रविवार, मई 11, 2025

स्नेह त्याग और शक्ति की प्रतीक है माँ

मां: स्नेह, त्याग और शक्ति का प्रतीक 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
मां, यह एक ऐसा शब्द है जो न केवल एक रिश्ते को परिभाषित करता है, बल्कि स्नेह, त्याग, सुरक्षा और शक्ति की एक गहरी भावना को भी दर्शाता है। सनातन संस्कृति से लेकर आधुनिक वैश्विक समाज तक, मां का स्थान अद्वितीय और सर्वोपरि रहा है। जहां भारतीय संस्कृति में मां को देवीतुल्य माना गया है, वहीं विश्व के अन्य हिस्सों में भी मातृत्व को विभिन्न रूपों में सम्मानित किया जाता रहा है। आधुनिक विश्व में "मातृ दिवस" का प्रचलन भले ही अपेक्षाकृत नया हो, लेकिन मां के प्रति सम्मान और कृतज्ञता की भावना सदियों से विभिन्न संस्कृतियों में विद्यमान रही है।आधुनिक मातृ दिवस की नींव 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में संयुक्त राज्य अमेरिका में पड़ी। ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया की एना जार्विस ने अपनी मां के निधन के बाद उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने और सभी माताओं के सम्मान में एक दिन समर्पित करने का संकल्प लिया। उनका मानना था कि माताओं का उनके परिवारों और समाज में जो योगदान होता है, उसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। जार्विस के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप, 1914 में अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को राष्ट्रीय मातृ दिवस के रूप में घोषित किया। प्रारंभ में, यह दिन व्यक्तिगत स्तर पर अपनी मां को सम्मानित करने और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर था। सफेद कार्नेशन (गुलनार) फूल मां के प्रति प्रेम और सम्मान का प्रतीक बन गया।
हालांकि, मातृ दिवस की अवधारणा की जड़ें इससे कहीं अधिक गहरी और विविध हैं। प्राचीन काल से ही विभिन्न सभ्यताएं मातृशक्ति की महत्ता को स्वीकार करती आई हैं। ग्रीक पौराणिक कथाओं में स्य्बेले को देवताओं की मां के रूप में पूजा जाता था और उनके सम्मान में उत्सव मनाए जाते थे। प्राचीन रोम में, वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला इदेस ऑफ़ मार्च (15-18 मार्च) मातृ देवियों को समर्पित था। रोमवासी जूनो देवी, जो विवाह और मातृत्व की देवी थीं, को समर्पित मेट्रोनालिया नामक त्योहार में माताओं को उपहार देते थे।
यूरोप और ब्रिटेन में, मदरिंग संडे की परंपरा सदियों पुरानी है। लेंट के चौथे रविवार को मनाया जाने वाला यह दिन मूल रूप से "मदर चर्च" यानी मुख्य चर्च में जाने और वहां विशेष प्रार्थनाएं करने का दिन था। धीरे-धीरे, यह पारिवारिक मिलन और माताओं को सम्मानित करने का अवसर बन गया। युवा प्रशिक्षु और घरेलू सेवक इस दिन अपने घरों और माताओं से मिलने के लिए छुट्टी पाते थे और उन्हें छोटे उपहार या "मदरिंग केक" भेंट करते थे।
जैसे-जैसे मातृ दिवस की अवधारणा विश्व के अन्य हिस्सों में फैली, इसने स्थानीय संस्कृतियों और परंपराओं के अनुरूप विभिन्न रूप धारण कर लिए। कैथोलिक देशों में, यह दिन अक्सर वर्जिन मेरी के सम्मान के साथ जुड़ गया, जिन्हें यीशु मसीह की मां होने के कारण मातृत्व का प्रतीक माना जाता है। एशिया में भी मातृ दिवस विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। चीन में, यद्यपि आधिकारिक तौर पर यह पश्चिमी प्रभाव के बाद आया, लेकिन बुजुर्गों के प्रति सम्मान और माता-पिता के प्रति निष्ठा की पारंपरिक चीनी मूल्यों के साथ यह सहजता से जुड़ गया। चीन में गुलनार का फूल मातृ दिवस का एक लोकप्रिय प्रतीक है। कुछ लोग प्राचीन चीनी परंपराओं को पुनर्जीवित करने के प्रयास में सफेद लिली देने की वकालत करते हैं, जो उस समय माताओं द्वारा लगाई जाती थी जब उनके बच्चे घर छोड़कर जाते थे।
जापान में, मातृ दिवस शोवा काल में महारानी कोजुन के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। वर्तमान में, यह एक व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण दिन बन गया है, जहां लोग अपनी माताओं को गुलनार और गुलाब जैसे उपहार देते हैं। मेक्सिको में मातृ दिवस का एक जटिल इतिहास रहा है। 1922 में अमेरिका से प्रेरित होकर इसे अपनाया गया, लेकिन रूढ़िवादी समूहों ने इसे महिलाओं को पारंपरिक पारिवारिक भूमिकाओं में बनाए रखने के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की। इसके विपरीत, 1930 के दशक में राष्ट्रपति लाज़रो कार्देनस की सरकार ने इसे "देशभक्ति के त्योहार" के रूप में बढ़ावा दिया, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देना था। नेपाल में, "माता तीर्थ औंशी" एक अनूठा और महत्वपूर्ण मातृ दिवस है। यह बैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। यह न केवल जीवित माताओं का सम्मान करने का दिन है, बल्कि दिवंगत माताओं की स्मृति को भी समर्पित है। इस दिन, लोग माता तीर्थ कुंड की तीर्थयात्रा करते हैं, जो काठमांडू घाटी में स्थित है और जिसके साथ भगवान कृष्ण और उनकी मां देवकी से जुड़ी एक मार्मिक किंवदंती जुड़ी हुई है।
थाईलैंड में, मातृ दिवस रानी के जन्मदिन पर मनाया जाता है, जो मां के प्रति राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है। रोमानिया में मातृ दिवस और महिला दिवस दो अलग-अलग छुट्टियां हैं, जो मातृत्व और नारीत्व के विभिन्न पहलुओं को सम्मानित करती हैं। वियतनाम में, मातृ दिवस को ले वू-लैन कहा जाता है और यह चंद्र कैलेंडर के सातवें महीने के पंद्रहवें दिन मनाया जाता है, जो जीवित माताओं के प्रति कृतज्ञता और दिवंगत माताओं की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना का दिन है।
भारत में, यद्यपि मातृ दिवस पश्चिमी प्रभाव के बाद अधिक लोकप्रिय हुआ है, लेकिन मां का स्थान हमेशा से ही अत्यंत ऊंचा रहा है। भारतीय संस्कृति में मां को प्रथम गुरु और परिवार की धुरी माना जाता है। मां का त्याग, प्रेम और समर्पण अतुलनीय है और इसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। भारतीय परिवारों में मां का आशीर्वाद और मार्गदर्शन जीवन के हर मोड़ पर महत्वपूर्ण माना जाता है। मातृ दिवस एक अवसर है जब लोग अपनी माताओं के प्रति अपने गहरे प्रेम और सम्मान को विशेष रूप से व्यक्त करते हैं, उन्हें उपहार देते हैं, उनके साथ समय बिताते हैं और उनके द्वारा किए गए अनगिनत बलिदानों के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
 "मां" की अवधारणा और मातृत्व का सम्मान विश्व की सभी संस्कृतियों में किसी न किसी रूप में मौजूद है। आधुनिक मातृ दिवस ने इस सार्वभौमिक भावना को एक वैश्विक मंच प्रदान किया है, जिससे लोग एक साथ आकर उन महिलाओं का सम्मान कर सकें जिन्होंने उन्हें जन्म दिया, उनका पालन-पोषण किया और उन्हें प्यार दिया। यह दिन हमें मां के अटूट प्रेम, निस्वार्थ सेवा और असीम शक्ति को याद दिलाता है और हमें उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है। एक मां का आंचल हमेशा अपनी संतान के लिए छोटा पड़ता है और उसका प्रेम कभी कम नहीं होता। मातृ दिवस सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि मां के प्रति आजीवन सम्मान और प्रेम की अभिव्यक्ति है। 
 मां ही मेरी खुशी है
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
माँ तू मेरी, जीवन धारा,
तेरा प्यार, सागर गहरा।
हरदम तू ही, साथ निभाती,
ममता तेरी, जग से न्यारी।
जन्म दिया तूने मुझको,
पाला पोसा निज हाथों से।
हर पीड़ा तूने सह ली,
मुझको सुख दिया बातों से।
तेरी ममता की छाया में,
बचपन मेरा बीता सारा।
जब मैं रोया, तूने हँसाया,
गिरने पर तूने उठाया।
राह दिखाई जीवन की तूने,
हरदम मेरा साथ निभाया।
तेरी करुणा की धारा से,
जीवन मेरा हुआ उजियारा।
तेरी बातों में है अमृत,
तेरी आँखों में है प्यार।
तू ही शक्ति, तू ही साहस,
तू ही मेरा संसार।
तेरी आशीषों की छाया में,
हरदम मेरा हो गुजारा।
जग की दौलत से बढ़कर,
तेरा स्नेह अनमोल है माँ।
कैसे चुकाऊँ तेरा उपकार,
तू ही मेरा सब कुछ है माँ।
तेरी चरणों की धूलि बनकर,
जीवन मेरा हो संवारा।

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