रविवार, मई 31, 2020

पराशक्ति रूपौ की चामुंडा...

           भारतीय संस्कृति के वांग्मय पौराणिक ग्रंथों में पराशक्ति की उल्लेख मिलता है। शक्ति से ब्रह्माण्ड की रचना, पालन और संहार होती रही है। इन्हीं शक्ति को नव दुर्गा तथा दशमहाविद्या कहा गया है। मााधीय और बिहारी संस्कृति में सौर धर्म में भगवान् सूर्य और शाक्त धर्म में नव दुर्गा, पराशक्ति महाविद्या को मन्वन्तर काल से मानव ने अंगीकार किया है। बाद में कई धर्म का उदय विभिन्न मनवन्तर में यथा शैव धर्म में भगवान् शिव , वैष्णव धर्म में भगवान् विष्णु के विभिन्न रूपों में की जाती है। संबत्सर काल में बौद्ध धर्म में भगवान् बुद्ध , जैन धर्म में भगवान् महावीर  को अनुयाई अपने आराध्य देव मानते हुए उपासना करते है। मागधीय संस्कृति और सभ्यता में बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में शक्ति का प्रादूर्भाव एवं रहस्य प्राचीन काल से है। गया का भष्म गिरि पर्वत की श्रंखला पर माता सती का स्तन की उपासना पालन कर्ता के लिए की जाती है । तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्ति पीठ, देवी पुराण में 51 शक्ति पीठ, देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठ एवं अन्य ग्रंथों में शक्ति पीठों की संख्या विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाती है। सभी शक्ति पीठ की उपासना के लिए जाग्रत पीठ धाम विख्यात और जनसामान्य में अगाध श्रद्धा और विश्वास है। नवादा जिले के क्षेत्रों में पुरातन काल में दैत्य संस्कृति और दानव संस्कृति का साम्राज्य कायम था। दैत्य राज शुंभ का कुशासन से जन मानस अक्रांत हो गया था। दैत्य राज शुंभ और निशुंभ के कारण कीकट प्रदेश अशांत हो गया था।बिहार के क्षेत्रों में शक्ति उपासना की परंपरा जनमानस में समाहित है। भगवती चामुंडा, चंडी, जगदंबा आदि रूपों में देवी उपासना प्रचलित है। शक्ति उपासना में यंत्र, मंत्र, तंत्र , जादू और टोना का प्रमुख स्थल चामुंडा माता का स्थान सर्वोपरि रही है।रूपौ में के वायु कोण में माता सती का मस्तक भरण के स्थान में चामुंडा शक्तियुक्त स्थापित है। चामुंडा स्थान में बड़ा कूप, वृक्ष एवं भीष्म पहाड़ी श्मशान भूमि और लाल नदी प्रवाहित है। पुरातन काल में काम्यक वन के रूप में ख्याति प्राप्त थी। रोह, कौआ कोल , गोविंदपुर, आदि स्थान के पहाड़ियों में निर्मित गुफा में कोहवर कहा गया है। यह कोहवर में राजा रानी , पुष्पों , मोर, का चित्र बना कर मनोरंजन अटखेलियां खेलते थे। आज यह परंपरा बिहार में वर और कन्या के लिए कोहवर प्रसिद्ध है जहां पर महिलाएं अपनी कलाकारी दर्शाती है। पेंटिंग प्रथा का उदगम स्थल कोहवर है। मगध साम्राज्य में कोहवर गीत श्रद्धा और विश्वास के साथ गुनगुनाते हैं। चामुंडा देवी मंदिर नवादा जिले का कौआकोल और रो के मध्य में रूपौ की चामुडा माता की उपासना स्थल में प्राचीन चार गढ़ है वहीं विभिन्न राजाओं द्वारा मातृ देवी भव: का रूप दिया है। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा दुर्गा सप्तशती की रचना कर माता की उपासना की परंपरा कायम की। ॐ एँ हृंग क्लीं चामुण्डायै वीचै : की मंत्र दिया है। नवादा के विद्वानों ने चामुण्डा स्थान, चामुण्डा शक्ति पीठ पुस्तक में महत्वपूर्ण चर्चा की है। यहां के लगभग एक लाख ई. पू. विकसित होने वाली आरंभिक प्रस्तर युग के अवशेष तथा मानव जीवन की सभ्यता का रूप दिया है। चित्र कला, मूर्ति कला, संस्कृति की पहचान बनी है।
पुराणों, वेदों तथा इतिहास के पन्नों में मागधीय क्षेत्रों में सौर, देव , शाक्त, यक्ष संस्कृति के साथ दैत्य, दानव, राक्षस संस्कृति फैली हुई थी। ये सभी संस्कृति कश्यप ऋषि के पुत्रों द्वारा स्थापित किए थे। दैत्य संस्कृति और दानव संस्कृति नवादा जिले के विभिन्न क्षेत्रों के पर्वतीय क्षेत्रों में फैला था और देव संस्कृति के साथ मतभेद और मनभेद निरंतर चलता था। दैत्य संस्कृति के रक्षक दैत्य राज शुंभ और निशुंभ ने अपनी राजाधानी 1832 फीट की ऊंचाई वाला महावर पर्वत समूह में निर्मित गुफा एवं तलहटी रोह में स्थापित किया। प्राचीन काल में दैत्य राज शुंभ ने रूह स्थल का निर्माण और महावर पर्वत की एक 1000 फीट ऊंचाई युक्त श्रीखाला को शुंभ पर्वत पर निवास बनाया था। आधुनिक नाम रूह स्थल को रोह और शुंभ पर्वत को सोंगा पहाड़ी, सोंग पहाड़ के नाम से ख्याति प्राप्त है। सौंदर्य और प्रकृति का समन्वय स्थल को रूपुआ, रूप , रापाऊ, रूपौ नाम से ख्याति मिली।शुंभ पर्वत से लाली नदी सिहना , सिंघाना के मैदानी क्षेत्रों में समाप्त हुई थी। दैत्य राज शुंभ के अत्याचार एवं घमंड को समाप्त करने के लिए  मां चामुंडा प्रगट होकर दैत्यों को संहार करने के पश्चात् शुभ को बध कर जनता में खुशियां लाई। शुंभ और निशुंभ का बध किया गया था वह स्थल स्माशान तथा रुधिर रूप प्रवाहित लाल नदी हो गई थी। नवादा जिले के रोह प्रखंड का भीखनपुर पंचायत में 05 बीघे भूमि पर माता चामुंडा का पाषाण पिंड, भगवान् शिव का शिवलिंग, माता पार्वती एवम् भगवान् सूर्य की मूर्ति प्राचीन काल से रूपौ  में स्थापित है। यहां चामुंडा मंदिर का निर्माण किया गया है और प्रत्येक वर्ष के चैत्र और आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तिथि तक नवरात्र और चामुंडा माता की उपासना करते है ऐसे श्रद्धालु प्रत्येक मंगलवार को विशेष पूजा अर्चना करते है। रूपौ  की माता चामुंडा नवादा जिले की शक्ति पीठ के रूप म पुरातन कालों से मनाते आ रहे है।

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