वेदों , पुराणों , स्मृति ग्रंथों , बौद्ध , जैन ग्रंथों में बिहार की नदियों का उल्लेख मिलता है। जल स्वच्छ जीवन संरक्षित , पर्यावरण संरक्षण , नदियों की संरचना एवं विकास के लिए स्मृति ग्रंथों , इतिहास के पन्नों के अनुसार मन्वंतर काल में राजा अंशुमान , राजा भगीरथ , ऋषि शिलाद , अगस्त , पृथु , अंग , कौशिक संबतसर काल मे चंद्रगुप्त , अशोक , चाणक्य , गुप्तकाल आदि ने नदियों , पर्यावरण को संरक्षण एवं संबर्द्धन किया था । भगवान शिव , विष्णु , ब्रह्मा जी , जल देव वरुण ने नदियों , प्रकृति संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण दिया है। बिहार की नदियों में गंगा , फल्गु , पुनपुन , कोशी , बागमती , गंडक बटाने , मोरहर , मोहाने , लिलांजन नदियाँ , सोन नद और विलुप्त हिरण्यबाहु आदि नदियां बिहार के विभिन्न जिलों में प्रवाहित होती है । गया जिले की मोरहर , फल्गु , नीलांजन , मोहाने , बूढ़ी नदियाँ जहानाबाद जिले की दरधा , जमुनाइ , बल्दैया , औरंगाबाद जिले की आद्री , बटाने , मदार औरंगा , धावा नदियाँ , नालंदा जिले की लोवाईन ,मोहाने , जिरायन , कुंभारी , गोइठवा नदियाँ , नवादा जिले की सकरी , खुरी ,पंचाने ,भुसरी ,वाय ,तिलैया , धनंजय , नादी नदियाँ , अरवल जिले की विलुप्त हिरण्यबाहु नदियाँ , पटना जिले की लोआई बारहमासी नदियां थी। इन नदियां भीषण गर्मी में भी अगर कोई नदी के सतह पर मामूली खुदाई कर देने पर पानी निकल आता था।
वर्ष 2015 में बृजनंदन पाठक की याचिका 2015 पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने प्रशासन को तीन कदम फौरी तौर पर उठाने का आदेश दिया था। नदी के दोनों ओर हुए अवैध निर्माण को तत्काल ध्वस्त किया जाए। शहर की गंदगी जो फल्गु में बहायी जा रही है, उसपर रोक लगाया जाए। साथ ही हाई कोर्ट ने नदी में बांध बनाने का आदेश दिया। कोर्ट का अंदाज़ा था कि बांध से बारिश के पानी को अत्यधिक रोका जा सकेगा।
विशेषज्ञ गजेटियर के हवाले से नदी की संरचना पर टिप्पणी करते हैं। मगध क्षेत्र की भौगोलिक संरचना, इतिहास और कुछ प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के हवाले से कहा जाता है कि एक समय पर ये नदियां सालों भर बहती थी। अप्रैल में जब गया का तापमान अप्रैल में ही 40 डिग्री सेल्सियस पार कर चुका था । मई-जून में जब तापमान 45-46 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है । जहानाबाद एवं गया क्षेत्र की फल्गु और दरधा-आदि कभी बारहमासी हुआ करती थीं।
वर्ष 2015 में बृजनंदन पाठक की याचिका पर सुनवाई करते हुए 2015 ई. को पटना हाईकोर्ट ने प्रशासन को तीन कदम फौरी तौर पर उठाने का आदेश दिया था। नदी के दोनों ओर हुए अवैध निर्माण को तत्काल ध्वस्त किया जाए। शहर की गंदगी जो फल्गु में बहायी जा रही है, उसपर रोक लगाया जाए। साथ ही हाई कोर्ट ने नदी में बांध बनाने का आदेश दिया। कोर्ट का अंदाज़ा था कि बांध से बारिश के पानी को अत्यधिक रोका जा सकेगा। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार का रवैया “ढ़ाक के तीन पात” वाला ही रहा। लिहाजा सरकार पर कोर्ट की अवमानना की सुनवाई भी चल रही है। पटना हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय व न्यायमूर्ति पार्थसारथी की खंडपीठ ने राधेश्याम शर्मा की जनहित याचिका पर कार्रवाई करते हुए 2029 ई. को गया के जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि फल्गु नदी को अतिक्रमण मुक्त करवाया जाए। कोर्ट ने जिला प्रशासन को अवैध निर्माणों पर जांच के तत्काल आदेश भी दिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया था कि एक तो नदी में शायद ही पानी रहता है और ऊपर से किनारों पर अवैध कब्जा और स्थायी निर्माण से पूरी नदी लुप्त होने की कगार पर है। दक्षिण बिहार के मगध क्षेत्र का बड़ा भाग पठार क्षेत्र के कारण जल संचयन की विशिष्ट व्यवस्था हुआ करती थी। वह व्यवस्था थी अहर-पईन और तालाबों की। अहर पईन से ही सिंचाई हुआ करती थी। पईन मगध क्षेत्र की एक पारंपरिक व्यवस्था है जिसका इस्तेमाल सिंचाई के साथ-साथ पेयजल के लिए भी किया जाता है। इसका निर्माण प्राकृतिक ढाल के अनुरूप होता है। मगध क्षेत्र की नदियों में पानी नहीं रहने की एक वजह पईनों को भी बताया जाता है। नदी के पानी को पईनों के जरिए सिंचाई के लिए खेतों की ओर मोड़ दिया गया है।
बिहार की नदियां : गंगा नदी - उतराखण्ड राज्य का गंगोत्री हिमनद के गोमुख से प्रवाहित होने वाली गंगा नदी 2510 किमी लंबी एवं बिहार में 445 किमी। तय करती हुई बंगाल राज्य के बंगाल की खाड़ी व गंगासागर में मिलत्ती है ।
कोसी नदी - नेपाल का गोसाई की सप्तकाउस से 720 किमी लंबी एवं बिहार में 260 किमी लंबाई में प्रवाहित होनेवाली कोशी नदी गंगा में मिलत्ती है । बागमती नदी - नेपाल का महाभारत श्रेणी से 597 किमी लंबी एवं बिहार में 394 किमी लंबाई युक्त बागमती नदी प्रवाहित होती हुई देवापुर की लालबकेया नदी में मिलत्ती है।मोरहर नदी - झारखण्ड राज्य का चतरा जिले के परतापुर प्रखण्ड की कुंडा राजकिला के समीप मोरहर नदी निकली है । मोरहर नदी गया , जहानाबाद , पटना जिले के पालीगंज प्रखण्ड क्षेत्र में पुनपुन नदी में मिलत्ती है। मोरहर नदी की सहायक नदी में दरधा , जमुनाइ , गंगहर , बल्दैया नदियाँ लुप्त के कगार पर है।
सरयू नदी - नेपाल की गुरला मान्धाता श्रेणी पर 1180 किमी लंबी एवं बिहार में 83 किमी लंबी युक्त सरयू नदी गंगा नदी में मिलत्ती है।बूढ़ी गंडक नदी - विसंभारपुर में सोमेश्वर श्रेणी में स्थित धौतरवा चौर से 320 किमी लंबी नदी मुंगेर के गंगा नदी में मिलत्ती है।गंडक नदी - नेपाल का अन्नपुर्णा पर्वत के कुतांग तथा मानंगमोट से 630 किमी लंबाई एवं बिहार के 260 किमी लंबीयुक्त गंडक नदी प्रवाहित होती हुई वैशाली जिले के हाजीपुर की गंगा नदी में मिलत्ती है।
कमला नदी - नेपाल की महाभारत श्रेणी से उत्पन्न होने वाली एवं 328 किमी लंबी और बिहार मैं 120 किमी लंबाई कमला नंदी एवं महानंदा नदी 376 किमी लंबी तथा बिहार में 360 किमी लंबी महानंदा नदी गंगा में मिलत्ती है ।
