सोमवार, अक्तूबर 16, 2023

सकारात्मक ऊर्जा एवं विजय का द्योतक माता चंद्रघटा

साकारात्मक ऊर्जा एवं विजय  का द्योतक माता चन्द्रघंटा 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय के ग्रंथों में नवरात्र उपासना  की माता दुर्गा की तृतीय अवतार माता चंद्रघंटा का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है ।  शाक्त साधक का मन 'मणिपूर' चक्र माता चंद्रघंटा में समर्पित है । वेद के अनुसार माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन , दिव्य सुगंधियों का अनुभव तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। नवदुर्गाओं में तृतीय अवतार माता चंद्रघंटा अस्त्र कमल , जीवनसाथी भगवान शिव , सवारी सिंह , उपासना मंत्र पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ।। है । माँ चंद्रघंटा का  स्वरूप  शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र ,  शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला , दस भुजाधारी ,दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित और  वाहन सिंह तथा  मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट एवं आराधना सद्यः फलदायी है। माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र करती तथा उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है। माता के उपासक का  मन, वचन, कर्म एवं काया को विहित विधि-विधान के अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध एवं पवित्र करके माँ चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना में तत्पर रह कर उनकी उपासना से समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बनते  हैं। या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। भोजन में दही और हलवा खिलाएँ एवं भेंट में कलश और मंदिर की घंटी भेंट कर मनोवांक्षित फल प्राप्त करते हैं ।
शाक्त सम्प्रदाय के देवीभागवत , विभिन्न स्रोतों के अनुसार शारदीय नवरात्रि पर्व के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की अराधना की मां दुर्गा की तृतीय शक्ति में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियां समाहित हैं। माता चंद्रघंटा का रंग स्वर्ण के समान चमकीला, 3 नैत्र और 10 हाथ हैं। अग्नि वर्ण वाली माता  चंद्रघंटा ज्ञान से जगमगाने वाली दीप्तिमान देवी हैं। सिंह की सवारी करने वाली मां चंद्रघंटा की 10 भुजाओं में कर-कमल गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र आदि सशस्त्र है । दैत्यराज महिषासुर ने अपनी शक्तियों के घमंड में देलोक पर आक्रमण कर महिषासुर और देवताओं के हीच घमासान युद्ध होने के कारण  देवता हारने लगेने पर वह त्रिदेव ब्रह्मा जी, भगवान विष्णु और भगवान शिव  के पास मदद के लिए पहुंचे थे । देवों की बातें सुनकर त्रिदेव को क्रोध से दस भुजाओं वाली मां चंद्रघंटा का अवतरण हुआ था । अवतरित माता चन्द्रघंटा को  भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने चक्र, देवराज इंद्र ने घंटा, सूर्य ने तेज तलवार और सवारी के लिए सिंह और  देवी देवताओं ने भी माता को अस्त्र दिए है । माता चन्द्रघंटा द्वारा दैत्यराज महिषासुर एवं दैत्यों का वध कर सनातन धर्म की रक्षा , भूस्थल संरक्षित और मानव , देव , जान जंतु , पर्यावरण को संरक्षण प्रदान की गई थी ।देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव राजा हिमवान के महल में पार्वती से शादी करने पहुंचने के दौरान भगवान शिव के बालों और गले  में सर्पों की माला , भूत, ऋषि, भूत, अघोरी और तपस्वियों की  अजीब शादी के जुलूस के साथ  भयानक रूप में आए थे । भगवान शिव की बारात देख पार्वती की मां मैना देवी बेहोश हो गईं। तब पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रूप धारण किया था । चंद्रघटा माता के अनुरोध पर भगवान शिव ने अपना राजकुमार रूप में शामिल होने के पश्चात माता चन्द्रघंटा और भगवान शिव के साथ विवाह सम्पन हुआ है । मां दुर्गा के तृतीय अवतरण माता  चंद्रघंटा   को भूरे रंग व भगवा रंग , गोल्डेन रंग का वस्त्र-आभूषण, सौभाग्य सूत्र, हल्दी,-चंदन, रोली, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, फल-फूल, धूप-दीप, नैवेद्य, पान, दूध , मिष्ठान , खीर  अर्पित किया जाता है।. मां चंद्रघंटा का बीज मंत्र 'ऐं श्रीं शक्तयै नम:' का जाप कर एवं  महामंत्र ‘या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:‘ का स्मरण कर उपासना करते है ।चंद्रघंटा माता का ध्यान वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्। सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥ मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्। खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥ पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥ प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्। कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥ चंद्रघंटा  स्तोत्र पाठ आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्। अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥ चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्। धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥ नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्। सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥ माता चंद्रघंटा उपासना मंत्र पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।। 
माता चन्द्रघंटा का उपासना स्थल एवं चन्द्रघंटा मंदिर बिहार का चंदौत , पंचलक्खी , उत्तरप्रदेश के बनारस की लक्खी चौराहा की गली , राजस्थान का जयपुर के मुरलीपुरा , अम्बाला ,नोवामुंडी ,बाराबंकी में शाक्त स्थल पर अवस्थित है ।

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