मंगलवार, जनवरी 09, 2024

मानवीय समन्वय स्थापित करता है पतंगोत्सव

अतीत से जुड़ाव का प्रतीक। पतंगोत्सव
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
शास्त्रों और सनातन धर्म की भिन्न भिन्न ग्रंथों में पतंग उत्सव  पतंगों का त्योहार  मकर संक्रांति के अवसर पर मनाए जाने का उल्लेख मिलता है । सनातन धर्म संस्कृति में प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को  अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव मनाया जाता है ।नए वर्ष का प्रारम्भ   उत्तर भारत में लोहड़ी , मकर संक्रांति,  भारत में पतंग उड़ाने ,  पवित्र नदियों में स्नान करने , खिचड़ी का सेवन करने ,  तिल और गुड़ दूध , चुड़ा खाने का रिवाज है ।.  मकर संक्रांति को कोलकता में पौष सांगक्रान्ति , तमिलनाडु में पोंगल , और गुजरात में उत्तरायण ,  पतंग जरूर उड़ाने की परंपरा है। सनातन  धर्म एवं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान सूर्य  मकर राशि के अंदर दाखिल होने  के बाद से मौसम में  बदलाव आता है और ठण्ड थोड़ी कम हो जाती है ।. किसान अपनी फसलों की कटाई करना शुरू कर देते हैं. वर्ष  में  बारह संक्रांति में  जनवरी के महीने में आने वाली मकर  संक्रांति को काफी शुभ है । मकर संक्रांति का भगवान सूर्य  की उत्तरायण गति प्रारम्भ करते हैं ।अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव ( उत्तरायण) इंटरनेशनल काइटडे गुजरात राज्य प्रत्येक वर्ष  उत्तरायण या मकर संक्रांति के दिन अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव का बड़े स्तर पर आयोजन करता है ।   पतंग उड़ाने का प्रारम्भ 2800 वर्ष पूर्व चीन द्वारा की गई  थी ।. चीन में पतंग का आविष्कार मोजी और लू बैन  ने किया था ।  पतंग का इस्तेमाल बचाव अभियान के लिए  संदेश के रूप में, हवा की तीव्रता और संचार के लिए किया जाता था । पाचवीं  शताब्दी ई. पू . पतंग का आविष्कार किया था । चीन से  पतंग उड़ाने का ये चलन धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया और विश्व  के देशों में पतंग उड़ाई जाती है । पतंग देशों  में भारत, अमेरिका, मलेशिया और जर्मनी में चिली देश में स्वतंत्रता दिवस के दौरान वहां के निवासी पतंग उड़ाकर अपना स्वतंत्रता दिवस , जापान में भी पतंग बाजी देवता को खुश करने के लिए ,  अमेरिका में जून के महीने में पतंग से जुड़े कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ।  भारत में मकर संक्रांति के दिन पतंगें आसमान में उड़ाते हैं ।
 यजुर्वेद तृतीय अध्याय मंत्र 8 के अनुसार सूर्य का  उत्तरायण होने पर मकर संक्रांति व पतंगोत्सव . मन्त्र. : त्रि शद्धाम विराजति वाक् *पतङ्गाय* धीयते प्रति वस्तोरह द्युभि: ।। और मनुस्मृति के श्लोक (1/21) के अनुसार ““संसार की सारी वस्तुओं के नाम, कर्मों के नाम का मूल-आदि-स्रोत वेद है । महर्षि दयानन्द जी के अनुसार  पतङ्गाय पद  “पतति गच्छतीति पतङ्गस्तस्मा अग्नये (धीयते) धार्यताम्” अर्थात् चलने चलाने आदि गुणों से प्रकाशयुक्त अग्नि के लिए  पतन-पातन आदि गुणों से प्रकाशित एवं गतिशील अग्नि के लिए  पतंग दिखती या उड़ती हैं । रामचरित मानस में मकर संक्रांति के अवसर पर त्रेतायुग में  प्रथम बार भगवान राम  ने बचपन में पतंग उड़ाने का उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति त्योहार पर पतंगबाजी की शुरुआत हुई थी । मुगल बादशाह और नवाब तो खासतौर पर पतंगबाजी किया करते थे. साइमन कमीशन के विरोध के लिए भी पतंग की भूमिका रही है।