विंध्य का गौरव, जहाँ इतिहास, प्रकृति और प्रगति का संगम है रीवा
सत्येन्द्र कुमार पाठक
मध्य प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी छोर पर स्थित रीवा, जिसे कभी 'विंध्य प्रदेश की राजधानी' होने का गौरव प्राप्त था, आज भी अपनी विशिष्ट पहचान, गौरवशाली इतिहास, और मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य के कारण भारतीय पर्यटन और इतिहास के मानचित्र पर चमकता है। लगभग 6,240 वर्ग किलोमीटर के त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैला यह जिला, केवल पत्थरों और नदियों का संगम नहीं, बल्कि सफेद शेरों की जन्मभूमि और भारत की आधुनिक प्रगति का एक ज्वलंत उदाहरण भी है। रीवा की सबसे बड़ी और विश्वव्यापी पहचान है सफेद शेर पुण्य भूमि है जहाँ के बघेला राजाओं ने न केवल विश्व का पहला सफेद शेर पकड़ा, बल्कि उसे पाला और उसका संरक्षण किया। इस शाही विरासत का केंद्र था गोविंदगढ़ किला, जहाँ सर्वप्रथम सफेद शेर को रखा गया था। रीवा का वह महान गौरवशाली प्रतीक था – 'मोहन'। आज विश्व के हर कोने में जितने भी सफेद शेर पाए जाते हैं, वे सभी इसी 'मोहन' के वंशज हैं। इस अमूल्य विरासत को समर्पित करते हुए, भारत सरकार ने 1987 में एक डाक टिकट भी जारी किया था। इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए, महाराजा मार्तण्ड सिंह बघेल व्हाइट टाइगर सफारी एवं चिड़ियाघर मुकुंदपुर रीवा और सतना की सीमा पर स्थित है। रीवा शहर से केवल 13 कि.मी. की दूरी (निपनिया-तमरा रोड) पर होने के कारण यह सतना की तुलना में रीवा से अधिक सुगम और नजदीक है, जो रीवा को सही मायनों में 'लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर' सिद्ध करता है।
रीवा का इतिहास बघेला राजपूतों के शौर्य और प्राचीन धर्म-संस्कृति की गाथा8ओं से भरा पड़ा है। रीवा शहर बिछिया और बीहर नदी के पवित्र संगम पर बसा है, और इसी संगम की गोद में खड़ा है सदियों पुराना रीवा किला। इस किले की नींव मूल रूप से 1539 ई. में शेरशाह सूरी के पुत्र जलाल खान द्वारा रखी गई थी, लेकिन इसका निर्माण 1617 ई. में राजा विक्रमदित्य द्वारा पूर्ण कराया गया।
रीवा किले का मुख्य भाग बघेला म्यूजियम कहलाता है, जो बघेला राजवंश की समृद्ध सांस्कृतिक और शाही विरासत को दर्शाता है। यह संग्रहालय अतीत के उन गौरवशाली क्षणों को जीवंत करता है जब रीवा विंध्य प्रदेश का गौरव था
रीवा किले के भीतर स्थित, भगवान महामृत्युंजय का मंदिर इस क्षेत्र का एक विशिष्ट धार्मिक केंद्र है। यहाँ स्थापित भगवान शिव का 1008 छिद्रों वाला शिवलिंग भारत में इकलौता है, जो इसे अत्यंत दुर्लभ और पूजनीय बनाता है। यह मंदिर बिछिया और बीहर नदी के संगम पर होने के कारण इसकी धार्मिक महत्ता और भी बढ़ जाती है। रीवा नगर के पूर्व दिशा में स्थित चिरहुला नाथ हनुमान जी का मंदिर एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है। इसका निर्माण महाराजा भाव सिंह के शासनकाल में हुआ था। मान्यता है कि इसकी स्थापना हनुमान जी की कृपा प्राप्त हनुमान दास ने की थी। यह मंदिर परिसर 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों, हवन मंडप, और रामसागर व खेमसागर हनुमान मंदिर से सुसज्जित है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को यहाँ हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। पचमठा मंदिर आदि-शंकराचार्य द्वारा अनुग्रहित माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने यहाँ कुछ दिन निवास किया था, और इसे उनके द्वारा स्थापित पांचवा मठ माना जाता है। देउर कोठा रीवा की प्राचीनता को दर्शाता एक अत्यंत महत्वपूर्ण बौद्ध स्तूप स्थल है। इसका निर्माण महान सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था, जो रीवा को मौर्यकालीन इतिहास से भी जोड़ता है।
