सोमवार, फ़रवरी 13, 2023

भगवान रामभक्त माता शबरी....


रामायण एवं रामचरितमानस इन रामभक्त माता  शबरी का उल्लेख मिलता है। फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष सप्तमी त्रेता युग में माता शबरी की जन्म हुई थी   । त्रेतायुग में भील राज मातुका  की पत्नी रोचना के गर्भ से दंडकारण्य के महानदी जोक एवं शिवनाथ नदी संगम पर स्थित शबरी पहाड़ी पर  श्रमणा का जन्म   हुई थी । वाल्मीकीय रामायण अरण्यकाण्ड एवं रामचरितमानस के अनुसार श्रमणा पूर्वजन्म में परमहिसि रानी थी । श्रमणा का विवाह के अवसर पर भील राज मातुका  द्वारा  भेड़ बकरे , भैसे बाली के लिए लाए गए थे । बकरे , भेड़ और भैसों को देखकर श्रमणा ने अपने पिता से पूछा कि जानवर क्यों लाए गए है  । भील राजा मातुका ने अपनी पुत्री श्रमणा से कहा कि पुत्री श्रमणा ! तुम्हारी विवाह के अवसर पर  सैकड़ों बकरे , भेड़ , भैस को बाली देने के लिए लाए गए है । अपने पिता की बातों को श्रमणा सुनकर  को अच्छा नहीं लगा और सोचने लगी किस प्रकार का विवाह है, जिसमें इतने निर्दोष प्राणियों का वध किया जाएगा। यह  पाप कर्म है, इससे तो विवाह नहीं करना  अच्छा है।  सोचकर श्रमणा  रात्रि में उठकर दंडकारण्य की  जंगल में  ऋषि की  तपस्थली चली गयी थी ।  बालिका श्रमणा की  हृदय पवित्र  में  प्रभु के लिए सच्ची  होने से सभी गुण स्वत: परिपूर्ण थी । श्रमणा  रात्रि में जल्दी उठकर, जिधर से ऋषि निकलते, उस रास्ते को नदी तक साफ करती, कंकर-पत्थर हटाती ताकि ऋषियों के पैर सुरक्षित रहे। फिर वह जंगल की सूखी लकड़ियां बटोरती और उन्हें ऋषियों के यज्ञ स्थल पर रख देती। इस प्रकार वह गुप्त रूप से ऋषियों की सेवा करती थी। इन सब कार्यों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न ले।ऋषियों की सेवा कार्य वह कई वर्षों तक करती रही। मतंग ऋषि ने श्रमणा  पर कृपा कर ऋषि मतंग ने श्रमणा को शबरी नामकरण किया था ।  मतंग ऋषि मृत्यु शैया पर थे तब उनके वियोग से शबरी व्याकुल हो गई। महर्षि ने शबरी को  निकट बुलाकर समझाया- ‘बेटी शबरी ! धैर्य से कष्ट सहन करती हुई साधना में लगी रहना। प्रभु राम एक दिन तेरी कुटिया में अवश्य आएंगे। प्रभु की दृष्टि में कोई दीन-हीन और अस्पृश्य नहीं है। वे  भाव के भूखे हैं और अंतर की प्रीति पर रीझते हैं।’महर्षि  मतंग की मृत्यु के बाद शबरी अकेली अपनी कुटिया में रहती और प्रभु राम का स्मरण करती रहती थी। राम के आने की बांट जोहती और प्रतिदिन कुटिया को इस तरह साफ करती थीं कि आज राम आएंगे। साथ प्रतिदिन  ताजे फल लाकर रखती कि प्रभु राम आएंगे । गुजरात राज्य का डाग जिले के सुबीर प्राचीन नाम पम्पापुर का पाम्पा झील के तट पर शबरी द्वारा भगवान राम की इंतजार की जाती थी और मनन करती  भगवान राम को  मैं यह फल खिलाऊंगी। भगवान श्री राम उसे गति देकर शबरीजी के आश्रम में पधारे। शबरीजी ने श्री रामचंद्रजी को घर में आए देखा, तब मुनि मतंगजी के वचनों को याद करके शबरी का मन प्रसन्न हो गयी थी ।आज मेरे गुरुदेव का वचन पूरा हो गया। उन्होंने कहा था की राम आयेगे। और प्रभु आज आप आ गए। निष्ठा हो तो शबरी जैसी। बस गुरु ने एक बार बोल दिया की राम आयेगे। और विश्वास हो गया। हमे भगवान इसलिए नही मिलते क्योकि हमे अपने गुरु के वचनो पर भरोसा ही नही होता। जब शबरी ने श्री राम को देखा तो आँखों से आंसू बहने लगे और चरणो से लिपट गई है। मुह से कुछ बोल  नही पा रही है चरणो में शीश नवा रही है। फिर सबरी ने दोनों भाइयो राम, लक्ष्मण जी के चरण धोये है। कुटिया के अंदर गई है और बेर लाई है।  