गुरुवार, जून 01, 2023

पूर्वी चम्पारण की सांस्कृतिक विरासत ....


 पुराणों एवं विभिन्न ग्रथों में चम्पारण का उल्लेख विभिन्न नामों से किया गया है । विभिन्न ग्रंथों में चम्पारण को चंपा ,चंपानगर ,चम्पावती , चम्पापुरी ,चम्पामालिनी , चम्पारण्य कहा गया है । सतयुग में लोमपाद के राजा चम्प के पुत्र महागोविंद ने चंपानगर बसाया था । जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म और मोक्ष स्थल चंपा थी । जैन ग्रंथ दशवैकालिक सूत्र में रानी गांगरा द्वारा पोक्खरानी, दिवास्वप्न के अनुसार चंपा में समलेश्वरी और कालेश्वर शिवलिंग की स्थापना सुंदर की पुत्री चंपा द्वारा की गई थी । उत्तरवैदिक काल में चंपा महाजनपद था । ह्वेनसांग ,दशकुमार चरित , अथर्वेद ,वायुपुराण , हरिवंश पुराण 31:49 , महाभारत शांतिपर्व 3:6:7 और मत्स्यपुराण 48 :47  के अनुसार मालिनी का राजा पृथुलाक्ष के पुत्र चम्प ने चम्पामालिनी नगर वसया था । चंपा के वनों को चम्पारण्य आधुनिक नाम चम्पारण कहा गया है ।  चम्पारण्य में रत्नाकर बाद में आदिकवि वाल्मीकि का कर्मक्षेत्र त्रेतायुग में था । पूर्वी चंपारण जिले का मुख्‍यालय मोतिहारी में महात्मा गांधी ने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत होने के कारण शांतिनिकेतन के कलाकार नंदलाल बोस द्वारा निर्मित 48 फिट लंबाई युक्त पाषाण युक्त  गांधीवादी मेमोरियल स्तंभ की आधार शिला 10 जून 1972 ई. को बिहार के। राज्यपाल देवकांत वरुआ  ने स्थापित की है । मोतिहारी का निर्देशांक: 26°39′00″ एन 84°55′00″ ई  / 26.65000° एन 84.91667° ई पर अवस्थित क्षेत्रफल 122 वर्ग  किमी और समुद्र तल से ऊँचाई 62 मी (203 फीट) , जनसंख्या 2011 के अनुसार  1,25 183  है । मोतिहारी की स्थलाकृति में  मोतीझील झील , सीताकुंड, अरेराज, केसरिया, चंडी स्‍थान,ढा़का जैसे जगह घूमने लायक है। मोतिहारी से 16 किमी दूर पीपरा रेलवे स्‍टेशन से 2 किमी उत्तर में बेदीबन मधुबन पंचायत मे भगवान राम के विवाह के पाश्चात, जनकपुर से लौटती बारात ने एक रात्रि का विश्राम मधुवन  स्थान पर किया था। भगवान राम और देवी सीता के विवाह कि चौथी तथा कंगन खोलाई कि विधि   संपन्न किया गया था। अंग्रेजी लेखक जॉर्ज ऑरवेल - एनिमल फार्म और नाइंटीन एटीफोर   के रचयिता जार्ज़ ऑरवेल का जन्म सन 1903 में मोतिहारी में हुआ था।  रिचर्ड वॉल्मेस्ले ब्लेयर बिहार में अफीम की खेती से संबंधित विभाग में उच्च अधिकारी थे।  ऑरवेल  के एक वर्ष की आयु में  मॉ और बहन के साथ वापस इंग्लैण्ड चले गए थे। मोतिहारी का राजा मोती सिंह द्वारा मोतीझील का जीर्णोद्धार एवं हरि सिंह ने सोमेश्वर शिव मंदिर का निर्माण कराया था । 1869 ई. में मोतिहारी नगरपालिका की स्थापना की गई थी ।