रीवा का पठारीय क्षेत्र अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। कैमोर और विंध्याचल की पहाड़ियों से उतरने वाली नदियाँ यहाँ कई शानदार जलप्रपातों का निर्माण करती हैं, जो इसे एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल बनाते हैं। रीवा की जीवनरेखाएँ टोंस, बीहर और बिछिया नदियाँ हैं। रीवा के प्रमुख जलप्रपात, जो विंध्याचल की प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाते है। चचाई जलप्रपात यह टोंस व तामस नदी की सहायक बीहर नदी पर स्थित है। यह रीवा शहर से लगभग 31 कि.मी. दूर मऊगंज में है। बहुती जलप्रपात यह जिले का एक अन्य प्रसिद्ध और दर्शनीय जलप्रपात है। केंवटी जलप्रपात रीवा का एक महत्वपूर्ण जलप्रपात, जो 'लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर' की पहचान से जुड़ा है।।पुरवा जलप्रपात रीवा के पर्यटन स्थलों में शामिल एक और आकर्षक जलप्रपत है।रीवा केवल अतीत के गौरव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की प्रगति में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। एशिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क: रीवा की गुढ़ तहसील की बदवार पहाड़ियों पर एशिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क (750 MW) बनाया गया है। इसका उद्घाटन 10 जुलाई 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था। यह पार्क न केवल रीवा के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का विषय है, क्योंकि इससे उत्पन्न होने वाली बिजली की आपूर्ति दिल्ली मेट्रो को भी की जातीहै।
हिंदी और बघेली भाषीय रीवा की पहचान केवल इतिहास और प्रगति से नहीं है, बल्कि यहाँ की विशिष्ट कला और संस्कृति से भी है। रीवा में सुपाड़ी से बने खिलौने और मूर्तियाँ विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। यह कला यहाँ के कारीगरों की अद्भुत शिल्प कौशल को दर्शाती है।।रीवा की समृद्ध संस्कृति का आधार यहाँ की मुख्य बोली बघेली भाषा है, जो इस क्षेत्र के बघेल और वरग्राही परिहार राजपूतों के शौर्य और गोंड तथा कोल आदिवासियों के मूल निवास के साथ-साथ एक समृद्ध भौगोलिक-सांस्कृतिक संगम का निर्माण करते है। रीवा में कई अन्य महत्वपूर्ण स्थल भी हैं जो इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं:गोविंदगढ़ किला: गोविंदगढ़ में स्थित, यहाँ पहला सफेद शेर रखा गया था। यहाँ एक बड़ा तालाब भी है, जिसे भोपाल के बाद दूसरा सबसे बड़ा माना जाता है।।देवतालाब: भगवान शिव का एक अद्भुत मंदिर जो एक ही पत्थर से बना हुआ है।लक्ष्मणबाग धाम: एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र जहाँ चारो धाम के देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा की गई है।।ढुढेश्वर नाथ मंदिर: गुढ़, रीवा में स्थित।रानी तालाब: रीवा शहर में स्थित एक प्रसिद्ध स्थल। शारदा माता मंदिर: बुड़वा मन्दिर है।।बसामन मामा मंदिर, साईं मंदिर, वैष्णवी देवी मंदिर और पडुई हनुमान मंदिर तमरा भी यहाँ के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में शामिल हैं।
