मंगलवार, अप्रैल 29, 2025

अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम

अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम:
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
अक्षय तृतीया का पावन दिन,
वैशाख शुक्ल तृतीया अनुपम।
अक्षय फलदायी कर्मों का,
यह बेला है मंगलमय, उत्तम।
विवाह, गृह-प्रवेश शुभ बेला,
खरीददारी, दान का होता मेला।
पितरों का तर्पण, भगवत पूजन,
पाप हों नष्ट, मिले पुण्य अनमोल।
गंगा स्नान का महत्व महान,
जप, तप, हवन, दान अक्षय जान।
सोमवार, रोहिणी नक्षत्र का योग,
बढ़ाए फल, हरे सब रोग।
मध्याह्न पूर्व से प्रदोष व्यापिनी,
तृतीया श्रेष्ठ, कल्याणदायिनी।
क्षमा याचना का दिन यह पावन,
दुर्गुण तज, भरो सदगुण मनभावन।
ब्रह्म मुहूर्त में उठो प्रातःकाल,
विष्णु पूजन करो, मन हो विशाल।
जौ, गेहूँ का सत्तू, ककड़ी, दाल चढ़ाओ**,
फल, फूल, वस्त्र, दक्षिणा ब्राह्मण पाओ।
सत्तू खाओ, पहनो नव वसन,
गौ, भूमि, स्वर्ण दान करो प्रसन्न।
जल भरे घड़े, पंखे, छाते दान**,
ग्रीष्म ऋतु में सुखद हो कल्याण।
लक्ष्मी नारायण की पूजा करो,
श्वेत या पीले पुष्प अर्पित धरो।
युगादि तिथि यह पावन कहलाती**,
सतयुग, त्रेता का आरंभ बताती।
नर-नारायण, हयग्रीव अवतरण,
अक्षय कुमार का शुभ दर्शन।
बद्रीनाथ कपाट खुलते आज**,
वृन्दावन में चरण दर्शन का साज।
धर्मदास वैश्य की कथा पुरानी,
अक्षय व्रत से बनी सुखद कहानी।
राजा चंद्रगुप्त का जन्म हुआ**,
वैशाख शुक्ल तृतीया शुभ हुआ।
रेणुका गर्भ से परशुराम अवतार,
कोंकण, चिप्लून में जयन्ती अपार।
दक्षिण भारत में महत्व विशेष**,
कथा श्रवण से मिटे क्लेश।
परशुराम पूजन, अर्घ्य का मान,
सौभाग्यवती, कन्या करें गौरी ध्यान।
मिठाई, फल, चने बाँटतीं प्यार से**,
कलश दान करें भक्ति भाव से।
जन्म से ब्राह्मण, कर्म से क्षत्रिय वीर,
भृगुवंशी परशुराम, शक्ति गंभीर।
माता पूजन का अद्भुत योग**,
प्रसाद बदला, विधि का संयोग।
ऋषभदेव तपस्या पूर्ण की,
इक्षु रस से पारायण किया सभी।
आदिनाथ वैरागी बने महान**,
अहिंसा, सत्य का दिया शुभ ज्ञान।
श्रेयांस कुमार ने पहचाना प्रभु,
गन्ने का रस दिया, मिटा क्षुधा रभु।
इक्षु तृतीया, अक्षय तृतीया नाम**,
जैन धर्म में इसका ऊंचा मुकाम।
वर्षीतप आराधना का काल,
कार्तिक कृष्ण अष्टमी से चाल।
वैशाख शुक्ल तृतीया पारण**,
धन्य हों भक्त, मिटे सब भारण।
बुन्देलखण्ड में उत्सव महान,
कुँवारी कन्याएँ बाँटें शगुन गान।
राजस्थान में शगुन वर्षा का**,
गीत गातीं लड़कियाँ, पतंग उड़ाता हर बच्चा।
सात अन्नों से पूजा यहाँ,
मालवा में घड़े पर खरबूजा, आम जहाँ।
कृषि कार्य का होता शुभारम्भ**,
अक्षय तृतीया है सुखद आलम्भ।
त्रेता युग का पावन प्रारंभ,
परशुराम, नर-नारायण का आरंभ।
हयग्रीव का अवतरण भी आज**,
अक्षय तृतीया का अद्भुत साज।
चंद्रगुप्त का जन्म भी इसी दिन,
अहिंसा, प्रेम का मंत्र दिया जिन।
अक्षय तृतीया का यह पावन पर्व**,
समृद्धि, सुख, शांति लाए सर्व।


गुरुवार, अप्रैल 24, 2025

शिशुओं का संजीवनी है लोरी गीत

 



 









लोरी: अबोध शिशु के लिए संजीवनी
सत्येन्द्र कुमार पाठक
