पुरणों एवं स्मृति ग्रंथों में ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्वपूर्ण उल्लेख है । मध्यप्रदेश का खंडवा जिले के मांधाता में मान्धाता पर्वत श्रंखला पर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर नर्मदा नदी के मध्य ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है । ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के किनारे मां नर्मदा स्वयं ॐ के आकार में निरंतर प्रवाहित है । नर्मदा नदी के उत्तरी तट स्थित मान्धाता पर्वत द्वीप के ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा नर्मदा नदी के दक्षिण तट अवस्थित शिवपुरी में ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग है । ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर के प्रथम मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर मंदिर , द्वितीय मंजिल पर बाबा ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग , तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ , चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव मंदिर है । ओमकारेश्वर मंदिर के सभामंडप में साठ बड़े स्तंभ हैँ । मध्ययुगीन काल में मंधाता ओंकारेश्वर पर धार के परमार, मालवा के सुल्तान, ग्वालियर के सिंधिया तत्कालीन शासकों का शासन रहने के बाद 1894 मैं अंग्रेजों के अधीन हो गया । मान्धाता का राजा भील सरदार नथ्थू भील था ।ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के भक्तगण एवं श्रद्धालुओं द्वारा ओमकारेश्वर पर्वत की परिक्रमा पथ 07 किलोमीटर लंबा रास्ता का परिभ्रमण किया जाता है । ओमकार पर्वत परिक्रमा पथ के किनारे भागवत गीता का शिलालेख पक्का सीमेंट से निर्मित है । इंदौर हवाईअड्डा से 75 किलोमीटर एवं रेलवे स्टेशन मोरटक्का ओम्कारेश्वर रोड़ से 12 किमि की दूरी तथा खंडवा - रतलाम रेल मार्ग पर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है । खंडवा राजा उदयादित्य ने 1063 ई. में ओमकारेश्वर श्रंखला पर चार स्तंभ पत्थरों को स्थापित करवाया तथा राजा भरत सिंह चौहान द्वारा 1195 ई. में ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का पुननिर्माण तथा मान्धाता पर्वत पर सीढ़ियां का निर्माण कराया गया था । मंदिर के स्तंभ पर संस्कृत भाषा स्तोत्र अंकित है । मालवा , परमार वंशीय राजाओं द्वारा ओमकारेश्वर मंदिर का विकास किया गया और 1824 में ओमकारेश्वर क्षेत्र को ब्रिटिश सरकार के अधीन चला गया था ।
ओंकारेश्वर मंदिर - पर्वत राज विन्धयाचल के यहां देवर्षि नारद के पहुँचने के बाद पर्वतराज विंध्यांचल ने नारद जी का आदर-सत्कार किया। पर्वतराज विन्धयाचल ने देवर्षि नारद से कहा कि मैं सर्वगुण संपन्न हूँ । नारद जी पर्वतराज की बातों को सुनते रहे और चुप खड़े रहे। जब पर्वतराज की बात समाप्त होने के बाद नारद जी ने पर्वत राज विन्धयाचल से कहा कि मुझे ज्ञात है कि तुम सर्वगुण सम्पन्न हो परन्तु फिर तुम समेरु पर्वत की भांति ऊँचे नहीं हो। सुमेरु पर्वत को देखो जिसका भाग देवलोकों तक पहुंचा हुआ है परन्तु तुम वहां तक कभी नहीं पहुँच सकते हो।
