मंगलवार, सितंबर 17, 2024

लखनऊ में साहित्यकार सम्मेलन

 स्वंर्णिम दर्पण पत्रिका एवं आर्या पब्लिकेशन का द्वितीय वार्षिक अधिवेशन द्वारा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन्मदिवस पर 17 सितम्बर को : मुजफ्फरपुर (बिहार) के स्वर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा लेखिका उषा किरण श्रीवास्तव और प्रतिष्ठित साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक को लखनऊ स्थित  राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिंदी भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में ‘भारत भाग्य विधाता सम्मान 2024’ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान स्वर्णिम दर्पण पत्रिका एवं आर्या पब्लिकेशन के द्वितीय वार्षिक अधिवेशन के अवसर पर आयोजित विराट कवि सम्मेलन, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह का मुख्य आकर्षण रहा। मुजफ्फरपुर का नाम रोशन करने वाली उषा किरण श्रीवास्तव और साहित्य जगत की शान सत्येन्द्र कुमार पाठक को यह सम्मान मिलना बिहार के लिए गौरव का क्षण है। दोनों ही हस्तियों ने अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है और साहित्य एवं कला के क्षेत्र में बिहार का नाम देश-दुनिया में रोशन किया है। विराट कवि सम्मेलन सम्मान समारोह के साथ-साथ एक भव्य कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया जिसमें देश के जाने-माने कवियों में कवयित्री डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव ,  विमला व्यास आदि ने कविता के माध्यम से अपनी रचनाओं से समा बंधा  तथा मुख्य अतिथि में  , डॉ. अशोक वाजपेयी , श्रीमती अमित दुबे , रंजना लता , बालमुकुंद द्विवेदी , श्री पद्मकान्त शर्मा , सौरभ पांडेय मुम्बई हिंदी विद्यापीठ के प्रचार मंत्री , विनोद दुबे  आदि  ने आर्य पब्लिकेशन एवं पुस्तक विमोचन पर विचार व्यक्त किए ।  इस अवसर पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकों में लेखिका नीता सिंह एवं संपादक सौरभ पांडेय की काव्य संग्रह सौभाग्य , आर्या पब्लिकेशन की  स्वंर्णिम दर्पण , उषा श्रीवास्तव की बज्जिका के सोलह संस्कार गीत का विमोचन भी किया गया । ‘भारत भाग्य विधाता सम्मान’ एक प्रतिष्ठित सम्मान है जो साहित्य, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। यह सम्मान प्राप्त करना किसी भी व्यक्ति के लिए गौरव की बात होती है। बिहार के मुजफ्फरपुर एवं जहानाबाद की  हस्तियों को मिला यह सम्मान बिहार के लिए गौरव का क्षण है। उषा किरण श्रीवास्तव और साहित्यकार  सत्येन्द्र कुमार पाठक ने अपने क्षेत्र में जो योगदान दिया है, वह प्रेरणादायी है। यह सम्मान उन्हें मिलना युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत होगा। इस अवसर पर उतर प्रदेश हिंदी संस्थान  के साहित्य भारती की संपादिका अमिता दुबे द्वारा साहित्य भारती एवं मई जून 2024 के अंक बाल भारती देकर उषाकिरण श्रीवास्तव एवं सात्येन्द्र कुमार पाठक को सम्मानित की । संस्कार भारती का कला कुंज के संपादक पद्मकान्त शर्मा शामिल थे । पुरुषोत्तमदास टंडन हिंदी भवन लखनऊ अवस्थित उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक एवं साहित्य भारती व बाल वाणी द्वैमासिक पत्रिका की संपादिका आ।अमिता दुबे द्वारा उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का निदेशक कक्ष में बिहार के साहित्यकार व इतिहासकार सात्येन्द्र कुमार पाठक को साहित्य भारती एवं बाल वाणी  दे कर सम्मानित किया । इस अवसर पर स्वंर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा लेखिका उषाकिरण श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक वज्जिका के सोलह संस्कार गीत तथा टुकड़ों में बटी धूप का लोकार्पण उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान की निदेशिका डॉ. अमिता दुबे द्वारा किया गया । इस अवसर पर संस्कार भारती  की कला कुंज के संपादक पद्मकान्त शर्मा आदि ने लोकार्पण समारोह में विचार व्यक्त किए । राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन हिंदी भवन में अवस्थित निराला भवन , आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुस्तकालय  में लगभग 50 हजार पुस्तकों एवं पुस्तकों का रख रखाव  का परिभ्रमण किया । लखनऊ में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ  के निदेशक कक्ष में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बिहार के प्रतिष्ठित साहित्यकार व इतिहासकार सात्येंद्र कुमार पाठक को साहित्य भारती एवं बाल वाणी पत्रिका देकर  संस्थान की निदेशक डॉ. अमिता दुबे ने सम्मान प्रदान किया। समारोह में एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम स्वर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा एवं लेखिका उषाकिरण श्रीवास्तव की पुस्तक 'वज्जिका के सोलह संस्कार गीत तथा टुकड़ों में बटी धूप' का लोकार्पण था। इस पुस्तक का लोकार्पण भी डॉ. अमिता दुबे के कर-कमलों से हुआ। संस्कार भारती की कला कुंज के संपादक पद्मकान्त शर्मा , मुंबई हिंदी विद्यापीठ के प्रचार मंत्री विनोद दुबे  ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। इस समारोह के बाद अतिथियों ने राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन हिंदी भवन में स्थित निराला भवन और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुस्तकालय का भ्रमण किया। इस पुस्तकालय में लगभग 50 हजार पुस्तकें हैं।

बुधवार, सितंबर 11, 2024

द्वारिका और द्वारिकाधीश

