शुक्रवार, सितंबर 05, 2025

आस्था का द्योतक है झिझिया लोकनृत्य

बज्जि एवं मिथिला की पहचान और आस्था का प्रतीक लोक नृत्य झिझिया 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
झिझिया, बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र का एक प्राचीन और प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि इस क्षेत्र की समृद्ध आध्यात्मिक और कृषि प्रधान संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। यह विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि और दशहरा के उत्सवों के दौरान किया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य देवी दुर्गा को प्रसन्न करना और समाज को बुरी शक्तियों से बचाना है। झिझिया नृत्य का इतिहास सदियों पुराना है और यह बज्जि एवं  मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न अंग है। यह नृत्य माता सीता के जन्मस्थान सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, वैशाली और बज्जिकाँचल जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से लोकप्रिय है। लोक कथाओं के अनुसार, इस नृत्य का संबंध  मध्यप्रदेश का मालवा का तथा बज्जि का राजा चित्रसेन और उनकी रानी के प्रेम प्रसंगों से भी है।
झिझिया केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसका गहरा संबंध कृषि से भी है। किसान अच्छी फसल और पर्याप्त वर्षा के लिए देवताओं से प्रार्थना करने हेतु यह नृत्य करते थे। इसलिए, यह नृत्य बज्जिकाँचल एवं  मिथिलांचल की आध्यात्मिक और कृषि प्रधान दोनों संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करता है। झिझिया नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं और कुंवारी लड़कियों द्वारा किया जाता है। इसकी सबसे अनूठी और आकर्षक विशेषता यह है कि नृत्यांगनाएं अपने सिर पर छेद वाला मिट्टी का घड़ा (मटका) रखती हैं, जिसके अंदर एक जलती हुई दीया रखा जाता है। यह दृश्य न केवल देखने में अद्भुत लगता है, बल्कि इसका गहरा प्रतीकात्मक महत्व भी है।
जलता हुआ दीया: यह बुराई पर अच्छाई की विजय और अज्ञानता के अंधकार को दूर करने वाले ज्ञान का प्रतीक है।
छेद वाला मटका: यह नृत्यांगनाओं की प्रार्थना का प्रतीक है, जिसके माध्यम से वे बुरी आत्माओं और नकारात्मक ऊर्जाओं को अपने परिवार और समाज से दूर करने की कामना करती हैं। यह नृत्य प्रत्येक वर्ष अश्विन शुक्ल प्रतिपदा (कलश स्थापना) के दिन से शुरू होकर विजयादशमी तक लगातार चलता रहता है।
झिझिया नृत्य की सामाजिक और धार्मिक भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह देवी दुर्गा के प्रति महिलाओं के समर्पण का प्रतीक है और यह माना जाता है कि इस नृत्य के माध्यम से वे अपने परिवार और समाज को डायनों, काले जादू और अन्य बुरी शक्तियों से बचाती हैं। यह नृत्य समाज में महिलाओं की भागीदारी को दर्शाता है और उन्हें एक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है। यह एक सामूहिक नृत्य है जिसमें महिलाएं एक घेरा बनाकर नाचती हैं, जिससे सामुदायिक भावना और एकजुटता को बढ़ावा मिलता है।  झिझिया नृत्य के साथ पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें देवी-देवताओं की महिमा और लोक कथाओं का वर्णन होता है। इन गीतों को लय और ताल देने के लिए ढोलक और मृदंग जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता है। इन वाद्ययंत्रों की थाप पर महिलाएं लयबद्ध तरीके से नृत्य करती हैं, जिससे पूरा वातावरण भक्ति और उत्साह से भर जाता है।आधुनिकता के इस दौर में, झिझिया नृत्य अपनी पहचान कुछ हद तक खोता जा रहा है, लेकिन आज भी यह मिथिला की लोक संस्कृति की एक महत्वपूर्ण पहचान बना हुआ है। दुर्गा पूजा के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में, खासकर कुंवारी लड़कियां इस नृत्य को पूरी लगन और उत्साह के साथ करती हैं, जिससे यह प्राचीन कला जीवित बनी हुई है। झिझिया सिर्फ एक नृत्य नहीं, बल्कि बज्जिकाँचल और  मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर, आस्था और सामाजिक एकजुटता का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि कैसे कला, धर्म और परंपराएं एक साथ मिलकर एक सशक्त समाज का निर्माण कर सकती हैं। यह नृत्य भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धि का एक अनुपम उदाहरण है।

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