बोधगया की सांस्कृतिक विरासत का परिभ्रमण
सत्येन्द्र कुमार पाठक
बोधगया, का इतिहास में फाल्गुनी वन , धर्मारण्य , उरुवेला , उरवन , बकतौर , बोधिमंदा , बोधगया के नाम से जाना जाता है । बिहार राज्य का गया जिले के बोधगया में निरंजना नदी ( फल्गु ) पर स्थित विश्व के बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्थान है। ज्ञान , अहिंसा , सत्य और शांति की भूमि गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े बोधगया का महत्वपूर्ण स्थलों का परिभ्रमण बोधगया अवस्थित बोधि ट्री स्कूल श्रीपुर के 23 व 24 नवम्बर 2024 को द्विदिवसीय आचार्यकुल सम्मेलन में शामिल होने के दौरान 23 नवम्बर2024 को विश्व हिंदी परिषद के आजीवन सदस्य साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक , नामानि गंगे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गीता सिंह , सचिव शीला शर्मा ,और स्वंर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा व लेखिका उषाकिरण श्रीवास्तव द्वारा किया गया । बोधगया की सांस्कृतिक विरासत के विभिन्न स्थलों का उल्लेख साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा किया गया । बोधगया 2600 वर्ष पहले राजकुमार सिद्धार्थ को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद बुद्ध बन गए थे। उनके ध्यान के पहले तीन दिन और ज्ञान प्राप्ति के बाद के सात सप्ताह बोधगया के विभिन्न स्थानों से जुड़े हुए हैं। इस शहर का इतिहास 500 ईसा पूर्व तक जाता है। बोधगया पर्यटन बौद्ध संस्कृति और जीवन शैली के बारे में मूल्यवान जानकारी प्राप्त करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। यह हर साल दुनिया भर से हज़ारों बौद्ध तीर्थयात्रियों को प्रार्थना, अध्ययन और ध्यान के लिए आकर्षित करता है। बोधगया क्षेत्र में फैले कई मठ और मंदिर, विदेशी बौद्ध समुदायों द्वारा अपनी मूल शैली में बनाए गए हैं । क्षेत्र को एक अलौकिक शांति प्रदान करते हैं। महाबोधि मंदिर - महाबोधि मंदिर " बोधगया बुद्ध मंदिर " और "महान जागृति मंदिर" कहा जाता है । यूनेस्को विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर स्थल है। बोधिमन्दिर का आकार 5 हेक्टेयर है और भारतीय मंदिर वास्तुकला की शास्त्रीय शैली में ईंट से बना है। मंदिर में 55 मीटर ऊंचा पिरामिडनुमा शिखर है जिसमें कई परतें, मेहराब की आकृतियाँ और बारीक नक्काशी है। महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में 10 वीं शताब्दी की भूमिस्पर्श मुद्रा या 'पृथ्वी को छूने वाली मुद्रा' में बैठे हुए बुद्ध की 2 मीटर ऊंची सोने से रंगी हुई मूर्ति है। मंदिर के ऊपरी हिस्से को 2013 में थाईलैंड के राजा और भक्तों द्वारा उपहार के रूप में सोने से ढका गया था। बोधगया पर्यटन तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थल है। महाबोधि वृक्ष - पवित्र बोधि वृक्ष की छाया में गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । महाबोधि मंदिर के बगल में खड़ा है। सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त करने के बाद, बुद्ध सात दिनों तक बिना हिले-डुले वृक्ष के नीचे बैठे रहे थे । भिक्षु और भक्त वृक्ष को कई बार प्रणाम करते हैं। यह एक शुद्धिकरण अनुष्ठान है, और कुछ भिक्षु एक बार में 100,000 तक प्रणाम करने के लिए जाने जाते हैं। बोधगया पर्यटन यात्रा पर बौद्ध पर्यटक ट्रेन आपको निरंजना नदी अत्यंत पवित्र है और इसे अंतिम संस्कार करने के लिए आदर्श स्थान माना जाता है। किंवदंती के अनुसार, एक महिला ने बुद्ध की दिव्यता पर सवाल उठाया था। उसने उन्हें एक सुनहरा कटोरा भेंट किया और उन्हें आश्वासन दिया कि यह ऊपर की ओर नहीं बहेगा। बुद्ध द्वारा नदी में भेजे गए सभी पिछले कटोरे ऊपर की ओर चले गए, जबकि आम लोगों के कटोरे नीचे की ओर चले गए। जब बुद्ध ने आखिरकार अपना कटोरा भेजा भेजने से उसने सभी संदेह को धो दिया था ।।बोधगया के मुख्य आकर्षणों में से एक अलंकृत थाई मंदिर का निर्माण 1956 में थाई मंदिर का थाईलैंड के तत्कालीन सम्राट ने बनवाया था। कोनों पर घुमावदार ढलान वाली छत और सुनहरे टाइलों से सजे इस मठ में थाई बौद्ध वास्तुकला का एक असाधारण मिश्रण देखने को मिलता है। भगवान बुद्ध की 25 मीटर ऊंची कांस्य प्रतिमा आपका ध्यान आकर्षित शांत स्थान देखने वाले के मन को शांति प्रदान करता है। महान बुद्ध प्रतिमा के समीप स्थित इंडोनेशियाई निप्पॉन जापानी मंदिर, बोधगया में सबसे लोकप्रिय 1972 ई. में निर्मित बौद्ध मंदिर भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को दुनिया भर में फैलाने के लिए बनाया गया था। यह मंदिर जापानी वास्तुकला प्रतिभा का एक नमूना है। मंदिर की दीवारों पर भगवान बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को खूबसूरती से उकेरा गया है। बुद्ध प्रतिमा - बोधगया में पर्यटकों और बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए 80 फीट ऊंची महान बुद्ध प्रतिमा लोकप्रिय स्थलों में से एक है । बौद्ध धर्म के 14 वें बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने 1989 में भारत में भगवान बुद्ध की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित की थी। ऊंची प्रतिमा में बुद्ध को खुले आसमान के नीचे कमल पर ध्यान में बैठे हुए दिखाया गया है। भगवान बुद्ध प्रतिमा जटिल नक्काशीदार बलुआ पत्थर और लाल ग्रेनाइट से बनी है। बोधगया इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहीं गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तब से बोधगया बौद्धों के लिए तीर्थ और श्रद्धा का स्थान रहा है। महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार बुद्ध अपने अनुयायियों से कहते हैं कि वे उन स्थानों की तीर्थयात्रा करके पुण्य और महान पुनर्जन्म प्राप्त कर सकते हैं, जहां उनका जन्म स्थल लुम्बिनी हुआ था, जहां उन्हें बोधगया में ज्ञान प्राप्त हुआ था । जहां उन्होंने पहली बार सारनाथ में शिक्षा दी और कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था ।.
बोधगया पर्यटन तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थल है। महाबोधि मंदिर - महाबोधि मंदिर " बोधगया बुद्ध मंदिर " और "महान जागृति मंदिर" कहा जाता है । यूनेस्को विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर स्थल है। बोधिमन्दिर का आकार 5 हेक्टेयर है और भारतीय मंदिर वास्तुकला की शास्त्रीय शैली में ईंट से बना है।"
[महाबोधि विहार - महाबोधि मन्दिर, बोध गया स्थित प्रसिद्ध बौद्ध विहार को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है।यह विहार उसी स्थान पर खड़ा है गौतम बुद्ध ने ईसा पूर्व 6 वी ई. पू. शताब्धिं में ज्ञान प्राप्त किया था। बोध विहार मुख्य विहार या महाबोधि विहार की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूप के समान है। महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में गौतम बुद्ध की मूर्त्ति पदमासन मुद्रा की मूर्ति स्थापितगौतम बुद्ध को ज्ञान बुद्धत्व (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। महाबोधि विहार मंदिर के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। बोधि विहार परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध पार्क में बौद्ध भिक्षु ध्यान साधना करते हैं। बोध विहार परिसर में उन सात स्थानों को भी चिह्नित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह व्यतीत किया था। जातक कथाओं के अनुसार बोधि वृक्ष विशाल पीपल का वृक्ष महाबोधि विहार मंदिर के पीछे स्थित है। बुद्ध को पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। बोधि वृक्ष की पांचवीं पीढी है। विहार समूह में सुबह के समय घण्टों की आवाज मन को शांति प्रदान करती है।विहार के पीछे बुद्ध की लाल बलुआ पत्थर की 7 फीट ऊंची मूर्त्ति वज्रासन मुद्रा में है। बुद्ध मूर्त्ति के चारों ओर विभिन्न रंगों के पताके लगे हुए हैं । जो इस मूर्त्ति को एक विशिष्ट आकर्षण प्रदान करतह। तीसरी शताब्दी ई.