गुरुवार, सितंबर 04, 2025

आत्मबोध से विश्व बोध

आत्मबोध से विश्वबोध: स्वयं की खोज से ब्रह्मांड की पहचान
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
मानव जीवन की यात्रा एक अनवरत खोज है, और इस खोज का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है आत्मबोध। आत्मबोध का शाब्दिक अर्थ है, 'स्वयं को जानना'। यह सिर्फ अपने नाम, पहचान या पद को जानना नहीं है, बल्कि अपनी आंतरिक प्रकृति, क्षमताओं, सीमाओं और जीवन के उद्देश्य को गहराई से समझना है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें हमारे अस्तित्व के केंद्र से जोड़ती है और हमें बाहरी दुनिया के शोर से परे, अपने भीतर झाँकने का साहस देती है। यह यात्रा व्यक्ति को व्यक्तिगत जीवन की संकीर्णता से उठाकर संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ एकाकार करती है, जिसे हम विश्वबोध कहते हैं। भारतीय दर्शन में आत्मबोध का विचार हजारों वर्षों से पोषित होता रहा है। हमारे प्राचीन शिक्षा का मूल आधार ही स्वयं को जानना था। वेदव्यास की आत्मबोधोपनिषद से लेकर आदि शंकराचार्य द्वारा रचित 'आत्मबोध' जैसे ग्रंथ इसी ज्ञान की महत्ता को दर्शाते हैं। शंकराचार्य का 'आत्मबोध' एक छोटा, किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें मात्र अड़सठ श्लोकों के माध्यम से आत्मा के वास्तविक स्वरूप का निरूपण किया गया है। यह ग्रंथ उन साधकों के लिए एक मार्गदर्शक है, जो जीवन के परम सत्य को जानना चाहते हैं। जैसा कि स्वामी विदेहात्मानंद ने भी हिंदी में इसकी व्याख्या की है, यह ज्ञान आज भी प्रासंगिक है।
'आत्मबोध' का प्रथम श्लोक, "तपोभिः क्षीणपापानां शान्तानां वीतरागिणाम् । मुमुक्षूणामपेक्ष्योऽयमात्मबोधो विधीयते ॥१॥", इस यात्रा की पहली शर्त को स्पष्ट करता है। इसका अर्थ है कि यह ज्ञान उन लोगों के लिए है, जिन्होंने तप के अभ्यास से अपने पापों को क्षीण कर लिया है, जिनके मन शांत हैं, जो राग-द्वेष या आसक्तियों से रहित हैं और जिनमें मोक्ष की तीव्र इच्छा है। यह श्लोक बताता है कि आत्मज्ञान कोई आकस्मिक घटना नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित और अनुशासित साधना का परिणाम है। दार्शनिक रूप से, आत्मबोध हमें यह प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करता है कि "मैं कौन हूँ?"। क्या मैं यह शरीर हूँ? या यह मन हूँ? या यह विचार और भावनाएँ हूँ? वेदान्त दर्शन के अनुसार, हमारा वास्तविक स्वरूप इन सबसे परे है। हम न तो शरीर हैं, न मन हैं, बल्कि हम शुद्ध चेतना, या आत्मा हैं। यह ज्ञान हमें शरीर और मन की क्षणभंगुरता से मुक्त करता है और हमें अपने शाश्वत, अविनाशी स्वरूप का एहसास कराता है। जब हम इस सत्य को समझते हैं, तो जीवन में आने वाले सुख-दुख, लाभ-हानि हमें विचलित नहीं कर पाते, क्योंकि हम जानते हैं कि ये सब सिर्फ बाहरी और अस्थायी परिस्थितियाँ हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, आत्मबोध को आत्म-जागरूकता के रूप में समझा जा सकता है। यह हमें अपनी ताकत और कमजोरियों को पहचानने में मदद करता है, जिससे हम व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। आत्म-जागरूक व्यक्ति अपनी भावनाओं को पहचानता है और उन्हें स्वस्थ तरीके से प्रबंधित कर पाता है। वह जानता है कि उसे क्या प्रेरित करता है, क्या उसे निराश करता है और वह कैसे अपनी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित कर सकता है। जब हमें पता होता है कि हम क्या हैं, तो हम अनावश्यक दिखावे और दूसरों से तुलना करने की प्रवृत्ति से बचते हैं। यह हमें एक आंतरिक शांति और संतोष प्रदान करता है जो बाहरी सफलता से कहीं अधिक मूल्यवान है।
