गुरुवार, मई 19, 2022

लोक सांस्कृतिक चेतना का समन्वय लोक संगीत ...


        लोक मानस की अभिव्यक्ति लोक गीत , संगीत वादन और नृत्य है । मानव में बुद्धि विकास के साथ भावनाओं को लयात्मक तरीके से अभिव्यक्त है । जर्मनी के प्रसिद्ध लोक साहित्य विल्यप्रिय ने लोकगीत के विषय में सामूहिक उत्पत्ति का सिद्धान्त प्रतिपादित करते हुए लोकगीत का निर्माण सामूहिक रीति से हुआ है । रूसी लोक साहित्य सोकोलोव ने सामूहिक उत्पत्ति सिद्धान्त में  लोकगीत का सृजन बीज रूप में सर्वप्रथम व्यक्ति द्वारा हुआ  है । लोकगीत मौखिक परम्परा में जीवित रखने के लिए गीत का सृजन करते समय  लेखनी से अधिक कण्ठ तथा निष्ठा का प्रयोग करते हैं , फलस्वरूप मौखिक प्रक्रिया से हो गीत लोकप्रिय होने के बाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता रहता है । भारत की समप्र बोलियों एवं उपबोलियों में प्रचलित गीतों के अध्ययन के पश्चात् लोकगीतों के सजन में व्यक्ति विशेष अधिक सक्रिय रहा है । लोकगीतों का वर्गीकरण में लोकगीत , प्रकृति ,पारिवारिक  ,धार्मिक  , विविध विषयक लोकगीत है।. प्रकृति  लोकगीतों के अन्तर्गत प्राकृतिक ऋतु आधारित गीत में नायिका – नायक से ‘ जीरा ‘ फसल उपज में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन करते हुए ‘ जीरे ‘ की फसल नहीं बोने का आग्रह करती है । पारिवारिक लोकगीत में नायिका  नायक को दूसरे प्रदेश से अपने घर आने का आग्रह कर रही है ।  पारिवारिक लोक गीत माण्ड गायन शैली है।  विश्वभर में मांड गायन शैली  राजस्थान की पहचान है । धार्मिक  लोकगीतों के अन्तर्गत  इष्ट देव को रिझाने या प्रार्थना व पूजा करने के समय गीत गाए जाते हैं ।  राजस्थान के  लोक देवता को रिझाने हेतु पोखरण के पास रूणेचा गाँव में जाते  है । बिहार के छठ गीत , सूर्य गीत , देवी गीत , कोहबर , चौहट , विवाह गीत , पराती गीत  मगही , मैथिली , भोजपुरी , अंगिका , वज्जिका भाषाओं में अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गाती है । विविध  लोकगीत में पशु , पक्षियों ,  जीव , जंतुओं , वस्त्रों व आभूषणों पर आधारित गीत गाए जाते हैं  । विभिन्न प्रकारों के लोकगीत के माध्यम से जन – साधारण भावों की अभिव्यक्ति कर अपना मनोरंजन करता है ।लोकगीत में स्वतन्त्र रूप से ताल की संगत के साथ प्रस्तुत करने पर  प्रभावशाली होता है । लोक धुन में लोकगीत लयबद्ध एक ही धुन में गाए जाने में प्रायः सरलता मिलती है ।लोकगीत लोक भाषा में अति विलम्बित लय ,  धुनों में सात शुद्ध स्वरों कोमल , गन्धार व कोमल निषाद का विशेष प्रयोग होता है । लोकगीतों में अधिकतर सप्तक के पूर्वांग के स्वरों का प्रयोग मिलता है ।लोक धुनें स्वर की अपेक्षा लय प्रधान के साथ  ध्येय मनोरंजन प्रदान करना है । लोकगीत  देश की प्राचीन संस्कृति , सभ्यता और विचारों से अवगत कराते हैं । लोकगीतों के माध्यम से  देश , समाज के भिन्न – भिन्न रीति – रिवाजों , रहन – सहन , तीज – त्यौहारों आदि की पहचन के माध्यम से जीवन में सुधार  कर सकते हैं । लोकगीतों से प्राचीन इतिहास , घटनाओं , प्रवृत्तियों और तत्कालीन मनोभावों की पहचान कर  लोकगीतों के संग्रह से गाँवों को शहरों के निकट लाने में सफल होते हैं । लोक गीतों के संग्रह से  कण्ठस्थ साहित्य लिपिबद्ध होकर सुरक्षित रखने से महिलाओं – पुरुषों के मस्तिष्क की महिमा दृष्टिगोचर होती है । लोकगीतों द्वारा  देश और समाज के भिन्न – भिन्न रीति – रिवाजों , रहन – सहन , तीज – त्यौहारों आदि का परिचय  प्रप्ति के साथ  प्राचीन , इतिहास , घटनाओं , धार्मिक प्रवृत्तियों और तत्कालीन मनोभावों का भी परिचय के साथ ही साथ भाई – बहनों के पवित्र स्नेह बन्धन , माता – पिता के लाड़ – प्यार , पति – पत्नी के पुनीत सम्बन्ध , परिवारों के मेल – मिलाप , गृहस्थ जीवन की समस्याओं आदि की जानकारी होती है । वृक्ष की जड़ें की तरह लोक गीत , वाद्य एवं नाट्य  अतीत काल में गढ़ी हुई   स्वयं अविराम गति से नई टहनियाँ ,  पत्तियाँ ,  फल और नए – नए पक्षी उत्पन्न होते हैं । । लोक कला संस्कृति की आत्मा है । भूस्थल पर इंसान की उद्भव में लोक कला , संगीत , वाद्य का महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।ब्रह्मांड में व्याप्त  नाद ध्वनि ऋषियों द्वारा विकसित की गई थी । सिंधु सभ्यता के स्थल से संगीत वाद्ययंत्र सप्तछेद की वासुरी, लंका की होला  सभ्यता  से रावण हत्था ,  सामवेद से  संगीत का साहित्यिक राग खरहरप्रिया , गंधर्व वेद , ऐतरेय आरण्यक ,, जैमिनी ब्राह्मण में ओम स्वरों का सिद्धंत का उल्लेख किया गया है । पाणिनि ने संगीत एवं लोक कला का 4 थीं शताब्दी ई.पू. तथा भरत ने 200 ई. पू. से 200 ई.के मध्य में नाट्यशास्त्र का विकास किया है ।भारतीय संगीत , लोक संगीत , वाद्य , नाट्य का विकास उत्तर वैदिक काल  में संगम संगीत , जातिमान संगीत में स्वर, ताल और ताल का विकास हुआ था । 
