मंगलवार, सितंबर 10, 2024

रणछोड़ और बडताल

: बडताल का परिभ्रमण 
सात्येन्द्र कुमार पाठक 
गुजरात राज्य का खेड़ा जिले के श्रीलक्ष्मीनारायण देव गादी का मुख्यालय बडताल में श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर अवस्थित है । श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर में  वास्तु शास्त्र के ज्ञाता ब्रह्मानंद स्वामी के द्वारा एवं सहजानंद स्वामी ने 03 नवंबर 1824 ई. में निर्मित मंदिर लक्ष्मी नारायण और रणछोड़ राय ,  दाईं ओर भगवान राधा रानी और श्री कृष्ण की उनके महाविष्णु रूप हरि कृष्ण के साथ मूर्ति और बाईं ओर वासुदेव , धर्म और भक्ति हैं। मंदिर के लकड़ी के खंभों पर रंग-बिरंगी लकड़ी की नक्काशी एवं धर्मशाला , ज्ञानबाग मंदिर के द्वार के उत्तर-पश्चिम में उद्यान में स्वामीनारायण को समर्पित चार स्मारक हैं। श्री लक्ष्मीनारायण देव और रणछोड़राय को स्वामीनारायण ने स्वयं इस मंदिर में आलिंगनबद्ध और स्थापित किया था । वडताल शहर को वडताल स्वामीनारायण मंदिर कमल के आकार का मंदिर के भीतरी मंदिर में नौ गुंबद हैं। मंदिर के लिए ज़मीन स्वामीनारायण के भक्त जोबन पागी ने दान की थी। मंदिर का निर्माण स्वामीनारायण ने करवाया था । निर्जला एकादशी के दिन वड़ताल से भक्त श्रीजी महाराज से मिलने गढ़डा गए थे । अगले दिन - ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष के द्वादशी दिन - उन्होंने स्वामीनारायण से वड़ताल में कृष्ण मंदिर बनाने का अनुरोध किया। श्रीजी महाराज ने शिष्य एसजी ब्रह्मानंद स्वामी को अस्थायी रूप से मुली मंदिर के निर्माण को छोड़ने और वड़ताल मंदिर के निर्माण की योजना बनाने और देखरेख करने के लिए संतों की टीम के साथ आगे बढ़ने का आदेश दिया। मंदिर का निर्माण १५ महीनों के भीतर पूरा हुआ और लक्ष्मीनारायण देव की मूर्तियों को ३ नवंबर १८२४ को वैदिक भजनों और स्थापना समारोह के भक्ति उत्साह के बीच स्वयं स्वामीनारायण ने  मंदिर के मध्य में   लक्ष्मीनारायण देव और रणछोड़ की मूर्तियां स्थापित कीं थी ।  मंदिर परिसर का केंद्रीय मंदिर  में विराजमान देवताओं के अतिरिक्त पूजा स्थल की बायीं दीवार में दक्षिणावर्त शंख और शालिग्राम की प्रतिमा स्थापित की गई  तथा आंतरिक गुम्बद में भगवान के दस अवतारों की पाषाण प्रतिमाएं और  शेषनाग के आसन पर विराजमान विष्णु की प्रतिमाएं स्थापित हैं । मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों को लाभ पहुँचाने के लिए  वडताल में 1929 ई. में रेलवे टर्मिनस खोला गया था। 14 मील लंबी ब्रॉड गेज लाइन बनाई गई वह कनजारी और बोरियावी से जोड़ती थी। जनवरी 1921 में महात्मा गांधी ने मंदिर में भाषण दिया, जिसमें हिंदू धर्म के लिए असहयोग की प्रासंगिकता के बारे में बात की गई , "इस पवित्र स्थान पर, मैं घोषणा करता हूं, यदि आप अपने 'हिंदू धर्म' की रक्षा करना चाहते हैं, तो असहयोग पहला और साथ ही अंतिम सबक है जिसे आपको सीखना चाहिए।" भारत का प्रथम गृहमंत्री  वल्लभभाई पटेल ( स्वामीनारायण दर्शन से प्रभावित थे । उनका पालन-पोषण स्वामीनारायण अनुयायियों के परिवार में हुआ था। उनके पिता हर पूर्णिमा के दिन तीर्थयात्रा में वडताल युवा पटेल को अपने साथ ले जाते थे।  वडताल में स्वामीनारायण मंदिर विश्व हिंदू परिषद  का सदस्य है।  