गुरुवार, फ़रवरी 23, 2023

उत्तरापथ है ग्रैंट टेंक रॉड.....


दक्षिण एशिया का प्राचीन सड़क उत्तरापथ है। मौर्य साम्राज्य काल में उत्तरापथ की लंबाई  3710  किमि एवं चौड़ाई 14 मीटर का निर्माण हुआ था । उत्तरापथ को उत्तरापथ , सड़क के आजम ,गरैली सड़क ,जनरलों की सड़क , ग्रैंड ट्रंक रोड , जी .टी. रोड एवं इन एच 91 के नाम से जाना जाता था।  उत्तरापथ  भारत , बंगलादेश , अफगिस्तान और पाकिस्तान का प्राचीन सड़क है । 16 वीं सदी में शेरशाह सूरी द्वारा उत्तरापथ का पुनर्निर्माण कराने केबाद सड़क के आजम व शेरशाह मार्ग , बादशाही सड़क और 17 वीं सदी में ब्रिटिश सरकार ने ग्रेंड ट्रक रोड , जी टी रोड और भारत सरकार ने एन. एच .91 कहा है । उत्तरापथ का निर्माण मगध साम्राज्य के चंद्रगुप्त मौर्य , अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रसार  का रास्ता पथ निर्माण किया था । पेशावर से चटगांव  पंजाब ,दिल्ली ,खैबर दर्रा , अफगिस्तान , बंगाल का कोलकाता , बिहार का गया औरंगाबाद , रोहतास  जिले के क्षेत्रों को जोड़ता है। भारत सरकार द्वारा 2014 ई. में जी. टी. रोड को पुनिर्माण  4 लेन का निर्माण  की । ग्रांड ट्रंक रोड दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी और सबसे लंबी प्रमुख सड़क है।
 ग्रांड ट्रंक रोड पाकिस्तान के पेशावर से प्रारम्भ  और वाघा में भारत में प्रवेश करने से पहले अटॉक, रावलपिंडी , लाहौर से गुजरती है। भारत के भीतर, यह अमृतसर, अंबाला, दिल्ली, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, आसनसोल , औरंगाबाद , शेरघाटी ,  सासाराम ,  और कोलकाता से होकर गुजरते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती हुई  नारायणगंज जिले में सोनारगाँव पर समाप्त होती है। भारत के भीतर, सड़क के प्रमुख हिस्से, कोलकाता और कानपुर के बीच के हिस्सों को राष्ट्रीय राजमार्ग 2 के रूप में जाना जाता है, कानपुर और दिल्ली के बीच को राष्ट्रीय राजमार्ग 91 कहा जाता है, और दिल्ली के बीच और वाघा, पाकिस्तान के साथ सीमा पर, राष्ट्रीय मार्ग 1 के रूप में जाना जाता है।
 मौर्य साम्राज्य के समय में, भारत और पश्चिमी एशिया के कई हिस्सों और हेलेनिक दुनिया के बीच का व्यापार उत्तर-पश्चिम के शहरों से होकर गुजरता था। तक्षशिला मौर्य साम्राज्य के  हिस्सों के साथ सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था। मौर्यों ने तक्षशिला से पाटलिपुत्र राजमार्ग बनाया था। सदियों से, ग्रैंड ट्रंक रोड ने उत्तरी भारत में यात्रा से मुख्य राजमार्ग के रूप में कार्य किया है। 16 वीं शताब्दी में, गंगा के मैदान के पार चलने वाली  प्रमुख सड़क को शेर शाह सूरी ने बनवाया था । शेरशाह सूरी का इरादा प्रशासनिक और सैन्य कारणों से अपने विशाल साम्राज्य के दूरस्थ प्रांतों को  जोड़ना था । शेरशाह ने अपनी राजधानी सासाराम से, अपनी राजधानी आगरा को जोड़ने के लिए शुरू में सड़क का निर्माण किया था। मुल्तान से पश्चिम की ओर बढ़ा और पूर्व में बांग्लादेश में सोनारगाँव तक फैला हुआ था। मुगलों ने पश्चिम की ओर सड़क का विस्तार खैबर दर्रे को पार करते हुए अफगानिस्तान में काबुल तक फैल गया।  उत्तरापथ  सड़क को बाद में औपनिवेशिक भारत के ब्रिटिश शासकों ने सुधारा किया था । उत्तरापथ सड़क  क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों से  यात्रा और डाक संचार दोनों को सुविधाजनक बनाया गया था । शेरशाह सूरी के जमाने में  सड़क को नियमित अंतराल पर कारवासरा के साथ बनाया गया था, और राहगीरों को छाया देने के लिए सड़क के दोनों ओर पेड़ लगाए गए थे। सड़क अच्छी तरह से योजनाबद्ध थीएक अन्य नोट पर, सड़क ने सैनिकों और विदेशी आक्रमणकारियों के तेजी से आवागमन को आसान बनाया। इसने अफगान और फारसी आक्रमणकारियों के भारत के आंतरिक क्षेत्रों में लूटपाट की छापेमारी को तेज कर दिया, और बंगाल से उत्तर भारतीय मैदान में ब्रिटिश सैनिकों की यातयात साधन सुगम बनाया गया है।भारत   के   प्राचीन   ग्रंथों   में   जम्बूद्वीप   के   उत्तरी   भाग   का   नाम   उत्तरापथ है।    ‘ उत्तरापथ ’   को   उत्तरी   राजपथ   कहा   जाता   था ।   पूर्व   में   ताम्रलिप्तिका  ( ताम्रलुक )  से   पश्चिम   में   तक्षशिला   तक   और   उसके   बाद   मध्य   एशिया   के   बल्ख   तक   जाता   था   । उत्तरापथ   अत्यधिक   महत्वपूर्ण   व्यापारिक   मार्ग   था।     विभिन्न   क्षेत्रों   में   पत्थर ,  मोती ,  खोल ,  सोना ,  सूती   कपड़े   और   मसालों   के   विस्तार   के   कारण     और    क्षेत्रों   के   ग्रंथों   में  उत्तरापथ का   उल्लेख   है।   मदुरै   के   कपड़े   उपमहाद्वीप   में   प्रसिद्ध   थे। भारत   के   पूर्वी   तट   पर   समुद्री   बंदरगाहों   के   साथ   समुद्री   संपर्क   बढ़ने   के   कारण   मौर्य   साम्राज्य   के   दौरान   उत्तरापथ     का   महत्व   बढ़   गया   और      इस्तेमाल   व्यापार   के   लिए   किया  ब्रिटिश शासन का  गया।   मौर्य   काल   के   उत्तर   व्यापारिक   नगर ,  विदेशी   व्यापार   में   उत्तरापथ   की   भूमिका रही है। उत्तरापथ का उल्लेख ब्रिटिश शासक वाराणसी के जेनाथन डंकन ने अक्टूबर 1788 , श्री श चंद्रबसु ने 1897 , कौटिल्य का अर्थशास्त्र ,महाभारत , एरियन एनोवेसिस इंडिका ,कात्यायन समृति ,मनुस्मृति ,ब्रिटिश गजेटियर और प्रसाद बेनी की पुस्तक  स्टेट इन एनशियट  इलाहाबाद 1923 में की

गयी है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें