मंगलवार, दिसंबर 27, 2022

सोमतिती विद्या और लक्ष्मण रेखा ..


सनातन धर्म ग्रंथों में सोमतिती विद्या का उल्लेख किया गया है । सोमतिती विद्या का प्रयोग त्रेतायुग में शेषावतार लक्षमण और द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा किया गया है । त्रेतायुग में सोमतिती विद्या का नामकरण  लक्षमण रेखा किया गया है।सोमतिती विद्या व  लक्ष्मण रेखा का उल्लेख महर्षि श्रृंगी ने सोमतिती वेदमन्त्र का रूप दिया है ।। सोमंब्रही वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति। सोमतिती वेदमंत्र कोड है । उस सोमना कृतिक यंत्र का, पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में  केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है। वह यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है, कोड को उल्टा कर देने पर अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है।  महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भ्रमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुंचने के पश्चात  महर्षि भारद्वाज ने महर्षि वशिष्ठ से जानकारी के क्रम में अयोधया के  राजकुमार राम , भरत और शत्रुघ्न  की शिक्षा दीक्षा कहाँ तक पहुंची है? महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि ब्रह्मचारी राम ने आग्नेयास्त्र वरुणास्त्र ब्रह्मास्त्र का संधान करना सीखा और धनुर्वेद में पारंगत हुआ है । महर्षि विश्वामित्र के द्वारा,  ब्रह्मचारी लक्ष्मण ने सोमतिती विद्या सीख रहा है । त्रेतायुग में पृथ्वी पर चार गुरुकुलों में वह विद्या सिखाई जाती थी । महर्षि विश्वामित्र के गुरुकुल , महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल ,  महर्षि भारद्वाज के गुरुकुल  और उदालक गोत्र के आचार्य शिकामकेतु के गुरुकुल का उल्लेख श्रृंगी ऋषि द्वारा किया गया है । शृंगी ऋषि  के अनुसार  लक्ष्मण सोमतित  विद्या में पारंगत था । ब्रह्मचारी वर्णित में सोमतिती विद्या का अच्छा जानकार था। सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति 
सोमतिती  मंत्र को सिद्ध करने से सोमना कृतिक यंत्र में जिसने अग्नि के वायु के जल के परमाणु सोख लिए हैं उन परमाणुओं में फोरमैन , आकाशीय विद्युत मिलाकर उसका पात बनाया जाता है,,फिर उस यंत्र को एक्टिवेट करें और उसकी मदद से लेजर बीम  किरणों से उस रेखा को पृथ्वी पर गोलाकार खींच दें।उसके अंदर रहेगा वह सुरक्षित रहेगा, लेकिन बाहर से अंदर अगर कोई जबर्दस्ती प्रवेश करना चाहे  उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि वहीं राख बनकर उड़ जाएगा और व्यक्ति या वस्तु प्रवेश कर रहा हो, ब्रह्मचारी लक्ष्मण सोमतिती विद्या के इतने जानकार  गए थे कि कालांतर में सोमतिती  विद्या सोमतिती न कहकर लक्ष्मण रेखा कहलाई जाने लगी थी । महर्षि दधीचि, महर्षि शांडिल्य सोमतिती विद्या को जानते थे । श्रृंगी ऋषि के अनुसार योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण सोमति विद्या को जानने वाले अंतिम थे। भगवान कृष्ण ने द्वापर युग में  कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में मैदान के चारों तरफ यह रेखा खींच दी ताकि युद्ध में जितने भयंकर अस्त्र शस्त्र चलने वाली की अग्नि का ताप युद्धक्षेत्र से बाहर जाकर दूसरे प्राणियों को संतप्त नही किया था । सतयुग में दधीचि ऋषि , भृगु ऋषि ,अगस्त ऋषि ने सोमब्रही विद्या , सोमतिती विद्या का ज्ञान था ।

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