सोमवार, जून 02, 2025

मैं जीवनधारा नदी हूँ

बिहार की नदियाँ: विलुप्ति के कगार पर एक विस्तृत विश्लेषण
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
बिहार, जिसे "नदियों का प्रदेश" कहा जाता है, आज एक गंभीर पर्यावरणीय और पारिस्थितिक संकट का सामना कर रहा है। राज्य की कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण नदियाँ धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गई हैं। यह केवल जलस्रोतों का सूखना नहीं, बल्कि एक सभ्यतागत क्षति है जो राज्य के पर्यावरण, कृषि, जैव विविधता और मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डाल रही है। 
बिहार की विलुप्त होती नदियाँ और उनके भयावह कारण 
निर्माण भारती के प्रबंध संपादक सत्येन्द्र कुमार पाठक ने सर्वेक्षित नदियों एवं विलुप्त हो रही नदियों तथा विलुप्त हुई नदियों पर समीक्षात्मक सर्वेक्षण से पता चला है कि बिहार की कई छोटी और ऐतिहासिक नदियाँ, जैसे दाहा, कदाने, जमुआरी, कंचन, धर्मावती, चंद्रभागा, माही, तेल, सोंधी, धमती, खनूआ नाला, नेउरा नाला और हिरण्यबाहु (जिसे 'बह' भी कहा जाता है), अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। इन नदियों के विलुप्त होने के पीछे कई जटिल और अंतर्संबंधित कारण हैं:
प्रदूषण की विकराल समस्या: यह नदियों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाला अनुपचारित कचरा और औद्योगिक अपशिष्ट सीधे नदियों में बहाया जा रहा है। कृषि में रसायनों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग भी बारिश के पानी के साथ बहकर नदियों तक पहुँचता है, जिससे पानी दूषित होता है। यह न केवल जलीय जीवों के लिए बल्कि उन मनुष्यों के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य खतरे पैदा करता है जो इन नदियों के पानी पर निर्भर करते हैं। दाहा नदी, जो कभी गंडक और सरयू से जुड़ी थी, आज प्रदूषण के कारण खतरे में है।
जलकुंभी का असीमित विस्तार: जलकुंभी एक आक्रामक खरपतवार है जो नदियों की सतह पर तेजी से फैलता है। यह सूर्य के प्रकाश को पानी तक पहुँचने से रोकता है, जिससे जलीय पौधों का प्रकाश संश्लेषण बाधित होता है। यह पानी में ऑक्सीजन के स्तर को कम करता है, जिससे मछलियों और अन्य जलीय जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। कदाने नदी, जो मुजफ्फरपुर के लिए महत्वपूर्ण जलस्रोत थी, जलकुंभी और प्रदूषण के कारण लगभग विलुप्त हो चुकी है।
अनियंत्रित मानव हस्तक्षेप:बांधों और जलाशयों का निर्माण: नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर रहा है। यद्यपि ये जल विद्युत और सिंचाई के लिए आवश्यक हैं, इनका अनियोजित निर्माण और प्रबंधन नदियों के पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचाता है और उनके जलमार्ग को बाधित करता है, जिससे पानी का बहाव कम हो जाता है।
अत्यधिक जल दोहन: कृषि (विशेषकर जल-गहन फसलें) और उद्योगों द्वारा अत्यधिक जल दोहन नदियों के पानी की मात्रा को कम कर रहा है। अतिक्रमण: नदी के किनारों और बाढ़ के मैदानों पर अवैध अतिक्रमण और निर्माण कार्य नदियों के प्राकृतिक स्वरूप को बिगाड़ रहे हैं, जिससे उनके जल निकासी मार्ग संकीर्ण हो रहे हैं और उनकी जल धारण क्षमता कम हो रही है। रेत खनन: अवैध और अत्यधिक रेत खनन नदी के तल को गहरा करता है, जिससे भूजल स्तर गिरता है और नदी का प्रवाह बाधित होता है।भूजल स्तर में भारी कमी: भूमिगत जल का अत्यधिक उपयोग, विशेषकर सिंचाई और घरेलू आवश्यकताओं के लिए, भूजल स्तर को लगातार कम कर रहा है। कई नदियाँ, खासकर छोटी नदियाँ, भूजल पर निर्भर करती हैं। जब भूजल स्तर गिरता है, तो ये नदियाँ सूखने लगती हैं, जिससे वे बारहमासी से बरसाती नदियों में बदल जाती हैं। हिरण्यबाहु नदी (बह), जो औरंगाबाद जिले के गोह, हसपुरा और अरवल जिले के करपी, कलेर, अरवल तथा पटना जिले के पालीगंज में बहती थी, इसी कारण विलुप्त हो चुकी है।
