बुधवार, सितंबर 11, 2024

द्वारिका और द्वारिकाधीश

पुराणों एवं स्मृति ग्रंथों में द्वारिका क्षेत्र को देवभूमि कहा गया है। गुजरात राज्य का  सौराष्ट्र विस्तार में स्थित द्वारिका जिला का मुख्यालय अरब सागर एवं गोमती नदी के संगम पर  द्वारिका का खम्भालिया अवस्थित है । द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण द्वारा द्वारिका नगरी की स्थापना एवं कर्म भूमि पर द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण थे । श्री कृष्ण की कर्मभूमि द्वारका  को 15 अगस्त 2023 को जामनगर जिला का विभाजन करके देवभूमि द्वारका को जिला बनाने की घोषणा की थी। द्वारका जिला कच्छ की खाड़ी और अरबी समुद्र के तट पर बसा है। द्वारका  की द्वारिकाधीश की प्रसार गोमती नदी पसार से होती है। द्वारकाधीश का जगत मन्दिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है।देवभूमि द्वारका जिला का क्षेत्रफल 4051 किमी2 (1,564 वर्गमील) 2011 जनगणना के अनुसार 742484 लोग निवास करते हैं । सनातन धर्म का द्वारिका धाम  में स्थित द्वारिकाधीश भारत, नेपाल औरविश्व का सनातन धर्म के  वैष्णव का  द्वारकाधीश के दर्शन हेतु आते है।गोमती तालाब - द्वारका के दक्षिण में अवस्थी लम्बा गोमती तालाब' के कारण  द्वारका को गोमती द्वारका कहते है। भारतीय संस्कृति में गोमती  नदी  से द्वारिकाधीश की  पसार होती है।निष्पाप कुण्ड , गोमती तालाब के ऊपर में सरकारी घाट के समीप निष्पाप कुण्ड है। निष्पाप कुंड में गोमती का पानी भरा रहता है। निष्पाप कुंड से उतरने के लिए पक्की सीढ़िया बनी है।  निष्पाप कुण्ड में नहाकर  पुर्वज को के  पिंड-दान करतें हैं।दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर - दक्षिण की तरफ  दुर्वासा मंदिर का और  त्रिविक्रमजी मंदिर व  टीकमजी है। त्रिविक्रमजी  मन्दिर के बाद प्रधुम्नजी के दर्शन करते हुए कुशेश्वर मन्दिर का गर्भगृह के तहखाना में शिव का भगवान शिव लिंग एवं माता पार्वती  की मूर्ति है।कुशेश्वर शिव के मन्दिर के बराबर-बराबर दक्षिण  अम्बाजी मंदिर और माता देवकी मंदिर , रणछोड़जी मन्दिर के समीप  राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जाम्बवती  मन्दिर है।हनुमान मंदिर - वासुदेव घाट पर हनुमानजी मन्दिर है।   गोमती नदी और समुद्र में मिलने से संगम घाट पर संगम-नारायणजीमन्दिर है।शारदा मठ - द्वारिका में शारदा-मठ की स्थापना  आदि गुरु शंकराचार्य नेद्वारा किया गया  था। चक्र तीर्थ - संगम-घाट के उत्तर में समुद्र के ऊपर घाटचक्र तीर्थ घाट के समीप स रत्नेश्वर महादेव  मन्दिर है।कैलाश कुण्ड - कैलासकुण्ड़  का पानी गुलाबी रंग का है। कैलासकुण्ड के आगे सूर्यनारायण मन्दिर के आगे द्वारका शहर का पूरब  दरवाजे के बाहर जय और विजय की मूर्तिया है।गोपी तालाब -  द्वारिका मंदिर से तेरह मील पर  गोपी-तालाब और  भूमि  पीली है। गोपी तालाब के अन्दर से पीली  रंग की  मिट्टी   गोपीचन्दन कहा जाता  है। बेट द्वारका -  भगवान कृष्ण ने  भक्त  नरसी की हुण्डी भरी करने के कारण बेट द्वारिका कहा गया थी। बेट-द्वारका के टापू  का पूरब की तरफ  पर हनुमान टीले पर  हनुमानजी मन्दिर है।   