गुरुवार, जून 20, 2024

सकारात्मक ऊर्जा का द्योतक संगीत

विश्व संगीत दिवस 21 जून 2024 के अवसर पर 
सकारात्मक ऊर्जा का द्योतक संगीत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
वेदों , स्मृति , संहिताओं एवं संगीत शास्त्रों में संगीत का महत्वपूर्ण स्थान है । प्रार्थना , उत्सव , भजन एवं युद्ध,  के समय इंसान संगीत  का उपयोग करता चला आया है। विश्व के विभिन्न संप्रदायों में बाँसुरी इत्यादि फूँक के वाद्य  यंत्रों  तार या ताँत के वाद्य (तत),चमड़े से मढ़े हुए वाद्य ठोंककर बजाने के वाद्य मिलते हैं। कर्णप्रिय संगीत की ध्वनि को नाद कहते नाद आहट नाद :जो नाद वस्तुओं के टकराने से उत्पन्न व आनाहट  नाद स्वयं उत्पन्न होता है । प्रगैतिहासिक काल से भारत में संगीत की समृद्ध परम्परा रही है। गिने-चुने देशों में ही संगीत की इतनी पुरानी एवं इतनी समृद्ध परम्परा पायी जाती है। ऐसा जान पड़ता है कि भारत में भरत के समय तक गान को पहले केवल गीत कहते थे। वाद्य में जहाँ गीत नहीं होता था, केवल दाड़ा, दिड़दिड़  शुष्क अक्षर होते थे । निर्गीत या बहिर्गीत कहते थे और नृत्त अथवा नृत्य की एक अलग कला थी।  धीरे धीरे गान, वाद्य और नृत्य तीनों का "संगीत" में अंतर्भाव हो गया - गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगतमुच्यते।भारत से बाहर  देशों में गीत और वाद्य को संगीत में गिनते हैं । नृत्य को कला मानते हैं। भारत में नृत्य को संगीत में केवल इसलिए गिन लिया गया कि उसके साथ बराबर गीत या वाद्य अथवा दोनों रहते हैं।  स्वर और लय की कला को संगीत कहते हैं। स्वर और लय गीत और वाद्य दोनों में मिलते हैं । नृत्य में लय है, स्वर नहीं। संगीत के अंतर्गत  गीत और वाद्य की चर्चा है। पुरातन संस्कृति में संगीत को साम कहा जाता था ।
भारतीय संगीत में संगीत के आदि प्रेरक भगवान शिव और माता  सरस्वती और ब्रह्मा जी  है।  मानव  उच्च कला को दैवी प्रेरणा एवं भूलोक में देवर्षि नारद के, बल पर, संगीत विकसित हुआ है। भारतीय संगीत का आदि रूप वेदों में मिलता है। वैदिक   काल के 2000 ई.पू. एवं  भारतीय संगीत का इतिहास  4000 ई.पू. प्राचीन है। वेदों में वाण, वीणा और कर्करि इत्यादि तंतु वाद्यों का उल्लेख  है। अवनद्ध वाद्यों में दुदुंभि, गर्गर इत्यादि का, घनवाद्यों में आघाट या आघाटि और सुषिर वाद्यों में बाकुर, नाडी, तूणव, शंख इत्यादि का उल्लेख है। यजुर्वेद में 30 वें कांड के 19वें और 20वें मंत्र में वाद्य बजानेवालों का उल्लेख  वाद्यवादन का व्यवसाय था। संगीत सामवेद में "स्वर" को "यम" व साम का संगीत से  साम को स्वर का पर्याय  थे। छांदोग्योपनिषद् में  प्रश्नोत्तर के रूप में स्पष्ट की गई है। "का साम्नो गतिरिति स्वर इति होवाच" (छा. उ. 1। 8। 4)। " उत्तर "स्वर"साम का "स्व" अपनापन "स्वर" है। "तस्य हैतस्य साम्नो य: स्वं वेद, भवति हास्य स्वं, तस्य स्वर एव स्वम्" (बृ. उ. 1। 3। 