सोमवार, सितंबर 09, 2024

सोमनाथ और प्रभाष तीर्थ


सनातन धर्म ग्रंथों, वेदों , पुराणों , संहिताओं में प्रभास तीर्थ सोम नाथ की महत्वपूर्ण स्थान का उल्लेख मिलता हैं। दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य का सोमनाथ जिले के अरब सागर के तट पर अवस्थित दक्ष प्रजापति की पुत्री रोहाणी के पति वनस्पति का देवता सोम द्वारा स्थापित भगवान शिव को समर्पित सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है । ऋग्वेद , शिव पुराण , लिंगपुराण स्मृति ग्रंथों के अनुसार सनातन धर्म की भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम सोमनाथ  ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित सोमनाथ मंदिर का   निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया एवं  द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण   ने देहत्याग स्थल  था । भौगोलिक निर्देशांक 20°53′16.9″N70°24′5.0″E/20.888028°N70.401389°Eनिर्देशांक: 20°53′16.9″N 70°24′5.0″E / 20.888028°N 70.401389°E पर अवस्थित सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण सनातन वास्तुकला में सोमनाथ मंदिर का निर्माण 1951 ई. में किया गया है। भगवान सोमनाथ  ज्योतिर्लिंग - सनातन धर्म का सोमनाथ  मन्दिर के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है।  वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्र को समर्पित किया था ।   सोमनाथ मन्दिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है।  तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए  प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में पितृ श्राद्ध करने का विशेष महत्त्व बताया गया है।  तीन महीनों में यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ लगती है। नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। 
ग्रन्थों के  अनुसार सोम अर्थात् चन्द्र ने, दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था। चंद्र ने  अपनी पत्नी रोहिणी  को अधिक प्यार व सम्मान नही करने एवं  अन्याय को होते देख क्रोध में आकर दक्ष ने चन्द्रदेव को शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारा तेज (काँति, चमक) क्षीण होता रहेगा के फलस्वरूप हर दूसरे दिन चन्द्र का तेज घटने लगा। शाप से विचलित और दुःखी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी थी । चंद्र की घोर उपासना से  शिव प्रसन्न हुए और सोम-चन्द्र के शाप का निवारण किया था । सोम के कष्ट को दूर करने वाले भगवान  शिव को समर्पित कर   "सोमनाथ" ज्योतिर्लिंग है। द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम करने के दौरान  शिकारी ने श्रीकृष्ण के पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आँख समझकर अनजाने में तीर माराने के कारण श्री कृष्ण ने देह त्यागकर   वैकुण्ठ गमन किया। श्रीकृष्ण देहत्याग स्थान पर श्रीकृष्ण को समर्पित  कृष्ण मन्दिर  है।
1869 में सोमनाथ मंदिर के अवशेष था । सोमनाथ मन्दिर ईसा  पूर्व में अस्तित्व एवं द्वितीय बार मन्दिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया था । आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने सोमनाथ मंदिर नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी थी । गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ई.  में सोमनाथ मंदिर  तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। मन्दिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी के यात्रा वृतान्त में सोमनाथ मंदिर का यात्रा वृतांत के अनुसार   महमूद ग़ज़नवी ने सन 1025 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मन्दिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। 50,000 लोग मन्दिर के अन्दर हाथ जोड़कर पूजा अर्चना कर रहे थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिये गये थे । गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था । दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर 1297 ई. में  क़ब्ज़ा करने के बाद  पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1706 ई. में  मंदिर को  गिरा दिया था। भारत के गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा  मंदिर का पुनर्निर्माण कर 01  दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने  राष्ट्र को सोमनाथ मंदिर  समर्पित किया था । सोमनाथ क्षेत्र 1948 में प्रभासतीर्थ, 'प्रभास पपाटन की तहसील और नगर पालिका थी।  जूनागढ़ रियासत का मुख्य सोमनाथ  नगर था। सोमनाथ  तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में 1948 ई. में  विलय हो गया है। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा है।  महमूद गजनी ने 1026 ई. में  शिवलिंग खण्डित किया वह आदि शिवलिंग था।  