गुरुवार, नवंबर 17, 2022

शीतलता और आध्यात्मिक स्थल है अगम कुवाँ...

मागधीय संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना क्षेत्र पटना के अगम कुवाँ स्थल है । महाभारत काल में माता शीतला माता और कूप का जल निरोगता और आध्यात्मिक चेतना जगृत स्थल था । जैन धर्म और बौद्ध धर्म तथा शाक्त धर्म स्टाल के रूप में प्रसिद्ध के कारण अगम कहा गया था ।
बिहार राज्य की राजधानी पटना में अगम  कुँआ पुरातात्विक स्थल है। अगम कुँए का पुनः निर्माण चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य 304-232 ई .  पू . ) की अवधि में  हुई  थी। अगम कुआँ का आकार में परिपत्र, कुआं ऊपरी 13 मीटर (43 फीट) में ईंट के साथ पंक्तिबद्ध और शेष 19 मीटर (62 फीट) में लकड़ी के छल्ले से युक्त  हैं। निर्देशांक: 25°35′53″एन 85°11′48″ई / 25.59806°N 85.19667° ई पर स्थित पटना से पूरब और पंच पहाड़ी के रास्ते गुलजारबाग स्टेशन के दक्षिण पश्चिम में अगमकुआं है । अगमकुआं के समीप  शीतला मंदिर के गर्भगृह में लोक देवी  शीतला देवी की सप्तमातृकाओं से युक्त सात मातृ देवी के पिंडों की पूजा की जाती है। चेचक और चिकन पॉक्स के इलाज के लिए शीतला मंदिर में स्थित शीतला माता की उपासना की जाती है। ब्रिटिश खोजकर्ता, लॉरेंस वेडेल ने 1890 ई. में  पाटलिपुत्र के खंडहरों की खोज करते हुए अशोक द्वारा बनाए गए पौराणिक  अगमकुआं की खोज की थी । चीनी यात्री फाह्यान द्वारा 5वीं एवं 7 वीं शताब्दी में  अगमकुआं को फेन अर्थात उग्र कुआँ ,अत्याचारियों को दंड स्थल , नर्क कूप ,दोषियों को कुएं से निकलने वाली आग में प्रवेश करने इस्तेमस्ल करने का स्थल था ।बौद्ध धर्म ग्रहण स्थल स्थल अगम था । अशोक  VIII के अनुसार अगम  कुएँ का उल्लेख "उग्र कुआँ" या "धरती पर नरक" किया गया  था। अगम कुआँ था जहाँ अशोक ने अपने बड़े सौतेले भाई के 99 सिर काट दिए और अगम कुआँ में डाला कर मगध साम्राज्य का में  मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी । "गर्मी और नरक" से जुड़ा हुआ है। मुगल काल में  मुगल अधिकारियों ने अगम कुआँ को अगम कुआन के लिए  सोने और चांदी के सिक्के की पेशकश की थी । अगम कुआँ की संरचना -  105 फीट (32 मीटर) गहरी  योजना में परिपत्र है ।  अगम कुआँ का  व्यास 4.5 मीटर (15 फीट)  है। अगम कुआँ का ऊपरी आधे हिस्से में 44 फीट (13 मीटर) की गहराई तक ईंट से घिरा हुआ तथा  निचले 61 फीट (19 मीटर) लकड़ी के छल्ले की एक श्रृंखला द्वारा सुरक्षित हैं। बाँस के साथ कवर, सतह संरचना युक्त   कुएं को कवर कर विशिष्ट विशेषता बनाती है ।  कुआँ में आठ धनुषाकार खिड़कियां हैं। बादशाह अकबर के शासनकाल के दौरान अगम  कुएं का नवीनीकरण कर  चारों ओर  छतनुमा ढांचा बना कर  परिपत्र संरचना को आठ खिड़कियों के साथ मरम्मत  किया गया था । अगमकुआं ,कहानिया एन्ड स्टोन थ्रू 1993 के अनुसार अगम कुआँ का महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है । अगम कुआँ को धरती का नरक ,उग्र कूप ,, आगम कुआन , मोक्ष कूप , फे , फें , फ़ें , फेन , यातना कूप कहा गया है । कूप के अंदर 9 छोटे छोटे कम निर्मित सुरंग युक्त गुप्त है । सुरंग युक्त कूप का जुड़ाव गंगा सागर , राजगीर , गया , गंगा  और राज खजाने से संबंध था । मगध साम्राज्य का सम्राट अशोक काल में यातना कूप कहा जाता था । मगध का राजा चंद्र ने जैन धर्म के अनुयायी सुदर्शन को हत्या कर अगम कूप में फिकवा दिया था ।जैन धर्म के सुदर्शन उप में कमलपुष्प पर बैठे अपने शिष्यों को उपदेश दिए थे । सम्राट अशोक ने 304 - 322 ई.पु. में अगम कूप का जीर्णोंद्धार कराया था । ब्रिटिश सरकार के अधिकारी की छड़ी अगम कूप में गिरी थी । वह गिरी छड़ी बंगाल का गंगा सागर में में प्राप्त हुई । वह छड़ी कलकत्ता संग्रहालय में है । बादशाह अकबर शासन काल में 8 धनुषाकार खिड़की के निर्माण कर कूप का जीर्णोद्धार कराया था ।डाइरेक्टर अर्कोलोजिकल बिहार 3 मार्च 2016 के अनुसार 1932 , 1962 और 1995 ई. में अगम कुआँ के रहस्यों की जानकारी प्राप्त की गई है । जैन धर्म की प्रथम संगति 300 ई. पू. में पाटलिपुत्र क्षेत्र के अगम कूप के क्षेत्र  पर जैन धर्म के अनुयायी स्थूलभद्र की अध्यक्षता में हुई थी । मगध साम्राज्य का सम्राट अशोक द्वारा पाटलिपुत्र के अगम कूप के समीप तृतीय बौद्ध संगीति मोग्गलीपुत्त की अध्यक्षता में 255 ई.पू. कराई गई थी । सूर्य की किरणें और चंद्रमा की किरणों के प्रभाव से अगमकुप का जल में परिवर्तन होता रहता था । कूप जल से क्षय रोग , चेचक , हैजे की विमारी में प्रयोग कर स्वच्छ होते थे । जल सेवन और पैन करने से शारीरिक मानसिक और आदिस्टमिक चेतना जगृत होती थी । अगम कूप के समीप माता शीतला की मूर्ति उत्खनन से प्राप्त हुई है । कूप की परिक्रमा और रहने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है ।अगम कूप की विशेषता जैन और बौद्ध ग्रथों में उल्लेख मिलता है ।
