सोमवार, दिसंबर 02, 2024

फल्गु नदी की सांस्कृतिक विरासत

फल्गु नदी की सांस्कृतिक विरासत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
बिहार राज्य का गया जिला मुख्यालय गया  में प्रवाहित होने वाली पवित्र  फल्गु नदी का   सनातन धर्म के वैष्णव सम्प्रदाय ,  सौर सम्प्रदाय , शैव सम्प्रदाय , शाक्त सम्प्रदाय , ब्रह्म सम्प्रदाय व बौद्ध धर्मों , जैन धर्म ग्रंथों में महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है ।  फल्गु नदी के तट पर अवस्थित  भगवान विष्णु का विष्णुपद मन्दिर , सौर सम्प्रदाय का प्रातःकाल , मध्यह्न एवं संध्या काल Kई भगवान सूर्य ,का सूर्यमंदिर , शाक्त सम्प्रदाय का भष्म पहाड़ी पहाड़ी पर माता मंगलागौरी मंदिर , मारकंडेश्वर मंदिर , पितमहेश्वर मंदिर  है। गया के समीप लीलाजन नदी और मोहाना नदी के संगम से फल्गु नदी आरम्भ होती हुई फल्गु नदी की धाराएँ गया जिले के बेलागंज प्रखंड , खिजरसराय प्रखंड , जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड , हुलासगंज प्रखंड , मोदनगंज प्रखंड , नालंदा जिले के एकंगरसराय प्रखंड क्षेत्र में प्रवाहित होती हुई अंत मे मोदनगंज प्रखंड के बंधुगंज क्षेत्र में प्रवाह पूर्ण करती  हैं । गया के समीप फल्गू नदी शीर्ष लीलाजन नदी और मोहाना नदी का संगम स्थान निर्देशांक 24°43′41″N 85°00′47″E / 24.72806°N 85.01306°E पर स्तित है। फल्गु नदी पर  घोड़ा बांध, उदेरास्थान बांध है  फल्गु नदी  जहानाबाद जिले के में दरियापुर,सुकियावा,कैरवा,शर्मा होते हुए मोकामा टाल में समाप्त हो जाती है।  वायु पुराण , गरुड़ पुराण , भविष्य पुराण , संहिताओं , स्मृति ग्रंथों  में भगवान विष्णु के छवि दर्शन का उल्लेख किया गया है। फल्गु नदी हिंदू रीति रिवाज के अनुसार मृत आत्मा की शांति के लिए बिहार के गया जिला में पिंड दान एवं दुग्ध अर्पण के लिए महत्वपूर्ण एवं धार्मिक माना जाता है। गया  के बोधगया के समीप मोहना एवं लीलाजन नदी के साथ मिलकर अपवाह क्षेत्र टाल में फैलती हुई जहानाबाद जिले के क्षेत्र में विलीन हो जाती है।।  फल्गु नदी की लंबाई लगभग 135 किलोमीटर है। बिहार की पौराणिक पर्व  सूर्य-उपासना अर्थात छठ पूजा में फल्गु  नदी में बिहार की महिलाएं दुग्ध-अर्पण,अन्न-अर्पण, के साथ-साथ व्रत एवं छठी मैया की आराधना करते हैं। बिहार विश्व का एक ऐसा क्षेत्र माना जाता है जहां प्रकृति ऊर्जा बहुल स्रोत सूर्य देवता की पूजा करते हैं ।
मोहना नदी -  झारखंड राज्य के चतरा जिले में  इटखोरी  प्रखंड का  बेंदी स्थित कोराम्बे पर्वत की झरना से मोहना व मोहनी नदी प्रवाहित होती हुई गया जिले के गया समीप नीलांजन में मिलत्ती है । मोहना नदी हजारीबाग से 19.3 किलोमीटर (12.0 मील) दूर चतरा जिले का इटखोरी प्रखंड स्थित बेंदी गांव के  समीप  हजारीबाग पठार पर कोराम्बे पहाड़ से निकलती है। उत्तरी छोटानागपुर  पठार का हजारीबाग पठार  के ऊपरी हिस्से से पश्चिमी भाग दक्षिण में दामोदर जल निकासी और उत्तर में लीलाजन और मोहना नदियों के मध्य  जलग्रहण क्षेत्र का निर्माण करता है।  मोहना नदी इटखोरी से उत्तर की ओर मोहना नदी  बहती हुई , गया के मैदानों में उतरती  और दनुआ दर्रे के तल पर  पार करती हुई  इटखोरी के पास  चौड़े और रेतीले चैनल के साथ चतरा-चौपारण रोड को काटती हुई  बोधगया से 3.2 किलोमीटर (2.0 मील) नीचे लीलाजन (निरंजना) के साथ मिलकर फल्गु बनाती है ।  पहाड़ियों से गुज़रती हुई  मोहना  दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है।  चतरा जिले के अंदर , मोहना के दो झरने में तमासिन में पहला झरना गहरी घाटी के शीर्ष पर नदी अचानक काली चट्टान की ऊँची खड़ी सतह से नीचे छायादार तालाब में गिरती  और पुनः मुड़ी हुई चट्टानों की  घाटी में गिरती है;।  हरियाखाल में निचला झरना अधिक शांत सुंदरता का नदी  सुरम्य घाटी से निकलती हुई, लाल चट्टानों की ढलान वाली ढलान से नीचे शांत, बड़े तालाब में गिरती  ऊँचे लकड़ी के किनारों से घिरा होता है। तमासिन चतरा शहर से 26 किलोमीटर (16 मील) दूर है। दक्षप्रजापति की पुत्री एवं वनस्पति के देव चद्रमा की पत्नी उतारा फाल्गुनी को समर्पित मोहना नदी है।  