पश्चिमी ओडिशा के नौपाड़ा जिले में रहने वाली जनजाति की भुजिया एवं अंडमान की जरवा , झारखंड में संथाली ,हो , बिहार में मगही, भोजपुरी , मैथिली  अंगिका , वज्जिका भाषा में लोक संगीत एवं विभिन्न वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हैं ।
भाषा वैज्ञानिक के अनुसार 70000 वर्ष पूर्व आदि मानव ने विश्व से -फूलते रहे है। भारत और दुनिया की हजारों भाषाओं ईवा? लोक संगीत विलुप्त हो रही है । युनेस्को द्वारा जारी “एटलस ऑफ वर्ल्ड लैंग्वेज इन डैंजर” के अनुसार 1950 तक  विश्व में   230 भाषाएं विलुप्त हो गई थी परंतु युनेस्को ने 2001 में प्रथम बार एटलस के अनुसार  900 भाषाओं पर विलुप्ति का खतरा पाया था ।  2017 में अद्यतन किया गया एटलसमें उल्लेख किया है कि विलुप्त भाषाओं की संख्या 2,464 तक पहुंच गई। युनेस्को की सूची में अहोम, आंद्रो, रांगकास, सेंगमई और तोल्चा तथा  भारत की 197 भाषाएं   तथा  अमेरिक में 191 भाषाएं ,  ब्राजील में  190 भाषाएं विलुप्त हो रही है ।संयुक्त राज्य अमेरिका के गैर लाभकारी संगठन एनडेंजर्स लैंग्वेज फंड और भारतीय भाषाओं पर किया गया पीपुल्स लिंग्विस्टि सर्वे ऑफ इंडिया भयावह तस्वीर पेश करता है। देश के विभिन्न राज्यों में किए गए भाषायी सर्वेक्षण में पाया गया है कि 50 सालों में 220 भाषाएं दम तोड़ चुकी हैं। सर्वेक्षण में 780 भारतीय भाषाओं का पता लगाया था। 600 भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है। पीएलएसआई ने डाउन टू के प्रतिवेदन में घुमंतू समुदाय और तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की भाषा सबसे अधिक खतरे में है। दुनियाभर में भाषाओं पर नजर रखने वाले गैर लाभकारी संगठन एथनोलॉग से भी इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं। समय-समय पर भाषाओं को अपडेट करने वाले इस संगठन के अनुसार, इस समय दुनियाभर बोली जाने वाली 7,139 भाषाओं में 42 प्रतिशत (3,018) भाषाएं संकट ग्रस्त हैं।  एथनोलॉग के अनुसार, दुनिया की आधी आबादी 24 भाषा में चीनी मंदारिन, स्पेनिश, अंग्रेजी, हिंदी, पुर्तगाली, बंगाली, रूसी, जापानी, जावानी और जर्मनी शामिल हैं। विश्व की आधी आबादी 7,000 भाषाएं बोलती है। एथनोलॉग ने अपने विश्लेषण में पाया है कि दुनिया की आधी भाषाओं को 10 हजार से कम बोलने वाले लोग बचे हैं। विश्व की केवल एक प्रतिशत आबादी लगभग 5,000 भाषाएं बोलती हैं। भाषा कोकी 81 प्रतिशत, ब्राजील-इंडोनिशया की 62 प्रतिशत, नेपाल की 61 प्रतिशत देसज भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है। भारत की 30 प्रतिशत देसज भाषाएं है। भाषा, संस्कृति और पर्यावरण एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं । इंडोनिशिया (712 भाषा), नाइजीरिया (522 भाषा) और भारत (454 भाषा) में सबसे अधिक भाषाएं लोक संगीत , वाद्य और नाट्य में  बोली जाती हैं। ये ऊष्णकटिबंधीय देश भी जैव विविधता से परिपूर्ण हैं। “बायोकल्चरण डायवर्सिटी टूलकिट : एन इंट्रोडक्शन टु बायोकल्चरल डायवर्सिटी” के अनुसार, सबसे अधिक भाषाओं वाले देशों में मैक्सिको में दुनिया की करीब 10 प्रतिशत जैव विविधता पाई जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में सबसे अधिक प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा है और यही देश भी बड़े पैमाने पर भाषाओं से हाथ धो बैठे हैं। अनुमान है मुताबिक, पिछले 45 वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका 64 प्रतिशत और ऑस्ट्रेलिया 50 प्रतिशत भाषाएं खो चुका है। उत्तराखंड में गढ़वाली , उत्तरप्रदेश में अवधि , ब्रजभाषा , तमिल , कर्नाटकी , असमिया , बांग्ला , मलयालम , उड़िया , गुजराती , नेपाली , मैथिली ,मगही , भोजपुरी , वज्जिका एवं अंगिका संगीत , वाद्य और नाट्य में लोक भाषा में प्रचलन है ।लोक संगीत एवं पर्व लोक संस्कृति  समन्वय की पहचान है ।




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