शीतला माता मंदिर - पटना के अगमकुआं  परिसर में ऐतिहासिक माता शीतला के मंदिर के गर्भगृह में पर्यावरण एवं शीतलता की देवी शीतल का  महत्व है। चैत्र  कृष्ण पक्ष  सप्तमी अष्टमी को शीतला माता का पर्व बसौड़ या बसौरा मनाया जाता हैं। ब्रह्मा जी ने  देवलोक से धरती पर मां शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर आयी थी । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, जाट और गुर्जर समेत कई समाजों की कुलदेवी के रूप  है।  सप्तमी-अष्टमी वाले दिन शीतला माता का पूजन करके उन्हें दही, चावल और अन्य कई चीजों से नैवेद्य का भोग लगाने के तत्पश्चात घर के सभी लोग ठंडा यानी बसौड़ा भोजन ग्रहण करते हैं। शीतला माता का प्रकोप होने से बीमारी होती है। शक्ति और निरोगता की देवी शीतला माता का वस्त्र लाल , अस्त्र कलश, सूप, झाड़ू, नीम के पत्ते , जीवनसाथी भगवान शिव और सवारी गर्दभ है । माता शीतला को खासतौर पर मीठे चावलों का भोग लगाते और चावल, गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं। कहीं-कहीं माता को चावल और घी का भी भोग लगाया जाता है। इस दिन घरों में खाना नहीं बनाया जाता है, बल्कि माता को चढ़ाये प्रसाद को ही ग्रहण किया जाता है । माता  शीतला सप्तमी पर शीतला मां की विशेष पूजा करने से रोगों से मुक्ति मिलने के साथ और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है । स्कंद पुराण के अनुसार, माता शीतला रोगों से बचाने वाली देवी हैं । माता को शीतल जल चढ़ाने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। शीतला माता के स्वरूप के प्रतीकात्मक  हैं। पर्यावरण के शुद्धिकरण एवं  सृष्टि को विषाणुओं से बचाने , साफ-सफाई, स्‍वस्‍थता और शीतलता का देवी शीतला माता है।  गणेश जी की सर्वाधिक प्रिय दूब मां शीतला को पसंद है ।  माता शीतला सात बहन में  ऋणिका, घृर्णिका, महला, मंगला, शीतला, सेठला और दुर्गा है ।. चैत्र कृष्ण अष्टमी से आषाढ़ कृष्ण अष्टमी तक होने वाले 90 दिन के व्रत को ही गौरी शीतला व्रत  है । स्कंद पुराण के अनुसार माता शीतला का मंत्र 'ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः' भी प्राणियों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाकर समाज में मान सम्मान पद एवं गरिमा की वृद्धि कराता है। देवी भागवत के अनुसार गौतम ऋषि की पत्नी और ब्रह्माजी की मानसपुत्री माता शीतला  थी। ब्रह्मा जी  ने अहल्या को सबसे सुंदर स्त्री बनाया था । अरावली पर्वतमाला के सुधा श्रंखला  सुंधा माता के नाम से  जाना जाता है। मां की प्रतिमा बिना धड़ के होने कारण इसे अधदेश्वरी  कहा जाता है। सुंधा माता मंदिर राजस्थान है। शीतला माता की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से शुरू होती है  मगध , मिथिला , अंग , भोजपुर , बिहार   में शीतला माता  पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन होती है । शीतला  माता का प्रतीक चिन्ह क्या है?शीतला माता की चारों भुजाओं में झाड़ू, घड़ा, सूप और कटोरा सुशोभि  हैं । सफाई का प्रतीक चिन्ह हैं। उनकी सवारी गधा है, जो उन्हें गंदे स्थानों की ओर ले जाती है। झाड़ू उस स्थान की सफाई करने के लिए तो सूप कंकड़-पत्थर को अलग करने के लिए है। 'वन्देहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम। मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम॥' अर्थात गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाड़ तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं।  स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। शीतला माता का मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दक्षिण में  चाकसू गाँव में स्थित ऊँची 300 मीटर एक पहाड़ी पर स्थित है । जो दूर से ही दिखाई देता है। माता के दर्शन के लिए लगभग 300 मीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है। शीतला माता मंदिर जयपुर राजस्थान , बिहार का गया तथा  पटना में है । 
कृष्ण , जैन ,बौद्ध , महापद्मनंद , मौर्य, शुंग , गुप्त काल में आध्यात्मिक चेतना स्थल पर माता शीतला की उपासना होती रही है ।






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