोदी के प्रस्ताव का नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइराला , संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने समर्थन किया है। "अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसम्बर 2014 को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' मनाने 21 जून को स्वीकृति  दी गयी थी । भारत में पहले अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 2015 को  विश्व योग दिवस को यादगार बनाने और पूरे विश्व को योग के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के सफल होने के साथ विश्व रिकार्ड कायम कर लिए थे । प्राचीन काल से  सनातन धर्म के ऋषि, महर्षियों‌ ,साधु – संतों द्वारा योग को अपनाया जाता रहा है।  सिंधु घाटी सभ्यता में योग को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग 10,000 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है। ऋषि ,मुनि, साधु प्राय: परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया करते थे। 
शैव , शाक्त , वैष्णव , सौर , ब्राह्मण धर्म  में योग संस्कृति थी । ऋषभदेव, महावीर स्वामी , गौतम , बुद्ध, चरक , पतंजलि , चुणक ऋषि, गौरख नाथ व नाथ परंपरा में शामिल  ऋषि , मुनि , भगवान  शिव  , ब्रह्मा जी, विष्णु जी और नारद  , हनुमान  हठयोग किया करते थे । योग के जनक भगवान शिव द्वारा  नृत्य क्रियाएं एवं हठयोग किया करते थे । योग का प्रयोग शरीर को सुंदर, सुडौल,स्वस्थ और रोगों से दूर रहने के लिए किया जाता है । योगीजन स्वच्छ  वातावरण में रह कर  वायु शुद्ध, विचार शुद्ध , खान-पान  अच्छा और सेहतमंद हुआ करते थे । सतभक्ति न करने से 84 लाख योनियों की मार झेलनी पड़ती है। विश्व के 192 देशों में योग दिवस मनाया जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता के 16 /, 23 और 24 तथा 17 / 5 - 6 अनुसार शास्त्रविधि रहित घोर तप हठ योग अहंकार और पाखण्ड से युक्त कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से युक्त हैं। मन, आत्मा और शरीर सभी का भला होता है। पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि  तत्वज्ञान को  सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे उस तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। मनु स्मृति 6 / 71 , योग चूड़ामणि 109, योग दर्शन 2 / 13 , चरक संहिता , शांगधर पद्धति , तैतिरियोपनिषद , अथर्वेद , हठयोगप्रदीपिका , ऋग्वेद 10,16 ,2 , ऋषि वशिष्ठ ,पतंजलि , देव गुरु वृहस्पति , दैत्य गुरु शुक्राचार्य , आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । इंसान को ठड्डियान बंध ,अनुलोम विलोम  प्रणायाम ,भ्रामरी प्राणायाम, मूलाधार चक्र ,स्वाधिष्ठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,हृदय चक्र , विशुद्धि चक्र ,गायत्री ध्यान , सूर्य नमस्कार , अनाहत चक्र ,सौष्णुम्न ,एवं ध्यानादि योग क्रियाओं से इंसान मानसिक और शारीरिक क्षमता में सकारात्मक ऊर्जा  को बढ़ाती है । अष्टांग योग संस्थान, मैसूर अष्टांग योग अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक के मैसूर में  योग केंद्र देश नहीं बल्कि विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है।  डेस्टिनेशन कृष्णमाचार्य योग संस्थान, चेन्नई कृष्णमाचार्य योग संस्थान, तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है।  फेस्टिवल की सभी जानकारी राममणि अयंगर मेमोरियल योगा संस्थान, पुणे यह संस्थान, पुणे के एक अयंगर परिवार द्वारा संचालित है। योग संस्थान, मुंगेर बिहार योग संस्थान, भारत के प्रमुख योग संस्थान को  1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यहां संपूर्ण योग जीवन शैली प्रदान की जाती है।  निकेतन आश्रम, ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम, भारत के सबसे प्रमुख योग केंद्र उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में स्थित संस्थान में  1000 कमरे हैं। प्रत्येक वर्ष  मार्च  में  विश्व प्रसिद्ध योग उत्सव का आयोजन  किया जाता है। शिवानंद वेदांत योग संस्थान, त्रिवेंद्रम शिवानंद वेदांत योग संस्थान केरल के त्रिवेंद्रम में स्वामी शिवानंद के शिष्य विष्णुदेवानंद द्वारा बनाया गया था। वेदांत  संस्थान आसन स्वास्थ्य विश्राम ध्यान और आहार सहित योग्य पांच बिंदु अवधारणा की नींव है। ओडिशा ,  उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , बंगलोर , भोपाल आदि स्थानों में योग केंद्र है।    सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और स्मृति , संहिताओं आदि ग्रंथों में योग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । भगगवन शिव को योग का पिता  कहा जाता है । भक्ति योग , कर्मयोग और ज्ञान योग से मानवीय शक्ति का चतुर्दिक विकास का माध्यम योग   है । पुरातन काल में योग करने वाले पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है ।योग ज्ञान से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है । अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है । योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। प्रथम बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार प्रगट किया था । योग, ध्यान, सामूहिक मन्थन, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का मंथन योग है । भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक और इंसान तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य , विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला , स्वास्थ्य और भलाई के लिए  समग्र दृष्टिकोण को  प्रदान करने वाला है।  