शुक्रवार, नवंबर 18, 2022

मागधीय सभ्यता का रूप है दाबथु विरासत ....


मागधीय कला एवं संस्कृति से परिपूर्ण बिहार है । मागधीय वास्तुकला , मूर्तिकला और मृदभांड की कहानी विकास का रूप है ।महान साम्राज्यों का उद्भव और पतन तथा विदेशियों के आक्रमण आदि से मागधीय वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास में परिलक्षित होते है । बिहार का जहानाबाद जिला मुख्यालय जहानाबाद से 26 किमि.और  हुलासगंज प्रखण्ड मुख्यालय हुलासगंज से 3 किमि की दूरी पर 186 हैक्टेयर में विकसित दाबथु का 52 बीघे में फैला दाबथु गढ़ हड़प्पाई , मौर्यकालीन , मौर्योत्तर ,और गुप्तकालीन जलवार नदी के किनारे स्थित दाबथु का प्रादुर्भाव हुआ था । दाबथु कि जयवंत कल्पना और कलात्मक संवेदनशीलता प्राचीन सभ्यता की विशिष्टता का उत्खनन स्थलों पर पाई मूर्तियों , मुहरों ,भृदभांडों आदि , पाषाण युक्त दीवारें आदि से प्रकट होती है ।52 बीघे में फैले दाबथु की भूमि सनातन धर्म , हिन्दू , जैन और बौद्ध का स्थल था । इस स्थल पर सौर , शाक्त , शैव , वैष्णव सम्प्रदाय के अलावा जैन तथा बौद्ध का शिक्षा केन्द्र था । दाबथु में स्थित ईंटे ,गढ़ी और निचला नगर और अग्नि वेदिकाएँ सभ्यता का आवास गृह ,मिट्टी की पक्की ईंटों से परिपूर्ण गढ़ पाषाण युक्त  स्तंभों वाला  बरामदा  , मंदिर , स्तंभों वाला हॉल है । दाबथु गढ़ के उत्खनन से पुरातत्वविदों को कई मूर्तियों , आदि प्रप्त हुए हैं।  पकी ईंटें , मातृदेवी की मूर्ति , बड़ी शिवलिंग , क्षतिग्रस्त मूर्तियां है । मौर्यकाल में देवरथ ,देव स्मिता ,दितिकक्ष ,दियारा , देवयानी ,,देवब्रत , पवित्र स्थलको अपभ्रंश दाबथु कहा गया । इक्ष्वाकु कुल के अमित्रजीत का पुत्र वृहद्रराज युर मगध साम्राज्य का वृहद्रथ वंशीय दृढ़सेन द्वारा नगर की स्थापना कर गुरुकुल का निर्माण किया किया गया था । मौर्य काल 345 ई.पू.  , शुंग काल 185 ई.पू. ,  गुप्त काल 320 ई. पाल केयाल 750 ई. , सेन काल हर्षवर्द्धन काल तक दाबथु विकशित था ।पल वंशीय देवपाल द्वारा बौद्ध मठ  का निर्माण कराया था । दाबथु में विकास पाल काल  में जावा के शैलेन्द्र वंशी बलपुत्र देव ने गौड़ीरीति साहित्यक विद्या का विकास और बौद्ध बिहार की स्थापना की थी । देव रथ स्थल को देवपाल  के नाम पर दबथु, दाबथु स्थल है । दाबथु गढ़ के पुनः उत्खनन होने पर मागधीय विरासत का बहुमूल्य रहस्य मिलता है ।



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