साहित्य का केंद्र: अखिल भारतीय अधिवेशन 2025 - रीवा की भूमि केवल इतिहास और पर्यटन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह साहित्य और ज्ञान का भी केंद्र है। अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 17वाँ अखिल भारतीय अधिवेशन 2025 रीवा के कृष्णा राजकपूर ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया था (7, 8, 9 नवंबर 2025)।
इस महाधिवेशन में, साहित्यकार और इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने भी बिहार से रीवा तक की यात्रा की, जहाँ उन्हें उनकी पुस्तक 'सम्मानित साहित्यकार' का लोकार्पण कवियित्री डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव, जी एन भट्ट, डॉ. रेणु मिश्रा, और डॉ. संगीता सागर जैसी विभूतियों द्वारा किया गया। हरियाणा के कवि डॉ. त्रिलोक चंद फतेहपुरी, महिला कॉलेज आरा की प्राध्यापिका डॉ रेणु मिश्रा , डॉ. स्नेहलता द्विवेदी, और ज्योति सिन्हा को भी इसी पुस्तक से सम्मानित किया गया। महाधिवेशन का उद्घाटन माननीय पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुशील चंद्र द्विवेदी मधुवेश ने किया। इस दौरान, साहित्य परिक्रमा त्रैमासिक पत्रिका में सत्येन्द्र कुमार पाठक का आलेख 'स्वयं की खोज से ब्रह्मांड की पहचान' भी भेंट किया गया। यह साहित्यिक आयोजन रीवा को राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण बौद्धिक केंद्र के रूप में स्थापित करता है।
रीवा, जो 24°18' और 25°12' उत्तरी अक्षांश तथा 81°2' और 82°18' पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है, वास्तव में इतिहास, प्रकृति, और आधुनिकता का एक अद्भुत संगम है। यह 'लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर' केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि विंध्य के गौरव, बघेल शौर्य और प्रगतिशील भारत की एक सुंदर कहानी है।
विंध्य की ओर एक साहित्यिक यात्रा: रीवा के श्वेत गौरव और बौद्धिक संगम का संस्मरण
नवंबर 2025 का महीना, मौसम में हल्की ठंडक और मन में एक साहित्यिक उत्साह लिए हुए था। गंतव्य था 'लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर'—मध्य प्रदेश का गौरव रीवा, जहाँ अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 17वाँ अखिल भारतीय अधिवेशन आयोजित होने जा रहा था। मेरे लिए, यह केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम में भाग लेना नहीं था, बल्कि विंध्य क्षेत्र के उस गौरवशाली इतिहास, प्रकृति और संस्कृति को छूने का अवसर था, जिसका बखान मैंने पुस्तकों में पढ़ा था । मेरी यात्रा 06 नवंबर 2025 को बिहार राज्य के अरवल जिले के करपी से शुरू हुई, जिसके उपरांत मैं जहानाबाद होते हुए पटना रेलवे स्टेशन की ओर अग्रसर हुआ। रीवा तक का मार्ग जटिल, पर रोमांच से भरा था—बस से जहानाबाद, फिर ट्रेन से सतना, और अंत में सतना से रीवा के लिए स्थानीय बस का सफर। पटना रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में ही यात्रा का पहला सुखद अध्याय जुड़ गया। वहाँ, 'दिव्य रश्मि' (हिंदी मासिक) के संपादक डॉ. राकेश दत्त मिश्र द्वारा मेरी पुस्तक 'सम्मानित साहित्यकार' और पत्रिका का लोकार्पण किया गया। यह क्षण यात्रा के आरंभ में ही एक सम्मान और ऊर्जा का संचार कर गया।