संयुक्त राष्ट्र के  11 दिसंबर 2014 ई. को विश्व योग दिवस का पारित प्रस्ताव के अनुसार विश्व  के 177 देशों के  सदस्यों द्वारा 21 जून 2015  को "अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी थी । सर्वप्रथम  21 जून 2015 को विश्व में विश्व योग दिवस विश्व शान्ति के लिए द्विदिवसीय  विज्ञान' सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011  आयोजित किया गया। लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउण्डेशन और योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा आयोजित किया गया। योग गुरु अमृत सूर्यानन्द के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार  10 साल पहले आया था । भारत की ओर से योग गुरु एवं श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे । विज्ञान सम्मेलन में श्री श्री रवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ़ लिविंग; आदि चुन चुन गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ; स्वामी पर्मात्मानन्द, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव; बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणे; स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार; डॉ॰ नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू; जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महा राज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्ष; अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्ष; डा डी॰आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली शामिल थे । प्रधानमन्त्री मोदी के प्रस्ताव का नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइराला , संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने समर्थन किया है। "अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसम्बर 2014 को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' मनाने 21 जून को स्वीकृति  दी गयी थी । भारत में पहले अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 2015 को  विश्व योग दिवस को यादगार बनाने और पूरे विश्व को योग के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के सफल होने के साथ विश्व रिकार्ड कायम कर लिए थे । प्राचीन काल से  सनातन धर्म के ऋषि, महर्षियों‌ ,साधु – संतों द्वारा योग को अपनाया जाता रहा है।  सिंधु घाटी सभ्यता में योग को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग 10,000 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है। ऋषि ,मुनि, साधु प्राय: परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया करते थे। 
शैव , शाक्त , वैष्णव , सौर , ब्राह्मण धर्म  में योग संस्कृति थी । ऋषभदेव, महावीर स्वामी , गौतम , बुद्ध, चरक , पतंजलि , चुणक ऋषि, गौरख नाथ व नाथ परंपरा में शामिल  ऋषि , मुनि , भगवान  शिव  , ब्रह्मा जी, विष्णु जी और नारद  , हनुमान  हठयोग किया करते थे । योग के जनक भगवान शिव द्वारा  नृत्य क्रियाएं एवं हठयोग किया करते थे । योग का प्रयोग शरीर को सुंदर, सुडौल,स्वस्थ और रोगों से दूर रहने के लिए किया जाता है । योगीजन स्वच्छ  वातावरण में रह कर  वायु शुद्ध, विचार शुद्ध , खान-पान  अच्छा और सेहतमंद हुआ करते थे । सतभक्ति न करने से 84 लाख योनियों की मार झेलनी पड़ती है। विश्व के 192 देशों में योग दिवस मनाया जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता के 16 /, 23 और 24 तथा 17 / 5 - 6 अनुसार शास्त्रविधि रहित घोर तप हठ योग अहंकार और पाखण्ड से युक्त कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से युक्त हैं। मन, आत्मा और शरीर सभी का भला होता है। पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि  तत्वज्ञान को  सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे उस तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। मनु स्मृति 6 / 71 , योग चूड़ामणि 109, योग दर्शन 2 / 13 , चरक संहिता , शांगधर पद्धति , तैतिरियोपनिषद , अथर्वेद , हठयोगप्रदीपिका , ऋग्वेद 10,16 ,2 , ऋषि वशिष्ठ ,पतंजलि , देव गुरु वृहस्पति , दैत्य गुरु शुक्राचार्य , आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । इंसान को ठड्डियान बंध ,अनुलोम विलोम  प्रणायाम ,भ्रामरी प्राणायाम, मूलाधार चक्र ,स्वाधिष्ठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,हृदय चक्र , विशुद्धि चक्र ,गायत्री ध्यान , सूर्य नमस्कार , अनाहत चक्र ,सौष्णुम्न ,एवं ध्यानादि योग क्रियाओं से इंसान मानसिक और शारीरिक क्षमता में सकारात्मक ऊर्जा  को बढ़ाती है । अष्टांग योग संस्थान, मैसूर अष्टांग योग अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक के मैसूर में  योग केंद्र देश नहीं बल्कि विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है।  डेस्टिनेशन कृष्णमाचार्य योग संस्थान, चेन्नई कृष्णमाचार्य योग संस्थान, तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है।  