मंगलवार, दिसंबर 30, 2025

दिसम्बर : स्मृतियों का शाश्वत झरोखा

दिसंबर: स्मृतियों का कोलाज और इतिहास का शाश्वत झरोखा
सत्येन्द्र कुमार पाठक
दिसंबर केवल कैलेंडर का अंतिम पन्ना नहीं है, बल्कि यह स्मृतियों, संघर्षों, वैज्ञानिक बदलावों और उत्सवों का एक ऐसा अनूठा संगम है, जो हमें अतीत की जड़ों से जोड़कर भविष्य की ओर ले जाता है। जब हम दिसंबर की गुनगुनी धूप का आनंद लेते हैं, तब शायद ही हम यह सोचते हैं कि जिस महीने को हम '12वां' कह रहे हैं, उसका नाम चीख-चीखकर खुद को 'दसवां' बता रहा है। यह अंत भी है और शुरुआत भी; यह शोक भी है और उत्सव भी।
दिसंबर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द 'देसम' (Decem) से हुई है, जिसका अर्थ होता है 'दस'। आज यह* सुनकर अजीब लग सकता है, लेकिन प्राचीन रोमन काल में यह वास्तव में साल का दसवां महीना ही था।
रोम के संस्थापक राजा रोमुलस द्वारा लगभग 750 ईसा पूर्व में बनाए गए पहले कैलेंडर में केवल 10 महीने होते थे। साल की शुरुआत 'मार्च' से होती थी। उस समय कैलेंडर केवल 304 दिनों का होता था। शेष 61 दिन, जो कड़ाके की ठंड के होते थे, उन्हें किसी महीने का दर्जा नहीं दिया गया था क्योंकि उस दौरान न तो युद्ध होते थे और न ही खेती। बाद में जब कैलेंडर में सुधार हुआ और जनवरी व फरवरी को जोड़ा गया, तो दिसंबर खिसककर 12वें स्थान पर आ गया, लेकिन इसका नाम 'दसवां' ही बना रहा। रोमुलस की कहानी स्वयं में एक रोमांचक फिल्म जैसी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रोमुलस और उनके भाई रेमुस को बचपन में तिबर नदी में बहा दिया गया था, जहाँ एक मादा भेड़िये (Lupa) ने उन्हें अपना दूध पिलाकर बचाया। आगे चलकर रोमुलस ने 21 अप्रैल, 753 ईसा पूर्व को 'रोम' की नींव रखी। उनके शासन का अंत भी रहस्यमयी था; माना जाता है कि वे एक तूफान के दौरान गायब हो गए और उन्हें देवता 'क्विर्नस' के रूप में पूजा जाने लगा।
भारत के लिए दिसंबर का महीना बदलाव और बलिदान की कहानियों से भरा रहा है। भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम की कई बड़ी घटनाओं ने इसी महीने में आकार लिया: राजधानी का स्थानांतरण12 दिसंबर 1911  को दिल्ली दरबार में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाने की घोषणा की। क्रांतिकारियों का सर्वोच्च बलिदान: 17 से 19 दिसंबर 1927  के बीच राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और रोशन सिंह को फाँसी दी गई। उनके बलिदान ने आजादी की अलख को और प्रचंड कर दिया।भोपाल गैस त्रासदी: 2 और 3 दिसंबर 1984 की वह काली रात, जब 'मिथाइल आइसोसाइनेट' गैस ने हजारों जिंदगियाँ निगल लीं। यह दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना थी।  13 दिसंबर 2001 को आतंकियों ने भारतीय लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया, जिसे हमारे जांबाज सुरक्षा बलों ने विफल कर दिया। 26 दिसंबर 2004 को आई विनाशकारी सुनामी ने दक्षिण भारत सहित कई देशों में तबाही मचाई, जो प्रकृति के विकराल रूप की याद दिलाती है।