आत्मबोध की यात्रा सरल नहीं है। यह मन को शांत करने, आत्म-निरीक्षण करने और अपनी कमजोरियों का सामना करने की मांग करती है। इसके लिए कुछ प्रमुख साधनों का सहारा लिया जाता है: ध्यान आत्मबोध का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी साधन है। ध्यान हमें अपने मन को शांत करने और विचारों की भीड़ से दूरी बनाने में मदद करता है। नियमित ध्यान अभ्यास से हम अपने भीतर चल रहे विचारों, भावनाओं और संवेदनाओं को बिना किसी पूर्वाग्रह के देख पाते हैं। यह हमें अपने मन को नियंत्रित करने और अनावश्यक विकर्षणों से मुक्त होने की शक्ति देता है। चिंतन और आत्म-निरीक्षण: यह प्रक्रिया हमें अपने विचारों, भावनाओं और कार्यों का गहराई से विश्लेषण करने का अवसर देती है। हमें स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए: मैं क्या सोचता हूँ? मैं क्यों सोचता हूँ? मेरे कार्यों का क्या प्रभाव पड़ता है? इस तरह का आत्म-निरीक्षण हमें अपनी आदतों, पैटर्न और प्रेरणाओं को समझने में मदद करता है। यह हमें उन नकारात्मक प्रवृत्तियों को पहचानने में मदद करता है जो हमें रोकती हैं।स्वाध्याय: आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथों का अध्ययन हमें आत्मज्ञान के मार्ग पर आवश्यक ज्ञान और प्रेरणा प्रदान करता है। शंकराचार्य के 'आत्मबोध' जैसे ग्रंथ हमें आत्मतत्व के बारे में गहन समझ देते हैं। यह हमें यह जानने में मदद करता है कि हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है और हम इस दुनिया में क्यों हैं। ये ग्रंथ हमें आध्यात्मिक सिद्धांतों और जीवन के नैतिक मूल्यों से परिचित कराते हैं। निःस्वार्थ सेवा (Selfless Service): दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करने से हमारे अहंकार में कमी आती है और हम स्वयं को संपूर्णता का एक हिस्सा मानना शुरू करते हैं। जब हम दूसरों के लिए कुछ करते हैं, तो हम अपनी व्यक्तिगत पहचान से परे उठते हैं और एक व्यापक चेतना के साथ जुड़ते हैं। यह हमें दूसरों के दुख और खुशी को महसूस करने की क्षमता देता है, जिससे करुणा और सहानुभूति का विकास होता है। जब व्यक्ति आत्मबोध की इस कठिन यात्रा को पार करता है, तो उसे एक अनूठी उपलब्धि प्राप्त होती है: सकारात्मक ऊर्जा और सोच का संचार। आत्मज्ञानी व्यक्ति का मन शांत और स्थिर होता है। वह बाहरी परिस्थितियों से विचलित नहीं होता, क्योंकि उसकी खुशी का स्रोत उसके भीतर होता है। यह सकारात्मक ऊर्जा न केवल उसके जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि उसके आस-पास के लोगों और वातावरण को भी प्रभावित करती है। एक शांत और सकारात्मक व्यक्ति अपने आसपास के लोगों को भी शांति और सकारात्मकता की ओर प्रेरित करता है। आत्मबोध की यात्रा यहीं समाप्त नहीं होती, बल्कि यहीं से विश्वबोध की यात्रा शुरू होती है। जब हम स्वयं के अस्तित्व को गहराई से समझते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि हम इस विशाल ब्रह्मांड का एक छोटा सा हिस्सा हैं। हमारी चेतना और अस्तित्व दूसरों से अलग नहीं, बल्कि एक ही ब्रह्मांडीय चेतना का विस्तार हैं। यह बोध हमें 'वसुधैव कुटुंबकम्' (संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है) की भावना से भर देता है।
विश्वबोध का अर्थ है, दूसरों को भी अपने समान समझना। यह हमें सहानुभूति और करुणा से भर देता है। जब हम किसी और के दुख को देखते हैं, तो हम उसे अपनी ही पीड़ा का एक हिस्सा महसूस करते हैं। यह भावना हमें दूसरों की मदद करने, समाज के कल्याण के लिए काम करने और एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करती है। एक आत्मज्ञानी व्यक्ति के लिए सेवा और निःस्वार्थ कर्म केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि उसके अस्तित्व का स्वाभाविक विस्तार बन जाते हैं।