फेस्टिवल की सभी जानकारी राममणि अयंगर मेमोरियल योगा संस्थान, पुणे यह संस्थान, पुणे के एक अयंगर परिवार द्वारा संचालित है। योग संस्थान, मुंगेर बिहार योग संस्थान, भारत के प्रमुख योग संस्थान को  1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यहां संपूर्ण योग जीवन शैली प्रदान की जाती है।  निकेतन आश्रम, ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम, भारत के सबसे प्रमुख योग केंद्र उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में स्थित संस्थान में  1000 कमरे हैं। प्रत्येक वर्ष  मार्च  में  विश्व प्रसिद्ध योग उत्सव का आयोजन  किया जाता है। शिवानंद वेदांत योग संस्थान, त्रिवेंद्रम शिवानंद वेदांत योग संस्थान केरल के त्रिवेंद्रम में स्वामी शिवानंद के शिष्य विष्णुदेवानंद द्वारा बनाया गया था। वेदांत  संस्थान आसन स्वास्थ्य विश्राम ध्यान और आहार सहित योग्य पांच बिंदु अवधारणा की नींव है। ओडिशा ,  उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , बंगलोर , भोपाल आदि स्थानों में योग केंद्र है ।
 सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और स्मृति , संहिताओं आदि ग्रंथों में योग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । भगगवन शिव को योग का पिता  कहा जाता है । भक्ति योग , कर्मयोग और ज्ञान योग से मानवीय शक्ति का चतुर्दिक विकास का माध्यम योग   है । पुरातन काल में योग करने वाले पुरुष को योगी और महिला को योगनी कहा जाता है ।योग ज्ञान से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है । अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है । योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। प्रथम बार योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार प्रगट किया था । योग, ध्यान, सामूहिक मन्थन, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक का मंथन योग है । भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक और इंसान तथा प्रकृति के बीच सामंजस्य , विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला , स्वास्थ्य और भलाई के लिए  समग्र दृष्टिकोण को  प्रदान करने वाला है।  संयुक्त राष्ट्र के  11 दिसंबर 2014 ई. को विश्व योग दिवस का पारित प्रस्ताव के अनुसार विश्व  के 177 देशों के  सदस्यों द्वारा 21 जून 2015  को "अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी थी । सर्वप्रथम  21 जून 2015 को विश्व में विश्व योग दिवस विश्व शान्ति के लिए द्विदिवसीय  विज्ञान' सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011  आयोजित किया गया। लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउण्डेशन और योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा आयोजित किया गया। योग गुरु अमृत सूर्यानन्द के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार  10 साल पहले आया था । भारत की ओर से योग गुरु एवं श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे । विज्ञान सम्मेलन में श्री श्री रवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ़ लिविंग; आदि चुन चुन गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ; स्वामी पर्मात्मानन्द, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव; बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणे; स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार; डॉ॰ नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू; जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महा राज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्ष; अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्ष; डा डी॰आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली शामिल थे । प्रधानमन्त्री मोदी के प्रस्ताव का नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइराला , संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने समर्थन किया है। "अभी तक हुए किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजकों की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसम्बर 2014 को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' मनाने 21 जून को स्वीकृति  दी गयी थी । भारत में पहले अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 2015 को  विश्व योग दिवस को यादगार बनाने और पूरे विश्व को योग के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के सफल होने के साथ विश्व रिकार्ड कायम कर लिए थे । प्राचीन काल से  सनातन धर्म के ऋषि, महर्षियों‌ ,साधु – संतों द्वारा योग को अपनाया जाता रहा है।  सिंधु घाटी सभ्यता में योग को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि योग 10,000 वर्ष पूर्व से किया जा रहा है। ऋषि ,मुनि, साधु प्राय: परमात्मा प्राप्ति के लिए हठयोग किया करते थे। 