वैश्विक स्तर पर भी दिसंबर ने दुनिया का नक्शा और मानवीय सोच को नई दिशा दी है। 16 दिसंबर 1773 की 'बोस्टन टी पार्टी' ने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी सुलगाई। वहीं, 1914 के प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 'क्रिसमस ट्रूस' ने इतिहास रचा, जब सैनिकों ने स्वतः स्फूर्त तरीके से युद्ध रोककर 'नो मैन्स लैंड' पर साथ मिलकर फुटबॉल खेला।
विज्ञान और शांति के क्षेत्र में 1 दिसंबर 1959 को 'अंटार्कटिका संधि' पर हस्ताक्षर हुए, जिसने इस बर्फीले महाद्वीप को केवल शांति के लिए सुरक्षित कर दिया। कला जगत के लिए 8 दिसंबर 1980 का दिन दुखद था, जब शांति के पैरोकार जॉन लेनन की हत्या ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। दिसंबर केवल गंभीर घटनाओं का ही नहीं, बल्कि उल्लास का भी महीना है। 1 दिसंबर को 'विश्व एड्स दिवस' और 4 दिसंबर को 'भारतीय नौसेना दिवस' जैसे महत्वपूर्ण दिन आते हैं।
प्राचीन रोम में इस समय 'सैटर्नालिया' उत्सव मनाया जाता था। 25 दिसंबर को 'सोल इन्विक्टस' (अपराजित सूर्य) का जन्मदिन मनाया जाता था, जिसे बाद में ईसाई धर्म ने ईसा मसीह के जन्म (क्रिसमस) के रूप में अपनाया। शीतकालीन संक्रांति के साथ शुरू होने वाला यह समय हमें सिखाता है कि सबसे लंबी रात के बाद उजाला अवश्य मिलता है।
31 दिसंबर: काल के संगम पर एक विशेष उत्सव - 31 दिसंबर का दिन कैलेंडर की अंतिम तिथि मात्र नहीं है, बल्कि वह संधिकाल है जहाँ अनुभव और आशाएं हाथ मिलाती हैं। साल 1600 में इसी दिन महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 'ईस्ट इंडिया कंपनी' को व्यापारिक एकाधिकार दिया था। लेकिन इसी तारीख को 1929 में लाहौर में रावी नदी के तट पर पंडित नेहरू ने 'पूर्ण स्वराज' की घोषणा कर ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी। : यूरोप में यह दिन 'सेंट सिल्वेस्टर' के पर्व के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथा है कि पोप सिल्वेस्टर ने रोम को एक जहरीले ड्रैगन से  मुक्त कराया था। आध्यात्मिक रूप से यह दिन 'कृतज्ञता' का है। वेटिकन में 'ते ड्यूम' (Te Deum) स्तुति गान द्वारा बीते वर्ष के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया जाता है। भारत के संदर्भ में, वर्ष 2025 में 31 दिसंबर को 'पुत्रदा एकादशी' का पावन संयोग है, जो समृद्धि और सुख की कामना का दिन है।
इटली लोग रात 12 बजे मसूर की दाल खाते हैं, जो धन और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है इटली में लोग खिड़की से पुराने बर्तन फेंकते थे, जो पुराने साल के दुखों को बाहर निकालने का प्रतीक था। दिसंबर हमें सिखाता है कि समय का पहिया निरंतर घूमता रहता है। रोमुलस के 10 महीनों वाले कैलेंडर से लेकर आज के डिजिटल युग तक, दिसंबर ने मानव सभ्यता के उत्थान और पतन दोनों को देखा है। यह महीना हमें याद दिलाता है कि भले ही बाहर कड़ाके की ठंड हो, लेकिन इतिहास की गर्म यादें और बलिदानों की गाथाएं हमारे भीतर की ऊर्जा को बनाए रखती हैं। 31 दिसंबर की रात को जब घड़ी की सुइयां 12 पर मिलती हैं, तो वह केवल एक दिन का अंत नहीं, बल्कि एक नए अध्याय की शुरुआत होती है। यह अतीत की गलतियों से सीखने, वर्तमान के लिए आभार व्यक्त करने और एक बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ाने का सुनहरा अवसर है।

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