गुरुवार, अप्रैल 27, 2023

ब्रह्मांड का नेत्र है भगवान सूर्य ...


सनातन धर्म का वेदों , पुराणों , स्मृति , ज्योतिष ग्रंथो एवं विभिन्न ग्रंथों में भगवान सूर्य का उल्लेख किया गया है । भगवान सूर्य जगत की आत्मा एवं नेत्र है । विभिन्न ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा जी का प्रपौत्र एवं ऋषि मरीचि के पौत्र और ऋषि  कश्यप  की भार्या दक्ष प्रजापति की पुत्री अदिति के पुत्र भगवान सूर्य के अवतार विवस्वान् (सूर्य), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन) 12 आदित्यों अवतरण हुआ है। भगवान विवस्वान (सूर्य ) की भार्या एवं विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के पुत्र  प्रजापति श्राद्धदेव ( वैवस्वत मनु ) , यम और पुत्री  यमुना ( कालिन्दी ) हुई थी । भगवान् सूर्य के तेजस्वी स्वरूप को देखकर संज्ञा ने सह नही सकने के कारण संज्ञा ने  सामान वर्णवाली  छाया ( स्वर्णा ) प्रकट की थी । छाया को संज्ञा समझ कर सूर्य ने छाया के गर्भ से पुत्र सावर्ण मनु ,   शनैश्चर (शनि) और पुत्री  तपती हुई थी । भगवान सूर्य की भार्या संज्ञा के पुत्र यम धर्मराज के पद पर प्रतिष्ठित है।  छाया पुत्र सावर्ण मनु प्रजापति  सावर्णिक मन्वन्तर के  स्वामी  मेरुगिरि के शिखर पर नित्य तपस्या करते हैं। संज्ञा अपनी छाया छोड़कर स्वयं बड़वा का रूप धारण करके तप करने के दौरान  भगवान सूर्य ने जब संज्ञा को तप करते देखने के बाद अपने यहां ले आए।  संज्ञा के बड़वा रूप से दृष्ट और हृष्ट  (अश्विनीकुमार )  हुए  थे । अदिति के पुत्र विवस्वान् से वैवस्वस्त मन्वंतर का स्वामी  वैवस्वत मनु से इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करुष और पृषध्र  10 श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई।  त्रेतायुग में कपिराज सुग्रीव और द्वापर में महारथी कर्ण भगवान सूर्य के अंश से ही उत्पन्न हुए  हैं। श्रीकृष्ण की माता देवकी 'अदिति का अवतार' बताई जाती हैं। भगवान सूर्य के परिवार की  भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा साम्बपुराण में वर्णित है। भगवान सूर्य को रवि, दिनकर, दिवाकर, भानु, भास्कर, प्रभाकर, सविता, दिनमणि, आदित्य, अनंत, मार्तंड, अर्क, पतंग और विवस्वान कहा गया है।  रविवार की प्रकृति ध्रुव और भगवान विष्णु और सूर्यदेव का दिन  है। भगवान सूर्य की उपासना  ॐ सूर्याय नम:।, ॐ मित्राय नम: , ॐ रवये नम:।, ॐ भानवे नम: ,ॐ खगाय नम:।, ॐ पूष्णे नम: , ॐ हिरण्यगर्भाय नम: , ॐ मारीचाय नम: ,ॐ आदित्याय नम: ,ॐ सावित्रे नम: ,ॐ अर्काय नम:,  ॐ भास्कराय नम:। । करने से मनोवांक्षित फल की प्राप्ति होती है । वैदिक काल में आर्य सूर्य को जगत का कर्ता धर्ता ,  प्रेरक,  प्रकाशक,  प्रवर्तक और  कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण , यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" जगत  का नेत्र ,  छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ , ब्रह्मवैर्वत पुराण में  सूर्य को परमात्मा स्वरूप और प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक  है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की  प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है। भगवान सूर्य को प्रकाश, स्वास्थ्य, वंश, ग्रह, तपस्या, तप, पवित्रता, विजय, कर्म, जाप, साधना, यज्ञ,वेद, युद्ध, अस्त्र-शास्त्र, आत्मा, समय, काल, दिग्पाल, दिशा, सुख, ज्ञान, ज्योति, आराधना, सुबह, शाम, शांति, रंग, पुण्य, शक्ति, ऊर्जा, धर्म, गति, दीर्घायु, ऋतुएँ, मुक्ति के अधिष्ठात्र देवता, साक्षात सूर्य स्वरूप,परब्रह्म, परमात्मा, परमेश्वर, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वदिशात्मक, निरंजन निरकार परमात्मा कहा गया है। श्री श्री 108 भगवान सूर्य को सूर्य, वीर, नारायण, तपेंद्र, भास्कर, दिवाकर, हिरण्यगर्भ, खगेश, मित्र, ओमकार, सूरज, दिनेश, आदित्य, दिनकर, रवि, भानु, प्रभाकर, दिनेश आदि नाम है।