शैव , शाक्त , वैष्णव , सौर , ब्राह्मण धर्म  में योग संस्कृति थी । ऋषभदेव, महावीर स्वामी , गौतम , बुद्ध, चरक , पतंजलि , चुणक ऋषि, गौरख नाथ व नाथ परंपरा में शामिल  ऋषि , मुनि , भगवान  शिव  , ब्रह्मा जी, विष्णु जी और नारद  , हनुमान  हठयोग किया करते थे । योग के जनक भगवान शिव द्वारा  नृत्य क्रियाएं एवं हठयोग किया करते थे । योग का प्रयोग शरीर को सुंदर, सुडौल,स्वस्थ और रोगों से दूर रहने के लिए किया जाता है । योगीजन स्वच्छ  वातावरण में रह कर  वायु शुद्ध, विचार शुद्ध , खान-पान  अच्छा और सेहतमंद हुआ करते थे । सतभक्ति न करने से 84 लाख योनियों की मार झेलनी पड़ती है। विश्व के 192 देशों में योग दिवस मनाया जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता के 16 /, 23 और 24 तथा 17 / 5 - 6 अनुसार शास्त्रविधि रहित घोर तप हठ योग अहंकार और पाखण्ड से युक्त कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से युक्त हैं। मन, आत्मा और शरीर सभी का भला होता है। पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि  तत्वज्ञान को  सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे उस तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। मनु स्मृति 6 / 71 , योग चूड़ामणि 109, योग दर्शन 2 / 13 , चरक संहिता , शांगधर पद्धति , तैतिरियोपनिषद , अथर्वेद , हठयोगप्रदीपिका , ऋग्वेद 10,16 ,2 , ऋषि वशिष्ठ ,पतंजलि , देव गुरु वृहस्पति , दैत्य गुरु शुक्राचार्य , आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है । इंसान को ठड्डियान बंध ,अनुलोम विलोम  प्रणायाम ,भ्रामरी प्राणायाम, मूलाधार चक्र ,स्वाधिष्ठान चक्र ,मणिपुर चक्र ,हृदय चक्र , विशुद्धि चक्र ,गायत्री ध्यान , सूर्य नमस्कार , अनाहत चक्र ,सौष्णुम्न ,एवं ध्यानादि योग क्रियाओं से इंसान मानसिक और शारीरिक क्षमता में सकारात्मक ऊर्जा  को बढ़ाती है । अष्टांग योग संस्थान, मैसूर अष्टांग योग अनुसंधान संस्थान, कर्नाटक के मैसूर में  योग केंद्र देश नहीं बल्कि विदेश में भी काफी प्रसिद्ध है।  डेस्टिनेशन कृष्णमाचार्य योग संस्थान, चेन्नई कृष्णमाचार्य योग संस्थान, तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है।  फेस्टिवल की सभी जानकारी राममणि अयंगर मेमोरियल योगा संस्थान, पुणे यह संस्थान, पुणे के एक अयंगर परिवार द्वारा संचालित है। योग संस्थान, मुंगेर बिहार योग संस्थान, भारत के प्रमुख योग संस्थान को  1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित किया गया था। यहां संपूर्ण योग जीवन शैली प्रदान की जाती है।  निकेतन आश्रम, ऋषिकेश परमार्थ निकेतन आश्रम, भारत के सबसे प्रमुख योग केंद्र उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में स्थित संस्थान में  1000 कमरे हैं। प्रत्येक वर्ष  मार्च  में  विश्व प्रसिद्ध योग उत्सव का आयोजन  किया जाता है। शिवानंद वेदांत योग संस्थान, त्रिवेंद्रम शिवानंद वेदांत योग संस्थान केरल के त्रिवेंद्रम में स्वामी शिवानंद के शिष्य विष्णुदेवानंद द्वारा बनाया गया था। वेदांत  संस्थान आसन स्वास्थ्य विश्राम ध्यान और आहार सहित योग्य पांच बिंदु अवधारणा की नींव है। ओडिशा ,  उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , बंगलोर , भोपाल आदि स्थानों में योग केंद्र है ।
करपी ,अरवल , बिहार 804419
9472987491
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सकारात्मक ऊर्जा का द्योतक संगीत

विश्व संगीत दिवस 21 जून 2024 के अवसर पर 
सकारात्मक ऊर्जा का द्योतक संगीत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
वेदों , स्मृति , संहिताओं एवं संगीत शास्त्रों में संगीत का महत्वपूर्ण स्थान है । प्रार्थना , उत्सव , भजन एवं युद्ध,  के समय इंसान संगीत  का उपयोग करता चला आया है। विश्व के विभिन्न संप्रदायों में बाँसुरी इत्यादि फूँक के वाद्य  यंत्रों  तार या ताँत के वाद्य (तत),चमड़े से मढ़े हुए वाद्य ठोंककर बजाने के वाद्य मिलते हैं। कर्णप्रिय संगीत की ध्वनि को नाद कहते नाद आहट नाद :जो नाद वस्तुओं के टकराने से उत्पन्न व आनाहट  नाद स्वयं उत्पन्न होता है । प्रगैतिहासिक काल से भारत में संगीत की समृद्ध परम्परा रही है। गिने-चुने देशों में ही संगीत की इतनी पुरानी एवं इतनी समृद्ध परम्परा पायी जाती है। ऐसा जान पड़ता है कि भारत में भरत के समय तक गान को पहले केवल गीत कहते थे। वाद्य में जहाँ गीत नहीं होता था, केवल दाड़ा, दिड़दिड़  शुष्क अक्षर होते थे । निर्गीत या बहिर्गीत कहते थे और नृत्त अथवा नृत्य की एक अलग कला थी।  धीरे धीरे गान, वाद्य और नृत्य तीनों का "संगीत" में अंतर्भाव हो गया - गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगतमुच्यते।भारत से बाहर  देशों में गीत और वाद्य को संगीत में गिनते हैं । नृत्य को कला मानते हैं। भारत में नृत्य को संगीत में केवल इसलिए गिन लिया गया कि उसके साथ बराबर गीत या वाद्य अथवा दोनों रहते हैं।  स्वर और लय की कला को संगीत कहते हैं। स्वर और लय गीत और वाद्य दोनों में मिलते हैं । नृत्य में लय है, स्वर नहीं। संगीत के अंतर्गत  गीत और वाद्य की चर्चा है। पुरातन संस्कृति में संगीत को साम कहा जाता था ।