25) अर्थात् जो साम के स्वर को जानता है उसे "स्व" प्राप्त होता है। साम का "स्व" स्वर  है। वैदिक काल से प्रारम्भ भारतीय संगीत की परम्परा निरन्तर फलती-फूलती और समृद्ध होती रही। संगीत  ग्रन्थ लिखे गये है । प्राचीन संगीत सुमेरु, बवे डिग्री (बाबल या बैबिलोनिया), असुर (असीरिया) और सुर (सीरिया) का माना जाता है।  मंदिरों और राजमहलों पर उद्धृत वाद्यों से संगीत का  है।  वाद्य बलग्गु या बलगु  है।  विद्वान् का  अवनद्ध वाद्य लगाते व  धनुषाकार वीणा। एक तब्बलु वाद्य , धनुषाकार वीणा। , तब्बलु वाद्य होता था ।  डफ  मंदिरों पर   तत वाद्य मिला है जिसमें पाँच से सात तार तक होते थे। गिगिद नामक बाँसुरी  थी। बैबिलोनिया की  चक्रिकाओं में शब्दों के साथ अ, इ, उ इत्यादि स्वर लगे हुए  हैं । संगीतकार  के अनुसार संगीत लिपि या  स्वरलिपि थी।  वेद का सस्वर पाठ होता था ।  बैबिलोनिया में  "अ" स्वरित का चिन्ह था, "ए" विकृत स्वर का, "इ" उदात्त का "उ" अनुदात्त का। चीन में प्सात स्वरों का उपयोग करनेवाले  हैं। बौद्धों के अनुसार  संगीत पर  भारतीय संगीत का भी प्रभाव पड़ा है।संगीत पर सुमेरु - बैबिलोनिया इत्यादि के संगीत का प्रभाव पड़ा था ।  मंदिरों में गान  वाद्य  "किन्नर"थे। भारतीय संगीत के विकास में मगध साम्राज्य के सम्राट समुद्र गुप्त , मुगल काल में बादशाह अकबर शासन काल में तानसेन और बैजुबाबरा थे । बिहार में संगीत का चतुर्दिक विकास के लिए बेतिया घराना , दरभंगा घराना , डुमरांव व धनागाई घराना , गया घराना और बड़हिया घराने की स्थापना गोपाल मिश्र द्वारा 1790 ई. में कई गयी थी । धमार ,ख्याल , ठुमरी ,शास्त्रीय संगीत खण्ड का लोक गीत झूमर , सोहराई ,कर्मा झिझिया  लोक नृत्य संगीत है । विश्व में 1300 संगीत शैलियां है ।शास्त्रीय सुगम ,कर्नाटक संगीत ,लोक संगीत ,उप शास्त्रीय संगीत में ठुमरी ,टप्पा डोरी ,कजरी एवं आदिवासी संगीत है । विश्व में 230 मिलियन गाने है । पश्चमी शास्त्रीय संगीत के पिता जोहान सेबेस्टियन वाख ने 1685 ई. से 1750 ई. तक विकास संगीत का किया था । 13 वी शताब्दी ई. पू. का गान हुर्रियन ह्यूसन , यूनानी संगीत का देवता जीउस और लेटो के पुत्र अपोलो है ।कर्नाटक संगीत के जनक पुरंदर दस ,संगीत का रसज तानसेन ,नाट्य शास्त्र संगीत का जनक भरत मुनि है । बंगाल में रवींद्र संगीत , आगरा घराना ,ग्वालियर घराना , बनारस घराना , इंदौर घराना , जयपुर घराना ,किराना घराना , लखनऊ घराना  प्रसिद्ध है । मुजफ्फरपुर में बेतिया घराने की छाप प्रचलित हसि । स्वंर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा उषा किरण श्रीवास्तव द्वारा संगीत , नृत्य का प्रश्रय दिया गया है । स्मृतियों के अनुसार संगीत का रूप 3 लाख वर्ष पूर्व थी । प्रकृति संगीत , साम संगीत था ।
