शुक्रवार, अक्तूबर 25, 2024

कुतुबमीनार , दिल्ली परिभ्रमण

कुतुबमीनार परिसर परिभ्रमण
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
दिल्ली जिले के दक्षिण पश्चिम हिंदी भाषीय महरौली का निर्देशांक:28°30′54″N77°10′37″E / 28.515°N 77.177°E  स्थित है।  दिल्ली की  सात प्राचीन शहरों में महरौली उज्जैन राजा   विक्रमादित्य  के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराह-मिहिर को समर्पित मिहिरावली व महरौली  सहायकों, गणितज्ञों और तकनीशियनों का निवास स्थल था।  तोमर वंश का राजा  अनंगपाल प्रथम द्वारा 731 ई .में  लालकोट का निर्माण किया गया था। राजा अनंगपाल द्वितीय द्वारा 11 वीं शताब्दी में लाल कोट को विस्तार कर  राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था।  चौहानों द्वारा तोमरो  को 12 वीं शताब्दी में  हराया गया था। राजा  पृथ्वीराज चौहान ने लाल  किले का विस्तार कर   महरौली में राजधानी था। मोहम्मद ग़ोरी द्वारा 1192 ई.  में दिल्ली राजा  पृथिवी राज चौहान पराजित हुए और मारे गए थे । अफीगस्तान का  मोहम्मद ग़ोरी द्वारा  गुलाम क़ुतुब-उद-दीन ऐबक को महरौली का राजयपाल बनाया और अफगानिस्तान लौट गया था । मोहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद 1206 ई. में  कुतुबद्दीन ने  दिल्ली के पहले सुल्तान के रूप में विकसित कर1290 ई. तक  दिल्ली गुलाम वंश की राजधानी महरौली    था । खिलजी वंश के दौरान महरौली राजधानी को सिरी में राजधानी के रूप में स्थानांतरित हो गई थी । अहिंसा स्थल दिल्ली के महरौली में स्थित  जैन मंदिर  जैन धर्म का 24 वें तीर्थंकर महावीर जैन मंदिर , अहिंसा स्थल ,  वास्तुकला से परिपूर्ण मीनार  सनातन और बौद्ध मंदिरों पर बनाया गया मीनार को क़ुतुब-उद-दीन ऐबक ने विस्तार प्रारम्भ करने के  बाद इल्तुतमिश और अलाउद्दीन खिलजी द्वारा विकास किया गया था। कुतुब परिसर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। कुतुब मीनार के समीप  मंदिरों के अनेक स्तंभ  क्षतिग्रस्त  हैं। सूफी संत ख्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी का मकबरा 13 वीं शताब्दी मकबरा  कुतुब मीनार परिसर के समीप  है। दरगाह परिसर में  बहादुर शाह प्रथम, शाह आलम द्वितीय और अकबर द्वितीय की कब्रें , औरंगजेब के पुत्र बहादुर शाह प्रथम  द्वारा निर्मित छोटी मस्जिद मोती मस्जिद है । दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश के शासक बलबन का बलबन मकबरा  13वीं शताब्दी में निर्माण किया गया था। आधम ख़ान का मकबरा 1566 में आधम खान की याद में सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया था। महरौली पुरातत्व परिसर  200 एकड़ में  कुतुब मीनार स्थल से समीप को 1997 में पुनर्विकास किया गया था।
: क़ुतुब मीनार -  महरौली  में स्थित 1192 ई. में निर्मित कुतुबमीनार ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार की ऊँचाई 73 मीटर (239.5 फीट) और व्यास १४.३ मीटर ,  ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट)  है। मीनार में ३७९ सीढियाँ और  चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट है। कुतुबमीनार परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है। मीनार के समीप कुतुब चित्र के अनुसार  27 किला को तोड़कर कुतुबमीनार का निर्माण किया गया था ।