पुराणों एवं स्मृति ग्रंथों में द्वारिका क्षेत्र को देवभूमि कहा गया है। गुजरात राज्य का  सौराष्ट्र विस्तार में स्थित द्वारिका जिला का मुख्यालय अरब सागर एवं गोमती नदी के संगम पर  द्वारिका का खम्भालिया अवस्थित है । द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण द्वारा द्वारिका नगरी की स्थापना एवं कर्म भूमि पर द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण थे । श्री कृष्ण की कर्मभूमि द्वारका  को 15 अगस्त 2023 को जामनगर जिला का विभाजन करके देवभूमि द्वारका को जिला बनाने की घोषणा की थी। द्वारका जिला कच्छ की खाड़ी और अरबी समुद्र के तट पर बसा है। द्वारका  की द्वारिकाधीश की प्रसार गोमती नदी पसार से होती है। द्वारकाधीश का जगत मन्दिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है।देवभूमि द्वारका जिला का क्षेत्रफल 4051 किमी2 (1,564 वर्गमील) 2011 जनगणना के अनुसार 742484 लोग निवास करते हैं । सनातन धर्म का द्वारिका धाम  में स्थित द्वारिकाधीश भारत, नेपाल औरविश्व का सनातन धर्म के  वैष्णव का  द्वारकाधीश के दर्शन हेतु आते है।गोमती तालाब - द्वारका के दक्षिण में अवस्थी लम्बा गोमती तालाब' के कारण  द्वारका को गोमती द्वारका कहते है। भारतीय संस्कृति में गोमती  नदी  से द्वारिकाधीश की  पसार होती है।निष्पाप कुण्ड , गोमती तालाब के ऊपर में सरकारी घाट के समीप निष्पाप कुण्ड है। निष्पाप कुंड में गोमती का पानी भरा रहता है। निष्पाप कुंड से उतरने के लिए पक्की सीढ़िया बनी है।  निष्पाप कुण्ड में नहाकर  पुर्वज को के  पिंड-दान करतें हैं।दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर - दक्षिण की तरफ  दुर्वासा मंदिर का और  त्रिविक्रमजी मंदिर व  टीकमजी है। त्रिविक्रमजी  मन्दिर के बाद प्रधुम्नजी के दर्शन करते हुए कुशेश्वर मन्दिर का गर्भगृह के तहखाना में शिव का भगवान शिव लिंग एवं माता पार्वती  की मूर्ति है।कुशेश्वर शिव के मन्दिर के बराबर-बराबर दक्षिण  अम्बाजी मंदिर और माता देवकी मंदिर , रणछोड़जी मन्दिर के समीप  राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जाम्बवती  मन्दिर है।हनुमान मंदिर - वासुदेव घाट पर हनुमानजी मन्दिर है।   गोमती नदी और समुद्र में मिलने से संगम घाट पर संगम-नारायणजीमन्दिर है।शारदा मठ - द्वारिका में शारदा-मठ की स्थापना  आदि गुरु शंकराचार्य नेद्वारा किया गया  था। चक्र तीर्थ - संगम-घाट के उत्तर में समुद्र के ऊपर घाटचक्र तीर्थ घाट के समीप स रत्नेश्वर महादेव  मन्दिर है।कैलाश कुण्ड - कैलासकुण्ड़  का पानी गुलाबी रंग का है। कैलासकुण्ड के आगे सूर्यनारायण मन्दिर के आगे द्वारका शहर का पूरब  दरवाजे के बाहर जय और विजय की मूर्तिया है।गोपी तालाब -  द्वारिका मंदिर से तेरह मील पर  गोपी-तालाब और  भूमि  पीली है। गोपी तालाब के अन्दर से पीली  रंग की  मिट्टी   गोपीचन्दन कहा जाता  है। बेट द्वारका -  भगवान कृष्ण ने  भक्त  नरसी की हुण्डी भरी करने के कारण बेट द्वारिका कहा गया थी। बेट-द्वारका के टापू  का पूरब की तरफ  पर हनुमान टीले पर  हनुमानजी मन्दिर है।   दुमंजिले और तिमंजले है। पहला और सबसे बड़ा महल श्रीकृष्ण का महल के दक्षिण में सत्यभामा और जाम्बवती के महल है। उत्तर में रूक्मिणी और राधा के महल है। मन्दिरों के किबाड़ों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान कृष्ण  मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर  चांदी मढ़ी है। श्री कृष्ण व द्वारिकाधीश मूर्तियों का सिंगार   हीरे, मोती और सोने के गहने उनको पहनाये गए हैं। सच्ची जरी के कपड़ों से उनको सजाया गया है।द्वारिका का द्वारिकाधीश मंदिर , गुमती नदी एवं गुमती नकाडी और समुद्र मिलन संगम घाट से समुद्र दर्शन , गोमती नदी पूजन दर्शनीय स्थल है।
 गुजरात राज्य का सौराष्ट्र क्षेत्र में  देवभूमि द्वारका ज़िले में  गोमती नदी और अरब सागर संगम के तट पर ओखामण्डल प्राय द्वीप के पश्चमी किनारे पर भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका प्राचीन नगर और नगरपालिका है। हिन्दुओं के चारधाम में से एक  और सप्तपूरी में एक द्वारिका है। श्रीकृष्ण के प्राचीन राज्य द्वारका का स्थल और गुजरात की सर्वप्रथम राजधनी है ।द्वारका का निर्देशांक: 22°14′47″N 68°58′00″E / 22.24639°N 68.96667°Eनिर्देशांक: 22°14′47″N 68°58′00″E / 22.24639°N 68.96667°E पर अवस्थित सौराष्ट्र  के संस्थापक श्री कृष्ण  कर्मभूमि और सौराष्ट्र की राजधानी द्वारिका हिंदी एवं गुजराती भाषी क्षेत्र में 2011 जनगणना के अनुसार 38873 लोग निवास करते हैं ।द्वारका के दक्षिण में लम्बा ताल को 'गोमती तालाब'  होने के कारण द्वारका को गोमती द्वारका कहा जाता है।रणछोड़ जी मंदिर गोमती के दक्षिण में पांच कूपों में निष्पाप कुण्ड में नहाने के बाद यात्री पांच कुंओं के पानी से कुल्ले कर रणछोड़जी के मन्दिर की ओर जाते है। गोमती नदी के रास्तें में  छोटे मन्दिर श्री कृष्ण मंदिर , गोमती माता मंदिर , और महालक्ष्मी मन्दिर ,  रणछोड़जी का मन्दिर द्वारका मन्दिर है। भगवान कृष्ण की चार फुट ऊंची मूर्ति काले पाषाण में निर्मित  युक्त चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। मूर्ति काले पत्थर युक्त मूर्ति , सोने की ग्यारह मालाएं गले में पड़ी है। भगवान रणछोड़ के चार हाथ है। एक में शंख , एक में सुदर्शन चक्र , एक में गदा और एक में कमल का फूल , सिर पर सोने का मुकुट है। लोग भगवान की परिक्रमा करते है और फूल और तुलसी दल चढ़ाते है। चौखटों पर चांदी के पत्तर मढ़े है। मन्दिर की छत में झाड़-फानूस लटक रहे हैं। एक तरफ ऊपर की मंमें जाने के लिए सीढ़िया है। पहली मंजिल में अम्बादेवी की मूर्ति  सात मंजिलें  मन्दिर एक सौ चालीस फुट ऊंचा है। मंदिर की चोटी आसमान से बातें करती है। रणछोड़जी के दर्शन के बाद मन्दिर की परिक्रमा की जाती है। मन्दिर की दीवार दोहरी है। दो द्वारों के बीच इतनी जगह है कि आदमी समा सके। यही परिक्रमा का रास्ता है। रणछोड़जी मन्दिर के सामने लम्बा-चौड़ा १०० फुट ऊंचा जगमोहन का  पांच मंजिलें में ६० खम्बे है। रणछोड़जी के बाद इसकी परिक्रमा की जाती है। इसकी दीवारे दोहरी है। दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर - :दक्षिण की तरफ बराबर-बराबर दो मंदिर है। एक दुर्वासाजी का और दूसरा मन्दिर त्रिविक्रमजी को टीकमजी कहते है। इनका मन्दिर भी सजा-धजा है। मूर्ति बड़ी लुभावनी है। और कपड़े-गहने कीमती है। त्रिविक्रमजी के मन्दिर के बाद प्रधुम्नजी के दर्शन करते हुए यात्री इन कुशेश्वर भगवान के मन्दिर में जाते है। मन्दिर में एक बहुत बड़ा तहखाना है। इसी में शिव का लिंग है और पार्वती की मूर्ति है। कुशेश्वर मंदिर - कुशेश्वर शिव के मन्दिर के बराबर-बराबर दक्षिण की ओर छ: मन्दिर और है। इनमें अम्बाजी और देवकी माता के मन्दिर खास हैं। रणछोड़जी के मन्दिर के पास ही राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जाम्बवती के छोटे-छोटे मन्दिर है। इनके दक्षिण में भगवान का भण्डारा है और भण्डारे के दक्षिण में शारदा-मठ है। शारदा मठ चक्र तीर्थ - संगम-घाट के उत्तर में समुद्र के ऊपर चक्र तीर्थ  के पास रत्नेश्वर महादेव   मन्दिर , सिद्धनाथ महादेवजी मंदिर , बावली व  ‘ज्ञान-कुण्ड’ ,  जूनीराम बाड़ी मंदिर में  भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तिया , राम का मन्दिर ,  सौमित्री बावली यानी लक्ष्मणजी की बावजी कहते है। काली माता और आशापुरी माता की मूर्तिया  है। कैलाश कुण्ड-  कैलासकुण्ड़  का पानी गुलाबी रंग , शिव मन्दिर , द्वारका शहर का पूरब की तरफ का दरवाजा  है।  