दुमंजिले और तिमंजले है। पहला और सबसे बड़ा महल श्रीकृष्ण का महल के दक्षिण में सत्यभामा और जाम्बवती के महल है। उत्तर में रूक्मिणी और राधा के महल है। मन्दिरों के किबाड़ों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान कृष्ण  मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर  चांदी मढ़ी है। श्री कृष्ण व द्वारिकाधीश मूर्तियों का सिंगार   हीरे, मोती और सोने के गहने उनको पहनाये गए हैं। सच्ची जरी के कपड़ों से उनको सजाया गया है।द्वारिका का द्वारिकाधीश मंदिर , गुमती नदी एवं गुमती नकाडी और समुद्र मिलन संगम घाट से समुद्र दर्शन , गोमती नदी पूजन दर्शनीय स्थल है।
 गुजरात राज्य का सौराष्ट्र क्षेत्र में  देवभूमि द्वारका ज़िले में  गोमती नदी और अरब सागर संगम के तट पर ओखामण्डल प्राय द्वीप के पश्चमी किनारे पर भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका प्राचीन नगर और नगरपालिका है। हिन्दुओं के चारधाम में से एक  और सप्तपूरी में एक द्वारिका है। श्रीकृष्ण के प्राचीन राज्य द्वारका का स्थल और गुजरात की सर्वप्रथम राजधनी है ।द्वारका का निर्देशांक: 22°14′47″N 68°58′00″E / 22.24639°N 68.96667°Eनिर्देशांक: 22°14′47″N 68°58′00″E / 22.24639°N 68.96667°E पर अवस्थित सौराष्ट्र  के संस्थापक श्री कृष्ण  कर्मभूमि और सौराष्ट्र की राजधानी द्वारिका हिंदी एवं गुजराती भाषी क्षेत्र में 2011 जनगणना के अनुसार 38873 लोग निवास करते हैं ।द्वारका के दक्षिण में लम्बा ताल को 'गोमती तालाब'  होने के कारण द्वारका को गोमती द्वारका कहा जाता है।रणछोड़ जी मंदिर गोमती के दक्षिण में पांच कूपों में निष्पाप कुण्ड में नहाने के बाद यात्री पांच कुंओं के पानी से कुल्ले कर रणछोड़जी के मन्दिर की ओर जाते है। गोमती नदी के रास्तें में  छोटे मन्दिर श्री कृष्ण मंदिर , गोमती माता मंदिर , और महालक्ष्मी मन्दिर ,  रणछोड़जी का मन्दिर द्वारका मन्दिर है। भगवान कृष्ण की चार फुट ऊंची मूर्ति काले पाषाण में निर्मित  युक्त चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। मूर्ति काले पत्थर युक्त मूर्ति , सोने की ग्यारह मालाएं गले में पड़ी है। भगवान रणछोड़ के चार हाथ है। एक में शंख , एक में सुदर्शन चक्र , एक में गदा और एक में कमल का फूल , सिर पर सोने का मुकुट है। लोग भगवान की परिक्रमा करते है और फूल और तुलसी दल चढ़ाते है। चौखटों पर चांदी के पत्तर मढ़े है। मन्दिर की छत में झाड़-फानूस लटक रहे हैं। एक तरफ ऊपर की मंमें जाने के लिए सीढ़िया है। पहली मंजिल में अम्बादेवी की मूर्ति  सात मंजिलें  मन्दिर एक सौ चालीस फुट ऊंचा है। मंदिर की चोटी आसमान से बातें करती है। रणछोड़जी के दर्शन के बाद मन्दिर की परिक्रमा की जाती है। मन्दिर की दीवार दोहरी है। दो द्वारों के बीच इतनी जगह है कि आदमी समा सके। यही परिक्रमा का रास्ता है। रणछोड़जी मन्दिर के सामने लम्बा-चौड़ा १०० फुट ऊंचा जगमोहन का  पांच मंजिलें में ६० खम्बे है। रणछोड़जी के बाद इसकी परिक्रमा की जाती है। इसकी दीवारे दोहरी है। दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर - :दक्षिण की तरफ बराबर-बराबर दो मंदिर है। एक दुर्वासाजी का और दूसरा मन्दिर त्रिविक्रमजी को टीकमजी कहते है। इनका मन्दिर भी सजा-धजा है। मूर्ति बड़ी लुभावनी है। और कपड़े-गहने कीमती है। त्रिविक्रमजी के मन्दिर के बाद प्रधुम्नजी के दर्शन करते हुए यात्री इन कुशेश्वर भगवान के मन्दिर में