प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खण्डित किया। अनेक  बार मन्दिर और शिवलिंग को खण्डित किया गया। आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मन्दिर का  हैं। महमूद गजनी सन 1026 में लूटपाट के दौरान सोमनाथ मंदिर का द्वारों को अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मन्दिर के मूल मन्दिर स्थल पर मन्दिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मन्दिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा सोमनाथ मंदिर के स्थान पर अन्तिम मन्दिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने १९ अप्रैल १९४० को सोमनाथ का  उत्खनन कराया था।  भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मन्दिर की आधारशिला रखी तथा ११ मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मन्दिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया था । नवीन सोमनाथ मन्दिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया।  जामनगर की राजमाता ने 1970 ई. में  अपने पति की स्मृति में  'दिग्विजय द्वार' बनवाया। दिग्विजय  द्वार के समीप राजमार्ग और पूर्व गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। मन्दिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे बाण स्तम्भ के ऊपर  तीर रखकर संकेत किया गया  कि सोमनाथ मन्दिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है - आसमुद्रान्त दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधितs ज्योतिर्मार्ग  स्तम्भ को 'बाणस्तम्भ' कहते हैं।  मन्दिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मन्दिर के समीप माता  पार्वती को पार्वती मन्दिर समर्पित  है।. सोमनाथ मंदिर भग्न मन्दिर की तीर्थ यात्री 1972 ई.  में मन्दिर में भयंकर दुरवस्था देखी—अपवित्र, जला हुआ और ध्वस्त ,  दर्शन करते थे । मन्दिर के खमृभों के भग्नावशेषों और बिखरे पत्थरों को देखकर मेरे अन्दर अपमान की कैसी अग्निशिखा प्रज्जवलित हो रहा था । सरदार प्रभास पाटन के नवंबर 1947 ई. को दौरे पर मन्दिर का दर्शन किया। 
मन्दिर संख्या 1 के प्रांगण में हनुमानजी का मन्दिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मन्दिर हैं। अघोरेश्वर मन्दिर नं॰ 6 के समीप भैरवेश्वर मन्दिर, महाकाली मन्दिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है। पंचमुखी महादेव मन्दिर कुमार वाडा में, विलेश्वर मंदिर नं. 12 के नजदीक और नं॰ 15 के समीप राममन्दिर स्थित है। नागरों के इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मन्दिर, कालिका मन्दिर, बालाजी मन्दिर, नरसिंह मन्दिर, नागनाथ मन्दिर समेत कुल 42 मन्दिर नगर के लगभग दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं। सोमनाथ के निकट त्रिवेणी घाट पर स्थित गीता मन्दिरवेरावल प्रभास क्षेत्र के मध्य में समुद्र के किनारे मन्दिर बने हुए हैं ।शशिभूषण मन्दिर, भीड़भंजन गणपति, बाणेश्वर, चंद्रेश्वर-रत्नेश्वर, कपिलेश्वर, रोटलेश्वर, भालुका तीर्थ है। भालकेश्वर, प्रागटेश्वर, पद्म कुण्ड, पाण्डव कूप, द्वारिकानाथ मन्दिर, बालाजी मन्दिर, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, रूदे्रश्वर मन्दिर, सूर्य मन्दिर, हिंगलाज गुफा, गीता मन्दिर, बल्लभाचार्य महाप्रभु की 65 वीं बैठक के अलावा अन्य  मन्दिर है। प्रभास खण्ड में  सोमनाथ मन्दिर के समयकाल में अन्य देव मन्दिर थे। भगवान  शिव के 135 शिवलिंग ,  विष्णु भगवान के 5, देवी के 25, सूर्यदेव के 16, गणेशजी के 5, नाग मन्दिर 1, क्षेत्रपाल मन्दिर 1, कुण्ड 19 और नदियाँ 9 हैं।  शिलालेख के अनुसार महमूद के हमले के बाद इक्कीस मन्दिरों का निर्माण किया गया था। सोमनाथ से  दो सौ किलोमीटर दूरी पर प्रमुख तीर्थ श्रीकृष्ण की गोमती  द्वारिका प्रतिदिन द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। गोमती नदी में स्नान का विशेष महत्त्व बताया गया है। नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ता जाता और सूर्यास्त पर घटता जाता है, जो सुबह सूरज निकलने से पहले मात्र एक डेढ़ फीट  रह जाता है। सोमनाथ क्षेत्र में  अहिल्या बाई का मन्दिर ,2.प्राची त्रिवेदी ,3.वाड़ातीर्थ ,4.यादवस्थली है ।
साहित्यकार व इतिहासकार सात्येन्द्र कुमार पाठक  द्वारा 06 सितंबर 2024 एवं 07 सितंबर 2024 को सोमनाथ एवं प्रभास क्षेत्र में अवस्थित सोमनाथ मंदिर , गोपी कुंड , भगवान शिव का शिवलिंग को पखारते हुए सागर स्थल , भगवान कृष्ण को व्याधा द्वार तीर मारा गया था का स्थल , भगवान कृष्ण का अंत्येष्टि स्थल , सूर्यमंदिर , गीता मंदिर , नारायण मंदिर , हिंगोली देवी , पांडव गुफा , हिरण्य , सरस्वती एवं कपिला नदी में का अरब सागर में मिलान स्थल , आदि स्थलों का परिभ्रमण किया गया ।

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