भगवान सूर्य का संबंध नारायण, पर ब्रह्म,शिव, देव, आदि देव ब्रह्मा , विष्णु और महेश से है । निवासस्थान सूर्यलोक , मंत्र ॐ सूर्यनारायणाय: नमः ,  सूर्य का अस्त्र, सुदर्शन चक्र, गदा, कमल, शंख और त्रिशूल दिवस रविवार ,जीवनसाथी संध्या, छाया , पिता महर्षि कश्यप और माता अदिति एवं भाई इन्द्र , धाता ,  पूषा , अर्यमा  , त्वष्ट्र , भग  , अंशुमान  , मित् , वरुण  , पर्जन्य  और वामन और पुत्रों में वैवस्वत मनु, यमराज, यमुना, अश्विनी कुमार, रेवंत,शनि, तपती, सवर्णि मनु, सुग्रीव, कर्ण और भद्रा है । सवारी सप्त अश्वों द्वारा खींचा जाने वाला रथ, सारथी: अरुण तथा त्यौहार छठ महापर्व है ।
सूर्य  का जन्म  - पुराणों के अनुसार दैत्यों और देवताओं में बहुत दुश्मनी बढ़ गई। दैत्यों ने सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और स्वयं स्वर्ग पर शासन करने लगे। देवराज इन्द्र ने ये बात अपनी माता अदिति को बताई। अदिति ने भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उनसे वरदान मांगने को कहा। अदिति ने उनसे कहा कि "आप मेरे पुत्र के रूप में उत्पन्न होंवें। सूर्य भगवान ने तथास्तु कहकर  अंतर्ध्यान हो गए। देव माता अदिति और उनके पति प्रजापति कश्यप में किसी बात को लेकर कलेह हो गई थी । प्रजापति कश्यप ने देव माता अदिति के गर्भ में पल रहे बालक को मृत कह दियाथा।  देव माता  अदिति के गर्भ से  तेज़ पूंज निकला और भगवान सूर्य प्रकट हुए और कहा कि आप दोनों इस पूंज का पूजन प्रतिदिन करें समय आने पर इस पूंज से एक पुत्र रत्न जन्म लेगा और आपके दुखों को दूर करेगा। अदिति और प्रजापति कश्यप ने उस पूंज का पूजन प्रतिदिन किया और उस पूंज से एक पुत्र ने जन्म लिया। प्रजापति कश्यप ने अपने उस पुत्र को विवस्वान् नाम दिया। देवासुर संग्राम में सभी दैत्य विवस्वान् के तेज़ को देखकर भाग खड़े हुए। भगवान सूर्य  और भगवान शिव का युद्ध - ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार कश्यप प्रजापति के प्रपौत्र माली और सुमाली थे। सुमाली ही रावण का नाना हुआ। दोनों ने महादेव की तपस्या की और उनसे वर मांगा कि वे सदा उनकी रक्षा करेंगे। इस पर महादेव ने उन्हें ये वर दे दिया। एक बार उन्होंने सूर्यदेव को युद्ध के लिए ललकारा। सूर्य उन्हें परास्त करने लगे किन्तु उन दोनों राक्षसों ने महादेव का स्मरण किया तो भगवान शंकर वहां प्रकट हुए और अपने त्रिशूल से सूर्यदेव पर प्रहार किया जिससे सूर्यदेव अपनी चेतना खो बैठे। कश्यप प्रजापति को जब इस बात का पता चला तो अपने पुत्र को चेतनाहीन देखकर उन्होंने भगवान शंकर को श्राप दिया कि "तुमने आज जिस तरह मेरे पुत्र को चेतनाहीन किया है एक दिन तुम अपने इसी त्रिशूल से अपने ही पुत्र का मस्तक काट दोगे।" इसी श्राप ने भगवान शिव से उनके पुत्र गणेश का मनुष्य रूप वाला मस्तक कटवाया था । श्रीमदभागवत पुराण के अनुसार:- भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है। सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर इंक्यावन लाख योजन है। मेरु पर्वत के पूर्व की ओर इन्द्रपुरी है, दक्षिण की ओर यमपुरी है, पश्चिम की ओर वरुणपुरी है और उत्तर की ओर चन्द्रपुरी है। मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इस लिये इन पुरियों में कभी दिन, कभी रात्रि, कभी मध्याह्न और कभी मध्यरात्रि होता है। सूर्य भगवान जिस पुरी में उदय होते हैं उसके ठीक सामने अस्त होते प्रतीत होते हैं। जिस पुरी में मध्याह्न होता है उसके ठीक सामने अर्ध रात्रि होती है।