नदी के स्वरूप से छेड़छाड़: मुख्य नदियों पर बड़े बांधों के निर्माण से उनकी सहायक नदियों और वितरिकाओं (छारन) का प्रवाह प्रभावित होता है। जब मुख्य नदी का प्रवाह नियंत्रित होता है, तो उससे निकलने वाली छोटी नदियाँ और नाले पानी की कमी से जूझते हैं, जिससे उनकी स्थिति बिगड़ जाती है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: वर्षा के पैटर्न में अप्रत्याशित बदलाव, जैसे अनियमित और कम वर्षा या अत्यधिक बाढ़, तथा बढ़ते तापमान भी नदियों के सूखने में योगदान कर सकते हैं।
बिहार के प्रभावित जिले और नदियों की स्थिति
सर्वेक्षण ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि बिहार के कई जिले, जैसे अरवल, जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, नवादा, पटना, नालंदा, की कई नदियाँ, जो कभी बारहमासी थीं, अब केवल बरसाती नदियाँ बनकर रह गई हैं। यह नदियों के अस्तित्व पर मंडराते खतरे का एक स्पष्ट संकेत है। जिलेवार कुछ प्रमुख नदियाँ जिनकी स्थिति विशेष रूप से नाजुक है या जो विलुप्त होने के खतरे में हैं:
अरवल, औरंगाबाद, पटना: गंगा (मुख्य नदी), सोन, पुनपुन, लोई, हेलहा, बटाने, रामरेखा, अदरी, 
1.पटना : गंगा नदी  , सोन नद , पुनपुन नदी , लोई नदी 
2. अरवल : औरंगाबाद जिले के गोह , हसपुरा एवं दाउदनगर प्रखण्ड क्षेत्र ,  अरवल जिले के करपी ,                कलेर , अरवल , पटना जिले के पालीगंज प्रखण्ड क्षेत्र में सोन नद और पुनपुन नदी के                     मध्य क्षेत्र में अवस्थित  विलुप्त हिरन्यबाहु नदी अवशेष बह , जम्मभोरा नदी विलुप्त                       नदी  , पुनपुन नदी , सोन नद।
3. औरंगाबाद : पुनपुन , सोन , बटाने , हेलहा , अदरी , औरंगा, मदार, लोकाइन , रामरेखा नदी ।
4. जहानाबाद: फल्गु , दरधा, जमुनी, बल्दैया, नरही, जलवर, गंगहर।
5. गया: फल्गु, मोहाना, निरंजना, मोरहर, सोरहर, जमुनी, भूरहा, बुढ़िया नदी ।
6. नवादा: सकरी, खुरई, पंचाने, मुसरीबाय, तिलैया, ककोलत नदी ।
7. नालंदा: लोकाइन, मोहने, जिरामन, कुंभारी, गोइठवा, फल्गु नदी ।
8. भोजपुर: कुम्हारी, चेर, बनास।
9. रोहतास: दुर्गावती, बंजारी, कोयल, सूरा, ठोरां।
10.  कैमूर: कर्मनाशा, सुवर्ण, सूअरा।
11. बक्सर: गंगा ,  होरा।
12 . पश्चिमी चंपारण: नारायणी नदी , बागमती ,बूढ़ी गंडक ,लालबाकिया ,तिलावे , कंचना , भोतिया                              ,तिउर , धनौती पंचनद, मनोर, भापसा, कपन, सिकरहना, सदा बाही, मसान,                                हड़बोरा, पंडाई,   दोहरम।
13. पूर्वी चंपारण: धनौती, छोटी गंडक, नारायणी , गंडक ,, सिकरहना ,लालबाकिया  , तिलावे ,  
                          कंचन,भोतिया ,तिउर धनौती नदी ।
14 . बेगूसराय: गंगा , बलान, बूढ़ी गंडक, बैती, बाया, कोसी, करेहा, चन्ना, मान, कचना, मोनरिया।
15. मुंगेर: गंगा , मान, बेलाहरणी, महाना।
16. खगड़िया: बूढ़ी गंडक, बागमती, कोसी, कमला, करेह, कालिकोसी।
17. सीतामढ़ी: बागमती, लखनदेई, अघवारा, झिम, लाल बकेया, चकन्हा, जमु ने, सिपरिधार, कोला, छोटी बागमती, अधवारा।
18. वैशाली: गंगा नदी ,  बाया, नून।
19. शिवहर: बागमती, बूढ़ी गंडक।
20 . लखीसराय: किउल, हरुहर।
21 .सारण: गंगा , गंडक , घाघरा।
22. गोपालगंज: झारही, खानवा, दाहा, खनुया, बाण गंगा, सोना, छाड़ी, धमाई, स्याही, घोघारी।
23. दरभंगा: बागमती, कोसी, कचला, करेह।
24. भागलपुर: गंगा, कोसी, चंदन।
25. मधुबनी: कमला, बलान, कोसिधार, मोनी, भुतही बलान, धौस।
26 . मधेपुरा: कोसी, सुरसर, परमान।
27. बांका: चांदन, बेलाहरणी, बहुआ, ओढ़नी, चीर मंदार, सुखनिया।
28. जमुई: उलाई, किउल, बुराही, अजय, बसार, झांझी।
29. बगहा: गंडक।
30. कटिहार: गंगा, कोसी, महानंदा, रिग्गा, बारडी, कारी।
31. पूर्णिया: कोसी, महानंदा, सौरा, सुवारा, करायी, कोली, पनार, कनकई, दास, बकरा, परमान।
32 .किशनगंज: महानंदा, केकई, भेंक, मेची, रतुआ।
33.  सहरसा: कोसी, घेमरा, तिलाने।
34. समस्तीपुर: बूढ़ी गंडक, बाया, कोसी, करेह, झममरी, गंगा, बलान।
35. सुपौल: कोसी, तीतियुगा, छैमरा, काली, तिलावे भेंगा, मिचैया, सुरसर।