नारद जी की बातों को सुन विंध्यांचल पर्वतराज खुद को ऊँचा साबित करने के लिए सोच-विचार करने लगे। नारद जी की बातें उन्हें बहुत चुभ गयी थी और वे बहुत परेशान हो गए । अपने आप को सबसे ऊँचा बनाने की कामना के चलते उन्होंने भगवान शिव की पूजा करने का मन बनाया। पर्वतराज विन्धयाचल ने 6 महीने तक भगवान शिव की कठोर तपस्या कर प्रसन्न किया। भगवान शिव विंध्यांचल से अत्यधिक प्रसन्न हुए और भगवान शिव ने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। पर्वतराज विंध्यांचल ने कहा कि हे! प्रभु मुझे बुद्धि प्रदान करें और मैं जिस भी कार्य को आरंभ करू वह सिद्ध हो। भगवान शिव को देख आस-पास के ऋषि मुनि वहां पर आगये और उन्होंने भगवान शिव से यहाँ वास करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने सभी की बात मानी, वहां पर स्थापित लिंग दो लिंग में विभाजित हो गया। पर्वत राज विन्धयाचल द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंग का नाम ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग लिंग पड़ा और मान्धाता पर्वत श्रखला पर भगवान शिव का प्रगट हुए वह स्थल ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है । राजा मान्धाता ने ओंकारेश्वर पर्वत श्रंखला पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए घोर तपस्या की थी। राजा मान्धाता की तपस्या से भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए थे और राजा ने ओमकारेश्वर शिव को तपस्या स्थल पर सदैव के लिए निवास करने के लिए कहा था। ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है । देवताओं और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ और देवता दैत्यों से पराजित हो गए थे । देवों ने अपनी हताशा में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। देवताओं की सच्ची श्रद्धा भक्ति देख भगवान शिव ओंकारेश्वर के रूप अवतरित होकर दैत्यों को पराजित किया। शिव पुराण एवं लिंगपुराण के अनुसार ओंकारेश्वर मंदिर का उल्लेख मिलता हसि । नर्मदा और कावेरी नदी के संगम पर स्थित मान्धाता पर्वत की श्रंखला पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और नर्मदा नदी के दक्षिण तट पर शिवपुरी के मध्य में ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है । मांधाता पर्वत की परिक्रमा - मान्धाता पर्वत के चारों तरफ से नर्मदा नदी एवं कावेरी नदी बहती है। मांधाता पर्वत में भगवान शिव का ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जी विराजमान और मांधाता पर्वत पर प्राचीन मंदिर एवं आश्रम हैं । ओम्कारेश्वर परिक्रमा के क्रम में ओम्कारेश्वर परिक्रमा मार्ग 7 किलोमीटर लंबे मार्ग में मांधाता पर्वत का आकार ओम आकार होने के कारण मान्धाता पर्वत को ओमकारेश्वर कहा जाता है। ओमकारेश्वर नर्मदा परिक्रमा में मांधाता पर्वत के अंतिम छोर पर नर्मदा नदी, कावेरी नदियों का संगम में स्नान करने से मन को शांति मिलती है। नर्मदा नदी एवं कावेरी नदी के संगम में स्नान करने पर भगवान शिव लिंग प्राप्त होते हैं। ओम्कारेश्वर परिक्रमा मार्ग में मांधाता पर्वत के ऊची चोटी पर सोमनाथ श्रंखला पर प्राचीन मंदिर गौरी सोमनाथ मंदिर है। सोमनाथ मंदिर पत्थरों से निर्मित 3 मंजिला है। सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में विशाल बाबा सोमनाथ शिवलिंग स्थापितऔर नंदी मंडप में नंदी जी विराजमान है। पांडवों के द्वारा सोमनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया था । सोमनाथ मंदिर को मामा भांजा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर बहुत सुंदर है। ओंकारेश्वर परिक्रमा मार्ग में केदारेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग , रामकृष्ण मिशन साधना आश्रम , गायत्री मंदिर , ऋण मुक्तेश्वर मंदिर है। ऋण मुक्तेश्वर मंदिर व्यक्ति यहां पर शिव भगवान जी के दर्शन करने पर ऋणों से मुक्ति मिलती है। ऋण मुक्तेश्वर मंदिर के आगे ही नर्मदा और कावेरी नदी संगम घाट है । ओंकारेश्वर परिक्रमा पर राधा कृष्ण मंदिर, हनुमान