मकर संक्रांति को पंतग पर्व के अवसर पर बाजार रंग-बिरंगे पतंगों से सजे नजर आने लगते हैं । तमिल की तन्दनानरामायण के अनुसार  भगवान राम ने पतंग उड़ाने के बाद पतंग  इन्द्रलोक में चली गई थी ।वैज्ञानिक कारण पतंग उड़ाने का संबंध स्वास्थ्य , पतंग उड़ाने से कई व्यायाम ,  सर्दियों की सुबह पतंग उड़ाने की शरीर को ऊर्जा मिलती और त्वचा संबंधी विकार दूर होते हैं । भगवान सूर्य उत्तरायण  होने का प्रारंभ  मकर रेखा में प्रवेश करनेके कारण मकर संक्रांति  है । मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति प्रमुख हैं.रामचरितमानस का बालकांड के अनुसार 'भगवान श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी । 'राम इक दिन चंग उड़ाई। इंद्रलोक में पहुँची जाई॥' पंपापुर से हनुमान को बुलवाया बाल रूप में मकर संक्रांति' का पर्व के अवसर पर श्रीराम भाइयों और मित्र मंडली के साथ पतंग उड़ाने लगे. वह पतंग उड़ते हुए देवलोक तक जा पहुंची थी । जब भगवान राम ने पतंग उड़ाई तो ये इंद्रलोक तक जा पहुंची. जहां इेद्र के बेटे जयंत की पत्नी इस पतंग पर मोहित हो गई थी । पतंग को देख कर इंद्र के पुत्र जयंत की पत्नी बहुत आकर्षित हो गई. वह उस पतंग और पतंग उड़ाने वाले के प्रति सोचने लगी थी । उसने तुरंत पतंग पकड़कर अपने पास रख ली ।  सोचने लगी कि पतंग उड़ाने वाला उसे लेने के लिए जरूर आएगा. जब पतंग दिखाई नहीं दी, तब बालक श्रीराम ने बाल हनुमान को पता लगाने के लिए रवाना किया. पवन पुत्र हनुमान आकाश में उड़ते हुए इंद्रलोक पहुंचे. वहां उन्होंने देखा कि एक स्त्री पतंग को हाथ में पकड़े है ।जब उन्होंने पतंग मांगी तब उस स्त्री ने "यह पतंग किसकी है? " हनुमानजी ने रामचंद्रजी का नाम बताया. उसने उनके दर्शन की इच्छा प्रकट की. हनुमान ये सुनकर लौट आए. सारी बात श्रीराम से कही. श्रीराम ने हनुमान को वापस वापस भेजा. ये कहलवाया कि वे उन्हें चित्रकूट में अवश्य ही दर्शन देंगे. हनुमान ने ये जवाब जयंत की पत्नी को कह सुनाया, जिसे सुनकर जयंत की पत्नी ने पतंग छोड़ दी थी ।चीन के बौद्ध तीर्थयात्रियों द्वारा पतंगबाज़ी का शौक़ भारत पहुंचा था ।
संत नाम्बे ,  मुग़ल बादशाहों के शासन काल में पतंगों की शान थी । बादशाह और शाहज़ादे पतंगबाजी खेल को बड़ी रुचि से खेला करते थे । पतंगों के पेंच लड़ाने की प्रतियोगिताएं में जीतने वाले को इनाम मिलता था.। मुगल बादशाह और नवाब  पतंगबाजी शौकीन थे । वाजिद अली शाह प्रत्येक वर् पतंगबाजी के लिए  दिल्ली आता था.। मुग़ल सम्राट बहादुरशाह ज़फ़र भी पतंगबाज़ी का शौकीन था।  लखनऊ, रामपुर, हैदराबाद आदि शहरों के नवाबों में पतंगों में अशरफियां बांधकर कर उड़ाया करते थे.। वर्ष 1927 में 'गो बैक' वाक्य के साथ लिखी हुई पतंगों को उड़ाया गया था ।
योकाइची विशाल पतंग महोत्सव्स, जो हर वर्ष मई के चौथे रविवार को जापान के हिगाशियोमी में मनाया जाता है। हवा से  हल्की पतंग को  हैलिकाइट या  हैलिकाइट पतंगे कहते है। पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व तीसरी सदी में चीन का दार्शनिक हुआंग थीम  द्वारा रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस का प्रयोग किया गया था । चीन के बाद पतंगों का फैलाव जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तर अफ़्रीका तक हुआ है । चीन में पतंग का अंधविश्वासों में भी विशेष स्थान है। चीन में किंन राजवंश के शासन के दौरान पतंग उड़ाकर उसे अज्ञात छोड़ देने को अपशकुन माना जाता था। साथ ही किसी की कटी पतंग को उठाना  बुरे शकुन के रूप में देखा जाता था। थाईलैंड में पतंग धार्मिक आस्थाओं के प्रदर्शन का माध्यम से थाइलैंड का  राजा द्वारा पतंग जाड़े के मौसम में भिक्षु और पुरोहित देश में शांति और खुशहाली की आशा में उड़ाते थे। थाइलैंड के लोग अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाने के लिए वर्षा ऋतु में पतंग उड़ाते थे। विश्व  के देशों में 27  नवम्बर को पतंग उडा़ओ दिवस (फ्लाई ए काइट डे) के रूप में मनाते हैं।