विश्वबोध हमें यह भी सिखाता है कि हम सभी एक ही चेतना के अंश हैं। हम सभी एक-दूसरे से और प्रकृति से जुड़े हुए हैं। इस बोध से हम पर्यावरण और मानवता के प्रति अधिक जिम्मेदार हो जाते हैं। हम समझते हैं कि प्रकृति को नुकसान पहुँचाना स्वयं को नुकसान पहुँचाना है, और दूसरों को दुख पहुँचाना स्वयं को दुख पहुँचाना है। यह हमें एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और स्थायी जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
आज की दुनिया में, जहाँ तनाव, चिंता, प्रतिस्पर्धा और अकेलापन आम हैं, आत्मबोध का महत्व और भी बढ़ जाता है। आधुनिक जीवन की भागदौड़ में हम अक्सर अपने आप से कट जाते हैं। हम बाहरी सफलताओं, जैसे धन, पद और प्रतिष्ठा, के पीछे भागते रहते हैं और अपनी आंतरिक शांति को खो देते हैं। आत्मबोध हमें इस दौड़ से रुकने और अपने भीतर झाँकने का अवसर देता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि सच्ची खुशी बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही है। आत्मबोध हमें एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में मदद करता है। जब हम अपनी वास्तविक पहचान और क्षमताओं को जानते हैं, तो हम अपने जीवन के लिए एक सार्थक लक्ष्य निर्धारित कर पाते हैं। यह हमें न केवल व्यक्तिगत रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी अधिक सफल और संतुष्ट बनाता है। एक आत्मज्ञानी व्यक्ति समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखता है, क्योंकि वह दूसरों की जरूरतों और दुखों को अधिक गहराई से समझता है। यह व्यक्ति समाज में एकता, शांति और सहिष्णुता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आत्मबोध से उत्पन्न सकारात्मक सोच हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देती है। यह हमें हर स्थिति में आशावादी बने रहने और समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती है। जब हम यह समझ लेते हैं कि हम एक व्यापक ब्रह्मांडीय व्यवस्था का हिस्सा हैं, तो हमारी व्यक्तिगत परेशानियाँ छोटी लगने लगती हैं और हम एक बड़े उद्देश्य के लिए काम करना शुरू करते हैं।
आत्मबोध से विश्वबोध की यात्रा स्वयं को जानने से शुरू होती है और संपूर्ण मानवता को स्वीकार करने पर समाप्त होती है। यह एक ऐसी यात्रा है जो हमें अपने अहंकार और संकीर्णता से मुक्त करती है और हमें एक अधिक शांत, सकारात्मक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में मदद करती है। यह हमें सिखाती है कि सच्चा ज्ञान अपने भीतर पाया जाता है और जब हम उस ज्ञान को पाते हैं, तो हम न केवल स्वयं को, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड को पहचान लेते हैं। यह आत्मबोध ही है जो हमें सही मायने में मानव बनाता है और हमें एक बेहतर विश्व का निर्माण करने की शक्ति देता है।
जैसा कि आदि शंकराचार्य ने अपने 'आत्मबोध' में समझाया है, यह ज्ञान मोक्ष की इच्छा रखने वाले साधकों के लिए है। लेकिन आधुनिक संदर्भ में, यह ज्ञान हर उस व्यक्ति के लिए है जो जीवन में सच्ची शांति, खुशी और उद्देश्य की तलाश में है। आत्मबोध से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा और सोच ही विश्वबोध का सच्चा आधार है, जो एक बेहतर और अधिक सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण कर सकती है। हमें इस यात्रा को शुरू करने का साहस करना चाहिए, क्योंकि अंततः, स्वयं को जानना ही ब्रह्मांड को जानने का एकमात्र मार्ग है।

मंगलवार, सितंबर 02, 2025

