रविवार, मई 28, 2023

ज्ञान सत्य और सम्प्रुभता का द्योतक सेंगोल...


सनातन धर्म एवं विश्व के विभिन्न ग्रंथों में सेंगोल का उल्लेख मिलता है । चोल साम्राज्य का सेंगोल स्वर्ण राजदंड से न्यायपूर्ण शासन की अपेक्षा की जाती है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात 14 अगस्त 1947 ई. को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत गणराज्य के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल  सौंप दिया था। सोने और चांदी से निर्मित  सेंगोल को  इलाहाबाद संग्रहालय में रख दिया गया था। 'सेंगोल' तमिल शब्द 'सेम्मई' का अर्थ 'नीतिपरायणता' और संस्कृत के ‘संकु’ (शंख) है। मंदिरों और घरों में आरती के समय शंख का प्रयोग किया जाता है। भारत में  राजा राजदण्ड लेकर राजसिंहासन पर राजा बैठकर सपथ लेता था कि  अब मैं राजा बन गया हूँ 'अदण्ड्योऽस्मि, अदण्ड्योस्मि, अदण्ड्योऽस्मि'। (मैं अदण्ड्य हूँ , मैं अदण्ड्य हूँ, मैं अदण्ड्य हूँ ; अर्थात मुझे कोई दण्ड नहीं दे सकता है । राजा के पास लंगोटी पहने हुए  हाथ में एक छोटा, पतला सा पलाश का डण्डासे  राजा पर तीन बार प्रहार करते हुए  कहता था कि 'राजा ! यह 'अदण्ड्योऽस्मि अदण्ड्योऽस्मि' गलत है। 'दण्ड्योऽसि दण्ड्योऽसि दण्ड्योऽसि' अर्थात तुझे दण्डित कर सकता है। चोल काल में राजदंड का प्रयोग सत्ता हस्तांतरण को दर्शाने के लिए किया जाता था। राजा नए राजा को सेंगोल  सौंपता था । मौर्य, गुप्त वंश और विजयनगर साम्राज्य में  सेंगोल का प्रयोग क्या जाता था । वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से एक सवाल कि(राजाजी) से परामर्श करने के लिए प्रेरित किया। राजाजी ने चोल कालीन समारोह का प्रस्ताव दिया जहां एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता का हस्तांतरण उच्च पुरोहितों की उपस्थिति में पवित्रता और आशीर्वाद के साथ पूरा किया जाता था। राजाजी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में शैव संप्रदाय के धार्मिक मठ - थिरुववादुथुराई अधीनम से संपर्क किया। थिरुववादुथुराई अधीनम 500 वर्ष से अधिक पुराना है और पूरे तमिलनाडु में 50 शाखा मठों को संचालित करता है। अधीनम के नेता ने तुरंत पांच फीट लंबाई के 'सेंगोल' तो तैयार करने के लिए चेन्नई में चयन किया गया है । सेंगोल राजदंड  सत्ता हस्तांतरण एवं समृद्धि का प्रतीक राजदंड  मौर्य साम्राज्य के समय से राजदंड मिलने पर राजा  न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन करता हैं । मौर्य साम्राज्य  322 ई. पू. से 185 ई.  के मध्य प्रथम  बार सेंगोल का प्रयोग किया गया था । मौर्यकाल, गुप्तकाल, चोल साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य में  सेंगोल का प्रचलन था । सेंगोल का प्रारंभ 322 ई . पू. से 185 ईसा के मध्य में  मौर्य शासक सत्ता हस्तांतरण के समय सेंगोल राजदंड का उपयोग करते और  320 ई . से 550 ई .तक गुप्त साम्राज्य में, 907 ई . से  1310 ई . तक चोल साम्राज्य में और विजयनगर साम्राज्य में 1336 ई. से 1646 ई . तक सेंगोल राजदंड को सत्ता हस्तांतरण के लिए प्रयोग में किया  था । इंग्लैंड की रानी का सॉवरेन्स ओर्ब द्वारा 1661 ई. में  बनाया गया जिसे इंग्लैण्ड का  राजा चार्ल्स द्वितीय के राज्याभिषेक में सेंगोल दिया गया था ।  इंग्लैंड में सेंगोल प्रथा के तहत  राजा या रानी को सेंगोल राजदंड दिया जाता हैं ।  मेसोपोटामिया सभ्यता में राजदंड को “गिदरु” कहा गया है।. गिदरु राजदंड की चर्चा  मेसोपोटामिया सभ्यता की  मूर्तियों और शिलालेखों में हैं । मेसोपोटामिया सभ्यता में राजदंड को देवी-देवताओं की शक्तियों और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक था । ग्रीक-रोमन सभ्यता में  राजदंड सभ्यता में ओलंपस और जेयूस  देवताओं की शक्ति की निशानी के रूप में राजदंड होता था ।  शक्ति के प्रतीक सेंगोल शक्तिशाली लोग, सेना-प्रमुख, जज और पुरोहितों के पास यह राजदंड होता था ।. रोमन राजा-महाराजा हाथी के दाँत से बने राजदंड अर्थात सेपट्रम अगस्ती”  था। इजिप्ट सभ्यता में  “वाज”  राजदंड को सत्ता और शक्ति की निशानी था । भारत में  राजदंड पर नंदी जी की आकृति  उभारी गई थी । सेंगोल को राजदंड , धर्मदंड ,संप्रभुता ,अधिकार  का प्रतीक  के रूप में एक शासक दूसरे शासक द्वारा वहन किया जाने वाला डंडा , आध्यत्मिक अधिकार ,सत्ता का प्रतीक ,गीदर मिश्र में वाज ,फ्रांस में गिदरु और भस्र्ट में सेंगोल कहा जाता है । धार्मिक गुरु शंकराचार्य द्वारा भगवान शिव के वाहन नंदी न्याय और कर्म का प्रतीक राजदंड को धर्म दंड , पॉप एवं राजाओं द्वारा सेंगर का धारण करते है ।रोम राजा जूलियस सीजर , मिश्र , मेसोपोटामिया के राजाओं द्वारा सच्चाई निष्ठा और धर्म का प्रतीक सेंगर या राजदंड का प्रयोग करते है । सम्राट हर्षवर्द्धन एवं कनिष्क द्वारा राजदंड का राजसिंहासन के समीप रखते थे । महाभारत शांतिपर्व के राजयधर्मानुशासन के अनुसार द्वापर युग में हतिनपुर का धर्मराज राजा युधिष्ठिर को राजदंड दिया गया था ।  सेंगोल का  धारण अमेरिका , इंग्लैंड , रोम के राजाओं एवं भारत के विभिन्न राजाओं द्वारा किया जाता था । जेष्ठ शुक्ल नवमी रविवार , 2080 दिनांक 28 मई 2023 ,, को मदुरै अधिनम के 293 वें प्रधान पुजारी  द्वारा सच्चाई ,धर्म , न्याय  निष्ठा ,आध्यत्मिक ,संप्रभुता और सत्ता का प्रतीक  सेंगोल को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को सौपा गया है ।



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