कुतुबमीनार  स्थान के अनुसार  वराहमिहिर का खगोल शास्त्र वेधशाला मीनार निर्मित  थी। कुतुब मीनार परिसर में  लौह स्तंभ है।   यूनेस्को विश्व धरोहर इस्लामी वास्तु शैली में निर्मित कुतुबमीनार की उचाई 72.5 मीटर (238 फीट) का निर्माण 1199 ई. में कुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा प्रारम्भ किया गया और 1220 में  इल्तुतमिश द्वारा पूर्ण किया गया था । कुतुबमीनार  72.5 मीटर (237.86 फीट) मीटर चौडी़, विश्व की सर्वोच्च ईंट निर्मित अट्टालिका (मीनार) है। अफ़गानिस्तान में स्थित जाम  मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक, ने सन 1193 ई. में आरंभ करवाया था । शासक कुतुबुद्दीन ऐबक  के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार में तीन मंजिलों को बढ़ाया और सन १३६८ में फीरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई । मीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है ।  कुतुबमीनार की दीवार  पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है। कुतुब मीनार का निर्माण ढिल्लिका के गढ़ लाल कोट के खंडहरों पर किया गया था। क़ुतुब मीनार लाल और बफ सेंड स्टोन से बनी भारत की सबसे ऊंची मीनार है। 13वीं शताब्‍दी में निर्मित यह भव्‍य मीनार का व्‍यास आधार पर 14.32 मीटर और 72.5 मीटर की ऊंचाई पर शीर्ष 2.75 मीटर है। कुतुबमीनार को खगोल अट्टालिका , मिहिर अट्टालिका , महरौली कहा जाता था ।
कुतुबमीनार संकुल में स्‍मारक  1310 ई. में निर्मित द्वार, अलाई दरवाजा, कुव्वत उल इस्‍लाम मस्जिद; इल्तुतमिश, अलाउद्दीन खिलजी तथा इमाम जामिन के मकबरे; अलाई, मीनार सात मीटर ऊंचा लोहे का स्‍तंभ आदि है। गुलाम राजवंश के क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 ई.  में मीनार की नींव रखी रखकर  नमाज़ अदा करने  के लिए  पहली मंजिल बनाई गई थी । उत्तरवर्ती  शम्‍स उद्दीन इतुतमिश द्वारा  1211-36 ई. में तीन और मंजिलें  ,  सभी मंजिलों के चारों ओर आगे बढ़े हुए छज्‍जे  मीनार को घेरते तथा इनपत्‍थर के ब्रेकेट से सहारा दिया गया है ।  
कुवत उल इस्‍लाम मस्जिद मीनार के उत्तर - पूर्व ने स्थित मीनार निर्माण क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने 1198 ई. के दौरान कराया था। यह दिल्‍ली के सुल्‍तानों द्वारा निर्मित सबसे पुरानी ढह चुकी मस्जिद है। इसमें नक्‍काशी वाले खम्‍भों पर उठे आकार से घिरा हुआ आयातकार आंगन है और 27 हिन्‍दु तथा जैन मंदिरों के वास्‍तुकलात्‍मक को क़ुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा नष्‍ट कर दिया गया था, जिसका विवरण मुख्‍य पूर्वी प्रवेश पर खोदे गए शिला लेख में मिलता है।अर्ध गोलाकार पर्दा खड़ा किया गया था और मस्जिद को बड़ा बनाया गया था। यह कार्य शम्‍स उद्दीन इतुतमिश  1210-35 ई.  द्वारा और अला उद्दीन खिलजी द्वारा किया गया था।  इतुतमिश  1211-36 ई.  का मकबरा  1235 ई.में बनाया गया था। यह लाल सेंड स्‍टोन का बना हुआ सादा चौकोर कक्ष है, जिसमें ढेर सारे शिला लेख, ज्‍यामिति आकृतियां और अरबी में   नमूने   पहिए, झब्‍बे आदि है। अलाइ दरवाजा, कुवात उल्‍ल इस्‍माल मस्जिद के दक्षिण द्वार का  निर्माण अला उद्ददीन खिलजी द्वारा हिजरी  710 (  1311 ई. ) में कराया गया था ।   