पुनपुन नदी - 200 किमी. लंबी एवं 7747 वर्गकीमि में फैली झारखण्ड का छोटानागपुर पठार के पलामू जिले के चंदवा से प्रवाहित होने वाली पुनपुन नदी पटना स्थित फतुहा गंगा नदी में मिलत्ती है। गया जिले की नदियों में फल्गु , नीलांजन , मोहाना , मोरहर , गंगहर , बूढ़ी नदी , सोरहर , जहानाबाद जिले की नदियां दरधा , जमुनाइ , बल्दैया , फल्गु , अरवल जिले की पुनपुन नदी , सोन नद , विलुप्त हिरणबहु नदी ( अरवल जिले का करपी, कलेर औरंगाबाद जिले का गोह , हसपुरा प्रखण्ड , पटना जिले का पालीगंज प्रखण्ड क्षेत्र में हिरन्यबाहु नदी को बह नाम से ख्याति है ) , औरंगाबाद जिले की पुनपुन , सोन , बटाने , आद्री , मदार , औरंगा , धावा नदियाँ , नवादा जिले की सकरी , खुरी , पंचाने , मुसरी ,वाय ,तिलैया धनंजय नादी नदियाँ , नालंदा जिले की लोकाइन , मोहाने , जिरायन, कुंभारी ,फल्गु गोइठवा नदियाँ , पटना जिले की गंगा , पुनपुन , सोन , लोवाई नदियाँ प्रवाहित है। भोजपुर जिले में कुम्हारी ,चेर, बनास ,गंगा , सोन , गांगी नदियाँ , रोहतास जिले की दुर्गावती ,बंजारी ,कोयल ,सूरा नदी ,सोन नद , कैमुर जिले में करमनासा ,सुवर्ण ,सूअरा नदी बक्सर जिले में गंगा , ठोरा नदी प्रवाहित होती है। मुजफ्फरपुर जिले में गंडक , बूढ़ी गंडक , बागमती ,लखनदेई फरदो नदी , पश्चमीचम्पारण जिले में पंचनद , मनोर ,भापसा ,कपन ,सिकरहना गंडक ,छोटी गंडक ,गंडक नारायणी , सदबाहि गंडक ,मसान , हरबोरा ,पंडाई , दोहरम नदियाँ , पूर्वी चंपारण में घनौती , छोटी गंडक, नारायणी नदियाँ , बेगूसराय जिले में बलान , गंगा ,बूढ़ी गंडक ,बैती ,बाया ,चंद्रभागा ,कोशी ,करेहा ,चन्ना ,कचना ,मोनरिया नदियाँ , मुंगेर जिले में गंगा , मान ,बेलहरनी , महाना नदियाँ , दरभंगा जिले में बागमती ,कोसी ,कमला ,करेह नदियाँ ,सीतामढ़ी जिले में बागमती ,लखनदेई ,अघवारा ,झीम, लाल बकेया , चाकनाहा ,जमुने ,सिपरिधार ,कोला ,छोटी बागमती ,नदियाँ प्रवाहित है । खगड़िया जिले में गंगा , बूढ़ी गंडक ,कोसी ,कमला ,करेह ,काली कोशी ,, बागमती नदियाँ , वैशाली जिले में गंगा , गंडक , बाया नून नदियाँ प्रवाहित है। भागलपुर जिले में गंगा , कोसी , चंदन नदियाँ , मधुबनी जिले में कमला , बलान ,सोनी ,बागमती ,भुतही बलान ,कोसी धार ,धौस नदियाँ , शिवहर जिले में बूढ़ी गंडक , बागमती नदियाँ , मधेपुरा जिले में कोसी ,सुरसर , परमान नदियाँ , बांका जिले में चांदन ,बेलहरणी ,बहुआ( बरुआ ) ,ओढ़नी ,चिरमंदर , सुखनिया नदियाँ , लखीसराय जिले में गंगा , किउल , हरुहर , जमुई जिले में उलाई ,किउल ,मुराही,अजय ,बरनार ,झांझी नदियाँ , सारण जिले में गंगा , गंडक घाघरा नदियाँ , गोपालगंज जिले में गंडक ,झारही ,खनवा ,दाहा ,खनुआ ,बाणगंगा ,सोना , छारी , धमाई ,स्याही ,घोघारी नदियाँ बगहा में गंडक नदी प्रवाहित होती है । कटिहार जिले की गंगा ,कोसी ,महानंदा ,रिघा , बारण्डी , कारी नदियाँ , पुर्णिया जिले की कोसी ,महानंदा ,सौरा ,सुबारा कराली , कोली ,पनार ,कनकई ,दारात , वकरा , परमान नदियाँ , अररिया जिले में कोसी ,सुबारा ,काली ,परमार ,कोली नदियाँ , किसनगंज जिले की महानंदा ,कनकई ,भेंक ,मेची रतुआ नदियाँ , सहरसा जिले में कोसी घेमरा ,तिलावे नदियाँ , समस्तीपुर जिले में बूढ़ी गंडक ,वाया ,कोसी , बलान ,करेह ,झमवारी ,गंगा नदियाँ , सुपौल जिले में कोसी ,तिलयुगा ,छैमरा ,काली ,तिलावे ,भेंगा ,मिचैया सुरसर नदियाँ प्रवाहित होती है।