 नीलांजन नदी -  झारखंड के चतरा जिले का हंटरगंज प्रखंड अवस्थित जोरी के समीप  सिमरिया से प्रवाहित होने वाली लिलांजन व निरंजना नदी बिहार राज्य के गया जिल का बोधगया से होकर गया के मोहना नदी में मिलकर संगम बना कर फल्गु नदी बनाती है।   निर्देशांक 24°43′41″उ 85°00′47″पूर्व स्थित नैरंजना नदी पर चलते हुए बुद्ध का चमत्कार । बुद्ध दिखाई नहीं दे रहे हैं ( अनिकोनिज़्म ), उन्हें केवल पानी पर बने रास्ते और नीचे दाईं ओर खाली सिंहासन द्वारा दर्शाया गया है। दक्षप्रजापति की पुत्री एवं वनस्पति देव चंद्रमा की पत्नी पूर्वा फाल्गुनी को समर्पित लीलाजन नदी चतरा जिले के सिमरिया के उत्तर में हजारीबाग पठार पर लिलांजन नदी  यात्रा शुरू कर  पश्चिमी भाग दक्षिण में दामोदर जल निकासी और उत्तर में लीलाजन और मोहना नदियों के बीच विस्तृत जलग्रहण क्षेत्र बनाता हुआ  गहरी और पथरीली चैनल से होकर बहती हुई  जोरी के पड़ोस तक नहीं पहुँच जाती है। वहाँ पहाड़ियाँ पीछे हटने लगती हैं और धारा एक विस्तृत रेतीले बिस्तर पर सुस्ती से बहती है।   हंटरगंज से आगे गया सीमा तक नदी रेतीली हो जाती है। लिलांजन नदी  गर्मियों में सूखी रहती और बारिश के दौरान विनाशकारी होती है। गया से  10 किलोमीटर (6 मील) दक्षिण में नीलांजन नदी एवं  मोहना नदी के साथ मिलकर फल्गु नदी बनाती है ।  बिचकिलिया झरने का जल  लीलाजन नदी में दाह या प्राकृतिक जलाशय में गिरता है। नीलांजन नदी  चतरा से 11 किलोमीटर (7 मील) पश्चिम में है । बुद्ध धर्म ग्रंथों के अनुसार , राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ने उरुवेला व उरुविल्वा ग्राम स्थित नीलांजन नदी  के किनारे  बारह वर्षो तक ज्ञान प्राप्ति के लिए  तपस्या की थी । उरुविल्वा गाँव के समीप  जंगल में राजकुमार सिद्धार्थ  निवास के दौरान  एहसास हुआ कि कठोर तपस्या से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी तब उन्होंने नदी में स्नान करने और ग्वालिन सुजाता से दूध-चावल का कटोरा प्राप्त करने के बाद स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया  था । नीलांजना नदी के किनारे स्थित  पिप्पला वृक्ष के नीचे बैठे राजकुमार सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई। यह वृक्ष बोधि वृक्ष के नाम से जाना गया और ज्ञान  स्थान को  बोधगया के नाम से जाना गया है। पूर्वाफाल्गुनी व निलालंजन नदी के किनारे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के बाद बौद्ध हुए थे । 
 पूर्वा फाल्गुनी नदी  व नीलांजन नदी और उत्तराफाल्गुनी नदी व मोहना नदी का संगम से प्रवाहित होनेवाली नदी को फल्गु नदी कहा जाता है । पूर्वा फाल्गुनी का आराध्य भगवान सूर्य एवं उत्तराफाल्गुनी का देव यमराज व धर्मराज है । फल्गु नदी का जल भगवान विष्णु का चरण पखारती है। फल्गु नदी को गुप्तवाहिनी नदी को  पूर्वजों का उद्धा
रक कहा गया है । त्रेतायुग में भगवान राम , माता सीता द्वापरयुग में पांडवों द्वारा अपने पूर्वजों को पितृ को पिंडदान देकर अपने पूर्वजों की मोक्ष दिलाये थे। कीकट प्रदेश का भगवान विष्णु भक्त असुर संस्कृति  राजा गयासुर के वक्ष स्थल विष्णु पर्वत पर अवस्थित विष्णुपद  , फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर है। त्रेतायुग में माता सीता द्वारा फल्गु नदी शापित होने के कारण फल्गु को अंतः शलीला कहा गया है । कीकट राज अंग वंशीय मागध ने मगध साम्राज्य की स्थापना कर मगध साम्राज्य की राजधानी गया में स्थापित की थी । देव गुरु वृहस्पति एवं चंद्रमा तथा तारा के पुत्र मगध साम्राज्य का  राजा बुध की भार्या वैवस्वतमनु मनु की पुत्री इला ने गय का जन्म दी । असुर संस्कृति के रक्षक एवं भगवान विष्णु के महान उपासक गयासुर  ने गया नगर की स्थापना की थी । गयासुर काल में गया में ब्रह्मेष्ठी यज्ञ , रुद्रेष्टि यज्ञ , सूर्येष्टि यज्ञ , विष्णुयष्टि यज्ञ एवं पितृ यज्ञ , यमेष्ठी यज्ञ , प्रेताष्टि यज्ञ  फल्गु नदी के क्षेत में किया किया गया था । 

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