जाते है। मन्दिर में एक बहुत बड़ा तहखाना है। इसी में शिव का लिंग है और पार्वती की मूर्ति है। कुशेश्वर मंदिर - कुशेश्वर शिव के मन्दिर के बराबर-बराबर दक्षिण की ओर छ: मन्दिर और है। इनमें अम्बाजी और देवकी माता के मन्दिर खास हैं। रणछोड़जी के मन्दिर के पास ही राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जाम्बवती के छोटे-छोटे मन्दिर है। इनके दक्षिण में भगवान का भण्डारा है और भण्डारे के दक्षिण में शारदा-मठ है। शारदा मठ चक्र तीर्थ - संगम-घाट के उत्तर में समुद्र के ऊपर चक्र तीर्थ  के पास रत्नेश्वर महादेव   मन्दिर , सिद्धनाथ महादेवजी मंदिर , बावली व  ‘ज्ञान-कुण्ड’ ,  जूनीराम बाड़ी मंदिर में  भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तिया , राम का मन्दिर ,  सौमित्री बावली यानी लक्ष्मणजी की बावजी कहते है। काली माता और आशापुरी माता की मूर्तिया  है। कैलाश कुण्ड-  कैलासकुण्ड़  का पानी गुलाबी रंग , शिव मन्दिर , द्वारका शहर का पूरब की तरफ का दरवाजा  है।  दरवाजे के बाहर जय और विजय की मूर्तिया है। जय और विजय बैकुण्ठ में भगवान के महल के चौकीदार द्वारका के दरवाजे पर खड़े उसकी देखभाल करते है। निष्पाप कुण्ड पहुंचने के बाद  के द्वारिकाधीश मन्दिर   है।  द्वारिका से बीस मील आगे कच्छ की खाड़ी में  टापू  पर बेट-द्वारका बसी है। गोमती द्वारका का तीर्थ करने के बाद यात्री बेट-द्वारका जाते है। बेट-द्वारका के दर्शन बिना द्वारका का तीर्थ पूरा नहीं होता। बेट-द्वारका पानी के रास्ते जाते है । गोपी तलाव - द्वारिका से  तेरह मील आगे गोपी-तालाब की जमीन पीली है। तालाब के अन्दर से  पीला रंग की ही मिट्टी निकलती है। गोपी तलाव की मिट्टी को गोपीचन्दन कहते है। मोर है। गोपी तालाब से तीन-मील आगे नागेश्वर शिवजी और पार्वती  मन्दिर है।  भगवान कृष्ण सात मील लंबाई पथरीली भूमि  युक्त  बेट-द्वारका के टापू पर  घरवालों के साथ सैर करने आया करते थे। 
बेट-द्वारका में भगवान कृष्ण ने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी। बेट-द्वारका के टापू का पूरब की तरफ का कोना पर हनुमानजी का मन्दिर है। ऊंचे टीले को हनुमानटीला कहते है। गोमती-द्वारका की तरह  एक बहुत बड़ी चहार दीवार का घेरे के भीतर पांच  महल है।  पहला और सबसे बड़ा महल श्रीकृष्ण का महल है। दक्षिण में सत्यभामा और जाम्बवती  महल ,  उत्तर में रूक्मिणी और राधा मंदिर है।मन्दिरों के किबाड़ों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान कृष्ण और उनकी मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर  चांदी मढ़ी है।  हीरे, मोती और सोने के गहने उनको पहनाये गए हैं। सच्ची जरी के कपड़ों से उनको सजाया गया है। चौरासी धुना - भेंट द्वारका टापू में भगवान द्वारकाधीश के मंदिर से ७ कि॰मी॰ की दूरी पर चौरासी धुना  प्राचीन एवं एतिहासिक तीर्थ स्थल है। उदासीन संप्रदाय के सुप्रसिद्ध संत और प्रख्यात इतिहास लेखक, निर्वाण थडा तीर्थ, श्री पंचयाती अखाडा बड़ा उदासीन के पीठाधीश्वर श्री महंत रघुमुनी जी के अनुसार ब्रह्माजी के चारों मानसिक पुत्रो सनक, सनंदन, सनतकुमार और सनातन ने ब्रह्माजी की श्रृष्टि-संरचना की आज्ञा को न मानकर उदासीन संप्रदाय की स्थापना की और मृत्यु-लोक में विविध स्थानों पर भ्रमण करते हुए भेंट द्वारका