अगला पड़ाव पाटलिपुत्र जंक्शन था, जहाँ से मुजफ्फरपुर-सतना जाने वाली ट्रेन पकड़नी थी। 06 नवंबर की रात्रि में ट्रेन के डिब्बे में भी साहित्यिक ऊष्मा बनी रही। यहाँ स्वर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा कवयित्री डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव, 'निर्माण भारती' (हिंदी पाक्षिक) के संपादक जी एन भट्ट, महिला कॉलेज आरा की प्राध्यापिका डॉ. रेणु मिश्रा, और भारतीय जीवन बीमा की सहायक उप महाप्रबंधक डॉ. संगीता सागर जैसी साहित्यिक विभूतियाँ साथ थीं। इन्हीं के कर-कमलों से चलती ट्रेन में मेरी पुस्तक 'सम्मानित साहित्यकार' का पुनः लोकार्पण हुआ। एक पुस्तक का दो बार लोकार्पण होना, वह भी सफर के बीच, अपने आप में अविस्मरणी है।
अगले दिन, सतना से बस द्वारा रीवा पहुँचकर मैंने निराला नगर अवस्थित सरस्वती शिक्षा विद्यालय के रामानुज कक्ष में तीन दिनों (7, 8, 9 नवंबर) के लिए अपना निवास स्थान बनाया। रीवा की माटी पर कदम रखते ही एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्पंदन महसूस हुआ। यह शहर बिछिया और बीहर नदी के संगम पर बसा है, जिसकी महत्ता तुरंत ही मन को शांति प्रदान करती है। अधिवेशन का केंद्र था भव्य कृष्णा राजकपूर ऑडिटोरियम। महाधिवेशन का उद्घाटन माननीय पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुशील चंद्र द्विवेदी मधुवेश ने किया। सभागार में ज्ञान और साहित्य की गंगा बह रही थी। इस मंच पर हरियाणा के कवि एवं साहित्यकार डॉ. त्रिलोक चंद फतेहपुरी, डॉ. स्नेहलता द्विवेदी, और ज्योति सिन्हा जैसे विशिष्ट व्यक्तियों को मेरी पुस्तक 'सम्मानित साहित्यकार' से सम्मानित करने का अवसर प्राप्त हुआ, जो मेरे लिए निजी गौरव का विषय था। अधिवेशन के दौरान, मुझे अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास की त्रैमासिक पत्रिका 'साहित्य परिक्रमा 2025' में मेरे द्वारा लिखित आलेख 'स्वयं की खोज से ब्रह्मांड की पहचान' की प्रति, साथ ही 'संघ साहित्य प्रवाह' और 'पुण्य क्षेत्रे रेवा खण्डे' नामक भेंट प्राप्त हुई, जिसने मेरे वैचारिक कोष को समृद्ध है।
साहित्यिक व्यस्तताओं के बीच, रीवा के असली गौरव—सफेद शेरों की विरासत—को देखना अनिवार्य था। रीवा का सबसे बड़ा गौरव, सफेद शेर 'मोहन' की यादें आज भी यहाँ की हवाओं में हैं। यह जानकर रोमांच हुआ कि विश्व के सभी सफेद शेरों का वंश यहीं की देन है। हम महाराजा मार्तण्ड सिंह बघेल व्हाइट टाइगर सफारी एवं चिड़ियाघर मुकुंदपुर पहुँचे। रीवा शहर से केवल 13 कि.मी. दूर होने के कारण यह यात्रा काफी सुगम रही। सफेद शेरों के संरक्षण का यह केंद्र उस इतिहास को जीवंत करता है जब बघेला राजाओं ने 'मोहन' को पकड़ा और पाला था। गोविंदगढ़ किले को देखना भी एक अनुभव रहा, जहाँ पहला सफेद शेर रखा गया था और जिसका बड़ा तालाब (भोपाल के बाद दूसरा सबसे बड़ा) आज भी शांत जल लिए खड़ा है ।
प्राकृतिक और धार्मिक विरासत का अन्वेषण - रीवा की पठारी भूमि कैमोर और विंध्याचल की पहाड़ियों से घिरी हुई है, जिसके कारण यह क्षेत्र मनमोहक जलप्रपातों का खजाना है। हालांकि समय कम था, लेकिन चचाई जलप्रपात, बहुती जलप्रपात, केंवटी जलप्रपात और पुरवा जलप्रपात जैसे प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में सुनकर ही मन प्रफुल्लित हो गया। टोंस व तामस की सहायक बीहर नदी पर स्थित चचाई जलप्रपात को देखने की प्रबल इच्छा थी, जो रीवा से 31 किमी दूर मऊगंज में है। धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों में, रीवा किले के भीतर स्थित महामृत्युंजय मन्दिर का दर्शन किया, जहाँ भारत का इकलौता 1008 छिद्रों वाला विशिष्ट शिवलिंग स्थापित है। रीवा नगर के पूर्व दिशा में स्थित सिद्धपीठ चिरहुला नाथ हनुमान जी मंदिर की शांति और 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों के दर्शन ने मन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए प्राचीन देउर कोठार बौद्ध स्तूपों को देखकर इस भूमि की ऐतिहासिक गहराई का अनुमान लगा। पचमठा मन्दिर, जहाँ आदि-शंकराचार्य ने निवास किया था, उस आध्यात्मिक परंपरा को दर्शाता है जो सदियों से इस क्षेत्र में प्रवाहित है।
रीवा की यह यात्रा—एक साहित्यकार के लिए साहित्यिक अधिवेशन का केंद्र, एक इतिहासकार के लिए बघेला राजवंश और सफेद शेरों की गाथा, और एक प्रकृति प्रेमी के लिए विंध्य की नदियों और जलप्रपातों का वरदान—एक संपूर्ण और अविस्मरणीय अनुभव थी। 9 नवंबर 2025 को अधिवेशन की समाप्ति के बाद, मैं रीवा की समृद्ध स्मृतियाँ, साहित्यिक सम्मान और विंध्य के गौरवशाली अनुभव को हृदय में संजोकर वापस अपने घर की ओर प्रस्थान कर गया
महामृत्युंजय मन्दिर (रीवा किला) भगवान शिव का यह मंदिर रीवा किले के भीतर स्थित है। यहाँ 1008 छिद्रों वाला विशिष्ट शिवलिंग स्थापित है, जो भारत में इकलौता है और इसे अत्यंत दुर्लभ बनाता है।
श्री चिरहुलानाथ हनुमान जी मंदिर रीवा नगर के पूर्व दिशा में स्थित यह एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है। इसकी स्थापना महाराजा भाव सिंह के शासनकाल में हुई थी। मंदिर परिसर में 12 ज्योतिर्लिंग मंदिर और रामसागर व खेमसागर हनुमान मंदिर भी हैं।पचमठा मन्दिर यह आदि-शंकराचार्य द्वारा अनुग्रहित माना जाता है। मान्यता है कि उन्होंने यहाँ कुछ दिन निवास किया था, और इसे उनके द्वारा स्थापित पांचवा मठ माना जाता है।देवतालाब भगवान शिव का एक अत्यंत विशिष्ट मंदिर जो एक ही पत्थर (एक ही पाषाण) से निर्मित है। लक्ष्मणबाग धाम एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र जहाँ चारो धाम के देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। ढुढेश्वर नाथ मंदिर (गुढ़) रीवा जिले के गुढ़ में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर। बसामन मामा मंदिर रीवा का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल। शारदा माता मंदिर (बुड़वा) बुड़वा में स्थित शारदा माता को समर्पित मंदिर है।
बिछिया और बीहर नदी का संगम रीवा शहर इसी पवित्र संगम पर बसा हुआ है। रीवा किला और महामृत्युंजय मंदिर इसी संगम के तट पर स्थित हैं, जो इसके धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को बढ़ाते हैं।
टोंस, तामस व बीहर नदी का संबंध रीवा का पठारी क्षेत्र टोंस (तमसा) नदी की उपनदियों से सिंचित है। चचाई जलप्रपात टोंस व तामस की सहायक बीहर नदी पर स्थित है, जो इस क्षेत्र की जलधाराओं के संगम को प्राकृतिक सौंदर्य प्रदान करता है।
देउर कोठार बौद्ध स्तूप यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्राचीन बौद्ध स्तूप स्थल है। इसका निर्माण महान सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था, जो रीवा को मौर्यकालीन इतिहास और बौद्ध धर्म से जोड़ता है। यह स्थल इस क्षेत्र की प्राचीन पुरातात्विक गहराई को दर्शाता है। रीवा किला (खंड/संरचनाएँ) यद्यपि यह एक किला है, इसकी प्राचीन दीवारें, संरचनाएँ, और निर्माण (मूलतः शेरशाह के पुत्र जलाल खान द्वारा शुरू और राजा विक्रमदित्य द्वारा पूर्ण) 16वीं और 17वीं शताब्दी के सैन्य वास्तुकला और इतिहास का पुरातात्विक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