दरवाजे के बाहर जय और विजय की मूर्तिया है। जय और विजय बैकुण्ठ में भगवान के महल के चौकीदार द्वारका के दरवाजे पर खड़े उसकी देखभाल करते है। निष्पाप कुण्ड पहुंचने के बाद  के द्वारिकाधीश मन्दिर   है।  द्वारिका से बीस मील आगे कच्छ की खाड़ी में  टापू  पर बेट-द्वारका बसी है। गोमती द्वारका का तीर्थ करने के बाद यात्री बेट-द्वारका जाते है। बेट-द्वारका के दर्शन बिना द्वारका का तीर्थ पूरा नहीं होता। बेट-द्वारका पानी के रास्ते जाते है । गोपी तलाव - द्वारिका से  तेरह मील आगे गोपी-तालाब की जमीन पीली है। तालाब के अन्दर से  पीला रंग की ही मिट्टी निकलती है। गोपी तलाव की मिट्टी को गोपीचन्दन कहते है। मोर है। गोपी तालाब से तीन-मील आगे नागेश्वर शिवजी और पार्वती  मन्दिर है।  भगवान कृष्ण सात मील लंबाई पथरीली भूमि  युक्त  बेट-द्वारका के टापू पर  घरवालों के साथ सैर करने आया करते थे। 
बेट-द्वारका में भगवान कृष्ण ने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी। बेट-द्वारका के टापू का पूरब की तरफ का कोना पर हनुमानजी का मन्दिर है। ऊंचे टीले को हनुमानटीला कहते है। गोमती-द्वारका की तरह  एक बहुत बड़ी चहार दीवार का घेरे के भीतर पांच  महल है।  पहला और सबसे बड़ा महल श्रीकृष्ण का महल है। दक्षिण में सत्यभामा और जाम्बवती  महल ,  उत्तर में रूक्मिणी और राधा मंदिर है।मन्दिरों के किबाड़ों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान कृष्ण और उनकी मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर  चांदी मढ़ी है।  हीरे, मोती और सोने के गहने उनको पहनाये गए हैं। सच्ची जरी के कपड़ों से उनको सजाया गया है। चौरासी धुना - भेंट द्वारका टापू में भगवान द्वारकाधीश के मंदिर से ७ कि॰मी॰ की दूरी पर चौरासी धुना  प्राचीन एवं एतिहासिक तीर्थ स्थल है। उदासीन संप्रदाय के सुप्रसिद्ध संत और प्रख्यात इतिहास लेखक, निर्वाण थडा तीर्थ, श्री पंचयाती अखाडा बड़ा उदासीन के पीठाधीश्वर श्री महंत रघुमुनी जी के अनुसार ब्रह्माजी के चारों मानसिक पुत्रो सनक, सनंदन, सनतकुमार और सनातन ने ब्रह्माजी की श्रृष्टि-संरचना की आज्ञा को न मानकर उदासीन संप्रदाय की स्थापना की और मृत्यु-लोक में विविध स्थानों पर भ्रमण करते हुए भेंट द्वारका में आये। उनके साथ उनके अनुयायियों के रूप में अस्सी अन्य संत साथ थें|   सनतकुमार और ८० अनुयायी उदासीन संतो को जोड़कर ८४ की संख्या पूर्ण होती है। इन्ही ८४ आदि दिव्य उदासीन संतो ने  पर चौरासी धुने स्थापित कर साधना और तपस्चर्या की और ब्रह्माजी को एक एक धुने की एकलाख महिमा को बताया, तथा चौरासी धुनो के प्रति स्वरुप चौरासी लाख योनिया निर्मित करने का सांकेतिक उपदेश दिया। इस कारण से यह स्थान चौरासी धुना के नाम से जग में ख्यात है। कालांतर में उदासीन संप्रदाय के अंतिम आचार्य जगतगुरु उदासिनाचार्य श्री चन्द्र भगवान इस स्थान पर आये और पुनः सनकादिक ऋषियों के द्वारा स्थापित चौरासी धुनो को जागृत कर पुनः प्रज्वलित किया और उदासीन संप्रदाय के एक तीर्थ के रूप में महिमामंडित किया था। । भक्तों एवं संतों की निवास, भोजन आदि की व्यवस्था भी निःशुल्क रूप से चौरासी धुना उदासीन आश्रम के द्वारा की जाती है। चौरासी धुनो के दर्शन करने से मनुष्य की लाख चौरासी कट जाती है। रणछोड़ जी मंदिर -रणछोड़ जी के मन्दिर की ऊपरी मंजिलें  भगवान द्वारिकाधीश की सेज , झूलने के लिए झूला ,  खेलने के लिए चौपड़ है। दीवारों में बड़े-बड़े शीशे लगे हैं।  मन्दिरों के अपने-अलग भण्डारे है। मन्दिरों के दरवाजे सुबह  खुलते एवं बारह बजे बन्द हो जाते है। संध्या  चार बजे खुल जाते और रात के नौ बजे तक खुले रहते है। इन पांच विशेष मन्दिरों के सिवा और भी बहुत-से मन्दिर इस चहारदीवारी के अन्दर है। ये प्रद्युम्नजी, टीकमजी, पुरूषोत्तमजी, देवकी माता, माधवजी अम्बाजी और गरूड़  मन्दिर है । साक्षी-गोपाल, लक्ष्मीनारायण और गोवर्धननाथजी मन्दिर है। 
बेट-द्वारका के  तालावों में णछोड़ तालाब, रत्न-तालाब, कचौरी-तालाब और शंख-तालाब है। रणछोड तालाब सबसे बड़ा की सीढ़िया पत्थर है। तालाबों के आस-पास अनेक मन्दिर में मुरली मनोहर, नीलकण्ठ महादेव, रामचन्द्रजी और शंख-नारायण मन्दिर है।।रणछोड़ के मन्दिर से डेढ़ मील चलकर शंख-तालाब जगह भगवान कृष्ण ने शंख  राक्षस को मारा था। शंख तलाव पर शंख नारायण मन्दिर है। बेट-द्वारका से समुद्र के रास्ते जाकर बिरावल बन्दरगाह पर उतरना पड़ता है। ढाई-तीन मील दक्षिण-पूरब की तरफ चलने पर  कस्बा का नाम सोमनाथ पट्टल है। बड़ी धर्मशाला और अनेक   मन्दिर है। कस्बे से पौने तीन मील पर हिरण्य, सरस्वती और कपिला  नदियों का संगम है। सोमनाथ पत्तल संगम के समीप  भगवान कृष्ण के शरीर का अंतिम संस्कार किया गया है ।अरब सागर का शंखोधर कच्छ की खाड़ी के मुहाने  आबाद द्वीप पर बेट द्वारिका व बेयट द्वारिका भारत के ओखा शहर के तट से 2 किमी (1 मील) दूर और द्वारका शहर से 25 किमी (16 मील) उत्तर में स्थित बेट द्वारिका है। उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर, कच्छ द्वीप व शंखधर  8 किमी (5 मील) लंबा और औसतन 2 किमी (1 मील) चौड़ा है। द्वारिका जिले के बेट द्वारका निर्देशांक: 22°26′58″N 69°7′2″E  पर स्थित अरब सागर के बेट द्वारिका 11 वर्गकिमी व 4 वर्गमील क्षेत्रफल में 2011 जनगणना के कैंसर 15000 लोग निवास करते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के अंतिम चरण (1900-1300 ई.पू.) बेट द्वारका को प्राचीन शहर द्वारका का हिस्सा है। महाभारत और स्कंद पुराण ,  भारतीय महाकाव्य साहित्य में ,बेट द्वारिका शहर भगवान कृष्ण का निवास स्थान था ।  