में आये। उनके साथ उनके अनुयायियों के रूप में अस्सी अन्य संत साथ थें|   सनतकुमार और ८० अनुयायी उदासीन संतो को जोड़कर ८४ की संख्या पूर्ण होती है। इन्ही ८४ आदि दिव्य उदासीन संतो ने  पर चौरासी धुने स्थापित कर साधना और तपस्चर्या की और ब्रह्माजी को एक एक धुने की एकलाख महिमा को बताया, तथा चौरासी धुनो के प्रति स्वरुप चौरासी लाख योनिया निर्मित करने का सांकेतिक उपदेश दिया। इस कारण से यह स्थान चौरासी धुना के नाम से जग में ख्यात है। कालांतर में उदासीन संप्रदाय के अंतिम आचार्य जगतगुरु उदासिनाचार्य श्री चन्द्र भगवान इस स्थान पर आये और पुनः सनकादिक ऋषियों के द्वारा स्थापित चौरासी धुनो को जागृत कर पुनः प्रज्वलित किया और उदासीन संप्रदाय के एक तीर्थ के रूप में महिमामंडित किया था। । भक्तों एवं संतों की निवास, भोजन आदि की व्यवस्था भी निःशुल्क रूप से चौरासी धुना उदासीन आश्रम के द्वारा की जाती है। चौरासी धुनो के दर्शन करने से मनुष्य की लाख चौरासी कट जाती है। रणछोड़ जी मंदिर -रणछोड़ जी के मन्दिर की ऊपरी मंजिलें  भगवान द्वारिकाधीश की सेज , झूलने के लिए झूला ,  खेलने के लिए चौपड़ है। दीवारों में बड़े-बड़े शीशे लगे हैं।  मन्दिरों के अपने-अलग भण्डारे है। मन्दिरों के दरवाजे सुबह  खुलते एवं बारह बजे बन्द हो जाते है। संध्या  चार बजे खुल जाते और रात के नौ बजे तक खुले रहते है। इन पांच विशेष मन्दिरों के सिवा और भी बहुत-से मन्दिर इस चहारदीवारी के अन्दर है। ये प्रद्युम्नजी, टीकमजी, पुरूषोत्तमजी, देवकी माता, माधवजी अम्बाजी और गरूड़  मन्दिर है । साक्षी-गोपाल, लक्ष्मीनारायण और गोवर्धननाथजी मन्दिर है। 
बेट-द्वारका के  तालावों में णछोड़ तालाब, रत्न-तालाब, कचौरी-तालाब और शंख-तालाब है। रणछोड तालाब सबसे बड़ा की सीढ़िया पत्थर है। तालाबों के आस-पास अनेक मन्दिर में मुरली मनोहर, नीलकण्ठ महादेव, रामचन्द्रजी और शंख-नारायण मन्दिर है।।रणछोड़ के मन्दिर से डेढ़ मील चलकर शंख-तालाब जगह भगवान कृष्ण ने शंख  राक्षस को मारा था। शंख तलाव पर शंख नारायण मन्दिर है। बेट-द्वारका से समुद्र के रास्ते जाकर बिरावल बन्दरगाह पर उतरना पड़ता है। ढाई-तीन मील दक्षिण-पूरब की तरफ चलने पर  कस्बा का नाम सोमनाथ पट्टल है। बड़ी धर्मशाला और अनेक   मन्दिर है। कस्बे से पौने तीन मील पर हिरण्य, सरस्वती और कपिला  नदियों का संगम है। सोमनाथ पत्तल संगम के समीप  भगवान कृष्ण के शरीर का अंतिम संस्कार किया गया है ।अरब सागर का शंखोधर कच्छ की खाड़ी के मुहाने  आबाद द्वीप पर बेट द्वारिका व बेयट द्वारिका भारत के ओखा शहर के तट से 2 किमी (1 मील) दूर और द्वारका शहर से 25 किमी (16 मील) उत्तर में स्थित बेट द्वारिका है। उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर, कच्छ द्वीप व शंखधर  8 किमी (5 मील) लंबा और औसतन 2 किमी (1 मील) चौड़ा है। द्वारिका जिले के बेट द्वारका निर्देशांक: 22°26′58″N 69°7′2″E  पर स्थित अरब सागर के बेट द्वारिका 11 वर्गकिमी व 4 वर्गमील क्षेत्रफल में 2011 जनगणना के कैंसर 15000 लोग निवास करते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के अंतिम चरण (1900-1300 ई.पू.) बेट द्वारका को प्राचीन शहर द्वारका का हिस्सा है। महाभारत और स्कंद पुराण ,  भारतीय महाकाव्य साहित्य में ,बेट द्वारिका शहर भगवान कृष्ण का निवास स्थान था ।  