भारतीय संगीत में संगीत के आदि प्रेरक भगवान शिव और माता  सरस्वती और ब्रह्मा जी  है।  मानव  उच्च कला को दैवी प्रेरणा एवं भूलोक में देवर्षि नारद के, बल पर, संगीत विकसित हुआ है। भारतीय संगीत का आदि रूप वेदों में मिलता है। वैदिक   काल के 2000 ई.पू. एवं  भारतीय संगीत का इतिहास  4000 ई.पू. प्राचीन है। वेदों में वाण, वीणा और कर्करि इत्यादि तंतु वाद्यों का उल्लेख  है। अवनद्ध वाद्यों में दुदुंभि, गर्गर इत्यादि का, घनवाद्यों में आघाट या आघाटि और सुषिर वाद्यों में बाकुर, नाडी, तूणव, शंख इत्यादि का उल्लेख है। यजुर्वेद में 30 वें कांड के 19वें और 20वें मंत्र में वाद्य बजानेवालों का उल्लेख  वाद्यवादन का व्यवसाय था। संगीत सामवेद में "स्वर" को "यम" व साम का संगीत से  साम को स्वर का पर्याय  थे। छांदोग्योपनिषद् में  प्रश्नोत्तर के रूप में स्पष्ट की गई है। "का साम्नो गतिरिति स्वर इति होवाच" (छा. उ. 1। 8। 4)। " उत्तर "स्वर"साम का "स्व" अपनापन "स्वर" है। "तस्य हैतस्य साम्नो य: स्वं वेद, भवति हास्य स्वं, तस्य स्वर एव स्वम्" (बृ. उ. 1। 3। 25) अर्थात् जो साम के स्वर को जानता है उसे "स्व" प्राप्त होता है। साम का "स्व" स्वर  है। वैदिक काल से प्रारम्भ भारतीय संगीत की परम्परा निरन्तर फलती-फूलती और समृद्ध होती रही। संगीत  ग्रन्थ लिखे गये है । प्राचीन संगीत सुमेरु, बवे डिग्री (बाबल या बैबिलोनिया), असुर (असीरिया) और सुर (सीरिया) का माना जाता है।  मंदिरों और राजमहलों पर उद्धृत वाद्यों से संगीत का  है।  वाद्य बलग्गु या बलगु  है।  विद्वान् का  अवनद्ध वाद्य लगाते व  धनुषाकार वीणा। एक तब्बलु वाद्य , धनुषाकार वीणा। , तब्बलु वाद्य होता था ।  डफ  मंदिरों पर   तत वाद्य मिला है जिसमें पाँच से सात तार तक होते थे। गिगिद नामक बाँसुरी  थी। बैबिलोनिया की  चक्रिकाओं में शब्दों के साथ अ, इ, उ इत्यादि स्वर लगे हुए  हैं । संगीतकार  के अनुसार संगीत लिपि या  स्वरलिपि थी।  वेद का सस्वर पाठ होता था ।  बैबिलोनिया में  "अ" स्वरित का चिन्ह था, "ए" विकृत स्वर का, "इ" उदात्त का "उ" अनुदात्त का। चीन में प्सात स्वरों का उपयोग करनेवाले  हैं। बौद्धों के अनुसार  संगीत पर  भारतीय संगीत का भी प्रभाव पड़ा है।संगीत पर सुमेरु - बैबिलोनिया इत्यादि के संगीत का प्रभाव पड़ा था ।  मंदिरों में गान  वाद्य  "किन्नर"थे। भारतीय संगीत के विकास में मगध साम्राज्य के सम्राट समुद्र गुप्त , मुगल काल में बादशाह अकबर शासन काल में तानसेन और बैजुबाबरा थे । बिहार में संगीत का चतुर्दिक विकास के लिए बेतिया घराना , दरभंगा घराना , डुमरांव व धनागाई घराना , गया घराना और बड़हिया घराने की स्थापना गोपाल मिश्र द्वारा 1790 ई. में कई गयी थी । धमार ,ख्याल , ठुमरी ,शास्त्रीय संगीत खण्ड का लोक गीत झूमर , सोहराई ,कर्मा झिझिया  लोक नृत्य संगीत है । विश्व में 1300 संगीत शैलियां है ।शास्त्रीय सुगम ,कर्नाटक संगीत ,लोक संगीत ,उप शास्त्रीय संगीत में ठुमरी ,टप्पा डोरी ,कजरी एवं आदिवासी संगीत है । विश्व में 230 मिलियन गाने है । पश्चमी शास्त्रीय संगीत के पिता जोहान सेबेस्टियन वाख ने 1685 ई. से 1750 ई. तक विकास संगीत का किया था । 13 वी शताब्दी ई. पू. का गान हुर्रियन ह्यूसन , यूनानी संगीत का देवता जीउस और लेटो के पुत्र अपोलो है ।कर्नाटक संगीत के जनक पुरंदर दस ,संगीत का रसज तानसेन ,नाट्य शास्त्र संगीत का जनक भरत मुनि है । बंगाल में रवींद्र संगीत , आगरा घराना ,ग्वालियर घराना , बनारस घराना , इंदौर घराना , जयपुर घराना ,किराना घराना , लखनऊ घराना  प्रसिद्ध है । मुजफ्फरपुर में बेतिया घराने की छाप प्रचलित हसि । स्वंर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा उषा किरण श्रीवास्तव द्वारा संगीत , नृत्य का प्रश्रय दिया गया है । स्मृतियों के अनुसार संगीत का रूप 3 लाख वर्ष पूर्व थी । प्रकृति संगीत , साम संगीत था ।
मिस्र देश का संगीत भी बहुत ही प्राचीन है।  मानव में संगीत देवी आइसिस अथवा देव थाथ द्वारा आया है। इनका प्रसिद्ध तत वाद्य बीन या बिण्त कहलाता था। मिस्र देश के लोग स्वर को हर्ब कहते थे। इनके मंदिर संगीत के केंद्र बन गए थे। अफलातून, जो मिश्र देश में अध्ययन के लिए गया था, कहता है, वहाँ के मंदिरों में संगीत के नियम ऐसी पूर्णता से बरते जाते थे कि कोई गायक वादक उनके विपरीत नहीं जा सकता था। कहा जाता है कि कोई 300 वर्ष ई.पू. मिस्र में लगभग 600 वादकों का एक वाद्यवृंद था जिसमें 300 तो केवल बीन बजानेवाले थे। इनके संगीत में कई प्रकार के तत, सुधिर, अवनद्ध और धन वाद्य थे। मिस्र से पाइथागोरस और अफलातून दोनों ने संगीत सीखा। यूनान के संगीत पर मिस्र के संगीत का बहुत  प्रभाव पड़ा है। यूरोप में सबसे पहले यूनान में संगीत एक व्यवस्थित कला के रूप में विकसित हुआ। भरत की मूर्छनाओं की तरह यहाँ भी कुछ "मोड" बने जिससे अनेक प्रकार की "धुने" बनती थी। यहाँ भी तत, सुषिर, अवनद्ध और धन वाद्य कई प्रकार के थे। यूरोप में पाइथागोरस पहला व्यक्ति हुआ है जिसने गणित के नियमों द्वारा स्वरों के स्थान को निर्धारित किया। 16वीं शती से यूरोप में संगीत का एक नई दिशा में विकास हुआ। इसे स्वरसंहति (हार्मनी) कहते हैं। संहति में कई स्वरों का मधुर मेल होता है, जैसे स, ग, प (षड्ज, गांधार, पंचम) की संगति। इस प्रकार के एक से अधिक स्वरों के गुच्छे को "संघात" (कार्ड) कहते हैं। एक संघात के सब स्वर एक साथ भिन्न भिन्न वाद्यों से निकलकर एक में मिलकर एक मधुर कलात्मक वातावरण की सृष्टि करते हैं। इसी के आधार पर यूरोप के आरकेष्ट्रा (वृंदवादन) का विकास हुआ है। स्वरसंहति विशिष्ट लक्षण है । पाश्चात्य संगीत पूर्वीय संगीत से भिन्न है।
