सनातन संस्कृति में आध्यात्मिक , सामाजिक तथा नवचेतना का प्रतिमूर्ति संकट मोचन पवन पुत्र हनुमान जयंती चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक चैत्र पूर्णिमा को ही बजरंगबली का जन्म हुआथा। इस साल 2021 में हनुमान जयंती का पर्व 27 अप्रेल को मनाया जाएगा। इसदिन बजरंगबली की विधिवत पूजा करने से शत्रु पर विजय मिलने के साथ ही मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। पवन पुत्र हनुमान को भगवान शिव का 11 वां अवतार माना जाता है। उनका अवतार रामभक्ति और भगवान श्री राम के कार्यों को सिद्ध करने के लिए हुआ था। वे बाल ब्रह्मचारी थे और बचपन से लेकर अपना पूरा जीवन उन्होंने राम भक्ति और भगवान श्री राम की सेवा में समर्पित कर दिया था। हनुमान जी को भगवान शिव का 11वां अवतार माना जाता है। हनुमान जी के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार अमरत्व की प्राप्ति के लिये जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो उससे निकले अमृत को असुरों ने छीन लिया। इसके बाद देव और दानवों में युद्ध छिड़ गया। इसे देख भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया, जिसे देख देवताओं और असुरों के साथ ही भगवान शिव भी कामातुर हो गए। इस दौरान भगवान शिव ने वीर्य त्याग किया, जिसे पवनदेव ने वानरराज केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया। इसके फलस्वरूप माता अंजना के गर्भ से श्री हनुमान का जन्म हुआ है। हनुमान जयंती का व्रत रखने वालों को एक दिन पूर्व ब्रह्मचर्य का पालन करने के साथ ही कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान श्रीराम, माता सीता व श्री हनुमान का स्मरण करने के बाद स्वच्छ होकर हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कर विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इन्हें जनेऊ भी चढ़ाई जाती है। सिंदूर और चांदी का वर्क चढ़ाने की भी परंपरा है। कहा जाता है, एक बार माता सीता को मांग में सिंदूर लगाते देख हनुमान जी ने इसका महत्व पूछा। माता सीता ने उन्हें बताया कि पति की लंबी आयु के लिए मांग में सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद भगवान श्री राम की लंबी आयु के लिए हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया था, इसीलिए हनुमान जयंती के दिन उन्हें सिंदूर चढ़ाया जाता है। इसके अलावा हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ किया जाता है और उनकी आरती उतारी जाती है। इस दिन स्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का अखंड पाठ भी करवाया जाता है। प्रसाद के रुप में उन्हें गुड़, भीगे या भुने चने एवं बेसन के लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
ग्रह दोषों से पीड़ित व्यक्ति हनुमान जी के चित्र समक्ष मंगलवार और शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जरूर लगाएं। प्रतिदिन बजरंग बाण का पाठ करने से दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। तुलसी के 108 पत्तों पर जय श्री राम लाल चंदन से लिखकर भगवान हनुमान जी को अर्पण करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है। एक बैठक में हनुमान चालीसा के सौ पाठ पूरे करने से विघ्नों का नाश हो जाता है। हनुमान जी को बेसन के लड्डूओं का भोग लगाकर वह लड्डू मंदिर में ही बांट दें। धन संबंधी परेशानियां दूर हो जाएंगी। हर शनिवार सुंदरकांड का पाठ करने से बुरे दिनों का अंत हो जाता है।संकट मोचन हनुमान जयंती चैत्रमास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि , मंगलवार, त्रेतायुग ( चैत्रमास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा मंगलवार विक्रमाब्द 2078 , दिनांक 27 अप्रेल 2019 ई. ) है। पूर्णिमा तिथि आरंभ – 26 अप्रेल 2021 को शाम 12:44 बजे से पूर्णिमा तिथि समाप्त – 27 अप्रेल 2019 को सुबह 09:01 बजे तक है।
