बुधवार, दिसंबर 02, 2020

दिव्यांग की इच्छाशक्ति विकास का द्योतक...


 विश्व दिव्यांग दिवस पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1992  से  विकलांग व्यक्तियों के प्रति करुणा और विकलांगता के मुद्दों की स्वीकृति को बढ़ावा देने और आत्म-सम्मान, अधिकार और बेहतर जीवन के लिए समर्थन प्रदान करने के  उद्देश्य  से  विश्व दिव्यांग दिवस मनाया जा रहा है । दिव्यांग दिवस का  उद्देश्य है कि दिव्यांगों की जागरूकता राजनीतिक, वित्तीय और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू में विकलांग व्यक्तियों को लिया जाना शामिल है । विश्व दिव्यांग दिवस के अवसर पर विकलांग व्यक्तियों के सक्रिय, और समाज के जीवन और विकास में पूरी तरह से भाग लेने के लिए और उन्हें अन्य नागरिकों के बराबर पूरा अधिकार देने के लिए साथ ही मनुष्य के अधिकार के रूप में परिभाषित कर पूर्ण भागीदारी और समानता,और सामाजिक-आर्थिक विकास के विकास से उत्पन्न लाभ में बराबर का भागीदारी है । समाज  अपनी संकीर्ण मानसिकता को छोड़कर दिव्यांग बच्चों को सबल बनाना होगा, तभी हम विकसित होगें । 116 सालों में हुए 24 ओलंपिक में भारत ने नौ स्वर्ण पदक जीते हैं और पैरालिम्पिक्स में भारतीय खिलाडियों ने देश को दो स्वर्ण पदक दिलाए हैं । पैरालिम्पिक्स में स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक विजेताओं  द्वारा भारत का नाम रौशन किया है । विकलांगों की सामाजिक प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा दिए गये  सुझाव के बाद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने विकलांग की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द प्रयोग किया । प्रधानमंत्री का कहना है कि ‘विकलांग व्यक्तियों में कोई अंग विशेष नहीं होता, लेकिन उनके बाकी अंगों में वह विशेषता होती है  यह  सामान्य व्यक्तियों के पास भी नहीं होती है । साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि 'अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस' अथवा 'अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस' प्रतिवर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है। वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा 'विकलांगजनों के अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष' के रुप में वर्ष 1981 को घोषित किया गया था। वर्ष 1992 से संयुक्त राष्ट्र के द्वारा इसे अन्तर्राष्ट्रीय रीति-रिवाज़ के रुप में प्रचारित किया जा रहा है। दिव्यांगता प्रायः जन्म से, परिस्थितिजन्य अथवा दुर्घटना के कारण होती है।  समाज में दिव्यांगजन की स्थिति चुनौतीपूर्ण होती है। दिव्यांगता के कारण जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दृढ़ इच्छा शक्ति से व्यक्ति कठिनाई पर विजय प्राप्त कर सकता है। दिव्यांगजन में  विशेष प्रतिभा विद्यमान होती है। दिवयांगों की  इच्छा शक्ति को जागृत कर उनके आत्मविश्वास को दृढ़ करते हुए उनकी प्रतिभा को विकसित कर उनको आत्मनिर्भर बनाया जाए, जिससे वह सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें।
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1981 को विकलांग व्यक्तियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया, जिसकी थीम थी ‘पूर्ण भागीदारी और समानता’। इस थीम के तहत समाज में विकलांगों को बराबरी का अवसर उपलब्ध कराने और उनके अधिकारो के प्रति उन्हें और अन्य लोगों को जागरूक करने पर जोर दिया गया था ताकि विकलांगों को सामान्य नागरिकों के समान ही सामाजिक-आर्थिक विकास का लाभ प्राप्त हो सके।संयुक्त राष्ट्र संघ ने राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकलांगों को अवसर की समानता, उनका पुनर्वास और विकलांगता की रोकथाम के लिए एक वैश्विक कार्यवाही योजना तैयार की। इस योजना में अनुशंसित गतिविधियों को लागू करने के लिए सरकारों एवं संगठनों को एक समय सीमा प्रदान करने के क्रम में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1983-1992 के दशक को विकलांगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में घोषित किया गया। वर्ष 1992 में ही संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा 3 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा भी की गयी और तभी से 3 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाया जाता है। विकलांगता की बढ़ती स्थिति और विकलांगों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर एक समान मानकों की स्थापना करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 13 दिसम्बर 2006 को विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर एक अभिसमय को अपनाया गया। यह अभिसमय 3 मई 2008 से लागू हुआ और वर्तमान में 163 देश इस अभिसमय को अपना चुके हैं। वर्ष 2019 के अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस का केन्द्रीय विषय विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व और उनकी भागीदारी को बढ़ावा देना: 2020  के विकास एजेंडे में एक्शन लेना’ था । 2020 एजेंडा में समावेशी, समान और सतत विकास के लिए विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण है ।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग भारत सरकार द्वारा  विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने के लिए कार्य कराया जा रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में दिव्यांगो की जनसंख्या 2.6814994  है। इसमें से 55.89% पुरुष और 44.11 महिलाएँ हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांगों की संख्या शहरों की तुलना में अधिक है। दिव्यांगों की कुल जनसंख्या का 69.45% ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है। दिव्यांग व्यक्तियों को अपनी शारीरिक एवं मानसिक अक्षमताओं के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे शिक्षा, रोजगार एवं सार्वजनिक सुविधाओं की प्राप्ति में सामाजिक उपेक्षा का भी शिकार होना पड़ता है ।दिव्यांग (समान अवसर, अधिकार संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम के पारित हुए 24 वर्ष  हुए  परंतु शिक्षा और रोजगार के अवसर 24 सालों में देश में विकलांगों या दिव्यांगों की स्थिति ठीक नहीं है। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की 45 फीसदी विकलांग आबादी अशिक्षित है। दिव्यांगों में भी जो शिक्षित हैं, उनमें 59 फीसदी 10वीं पास हैं, जबकि देश की कुल आबादी का 67 फीसदी 10वीं तक शिक्षित है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत सभी को समान शिक्षा देने का प्रावधान है, बावजूद इसके शिक्षा व्यवस्था से बाहर रहने वाली आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा विकलांग बच्चों का है। 6-13 आयुवर्ग के विकलांग बच्चों की 28 फीसदी आबादी स्कूल से बाहर है। विकलांगों के बीच ऐसे भी बच्चे हैं जिनके एक से अधिक अंग अपंग हैं, उनकी 44 फीसदी आबादी शिक्षा से वंचित है। जबकि मानसिक रूप से अपंग 36 फीसदी बच्चे और बोलने में अक्षम 35 फीसदी बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। सरकार द्वारा दिव्यांग बच्चों को स्कूल में भर्ती कराने हेतु कई कदम उठाने के बावजूद आधे से अधिक दिव्यांग बच्चे स्कूल नहीं जाते है । बिहार में दिव्यांगों की संख्या 2331900 में 5 से 14 वर्ष के दिव्यांग बच्चों की संख्या 717505 है । स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट ऑफ इंडिया , चिल्ड्रेन विद डिसएलैटिव तथा 2011 जनगणना के अनुसार देश में दिव्यांग बच्चे 7864636 है जिसमे बिहार में दिव्यांग बच्चे 717505 है ।

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