बिहार में नदियों का संकट: विलुप्त होती जलधाराएँ नदियों का प्रदेश, जल संकट की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। कभी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्धि के लिए जानी जाने वाली यहाँ की कई नदियाँ आज विलुप्त होने के कगार पर हैं। इन नदियों के सूखने से न केवल पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका और जीवनशैली भी खतरे में है। विलुप्त होती प्रमुख नदियाँ: लखंदी लखनदेई , नून, बलान, कादने, सकरी, तिलैया, धाधर, छोटी बागमती, सौरा, फल्गु, मोरहर , दरधा , जमुनाइ , बल्दैया , लिलांजन , मोहाने , भूरहा , पुनपुन , चंद्रभागा, किउल, धमई, सोना, अदरी, बांसी, कंचन और धर्मावती: नदियाँ बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई हैं और स्थानीय समुदायों के लिए जीवनरेखा का काम करती हैं। लेकिन, जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास और मानवीय गतिविधियों के कारण ये नदियाँ सूख रही हैं।
चंद्रभागा नदी: बेगूसराय के बखरी अंचल क्षेत्र में बहने वाली यह नदी पानी की कमी से विलुप्त होने की कगार पर है।
किउल नदी: जमुई जिले में किसानों की जीवनदायिनी मानी जाने वाली यह नदी भी अब सूखने लगी है।
सौरा नदी: पूर्णिया जिले में स्थानीय लोगों के प्रयासों से इस नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
धमई और सोना नदी: गोपालगंज जिले में इन नदियों का अस्तित्व खतरे में है।
अदरी नदी: औरंगाबाद जिले में किसानों के लिए महत्वपूर्ण यह नदी भी विलुप्त होने की कगार पर है।
बांसी नदी: पश्चिम चंपारण जिले में सिल्ट जमने से इस नदी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
कंचन और धर्मावती नदी: इन नदियों में मीठे जल के जलीय जीव पाए जाते हैं, लेकिन अब ये नदियाँ सूखने लगी हैं।
चंद्रावत नदी : बेतिया ( पश्चमीचम्पारण ) लुप्तप्राय हो गयी है।
फरका नदी : मुजफरपुर की फरका नदी लुप्तप्रायः हो गयी है।
गया एवं जहानाबाद जिला क्षेत्र की फल्गु नदी , मोरहर , निलंजल , मोहने , भूरहा और दरधा , जमुनाइ , बल्दैया , नीलांजन , मोहाने , ओरंगाबाद जिले क्षेत्र की आद्री , बटाने , पुनपुन , पटना जिले की लोआई आदि नदियाँ भी विलुप्त हो रही हैं। नदियों के विलुप्त होने के कारण: जलवायु परिवर्तन: वर्षा की अनियमितता और तापमान में वृद्धि नदियों के सूखने का मुख्य कारण है। मानवीय गतिविधियाँ: अनियोजित विकास, वनों की कटाई, प्रदूषण और जल का अत्यधिक दोहन नदियों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। शहरीकरण और औद्योगीकरण: शहरों और उद्योगों से निकलने वाला कचरा नदियों में मिल रहा है, जिससे पानी जहरीला हो रहा है। सिंचाई परियोजनाएँ: नदियों पर बाँध और नहरों के निर्माण से जल का प्रवाह प्रभावित हो रहा है। अवैध खनन: नदियों से रेत और अन्य खनिजों का अवैध खनन भी नदियों के सूखने का कारण बन रहा है। नदियों के संरक्षण के उपाय: जल संरक्षण: वर्षा जल संचयन और जल के उचित उपयोग को बढ़ावा देना। वनीकरण: नदियों के किनारे पेड़ लगाना और वनों की कटाई को रोकना। प्रदूषण नियंत्रण: उद्योगों और शहरों से निकलने वाले कचरे के उचित निपटान के लिए सख्त नियम बनाना। जागरूकता अभियान: लोगों को नदियों के महत्व के बारे में जागरूक करना और उन्हें जल संरक्षण के लिए प्रेरित करना। सरकारी नीतियाँ: नदियों के संरक्षण के लिए प्रभावी नीतियाँ बनाना और उन्हें सख्ती से लागू करना।