प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व संगीत दिवस  मनाया जाता है। विश्व संगीत दिवस को "फेटे डी ला म्यूजिक" व "संगीत उत्सव" और संगीत समारोह कहा जाता है। विश्व के  110 देशों में भारत , जर्मनी, इटली, मिस्र, सीरिया, मोरक्को, ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, कांगो, कैमरून, मॉरीशस, फिजी, कोलम्बिया, चिली, नेपाल, फ्रांस और जापान में विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है। विश्व में  शांति और सद्भाव कायम करने के लिए फ्रांस मेंफ्रांस के संस्कृति मंत्री जैक लेने  प्रथम  बार 21 जून 1982 में प्रथम विश्व संगीत दिवस मनाया गया था। ज अमेरिका के संगीतकार योएल कोहेन ने वर्ष 1976 में संगीत  दिवस को मनाने की चर्चा की  थी। विश्व संगीत दिवस को विभिन्न देशों में भिन्न भिन्न संगीत   सेम्यूजिक का प्रोपेगैंडा तैयार करने के अलावा एक्सपर्ट व नए कलाकारों को इक्क्ठा करके एक मंच पर लाकर  संगीत और ललित कला को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विश्व के भारत में 500 संगीत विद्यालयों में 221 सरकार एवं 164 निजी  , बिहार में 3 संगीत विद्यालय , अमेरिका में 20 संगीत विद्यालय है ।1901 ई. में विष्णु दिगंबर पॉक्सकर द्वारा लाहौर में कई गई थी 1921 ई. मेजेक्स स्कूल ऑफ म्यूजिक , न्यूयार्क में जुलियाई स्कूल न्यूयार्क , वर्कली कॉलेज ऑफ म्यूजिक बोस्टन , सरस्वती संगीतालय इलाहाबाद , बड़ौदा स्टेट म्यूजिक स्कूल , ईस्टमैन स्कूल ऑफ म्यूजिक, गंधर्व संगीत महाविद्यालय की स्थापना आदि संगीत विद्यालयों हुई है ।
करपी , अरवल , बिहार 804419
9472987491 

मंगलवार, जून 18, 2024

हजरीबाग की सांस्कृतिक विरासत

हजरीबाग परिभ्रमण 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
झारखण्ड राज्य का प्राचीन काल में हजारीबाग जिले को दुर्गम वनों से आच्छादित क्षेत्र में  कोल जनजातियों का राजा हजारी का  2816 उचाई से युक्त पर्वत चंदवारा और 3057 फिट उचाई युक्त पर्वत जिल्लिंज तथा दामोदर नदी भराकर नदी का क्षेत्र शाक्त सम्प्रदाय , सौर सम्प्रदाय , शैव सम्प्रदाय एवं वैष्णव संप्रदाय का वर्चस्व था ।   तुर्क-अफगान  1526 ई. में हजारीबाग का क्षेत्र  प्रभाव से मुक्त था । दिल्ली के सिंहासन के बादशाह अकबर शासन 1556 ई. में प्रवेश  कोकरा के रूप में हुआ था । है । बादशाह अकबर ने 1585 ई.में  छोटानागपुर के राजा को  उपनदी की स्थिति में काम  करने के लिए शहबाज़ खान के आदेश के तहत बल भेजा था ।. 1605 में अकबर की मृत्यु के बाद 1605 ई. में  हजारीबाग क्षेत्र स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद  आवँयक हुआ था । है 1616 में एक अभियान इब्राहिम खान नुसरत जंग ने 1616 ई. को  बिहार के राज्यपाल और रानी नूरजहां के भाई ने 1626 ई. में  इब्राहिम खान ने दुरजन साल छोटानागपुर के 46 वें राजा दुर्जन साल  को हराया और कब्जा किया  था ।  बारह वर्षों  तक  मुगल शासकों द्वारा राज दुर्जन को कैद में रखा था।  बारह वर्ष के बाद में पुनः छोटानागपुर सिंहासन पर राजा दुर्जन हुए थे । छोटानागपुर में 1632 ई. को  136000 रुपये के वार्षिक भुगतान के लिए पटना में राज्यपाल को जागीर के रूप में दिया गया था ।. यह 1636 ईसवी में 161000 रुपए के लिए उठाया गया था मुहम्मद शाह (1719 – 1748) के शासनकाल के दौरान तत्कालीन बिहार के राज्यपाल सरबलंद खान ने छोटानागपुर के राजा के खिलाफ मार्च किया और अपनी प्रस्तुती प्राप्त की । 1731 में बिहार के राज्यपाल  फक्रुदौला के नेतृत्व में  अभियान चलाने छोटानागपुर के राजा के साथ संदर्भ में आए थे । सन् 1735 में अलीवर्दी खान को रामगढ़ के राजा से 12000 रुपए की वार्षिक श्रद्धांजलि के भुगतान को लागू करने में कुछ कठिनाई हुई, जैसा कि बाद में फक्रुदौला से तय की गई शर्तों के अनुसार सहमति से हुआ. यह स्थिति अंग्रेजों द्वारा देश के कब्जे तक जारी रही । मुगल काल  के दौरान जिले में मुख्य सम्पदा रामगढ़, खाडये, चाड और खरगडीहा थे । 1831 में कोल  विद्रोह के बाद गंभीरता से हजारीबाग प्रभावित नहीं किया था । क्षेत्र के प्रशासनिक ढांचे को बदल दिया गया था । परगना रामगढ़, खडगडीहा, केनडी और खाडये दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी के पुर्जे बने और प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में हजारीबाग नाम के एक प्रभाग में गठित किए गए । 1854 में दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी के पद नाम को छोटा नागपुर में बदल दिया गया और यह तत्कालीन बिहार के लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधीन  गैर-नियमन प्रांत के रूप में प्रशासित होने लगा | 1855-56 में अंग्रेजों के खिलाफ संथालों के महान विद्रोह को बेरहमी से दबा दिया गया था । हजरीबाग जिले के  क्षेत्रफल 3555 वर्गकीमि में 2011 जनगणना के अनुसार 1734005 आबादी 1308 गाँव ,257 पंचायत प्रखंड16 , अंचल 15 थाने 19 और हजारीबग्ग सदर और बरही अनुमंडल है । ब्रिटिश साम्राज्य ने  हजरीबाग जिले का सृजन 1855 ई. में किया गया एवं रामगढ़ बटालियन की स्थापना 1790 ई. हजरीबाग जिले का मुख्यालय हजरीबाग में 1834 ई. में कई गयी थी ।1 हजरीबाग में 1869 ई. में नगरपालिका एवं बिहार का सूबेदार फकूद्दौला द्वारा 1731 ई. में हजरीबाग मिशन की स्थापना किया गया था । खोरठा। एवं हिंदी भाषीय क्षेत्र  हजरीबाग को ओकन , हजारी ,संथालडुल , पुण्डरीक क्षेत्र कहा जाता था। महाभारत काल मे मगध साम्राज्य का राजा जरासंध और महापद्म नंद उग्रसेन का शासन हजरीबाग पर था । महापद्म नंद उग्रसेन ने पद्म नगर की स्थापना की बाद में पद्मा कहा गया है। परगना में रामगढ़ ,खडकड़िहा , केनडी और खाड़ये  को 1831 ई. तथा रेगुलेशन एक्ट के तहत  कैप्टन सिम्सन के नेतृत्व में 1824 ई स्थापन के बाद . और 1855 से 1860 ई. के मध्य में हजरीबाग झील का निर्माण हुआ था । पद्मा का राजा राजा राम नारायण सिंह थे । हजरीबाग जिले की सीमा के उत्तर में गया और कोडरमा , दक्षिण में रामगढ़ ,पूरब में गिरिडीह ,बोकारो और पश्चिम में चतरा जिले की सीमाओं से घिरा है ।  