सनातन धर्म के विभिन्न धर्मग्रथों , पुराणों , वेदों , स्मृति , संहिता में अयोध्या क्षेत्र की भूमि का उल्लेख मिलता है । उत्तर प्रदेश राज्य का अयोध्या जिले का मुख्यालय अयोध्या पवित्र सरयू नदी के तट पर स्थित है। अयोध्या जिले के पूरब में आजमगढ़ , पश्चिम में बाराबंकी , उत्तर में सरयू नदी और दक्षिण में विसुई नदी है । कौशल साम्राज्य की राजधानी अयोध्या एवं भगवान राम की जन्म भूमि थी । हिंदी एवं अवधि भाषायी अयोध्या जिले का सृजन 06 नवंबर 2018 का क्षेत्रफल 2522 वर्गकिमी व 974 वर्गमील में 2011 जनगणना के अनुसार 2570996 आवादी वाले क्षेत्र में 11 प्रखंड ,835 पंचायत ,1272 गाँव तहसील 5 ,थाने 18 , शहर 3 नगर पंचायत 6 तथा अयोध्या का तहसील में अयोध्या, मिल्कीपुर, रुदौली, बीकापुर, सोहावल , . अयोध्या लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में विधानसभा अयोध्या, बीकापुर, मिल्कीपुर, रुदौली , - गोशाईंगंज शामिल हैं। अथर्ववेद 10.2.31 के अनुसार अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या"[ और इसकी सम्पन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है-
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः॥
वाल्मीकीय रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना वैवश्वत मनु वंशीय वैवश्वत मन्वंतर में इक्ष्वाकु काल अवधपुरी और ब्रह्मपुराण के अनुसार वैवश्वस्त मनु के पौत्र एवं इक्ष्वाकु के 100 पुत्रों में बड़े पुत्र विकुक्षि का पराक्रम के कारण अयोध्य कहा जाता था । राजा अयोध्य द्वारा सरयू के तट पर बारह योजन ( १४४ कि.मी) लम्बाई और तीन योजन व ३६ कि.मी चौड़ाई में अयोध्या नगर की स्थापना वैवश्वत मनवन्तर वसाई थी ।अयोध्य के पुत्र शकुनि के पुत्र उत्तर भारत दक्षिण के शासक थे । विकुक्षि को अयोध्य ,शशाद कहा जाता था । अयोध्या के राजा सूर्यवंशीय राजा कल्माषपाद , सर्वकर्मा। , अनरण्य ,अनमित्र , रघु ,हुए । अनमित्र के पुत्र राजा दुलीदुह , दिलीप ,माह बाहु ,रघु महाबली सम्राट थे । अयोध्या के सम्राट रघु के प्रपौत्र एवं अज के पौत्र दशरथ की भार्या कौशल्या के पुत्र राम का प्रादुर्भाव हुआ था । भगवान राम का पुत्र कुश , अतिथि ,निषद ,नाल , नभ ,पुण्डरीक ,क्षेम। धन्वा , देवानीक ,अहिनगु ,सुधन्वा ,,शल , उक्य ,वज्रनाभ ,, नल अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी अयोध्या थी । स्कन्दपुराण के अनुसार सरयू के तट पर दिव्य शोभा से युक्त दूसरी अमरावती के समान अयोध्या नगरी है। अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरो का शहर है। जैन धर्म ग्रंथो के अनुसार अयोध्या में पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी की जन्म भूमि थी । इक्ष्वाकु वंशीय सूर्यवंश के भगवान राम की जन्म भूमि थी । कोसल जनपद की राजधानी अयोध्या का क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। अयोध्या में 3400 मंदिर है । सरयू नदी में 14 घाट प्राचीन है । सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अयोध्या में 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु का उल्लेख किया है। प्रभु श्रीराम की जन्म एवं कर्मस्थली अयोध्या शहर है। प्रभु श्री राम भरत मिलाप के पश्चात भरत खड़ाऊँ लेकर अयोध्या मुख्यालय से 15 किमी॰ दक्षिण सुलतानपुर रोड रोड पर स्थित सरयू नदी के तट स्थित भरतकुण्ड स्थान पर चौदह वर्ष तक रहे थे । अयोध्या शहर में फैजाबाद शहर की स्थापना अवध के प्रथम नबाव सआदत अली खान ने 1730 में अयोध्या राजधानी कर अयोध्या का नाम बदलकर फैजाबाद कर दिया था । अयोध्या के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला ने सरयू नदी के तट पर 1764 ई. में दुर्ग का निर्माण करवाया था। 