महाभारत के सभा पर्व में अंतर्द्वीप को बेट द्वारका कहा गया है। है । समुद्र के नीचे के पुरातात्विक अवशेष सिंधु घाटी सभ्यता के अंतिम हड़प्पा काल के दौरान या उसके तुरंत बाद  बस्ती  हैं। बेट द्वारिका  बस्ती को मौर्य साम्राज्य के समय समृद्ध और ओखा मंडल या कुशद्वीप क्षेत्र का हिस्सा था। द्वारका का उल्लेख सिंहादित्य के ताम्र शिलालेख (574 ई.) के अनुसार द्वारिका का राजा  वराहदास  के पुत्र और मैत्रक वंश  काल में  वल्लभी शहर के मंत्री थे । बड़ौदा राज्य के अंतर्गत बेट द्वारका अमरेली डिवीजन, 1909 , 18वीं शताब्दी के दौरान, ओखामंडल क्षेत्र के साथ-साथ बेट द्वारिका  द्वीप पर बड़ौदा के गायकवाड़ों का नियंत्रण था। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान , वाघेरों ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। 1859 में, ब्रिटिशों के साथ संयुक्त हमले के माध्यम से, गायकवाड़ और अन्य रियासतों के सैनिकों ने विद्रोहियों को खदेड़ दिया और बेट द्वारिका क्षेत्र पर पुनः कब्ज़ा कर लिया था ।1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद, 1947 ई. के बाद बेट द्वारिका क्षेत्र को सौराष्ट्र राज्य में शामिल कर लिया गया था । राज्य पुनर्गठन योजनाओं के तहत सौराष्ट्र का बॉम्बे राज्य में विलय हो गया था । बॉम्बे राज्य के विभाजन से गुजरात का निर्माण के बाद  बेट द्वारका गुजरात के जामनगर जिले के अधिकार क्षेत्र में था। जामनगर जिले से 2013 ई. में सृजित जिला  देवभूमि द्वारका जिले का हिस्सा बन गया है। बेट द्वारिका को  1980 ई. में पुरातात्विक के जांच के दौरान, लेट हड़प्पा काल के मिट्टी के बर्तनों और अन्य कलाकृतियों के अवशेष पाए गए।है। बेट द्वारिका को  1982 ई. में जांचोपरांत  1500 ई. पू . की 580 मीटर (1,900 फीट) लंबी सुरक्षा दीवार मिली थी । अरब सागर समुद्री तूफान के बाद बेट द्वारिका  क्षतिग्रस्त हो गई और डूब गई थी । बेट द्वारिका में बरामद की गई कलाकृतियों में  हड़प्पा की  मुहर,  उत्कीर्ण जार और ताम्रकार का साँचा और  तांबे का मछली पकड़ने का हुक शामिल है।  बेट द्वारिका उत्खनन  के दौरान मिले जहाज़ के अवशेष और पत्थर के लंगर रोमनों के साथ ऐतिहासिक व्यापारिक संबंध हैं । द्वीप पर द्वारिकाधीश  मंदिर 18 वीं सदी  में बनाए गए थे। द्वारकाधीश मंदिर और श्री केशवरायजी मंदिर द्वीप पर कृष्ण मंदिर , हनुमान दंडी मंदिर , वैष्णव महाप्रभु बेथक और गुरुद्वारा हैं । अभय माता मंदिर द्वीप के दक्षिण-पश्चिम कीओखा से फेरी सेवा द्वारा बेट द्वारका पहुंचा जाता है।  ओखा-बेट द्वारका सिग्नेचर ब्रिज - गुजरात का प्रथम  समुद्री पुल - ओखा और बेट द्वारका के बीच निर्माण 2016 ई.  2 किमी (1 मील) लंबे  पुल की अनुमानित लागत ₹ 400 करोड़ की लागत से सुदर्शन सेतु पुल का उद्घाटन फरवरी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। बेट द्वारिका  द्वीप बलुआ पत्थर और रेतीले समुद्र तटों से घिरा हुआ है। बेट द्वारिका का पूर्वी  पतला प्रायद्वीप को  डन्नी पॉइंट कहा जाता है। बेट द्वारका गुजरात में इकोटूरिज् कहा गया है। बेट द्वारिका में स्थित द्वारिका धीश के दर्शनार्थी जहाज से 2024 ई. के पूर्व जाते थे ।

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