सबरी ने  रामजी को बेर ही खिलाये। सबरी एक बेर उठती है उसे चखती है। बेर मीठा निकलता है तो रामजी को देती है अगर बेर खट्टा होता है उस बेर  फेक देती है। भगवान राम एकशब्द नही बोले की मैया क्या कर रही है। तू जूठे बेर खिला रही है। भगवान प्रेम में डूबे हुए है। बिना कुछ बोले बेर खा रहे है। माँ एकटक राम जी को निहार रही है। भगवान ने बड़े प्रेम से बेर खाए और बार बार प्रशंसा की है। उसके बाद शबरी हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई। सबरी बोली की प्रभु में किस प्रकार आपकी स्तुति करू ।अधम से  अधम हैं, स्त्रियाँ उनमें भी अत्यंत अधम  और उनमें पापनाशन! मैं मंदबुद्धि हूँ।भगवन राम माँ की ये बात सुन नहीं पाये और बीच में ही रोक दिया- भगवन राम ने कहा कि माँ मैं केवल एक भगति का नाता मानता हूँ। जाति, पाँति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता- इन सबके होने पर भी यदि इंसान भक्ति न करे तो वह ऐसा लगता है , जैसे जलहीन बादल (शोभाहीन) दिखाई पड़ता है। माँ में तुम्हे अपनी ९ प्रकार की भक्ति के बारे में बताता हूँ। जिसे भक्ति को कहते है नवधा भक्ति । मैं तुझसे अब अपनी *नवधा भक्ति* कहता हूँ। तू सावधान होकर सुन और मन में धारण कर। पहली भक्ति है संतों का सत्संग। दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम। तीसरी भक्ति है अभिमानरहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा और चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़कर मेरे गुण समूहों का गान करें।मेरे (राम) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास- यह पाँचवीं भक्ति है, जो वेदों में प्रसिद्ध है। छठी भक्ति है इंद्रियों का निग्रह, शील (अच्छा स्वभाव या चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म (आचरण) में लगे रहना । सातवीं भक्ति है । जगत्‌ भर को समभाव से मुझमें ओतप्रोत देखना और संतों को मुझसे भी अधिक करके मानना। आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाए, उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराए दोषों को न देखना नवीं भक्ति है । सरलता और सबके साथ कपटरहित बर्ताव करना, हृदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दैन्य (विषाद) का न होना। इन नवों में से जिनके एक भी होती है, वह स्त्री-पुरुष, जड़-चेतन कोई  हो ।हे भामिनि! मुझे वही अत्यंत प्रिय है। फिर तुझ में तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। अतएव जो गति योगियों को भी दुर्लभ है, वही आज तेरे लिए सुलभ हो गई है। भगवान माँ को भक्ति के बारे में बताने से पहले भी कह सकते थे की माँ आपके अंदर सभी प्रकार की भक्ति है। लेकिन राम जानते थे अगर मैंने पहले बोल दिया तो माँ मुझे बीच में ही रोक देगी। और कहेगी बेटा मेरी बड़ाई नही सब आपकी कृपा का फल है। इसलिए भगवान ने पहले भक्ति के बारे में बताया और बाद में माँ को कहा- आपके अंदर सब प्रकार की भक्ति है । छतीसगढ़ राज्य का महानदी जोक एवं शिवनाथ नदी के तट पर स्थितशबरी पहाड़ी पर  शबरी नारायण मंदिर में माता शबरी स्थित है ।

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