महाभारत के सभा पर्व में अंतर्द्वीप को बेट द्वारका कहा गया है। है । समुद्र के नीचे के पुरातात्विक अवशेष सिंधु घाटी सभ्यता के अंतिम हड़प्पा काल के दौरान या उसके तुरंत बाद  बस्ती  हैं। बेट द्वारिका  बस्ती को मौर्य साम्राज्य के समय समृद्ध और ओखा मंडल या कुशद्वीप क्षेत्र का हिस्सा था। द्वारका का उल्लेख सिंहादित्य के ताम्र शिलालेख (574 ई.) के अनुसार द्वारिका का राजा  वराहदास  के पुत्र और मैत्रक वंश  काल में  वल्लभी शहर के मंत्री थे । बड़ौदा राज्य के अंतर्गत बेट द्वारका अमरेली डिवीजन, 1909 , 18वीं शताब्दी के दौरान, ओखामंडल क्षेत्र के साथ-साथ बेट द्वारिका  द्वीप पर बड़ौदा के गायकवाड़ों का नियंत्रण था। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान , वाघेरों ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। 1859 में, ब्रिटिशों के साथ संयुक्त हमले के माध्यम से, गायकवाड़ और अन्य रियासतों के सैनिकों ने विद्रोहियों को खदेड़ दिया और बेट द्वारिका क्षेत्र पर पुनः कब्ज़ा कर लिया था ।1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद, 1947 ई. के बाद बेट द्वारिका क्षेत्र को सौराष्ट्र राज्य में शामिल कर लिया गया था । राज्य पुनर्गठन योजनाओं के तहत सौराष्ट्र का बॉम्बे राज्य में विलय हो गया था । बॉम्बे राज्य के विभाजन से गुजरात का निर्माण के बाद  बेट द्वारका गुजरात के जामनगर जिले के अधिकार क्षेत्र में था। जामनगर जिले से 2013 ई. में सृजित जिला  देवभूमि द्वारका जिले का हिस्सा बन गया है। बेट द्वारिका को  1980 ई. में पुरातात्विक के जांच के दौरान, लेट हड़प्पा काल के मिट्टी के बर्तनों और अन्य कलाकृतियों के अवशेष पाए गए।है। बेट द्वारिका को  1982 ई. में जांचोपरांत  1500 ई. पू . की 580 मीटर (1,900 फीट) लंबी सुरक्षा दीवार मिली थी । अरब सागर समुद्री तूफान के बाद बेट द्वारिका  क्षतिग्रस्त हो गई और डूब गई थी । बेट द्वारिका में बरामद की गई कलाकृतियों में  हड़प्पा की  मुहर,  उत्कीर्ण जार और ताम्रकार का साँचा और  तांबे का मछली पकड़ने का हुक शामिल है।  बेट द्वारिका उत्खनन  के दौरान मिले जहाज़ के अवशेष और पत्थर के लंगर रोमनों के साथ ऐतिहासिक व्यापारिक संबंध हैं । द्वीप पर द्वारिकाधीश  मंदिर 18 वीं सदी  में बनाए गए थे। द्वारकाधीश मंदिर और श्री केशवरायजी मंदिर द्वीप पर कृष्ण मंदिर , हनुमान दंडी मंदिर , वैष्णव महाप्रभु बेथक और गुरुद्वारा हैं । अभय माता मंदिर द्वीप के दक्षिण-पश्चिम कीओखा से फेरी सेवा द्वारा बेट द्वारका पहुंचा जाता है।  ओखा-बेट द्वारका सिग्नेचर ब्रिज - गुजरात का प्रथम  समुद्री पुल - ओखा और बेट द्वारका के बीच निर्माण 2016 ई.  2 किमी (1 मील) लंबे  पुल की अनुमानित लागत ₹ 400 करोड़ की लागत से सुदर्शन सेतु पुल का उद्घाटन फरवरी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। बेट द्वारिका  द्वीप बलुआ पत्थर और रेतीले समुद्र तटों से घिरा हुआ है। बेट द्वारिका का पूर्वी  पतला प्रायद्वीप को  डन्नी पॉइंट कहा जाता है। बेट द्वारका गुजरात में इकोटूरिज् कहा गया है। बेट द्वारिका में स्थित द्वारिका धीश के दर्शनार्थी जहाज से 2024 ई. के पूर्व जाते थे ।

मंगलवार, सितंबर 10, 2024

रणछोड़ और बडताल

: बडताल का परिभ्रमण 
सात्येन्द्र कुमार पाठक 
गुजरात राज्य का खेड़ा जिले के श्रीलक्ष्मीनारायण देव गादी का मुख्यालय बडताल में श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर अवस्थित है । श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर में  वास्तु शास्त्र के ज्ञाता ब्रह्मानंद स्वामी के द्वारा एवं सहजानंद स्वामी ने 03 नवंबर 1824 ई. में निर्मित मंदिर लक्ष्मी नारायण और रणछोड़ राय ,  दाईं ओर भगवान राधा रानी और श्री कृष्ण की उनके महाविष्णु रूप हरि कृष्ण के साथ मूर्ति और बाईं ओर वासुदेव , धर्म और भक्ति हैं। मंदिर के लकड़ी के खंभों पर रंग-बिरंगी लकड़ी की नक्काशी एवं धर्मशाला , ज्ञानबाग मंदिर के द्वार के उत्तर-पश्चिम में उद्यान में स्वामीनारायण को समर्पित चार स्मारक हैं। श्री लक्ष्मीनारायण देव और रणछोड़राय को स्वामीनारायण ने स्वयं इस मंदिर में आलिंगनबद्ध और स्थापित किया था । वडताल शहर को वडताल स्वामीनारायण मंदिर कमल के आकार का मंदिर के भीतरी मंदिर में नौ गुंबद हैं। मंदिर के लिए ज़मीन स्वामीनारायण के भक्त जोबन पागी ने दान की थी। मंदिर का निर्माण स्वामीनारायण ने करवाया था । निर्जला एकादशी के दिन वड़ताल से भक्त श्रीजी महाराज से मिलने गढ़डा गए थे । अगले दिन - ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष के द्वादशी दिन - उन्होंने स्वामीनारायण से वड़ताल में कृष्ण मंदिर बनाने का अनुरोध किया। श्रीजी महाराज ने शिष्य एसजी ब्रह्मानंद स्वामी को अस्थायी रूप से मुली मंदिर के निर्माण को छोड़ने और वड़ताल मंदिर के निर्माण की योजना बनाने और देखरेख करने के लिए संतों की टीम के साथ आगे बढ़ने का आदेश दिया। मंदिर का निर्माण १५ महीनों के भीतर पूरा हुआ और लक्ष्मीनारायण देव की मूर्तियों को ३ नवंबर १८२४ को वैदिक भजनों और स्थापना समारोह के भक्ति उत्साह के बीच स्वयं स्वामीनारायण ने  मंदिर के मध्य में   लक्ष्मीनारायण देव और रणछोड़ की मूर्तियां स्थापित कीं थी ।  मंदिर परिसर का केंद्रीय मंदिर  में विराजमान देवताओं के अतिरिक्त पूजा स्थल की बायीं दीवार में दक्षिणावर्त शंख और शालिग्राम की प्रतिमा स्थापित की गई  तथा आंतरिक गुम्बद में भगवान के दस अवतारों की पाषाण प्रतिमाएं और  शेषनाग के आसन पर विराजमान विष्णु की प्रतिमाएं स्थापित हैं । मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों को लाभ पहुँचाने के लिए  वडताल में 1929 ई. में रेलवे टर्मिनस खोला गया था। 14 मील लंबी ब्रॉड गेज लाइन बनाई गई वह कनजारी और बोरियावी से जोड़ती थी। जनवरी 1921 में महात्मा गांधी ने मंदिर में भाषण दिया, जिसमें हिंदू धर्म के लिए असहयोग की प्रासंगिकता के बारे में बात की गई , "इस पवित्र स्थान पर, मैं घोषणा करता हूं, यदि आप अपने 'हिंदू धर्म' की रक्षा करना चाहते हैं, तो असहयोग पहला और साथ ही अंतिम सबक है जिसे आपको सीखना चाहिए।" भारत का प्रथम गृहमंत्री  वल्लभभाई पटेल ( स्वामीनारायण दर्शन से प्रभावित थे । उनका पालन-पोषण स्वामीनारायण अनुयायियों के परिवार में हुआ था। उनके पिता हर पूर्णिमा के दिन तीर्थयात्रा में वडताल युवा पटेल को अपने साथ ले जाते थे।  वडताल में स्वामीनारायण मंदिर विश्व हिंदू परिषद  का सदस्य है।  