जीवनधारा नमामी गंगे का परिभ्रमण

नमामी गंगे: एक यात्रा जो दिलों को छू गई
 सत्येन्द्र कुमार पाठक 
बिहार, एक ऐसा राज्य जिसकी मिट्टी में इतिहास की खुशबू है और जिसकी नदियों में संस्कृति की धारा बहती है। हाल ही में, 'जीवनधारा नमामी गंगे' संस्था के एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में मुझे इस अद्भुत राज्य की यात्रा करने का मौका मिला। यह यात्रा सिर्फ एक सामान्य दौरा नहीं थी, बल्कि यह गंगा और उसकी सहायक नदियों को पुनर्जीवित करने के मिशन से जुड़ी एक भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा थी। 25 अगस्त से 30 अगस्त तक चली इस यात्रा में, हमने पटना, वैशाली और मुजफ्फरपुर के लोगों, घाटों और ऐतिहासिक धरोहरों , पर्यावरण के साथ एक गहरा संबंध महसूस किया। यह यात्रा एक मिशन थी—गंगा संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का मिशन।
पटना में एक नई शुरुआत: राजभवन का अनुभव - हमारी यात्रा की शुरुआत 26 अगस्त को जहानाबाद से हुई। सुबह की ट्रेन से हम पटना पहुँचे, जहाँ हमारा पहला और सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव राजभवन था। सुबह 11:30 बजे हम महामहिम राज्यपाल माननीय   आरिफ मोहम्मद खान से मिलने पहुँचे। मन में थोड़ी घबराहट थी, लेकिन राज्यपाल की सहजता और गर्मजोशी ने सारी झिझक दूर कर दी। मैंने उन्हें अपनी पुस्तक "मगध क्षेत्र की विरासत" समर्पित की, जिसे उन्होंने बड़े सम्मान के साथ स्वीकार किया। इस मुलाकात के दौरान, हमने पर्यावरण और नमामी गंगे के उद्देश्यों पर विस्तृत चर्चा की। राज्यपाल महोदय ने हमारे प्रयासों की सराहना की और बिहार के विकास को लेकर अपने दूरदर्शी विचार साझा किए। उनकी बातें सुनकर लगा कि विकसित बिहार का सपना सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक हकीकत है, जिसे हर कोई जीना चाहता है। राज्यपाल से मुलाकात के बाद, हम उनके अतिथि गृह में जहानाबाद के विधायक श्री सुदय यादव से मिले। उनके साथ हमारी बातचीत में मुख्य रूप से जहानाबाद की दरधा और जमुनी नदियों और अरवल जिले की पुनपुन नदी के संरक्षण और विकास पर जोर दिया गया। यह जानकर खुशी हुई कि स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इन नदियों के महत्व को समझते हैं और उनके पुनरुद्धार के लिए उत्सुक हैं। राज्यपाल महोदय के साथ चाय पर हुई बातचीत में विकसित बिहार के सपने पर चर्चा हुई, जिसने हमारे हृदय में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया। हमारे प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जीवनधारा नमामी गंगे के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हरि ओम शर्मा कर रहे थे। टीम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और बिहार राज्याध्यक्ष डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव, संस्था के अर्थ गंगा के अतिरिक्त निदेशक दिव्या स्मृति, दिल्ली की अध्यक्षा मोनिका अग्रवाल और संस्था के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ममता शर्मा , राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह निजी सचिव उत्तरीबिहार ( राष्ट्रीय अध्यक्ष )  शीला वर्मा , , राज्य उपाध्यक्ष संगीता सागर भी शामिल थीं। 
वैशाली: गणराज्य और आध्यात्मिकता का केंद्र - 28 अगस्त को, हमने पटना से वैशाली और मुजफ्फरपुर के लिए अपनी यात्रा जारी रखी। पटना से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित हाजीपुर पहुँचने के बाद हमने सर्किट हाउस में रात्रि विश्राम किया। सुबह, हाजीपुर के गंगा-गंडक संगम पर स्थित कोनारा घाट का दृश्य अद्भुत था। अविरल प्रवाहित जल को देखकर मन को असीम शांति मिली। प्रतिनिधि मंडल के प्रमुख संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ हरि ओम शर्मा द्वारा नमामी गंगे की विस्तृत चर्चा कर महामहिम राज्यपाल को अवगत कराया गया । 