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी: नदियों के संरक्षण में स्थानीय समुदायों को शामिल करना और उनकी पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना। बिहार की नदियों को बचाने के लिए तत्काल और सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। यदि हम अभी कार्रवाई नहीं करते हैं, तो हम एक ऐसी भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ जल की कमी एक गंभीर समस्या होगी।
बिहार में नदियों का संकट: एक विस्तृत विश्लेषण
बिहार, नदियों का राज्य, अपनी उपजाऊ भूमि और समृद्ध जल संसाधनों के लिए जाना जाता है। गंगा, कोसी, गंडक, बागमती और सोन जैसी नदियाँ यहाँ की जीवनरेखा रही हैं। लेकिन, हाल के वर्षों में, बिहार की नदियाँ गंभीर संकट का सामना कर रही हैं। कई नदियाँ सूख रही हैं, प्रदूषित हो रही हैं, और अपने प्राकृतिक प्रवाह को खो रही हैं।
संकट के कारण: जलवायु परिवर्तन: वर्षा के पैटर्न में बदलाव, अनियमित मानसून और तापमान में वृद्धि नदियों के जल स्तर को प्रभावित कर रहे हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों के प्रवाह में बदलाव आ रहा है।मानवीय गतिविधियाँ:अनियंत्रित शहरीकरण और औद्योगीकरण नदियों में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं।कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग नदियों के पानी को दूषित कर रहा है।नदियों से रेत और अन्य खनिजों का अवैध खनन उनके प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर रहा है।सिंचाई परियोजनाओं और बांधों का निर्माण नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बदल रहा है।वनोन्मूलन:वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है, जिससे नदियों में गाद जमा हो रही है।
वनों की कमी से जल धारण क्षमता कम हो रही है, जिससे नदियों में पानी का प्रवाह कम हो रहा है।संकट के प्रभाव: जल संकट:नदियों के सूखने से पीने के पानी और सिंचाई के लिए पानी की कमी हो रही है।भूजल स्तर गिर रहा है, जिससे कुएँ और नलकूप सूख रहे हैं।पर्यावरणीय क्षति:नदियों में प्रदूषण से जलीय जीवन खतरे में है।नदियों के सूखने से जैव विविधता का नुकसान हो रहा है।नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बदलाव से बाढ़ और सूखा जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।आर्थिक प्रभाव:किसानों की फसलें सूख रही हैं, जिससे उनकी आय कम हो रही है।मछली पालन उद्योग प्रभावित हो रहा है, जिससे मछुआरों की आजीविका खतरे में है।