विश्व हिंदू परिषद ने 2006 में वडताल में स्वामीनारायण मंदिर में 11वीं धर्म संसद आयोजित की है। स्वामीनारायण संप्रदाय का मुख्य मंदिर है और दक्षिण देश का लक्ष्मीनारायण देव गादी के आचार्य और उपदेशक हैं। मुख्य मंदिर के दक्षिणी छोर पर अक्षर भुवन की पहली मंजिल पर घनश्याम महाराज की खड़ी मूर्ति ,  दूसरी मंजिल पर बैठी मुद्रा में घनश्याम महाराज की मूर्ति है और  स्वामीनारायण की निजी वस्तुएँ  रखी गई हैं। पश्चिम में हरि मंडप स्थान पर  स्वामीनारायण ने शिक्षापत्री लिखी थी । वडताल शहर नगर के पूर्व में आम का बगीचा में  स्वामीनारायण ने होली जलाई थी और रंगों से खेला था। स्थान पर छतरी  स्थान के दक्षिण की ओर स्वामीनारायण ने बारह दरवाजों वाले झूले पर झूला झूला ,  स्थान पर संगमरमर की सीट बनाई गई है। स्वामीनारायण द्वारा खोदी गई गोमती झील नगर के उत्तर में है। झील के बीच में  आश्रय  और उसके पश्चिम में छतरी बनी हुई है ।  स्वामीनारायण ने झील के बगल में आम के पेड़ के नीचे वचनामृत का प्रचार किया था।
: गलतेश्वर महादेव मंदिर -  खेड़ा जिले के थसरा तालुका के गलतेश्वर का  महिसागर और गलती नदी के संगम पर स्थित है।  डाकोर के ठाकोरजी से  12 किलोमीटर दूर स्थित शिखर विहीन  गलतेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है। 
रणछोड़राय मंदिर  -   खेड़ा जिले का  डाकोर के गोमती झील के तट पर अवस्थित श्री कृष्ण  मंदिर किले की दीवार से घिरा हुआ है।  रणछोड़जी, भगवान कृष्ण , ने पूना में पेशवा के दरबार के श्रोत गोपाल जगन्नाथ अम्बेकर को  विशाल और भव्य मंदिर बनाने के लिए स्वप्न में प्रेरित किया। रणछोड़ राय मंदिर का निर्माण 1772 ई.   में  रणछोड़राय मंदिर के गर्भगृह में भगवान कृष्ण की  मूर्ति काले टचस्टोन से निर्मित एक मीटर ऊँची और 45  सेमी चौड़ी, सोने, जवाहरात और महंगे कपड़ों से  सुसज्जित , सिंहासन, चांदी और सोने में मढ़े हुए लकड़ी की नक्काशी युक्त अलंकृत उत्कृष्ट  उमरेठ और डाकोर के बीच विश्राम के लिए इस से जुड़ीभक्त बोडाना प्रसिद्ध है।  भगवान कृष्ण ने नीम वृक्ष की  शाखा उठाई के  स्पर्श मात्र से कड़वी शाखा मीठी हो गई थी। 
संतराम मंदिर -  गिरनार से नाडियाड  में श्रीसीताराम अवधूत 1872 ई. ई.  आए थे । श्रीसीताराम अवधूत को गिरनार बावा, विधाय बावा या सुख-सागजी कहा जाता है । श्री संतराम महाराज , आध्यात्मिक उपचार के तौर पर 15 साल तक यहां रहे और 1887 की पूर्णिमा के दिन समाधि ली लिया था ।
कुंड वाव -  सिद्धराज जयसिंह खेड़ा जिले में आये तो सेना को कपडवंज में रहना सुरक्षित लगा। यह जंगल से भरा क्षेत्र था। सिद्धराज के सोमदत्त पंडित को कुष्ठ रोग हो गया था। जहाँ कुण्डवाव था, वहाँ पहले एक पानी का गड्ढा था। उसमें फिसलकर वह मर गया। इन चमत्कारों को देखते हुए धर्मनिष्ठ राजा ने कुण्डवाव बनवाने का निर्णय लिया था । कुंड के उत्खनन के दौरान प्राप्त नारायण देव और महालक्ष्मी की मूर्तियाँ  प्राप्त कपड़वंज हैं। गरम पानी का पूल - खेड़ा जिले के कठलाल तालुका के लुसुंदर गांव में  गर्म जल  कुंड  और सोमनाथ महादेव मंदिर है। उसके बगल में एक झील है। यहां प्रकृति का सुंदर दर्शन होता है, जहां महादेव की बिखरी हुई डाली से नदी का पानी बहता है। मंदिर के सामने गर्म और ठंडे जल कुंड है। 
गोपालदास हवेली - नाडियाड से 16 किलोमीटर दूर वासो नामक पाटीदारों का एक गांव है। इस गांव को दरबार गोपालदास और महेंद्रसिंहभाई की हवेली के नाम से जाना जाता है। यह हवेली 250 साल पुरानी है। हवेली के हर कोने में लकड़ी से बनी कलाकृतियां हैं। हवेली के मालिक महेंद्रसिंहभाई देसाई पूर्व विधायक थे। हवेली के हर कमरे की छत भी सीम की लकड़ी से बनी है। हवेली डेढ़ बीघे में फैली हुई है। हालांकि लकड़ी की छीलन और नक्काशी दो शताब्दियों से भी ज्यादा पुरानी है। कुछ सालों तक प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करके बनाई गई फेस्को पेंटिंग काफ़ी मूल्यवान हुआ करती थी।
परीज में एक बड़ी झील, एक छोटी झील और रातादेवर झील है। खंभात की खाड़ी के आसपास के क्षेत्र में, झील में बड़ी संख्या में पक्षी पाए जाते हैं। झील के आसपास के क्षेत्रों में आम, पयवार और आयवर पाए जाते हैं। सारस इस क्षेत्र का प्रसिद्ध पक्षी है। भारत में, सारस केवल गुजरात और उत्तर प्रदेश में पाया जाता है। परीज की मुख्य झील का क्षेत्र १२ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसकी सामान्य गहराई ८ फीट और अधिकतम गहराई १०.५ फीट है। अहिंकल और नर्मदा नहर का पानी झील को भरने के लिए मुख्य स्रोत हैं। परीज झील में विभिन्न पक्षी पाए जाते हैं, और विशेष रूप से सारस बेलडी इस झील में पाई जाती है। यात्री और पक्षी प्रेमी अक्सर इन तालाबों को देखने आते हैं। इसलिए राज्य सरकार इस क्षेत्र को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का फैसला करती है। तीर्थराजश्री स्वामीनारायण मंदिर, वडताल - 1878 में चैत्र सदन में सहजानंद स्वामी ने मंदिर का निर्माण शुरू किया और 1881 के कार्तिक महीने में निर्माण पूरा हुआ। मजदूरों की जगह साधु-संत और सत्संगियों ने ईंटें, चूना, पकाना, सभी काम और निर्माण सेवाएं खुद ही लीं। मंदिर के आधार में कुल 9 लाख ईंटें इस्तेमाल हुईं। सहजानंद स्वामी ने खुद 37 ईंटें लीं। उनमें से 35 ईंटें लक्ष्मीनारायण की मूर्ति के आसन है।  गुजरात राज्य के हिंदी एवं गुजराती भाषीय  आणंद ज़िले के  मुख्यालय आणंद  का प्राचीन नाम आनंदपुर था। आणंद दूध उत्पादनों के लिए प्रसिद्ध अमूल सहकारी संघ के लिए जाना जाता है।  निर्देशांक: 22°33′22″N72°57′04″E / 22.556°N 72.951°Eनिर्देशांक: 22°33′22″N 72°57′04″E / 22.556°N 72.951°E पर स्थित आणंद ज़िला की समुद्र तल से 39 मीटर व 128 फीट ऊँचाई पर 2011 जनगणना के अनुसार जनसंख्या 209410  है।आनंदपुर का राजा गुर्जर नरेश शीलादित्य सप्तम के अलिया ताभ्रदानपट्ट की राजधानी  आनंदपुर  था । आनंदपुर सारस्वत ब्राह्मणों का मूल स्थान एवं  देवनागरी लिपि का आविष्कार किया था। युवानच्वांग ने 7 वीं सदी में  आनंदपुर का प्रांत मालवा के उत्तर पश्चिम की ओर साबरमती के पश्चिम में स्थित था।  मालवा राज्य के अधीन आनंदपुर था। इसका दूसरा नाम वरनगर था। ऋग्वेद प्रातिशाख्य के रचयिता उव्वट ने ऋग्वेद के अध्याय के अंत में इति आनन्दपुर वास्तव्यं लिखा है। नागर ब्राह्मण वरनगर के निवासी होने से  नागर कहलाए थे । चार दिवसीय आणंद परिभ्रमण 30 अगस्त 2024  से 02 सितंबर 2024 तक साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा गुजरात राज्य का आणंद जिले के ऐतिहासिक और प्राचीन स्थलों का  भ्रमण के दौरान  लक्ष्मी नारायण मंदिर , भगवान कृष्ण का स्थल , भगवान शिव मंदिर , झील , श्री  स्वामीनाथ मंदिर आदि स्थान रमणीय प्राप्त किया है ।