लोरी एक ऐसी मधुर ध्वनि है जो पीढ़ी दर पीढ़ी माता-पिता से बच्चों तक चली आ रही है। यह वह जादुई स्पर्श है जो रोते हुए शिशु को पल भर में शांत कर गहरी नींद में सुला देता है। जब कोई बच्चा बेचैन होता है या मां के हृदय में वात्सल्य उमड़ता है, तो लोरी सहज ही उसके होंठों से फूट पड़ती है। मधुर शब्दों और कर्णप्रिय संगीत से सजी लोरी शिशु के कानों में पड़ते ही उसके अशांत मन को शांति से भर देती है। अक्सर जब छोटा बच्चा सोने में आनाकानी करता है, तो मां व्याकुल हो उठती है और उसे सुलाने के लिए सपनों की दुनिया से निंदिया रानी को पुकारती है। वह लाड़-प्यार से भरे शब्दों में निंदिया को रिझाने का प्रयास करती है। बच्चे को नींद आए, इसके लिए मां न जाने कितने जतन करती है। वास्तव में, बच्चों के लिए लोरी केवल सुलाने का एक तरीका नहीं है, बल्कि यह उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भी मजबूत बनाती है। हर मां अपनी भावनाओं और शब्दों से लोरी को एक नया रूप देती है। यह केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि पक्षी और जानवर भी अपने बच्चों को लोरी सुनाते हैं। उनकी चहचहाहट, फुसफुसाहट और अन्य ध्वनियों में भी लोरी का भाव छिपा होता है, जो उनके बच्चों को अपने विशिष्ट अंदाज में दुलारता है। भारत और लोरी का संबंध तो सदियों पुराना है। मार्कण्डेय पुराण में मदालसा का प्रसिद्ध प्रसंग इसका प्रमाण है, जिसमें वह अपने बच्चों को सुलाने के लिए सुंदर लोरियां गाती हैं। मदालसा को ही लोरी की जननी माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम अपने पुत्र अलर्क को सुलाने के लिए लोरी गाई थी, जिसका वर्णन मार्कण्डेय पुराण के 18 से 24वें अध्याय में मिलता है। रामायण काल में भी माता कौशल्या बालक श्रीराम को लोरी गाकर सुलाती थीं, जिसका उल्लेख तुलसीदास ने गीतावली में किया है सृष्टि के आरंभ से ही प्रत्येक मां अपने बच्चे को लोरी गाकर और थपकी देकर सुलाती आई है। सुलाते समय वह न जाने कितनी बार अपने बच्चे को गोद में लेकर प्यार करती है। उस समय उसके मुख से अनायास ही ऐसी मधुर ध्वनियां निकलती हैं, जिनका कोई विशेष अर्थ नहीं होता, लेकिन वे अपनी मधुरता से बच्चे को सुलाने में सक्षम होती हैं। इन ध्वनियों को सुनकर रोता हुआ बच्चा भी शांत होकर सो जाता है। गांव की श्रमिक महिलाएं भी, जो खेतों में काम करती हैं, अपने बच्चों को पेड़ की डालों पर कपड़े में लटकाकर दूर तक डोरी पकड़कर हिलाती रहती हैं और लोरी गाती हैं। काम करते-करते ही वे अपने बच्चों को सुलाने का प्रयास करती हैं। लोरी सुनकर बच्चे को यह अहसास होता है कि उसकी मां उसके पास ही है, और वह निश्चिंत होकर सो जाता है, जबकि मां अपना काम करती रहती है। कुछ व्यस्त महिलाएं बच्चे को पालने में सुलाकर उसमें घंटी और घुंघरू लगा देती हैं। इन मधुर ध्वनियों से भी बच्चे को लोरी जैसा अनुभव मिलता है और वह सो जाता है।। चाहे देश हो या विदेश, अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी, लगभग सभी माताएं अपने बच्चों को सुलाने के लिए लोरी का प्रयोग करती हैं और बड़े प्यार व सम्मान से लोरी गाती हैं। लोरी के साथ-साथ मां के मुख से निकलने वाले सहज शब्द, हाथों की ताली, चुटकी और थपथपाहट भी बच्चे को सुखद नींद प्रदान करते हैं। लोरी के शब्दों में बच्चे के लिए मां की शुभकामनाएं और उसके भविष्य से जुड़ी आशाएं व उम्मीदें छिपी होती हैं। इसमें हास-परिहास भी होता है। लोरी मां और बच्चे के बीच आनंद, प्रेम और विश्वास के भावों को खोलती है। लोरी मां का आशीर्वाद है, जिसे सुनकर नन्हा शिशु प्रसन्न होता है। यद्यपि लोरी के रचनाकार का कोई निश्चित नाम नहीं होता, यह वास्तव में एक मां के हृदय की सहज रचना होती है। लोरी के माध्यम से संसार की हर मां अपने बच्चे के चेहरे पर सुकून का भाव लाती है, जो उसे भी प्रसन्न करता है। निसंदेह, लोरी अबोध और कोमल बच्चे के लिए संजीवनी है, जिसका प्रारंभ लगभग चार हजार वर्ष पूर्व हुआ था। सनातन धर्म की संस्कृति और ग्रंथों में लोरी का विशेष महत्व है।