हजरीबाग सदर ,बरही ,कटकमसांडी ,विष्णुगढ़ ,बड़कागांव ,इचाक ,चुरचू ,दारू ,ताती ,झरिया ,कटकम दाग , दाढ़ी ,केरेउरी प्रखंड है । हजरीबाग में 1880 ई. को पंचमन्दिर की स्थापना और 1901 ई. में दक्षिण वास्तुकला शैली में पंचमन्दिर का निर्माण हुआ था । 1991 की जनगणना के बाद  हजारीबाग को तीन पृथक जिलों यथा हजारीबाग, चतरा एवं कोडरमा को जिला सृजित किया गया है। हजरीबाग का चंदवारा पर्वत 2816 फिट उचाई एवं जिलिन्जा पर्वत की उचाई 3037 फिट है । 
हजरीबाग झील -  कैप्टन सिंम्पसन द्वारा 1855 से 1860 ई. के मध्य हजरीबाग झील का निर्माण कराया गया था । 
रामकृष्ण आश्रम -  रामकृष्ण आश्रम की स्थापना 1947 ई. में कई गयी । आश्रम की अध्यक्षा प्रबरजिका शक्तिप्रणा है। 1992 ई. में श्री रामकृष्ण शरदा मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना हुई है । रामकृष्ण आश्रम परिसर में भगवान शिवलिंग , रामकृष्ण मंदिर के गर्भगृह में परमहंस रामकृष्ण , स्वामी विवेकानंद , माता शारदा की मूर्ति एवं मेरिटेशन हॉल , काली मंदिर में माता काली स्थापित है । पांच मंदिर -   हजरीबाग पच मंदिर का निर्माण 1901 ई. में दक्षिण वास्तुकला शैली में किया गया जब कि मंदिर गर्भगृह में राधा कृष्ण , भगवान सूर्य , माता काली की स्थापना 1880 ई. में कई गयी है।   , काली मंदिर हुरहुरू , सती स्थान , शनि मंदिर , बुढ़वा महादेव मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है । नरसिंह मंदिर -  खपरियावां में भगवान विष्णु की रूप में भगवान नरसिंह की स्थापना 1645 ई. में कई गयी एवं नरसिंह मंदिर का निर्माण 1995 ई. में कई गयी है । नरसिंह मंदिर परिसर में गौरीशंकर मंदिर , काली मंदिर , सिद्धेश्वरी मंदिर , महामाया मंदिर एवं नरसिंह मंदिर के गर्भगृह में नरसिंह भगवान एवं शिवलिंग स्थापित है ।हजरीबाग से 8 किमी की दूरी पर औरंगाबाद जिले के कुटुंबा प्रखंड के सिरिस निवासी दामोदर मिश्र द्वारा 1645 ई. में रामगढ़ का राजा ने 22 एकड़ भूमि एवं कोनार नदी के तट पर निर्मित तलाव पर रहने के बाद  एक कूप से भगवान विष्णु रूपधारी नरसिंह की मूर्ति प्राप्त हुई थी ।  नरसिंह मंदिर के गर्भगृह में भगवान नरसिंह की स्थापना 1645 ई. में की गई है । 5 एकड़ भूमि पर माता काली , सिद्धेश्वरी ,  महामाया , भगवान सूर्य , हनुमान जी की मूर्तियां स्थापित है । बरही - कमांडर कर्नल कॉनिवेट 1872 ई. अपना पा संभालने के बाद 1857 ई. में मृत्यु होने के बाद केनिवेट का कब्र निर्माण किया गया था । बरकार नदी के किनारे बसा बरही में 20 जनवरी 2015 ई. में रेलवेस्टेशन एवं रेलवे लाइन का निर्माण हुआ है। हिल्टन सर् जॉन , बिहार द हार्ट ऑफ इंडिया 1949 एवं फॉलिंग रैन जीनोमिक्स के अनुसार बरही सुंदर नगर है ।  कैनरी हिल , अभंडाहरा जलप्रपात ,मोटरा जलप्रपात ,छडवा बांध , कंचनपुर काली मंदिर ,लोटवा जलप्रपात ,इचाक बुढ़िया माता मंदिर ,राजा रामनारायण सिंह के वंशज द्वारा पद्मा किला  का निर्माण किया गया ।, बड़कागाँव -  नपोकला पंचायत का इस्को की अवसरा पर्वत में डुमारो गुफा ,पसरिया गुफा , इतिज गुफा  निर्मित है । अवसरा पर्वत श्रंखला पर शेषनाग क्षेत्र में 100 मीटर लंबाई में शेषनाग 26 चट्टानों की 500 मीटर लंबाई पर 100 स्तंभों में ब्राह्मी लिपि में  लेखन दर्शाया गया है । यह क्षेत्र नागवंशियों राजा द्वारा विकसित किया गया था । शुंग काल में ब्राह्मण धर्म विकसित था । वरसो पानी गुफा है। कैनरी पर्वत -  बरकट्टा प्रखंड के कैनारी पर्वत पर तीन झरनों में दो झीलें गर्म एवं एक झील  ठंडा युक्त है । झरनों से निर्मित कुंड में सूर्यकुंड ,ब्रह्मकुंड ,रामकुंड , लक्षमण कुंड , सीता कुंड तथा भगवान सूर्य को समर्पित सूर्य मंदिर अवस्थित है । हजारीबाग में पैका ,हुन्ता ,मुंडारी ,ब्रो , डोमकच ,छाऊ नृत्य संजाल , संथाली ,मुंडारी , खारिया ,कोलियन जनजाति में प्रसिद्ध है । यह क्षेत्र कोल शासित राज्य था। 
साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक , वर्ल्ड वाइज न्यूज हजरीबाग के संपादक अमरनाथ पाठक , मेगालिथ वेता शुभाशीष दास  के साथ हजारीबग्ग क्षेत्रों के ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी प्राप्त करने के हजरीबाग समाहरणालय के सेवानिवृत्त कार्यालय अधीक्षक आशुतोष मिश्र एवं सुभाष कुमार के साथ हजरीबाग के विभिन्न स्थल का पुरातात्विक , सांस्कृतिक स्थलों का परिभ्रमण 29 मई से 03 जून 2024 तक  किया गया । हजारीबग्ग के क्षेत्र में आर्कियन चट्टानों को नाइस पल्लवित व फोलिस्टेड चट्टाने है। इस चट्टानों को बंगाल नाइस चट्टान कहा गया है। हजारीबग्ग जिले का क्षेत्र में क्लोज फेट , लौह अस्यक ,खंडोलाइट , रिवालो सकोली सौसर श्रेणी के चट्टानों से परिपूर्ण है । यहां का क्षेत्र विंध्य पर्वत की उत्तरी छोटानागपुर का पठार विंध्य तंत्र से जुड़ाव है।
करपी , अरवल , बिहार 804419
9472987491

सोमवार, जून 03, 2024

              कल ऊत्तरापथ और आज जीटी रोड 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