सूर्य की चाल - भगवान सूर्य की चाल पन्द्रह घड़ी में सवा सौ करोड़ साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक है। उनके साथ-साथ चन्द्रमा तथा अन्य नक्षत्र भी घूमते रहते हैं। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं। इस रथ की एक धुरी मानसोत्तर पर्वत पर तथा दूसरा सिरा मेरु पर्वत पर स्थित है। इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा है तथा अरुण नाम के सारथी इसे चलाते हैं। हे राजन्! भगवान भुवन भास्कर इस प्रकार नौ करोड़ इंक्यावन लाख योजन लम्बे परिधि को एक क्षण में दो सहस्त्र योजन के हिसाब से तय करते हैं।
सूर्य का रथ -  भगवान सूर्य रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। उस पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न रूप तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु रूप छः नेमि वाले अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। सात छन्द इसके घोड़े हैं: गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के परिमाण के तुल्य ही इसके युगार्द्धों (जूओं) का परिमाण है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूए के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है और दूसरे धुरे का चक्र मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है। मानसोत्तर पर्वत के पूर्व में इन्द्र की वस्वौकसार , पश्चिम में वरुण की संयमनी , उत्तर में चंद्रमा की सूखा और दक्षिण में यम की विभावरी है। ज्योतिष शास्त्र  में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है। सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है ।  सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु और  शत्रु शनि और शुक्र और समान देखने वाला ग्रह बुध है। सूर्य ग्रह के रत्नों में माणिक और उपरत्नो में लालडी, तामडा, और महसूरी.पांच रत्ती का रत्न या उपरत्न रविवार को कृत्तिका नक्षत्र में अनामिका उंगली में सोने में धारण करने से दुष्प्रभाव कम होता है। 
सूर्याष्टक स्तोत्र - 
आदि देव: नमस्तुभ्यम प्रसीद मम भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यम प्रभाकर नमोअस्तु ते ॥सप्त अश्व रथम आरूढम प्रचंडम कश्यप आत्मजम। श्वेतम पदमधरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥ लोहितम रथम आरूढम सर्वलोकम पितामहम। महा पाप हरम देवम त्वम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥ त्रैगुण्यम च महाशूरम ब्रह्मा विष्णु महेश्वरम। महा पाप हरम देवम त्वम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥ बृंहितम तेज: पुंजम च वायुम आकाशम एव च। प्रभुम च सर्वलोकानाम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥ बन्धूक पुष्प संकाशम हार कुण्डल भूषितम। एक-चक्र-धरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
तम सूर्यम जगत कर्तारम महा तेज: प्रदीपनम। महापाप हरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥ .सूर्य-अष्टकम पठेत नित्यम ग्रह-पीडा प्रणाशनम। अपुत्र: लभते पुत्रम दरिद्र: धनवान भवेत ॥
आमिषम मधुपानम च य: करोति रवे: दिने। सप्त जन्म भवेत रोगी प्रतिजन्म दरिद्रता ॥स्त्री तैल मधु मांसानि य: त्यजेत तु रवेर दिने। न व्याधि: शोक दारिद्रयम सूर्यलोकम गच्छति ॥
