भारतीय संस्कृति और सभ्यता का उद्भव आद्या शक्ति के प्रदुर्भाव से हुआ है। आद्या शक्ति से विश्व में विभिन्न रूपों में अवतरित हो कर मानव कल्याण होती रही है। वेदों, पुराणों, उपनिषदों में सृष्टि के बाद मानवीय सृष्टि का विस्तार करने के लिए प्रजापति ब्रह्मा जी ने अपने दक्षिण भाग से स्वायंभुव मनु और बामभग से शतरूपा को उत्पन्न किया । स्वायंभुव मनु और शतरूपा से दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों की उत्पति हुई थी। पितामह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष के साथ स्वायंभुव मनु की कनिष्ठ पुत्री प्रसूति का विवाह संपन्न हुई थी। राजा दक्ष द्वारा आद्याशक्ति की की घोर तपस्या करने के बाद प्रसूति के गर्भ से माता शिवा का अवतरण हुआ। राजा दक्ष ने माता शिवा को माता सती नामकरण किया। माता सती का विवाह भगवान् शिव के साथ संपन्न हुआ ।
माता सती - राजा दक्ष की भार्या प्रसूति गर्भ से प्रकृति स्वरूपिणी सती का अवतरण हुई। माता सती के जन्म के बाद पिता दक्ष और माता प्रसूति आनंदित और उनकी तपस्या के पुण्य फल प्रदान करने के कारण दक्ष ने सती नाम कारण किया। माता सती का शरत कालीन रूप देखकर दक्ष ने उनका विवाह के लिए स्वयंवर का का आयोजन किया। सती ने स्वयंवर में भगवान् शिव के गले में ॐ नाम: शिवाय कह कर वरमाला डाल दी। प्रजापति ब्रह्मा जी के कथनानुसार राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती का भगवान् शिव के साथ पाणिग्रहण की । भगवान् शिव ने माता सती के पाणिग्रहण के बाद उन्हें लेकर कैलाश चले गए। माता सती के चले जाने के बाद राजा दक्ष का ज्ञान चक्षु लुप्त होने के पश्चात् वे शिव और सती से द्वेष करने लगे। शिव से द्वेष वश महान् यज्ञ का आयोजन में सभी देवों, ऋषियों , ब्रह्मा जी, विष्णु जी को आमंत्रित किया परन्तु शिव और सती को नहीं आमंत्रित किया और बुलाया। यज्ञ की सूचना मिलने और आमंत्रण नहीं मिलने तथा अपमान की ज्वाला में शामिल माता सती द्वारा यक्ष के यज्ञ में अपनी आहुति दे कर यज्ञ को समाप्त कर दी। माता सती के यज्ञ अग्नि में भष्मिभूत होने की जानकारी भगवान् शिव को मिलने के बाद माता सती के शरीर को अपने कंधे पर धारण कर उन्मत नृत्य करने लगे , जिससे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रलय होने लगी थी। भगवान् विष्णु के सुदर्शन चक्र द्वारा माता सती क शरीर कोे टुकड़े कर भगवान् शिव की प्रार्थना की। माता सती के शरीर का अंग जहां जहां गिरे वहां वहां माता सती का विभन्न रूप में शक्ति और भगवान् शिव का विभिन्न रूप में भैरव विराजमान है। तंत्र चूड़ामणि में 52, शक्ति पीठ, देविगीता में 72 शक्तिपीठ, देवी भागवत में 108 शक्तिपीठ और देवी पुराण महाभागवत में 51 शक्तिपीठ बताई गई है। परन्तु देवी भक्तों में 51 शक्तिपीठों की विशेष महत्व है। शक्तिपीठ का विवरण