पर्यटन उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।सामाजिक प्रभाव:जल संकट से सामाजिक तनाव और संघर्ष बढ़ रहे हैं।लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है, क्योंकि प्रदूषित पानी से बीमारियाँ फैल रही हैं।समाधान के उपाय:जल संरक्षण:वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना।जल के कुशल उपयोग के लिए सिंचाई तकनीकों में सुधार करना।लोगों को जल संरक्षण के बारे में जागरूक करना।प्रदूषण नियंत्रण:औद्योगिक और शहरी कचरे के उचित निपटान के लिए सख्त नियम लागू करना।कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम करना।नदियों की सफाई के लिए अभियान चलाना।वन संरक्षण:वनों की कटाई को रोकना और वनीकरण को बढ़ावा देना।नदियों के किनारे वृक्षारोपण करना।सतत विकास:नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखने के लिए सिंचाई परियोजनाओं और बांधों का निर्माण करते समय सावधानी बरतना।नदियों से रेत और अन्य खनिजों के अवैध खनन पर रोक लगाना। नदियों के किनारे होने वाले अतिक्रमण को रोकना। जागरूकता और शिक्षा: लोगों को नदियों के महत्व के बारे में शिक्षित करना। समुदायों को जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण में शामिल करना। स्कूलों और कॉलेजों में जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के बारे में पाठ्यक्रम शामिल करना। बिहार की नदियों को बचाना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह असंभव नहीं है। सरकार, नागरिक समाज और लोगों को मिलकर काम करना होगा ताकि नदियों को पुनर्जीवित किया जा सके और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित किया जा सके ।
मोक्ष और ज्ञान दायिनी पुनपुन नदी
सनातन धर्म संस्कृति में में नदियों में गंगा, यमुना, ताप्ती, गोदावरी, सरस्वती, फल्गु और पुनपुन नदी का बड़ा महत्वपूर्ण है। वेदों, पुराणों एवं इतिहास के पन्नों में पुनपुन नदी को मोक्ष नदी कहा गया है। प्राचीन काल में पुनपुन नदी को कीकट नदी, बमागधी नदी , सुमागधी , पुण्या नदी नदी कहा गया है। सृष्टि के प्रथम स्वयंभुव मनु के मनवन्तर काल में झारखंड राज्य का पलामू जिले के उत्तरी क्षेत्र से समुद्र तल से 980 फीट ऊंची स्थित पिपरा प्रखंड के सरइया पंचायत के चौराहा पहाड़ियों के मध्य में अवस्थित कुंड स्थल पर वैदिक ऋषि सनक, सनातन, कपिल, पंचशिख और सनंदन ब्रह्मा जी की लिए घोर तप किए थे। ऋषियों के घोर तप के कारण ब्रह्मा जी ने दर्शन देकर वरदान देने के क्रम में ऋषियों ने अपने स्वेद अर्थात पसीने से ब्रह्मा जी का पांव पैर पखारने लगे परन्तु ऋषियों के स्वेद युक्त कमंडल से भूमि पर गिर जाता था। इस तरह पाच ऋषियों का भूस्थल पर स्वेद गिरने से ब्रह्मा जी ने पुन:पुन: शब्द कह कर सहस्त्र धारा ऋषियों के स्वेद को पवित्र किया था जिससे वहां पाच कुंड से अविरल धारा प्रवाहित होने लगी। ब्रह्मा जी ने स्वेद युक्त सहत्र धारा की महत्ता और नदी के जल में स्नान, जल तर्पण और नदी के तट पर व्यक्ति द्वारा अपने पूर्वजों को पिंडदान जलांजलि अर्पित करेगा उनके पूर्वज मोक्ष और पितृ ऋण, मातृ ऋण और गुरु ऋण से मुक्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होगी। वह स्थान कुंड ग्राम से ख्याति मिली है। पाच कुंड के स्रोतों से प्रवाहित पुनपुन नदी टंडवा के दक्षिणायन पुनपुन गोरकटी में