सूर्य - मंदिरों में उड़ीसा राज्य का पूरी जिले के समुद्र तट पर कोणार्क में सूर्य मंदिर ,  गुजरात का मोधेरा का सूर्य मंदिर , मार्तंड, कश्मीर ,  बिहार का औरंगाबाद जिले का देव में देवार्क  , उमगा में उमज्ञार्क , , गया जिले का गया में गयार्क , पटना जिले का पंडारक में पांड्यार्क , उलार का उलार्क सूर्य मंदिर , नालंदा जिले का ऑंगरी में ऑगयार्क , भोजपुर जिले का बेलाउर में वेल्यार्क़ सूर्य मंदिर है । कटारमल सूर्य मन्दिर ,रनकपुर सूर्य मंदिर ,सूर्य पहर मंदिर ,सूर्य मंदिर, प्रतापगढ़
दक्षिणार्क सूर्य मंदिर , नवादा जिले का सूर्य मंदिर, हंडिया ,सूर्य मंदिर, महोबा ,रहली का सूर्य मंदिर ,सूर्य मंदिर, झालावाड़ ,सूर्य मंदिर, रांची ,सूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर, कंदाहा है । भगवान सूर्य मध्य भाग्य ,चर्तुल मंडल , 12 अंगुल , कलिंग देश , कश्यप गोत्र , रक्त वर्ण और सिंह राशि का स्वामी है । भगवान सूर्य का द्रव्य माणिक्य , सोना ,चांदी ,ताम्बा ,मूंग लाल , वस्त्र और पताका लाल , गौ लाल , फूल ,चंदन लाल  फूल में तमाड़ ,कंडकिल  , वाहन सप्ताश्व ,समिधा मदार ,दिन रविवार , तिथि सप्तमी , विल्व वृक्ष , पीपल प्रिय है । राजस्थान राज्य का सिरोही जिले के वसंतगढ़ ,उदयपुर का रणकपुर ,झालरापाटन ,ओसियाँ ,मंडेसर ,देवका ,जयपुर , मिश्र , नेपाल ,  गलता ,पुष्कर ,कटारमल ,मोड़ेरि ,दक्षिणार्क , बिहार का जहानाबाद जिले का बराबर पर्वत समूह के सूर्यान्क गिरि , काको , भेलावर , दक्षणी , भागलपुर , मुंगेर , दरभंगा , मुजफ्फरपुर , सीतामढ़ी , उत्तरप्रदेश के वाराणसी , अयोध्या , उत्तराखण्ड , मध्यप्रदेश आदि क्षेत्रों में सूर्यमंदिर एवं भगवान सूर्य की मूर्ति स्थापित है । पुराणों एवं ऋग्वेद में शाकद्वीप का स्वामी भव्य एवं मग द्वारा सूर्य के उपासकों के लिए सौरधर्म का संचालन किया गया है । सौर धर्म मे प्रकृति की उपासना सुर सूर्य मंदिर की स्थापना कर सौरधर्म का विकास किया गया है । वेद , ब्राह्मण ,संहिता और पुराणों के अनुसार  ऋषि कश्यप की भार्या  दक्ष प्रजापति की पुत्री देवमाता अदिति के द्वादश आदित्यों 12 वां विष्णु आदित्य है ।सूत संहिता य.वैखा. अ. 6  एवं भविष्योत्तर पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण ने कहा है कि सूर्योपासना का मूल आदित्य हृदय है ।वायु पुराण अध्याय 156 के अनुसार त्रेतायुग में ऋषि अगस्त द्वारा आदित्यहृदय एवं सूर्योपासना एवं सूर्यस्त्रोत का मंत्र भगवान राम को उपदेश दिया गया था ।द्वितीय जीवितगुप्त के 10 वीं शताब्दी का शिलालेख ,, कनिंघम का आर्कोलॉजिकल रिपोर्ट वॉल्यूम XVll, 65 के अनुसार भगवान सूर्य के अंग से प्रादुभूत प्रकाशमान मग थे । वेविलोन का एतना मिथ में उल्लेख किया गया है कि ईगल गरुड़ पर बैठकर थर्ड हैवेन्स ऑफ अन्नू द्वारा औषधि लाया गया था ।मि. फ्रिक , उरगेल के अनुसार छ्या पथ 13 सौ करोड़, प्राणियों का उद्भव 4 सौ करोड़ वर्ष  , सूर्योपासना 6 हजार वर्ष पूर्व से 140 ई. पू. होती थी । पर्शियन में मित्र आदित्य , ग्रीक में हीलियस , एजिस मिश्र , रा , तातारियों का भाग्यवर्द्धक  देव फ्लोरस , पेरू में फुलेस ,अमेरिका में रेड इंडियन ने एतना एना ,अफ्रीका के श्वेत , चीन उ ची , इब्रा गी ,सेंट इजम एमिनो मिनक ,नाची को आदि देव सूर्य की उपासना करते है ।भारत में भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देव कहा गया है । जैन शास्त्रों में जम्बूद्वीप में 2 सूर्य , लवण समुद्र में 4 सूर्य ,धातकी खंड में 12 ,  सूर्य पुष्करद्वीप में 72 सूर्य की उपासना की चर्चा किया गया है ।


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