विश्व हिंदू परिषद ने 2006 में वडताल में स्वामीनारायण मंदिर में 11वीं धर्म संसद आयोजित की है। स्वामीनारायण संप्रदाय का मुख्य मंदिर है और दक्षिण देश का लक्ष्मीनारायण देव गादी के आचार्य और उपदेशक हैं। मुख्य मंदिर के दक्षिणी छोर पर अक्षर भुवन की पहली मंजिल पर घनश्याम महाराज की खड़ी मूर्ति ,  दूसरी मंजिल पर बैठी मुद्रा में घनश्याम महाराज की मूर्ति है और  स्वामीनारायण की निजी वस्तुएँ  रखी गई हैं। पश्चिम में हरि मंडप स्थान पर  स्वामीनारायण ने शिक्षापत्री लिखी थी । वडताल शहर नगर के पूर्व में आम का बगीचा में  स्वामीनारायण ने होली जलाई थी और रंगों से खेला था। स्थान पर छतरी  स्थान के दक्षिण की ओर स्वामीनारायण ने बारह दरवाजों वाले झूले पर झूला झूला ,  स्थान पर संगमरमर की सीट बनाई गई है। स्वामीनारायण द्वारा खोदी गई गोमती झील नगर के उत्तर में है। झील के बीच में  आश्रय  और उसके पश्चिम में छतरी बनी हुई है ।  स्वामीनारायण ने झील के बगल में आम के पेड़ के नीचे वचनामृत का प्रचार किया था।
: गलतेश्वर महादेव मंदिर -  खेड़ा जिले के थसरा तालुका के गलतेश्वर का  महिसागर और गलती नदी के संगम पर स्थित है।  डाकोर के ठाकोरजी से  12 किलोमीटर दूर स्थित शिखर विहीन  गलतेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है। 
रणछोड़राय मंदिर  -   खेड़ा जिले का  डाकोर के गोमती झील के तट पर अवस्थित श्री कृष्ण  मंदिर किले की दीवार से घिरा हुआ है।  रणछोड़जी, भगवान कृष्ण , ने पूना में पेशवा के दरबार के श्रोत गोपाल जगन्नाथ अम्बेकर को  विशाल और भव्य मंदिर बनाने के लिए स्वप्न में प्रेरित किया। रणछोड़ राय मंदिर का निर्माण 1772 ई.   में  रणछोड़राय मंदिर के गर्भगृह में भगवान कृष्ण की  मूर्ति काले टचस्टोन से निर्मित एक मीटर ऊँची और 45  सेमी चौड़ी, सोने, जवाहरात और महंगे कपड़ों से  सुसज्जित , सिंहासन, चांदी और सोने में मढ़े हुए लकड़ी की नक्काशी युक्त अलंकृत उत्कृष्ट  उमरेठ और डाकोर के बीच विश्राम के लिए इस से जुड़ीभक्त बोडाना प्रसिद्ध है।  भगवान कृष्ण ने नीम वृक्ष की  शाखा उठाई के  स्पर्श मात्र से कड़वी शाखा मीठी हो गई थी। 
संतराम मंदिर -  गिरनार से नाडियाड  में श्रीसीताराम अवधूत 1872 ई. ई.  आए थे । श्रीसीताराम अवधूत को गिरनार बावा, विधाय बावा या सुख-सागजी कहा जाता है । श्री संतराम महाराज , आध्यात्मिक उपचार के तौर पर 15 साल तक यहां रहे और 1887 की पूर्णिमा के दिन समाधि ली लिया था ।
कुंड वाव -  सिद्धराज जयसिंह खेड़ा जिले में आये तो सेना को कपडवंज में रहना सुरक्षित लगा। यह जंगल से भरा क्षेत्र था। सिद्धराज के सोमदत्त पंडित को कुष्ठ रोग हो गया था। जहाँ कुण्डवाव था, वहाँ पहले एक पानी का गड्ढा था। उसमें फिसलकर वह मर गया। इन चमत्कारों को देखते हुए धर्मनिष्ठ राजा ने कुण्डवाव बनवाने का निर्णय लिया था । कुंड के उत्खनन के दौरान प्राप्त नारायण देव और महालक्ष्मी की मूर्तियाँ  प्राप्त कपड़वंज हैं। गरम पानी का पूल - खेड़ा जिले के कठलाल तालुका के लुसुंदर गांव में  गर्म जल  कुंड  और सोमनाथ महादेव मंदिर है। उसके बगल में एक झील है। यहां प्रकृति का सुंदर दर्शन होता है, जहां महादेव की बिखरी हुई डाली से नदी का पानी बहता है। मंदिर के सामने गर्म और ठंडे जल कुंड है। 