यूरोप में पतंग उड़ाने का चलन नाविक मार्को पोलो के आने के बाद आरंभ हुआ। मार्को पूर्व की यात्रा के दौरान प्राप्त हुए पतंग के कौशल को यूरोप में लाया था ।  यूरोप के लोगों और फिर अमेरिका के निवासियों ने वैज्ञानिक और सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पतंग का प्रयोग किया था । ब्रिटेन के  वैज्ञानिक डाक्टर नीडहम ने चीनी विज्ञान एवँ प्रौद्योगिकी का इतिहास (ए हिस्ट्री ऑफ चाइनाज साइंस एण्ड टेक्नोलोजी)  पुस्तक में पतंग को चीन द्वारा यूरोप को दी गई  वैज्ञानिक खोज बताया है।  पतंग को देखकर मन में उपजी उड़ने की लालसा ने  मनुष्य को विमान का आविष्कार करने की प्रेरणा थी ।पतंग उड़ाने का शौक चीन, कोरिया और थाइलैंड समेत दुनिया के कई अन्य भागों से होकर भारत में पहुंचा था । राजस्थान में  पर्यटन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष तीन दिवसीय पतंगबाजी प्रतियोगिता होती है । दिल्ली और लखनऊ में भी पतंगबाजी के प्रति आकर्षण है। दीपावली के अगले दिन जमघट के दौरान तो आसमान में पतंगों की कलाबाजियां देखते ही बनती हैं। दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी पतंग उडा़ने का चलन है।मानव सभ्यता के विकास में कितना महत्वपूर्ण योगदान पतंग है। आसमान में उड़ने की मनुष्य की आकांक्षा को तुष्ट करने और डोर थामने वाले की उमंगों को उड़ान देने वाली पतंग दुनिया के विभिन्न भागों में अलग अलग मान्यताओं परम्पराओं तथा अंधविश्वास की वाहक  रही है। मानव की महत्त्वाकांक्षा को आसमान की ऊँचाईयों तक ले जाने वाली पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है । ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित है। चीन और जापान में पतंगों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिये  किया जाता था। चीन में किंग राजवंश के शासन के दौरान उड़ती पतंग को यूं  छोड़ देना दुर्भाग्य और बीमारी को न्यौता देने के समान माना जाता था। कोरिया में पतंग पर बच्चे का नाम और  जन्म की तिथि लिखकर उड़ाया जाता था ताकि उस वर्ष उस बच्चे से जुड़ा दुर्भाग्य पतंग के साथ ही उड़ जाए। थाईलैंड में बारिश के मौसम में लोग भगवान तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने के लिये पतंग उड़ाते थे जबकि कटी पतंग को उठाना अपशकुन माना है। विश्व में 14 जनवरी 1989 से विश्व पतंग दिवस मनाने के अवसर पर पतंगोत्सव प्रारम्भ है । मानवीय समन्वय स्थापित करने सशक्त माध्यम पतंगोत्सव है । गुजरात , राजस्थान , दिल्ली तमिलनाडु , उड़ीसा , बिहार , झारखंड , असम , उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र  आदि राज्यों में पतंगोत्सव मनाया जाता है। स्वतंत्रता एवं व्यक्तित्व का प्रतीक एवं अतीत से जुड़ाव का रूप और देवताओं की याद करता है पतंगोत्सव । पतंग को पतंग , गुड्डी ,कनकोवा, चंग , कत्माप , झिमुआन , तिलंगी कहा जाता है । फाह्यान ने 5 वी शताब्दी ह्वेनसांग ने 7वी शताब्दी  में पतंग महोत्सव का उल्लेख किया है ।
करपी , अरवल , बिहार 804419
9472987491 

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