बाल लोरी निम्नलिखित है
 01 . सोजा मुन्ना सोजा,लाल पलंग पर सोजा 
दादी तेरी आएंगी,लाल खिलौना लाएगी।
बुआ तेरी आएंगी,दूध मलाई लाएगी।
सोजा मुन्ना सोजा, लाल पलंग पर सोजा।
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02. चंदा मामा दूर के,पुआ पकाएं गुड़ के 
अपने खाते थाली में,मुन्ने को प्याली में 
प्याली गई फूट, मुन्ना गया रुठ 
बजा-बजाकर थालियों,मुन्ने को मनाऊंगा 
दूध -भात खिलाऊंगा ,मून्ने को मनाऊंगा।
घुघुआ मन्ना,उपजे धन्ना नया भित्ति गिर हे।
पुराना भित्ति उठ है ।।
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03 .बबुआ को पहनायेंगे दोनों कान में सोना
बुढ़िया नानी,सोने के कटोरी में 
दूध-भात रखे रहना 
बबुआ मेरा जायेगा दूध-भात खायेगा 
नया घर उठायेगा पूराना घर गिरायेगा।
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04 . आजा रे निंदिया जल्दी से आ 
बबुआ के अंखियां में नींद देके जा
नानी के घर जायेगा,दूध मलाई खायेगा 
राजा बेटा प्यारा बेटा जल्दी से बडा हो जायेगा 
घोड़े चढ़ कर जायेगा, दुल्हन लेकर आयेगा 
आजा रे निंदिया जल्दी से आ 
बबुआ के अंखियां में नींद देके जा ।
05 .प्यारा देश, प्यारे बच्चे
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सो जाओ मेरे प्यारे, आँखें मींचो धीरे,
यह मिट्टी सोना उगले, बहती गंगा नीरे।
सोजा मुन्ना सोजा, तू भारत माँ का तारा,
तेरी आँखों में चमके, भविष्य का उजियारा।
गांधी बापू की बातें, तुझको याद रहेंगी,
अहिंसा की राहों पर, तेरी चाल चलेगी।
सोजा मुन्ना सोजा, तू सत्य का पुजारी,
सबको प्यार से देखना, ये सीख हमारी।
ऊँचा तिरंगा लहराए, अपनी शान बढ़ाए,
सब मिलकर गाएं गीत, जो दिल में उमंग लाए।
सोजा मुन्ना सोजा, तू वीर जवानों का बेटा,
देश की रक्षा करना, तेरा कर्तव्य है मोटा।
चाँद सितारों की नगरी, सपनों में आएगी,
परियों की मीठी लोरी, तुझको सुनाएगी।
सोजा मुन्ना सोजा, ये रात सुहानी है,
कल सुबह नई दुनिया, तुझको दिखानी है।
खेल खिलौनों से भरना, तेरा आंगन हमेशा,
हँसी और खुशी से महके, तेरा जीवन हमेशा।
सोजा मुन्ना सोजा, तू भोला-भाला बच्चा,
तेरी हर इच्छा पूरी हो, यही है मेरी इच्छा।
06. मेरा प्यारा परिवार
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सो जा मेरे नन्हे, पलकें हों अब भारी,
तेरी आँखों में दिखती, माता की फुलवारी।
सोजा मुन्ना सोजा, माँ ममता की छाया,
दिन भर की थकान में, तूने चैन है पाया।
पिता का है साया, तुझ पर दिन और रात,
सिखलाते हैं जीवन के, सुन्दर प्यारे बात।
सोजा मुन्ना सोजा, पिता शक्ति का सागर,
उनकी मेहनत से रोशन, तेरा सुन्दर नगर।
भैया तेरा प्यारा, खेलेगा कल सुबह,
लेकर आएगा खिलौने, नए और अनूठे सब।
सोजा मुन्ना सोजा, भाई स्नेह की धारा,
जिसमें बहता है निर्मल, प्यार का इशारा।
प्यारी बहना तेरी, गाएगी मीठे गान,
रखवाली करेगी तेरी, देकर अपना ध्यान।
सोजा मुन्ना सोजा, बहना प्यार की मूरत,
उसके होने से घर में, है कितनी सूरत।