गोपालदास हवेली - नाडियाड से 16 किलोमीटर दूर वासो नामक पाटीदारों का एक गांव है। इस गांव को दरबार गोपालदास और महेंद्रसिंहभाई की हवेली के नाम से जाना जाता है। यह हवेली 250 साल पुरानी है। हवेली के हर कोने में लकड़ी से बनी कलाकृतियां हैं। हवेली के मालिक महेंद्रसिंहभाई देसाई पूर्व विधायक थे। हवेली के हर कमरे की छत भी सीम की लकड़ी से बनी है। हवेली डेढ़ बीघे में फैली हुई है। हालांकि लकड़ी की छीलन और नक्काशी दो शताब्दियों से भी ज्यादा पुरानी है। कुछ सालों तक प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करके बनाई गई फेस्को पेंटिंग काफ़ी मूल्यवान हुआ करती थी।
परीज में एक बड़ी झील, एक छोटी झील और रातादेवर झील है। खंभात की खाड़ी के आसपास के क्षेत्र में, झील में बड़ी संख्या में पक्षी पाए जाते हैं। झील के आसपास के क्षेत्रों में आम, पयवार और आयवर पाए जाते हैं। सारस इस क्षेत्र का प्रसिद्ध पक्षी है। भारत में, सारस केवल गुजरात और उत्तर प्रदेश में पाया जाता है। परीज की मुख्य झील का क्षेत्र १२ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसकी सामान्य गहराई ८ फीट और अधिकतम गहराई १०.५ फीट है। अहिंकल और नर्मदा नहर का पानी झील को भरने के लिए मुख्य स्रोत हैं। परीज झील में विभिन्न पक्षी पाए जाते हैं, और विशेष रूप से सारस बेलडी इस झील में पाई जाती है। यात्री और पक्षी प्रेमी अक्सर इन तालाबों को देखने आते हैं। इसलिए राज्य सरकार इस क्षेत्र को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का फैसला करती है। तीर्थराजश्री स्वामीनारायण मंदिर, वडताल - 1878 में चैत्र सदन में सहजानंद स्वामी ने मंदिर का निर्माण शुरू किया और 1881 के कार्तिक महीने में निर्माण पूरा हुआ। मजदूरों की जगह साधु-संत और सत्संगियों ने ईंटें, चूना, पकाना, सभी काम और निर्माण सेवाएं खुद ही लीं। मंदिर के आधार में कुल 9 लाख ईंटें इस्तेमाल हुईं। सहजानंद स्वामी ने खुद 37 ईंटें लीं। उनमें से 35 ईंटें लक्ष्मीनारायण की मूर्ति के आसन है।  गुजरात राज्य के हिंदी एवं गुजराती भाषीय  आणंद ज़िले के  मुख्यालय आणंद  का प्राचीन नाम आनंदपुर था। आणंद दूध उत्पादनों के लिए प्रसिद्ध अमूल सहकारी संघ के लिए जाना जाता है।  निर्देशांक: 22°33′22″N72°57′04″E / 22.556°N 72.951°Eनिर्देशांक: 22°33′22″N 72°57′04″E / 22.556°N 72.951°E पर स्थित आणंद ज़िला की समुद्र तल से 39 मीटर व 128 फीट ऊँचाई पर 2011 जनगणना के अनुसार जनसंख्या 209410  है।आनंदपुर का राजा गुर्जर नरेश शीलादित्य सप्तम के अलिया ताभ्रदानपट्ट की राजधानी  आनंदपुर  था । आनंदपुर सारस्वत ब्राह्मणों का मूल स्थान एवं  देवनागरी लिपि का आविष्कार किया था। युवानच्वांग ने 7 वीं सदी में  आनंदपुर का प्रांत मालवा के उत्तर पश्चिम की ओर साबरमती के पश्चिम में स्थित था।  मालवा राज्य के अधीन आनंदपुर था। इसका दूसरा नाम वरनगर था। ऋग्वेद प्रातिशाख्य के रचयिता उव्वट ने ऋग्वेद के अध्याय के अंत में इति आनन्दपुर वास्तव्यं लिखा है। नागर ब्राह्मण वरनगर के निवासी होने से  नागर कहलाए थे । चार दिवसीय आणंद परिभ्रमण 30 अगस्त 2024  से 02 सितंबर 2024 तक साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा गुजरात राज्य का आणंद जिले के ऐतिहासिक और प्राचीन स्थलों का  भ्रमण के दौरान  लक्ष्मी नारायण मंदिर , भगवान कृष्ण का स्थल , भगवान शिव मंदिर , झील , श्री  स्वामीनाथ मंदिर आदि स्थान रमणीय प्राप्त किया है ।

1 टिप्पणी:

  1. अति सुन्दर प्रस्तुति आलेख, डा उषाकिरण श्रीवास्तव

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