सांस्कृतिक स्थल - महाराजा मार्तण्ड सिंह बघेल व्हाइट टाइगर सफारी एवं चिड़ियाघर मुकुंदपुर यह रीवा की सबसे बड़ी पहचान, सफेद शेर (मोहन) के संरक्षण का केंद्र है। यह सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बघेला राजाओं की उस विरासत को समर्पित है जहाँ उन्होंने दुनिया का पहला सफेद शेर पकड़ा और पाला था।रीवा किला और बघेल संग्रहालय बीहर और बिछिया नदी के संगम पर स्थित यह किला बघेला राजवंश का मुख्यालय रहा है। किले का मुख्य भाग अब बघेला म्यूजियम कहलाता है, जो रीवा की समृद्ध शाही और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है।।गोविंदगढ़ किला यह किला वह स्थान था जहाँ पहला सफेद शेर रखा गया था। यह बघेला राजवंश के इतिहास और सफेद शेर की कहानी से जुड़ा एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीक है ।
देउर कोठार - देउर कोठार मध्य प्रदेश के रीवा जिले में स्थित एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, जो अपनी प्राचीनता और बौद्ध स्तूपों के लिए जाना जाता है। यह स्थल रीवा के गौरवशाली इतिहास को मौर्यकालीन युग से जोड़ता है मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल (ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी) से संबंधित माना जाता है। यह स्थल विंध्य क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रसार के अशोक के प्रयासों को दर्शाता है। बौद्ध स्थल वर्ष 1982 में प्रकाश में आया था। इसकी खोज का श्रेय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पी.के. मिश्रा और स्थानीय शोध जिज्ञासु अजीत सिंह को दिया जाता है। इसकी महत्ता को समझते हुए, भारत सरकार ने 1988 में देउर कोठार को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया।साइट पर नियंत्रित उत्खनन 1999-2000 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया गया। देउर कोठार सांची और भरहुत जैसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों की ही श्रृंखला में आता है, और कुछ विद्वानों का मानना है कि यहाँ के स्तूप भरहुत से भी अधिक प्राचीन हो सकते है यहाँ मौर्यकालीन मिट्टी की ईंटों से बने तीन बड़े स्तूप और पत्थरों के लगभग 46 छोटे स्तूपों के अवशेष मिले हैं। स्तूप संख्या 1 लगभग 9 मीटर (30 फीट) ऊँचा है। अशोक ने विंध्य क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए, भगवान बुद्ध के अवशेषों को वितरित कर, इन स्तूपों का निर्माण करवाया था । यहाँ के पुरातात्विक प्रमाणों से यह संकेत मिलता है कि देउर कोठार मौर्यकाल में बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक आध्यात्मिक स्थल, शिक्षण केंद्र और साधना का केंद्र रहा है । देउर कोठार में बौद्ध स्तूपों के अतिरिक्त, लगभग 63 शैलाश्रय (rock shelters) भी मौजूद हैं। इनमें से कई गुफाओं में लगभग 5000 वर्ष पुराने शैलचित्र (रॉक पेंटिंग) और भित्ति चित्र पाए गए हैं, जिन्हें आदिमानव द्वारा लाल और सफेद रंगों से उकेरा गया था। यह इस क्षेत्र की प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक दोनों कालों से जुड़ाव को सिद्ध करता है।