प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में में हनुमान जी की प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में है। सिद्धनाथ मंदिर पत्थरों से निर्मित सिद्धेश्वर नाथ मंदिर है। सिद्धनाथ मंदिर का निर्माण पांडव द्वारा स्थापित है । सिद्धेश्वरनाथ मंदिर के अनेक खंडित मूर्तियां सिद्धनाथ परिसर में विखरी हुई है । राजेश्वरी मंदिर , प्राचीन चंद्र सूर्य दरवाजा , भीम अर्जुन दरवाजा , सिद्धेश्वरनाथ मंदिर , माता नर्मदा की मूर्ति है । मान्धाता पर्वत के चारों तरफ से नर्मदा नदी एवं कावेरी नदी बहती है। मांधाता पर्वत में भगवान शिव का ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जी विराजमान और मांधाता पर्वत पर प्राचीन मंदिर एवं आश्रम हैं । ओम्कारेश्वर परिक्रमा के क्रम में ओम्कारेश्वर परिक्रमा मार्ग 7 किलोमीटर लंबे मार्ग में मांधाता पर्वत का आकार ओम आकार होने के कारण मान्धाता पर्वत को ओमकारेश्वर कहा जाता है। ओमकारेश्वर नर्मदा परिक्रमा में मांधाता पर्वत के अंतिम छोर पर नर्मदा नदी, कावेरी नदियों का संगम में स्नान करने से मन को शांति मिलती है। नर्मदा नदी एवं कावेरी नदी के संगम में स्नान करने पर भगवान शिव लिंग प्राप्त होते हैं। ओम्कारेश्वर परिक्रमा मार्ग में मांधाता पर्वत के ऊची चोटी पर सोमनाथ श्रंखला पर प्राचीन मंदिर गौरी सोमनाथ मंदिर है। सोमनाथ मंदिर पत्थरों से निर्मित 3 मंजिला है। सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में विशाल बाबा सोमनाथ शिवलिंग स्थापितऔर नंदी मंडप में नंदी जी विराजमान है। पांडवों के द्वारा सोमनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया था । सोमनाथ मंदिर को मामा भांजा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर बहुत सुंदर है। ओंकारेश्वर परिक्रमा मार्ग में केदारेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग , रामकृष्ण मिशन साधना आश्रम , गायत्री मंदिर , ऋण मुक्तेश्वर मंदिर है। ऋण मुक्तेश्वर मंदिर व्यक्ति यहां पर शिव भगवान जी के दर्शन करने पर ऋणों से मुक्ति मिलती है। ऋण मुक्तेश्वर मंदिर के आगे ही नर्मदा और कावेरी संगम घाट है । ओंकारेश्वर परिक्रमा पर राधा कृष्ण मंदिर, हनुमान प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में में हनुमान जी की प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में है। सिद्धनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा पत्थरों से निर्मित सिद्धेश्वर नाथ मंदिर स्थापित है। सिद्धनाथ मंदिर की अनेक खंडित मूर्तियां सिद्धनाथ परिसर में विखरी पड़ी है । राजेश्वरी मंदिर , प्राचीन चंद्र सूर्य दरवाजा , भीम अर्जुन दरवाजा , सिद्धेश्वरनाथ मंदिर , माता नर्मदा की मूर्ति है । ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग - भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा ज्योर्तिलिंग ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के नर्मदा नदी के मध्य मन्धाता पर्वत व शिवपुरी द्वीप पर स्थित है। सूर्यवंशीय राजा मन्धाता ने शिव की घोर तपस्या करके प्रसन्न किया था और जनकल्याण हेतु यहां पर ज्योर्तिलिंग के रूप में विराजित होने का आग्रह किया था। इन्हीं के नाम पर इसका नाम मन्धाता पर्वत रखा गया है।ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग दो रूपों में विभक्त है जिसमें ओंकारेश्वर और ममलेश्वर शामिल है शिव पुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को परमेश्वर लिंग भी कहा जाता है। यहां भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप की पूजा होती है और भगवान शिव की विधान से पूजा करने से शिवजी प्रसन्न हो जाते है और जीवन के सभी कष्ट दूर कर देते हैं। यहां पर नर्मदा नदी ओम के आकार में बहती हैं। पुराणों में इस तीर्थ स्थल को विशेष महत्व बताया गया है। यहां तीर्थयात्री सभी तीर्थों का जल लेकर ओमकारेश्वर को अर्पित करते हैं तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने भगवान की तपस्या करके शिवलिंग की स्थापना की थी भगवान शिव ने कुबेर को देवताओं का धनपति बनाया था और कुबेर को स्नान करने के लिए शिव जी ने अपने जटा से कावेरी नदी उत्पन्न की थी।ओंकारेश्वर मंदिर में 68 तीर्थ में 33 करोड़ देवी देवता परिवार सहित रहते हैं । ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग सहित 108 शिवलिंग हैं। नर्मदा नदी तट ओम के आकार है । ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पंचमुखी है । भगवान शिव तीनों लोको का भ्रमण करके ओमकारेश्वर श्रंखला पर विश्राम एवं रात्रि में भगवान शिव की शयन के समय आरती की जाती है। भक्त गण दर्शन के लिए आकर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उपासना एवं दर्शन कर सर्वागींण सिद्धि प्राप्त करते हसि । हैं। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं ममलेश्वर में 24 अवतार, सीता वाटिका, माता घाट, मार्कंडेय शीला, मार्कंडेय संयास आश्रम, ओंकार मठ, माता वैष्णो देवी मंदिर, अन्नपूर्णा आश्रम, बड़े हनुमान, सिद्धनाथ गौरी सोमनाथ, धावड़ी कुंड, विज्ञान साला, ब्रह्मेश्वर मंदिर, विष्णु मंदिर, वीरखला, चांद-सूरज दरवाजे, गायत्री माता मंदिर, ऋण मुक्तेश्वर महादेव, आड़े हनुमान, से गांव के गजानन महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, कुबेरेश्वर महादेव मंदिर दर्शनीय हैं। ओंकारेश्वर दर्शन समय सुबह के दर्शन 5:00 से 3:00 तक ,शाम के दर्शन 4:15 से 9:00 तक ,मंगल आरती का समय सुबह 5:30 बजे ,जलाभिषेक का समय सुबह 5:30 से दोपहर 12:25 बजे , शाम की आरती 8:20 से 9:10 बजे तक है।
ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग - मान्धाता पर्वत पर स्थित ओम्पकरेश्वर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पंचमुखी है । भगवान शिव तीनों लोको का भ्रमण करके यहां विश्राम करते हैं। पर्वत पर एक बार भ्रमण करते हुए नारद जी विंध्याचल पहुंचे। पर्वतराज विंध्याचल ने नारद जी का बड़ा आदर सत्कार किया और बड़े अभिमान के साठ कहा की मुनिवर मैं सभी प्राकार से समृद्ध हूं। नारद जी विंध्याचल की ऐसी अभिमान भरी बातें सुनकर लंबी सांस खींचने लगे। ऐसा देख विंध्याचल ने नारद जी से इसका कारण पूछते हुए कहा। पर्वत ने कहा की मुनिवर ऐसी कौन सी कमी आपको दिखाई दे रही है जो देखकर आप ने लंबी सांस खींची। पर्वतराज विंध्याचल के पूछने पर नारद जी ने कहा तुम्हारे पास सब कुछ होते हुए भी तुम सुमेरु पर्वत से ऊंचे नहीं हो। सुमेरु पर्वत का भाग देव लोक तक जाता है और तुम्हारे शिखर का भाग वहां तक कभी नहीं पहुंच सकता ऐसा कह कर नारद जी वहां से चले गए। नारद जी द्वारा ऐसी बातें सुनकर विंध्याचल को बहुत दुख हुआ और वह मन ही मन शोक करने लगा। इसके पश्चात जहां भगवान शिव साक्षात शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं वहां पर विंध्याचल शिवलिंग स्थापित कर भगवान शिव की आराधना करने लगा। और लगातार भगवान शिव की 6 महीने तक पूजा अर्चना की। विंध्याचल के सच्ची श्रद्धा से प्रभावि होकर भगवान शिव साक्षात प्रकट हो गए और विंध्याचल को दर्शन दिए और से वर मांगने को कहा। विंध्याचल ने कहा-‘हे देवेश्वर महेश यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे कार्य सिद्ध करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करें ।