मंगलवार, मार्च 28, 2023

शांति और सद्भाव है अशोकाष्ठमी...


चैत्र शुक्ल अष्टमी को मगध सम्राट अशोक का जन्म मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में हुआ था । अशोकाष्ठमी  के दिन बैल, बकरा, भेड़ा, सुअर और इसी तरह के दूसरे जीवों का वध नहीं करने का आदेश जारी किया था।  वृहत्तर भारत का पृष्ठ संख्या 35 और 36 , पाटलिपुत्र की कथा पृष्ठ 152 , स्ट्रेबो की 64 ई.पू.. एवं 19 वीं ई. के पुस्तक अमेसिया  के अनुसार मगध साम्राज्य  में जन्मदिन मनाने की परंपरा मौर्यशासक अशोक द्वारा प्रारंभ हुई थी । सम्राट अशोक ने अपना  जन्मोत्सव के अवसर पर  अहिंसा , जीवों को बध नहीं करने  एवं कैदियों को मुक्त करने की प्रथा प्रारंभ की थी।चीनी यात्री फाहियान (399-411 ई.) ने उल्लेख किया है कि   चैत्र शुक्ल अष्टमी को अशोकाष्ठमी जयंती के अवसर पर  बीस बड़े और सुसज्जित रथों वाले विशाल जलूस प्रत्येक साल निकाले जाते थे ।कृत्यरत्नावली , कूर्मपुराण ,  पुराणकोश एवं गुप्त काल में फाह्यान यात्रा संलेख के अनुसार मौर्य वंशीय सम्राट अशोक का जन्मदिन चैत्र शुक्ल अष्टमी को हुआ था ।  पौराणिक संदर्भों की अशोकाष्टमी में अशोक वृक्ष का महत्व स्थापित है। अब आप अशोक वृक्ष और सम्राट अशोक के बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान में उल्लेख किया गया  कि नामसाम्य के कारण सम्राट अशोक को अशोक वृक्ष बहुत प्रिय था । चंवरधारणी यक्षिणी  मथुरा संग्रहालय में अशोक वृक्ष का पौधा लिए खड़ी है। मगध साम्राज्य का सम्राट मौर्य वंशीय अशोक  का शासनकाल 269 ई. पू. से 232 ई. पू. तक रहा था । अशोक द्वारा मगध साम्राज्य के  विस्तार की नीति बना कर  अखंड भारत पर राज करने वाला भारत के लगभग महाद्वीपो हिंदुकुश से गोदावरी नदी, बांग्लादेश, ईरान, और पश्चिम में अफगानिस्तान तक अपने राज्य का विस्तार किया और मौर्य वंश की नीव रखी गयी  थी । कलिंग युद्ध के पश्चात भयानक विनाश और खून खराबा देख कर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और बुद्ध की शिक्षा से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को अपनाया और बौद्ध धर्म के अनुयाई होने के बाद   पश्चिम एशिया, मिस्र, यूनान श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान) में भी जोर शोर से बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया था । मगध साम्राज्य का सम्राट चंद्रगुप्त का पौत्र एवं  बिंदुसार की पत्नी शुभद्रांगी के पुत्र सम्राट अशोक का जन्म चैत्र शुक्ल अष्टमी 304 ई. पू. पाटलिपुत्र में हुआ था । दिव्यावदन के अनुसार अशोक की पत्नी विदिशा की जेष्टपुत्री देवी थी । अशोक का निधन 232 ई.पू. मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र में हुई थी । मौर्य सम्राट अशोक बचपन से ही एक महान शासक एक अच्छे ज्ञानी और महान शक्तिशाली शासक एवं अर्थशास्त्र और गणित के महान ज्ञाता थे, सम्राट अशोक ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए स्कूल और कॉलेज बनवाए थे, इसके अलावा अशोक ने (284 ई.पू) बिहार में अध्ययन केंद्र व अन्य अध्ययन केंद्रों की स्थापना की थी । सम्राट अशोक की पांचों पत्नियों में  देवी, तिष्यरक्षिता, देवी, कारुवाकी, पद्मावती थी । अशोक की अंतिम पत्नी कौर्वकी से प्रेम विवाह , विदिशा महादेवी साक्याकुमारी से शादी की थी।। सम्राट अशोक ईलाज करवाने उज्जैन गए हुए थे उस वक्त अशोक की मुलाकात विदिशा की राजकुमारी महादेवी से हो गई, बाद में अशोक ने महादेवी साक्याकुमारी विवाह कर लिया था ।सम्राट अशोक की पुत्रों में  महेंद्र, संघमित्रा, तीवर, कनार, चारुमती था । तीवर- करूवाकी का पुत्र था, कुणाल- पद्मावती का पुत्र था, पुत्र महेंद्र पुत्री संघमित्रा और चारूमती देवी के पुत्र पुत्रियां थी । चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का साम्राज्य अखंड भारत में फैला हुआ था, अशोक महान के मन में बचपन से ही साम्राज्य विस्तार की नीति थी, जिसके चलते राज्य अभिषेक के बाद अखंड भारत के सभी महाद्वीपो हिंदुकुश से गोदावरी नदी, व बांग्लादेश, ईरान, और पश्चिम में अफगानिस्तान (वर्तमान के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और ईराक) तक अपने राज्य का विस्तार किया और मौर्य वंश की नीव रखी थी ।
मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था, चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिंदुसार था और बिंदुसार का उत्तराधिकारी सम्राट अशोक 269 ईसा पूर्व में मगध साम्राज्य की राज गद्दी पर बैठा था । सम्राट अशोक की माता  सुभद्रांगी थी । अशोक ने 273 ईसा पूर्व में ही सिंहासन प्राप्त कर लिया था लेकिन गृह  युद्ध होने के कारण राज्य अभिषेक 4 वर्षों के बाद 269 ईसा पूर्व में हुआ था ।अशोक की  पत्नियों में  देवी, तिष्यरक्षिता, देवी, कारुवाकी, पद्मावती थे । सम्राट अशोक के पुत्रों में महेंद्र, संघमित्रा, तीवर, कनार, चारुमती था । सम्राट अशोक ने राज्य अभिषेक के 8 वर्ष बाद अपने पिता की दिग्विजय की नीति को जारी रखा उस समय कलिंग का राज्य मगध साम्राज्य की संप्रभुता को चुनौती दे रहा था। अपने राज्य अभिषेक के आठवें वर्ष 261 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया, सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख के अनुसार  कलिंग युद्ध के परिणामों के बारे में अशोक के 13वे अभिलेखों से विस्तृत जानकारी मिलती है । सम्राट अशोक के ह्रदय में मानवता के प्रति दया, करुणा जाग उठी और सदा के लिए युद्ध क्रिया कलापों को बंद करने की घोषणा कर दी सम्राट अशोक पहले ब्राह्मण धर्म का अनुयाई था । कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक शैव धर्म का उपासक था । कलिंग युद्ध में हुए भीषण नरसंहार को देखकर सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया, बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद सम्राट अशोक ने अपने राज्य में लोगों को जीव और मानव के प्रति दया भाव रखने का संदेश दिया। मौर्य सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और अपनी पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा था । सम्राट अशोक के पिता की मृत्यु 273 ईसा पूर्व में हुई उसके बाद सम्राट अशोक महान का राज्याभिषेक हुआ और 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक अशोक का शासनकाल रहा था । सम्राट अशोक ने लगभग 36 साल तक शासन किया, ऐसा बताया जाता है कि सम्राट अशोक ने अपना अंतिम समय (232 ईसा पूर्व) पाटलिपुत्र पटना में बिताया था. सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद भारत व विश्व में अलग-अलग स्थानों पर शिलालेखों का निर्माण करवाया, अशोक द्वारा 269 से 232 ईसा पूर्व तक के अपने शासनकाल में चट्टानों और पत्थर के स्तंभों पर कई नैतिक, धार्मिक और राजकीय शिक्षा देते हुए लेख खुदवाए गए थे, जिन्हें के शिलालेख कहते है, आधुनिक भारत के अलावा अशोक ने पाकिस्तान, नेपाल अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भी शिलालेख(अभिलेख) गड़वाए थे. सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में युद्ध नही हारा, कलिंग युद्ध के भीषण नरसंहार और खून खराबा देख उनका हृदय परिवर्तनहुआ तभी से सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और मानवता के प्रति दया करुणा भाव रखने के संदेश दिया, बौद्ध धर्म प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र, अपनी पुत्री संघमित्रा और अपने दूत को श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान भेजा था ।  चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अशोकाष्ठमी को मनाया जाता है। अशोकाष्टमी के दिन मौर्य सम्राट अशोक की जयंती है। 