36 . सिवान: घाघरा, गंडकी, धमती, झारही, दाहा, सियाही, निकारी और सोना नदियाँ।
37 . मुजफ्फरपुर : गंडक , बूढ़ी गंडक , बागमती , लखनदेई , फरदो , कदाने , जमुआरी ,  नून नदी । 38 . अररिया :  कोसी , सुबारा ,बाली ,परनार ,कोली नदी ।
कनदियों को बचाने के लिए आवश्यक और त्वरित कदम : इन नदियों को पुनर्जीवित करने और उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें सरकार, गैर-सरकारी संगठन, स्थानीय समुदाय और हर नागरिक की भागीदारी अनिवार्य है: ।शहरी और औद्योगिक कचरे तथा सीवेज को नदियों में डालने पर सख्त प्रतिबंध लगाना। आधुनिक अपशिष्ट उपचार संयंत्रों का निर्माण और मौजूदा संयंत्रों का सुदृढीकरण तथा उनका प्रभावी संचालन सुनिश्चित करना। कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय जैविक खेती को बढ़ावा देना।औद्योगिक इकाइयों पर प्रदूषण मानकों का कड़ाई से पालन कराना।जलकुंभी का वैज्ञानिक नियंत्रण: जलकुंभी को नियमित रूप से नदियों से हटाने के लिए यांत्रिक और जैविक तरीकों का उपयोग करना।जलकुंभी के प्रसार को रोकने के लिए उसके पारिस्थितिक नियंत्रण पर शोध करना। मानव हस्तक्षेप में कमी और नियोजन: नदियों के प्राकृतिक जलमार्गों को बाधित करने वाले बांधों और जलाशयों के अनियोजित निर्माण से बचना। किसी भी नए निर्माण से पहले व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) कराना। नदी के किनारों पर अतिक्रमण हटाने के लिए सख्त अभियान चलाना और उन्हें हरित पट्टी (ग्रीन बेल्ट) के रूप में विकसित करना।जल-गहन कृषि पद्धतियों को हतोत्साहित करना और किसानों को ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर जैसी जल-बचत तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।अवैध रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना और वैध खनन को भी नियंत्रित और निगरानी में रखना।भूजल संचयन और पुनर्भरण:वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना, विशेषकर शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में।प्राचीन तालाबों, झीलों और अन्य जल निकायों का जीर्णोद्धार करना ताकि वे भूजल पुनर्भरण में सहायता कर सकें।भूजल के अत्यधिक दोहन पर नियंत्रण के लिए नीतियां बनाना और उनका सख्ती से पालन कराना।जन जागरूकता और सक्रिय भागीदारी: स्थानीय समुदायों को नदियों के महत्व, उनके पारिस्थितिकीय संतुलन और उनके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में शिक्षित करना।'जनभागीदारी' कार्यक्रमों के तहत स्थानीय लोगों को नदियों की सफाई, निगरानी और वृक्षारोपण अभियानों में सक्रिय रूप से शामिल करना।।नदी उत्सव और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना। कानूनी और नीतिगत सुधार तथा प्रभावी क्रियान्वयन:नदियों के संरक्षण के लिए मजबूत कानूनी ढांचे और नीतियों को लागू करना।पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करना।
नदी प्रबंधन और संरक्षण के लिए एक एकीकृत प्राधिकरण का गठन करना। बिहार की नदियाँ केवल भौगोलिक विशेषताएँ नहीं हैं, बल्कि ये राज्य की जीवनरेखा हैं, जो उसकी संस्कृति, अर्थव्यवस्था, कृषि और जैव विविधता को परिभाषित करती हैं। इन नदियों का विलुप्त होना बिहार के भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी है। जीवनधारा नमामी गंगे और अन्य संगठनों द्वारा किया गया यह सर्वेक्षण एक महत्वपूर्ण पहला कदम है, लेकिन अब सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इन निष्कर्षों के आधार पर तत्काल और ठोस कार्रवाई की जाए। सरकार, गैर-सरकारी संगठन, स्थानीय समुदाय और प्रत्येक नागरिक को मिलकर काम करना होगा ताकि इन अमूल्य नदियों को पुनर्जीवित किया जा सके और आने वाली पीढ़ियों के लिए उनके अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सके। यह केवल नदियों को बचाने की बात नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य को बचाने की बात है।