सोमवार, सितंबर 09, 2024

सोमनाथ और प्रभाष तीर्थ


सनातन धर्म ग्रंथों, वेदों , पुराणों , संहिताओं में प्रभास तीर्थ सोम नाथ की महत्वपूर्ण स्थान का उल्लेख मिलता हैं। दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य का सोमनाथ जिले के अरब सागर के तट पर अवस्थित दक्ष प्रजापति की पुत्री रोहाणी के पति वनस्पति का देवता सोम द्वारा स्थापित भगवान शिव को समर्पित सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है । ऋग्वेद , शिव पुराण , लिंगपुराण स्मृति ग्रंथों के अनुसार सनातन धर्म की भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम सोमनाथ  ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित सोमनाथ मंदिर का   निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया एवं  द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण   ने देहत्याग स्थल  था । भौगोलिक निर्देशांक 20°53′16.9″N70°24′5.0″E/20.888028°N70.401389°Eनिर्देशांक: 20°53′16.9″N 70°24′5.0″E / 20.888028°N 70.401389°E पर अवस्थित सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण सनातन वास्तुकला में सोमनाथ मंदिर का निर्माण 1951 ई. में किया गया है। भगवान सोमनाथ  ज्योतिर्लिंग - सनातन धर्म का सोमनाथ  मन्दिर के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है।  वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्र को समर्पित किया था ।   सोमनाथ मन्दिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है।  तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए  प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में पितृ श्राद्ध करने का विशेष महत्त्व बताया गया है।  तीन महीनों में यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ लगती है। नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। 
ग्रन्थों के  अनुसार सोम अर्थात् चन्द्र ने, दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था। चंद्र ने  अपनी पत्नी रोहिणी  को अधिक प्यार व सम्मान नही करने एवं  अन्याय को होते देख क्रोध में आकर दक्ष ने चन्द्रदेव को शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारा तेज (काँति, चमक) क्षीण होता रहेगा के फलस्वरूप हर दूसरे दिन चन्द्र का तेज घटने लगा। शाप से विचलित और दुःखी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी थी । चंद्र की घोर उपासना से  शिव प्रसन्न हुए और सोम-चन्द्र के शाप का निवारण किया था । सोम के कष्ट को दूर करने वाले भगवान  शिव को समर्पित कर   "सोमनाथ" ज्योतिर्लिंग है। द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम करने के दौरान  शिकारी ने श्रीकृष्ण के पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आँख समझकर अनजाने में तीर माराने के कारण श्री कृष्ण ने देह त्यागकर   वैकुण्ठ गमन किया। श्रीकृष्ण देहत्याग स्थान पर श्रीकृष्ण को समर्पित  कृष्ण मन्दिर  है।
1869 में सोमनाथ मंदिर के अवशेष था । सोमनाथ मन्दिर ईसा  पूर्व में अस्तित्व एवं द्वितीय बार मन्दिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया था । आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने सोमनाथ मंदिर नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी थी । गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ई.  में सोमनाथ मंदिर  तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। मन्दिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी के यात्रा वृतान्त में सोमनाथ मंदिर का यात्रा वृतांत के अनुसार   महमूद ग़ज़नवी ने सन 1025 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मन्दिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। 50,000 लोग मन्दिर के अन्दर हाथ जोड़कर पूजा अर्चना कर रहे थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिये गये थे । गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था । दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर 1297 ई. में  क़ब्ज़ा करने के बाद  पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1706 ई. में  मंदिर को  गिरा दिया था। भारत के गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा  मंदिर का पुनर्निर्माण कर 01  दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने  राष्ट्र को सोमनाथ मंदिर  समर्पित किया था । सोमनाथ क्षेत्र 1948 में प्रभासतीर्थ, 'प्रभास पपाटन की तहसील और नगर पालिका थी।  जूनागढ़ रियासत का मुख्य सोमनाथ  नगर था। सोमनाथ  तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में 1948 ई. में  विलय हो गया है। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा है।  महमूद गजनी ने 1026 ई. में  शिवलिंग खण्डित किया वह आदि शिवलिंग था।  प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खण्डित किया। अनेक  बार मन्दिर और शिवलिंग को खण्डित किया गया। आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मन्दिर का  हैं। महमूद गजनी सन 1026 में लूटपाट के दौरान सोमनाथ मंदिर का द्वारों को अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मन्दिर के मूल मन्दिर स्थल पर मन्दिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मन्दिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा सोमनाथ मंदिर के स्थान पर अन्तिम मन्दिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने १९ अप्रैल १९४० को सोमनाथ का  उत्खनन कराया था।  भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मन्दिर की आधारशिला रखी तथा ११ मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मन्दिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया था । नवीन सोमनाथ मन्दिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया।  