प्रवाहित होकर सोमीचक से प्रारंभ होकर सोन नद का समानांतर होते हुए औरंगाबाद, अरवल और पटना के फतुहा के समीप गंगा में समाहित है। पुनपुन नदी छोटानगपुर पठार के पलामू जिले का पठार उतरी कोयल प्रवाह क्षेत्र के उतर से निकलकर सोन नद के समानांतर पुनपुन नदी का जल प्रवाह होता है। पुनपुन नदी की लंबाई 120 मील दूरी पर प्रवाहित होकर 3250 वर्गमील क्षेत्रफल में विकसित होकर जलसंभर आकार प्रदान करती हसि । पुनपुन नदी को पुण्या नदी , कीकट नदी , कीकट नली , बमागधी , सुमागधी , पुण्य पुण्य नदी कालांतर पुनपुन नदी कहा जाता है । पुनपुन नदी का उल्लेख वायु पुराण , पद्मपुराण , गरुड़ पुराण , गस्य महात्म्य तथा गजेटियर में किया गया है ।
ब्रह्मा जी की सहस्त्र धारा और पांच ऋषियों के स्वेद ( पसीने ) से युक्त पांच कुंड का पुनपुन की अविरल धारा पूर्वजों का मोक्ष और इंसान का सद्गुण के पथ पर चलने का मार्ग प्रशस्त करता है। कीकट प्रदेश की प्रमुख कीकट नदी और वैवस्वत मन्वंतर में मगध की पवित्र सुमागधी या बमागधी और ब्राह्मण धर्म संस्कृति में पुन: पुना: के नाम से ख्याति प्राप्त हुई हैं। त्रेता युग में इक्ष्वाकु वंश के भगवान् राम ने अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करने के लिए पटना जिले के पुनपुन में अवस्थित पुनपुन नदी के तट पर तथा वैशाली के राजा विशाल , द्वापर युग में पांडवों द्वारा अरवल जिले के पंतित अवस्थित पुनपुन नदी में स्नान कर अपने पूर्वजों की मोक्ष हेतु जलांजलि और पिंड अर्पित किया है। अरवल जिले के करपी से तीन किलोमीटर पर स्थित पुनपुन नदी के किनारे कात्यायनी माता के नाम पर कोयली घाट , पुनपुन नदी और मदार नदी के संगम पर भृगु ऋषि का आश्रम भृगुरारी तथा च्यवन ऋषि का प्रिय नदी थी। पुनपुन नदी में मोरहर, बटाने, अदरी, मदार बिखरी, धोवा एवं हिररण्यबाहु ( बह ) नदियों का जल विभिन्न स्थलों पर समाहित है।8 वीं सदी में सुमागधी को पुन:पुन: बाद में पुनपुन नाम से विख्यात है। गरुड़ पुराण पूर्व खंड अध्याय 84 में कहा गया है कि
कीकटेशु गया पुण्या ,पुण्यम राजगृहम वनम । च्यवनस्य पुण्यम नदी पुण्यों पुन: पुना:।।
1909 ई. में राजस्थान का खेतरी निवासी सुर्यमल जी, शिवप्रसाद झुनझुनवाला बहादुर ने पुनपुन में पुनपुन घाट पर धर्मशाला का निर्माण करा कर पिंडदान करने वालों के लिए कार्य किया। टंडवा में पुनपुन महोत्सव आयोजन कर पुनपुन नदी की अस्मिता की सुरक्षा और विकास प्रारंभ किया गया है। धारवाड़ तंत्र भुगर्भिक काल का छोटनगपुर पठार के मध्य और पूर्वी हिस्सों की परतदार चट्टाने 1800 मिलियन वर्ष पूर्व आग्नेय, शिफ्ट और नाईस से निर्मित है। विंध्य तंत्र की उत्पति विंध्य पर्वत से हुआ है। कृतेशस ( खड़िया या चाक ) उप महा कल्प का विस्तार 140 पूर्व झारखंड का क्षेत्र है। प्राय द्वीपीय भारत की चट्टानों की उत्पति 3600 मिलियन वर्ष पूर्व हुई है। पुनपुन नदी का उद्गम स्थल पर सनक कुंड, सनातन कुंड, कपिल कुंड, सनंदन कुंड और पंचशीख कुंड जिसे झील कहा जाता है। यह झील भू स्खलन तथा शैल पात के कारण हुआ था। झीलों का नदी के परिवर्तन होने पर कीकट नदी कहलाने लगा था बाद में