 अशोक के वृक्ष और शंकर भगवान की पूजा होती है। भोले नाथ को अशोक का वृक्ष प्रिय लगता है यही वजह है कि इस दिन अशोक के वृक्ष की पूजा के साथ साथ शिव भगवान की पूजा और व्रत किया जाता है । पुराणों एवं सनातन धर्म के स्मृतियों में वासंती नवरात्र  चैत्र शुक्ल अष्टमी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अशोकाष्टमी माता  पार्वती और भगवान शिव एवं माता गौरी को समर्पित है। अशोकाष्ठमी  पूर्वी क्षेत्रों में और उड़ीसा में भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर तथा  दक्षिणी क्षेत्रों में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।  अशोक अष्टमी में त्रेतायुग में भगवान राम ने रावण पर हमला करने से पहले अनुष्ठान करने के बाद  विजयी हुए। शक्ति की गौरी अष्टमी या अशोकाष्टमी दिव्य देवी की पूजा के लिए समर्पित है । अशोकाष्टमी महोत्सव भगवान लिंगराज के आसपास केंद्रित है ।  भगवान लिंगराज के प्रतिनिधि देवता चंद्रशेखर को सजे हुए रथ यात्रा  रामेश्वर मंदिर ले जाया जाता है। कैलाशहर के उनाकोटी तीर्थ में अशोकाष्टमी महोत्सव का आयोजन त्रिपुरा निवासी पत्थरों पर उकेरी गई देवताओं की छवियों की विशेष पूजा भी करते हैं। अशोकाष्टमी पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में मनाया जाता है।  भगवान शिव को समर्पित  और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक अशोकाष्ठमी  को "आनंद का त्योहार" या "फूलों का त्योहार" है। पद्मपुराण के अनुसार भगवान शिव और माता  पार्वती की पुत्री एवं विघ्नहर्ता गणेश जी देव सेनापति  की बहन अशोकसुन्दरी  को  दक्षिण भारत में बाला त्रिपुरसुंदरी के रूप में पूजा जाता है । अशोक सुंदरी को लावण्या, अनवी, बाला त्रिपुर सुंदरी, विरजा कहा गया है । अशोक सुंदरी का पति नहुष एवं पुत्र ययाति और 100 पुत्रियां थी । माता पार्वती ने अपने अकेलेपन को कम करने के लिए  मनोकामना पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष से अशोकसुंदरी की उत्पत्ति की थी । माता  पार्वती ने  भगवान  शिव से विश्व  के सबसे खूबसूरत बगीचे में ले जाने का अनुरोध किया। उसकी इच्छा के अनुसार, शिव उसे नंदनवन ले गए, जहाँ पार्वती ने कल्पवृक्ष के नाम से जाना जाने वाला एक पेड़ देखा जो किसी भी इच्छा को पूरा कर सकता था। माता  पार्वती के पुत्र कार्तिकेय बड़े हो गए थे । उन्होंने कैलाश छोड़ दिया था, एक माँ के रूप में इसने उन्हें बहुत दुःख और अकेलापन दिया। उसने अपना अकेलापन दूर करने के लिए मनोकामना पूर्ण वृक्ष से पुत्री मांगी। उसकी इच्छा पूरी हुई और अशोकसुंदरी का जन्म हुआ। पार्वती ने भविष्यवाणी की कि अशोकसुंदरी चंद्र वंश के नहुष से शादी करेगी । अशोकसुंदरी अपनी नौकरानियों के साथ नंदनवन में घूम रही थी । राक्षस राज  हुंडा  ने उसे देखा और उससे प्यार हो गया। हालाँकि, देवी ने दानव की सलाह को अस्वीकार कर दिया और उसे नहुष से विवाह करने के अपने भाग्य के बारे में सूचित किया। हुंडा ने खुद को एक विधवा के रूप में प्रच्छन्न किया, जिसका पति उसके द्वारा मारा गया था, और अशोकसुंदरी को उसके साथ उसके आश्रम में जाने के लिए कहा। देवी भेष बदल कर राक्षस के साथ चलीं और उसके महल में पहुंचीं। उसने अपने विश्वासघात का पता लगाया और उसे नहुष द्वारा मारे जाने का श्राप दिया और अपने माता-पिता के निवास, कैलाश पर्वत पर भाग गई । हुंडा अपने महल से शिशु नहुष का अपहरण कर लेता है । राक्षस राज  हुंडा की   दासी द्वारा नहुष को बचाने के लिए  ऋषि वशिष्ठ की देखरेख में दिया जाता है। ऋषि वशिष्ठ आश्रम में , नहुष बड़ा होता है और हुण्ड को मारने के अपने भाग्य के बारे में समझता है। हुंडा अशोकसुंदरी का अपहरण कर लेता है और उसे बताता है कि उसने नहुष को मार डाला था। देवी को एक किन्नर दंपत्ति ने सांत्वना दी, जिन्होंने उन्हें नहुष की भलाई के बारे में बताया और भविष्यवाणी की कि वह ययाति नामक एक शक्तिशाली पुत्र और सौ सुंदर बेटियों की माँ बनेगी। नहुष ने हुंड से युद्ध किया और एक भयंकर युद्ध के बाद उसे हरा दिया और अशोकसुंदरी को छुड़ाया, जिससे उसने विवाह किया।  इंद्र की अनुपस्थिति में नहुष को अस्थायी रूप से स्वर्ग का शासक बना दिया गया है।




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