बिहार में शक्ति और देवी पूजन की परंपरा लोक जीवन में समाहित है। सहरसा जिले के सहसा स्टेशन के समीप माता सती की नेत्र पतन के कारण उग्रतारा के नाम से ख्याति है ,समस्तीपुर जिले के सलौना स्टेशन से 9 किलोमीटर दूर जयमंगला देवी मंदिर में माता सती का बाम स्कंध गिरा था जिसे शक्ति उमा या महादेवी और भैरव के रूप में महोदर विराजमान है। गया जिले के गया में माता सती का स्तन गिरने के कारण मंगलागौरी के नाम से ख्याति है। पटना जिले के पटना सिटी से 05 किलोमीटर पश्चिम माता सती का दक्षिण जंघा का पतन होने के कारण शक्ति के रूप में सर्वानंद करी और भैरव के रूप में ब्योमकेश है। यह स्थान बड़ी पटन देवी या पटनेश्वरी देवी के नाम से विख्यात है। बिहार में शाक्त धर्म ने विभिन्न नामों से शक्ति उपासना स्थल का रूप दिया है। अरवल जिले के करपी में जगदंबा स्थान में माता जगदम्बा, जहानाबाद जिले के बराबर पर्वत श्रृखंला सूर्यांक गिरि पर माता सिद्धेश्वरी तथा माता बागेश्वरी, गया जिले के बेला स्टेशन के समीप माता विभुक्षणी , गया में माता बांग्ला मूखी, बागेश्वरी , मुंडेश्वरी ,मुजफ्फरपुर जिले के कटरा बागमती नदी के किनारे माता कट्रेश्चरी , मुजफ्फरपुर में काली मंदिर, कैमूर, नालंदा , नवादा, बेतिया आदि जगहों पर माता की मूर्तियों की स्थापना कर तंत्र मंत्र, जादू, टोना की सिद्धि एवं शक्ति का स्थल बनाया गया था। शाक्त धर्म द्वारा शक्ति की उपासना के लिए देवी पिंडी का रूप दिया है जिसे प्रत्येक जगह देवी उपासक देवी मंडप में माता की पिंडी स्थापित कर उपासना और आराधना करते है।नालंदा जिले के मगरा में माता सती का कंगण गिरने से शीतला माता नवादा जिले के रूपों में माता सती का सिर गिरने पर चामुंडा माता, छपरा ( सारण ) जिले के आमि में माता सती का जन्म और यज्ञ में अपनी आहुति देने पर माता सती का भस्म स्थल पर अंबिका भवानी, सासाराम जिले के कैमूर पहाड़ी की गुफा में माता तरा चंडी, मुंगेर जिले के गंगा नदी के तट पर माता सती की दाईं आखें गिरने पर चंडिका देवी, सहरसा जिले के महिसी में माता सती की बाईं आखें गिरने पर उग्रतरा और पूर्णियां जिले के बनमखी प्रखंड का धिमेश्चर में माता सती का ह्रदय गिरने पर छिनमस्तिका , धिमेश्चरी के रूप में स्थापित है। जन श्रुति के अनुसार बिहार में 10 शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। गया के भस्म कुट पर्वत श्रंखला पर माता सती का स्तन गिरने पर पालन करता के रूप में माता मंगला के रूप में विराजमान है। इन्हें मां मंगला गौरी के नाम से विख्यात है। यहां ऋषि मार्क्डेय द्वारा स्थापित मारकंडेश्वर स्थापित है। भोजपुर जिले के आरा में माता अरण्य देवी , बड़हरा प्रखंड के बखोरापुर की मां काली, रोहतास जिले के नटवार प्रखंड का भलुनी की यक्षणी भवानी एवं जहानाबाद जिले के चरूई स्थित काली मां की मूर्ति प्राचीन है। बिहार में शाक्त धर्म द्वारा शक्ति की उपासना स्थल कर माता की आराधना और तंत्र, मंत्र ,जादू , टोना का का रूप दिया गया। अरवल जिले का करपी में सती स्थान और कुरथा प्रखंड के लारी का सती स्थान प्रसिद्ध है। शाक्तवाद में देवी को सर्वश्रेष्ठ शक्ति तथा तंत्र मंत्र जादू टोना की परंपराओं के लिए मान्य है।
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