मिस्र देश का संगीत भी बहुत ही प्राचीन है।  मानव में संगीत देवी आइसिस अथवा देव थाथ द्वारा आया है। इनका प्रसिद्ध तत वाद्य बीन या बिण्त कहलाता था। मिस्र देश के लोग स्वर को हर्ब कहते थे। इनके मंदिर संगीत के केंद्र बन गए थे। अफलातून, जो मिश्र देश में अध्ययन के लिए गया था, कहता है, वहाँ के मंदिरों में संगीत के नियम ऐसी पूर्णता से बरते जाते थे कि कोई गायक वादक उनके विपरीत नहीं जा सकता था। कहा जाता है कि कोई 300 वर्ष ई.पू. मिस्र में लगभग 600 वादकों का एक वाद्यवृंद था जिसमें 300 तो केवल बीन बजानेवाले थे। इनके संगीत में कई प्रकार के तत, सुधिर, अवनद्ध और धन वाद्य थे। मिस्र से पाइथागोरस और अफलातून दोनों ने संगीत सीखा। यूनान के संगीत पर मिस्र के संगीत का बहुत  प्रभाव पड़ा है। यूरोप में सबसे पहले यूनान में संगीत एक व्यवस्थित कला के रूप में विकसित हुआ। भरत की मूर्छनाओं की तरह यहाँ भी कुछ "मोड" बने जिससे अनेक प्रकार की "धुने" बनती थी। यहाँ भी तत, सुषिर, अवनद्ध और धन वाद्य कई प्रकार के थे। यूरोप में पाइथागोरस पहला व्यक्ति हुआ है जिसने गणित के नियमों द्वारा स्वरों के स्थान को निर्धारित किया। 16वीं शती से यूरोप में संगीत का एक नई दिशा में विकास हुआ। इसे स्वरसंहति (हार्मनी) कहते हैं। संहति में कई स्वरों का मधुर मेल होता है, जैसे स, ग, प (षड्ज, गांधार, पंचम) की संगति। इस प्रकार के एक से अधिक स्वरों के गुच्छे को "संघात" (कार्ड) कहते हैं। एक संघात के सब स्वर एक साथ भिन्न भिन्न वाद्यों से निकलकर एक में मिलकर एक मधुर कलात्मक वातावरण की सृष्टि करते हैं। इसी के आधार पर यूरोप के आरकेष्ट्रा (वृंदवादन) का विकास हुआ है। स्वरसंहति विशिष्ट लक्षण है । पाश्चात्य संगीत पूर्वीय संगीत से भिन्न है।
प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व संगीत दिवस  मनाया जाता है। विश्व संगीत दिवस को "फेटे डी ला म्यूजिक" व "संगीत उत्सव" और संगीत समारोह कहा जाता है। विश्व के  110 देशों में भारत , जर्मनी, इटली, मिस्र, सीरिया, मोरक्को, ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, कांगो, कैमरून, मॉरीशस, फिजी, कोलम्बिया, चिली, नेपाल, फ्रांस और जापान में विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है। विश्व में  शांति और सद्भाव कायम करने के लिए फ्रांस मेंफ्रांस के संस्कृति मंत्री जैक लेने  प्रथम  बार 21 जून 1982 में प्रथम विश्व संगीत दिवस मनाया गया था। ज अमेरिका के संगीतकार योएल कोहेन ने वर्ष 1976 में संगीत  दिवस को मनाने की चर्चा की  थी। विश्व संगीत दिवस को विभिन्न देशों में भिन्न भिन्न संगीत   सेम्यूजिक का प्रोपेगैंडा तैयार करने के अलावा एक्सपर्ट व नए कलाकारों को इक्क्ठा करके एक मंच पर लाकर  संगीत और ललित कला को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विश्व के भारत में 500 संगीत विद्यालयों में 221 सरकार एवं 164 निजी  , बिहार में 3 संगीत विद्यालय , अमेरिका में 20 संगीत विद्यालय है ।1901 ई. में विष्णु दिगंबर पॉक्सकर द्वारा लाहौर में कई गई थी 1921 ई. मेजेक्स स्कूल ऑफ म्यूजिक , न्यूयार्क में जुलियाई स्कूल न्यूयार्क , वर्कली कॉलेज ऑफ म्यूजिक बोस्टन , सरस्वती संगीतालय इलाहाबाद , बड़ौदा स्टेट म्यूजिक स्कूल , ईस्टमैन स्कूल ऑफ म्यूजिक, गंधर्व संगीत महाविद्यालय की स्थापना आदि संगीत विद्यालयों हुई है ।
करपी , अरवल , बिहार 804419
9472987491 

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