जनवरी : समय की दहलीज, जानूस की दृष्टि और नए आरंभ का दर्शन
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जनवरी : समय की दहलीज, जानूस की दृष्टि और नए आरंभ का दिवस जनवरी केवल कैलेंडर का पहला महीना नहीं, बल्कि अतीत और भविष्य के बीच खड़ी मानव चेतना की दहलीज है। जानूस के दो चेहरों की तरह यह महीना हमें सीख देता है कि अनुभव और उम्मीद के संतुलन से ही सार्थक जीवन संभव है। जनवरी क्यों है नए साल की शुरुआत का प्रतीक , जानूस से गणेश तक: आरंभ और विवेक की सांस्कृतिक विरासत , इतिहास, विज्ञान और दर्शन में जनवरी का महत्व अतीत और भविष्य के बीच खड़ा महीना: जनवरी है।
हर साल जब 31 दिसंबर की आधी रात को घड़ी की सुइयाँ एक साथ मिलती हैं, तो पूरी दुनिया एक अजीब से उत्साह और आत्मचिंतन से भर जाती है। हम आतिशबाज़ियों के शोर में पुराने साल को विदा करते हैं और एक नई डायरी के कोरे पन्नों की तरह नए साल का स्वागत करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि साल की शुरुआत ‘जनवरी’ से ही क्यों होती है? क्यों इस महीने का नाम किसी राजा या योद्धा के नाम पर न होकर एक ‘दो चेहरों वाले देवता’ के नाम पर पड़ा? जनवरी केवल 31 दिनों का एक कालखंड नहीं है; यह इतिहास, संस्कृति, विज्ञान और दर्शन का वह चौराहा है, जहाँ अतीत भविष्य से हाथ मिलाता है।
जानूस: वह देवता जो समय की संधि पर खड़ा है – जनवरी शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द Ianuarius से हुई है, जो रोमन देवता ‘जानूस’ को समर्पित है। रोमन पौराणिक कथाओं में जानूस का स्थान अद्वितीय है। वे जुपिटर की तरह बिजली नहीं कड़काते थे, न ही मार्स की तरह युद्ध के मैदान में उतरते थे, लेकिन वे इन सबसे महत्वपूर्ण थे। वे ‘शुरुआत, द्वारों, रास्तों और बदलाव’ के देवता थे। जानूस की सबसे बड़ी विशेषता उनके दो चेहरे हैं। एक चेहरा पीछे की ओर यानी ‘अतीत’ को देखता है और दूसरा आगे की ओर यानी ‘भविष्य’ को।
यह प्रतीकात्मकता मनुष्य के जीवन दर्शन को दर्शाती है। 1 जनवरी को जब हम खड़े होते हैं, तो हम अनजाने में ही जानूस की भूमिका में होते हैं—हम पीछे मुड़कर अपनी गलतियों और उपलब्धियों को देखते हैं और सामने की ओर अपनी उम्मीदों और संकल्पों को। प्राचीन रोम में माना जाता था कि बिना जानूस की अनुमति के स्वर्ग का द्वार भी नहीं खुलता, इसीलिए हर पूजा और शुभ कार्य में उनका आह्वान सबसे पहले किया जाता था।
कैलेंडर का संघर्ष – इतिहास की गलियों में झाँकें तो पता चलता है कि जनवरी हमेशा से साल का पहला महीना नहीं था। प्राचीन रोमन कैलेंडर केवल 10 महीनों का होता था और साल की शुरुआत मार्च से होती थी। यही कारण है कि आज भी ‘सितंबर’, ‘अक्टूबर’, ‘नवंबर’ और ‘दिसंबर’ के नाम उनकी पुरानी स्थिति को दर्शाते हैं। लगभग 713 ईसा पूर्व में राजा नुमा पोंपिलियस ने जनवरी और फरवरी के महीनों को जोड़ा और जानूस को सम्मान देने के लिए जनवरी को साल का पहला महीना घोषित किया। 1582 में ग्रेगोरियन कैलेंडर के बाद 1 जनवरी को वैश्विक मान्यता मिली। भारत में जनवरी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है। 26 जनवरी—संविधान लागू हुआ। , 12 जनवरी—स्वामी विवेकानंद जयंती (राष्ट्रीय युवा दिवस)। , 10 जनवरी—विश्व हिंदी दिवस।, मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी और बिहू—सांस्कृतिक विविधता के प्रतीक है।
जानूस और गणेश: दो संस्कृतियों का एक सत्य – विद्वानों ने जानूस और भगवान श्री गणेश के बीच अद्भुत समानताएँ देखी हैं। प्रथम पूज्य, द्वारपाल और विवेक—दोनों ही आरंभ और सही निर्णय के प्रतीक हैं। जनवरी: आविष्कारों और चेतना का महीना – 1 जनवरी 1885—समय का मानकीकरण। ,4 जनवरी—लुई ब्रेल का जन्म। 9 जनवरी 2007—पहला iPhone है।
आज जनुसीयन थिंकिंग ‘’ मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण सिद्धांत है—एक साथ दो विपरीत विचारों को साधने की क्षमता। प्रबंधन की भाषा में इसे अम्बिडेक्सटेंटी कहा जाता है।
दहलीज पर खड़ा इंसान – जनवरी हमें सिखाती है कि आगे बढ़ने के लिए पीछे देखना कमजोरी नहीं, बुद्धिमानी है। शब्द बदल गए हैं—शहद की जगह ‘हैप्पी न्यू ईयर’—लेकिन भावना वही है। तो आइए, इस जनवरी हम भी जानूस की तरह बनें। बीते वर्ष की कड़वाहट को अनुभव की मिठास में बदलें और आने वाले समय के द्वार पर आत्मविश्वास के साथ दस्तक दें। क्योंकि हर जनवरी एक वादा है—कि समय का द्वार हमेशा नई रोशनी की ओर खुलता है।
जनवरी केवल कैलेंडर का पहला महीना नहीं, बल्कि अतीत और भविष्य के बीच खड़ी मानव चेतना की दहलीज है। जानूस के दो चेहरों की तरह यह महीना हमें सीख देता है कि अनुभव और उम्मीद के संतुलन से ही सार्थक जीवन संभव है।
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