सबका प्यार है तुझ पर, छाया बनकर घेरे,
तू सो जा आराम से, सपने देख सुनहरे।
सोजा मुन्ना सोजा, तू घर का उजाला,
तेरे होने से होता, हर दिन कितना आला।
07 . खेलते गाते सोते
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सो जा मेरे प्यारे, सपनों की है बारी,
जहाँ खेल खिलौनों की, सजी है फुलवारी।
सोजा मुन्ना सोजा, रंग-बिरंगे खेल,
गुड़िया, गेंद और हाथी, सबका लगता है मेल।
कल सुबह उठकर फिर, तू खेलेगा खूब,
दौड़ेगा भागेगा और, भरेगा हर धूप।
सोजा मुन्ना सोजा, ये खेल हैं सुहाने,
जो तुझको सिखाते हैं, नए-नए तराने।
नीला-नीला पानी, बहता है धीरे,
मछली और कछुआ भी, सोते हैं तीरे।
सोजा मुन्ना सोजा, ये जल है जीवन,
प्यास बुझाता सबकी, है कितना पावन।
हरे-भरे ये पेड़, देते हैं ठंडी छाँव,
पक्षी भी सोते हैं, इनमें बसा के गाँव।
सोजा मुन्ना सोजा, ये प्रकृति का दान,
इनसे ही मिलता हमको, जीवन का सम्मान।
छोटे-छोटे कीड़े, रंग-बिरंगी तितली,
सबको है आराम, अब रात है फिसली।
सोजा मुन्ना सोजा, ये प्यारे से जीव,
धरती को बनाते हैं, सुन्दर सजीव।
सपने में आएंगे, हाथी और घोड़े,
भालू और खरगोश भी, मिलकर दौड़ेंगे थोड़े।
सोजा मुन्ना सोजा, ये दुनिया है प्यारी,
सब सोते हैं मिलकर, क्या नर क्या नारी।
08. जीवन का आधार
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सो जा मेरे प्यारे, अँखियाँ बंद कर ले,
जल है तो जीवन है, यह बात मन में धर ले।
सोजा मुन्ना सोजा, पानी अमृत धारा,
प्यास बुझाए सबकी, जग का है सहारा।
नदी और झरने, बहते हैं कल-कल,
सागर में मिलता है, बनकर वह निर्मल।
सोजा मुन्ना सोजा, जल की है कहानी,
जिससे हरी-भरी है, यह धरती सुहानी।
हरी-भरी धरती पर, फैली है हरियाली,
पेड़ और पौधे देते, सुन्दरता निराली।
सोजा मुन्ना सोजा, ये जीवन की छाया,
इनकी ही साँसों से, हमने जीवन पाया।
फूलों की रंगत और, पत्तों की है लाली,
सब मिलकर गाते हैं, खुशियों की डाली।
सोजा मुन्ना सोजा, ये प्रकृति का श्रृंगार,
इनके बिना तो जीवन, है बिल्कुल बेकार।
कल सुबह उठकर तू, देखना ये नज़ारे,
पानी की कल-कल और, फूलों के प्यारे।
सोजा मुन्ना सोजा, ये दुनिया है अपनी,
जल और हरियाली से, सजी है ये सपना।
09 . भारत की जीवनदायिनी नदियाँ
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सो जा मेरे प्यारे, पलकें धीरे मींचो,
भारत की नदियों का, मधुर संगीत सुनो।
सोजा मुन्ना सोजा, गंगा की है धारा,
पवित्र जल से धोती, पापों की कारा।
यमुना किनारे देखो, कृष्ण की है लीला,
प्रेम और भक्ति का, बहता है रंगीला।
सोजा मुन्ना सोजा, यमुना की है रवानी,
जो सिखाती है सबको, प्रेम की कहानी।
सरस्वती अदृश्य हैं, ज्ञान की हैं सागर,
उनकी कृपा से रोशन, होता है हर नागर।
सोजा मुन्ना सोजा, विद्या की है देवी,
ज्ञान का प्रकाश भर दे, जीवन में अभी।
फल्गु की शांति में, पितरों का है आशीष,
गया की धरती पर है, इसका मधुर रस।
सोजा मुन्ना सोजा, फल्गु की है महिमा,
जो दिलाती है सबको, शांति की गरिमा।
पुनपुन और सोन देखो, बहते हैं साथ में,
बिहार की धरती को, सींचते हैं प्यार से।
सोजा मुन्ना सोजा, इन नदियों का संगम,
जीवन में लाता है, खुशियों का परचम।
ब्रह्मपुत्र विशाल है, शक्ति का है सागर,
पूरब की धरती का, अनुपम है गागर।
सोजा मुन्ना सोजा, इस नदी का बल,
जो सिखाता है जीवन में, हर मुश्किल का हल।
कावेरी दक्षिण की, जीवन रेखा कहलाती,