हनुमान जी की माता थी अंजना। वह वानर राजा केसरी की पत्नी थी। पुंजिक थला नाम की एक अप्सरा थी जो इंद्र के दरबार में नृत्य किया करती थी यह वही अप्सरा थी जो समुद्र मंथन के समय में निकली थी उस समय तीन अप्सराएं निकली थी उनमें से पुंजिक थला भी एक अप्सरा पुंजत्थला एक बार धरती लोक में आई और उन्होंने महा ऋषि दुर्वासा जो एक ऋषि थे और वह तपस्या कर रहे थे वह एक नदी के किनारे बैठे हुए थे और ध्यान मुद्रा में थे पुंजत्थल ने उन पर बार-बार पानी फेंका जिससे उनकी तपस्या भंग हो गई और तब उन्होंने पुंजिक थला को श्राप दे दिया कि तुम इसी समय वानरी हो जाओ और पुंजिक थला उसी समय वानरी बन गई और पेड़ों पर इधर उधर घूमने लगी देवताओं के बहुत विनती करने के बाद ऋषि ने उन्हें बताया की इनका दूसरा जन्म होगा और तुम वानरी ही रहोगी लेकिन अपनी इच्छा के अनुसार तुम अपना रूप बदल सकोगी। तभी केसरी सिंह नाम के एक राजा वहां पर एक मृग का शिकार करते हुए आए वह मृग घायल था और वह ऋषि के आश्रम में छुप गया ऋषि ने राजा केसरी से कहा कि तुम मेरे आश्रम से इसी समय अतिशीघ्र चले जाओ नहीं तो मैं तुम्हें श्राप दे दूंगा यह सुनकर केशरी हसने लगे और बोले मैं किसी श्राप को नहीं मानता हूं क्रोध में आकर ऋषि ने उन्हें भी श्राप दे दिया और कहा कि तुम भी बांदर हो जाओ फिर उधर पुंजिक थला वह भी बांदरी थी इन दोनों ने भगवान शिव की तपस्या की भगवान शिव ने इन्हें वरदान दिया कि तुम अगले जन्म में वानर के रूप में ही जन्म लोगे लेकिन तुम लोग इच्छा के अनुसार अपना रूप बदल सकोगे इसके बाद उन्होंने यह भी कहा कि तुम दोनों को एक पुत्र होगा जो बहुत तेजस्वी और बहुत पराक्रमी होगा जिनका नाम युगों युगों तक लिया जाएगा फिर उन दोनों वानरों का शरीर वही पर त्याग कर वह दोनों अलग-अलग रूप में अलग अलग राज्य में जन्म लिए जिसमें केसरी वासुकी नाम के एक राजा के यहां जन्म लिए वह वानरों के राजा थे और पुंज थला पुरू देश के राजा पुंजर के यहां जन्मी ऐसा पुराणों में लिखा मिलता है और फिर धीरे-धीरे दोनों बड़े हुए और फिर महाराज पुंजर ने अपनी बेटी अंजना का विवाह महाराज वासुकी के पुत्र केसरी से किया कुछ दिनों के उपरांत उन्हें एक पुत्र हुआ जिसका नाम बजरंगबली हनुमान केसरी नंदन आदि नामों से जाना जाता है उन्हें पवन पुत्र भी कहा जाता है क्योंकि हनुमान जी के पालनहार वायु देवता ही हैं उन्होंने हनुमान जी को जन्म से लेकर हमेशा उनका साथ दिया है और हर वक्त पर मिले हैं और उनका पालन पोषण भी वायु देवता के निकट ही हुआ है इसलिए उनको पवन पुत्र भी कहा जाता है और यह थी माता अंजना की विस्तृत कहानी।
हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं।[1] रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। हनुमान शक्ति, ज्ञान, भक्ति एवं विजय के भगवान, बुराई के सर्वोच्च विध्वंसक, भक्तों के रक्षक ,वानर, रुद्र अवतार, राम के भक्त कहा जाता है। ग्रह पृथ्वी , मंत्र ॐ श्री हनुमते नमः
ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (हवा का बेटा) है । हनुमान सूरज को फल मानते हुए पकड़ने के लिए आगे बढ़ते हैं।इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"राहु की यह बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि।हिँदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति परमेश्वर की भक्ति की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। पुराणों, रामायण के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं।[1] रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।ज्योतिषीयों के गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" हैं। किनिष्किदा कर्नाटक के अंजान पर्वतमाला के अंजना गुफा में अंजनिपुत्र का जन्म स्थल कहा जाता है।