1775 में अवध की राजधानी को 1775 ई.को लखनऊ ले जाया गया था । सरयू नदी के दक्षिणी तट के किनारे जलोढ़ मैदान के उपजाऊ हिस्से पर बसा हुआ है। यहाँ फ़सलें धान, गन्ना, गेहूँ और तिलहन एवं अयोध्या के दक्षिण-पूर्व में स्थित टांडा शहर में निर्यात के लिए हथकरघा वस्त्र का निर्माण तथा सोहावल के पास पानी बिजली उत्पादन केंद्र है। मानव सभ्यता की प्रथम पूरी अयोध्या में रामजन्मभूमि , कनक भवन , हनुमानगढ़ी ,राजद्वार मंदिर ,दशरथमहल , लक्ष्मणकिला , कालेराम मन्दिर , मणिपर्वत , श्रीराम की पैड़ी , नागेश्वरनाथ मंदिर , क्षीरेश्वरनाथ श्री अनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर , गुप्तार घाट समेत अनेक मन्दिर , गुप्तार घाट , बिरला मन्दिर , श्रीमणिरामदास जी की छावनी , श्रीरामवल्लभाकुञ्ज , श्रीलक्ष्मणकिला , श्रीसियारामकिला , उदासीन आश्रम रानोपाली तथा हनुमान बाग अनेक हैं। अयोध्या में श्रीरामनवमी , श्रीजानकीनवमी , गुरुपूर्णिमा , सावन झूला , कार्तिक परिक्रमा ,श्रीरामविवाहोत्सव आदि उत्सव मनाये जाते हैं। श्रीरामजन्मभूमि - शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट में स्थित अयोध्या का सर्वप्रमुख स्थान श्रीरामजन्मभूमि है। श्रीराम-लक्ष्मण-भरत और शत्रुघ्न के बालरूप का दर्शन होते हैं । कनक भवन - हनुमान गढ़ी के निकट स्थित कनक भवन मंदिर के गर्भगृह में माता सीता और भगवान राम के सोने मुकुट पहने प्रतिमाओं के लिए लोकप्रिय है। कनक मंदिरका निर्माण टीकमगढ़ की रानी ने 1891 में बनवाया था। इस मन्दिर के श्री विग्रह श्री सीताराम जी है । हनुमान गढ़ी - अयोध्या का हनुमान गढ़ी मंदिर के गर्भगृह में हनुमान जी सदैव वास करते हैं। अयोध्या आकर भगवान राम के दर्शन से पहले भक्त हनुमान जी के दर्शन करते हैं। हनुमान मंदिर "हनुमानगढ़ी" राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। हनुमान जी गुफा युक्त मंदिर में रह कर रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को अधिकार दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा। छोटी दीपावली के दिन आधी रात को संकटमोचन का जन्म दिवस मनाया जाता है। नगरी अयोध्या में सरयू नदी में पाप धोने से पहले लोगों को भगवान हनुमान से आज्ञा लेनी होती है। मंदिर अयोध्या में टीले पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुंचने के लिए 76 सीढि़यां चढ़ने के बाद पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच की प्रतिमा के दर्शन होते एवं हनुमान जी की मूर्ति फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है। मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनी माता की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में मां अंजनी व बाल हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोद में बालक के रूप में विराजमान हैं। अवध का नवाब सुल्तान मंसूर अली अवध का नवाब का एकमात्र पुत्र गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। प्राण बचने के आसार नहीं रहे, रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाड़ी उखड़ने लगी तब सुल्तान ने थक हार कर संकटमोचक हनुमान जी के चरणों में माथा रख दिया। हनुमान ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान किया और सुल्तान के पुत्र की धड़कनें पुनः प्रारम्भ हो गई। अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया। जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया बल्कि ताम्रपत्र पर लिखकर ये घोषणा की कि कभी भी हनुमान मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और नही यहां के चढ़ावे से कोई कर वसूल किया जाएगा। उसने 52 बीघा भूमि हनुमान गढ़ी व इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई थी । अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, लेकिन फिर मूल रूप में रहा हनुमान टीला हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। लंका से विजय के प्रतीक रूप में लाए गए निशान मंदिर में रखे गए थे । राजद्वार मंदिर - अयोध्या क्षेत्र, हनुमान गढ़ी के पास भगवान राम को समर्पित समकालीन वास्तुकला से परिपूर्ण राजद्वार मंदिर उच्च पतला शिखर वाला उच्च भूमि पर खड़ा है । आचार्यपीठ श्री लक्ष्मण किला - संत स्वामी श्री युगलानन्यशरण जी महाराज की तपस्थली रसिकोपासना के आचार्यपीठ है। श्री स्वामी जी बिहार राज्य का सारण जिले के चिरान्द (छपरा) निवासी स्वामी श्री युगलप्रिया शरण 'जीवाराम' जी महाराज के शिष्य थे। १८१८ ई. में ईशराम पुर (नालन्दा) में जन्मे स्वामी युगलानन्यशरण जी का रामानन्दीय वैष्णव-समाज का स्थान है। आपने उच्चतर साधनात्मक जीवन जी ने 'रघुवर गुण दर्पण','पारस-भाग','श्री सीतारामनामप्रताप-प्रकाश' तथा 'इश्क-कान्ति' आदि लगभग सौ ग्रन्थों की रचना है। श्री लक्ष्मण किला युगलानन्य शरण की तपस्या स्थल पर रीवां राज्य (म.प्र.) द्वारा निर्मित श्री लक्ष्मण किला ५२ बीघे में विस्तृत आश्रम की भूमि ब्रिटिश काल में शासन से दान-स्वरूप मिली थी। श्री सरयू के तट पर स्थित है। सरयू की धार से सटा होने के कारण सूर्यास्त दर्शन आकर्षण का केंद्र है। नागेश्वर नाथ मंदिर - नागेश्वर नाथ मंदिर को भगवान राम के पुत्र कुश एवं नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी ने बनवाया था।जब कुश सरयू नदी में स्नान करने के क्रम में बाजूबंद खो गया था। बाजूबंद भगवान शिवभक्त नाग कन्या कुमुदिनी को मिला जिसे कुश से प्रेम हो गया। कुश ने उसके लिए नागेश्वरनाथ मंदिर बनवाया। विक्रमादित् काल में नागेश्वरनाथ मंदिर को पुनर्निर्माण कराया गया था । श्रीअनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर - अन्तर्गृही अयोध्या के शिरोभाग में भगवान राम का जल समाधि स्थल गोप्रतार घाट पर श्री अनादि पञ्चमुखी शिव का स्वरूप विराजमान है । शैवागम में वर्णित ईशान , तत्पुरुष , वामदेव , सद्योजात और अघोर नामक पाँच मुखों वाले लिंगस्वरूप भगवान शिव की उपासना से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। राघवजी का मन्दिर - अयोध्या नगर के केन्द्र में स्थित राघव मंदिर गर्भगृह में भगवान श्री रामजी का स्थान है । सरयू जी में स्नान करने के बाद राघव जी के दर्शन किये जाते हैं। सप्तहरि - अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की लीला के अतिरिक्त श्रीहरि के अन्य सात प्राकट्य होने के कारण सप्तहरि स्थल है। काल क्रम में देवताओं और मुनियों की तपस्या से प्रकट हुए भगवान् विष्णु के सात स्वरूपों को सप्तहरि के नाम में भगवान "गुप्तहरि" , "विष्णुहरि", "चक्रहरि", "पुण्यहरि", "चन्द्रहरि", "धर्महरि" और "बिल्वहरि" हैं। जैन धर्म के अनुयायी नियमित रूप से अयोध्या आते रहते हैं। अयोध्या को पांच जैन र्तीथकरों की जन्मभूमि कहा जाता है। र्तीथकर का जन्म स्थल पर र्तीथकर का मंदिर को फैजाबाद के नवाब के खजांची केसरी सिंह ने बनवाया था। प्रभु श्रीराम की नगरीअयोध्या में आश्रम का निर्माण करने वालों में स्वामी श्रीरामचरणदास जी महाराज 'करुणासिन्धु जी' स्वामी श्रीरामप्रसादाचार्य जी, स्वामी श्रीयुगलानन्यशरण जी, पं. श्रीरामवल्लभाशरण जी महाराज, श्रीमणिरामदास जी महाराज, स्वामी श्रीरघुनाथ दास जी, पं.श्रीजानकीवरशरण जी, पं. श्री उमापति त्रिपाठी जी आदि उल्लेखनीय हैं। ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से कलकत्ता क़िला, नागेश्वर मंदिर, राम जन्मभूमि, सीता की रसोई, अयोध्या तीर्थ, गुरुद्वारा ब्रह्मकुण्ड और गुप्तार घाट , गुलाब बाड़ी ,तथा बहुबेगम का मकबरा पर्यटन स्थल हैं। छावनी छेत्र से लगा हुआ गुप्तार घाट में अवस्थित श्री अनादि पंचमुखी महादेव मन्दिर नगरवासियों की आस्था का केन्द्र है। रूदौली के सुनवा के घने जंगल में प्रसिद्ध सिद्धपीठ माँ कामाख्या मन्दिर गोमती नदी के तट पर स्थित है। अयोध्या से 16 किमी पर भरत कुंड स्थल पर भरत ने भगवान राम की चरणपादुका रखकर 14 वर्षो तक अयोध्या का शासक थे । अयोध्या से 20 किमी की दूरी पर अयोध्या का राजा दशरथ द्वारा मखभूमि स्थल पर पुत्रेष्टि यज्ञ अवस्थित था । अयोध्या से 10 किमी पर सरयू नदी के तट पर तुलसीदास घाट है । 28 दिसंबर 1969 ई. में विक्टोरिया पार्क का नाम परिवर्तन कर तुलसीदास पार्क एवं तुलसीदास की मूर्ति स्थापित तथा 1969 ई. में तुलसी स्मारक। भवन संग्रहालय का निर्माण हुआ । अयोध्या से 03 किमी पर सूर्य मंदिर एवं सूर्यकुंड दर्शनीय है । सरयू नदी के घाटों में भगवान राम ने अश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को सरयू नदी के तट पर जलसमाधि स्थल एवं भगवान राम को समर्पित राजा दर्शन सिंह द्वारा 19 शताब्दी के पूर्वार्ध में राम मंदिर का निर्माण स्थली गुप्तारघाट ,उर्मिला घाट ,यमस्थला , चक्रतीर्थ घाट ,प्रह्लाद हस्त ,सुमित्रा घाट ,कैकयी घाट ,राजघाट ,ऋणमोचन घाट ,स्वर्गद्वार घाट ,पापमोचन घाट ,गोला घाट ,लक्षमण घाट , अयोध्या से 13 किमी की दूरी पर अयोध्या का राजा दशरथ की चिता भूमि , भगवान राम द्वारा विल्व गंधर्व का उद्धार एवं विल्व हरि शिवालय मंदिर का स्थल विल्वहरिघाट चद्रहरिघाट ,नागेश्वरनाथ घाट ,वासुदेव घाट , राम घाट , सीता घाट , तुलसी घाट है । अयोध्या में अवस्थित 107 ए. . में भगवान राम को समर्पित श्री राम मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम की बाल्य अवस्था की मूर्ति स्थापित है ।। उज्जैन का राजा विक्रमादित्य द्वारा श्री राम मंदिर का निर्माण कस्राय गया था । अयोध्या का राजा सुमित्रा द्वारा 4 थीं शताब्दी एवं 6 ठी शताब्दी तक राम जन्मभूमि पर भगवान राम का मंदिर विकसित था । बाबर का सूबेदार मीरबाकी ने बाबर के सम्मान में 1528 ई. में राम मंदिर को बाबरी मस्जिद में परिवर्तन कर दिया था । माम् मंदिर व बाबरी मस्जिद के लिए 1853 ई. में हिन्दू और मुस्लिम विवाद प्रथम बार हुआ था । 30 नवंबर 1858 ई. में खालसा पंथ के बाबा फ़क़ीर सिंह के नेतृत्व में 25 निहंग सिखों द्वारा बाबरी मस्जिद पर कब्जा कर लिया था । गढ़वाल राजा गोविंद चंद्र काल 1114 से 11 54 ई. तक , 1184 ई. व संबत 1241 तक श्री राममंदिर सुरक्षित था । राम मंदिर 17 कतारों एवं 85 स्तम्भ युक्त गोलाकार निर्मित था । अयोध्या का राम जन्म भूमि पर राम मंदिर के गर्भगृह। में भगवान राम की बाल स्वरूप मूर्ति की स्थापना वैदिक मंत्रोच्चार के बीच भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 22 जनवरी 2024 को की गई है। श्री राम मंदिर की लंबाई पूर्व से पश्चिम 380 फिट ,, चौड़ाई 150 फिट , उचाई 161 फिट ,प्रत्येक मंजिल की उचाई 20 फिट , खंभे 392 ,44 दरवाजे ,, भूतल पर स्थित राममंदिर के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति , राम दरबार ,मंडप में नृत्य, रंग ,मढ़ , प्रार्थना ,, कीर्तन मंडप ,पूरब से 16.5 फिट पर निर्मित 32 सीढियां , आयताकार परकोठा 7 . 32 मीटर , चौड़ाई 4.25 मीटर है।
अयोधया परिभ्रमण 04 अगस्त 2024 को साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा अयोध्या की पौराणिकता एवं ऐतिहासिक स्थलों का परिभ्रमण किया गया । परिभ्रमण के दौरान स्वंर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा व लेखिका उषाकिरण श्रीवास्तव शामिल थी ।
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