अपनी मधुर धारा से, धरती को महकाती।
सोजा मुन्ना सोजा, कावेरी का है पानी,
जो भरता है खेतों में, सुनहरी कहानी।
क्षिप्रा के तट पर उज्जैन का है धाम,
महाकाल का आशीष, हर सुबह हर शाम।
सोजा मुन्ना सोजा, क्षिप्रा की है लहरें,
जो भक्ति और श्रद्धा के, रंग हैं गहरे।
गोदावरी गौतमी हैं, दक्षिण की शोभा,
अपनी पवित्रता से, हर मन को लोभा।
सोजा मुन्ना सोजा, इन नदियों का जोड़ा,
जो जीवन को देता है, अनमोल यह तोड़ा।
नर्मदा मैया देखो, धीरे-धीरे बहती,
मध्य भारत की धरती को, अमृत रस देती।
सोजा मुन्ना सोजा, नर्मदा का है पानी,
जो भरता है जीवन में, सुन्दर जिंदगानी।
ये नदियाँ हमारी, भारत की हैं शान,
इनके जल से होता है, धरती का कल्याण।
सोजा मुन्ना सोजा, नदियों का यह गान,
तुम्हारे सपनों में लाए, सुखों का जहान।
😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢
लोरी: अबोध शिशु के लिए संजीवनी" सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा लिखा गया है। इसमें लोरी के महत्व और उसकी परंपरा पर सुंदर प्रकाश डाला गया है। लोरी की मधुरता और प्रभाव: लोरी एक जादुई ध्वनि है जो रोते हुए बच्चे को शांत करती है और गहरी नींद में सुलाती है। यह मां के वात्सल्य और प्रेम का सहज प्रकटीकरण है।
लोरी केवल सुलाने का माध्यम नहीं: यह बच्चों को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाती है।
सार्वभौमिकता: लोरी केवल मनुष्यों में ही नहीं, बल्कि पक्षियों और जानवरों में भी अपने बच्चों को दुलारने का एक सहज तरीका है। ऐतिहासिक महत्व: भारत में लोरी की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसका प्रमाण मार्कण्डेय पुराण में मदालसा और रामायण में माता कौशल्या के प्रसंगों से मिलता है। मदालसा को लोरी की जननी माना जाता है।
ग्रामीण जीवन में लोरी: गांव की श्रमिक महिलाएं भी काम करते-करते अपने बच्चों को लोरी सुनाकर सुलाती हैं, जिससे बच्चे को मां के पास होने का अहसास होता है। आधुनिक संदर्भ: व्यस्त महिलाएं पालने में घंटी और घुंघरू लगाकर बच्चे को लोरी जैसा अनुभव कराती हैं।मां की भावनाएं और आशीर्वाद: लोरी के शब्दों में मां की शुभकामनाएं, भविष्य की आशाएं और प्रेम छिपा होता है। यह मां और बच्चे के बीच आनंद, प्रेम और विश्वास के बंधन को मजबूत करती है।रचनाकार का महत्व: लोरी किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं होती, बल्कि यह हर मां के हृदय की सहज अभिव्यक्ति होती है। सनातन धर्म में महत्व: सनातन धर्म की संस्कृति और ग्रंथों में लोरी का विशेष महत्व है।
बाल लोरियों के उदाहरण: लेख में विभिन्न प्रकार की बाल लोरियों के उदाहरण दिए गए हैं, जिनमें सोने, चंदा मामा, निंदिया रानी, देश प्रेम, परिवार का प्यार, खेल-कूद, प्रकृति और नदियों के महत्व का वर्णन है।
यह लेख लोरी की सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्ता को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत करता है। लेखक ने ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भों के साथ-साथ विभिन्न बाल लोरियों के उदाहरण देकर विषय को और अधिक जीवंत बना दिया है। यह लेख न केवल बच्चों के लिए लोरी के महत्व को दर्शाता है, बल्कि मां और बच्चे के अटूट बंधन को भी रेखांकित करता है। लोरियां पीढ़ी दर पीढ़ी स्नेह और संस्कृति को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।