ब्राह्मी शिलालेख: यहाँ चट्टानों पर ब्राह्मी लिपि में उकेरे गए शिलालेख (Inscriptions) भी मिले हैं, जिनमें दानदाताओं के नाम दर्ज हैं। स्तंभ शिलालेख: देउर कोठार स्तंभ पर छह-पंक्ति का ब्राह्मी शिलालेख पाया गया है, जिसे ऐतिहासिक बुद्ध का सबसे प्रारंभिक प्रमाण माना जाता है। देउर कोठार एक समय में एक व्यस्त वाणिज्यिक शहर का हिस्सा था, जो 'दक्षिणापथ' नामक प्राचीन व्यापार मार्ग पर स्थित था। यह मार्ग कौशाम्बी (कौशाम्बी) से उज्जैन और इंदौर तक जाता था, जिससे बौद्ध अनुयायियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया था। यह रीवा-इलाहाबाद (प्रयागराज) मार्ग पर कटरा के निकट स्थित है। रीवा शहर से इसकी दूरी लगभग 66-67 कि.मी. है। चिरहुला नाथ हनुमान जी मंदिर- यह रीवा नगर के पूर्व दिशा में स्थित एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है। यहाँ 12 ज्योतिर्लिंग मंदिर और हवन मंडप भी स्थित हैं। रीवा शहर के भीतर होने के कारण, यह स्थल बौद्ध स्तूपों के दर्शन के बाद शहर में रुकने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुगम है। पचमठा मन्दिर - महत्व: यह मंदिर आदि-शंकराचार्य से जुड़ा है। मान्यता है कि आदि-शंकराचार्य ने यहाँ कुछ दिन निवास किया था, और इसे उनके द्वारा स्थापित पांचवें मठ के रूप में देखा जाता है, जो हिंदू धर्म के अद्वैत दर्शन की परंपरा को दर्शाता है। यह स्थल बौद्ध और जैन धर्म के उत्थान के समय हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के प्रयासों का प्रतीक है। गोविंदगढ़ किला और तालाब - यह स्थल ऐतिहासिक रूप से बघेला राजवंश और सफेद शेर 'मोहन' से जुड़ा है। यहाँ स्थित बड़ा तालाब धार्मिक अनुष्ठानों और स्थानीय सांस्कृतिक आयोजनों के लिए महत्वपूर्ण है। रीवा और सतना के बीच स्थित, यह देउर कोठार से आने वाले पर्यटकों के लिए एक सुविधाजनक दर्शनीय स्थल है ।देवतालाब मंदिर रीवा जिले के त्योंथर तहसील क्षेत्र में स्थित है और यह अपनी अद्वितीय वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है ।
महामृत्युंजय मंदिर रीवा शहर का हृदय है, जो शाही इतिहास और गहन आध्यात्मिकता को जोड़ता है। यह मंदिर रीवा किले के परिसर में स्थित है।रीवा किले के भीतर, बिछिया और बीहर नदी के पवित्र संगम पर। लिंगम की विशिष्टता इस मंदिर का सबसे बड़ा गौरव यहाँ स्थापित विशिष्ट शिवलिंग है, जिसमें 1008 छिद्र हैं। पूरे भारत में यह अपनी तरह का इकलौता शिवलिंग माना जाता है। मंदिर उसी समय से संबंधित है जब रीवा किले का निर्माण पूर्ण हुआ था (मुख्य रूप से 17वीं शताब्दी, राजा विक्रमदित्य के शासनकाल में)। यह सदियों से बघेला राजवंश के इष्टदेव का मंदिर रहा है। महामृत्युंजय मंदिर में महामृत्युंजय मंत्र का जाप और अनुष्ठान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है, ऐसी मान्यता है। यह मंदिर भक्तों के बीच गहन आस्था का केंद्र है। किले के भीतर स्थित होने के कारण, पर्यटक एक ही स्थान पर रीवा किला, बघेल संग्रहालय और इस पवित्र मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। ये दोनों मंदिर रीवा की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के दो मजबूत स्तंभ हैं, जिनमें से एक (देवतालाब) अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए, तो दूसरा (महामृत्युंजय) अपने दुर्लभ और विशिष्ट शिवलिंग के लिए जाना जाता ह