तिरहुत प्रमंडल का 3968 वर्ग किमी व 1532 वर्गमील क्षेत्रफल में विकसित पूर्वी चंपारण जिला का गठन 02 नवंबर 1971 ई. को 1886 ई. में स्थापित जिला  चंपारण को विभाजित कर  पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी है।  पूर्वी चम्‍पारण के उत्‍तर में नेपाल तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर ,  पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी तथा पश्चिम में पश्चिमी चम्‍पारण जिला की सीमाओं से घिरा हुआ है । पुराणों एवं विभिन्न ग्रंथों के अनुसार  राजा उत्तानपाद के पुत्र भक्त ध्रुव ने  तपोवन  स्थान पर ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी। चंपारण की भूमि देवी सीता की शरणस्थली एवं  आधुनिक भारत में गाँधीजी का चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता का स्थल  है। राजा जनक काल में  मिथिला का तिरहुत प्रदेश का अंग था।  जानकीगढ या  चानकीगढ में मिथिला प्रदेश की राजधानी थी। जानकी गढ़  छठी सदी ई . पू.  में वज्जी के साम्राज्य का हिस्सा बन गया था । भगवान बुद्ध का  उपदेश स्थल की याद में तीसरी सदी ई. पू .  में मगध साम्राज्य का सम्राट प्रियदर्शी अशोक ने स्तंभ और स्तूप का निर्माण कराया था । गुप्त वंश तथा पाल वंश के पतन के बाद चंपारण कर्नाट वंश के अधीन हो गया। मुगल काल में स्थानीय क्षत्रपों का  शासन था । स्वतंत्रता संग्राम के समय चंपारण के  रैयत एवं स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर महात्मा गाँधी अप्रैल १९१७ में मोतिहारी आए और नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया था । ब्रिटिश साम्राज्य काल में चंपारण को सन १८६६ में  स्वतंत्र इकाई बनाया था । चम्पारण को १९७१ में विभाजन कर पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण बना दिया गया है। पूर्वी चंपारण में गंडक, बागमती तथा इसकी अन्य सहायक नदियों के मैदान में होने से पूर्वी चम्‍पारण की उपजाऊ मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त है। सिंचाई के लिए गंडक से निकाली गई त्रिवेणी, ढाका तथा सकरी नहरें बनी है। गंडक, बागमती, सिकरहना, ललबकिया, तिलावे, कचना, मोतिया, तिऊर और धनौति नदियाँ है । पूर्वी चंपारण जिले में 2011 जनगणना के अनुसार 5099371 आवादी वाले क्षेत्र में मोतिहारी सदर, अरेराज, चकिया, रक्सौल, सिकरहना, पकड़ी दयाल अनुमंडल तथा प्रखंड में  ढ़ाका अरेराज, आदापुर, कल्यानपुर, केसरिया, कोटवा, घोड़ासहन, चकाई, चिरैयां, छौरादानों, तेतरिया, तुरकौलिया, पकड़ी दयाल, पताही, पहाड़पुर, पिपराकोठी, फेनहारा, बनकटवा, बंजारिया, मधुवन, मेहसी, मोतिहारी, रक्सौल,रमगढवा, संग्रामपुर, सुगौली, हरसिद्धी है । पुलिस थानों की संख्या- ४१ , पंचायतों की संख्या- ४०९ , गाँव की संख्या- १३४५ एवं 55. 79 साक्षरता दर है । जिले के क्षेत्रों  में भोजपुरी , मगही , मैथिली , वज्जिका और  हिंदी  है। केसरिया बौद्ध स्‍तूप - मोतिहारी से ३५ किलोमीटर दूर साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के समीप  केसरिया में  बौद्धकालीन स्तूप है । भारतीय पुरातत्‍व विभाग द्वारा 1998 ई. में  केशरिया उत्‍खनन के उपरांत केशरिया को पुरातत्ववेत्‍ताओं के अनुसार केशरिया बौद्ध स्‍तूप है। केशरिया स्तूप 150 फीट ऊँचे इस स्‍तूप की ऊँचाई सन 1934 में आए भयानक भूकंप से पूर्व  123 फीट थी। भारतीय पुरातत्‍वेत्‍ताओं के अनुसार जावा का बोराबुदूर स्‍तूप 103 फीट ऊँचा है वहीं केसरिया  स्‍तूप की ऊंचाई 104 फीट है। विश्‍व धरोहर में शामिल सांची का स्‍तूप की ऊंचाई 77.50 फीट ही है।  लौरिया नन्दनगढ अशोक स्तंभ - अरेराज अनुमंडल के लौरिया  में स्थित बालुकामय अशोक स्‍तंभ की ऊंचाई 36.5 फीट  का निर्माण 249 ई.  