हनुमानजी को संकट मोचक के नाम से जाना जाता है। जीवन के हर समस्या का समाधान बजरंगबली जी के पास है। ऐसा कहा जाता है कि हनुमानजी में इतनी शक्ति है कि धरती के किसी भी दुख को खत्म कर सकते है। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी बहुत जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। उनकी पूजा पाठ में ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती।हनुमानजी को संकट मोचक के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जीवन के हर समस्या का समाधान बजरंगबली जी के पास है। ऐसा कहा जाता है कि हनुमानजी में इतनी शक्ति है कि धरती के किसी भी दुख को खत्म कर सकते है। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी बहुत जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। उनकी पूजा पाठ में ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती। आज के समय में वीर हनुमान जी के भक्तों की संख्या भी बहुत अधिक हो गई है। ज्योतिषीयों के अनुसार बजरंगबली का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था। हनुमानजी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे और माता अंजनी थी। हनुमान जी को पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हनुमानजी के पांच भाई थे, इसका प्रमाण शास्त्रों में वर्णित है। ब्रह्मांडपुराण में हनुमान जी के पिता केसरी और उनके पुत्रों के बारे में उल्लेख किया गया है। इसमें वानर राज केसरी के 6 पुत्रों के बारे में बताया गया। अपने सभी भाइयों में बजरंगबली को सबसे बड़े बताया गया है। केसरीनंदन के पांच भाइयों के नाम इस तरह हैं- मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान। इन सभी के बारे में संतानों का उल्लेख भी इस ग्रंथ में है। महाभारत काल में पांडु पुत्र व बलशाली भीम को भी हनुमान जी का ही भ्राता कहा गया है। बहुत कम लोग ही जानते है कि इस ग्रंथ में हनुमान जी के पुत्र का नाम मकरध्वज का वर्णन किया गया।
ऐसा कहा जाता है कि पुंजिकस्थली देवराज इन्द्र की सभा में एक अप्सरा थीं। एक बार जब दुर्वासा ऋषि इन्द्र की सभा में उपस्थित थे, तब अप्सरा पुंजिकस्थली बार-बार अंदर-बाहर आ-जा रही थीं। यह देखकर दुर्वासा को गुस्सा आ गया और उन्हें वानरी हो जाने का श्राप दे दिया। पुंजिकस्थली ने क्षमा मांगी, तो ऋर्षि ने इच्छानुसार रूप धारण करने का वर दिया। इसके बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी रूप में जन्म लिया। उनका नाम अंजनी रखा गया। अंजनी बड़ी होने पर पिता ने उसका विवाह पराक्रमी कपि शिरोमणी वानरराज केसरी से हुआ। इस प्रकार पुंजिकस्थली माता अंजनी कहलाईं है । हनुमान जी की अराधना करते समय शुद्धता और पवित्रता होना आवश्यक है । हनुमान जी का प्रसाद शुद्ध घी में बना होना चाहिए । तिल के तेल में मिला हुआ सिंदूर हनुमान जी को लेपना अच्छा होता है । चंदन को घिसकर केसर में मिलाएं और इसे हनुमान जी को लगाएं। हनुमान जी को कमल, गेंदे, सूरजमुखी फूल अर्पित करें । हनुमान जी को सुबह में पूजा करते समय गुड़, नारियल का गोला और लड्डू चढ़ाना चाहिए। वहीं, दोपहर में गुड़, घी और गेहूं की रोटी का चूरमा चढ़ाना चाहिए। रात में आम, अमरूद, केला आदि फल चढ़ाने चाहिए। हनुमान जी को पूजा करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। नैवेद्य हनुमान जी को अर्पित किया जाता है उसे साधक को ग्रहण करना चाहिए । हनुमान जी की मूर्ति के के नेत्रों में देखते हुए मंत्रों का जाप करें। हनुमान जी की पूजा में दो तरह की मालाओं के साथ की जाती है। सात्विक कार्य से संबंधित साधना में रुद्राक्ष की माला तथा तामसी एवं पराक्रमी कार्यों के लिए मूंगे की माला का इस्तेमाल किया जाता है।केसरीनंदन के पांच भाइयों के नाम इस तरह हैं- मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान. इन सभी की संतानों का उल्लेख महाभारत काल में पांडु पुत्र व बलशाली भीम को भी हनुमान जी का ही भ्राता कहा गया है।'ब्रह्मांडपुराण' में लिखा है कि केसरी ने कुंजर की पुत्री अंजना को पत्नी के रूप में स्वीकार किया. अंजना रूपवती थीं. इन्हीं के गर्भ से प्राणस्वरूप वायु के अंश से हनुमान का जन्म हुआ । हनुमान जी के भाइयों में मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान है।
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