वैशाली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक समृद्धि का अनुभव करने के लिए हम बहुत उत्सुक थे। यह वही भूमि है जहाँ दुनिया का पहला गणतंत्र "रिपब्लिक" कायम हुआ था। वैशाली की मिट्टी में ही भगवान महावीर का जन्म हुआ और महात्मा बुद्ध ने यहाँ कई बार आकर उपदेश दिए। लालगंज में, हमारा स्वागत मध्य विद्यालय के छात्रों और शिक्षकों ने किया, जिन्होंने हमें पारंपरिक तरीके से सम्मानित किया। बच्चों की आँखों में भविष्य की चमक देखकर हमारा उत्साह और बढ़ गया।  जीवन धारा नमामी गंगे संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ हरि ओम शर्मा के नेतृव में प्रतिनिधि मंडल की बैठक नगर परिषद सभा कक्ष हाजीपुर में जिला प्रशासन , नगर परिषद के सभापति , कार्यपालक पदाधिकारी  और प्रतिनिधि मंडल के साथ हुई ।  जीवन धारा नमामी गंगे के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ हरि ओम शर्मा ने नमामी गंगे के उद्देश्यों को विस्तार से बैठक में शामिल पदाधिकारी एवं गंगा सेवियों को संबोधित किया । प्रतिनिधि मंडल में शीला वर्मा आदि गंगा सेवी शामिल थे ।
हमने 28 आगस्त को  वैशाली में कई महत्वपूर्ण स्थानों का दौरा किया:-  अशोक स्तंभ और बौद्ध स्तूप - वैशाली से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोल्हुआ और बखरा गाँव में हुई खुदाई से मिले अवशेषों को देखकर हम विस्मित हो गए। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित सिंह स्तंभ लाल बलुआ पत्थर से बना है, जिसकी ऊँचाई 18.3 मीटर है। इस स्तंभ को स्थानीय लोग 'भीमसेन की लाठी' कहते हैं। यहीं पर एक छोटा सा कुंड है जिसे रामकुण्ड कहते हैं, जिसे पुरातत्व विभाग ने मर्कक-हद के रूप में पहचाना है। हमने बौद्ध स्तूपों को भी देखा, जिनका निर्माण बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अस्थि अवशेषों पर किया गया था। वैशाली के लिच्छवियों को भी बुद्ध के पार्थिव अवशेषों का एक हिस्सा मिला था, और इन स्तूपों का पता 1958 की खुदाई के बाद चला। इन स्थानों ने हमें बौद्ध धर्म के इतिहास और महत्व से गहराई से जोड़ा। अभिषेक पुष्करणी और विश्व शांति स्तूप - वैशाली गणराज्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पहले बनवाया गया अभिषेक पुष्करणी सरोवर आज भी अपनी पवित्रता को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ नए शासकों का अभिषेक किया जाता था। इस सरोवर के निकट ही जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्व शांति स्तूप है, जो अपनी शांति और भव्यता से मन मोह लेता है। गोल गुंबद और बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमाएँ यहाँ आने वालों को शांति का अनुभव कराती हैं। हाजीपुर की गंगा गंडक नदी संगम कोनारा घाट पर जाकर प्राकृतिक केवम जल धारा से मन आह्लादित हुआ । मध्यविद्यालय लालगंज के छात्रों , छात्राओं एवं  शिक्षकों द्वारा शिष्टमंडल को स्वागत किया गया । जिला प्रशासन वैशाली  नगरपरिषद के पदाधिकारियों तथा शिष्टमंडल के सदस्यों की बैठक नगरपरिषद हाजीपुर के सभा कक्ष में नगर परिषद के सभापति केवम कार्यपालक पदाधिकारी एवं गंगा सेवी  , प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों के बीच नमामी गंगे के कार्यान्वयन पर रूबरू हुए ।