जामनगर की राजमाता ने 1970 ई. में  अपने पति की स्मृति में  'दिग्विजय द्वार' बनवाया। दिग्विजय  द्वार के समीप राजमार्ग और पूर्व गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। मन्दिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे बाण स्तम्भ के ऊपर  तीर रखकर संकेत किया गया  कि सोमनाथ मन्दिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है - आसमुद्रान्त दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधितs ज्योतिर्मार्ग  स्तम्भ को 'बाणस्तम्भ' कहते हैं।  मन्दिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मन्दिर के समीप माता  पार्वती को पार्वती मन्दिर समर्पित  है।. सोमनाथ मंदिर भग्न मन्दिर की तीर्थ यात्री 1972 ई.  में मन्दिर में भयंकर दुरवस्था देखी—अपवित्र, जला हुआ और ध्वस्त ,  दर्शन करते थे । मन्दिर के खमृभों के भग्नावशेषों और बिखरे पत्थरों को देखकर मेरे अन्दर अपमान की कैसी अग्निशिखा प्रज्जवलित हो रहा था । सरदार प्रभास पाटन के नवंबर 1947 ई. को दौरे पर मन्दिर का दर्शन किया। 
मन्दिर संख्या 1 के प्रांगण में हनुमानजी का मन्दिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मन्दिर हैं। अघोरेश्वर मन्दिर नं॰ 6 के समीप भैरवेश्वर मन्दिर, महाकाली मन्दिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है। पंचमुखी महादेव मन्दिर कुमार वाडा में, विलेश्वर मंदिर नं. 12 के नजदीक और नं॰ 15 के समीप राममन्दिर स्थित है। नागरों के इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मन्दिर, कालिका मन्दिर, बालाजी मन्दिर, नरसिंह मन्दिर, नागनाथ मन्दिर समेत कुल 42 मन्दिर नगर के लगभग दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं। सोमनाथ के निकट त्रिवेणी घाट पर स्थित गीता मन्दिरवेरावल प्रभास क्षेत्र के मध्य में समुद्र के किनारे मन्दिर बने हुए हैं ।शशिभूषण मन्दिर, भीड़भंजन गणपति, बाणेश्वर, चंद्रेश्वर-रत्नेश्वर, कपिलेश्वर, रोटलेश्वर, भालुका तीर्थ है। भालकेश्वर, प्रागटेश्वर, पद्म कुण्ड, पाण्डव कूप, द्वारिकानाथ मन्दिर, बालाजी मन्दिर, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, रूदे्रश्वर मन्दिर, सूर्य मन्दिर, हिंगलाज गुफा, गीता मन्दिर, बल्लभाचार्य महाप्रभु की 65 वीं बैठक के अलावा अन्य  मन्दिर है। प्रभास खण्ड में  सोमनाथ मन्दिर के समयकाल में अन्य देव मन्दिर थे। भगवान  शिव के 135 शिवलिंग ,  विष्णु भगवान के 5, देवी के 25, सूर्यदेव के 16, गणेशजी के 5, नाग मन्दिर 1, क्षेत्रपाल मन्दिर 1, कुण्ड 19 और नदियाँ 9 हैं।  शिलालेख के अनुसार महमूद के हमले के बाद इक्कीस मन्दिरों का निर्माण किया गया था। सोमनाथ से  दो सौ किलोमीटर दूरी पर प्रमुख तीर्थ श्रीकृष्ण की गोमती  द्वारिका प्रतिदिन द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। गोमती नदी में स्नान का विशेष महत्त्व बताया गया है। नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ता जाता और सूर्यास्त पर घटता जाता है, जो सुबह सूरज निकलने से पहले मात्र एक डेढ़ फीट  रह जाता है। सोमनाथ क्षेत्र में  अहिल्या बाई का मन्दिर ,2.प्राची त्रिवेदी ,3.वाड़ातीर्थ ,4.यादवस्थली है ।
साहित्यकार व इतिहासकार सात्येन्द्र कुमार पाठक  द्वारा 06 सितंबर 2024 एवं 07 सितंबर 2024 को सोमनाथ एवं प्रभास क्षेत्र में अवस्थित सोमनाथ मंदिर , गोपी कुंड , भगवान शिव का शिवलिंग को पखारते हुए सागर स्थल , भगवान कृष्ण को व्याधा द्वार तीर मारा गया था का स्थल , भगवान कृष्ण का अंत्येष्टि स्थल , सूर्यमंदिर , गीता मंदिर , नारायण मंदिर , हिंगोली देवी , पांडव गुफा , हिरण्य , सरस्वती एवं कपिला नदी में का अरब सागर में मिलान स्थल , आदि स्थलों का परिभ्रमण किया गया ।

शनिवार, सितंबर 07, 2024

साबरमती आश्रम और साबरमती नदी


गुजरात राज्य अहमदाबाद जिले का साबरमती नदी के किनारे साबरमती आश्रम व सत्याग्रह आश्रम की स्थापना सन् 1915 में अहमदाबाद के कोचरब में मोहनदास करमचंद गांधी द्वारा साबरमती नदी के किनारे ऋषि दधीचि द्वारा स्थापित दधीचि आश्रम पर 1917 ई. में कोचरब से स्थानांतरित कर महात्मा गांधी द्वारा साबरमती आश्रम स्थापना की गई थी । साबरमती आश्रम वृक्षों की शीतल छाया में  सादगी एवं शांति साबरमती आश्रम की एक ओर सेंट्रल जेल और दूसरी ओर दुधेश्वर श्मशान है। आश्रम। के  प्रारंभ में निवास के लिये कैनवास के खेमे और टीन से छाया हुआ रसोईघर था।  साबरमती निवासियों की 1917ई. में। संख्या 40 थी। महात्मा गांधी  के सत्य, अहिंसा आत्मससंयम, विराग एवं समानता के सिद्धांतों पर आधारित प्रयोग और सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्रांति का महात्मा गांधी के मस्तिष्क में प्रतीक और विकसित करने की प्रयोगाशाला कहा जाता  था। आश्रम में विभिन्न धर्मावलबियों में एकता स्थापित करने, चर्खा, खादी एवं ग्रामोद्योग द्वारा जनता की आर्थिक स्थिति सुधारने और अहिंसात्मक असहयोग या सत्याग्रह के द्वारा जनता में स्वतंत्रता की भावना जाग्रत करने के प्रयोग किए गए थे ।आश्रम भारतीय नेताओं के लिए प्रेरणाश्रोत तथा भारत के स्वतंत्रता संघर्ष से संबंधित कार्यों का केंद्रबिंदु था ।।कताई एवं बुनाई के साथ-साथ चर्खे के भागों का निर्माण कार्य भी धीरे-धीरे इस आश्रम में होने लगा। आश्रम में रहते हुए गांधी  ने अहमदाबाद की मिलों में हुई हड़ताल का सफल संचालन किया था । मिल मालिक एवं कर्मचारियों के विवाद को सुलझाने के लिए गांधी  ने अनान आरंभ करने के प्रभाव से 21 दिनों से चल रही हड़ताल तीन दिनों के समाप्ति के पचात् गांधी जी ने आश्रम में रहते हुए खेड़ा सत्याग्रह का सूत्रपात कियाथा । रालेट समिति की सिफारिाों का विरोध करने के लिए गांधी  ने साबरमती आश्रम।तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं का  सम्मेलन में लोगों ने सत्याग्रह के प्रतिज्ञा पत्र हर हस्ताक्षर किए था ।
साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी ने 2 मार्च 1930 ई. को भारत के वाइसराय को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि नौ दिनों का सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करने जा रहे हैं। महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 ई. को आश्रम के  78 व्यक्तियों के साथ नमक कानून भंग करने के लिए ऐतिहासिक दंडी यात्रा एवं गांधी जी भारत के स्वतंत्र होने तक साबरमती आश्रम में  लौटकर नहीं आए थे ।गांधी जी ने आश्रमवासियों को आश्रम छोड़कर गुजरात के खेड़ा जिले के बीरसद के  रासग्राम में पैदल जाकर बसने का परामर्श दिया परंतु  आश्रमवासियों के आश्रम छोड़ देने के पूर्व 1 अगस्त 1933 ईं. को सब गिरफ्तार कर लिए गए। महात्मा गांधी ने आश्रम को भंग कर दिया। आश्रम कुछ काल तक जनशून्य पड़ा रहा। बा निर्णय किया गया कि हरिजनों तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए शिक्षा एवं शिक्षा संबंधी संस्थाओं को चलाया जाने  कार्य के लिए आश्रम को न्यास के अधीन कर दिया जाए। साबरमती आश्रम के शिष्यों द्वारा ही महात्मा गाँधी को "बापू "नाम से सर्वप्रथम सम्बोधित किया गया था । गांधी जी की मृत्यु के पचात् महात्मा गांधी।  की स्मृति को निरंतर सुरक्षित रखने के उद्देय से राष्ट्रीय स्मारक की स्थापना की गई। गांधी स्मारक निधि नामक संगठन ने  निर्णय किया कि आश्रम के  भवनों सुरक्षित रखा जाए एवं 1951 ई. में साबरमती आश्रम सुरक्षा एवं स्मृति न्यास अस्तित्व में आया। उसी समय से यह न्यास महात्मा गांधी के निवास, हृदयकुंज, उपासनाभूमि नामक प्रार्थनास्थल और मगन निवास की सुरक्षा के लिए कार्य कर रहा है। हृदयकुंज में महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा ने  12 वर्षों तक निवास किया था। 10 मई 1963 ई. को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित  जवाहरलाल नेहरू ने हृदयकुंज के समीप गांधी स्मृति संग्रहालय का उद्घाटन किया। संग्रहालय में गांधी जी के पत्र, फोटोग्राफ और अन्य दस्तावेज रखे गए हैं।  इंडिया, नवजीवन तथा हरिजन में प्रकाशित गांधी जी के 400 लेखों की मूल प्रतियाँ, बचपन से लेकर मृत्यु तक के फोटोग्राफों का बृहत् संग्रह और भारत तथा विदेशों में भ्रमण के समय दिए गए भाषणों के 100 संग्रह प्रदर्शित किए गए हैं। संग्रहालय में पुस्तकालय में साबरमती आश्रम की 4,000 तथा महादेव देसाई की 3,000 पुस्तकों का संग्रह है।  संग्रहालय में महात्मा गांधी द्वारा और  लिखे गए 30,000 पत्रों की अनुक्रमणिका  पत्रों में माइक्रो फिल्म सुरक्षित रखे हैं। बापू  ने साबरमतीआश्रम में 1915 से 1933 तक निवास किया। जब वे साबरमति।की  कुटिया में रहने के कारण  "ह्रदय-कुंज" में  महात्मा गांधी का  डेस्क, खादी का कुर्ता, उनके पत्र आदि मौजूद हैं। "ह्रदय-कुंज" के दाईं ओर "नन्दिनी" है। "अतिथि-कक्ष" और आचार्य विनोबा भावे के निवास "विनोबा कुटीर" है । हृदय कुंज  कुटीर आश्रम के मध्य स्थित का नामकरण काका साहब कालेकर ने  समय गांधी जी के साथ 1919 से 1930 ई. तक  बिताया और ऐतिहासिक दांडी यात्रा प्रारम्भ  की थी।विनोबा-मीरा कुटीर - आश्रम के एक हिस्से में विनोबा-मीरा 1918 से 1921 के दौरान आचार्य विनोबा भावे ने  जीवन के महीने बिताए थे।  गांधी जी के आदर्शो से प्रभावित ब्रिटिश युवती मेडलीन स्लेड 1925 से 1933 तक ,  गांधी जी ने शिष्या मीरा रखा था। प्रार्थना भूमि - आश्रम में रहने वाले सभी सदस्य प्रतिदिन सुबह-शाम प्रार्थना भूमि में एकत्र होकर प्रार्थना करते थे ।नंदिनी अतिथिगृह- देश के स्वतंत्रता सेनानी पं॰ जवाहरलाल नेहरू, डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद, सी.राजगोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज और रवींद्रनाथ टैगोर आदि  साबरमती आश्रम आते थे ।साबरमती नदी - राजस्थान के उदयपुर ज़िले का अरावली पर्वतमाला से उद्गम स्थल से प्रवाहित साबरमती नदी और  राजस्थान और गुजरात में दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बहते हुए ३७१ किमी का सफर तय करने के बाद  अरब सागर की खम्भात की खाड़ी में विलय हो जाती है। साबरमती। नदी की लम्बाई  राजस्थान में ४८ किमी और गुजरात में ३२३ किमी है।  गुजरात की साबरमती नदी के  तट पर रअहमदाबाद और गांधीनगर नगर अवस्थित और धरोई बाँध योजना द्वारा साबरमती नदी के जल का प्रयोग गुजरात में सिंचाई और विद्युत् उत्पादन के लिए , उदयपुर ज़िलाका अरावली पर्वतमाला की  ऊँचाई 782 मी॰ (2,566 फीट) से साबरमती नदी प्रवाहित होकर खंभात की खाड़ी में मिलत्ती है। साबरमती नदी में वाकल नदी, हरनाव नदी, मधुमती नदी, हाथमती नदी, वात्रक नदी  मिलती है । स्मृति ग्रन्थों  के अनुसार भगवान शिव ने  देवी गंगा को गुजरात लेकर आने के कारण साबरमती नदी का जन्म हुआ। सबरमती नदी का प्राचीन नाम भोगवा है। गुजरात की वाणिज्यिक और राजनीतिक राजधानियाँ; अहमदाबाद और गांधीनगर साबरमती नदी के तट पर ही बसाए गए थे। गुजरात सल्तनत के सुल्तान अहमद शाह ने साबरमती के तट पर विश्राम करते हुए खरगोश को कुत्ते का पीछा करते हुए देखा था । खरगोश के साहस से प्रेरित होकर १४११ में सुल्तान अहमद शाह ने खरगोश स्थल पर अहमदाबाद की स्थापना करी थी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी ने साबरमती नदी के तट पर साबरमती आश्रम की स्थापना किया था । साबरमती नदी बेसिन राजस्थान के मध्य-दक्षिणी भाग में स्थित है। पूर्व में बनास और माही बेसिन, उत्तर में लूनी बेसिन और इसके पश्चिम में पश्चिमी बनास बेसिन हैं।  दक्षिणी सीमा गुजरात राज्य के साथ लगती है। साबरमती नदी बेसिन उदयपुर, सिरोही, पाली और डुंगरपुर जिलों के हिस्सों तक फैला हुआ है। ऑर्थोग्राफिक रूप से, बेसिन का पश्चिमी हिस्सा अरावली रेंज से संबंधित पहाड़ी द्वारा चिह्नित किया जाता है। पहाड़ियों के पूर्व में  संकीर्ण जलीय मैदान सभ्य पूर्व की ढलान के साथ है ।साबरमती की मुख्य सहायक नदियां में मिलने वाली नदियों में सेई नदी वाकल नदी ,वतक नदी , शेही नदी , हरनाव नदी , गुईई नदी ,हथमती नदी ,मेसवा नदी ,मझम नदी, खारी नदी मोहर नदी है।
साहित्यकार व इतिहासकार सात्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा 06 सितंबर 2024 को साबरमती आश्रम एवं साबरमती नदी का परिभ्रमण किया । साबरमति आश्रम की स्थापना महात्मा गांधी द्वारा किया गया । ऋषि दधीचि ने साबरमति नदी के तट पर सतयुग में दधिचि आश्रम की स्थापना की थी । यह स्थल सत्य ,अहिंसा और समन्वय एवं मानवीय मूल्यों के प्रति महत्वपूर्ण स्थान है। साबरमति आश्रम परिभ्रमण के दौरान अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास बिहार की संयोजिका एवं लेखिका उषाकिरण श्रीवास्तव साथ थी ।