पू.  सम्राट अशोक के द्वारा किया गया था। इसपर प्रियदर्शी अशोक लिखा हुआ है। अशोक स्तंभ का व्‍यास 41.8 इंच तथा शिखर का व्‍यास 37.6 इंच है। सम्राट अशोक ने स्तम्भ में  6 आदेशों के संबंध में लिखा है। स्‍तंभ का वजन 34 टन  है। अनुमान के अनुसार इस स्‍तंभ का कुल वजन 40 टन है। कहा जाता है कि इस स्‍तंभ के ऊपर जानवर की मूर्ति को  कोलकाता संग्रहालय भेज दिया गया है। अशोक स्तंभ  पर  18 लाइनों में संदेश उकेरा है। जॉर्ज ऑरवेल स्मारक - अंग्रेजी साहित्य के   लेखक जॉर्ज ऑरवेल का जन्म २५ जून १९०३ को मोतिहारी में हुआ था। लेखक जॉर्ज ऑरवेल के  पिता रिचर्ड वेल्मेज्ली ब्लेयर चंपारण के अफीम विभाग में सिविल अधिकारी थे। जन्म के ऑरवेल अपनी माँ और बहन के साथ इंगलैंड जाकर विद्यार्थी जीवन से  लेखन आरंभ किया था । ऑरवेल की पुस्तक एनिमल फॉर्म , बूमेसे डेज ए हैंगिंग   अंग्रेजी साहित्य की महान कृति है। विश्व कबीर शांति स्तंभ, बेलवातिया -  मोतिहारी  से दस किलो मीटर पर पीपराकोठी प्रखंड के बेलवातिया गांव में  भारत का आठवां एवं बिहार का प्रथम  विश्व कबीर शांति स्तंभ को 1875 ई . में महंत स्व० केशव साहेब ने स्थापित किया था । संत कवीर आश्रम की स्थापना  महंथ स्व० केशव साहब ने 1875 ई. में की थी । कवीर आश्रम के महंथ श्याम बिहारी दास साहब सन 1895 से 1901 ई०, महंथ स्व० रिशाल साहब 1901 ई. से 1929 ई.  तक, महंथ  ब्रह्मदेव साहब सन 1929 ई. से 1954 ई.  तक थे ।  महंथ कमल साहेब सन 1954 ई. से 1975 ई.तक  एवं  कवीर  आश्रम के १०० वे स्थापना दिवस पर महंथ रामस्नेही दास ने अपने काल में ही विश्व कबीर शांति स्तंभ की स्थापना किया था । सोमेश्वर महादेव मंदिर -  मोतिहारी  से 28 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम में स्थित अरेराज में भगवान शिव को समर्पित सोमेश्वर शिव  मंदिर है ।सीताकुंड -  मोतिहारी से 16 किमी दूर पीपरा रेलवे स्‍टेशन के समीप प्राचीन  किले के परिसर में सीताकुंड स्थित है। भगवान राम की पत्‍नी सीता ने त्रेतायुग में सीता  कुंड में स्‍नान किया था।  सीता कुंड के तट पर  भगवान सूर्य, देवी दुर्गा, हनुमान सहित  अन्य मंदिर  हैं। गोविन्दगंज का चंडी स्थान , हुसैनी जलविहार प्रसिद्ध है । महत्वपुर्ण व्यक्ति में राजकुमार शुक्ल ,जॉर्ज ऑरवेल ,रमेश चन्द्र झा , राधा मोहन सिंह ,अनुरंजन झा ,रवीश कुमार संजीव के झा तथा कृषि में चावल, दलहन फसलें, गन्ना, जूट उत्पादन एवं उद्योग में चीनी मिल- मोतिहारी, चकिया तथा सुगौली और मेहसी का बटन उद्योग है । ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा 5228 वर्गकिमी क्षेत्रफल में अवस्थित 2827 गांवों को शामिल कर 1866 ई. में चम्पारण को जिला का सृजन किया गया था । 6 ठी ई.पू. वैशाली साम्राज्य का अंग चम्पारण था । चम्पारण जिले का बारा में 1813 ई. को नील की खेती प्रारम्भ हुई और 1850 ई. में नील चम्पारण का उत्पादन क्षेत्र बन गया था । 1900 ई में नील फैक्ट्रियों की गिरावट होने से किसानों में असंतोष व्याप्त हो गया था । तीनकठिया नील प्रणाली द्वारा नील की खेती होने लगी थी । 

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