कुंडलपुर और राजा विशाल का गढ़ - वैशाली से 4 किलोमीटर दूर स्थित कुंडलपुर व कुंड ग्राम  जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मस्थान है। इस पवित्र स्थान पर आकर हम अत्यंत भावुक हो गए। हमने राजा विशाल का गढ़ भी देखा, जो एक छोटा टीला है। इसे प्राचीन संसद माना जाता है, जहाँ 7,777 संघीय सदस्य इकट्ठा होकर चर्चा करते थे। यह स्थल भारत में लोकतंत्र की प्राचीन जड़ों का एक जीवंत प्रमाण है। 29 अगस्त को सारण जिले के गंडक और गंगा संगम पर अवस्थित सोनपुर का हरिहर नाथ मंदिर के गर्भगृह में स्थित बाबा हरिहर नाथ , हनुमान जी का दर्शन , गजग्राह , शनिदेव का दर्शन करने के बाद मौनी बाबा अश्रम में चूड़ा दही का आनंद लिया ।  29 अगस्त को मुजफ्फरपुर से कुंडग्राम में महावीर स्वामी जी की जन्मभूमि में अवस्थित महावीर स्वामी मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान महावीर स्वामी जी का दर्शन किया । मुजफ्फरपुर का दुग्ध निर्माण समिति का स्थलीय का अवलोकन किया परंतु समिति के पदाधिकारियों से मुलाकात नही हुई । रात्रि में मुजफ्फरपुर अतिथि गृह पथनिर्माण विभाग में विश्राम किया । 30 अगस्त को मुजफ्फरपुर में आयोजित सेमिनार में शामिल हुआ । 
मुजफ्फरपुर: सेमिनार और साझा प्रयास -  हमारी यात्रा का अंतिम चरण मुजफ्फरपुर था। 29 अगस्त को हम मुजफ्फरपुर पहुँचे   और 30 अगस्त को श्री नावयुवक ट्रस्ट समिति के सभागार में एक महत्वपूर्ण सेमिनार में भाग लिया। इस सेमिनार का उद्देश्य गंगा संरक्षण और जागरूकता के लिए साझा प्रयासों पर चर्चा करना था। सेमिनार में मुजफ्फरपुर के अलावा बेगूसराय, सिवान, पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, पटना, वैशाली, जहानाबाद और दरभंगा जैसे जिलों के गंगा सेवक और जीवनधारा नमामी गंगे संस्था  के पदाधिकारी शामिल हुए। सेमिनार में हमने प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने, गंगा ग्रामों और घाटों पर ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति और अर्थ गंगा योजना के कार्यान्वयन पर चर्चा की। हमें मुजफ्फरपुर में जो सम्मान मिला, वह हमारे प्रयासों को एक नई ऊर्जा देने वाला था। लोगों का उत्साह देखकर लगा कि गंगा को स्वच्छ बनाने का सपना पूरा हो सकता है, बस हमें मिलकर काम करना होगा। हमारी टीम का नेतृत्व डॉ. हरि ओम शर्मा कर रहे थे, और इसमें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सत्येन्द्र कुमार पाठक, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मोनिका अग्रवाल, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ममता शर्मा, डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव और दिव्या स्मृति , शीला वर्मा , , जी इन भट्ट संपादक , निर्माण भारती  शामिल थीं। यह यात्रा केवल एक भ्रमण नहीं थी, बल्कि गंगा नदी, उसकी सहायक नदियों और बिहार की समृद्ध विरासत के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करने का अवसर था। हमने महसूस किया कि जीवनधारा नमामी गंगे जैसे मिशन को सफल बनाने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ जन-भागीदारी भी अत्यंत आवश्यक है। वैशाली और मुजफ्फरपुर में लोगों का उत्साह और सहयोग देखकर यह विश्वास और मजबूत हो गया कि हम सभी मिलकर गंगा को उसकी पुरानी महिमा लौटा सकते हैं। इस यात्रा ने हमें न केवल नदियों और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराया, बल्कि यह भी दिखाया कि भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ें कितनी गहरी और समृद्ध हैं। यह यात्रा एक शिक्षा थी, एक प्रेरणा थी और एक ऐसा अनुभव था जो हमारे हृदय में हमेशा रहेगा। जीवनधारा नमामी गंगे सेमिनार में पटना , जहानाबाद , बेगूसराय , मुजफ्फरपुर , वैशाली , सिवान पश्चिम चंपारण , दरभंगा , सीतामढ़ी आदि  जिले के अध्यक्ष , महासचिव , राज्य के पदाधिकारी , गंगा सेवी शामिल हुए ।