भगवान शिव ने विंध्य को उत्तम वर दिया। उसी समय देवगढ़ और कुछ ऋषि गण भी वहां आ गए। उन्होंने भगवान शंकर की विधिवत पूजा की और स्तुति के बाद भगवान् शिव से अनुरोध किया की वह उसी स्थान पर विराजमान हो जाएं।भगवान शिव ने उन सबकी बातो को स्वीकार कर लिया और वहां पर स्थित एक ही ओंकार लिंग 2 स्वरूपों में विभक्त हो गया। प्रवण के अंतर्गत जो सदाशिव उत्पन्न हुए उन्हें ‘ओंकार’ के नाम से जाना गया। पार्थिव मूर्ति में ज्योति प्रतिष्ठित को ‘परमेश्वर लिंग’ कहा गया है। परमेश्वर लिंग को ममलेश्वर लिंग कहा जाता है। स्मृति ग्रंथों के अनुसार नर्मदा जी के दर्शन एवं स्नान करने मात्र से सर्वार्थसिद्धि प्राप्त होता है। नर्मदा नदी के दक्षिण और उत्तरी तट पर मंदिर व ओंकारेश्वर क्षेत्र की तीर्थ यात्रा करने पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन एवं भगवान शिव के 24 अवतारों के दर्शन होते है । स्कन्द पुराण, वायु पुराण शिवपुराण, लिंगपुराण में ओंकारेश्वर के दर्शन व पूजन का विशेष महत्व है । भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र ही अनेक मनोकामना पूर्ण हो जाती है ओंकारेश्वर धाम किसी मोक्ष धाम से कम नहीं है ओम के आकार में बने धाम की परिक्रमा कर लेने से भुक्ति , मुक्ति , मोक्ष और सर्वार्थ सिद्धि प्राप्त होती है । ओमकारेश्वर ज्योतिलिंग परिभ्रमण 30 और 31 जनवरी 2023 को साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा जहानाबाद बिहार से रेलवे मार्ग एवं सड़क मार्ग द्वारा मध्यप्रदेश का इंदौर से खंडवा जिले के मान्धाता स्थित ओमकारेश्वर के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण किया । साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक एवं पंजाब नेशनल बैंक के सेवा निवृत्त पदाधिकारी कवि लेखक सत्येन्द्र कुमार मिश्र द्वारा नर्मदा नदी में स्नान करने के बाद ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन एवं उपासना करने के पश्चात 7 किमि परिक्रमा के क्रम में नर्मदा नदी एवं कावेरी नदी के संगम में स्नान किया था जल में स्थित के पाषाण युक्त अनेक शिव लिंग का दर्शन एवं स्पर्श हुआ । एवं ओमकारेश्वर 7 किमि का प्रदक्षिणा व परिक्रमा के दौरान भारतीय संस्कृति की विरासत का दर्शन किया । परमार शासकों द्वारा 13 वीं शदी में केदारेश्वर मंदिर के गर्भगृह में केदारेश्वर शिवलिंग एवं मंदिर की दीवार पर गणेश की मूर्ति का उत्कीर्ण है । नर्मदा नदी के किनारे मान्धाता पर्वत पर पशनयुक्त केदारेश्वर मंदिर परिसर में नंदी है । नर्मदा और कावेरी संगम पर 13 विन शदी में निर्मित पाषाण युक्त ऋण मुक्तेश्वर मंदिर परिसर में ऋणमुक्तेश्वर मंदिर गर्भगृह में ऋण मुक्तेश्वर एवं द्वारिकाधीश मंदिर के गर्भगृह में द्वारिकाधीश स्थापित है । ऋणमुक्तेश्वर मंदिर एवं द्वारिकाधीश मंदिर का जीर्णोद्धार 1819 ई. में कराया गया है । सूर्यवंशीय राजा मान्धाता द्वारा निर्मित प्रस्तर युक्त धर्म राज द्वार को प्रथम शदी ई. में जीर्णोद्धार राजा परमार ने कराया था । राजा मान्धाता द्वारा धर्मराज द्वार पर यम और धर्मराज की मूर्ति स्थापित कराई ग्ई थी ।
मन की गति के प्रति ध्यान से उपलब्ध ज्योति को प्रकाश की ओर अग्रसर होने की प्रक्रिया मगध ज्योति है। विश्व , भारतीय और मागधीय सांस्कृतिक, सामाजिक , शैक्षणिक तथा पुरातात्विक महत्व की चेतना को जागृत करना मगध ज्योति है ।
बुधवार, फ़रवरी 01, 2023
मान्धाता पर्वत परिभ्रमण....
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