दक्षिण एशिया का प्राचीन सड़क उत्तरापथ है। मौर्य साम्राज्य काल में उत्तरापथ की लंबाई  3710  किमि एवं चौड़ाई 14 मीटर का निर्माण हुआ था । उत्तरापथ को उत्तरापथ , सड़क के आजम ,गरैली सड़क ,जनरलों की सड़क , ग्रैंड ट्रंक रोड , जी .टी. रोड एवं इन एच 91 के नाम से जाना जाता था।  उत्तरापथ  भारत , बंगलादेश , अफगिस्तान और पाकिस्तान का प्राचीन सड़क है । 16 वीं सदी में शेरशाह सूरी द्वारा उत्तरापथ का पुनर्निर्माण कराने केबाद सड़क के आजम व शेरशाह मार्ग , बादशाही सड़क और 17 वीं सदी में ब्रिटिश सरकार ने ग्रेंड ट्रक रोड , जी टी रोड और भारत सरकार ने एन. एच .91 कहा है । उत्तरापथ का निर्माण मगध साम्राज्य के चंद्रगुप्त मौर्य , अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रसार  का रास्ता पथ निर्माण किया था । पेशावर से चटगांव  पंजाब ,दिल्ली ,खैबर दर्रा , अफगिस्तान , बंगाल का कोलकाता , बिहार का गया औरंगाबाद , रोहतास  जिले के क्षेत्रों को जोड़ता है। भारत सरकार द्वारा 2014 ई. में जी. टी. रोड को पुनिर्माण  4 लेन का निर्माण  की । ग्रांड ट्रंक रोड दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी और सबसे लंबी प्रमुख सड़क है।
 ग्रांड ट्रंक रोड पाकिस्तान के पेशावर से प्रारम्भ  और वाघा में भारत में प्रवेश करने से पहले अटॉक, रावलपिंडी , लाहौर से गुजरती है। भारत के भीतर, यह अमृतसर, अंबाला, दिल्ली, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, आसनसोल , औरंगाबाद , शेरघाटी ,  सासाराम ,  और कोलकाता से होकर गुजरते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती हुई  नारायणगंज जिले में सोनारगाँव पर समाप्त होती है। भारत के भीतर, सड़क के प्रमुख हिस्से, कोलकाता और कानपुर के बीच के हिस्सों को राष्ट्रीय राजमार्ग 2 के रूप में जाना जाता है, कानपुर और दिल्ली के बीच को राष्ट्रीय राजमार्ग 91 कहा जाता है, और दिल्ली के बीच और वाघा, पाकिस्तान के साथ सीमा पर, राष्ट्रीय मार्ग 1 के रूप में जाना जाता है।
 मौर्य साम्राज्य के समय में, भारत और पश्चिमी एशिया के कई हिस्सों और हेलेनिक दुनिया के बीच का व्यापार उत्तर-पश्चिम के शहरों से होकर गुजरता था। तक्षशिला मौर्य साम्राज्य के  हिस्सों के साथ सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था। मौर्यों ने तक्षशिला से पाटलिपुत्र राजमार्ग बनाया था। सदियों से, ग्रैंड ट्रंक रोड ने उत्तरी भारत में यात्रा से मुख्य राजमार्ग के रूप में कार्य किया है। 16 वीं शताब्दी में, गंगा के मैदान के पार चलने वाली  प्रमुख सड़क को शेर शाह सूरी ने बनवाया था । शेरशाह सूरी का इरादा प्रशासनिक और सैन्य कारणों से अपने विशाल साम्राज्य के दूरस्थ प्रांतों को  जोड़ना था । शेरशाह ने अपनी राजधानी सासाराम से, अपनी राजधानी आगरा को जोड़ने के लिए शुरू में सड़क का निर्माण किया था। मुल्तान से पश्चिम की ओर बढ़ा और पूर्व में बांग्लादेश में सोनारगाँव तक फैला हुआ था। मुगलों ने पश्चिम की ओर सड़क का विस्तार खैबर दर्रे को पार करते हुए अफगानिस्तान में काबुल तक फैल गया।  उत्तरापथ  सड़क को बाद में औपनिवेशिक भारत के ब्रिटिश शासकों ने सुधारा किया था । उत्तरापथ सड़क  क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों से  यात्रा और डाक संचार दोनों को सुविधाजनक बनाया गया था । शेरशाह सूरी के जमाने में  सड़क को नियमित अंतराल पर कारवासरा के साथ बनाया गया था, और राहगीरों को छाया देने के लिए सड़क के दोनों ओर पेड़ लगाए गए थे। सड़क अच्छी तरह से योजनाबद्ध थीएक अन्य नोट पर, सड़क ने सैनिकों और विदेशी आक्रमणकारियों के तेजी से आवागमन को आसान बनाया। इसने अफगान और फारसी आक्रमणकारियों के भारत के आंतरिक क्षेत्रों में लूटपाट की छापेमारी को तेज कर दिया, और बंगाल से उत्तर भारतीय मैदान में ब्रिटिश सैनिकों की यातयात साधन सुगम बनाया गया है।भारत   के   प्राचीन   ग्रंथों   में   जम्बूद्वीप   के   उत्तरी   भाग   का   नाम   उत्तरापथ है।    ‘ उत्तरापथ ’   को   उत्तरी   राजपथ   कहा   जाता   था ।   पूर्व   में   ताम्रलिप्तिका  ( ताम्रलुक )  से   पश्चिम   में   तक्षशिला   तक   और   उसके   बाद   मध्य   एशिया   के   बल्ख   तक   जाता   था   । उत्तरापथ   अत्यधिक   महत्वपूर्ण   व्यापारिक   मार्ग   था।     विभिन्न   क्षेत्रों   में   पत्थर ,  मोती ,  खोल ,  सोना ,  सूती   कपड़े   और   मसालों   के   विस्तार   के   कारण     और    क्षेत्रों   के   ग्रंथों   में  उत्तरापथ का   उल्लेख   है।   मदुरै   के   कपड़े   उपमहाद्वीप   में   प्रसिद्ध   थे। भारत   के   पूर्वी   तट   पर   समुद्री   बंदरगाहों   के   साथ   समुद्री   संपर्क   बढ़ने   के   कारण   मौर्य   साम्राज्य   के   दौरान   उत्तरापथ     का   महत्व   बढ़   गया   और      इस्तेमाल   व्यापार   के   लिए   किया  ब्रिटिश शासन का  गया।   मौर्य   काल   के   उत्तर   व्यापारिक   नगर ,  विदेशी   व्यापार   में   उत्तरापथ   की   भूमिका रही है। उत्तरापथ का उल्लेख ब्रिटिश शासक वाराणसी के जेनाथन डंकन ने अक्टूबर 1788 , श्री श चंद्रबसु ने 1897 , कौटिल्य का अर्थशास्त्र ,महाभारत , एरियन एनोवेसिस इंडिका ,कात्यायन , आदि अनेक  समृति ,मनुस्मृति ,ब्रिटिश गजेटियर और प्रसाद बेनी की पुस्तक  स्टेट इन एनशियट  इलाहाबाद 1923 में की गयी है।