पू. में मगध सम्राट अशोक ने हीरों से बना राजसिहांसन लगवाया था और पृथ्वी का नाभि केंद्र कहा था। इ मूर्त्ति की आगे भूरे बलुए पत्थर पर बुद्ध के विशाल पदचिन्ह बने हुए हैं। बुद्ध के पदचिन्हों को धर्मचक्र प्रर्वतन का है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद दूसरा सप्ताह बोधि वृक्ष के आगे खड़ी अवस्था में बिताया था। बुद्ध की खड़ी अवस्था मे मूर्त्ति बनी हुई है। बुद्ध मूर्त्ति को 'अनिमेश लोचन' कहा जाता है। महाबोधि विहार के उत्तर पूर्व में अनिमेश लोचन चैत्य बना हुआ है। बोधिमन्दिर का उत्तरी भाग चंकामाना नाम से जाना जाता है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद तीसरा सप्ताह व्यतीत किया था। काले पत्थर का कमल का फूल बना बुद्ध का प्रतीक माना जाता है। महाबोधि विहार के उत्तर पश्चिम भाग में छतविहीन भग्नावशेषत्नाघारा के नाम से जाना जाता है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद चौथा सप्ताह व्यतीत किया था। बौद्ध धर्म ग्रंथों के अनुसार बुद्ध यहां गहन ध्यान में लीन थे कि उनके शरीर से प्रकाश की एक किरण निकली। प्रकाश की इन्हीं रंगों का उपयोग विभिन्न देशों द्वारा पताके में किया है।
बुद्ध विहार के उत्तरी दरवाजे से थोड़ी दूर पर स्थित अजपाला-निग्रोधा वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति के बाद पांचवा सप्ताह व्यतीत किया था। बुद्ध ने छठा सप्ताह महाबोधि विहार के दायीं ओर स्थित मूचालिंडा क्षील के नजदीक व्यतीत किया था। यह क्षील चारों तरफ से वृक्षों से घिरा हुआ है। क्षील के मध्य में बुद्ध की मूर्त्ति स्थापित है। बुद्ध मूर्त्ति में विशाल सांप बुद्ध की रक्षा कर रहा है। बुद्ध प्रार्थना में इतने तल्लीन थे कि उन्हें आंधी आने का ध्यान नहीं रहा। बुद्ध जब मूसलाधार बारिश में फंस गए तो सांपों का राजा मूचालिंडा ने निवास से बाहर आया और बुद्ध की रक्षा की थी । बोध विहार परिसर के दक्षिण-पूर्व में राजयातना वृक्ष है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना सांतवा सप्ताह इसी वृक्ष के नीचे व्यतीत किया था। बुद्ध दो बर्मी (बर्मा का निवासी) व्यापारियों से मिले थे। व्यापारियों ने बुद्ध से आश्रय की प्रार्थना की। प्रार्थना के रूप में "बुद्धं शरणं गच्छामि" (मैं बुद्ध को शरण जाता हूँ) का उच्चारण किया। था। महाबोधि विहार के पश्चिम में पांच मिनट की पैदल दूरी परतिब्बती मठ स्थित है। तिब्बती मठ बोधगया का सबसे बड़ा और पुराना मठ को 1934 ई. में बनाया गया था। विहार (गया-बोधगया रोड पर निरंजना नदी के तट पर स्थित) 1936 ई. में बना था। विहार में दो प्रार्थना कक्ष है। बुद्ध की विशाल प्रतिमा सटा हुआ थाई मठ के छत की सोने से कलई की गई गोल्डेन मठ कहा जाता है। थाई मठ की स्थापना थाईलैंड के राजपरिवार ने बौद्ध की स्थापना के 2500 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में किया था। इंडोसन-निप्पन-जापानी मंदिर (महाबोधि मंदिर परिसर से 11.5 किलोमीटर दक्षिण-पश्िचम में स्थित) का निर्माण 1972-73 में हुआ था। इस विहार का निर्माण लकड़ी के बने प्राचीन जापानी विहारों के आधार पर किया गया है। विहार में बुद्ध के जीवन में घटी महत्वपूर्ण घटनाओं को चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है। चीनी विहार का निर्माण 1945 ई. में हुआ था। इस विहार में सोने की बनी बुद्ध प्रतिमा स्थापित है। विहार का पुनर्निर्माण 1997 ई. किया गया था। जापानी विहार के उत्तर में भूटानी मठ स्थित है। मठ की दीवारों पर नक्काशी का बेहतरीन काम किया गया है। विहार वियतनामी विहार है। विहार महाबोधि विहार के उत्तर में 5 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है। विहार का निर्माण 2002 ई. में किया गया है। विहार में बुद्ध के शांति के अवतार अवलोकितेश्वर की मूर्त्ति स्थापित है। मठों और विहारों के अलावा के कुछ और स्मारक भारत की सबसे ऊंचीं बुद्ध मूर्त्ति जो कि 6 फीट ऊंचे कमल के फूल पर स्थापित है। पूरी प्रतिमा एक 10 फीट ऊंचे आधार पर बनी हुई है।
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