पुनपुन नदी और फल्गु नदी के मध्य स्थल को किकट प्रदेश दैत्य संस्कृति के समर्थक गया सुर द्वारा निर्माण किया गया। किकट प्रदेश की राजधानी गया में रखा था। ब्रह्म पुराण के अनुसार सती साध्वी पुनियां किकट नदी के किनारे तपस्या के क्रम में इन्द्र द्वारा पुनीयां के सतीत्व की परीक्षा ली थी। इन्द्र और सभी देव पूनिया की सतीत्व पर प्रसन्न हो कर किकट नदी का नाम पुनपुन रखा और यह पूर्वजों की नदी एवं पितरों का उद्धारक और मानव संस्कृति साथ ही साथ मानव उद्धारक नदी की घोषणा की थी। पुनपुन नदी में स्नान, ध्यान, तर्पण करने वालों को कब्यवाह,सोम,यम, अर्यमा, अग्निश्वात , बहिर्षड और सोमपा पितरों को देवत्व प्राप्त तथा संतुष्टी होती है और मनोवांक्षित फल मिलता है। रुचि प्रजापति , प्रमलोचाना अप्सरा की दिव्य कन्या माननी, पितर अमूर्त, राजा विशाल, बुध , इला, वैवस्वत मनु का पवित्र नदी पुनपुन है।
गंगा का पानी 2. 86 प्रतिशत लोगों को उपलब
गंगा के अविलाल प्रवाह पर गंगा नदी के किनारे बसे गावों , शहरों और कस्बों की बढ़ती आबादी , जल की बढ़ती मांग ,औद्योगिक करण और शहरीकरण का प्रभाव पड़ने से गंगा नदी के प्रभाव में कमी और दिशा प्रभावित हुई है ।गंगा के जलधारा पर जलग्रहण लग गया है। बक्सर से कहलगांव तक गंगा की धारा दो दशक में सिकुड़ कर एक तिहाई हो गयी है।बिहार के बक्सर ,भोजपुर ,पटना ,वैशाली मुंगेर आदि जिलो सहित गंगा गुजराती है वहाँ की हवा में धूलकण की मात्रा अधिक हो जाती है । गंगा के किनारे एवं नाविक के अनुसार उत्तरप्रदेश ,की ओर गंगा में गाद अधिक जमा होती है ।इससे टीले उभरते और प्रदूषण का कारक बनते हैं। गंगा का बहु जल भंडारण 2 . 6 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष हो रही है । गंगा नदी में कुल क्षमता 41. 2 प्रतिशत जल संग्रहित है। औद्योकिकरण और शहरों , गांवों के बढ़ते प्रभाव के कारण गंगा में जल की कमी से खिसक रहा भूजलस्तर है। मुंगेर में 30 वर्षों में गंगा नदी में 3 फिट गाद, खगड़िया में गंगा से सटे गांवों में भू जलस्तर गिरता जा रहा है । कटिहार के समीप मनिहारी गाँव आदि कई गांवों में मार्च से जुलाई तक जल स्तर कूपों , चापाकल , नदियों का जल स्तर नीचे चला जाता है ।भोजपुर जिले के शाहपूर्व बड़हरा प्रखण्ड के दर्जनों गाँव से गुजरने वाली गंगा में सालों भर पानी रहता था परंतु गर्मी में पानी सूख जाता है। ग्रमीणों के अनुसार गंगा में गाद की बहुलता के कारण गंगा की जल स्तर सिकुड़ गयी है । बेगूसराय जिले की गंगा नदी में 20 वर्षों पूर्व पानी रहता था लेकिन गाद होने की वजह से गंगा जल मार्च से जून तक गंगा का पानी 3 की.मि. दूर हो जाती है। वैशाली जिले हाजीपुर और सारण जिले के सोनपुर में गंगा में जल धारा के कम होने से 4 किमी सिकुड़ गयी है । पटना में गंगा की जल धारा 3 किमी सिकुड़ गयी है । देश के जल संसाधन 28 प्रतिशत गंगा नदी का योगदान है । पीने का पानी और सिंचाई का संसाधन 2. 86 प्रतिशत गंगा नदी उपलब्ध कराती है । गंगा की पवित्र जल धारा को संरक्षित और संबर्धन करना अति आवश्यक है ।
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