इस्‍लामी सिद्धांतों के अलाइ मीनार  क़ुतुब मीनार के उत्तर में खड़ी , का निर्माण अला उद्दीन खिलजी द्वारा  क़ुतुब मीनार से दुगने आकार का बनाने के इरादे से प्रारम्भ  किया गया था। वह केवल पहली मंजिल पूरी करा सका, जो अब 25 मीटर की ऊंचाई की है। क़ुतुब  संकुल के  अवशेषों में मदरसे, कब्रगाहें, मकबरें, मस्जिद और वास्‍तुकलात्‍मक सदस्‍य  कुतुब मीनार के निर्माण की योजना और वित्त पोषण ग़ोरी राजवंश द्वारा किया गया था ।   शनसबानी के नाम से ख्यात गोरी  ताजिक मूल का कबीला  पश्चिमी अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र घूर से आया था। ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक,  खानाबदोश कबीले के विभिन्न संप्रदाय एकजुट हो गए और अपनी खानाबदोश संस्कृति खो दी।  उन्होंने इस्लाम धर्म  अपना लिया ।  उन्होंने 1175-76 में पश्चिमी पंजाब के मुल्तान और उच, 1177 में पेशावर के आसपास के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों और 1185-86 में सिंध के क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था । 1193 में, कुतुब अल-दीन ऐबक ने दिल्ली पर 1117 ई. में  विजय प्राप्त की और प्रांत में ग़ोरी गवर्नर को स्थापित कर सामूहिक मस्जिद के रूप में कुतुब मीनार परिसर की स्थापना 1193 में की गई थी । कुतुबमीनार  परिसर का निर्माण ग़ोरी राजवंश के प्रजा के बीच इस्लाम  को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग़ोरी राजवंश के सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था के पालन का प्रतीक था ।  साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा 20 अक्तूबर 2024 को कुतुबमीनार परिभ्रमण  के दौरान दिल्ली की प्राचीन स्थलों , सांस्कृतिक विरासत की रूप रेखा परखा गया जिसमें कुतुबमीनार परिसर में लौह स्तम्भ , कुतुबमीनार , 1311 ई. में अर्धनिर्मित अल्लाउद्दीन खिलजी को समर्पित अलाई मीनार  , कुब्बत उल इस्लाम मस्जिद , मामलुक वंशी सुल्तान कुतुबुद्दीन एवक द्वारा 1193 ई. से 1197 ई. के मध्य में  कुब्बलतुल इस्लाम मस्जिद का निर्मित ,  1311 ई. में निर्मित अलाई दरवाजा , , 1537 - 38 ई. में निर्मित  इमाम जामिन का मकबरा , इमाम मुहम्मद अली मकबरा , सिकंदर लोदी का 1416 ई. से 1517 ई. तक के मध्य में निर्मित अवशेष है , कुतुबमीनार परिसर में निर्मित अवशेष शलजुक स्थापत्य कला 10 38 ई. से 1157 ई. का रूप प्रदर्शित है ।  8 दिसंबर 1946 को चेक अभिनेत्री और महाराजा जगतजीत सिंह की छठी पत्नी तारा देवी ने 8 दिसंबर 1948 ई. में  दो पोमेरेनियन कुत्तों के साथ टॉवर से गिरकर मर गईं। 1976 से पहले, आम जनता को आंतरिक सीढ़ी के माध्यम से मीनार की पहली मंजिल तक पहुंचने की अनुमति थी। आत्महत्याओं के कारण 2000 ई. के बाद शीर्ष पर पहुंच बंद कर दी गई। 4 दिसंबर 1981 को, सीढ़ी की रोशनी खराब हो गई। 300 से 400 के बीच आगंतुकों ने बाहर निकलने कोशिश की। 45 लोग मारे गये और घायल हो गये। इनमें से अधिकतर स्कूली बच्चे थे।  दुर्घटना होने के कारण कुतुमिनार  को जनता के लिए बंद कर  प्रवेश संबंधी नियम कड़े कर दिए गए हैं।

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