शनिवार, फ़रवरी 27, 2021

भोजपुर की सांस्कृतिक विरासत...


        बिहार की सांस्कृतिक विरासत में भोजपुर की सभ्यता की छाप है । भोजपुर जिले का मुख्यालय आरा  बिहार की राजधानी पटना से इसकी दूरी महज 55 किलोमीटर है। आरा  नगर वाराणसी से 136 मील पूर्व-उत्तर-पूर्व, पटना से 37 मील पश्चिम, गंगा नदी से 14 मील दक्षिण और सोन नदी से आठ मील पश्चिम में स्थित है। यह पूर्वी रेलवे की प्रधान शाखा तथा आरा-सासाराम रेलवे लाइन का जंकशन है। डिहरी से निकलने वाली सोन की पूर्वी नहर की प्रमुख 'आरा नहर' शाखा यहाँ से होकर जाती है। आरा को 1865 में नगरपालिका बनाया गया है। गंगा और सोन की उपजाऊ घाटी में स्थित होने के कारण यह अनाज का प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र का केंद्र है। रेल मार्ग और पक्की सड़क द्वारा यह पटना, वाराणसी, सासाराम आदि से सीधा जुड़ा हुआ है। 
आरा में राजा मयुरध्वज  का शासन था। महाभारत काल में 'आरण्य क्षेत्र' के नाम से ख्याति रहने के कारण आरा का प्राचीन नाम आरण्य था।  पांडवों ने अपना गुप्तवास बिताया था। जेनरल कनिंघम के अनुसार युवानच्वांग द्वारा उल्लिखित में मगधराज अशोक ने दानवों के बौद्ध होने के संस्मरण स्वरूप एक बौद्ध स्तूप खड़ा किया था। आरा के पास मसार में जैन अभिलेखों में उल्लिखित 'आरामनगर' नगर के लिए गया है। वेदों के अनुसार भ्रजु द्वारा भोजपुर प्रदेश की नीव डालकर अरण्य नगर की स्थापना किया गया । कलान्तर आरा के नाम से जाने लगा है।  बुकानन ने आरा नगर के नामकरण में भौगोलिक कारण बताते हुए कहा कि गंगा के दक्षिण ऊँचे स्थान पर स्थित होने के कारण, अर्थात्‌ आड़ या अरार में होने के कारण, इसका नाम 'आरा' पड़ा। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रतायुद्ध के प्रमुख सेनानी बाबू कुंवर सिंह की कार्यस्थली होने का गौरव भी इस नगर को प्राप्त है।आरा स्थित 'द लिटल हाउस' एक ऐसा भवन है, जिसकी रक्षा अंग्रेज़ों ने 1857 के विद्रोह में बाबू कुंवर सिंह से लड़ते हुए की थी। आरा 1971 के पांचवीं लोकसभा चुनाव तक शाहाबाद संसदीय क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। 1
आरा के दर्शनीय स्थलों में आरण्य देवी, मढ़िया का राम मन्दिर , शहर में बुढ़वा महादेव, पतालेश्वर मंदिर, रमना मैदान का महावीर मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर प्रमुख हैं। शहर का बड़ी मठिया नामक विशाल धार्मिक स्थान है। शहर के बीचोबीच अवस्थित बड़ी मठिया रामानंद सम्प्रदाय  केन्द्र है। भोजपुर के लोग शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी कामयाबी का झंडा बुलंद किया है। आरण्य देवी बहुत प्रसिद्ध है। संवत् 2005 में स्थापित आरण्य देवी का मंदिर आरा में मुख्य आकर्षण का केंद्र है।  महाराजा कॉलेज स्थित वीर कुंवर सिंह का गुफा द्वार है ।
2011 की जनगणना के अनुसार आरा शहर की कुल जनसंख्या 2,61,430 तथा   2,395 किमी² क्षत्रफल में भोजपुरी, हिन्दी भाषी है। ज़िले का मुख्यालय आरा है। भोजपुर जिले के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। भोजपुर की सीमा दो तरफ से नदियों से घिरी है। जिले के उत्तर में गंगा नदी और पूर्व में सोन इसकी प्राकृतिक सीमा निर्धारित करते हैं।भोजपुर उत्तर में सारण और बलिया (उत्तर प्रदेश), दक्षिण में रोहतास, पूर्व में पटना, अरवल और पश्चिम मे बक्सर जिले की सीमा से घीरा है । भोजपुर जिला को पूर्व में शाहाबाद कहा गया था । जिसको सन् १९७२ में भोजपुर की स्थापना की गई है।  भोजपुर जिले में तीन अनुमण्डल हैं- आरा सदर, पीरो और जगदीशपुर तथा तेरह प्रखण्ड है।  आरण्य देवी  की आराध्य देवी हैं। माँ आरण्य देवी के अलावा महथिन माई(बिहिया), बखोरापुर काली मंदिर स्थल हैं। जैन समाज के  प्रसिद्ध मंदिर  है। भोजपुर में जगदीशपुर है, जहां के बाबू कुंवर सिंह ने पहले स्वतंत्रता संग्राम १८५७ की क्रांति में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व किया था। राजा भोज के वंशज ने भोजपुर प्रदेश की स्थापना कर अरण्य में राजधानी रखा था ।भोजपुरी अपने शब्दावली के लिये मुख्यतः संस्कृत एवं हिन्दी पर निर्भर है ।भोजपुरी जानने-समझने वालों का विस्तार विश्व के सभी महाद्वीपों पर है जिसका कारण ब्रिटिश राज के दौरान उत्तर भारत से अंग्रेजों द्वारा ले जाये गये मजदूर हैं जिनके वंशज अब जहाँ उनके पूर्वज गये थे वहीं बस गये हैं। इनमे सूरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, फिजी आदि देश प्रमुख है। भारत के जनगणना (2001) आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 3.3 करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। पूरे विश्व में भोजपुरी जानने वालों की संख्या लगभग ४ करोड़ है.[2] वक्ताओं के संख्या के आंकड़ों में ऐसे अंतर का संभावित कारण ये हो सकता है कि जनगणना के समय लोगों द्वारा भोजपुरी को अपनी मातृ भाषा नहीं बताई जाती है। भोजपुरी प्राचीन समय मे कैथी लिपि मे लिखी जाती थी ।
भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार राज्य के आरा (शाहाबाद) जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव के नाम पर हुआ है। पूर्ववर्ती आरा जिले के बक्सर सब-डिविजन (अब बक्सर अलग जिला है) में भोजपुर नाम का एक बड़ा परगना है जिसमें "नवका भोजपुर" और "पुरनका भोजपुर" दो गाँव हैं। मध्य काल में इस स्थान को मध्य प्रदेश के उज्जैन से आए भोजवंशी परमार राजाओं ने बसाया था। उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर भोजपुर रखा था। इसी कारण इसके पास बोली जाने वाली भाषा का नाम "भोजपुरी" पड़ गया।भोजपुरी भाषा का इतिहास 7वीं सदी से  है । 1000 से अधिक साल गुरु गोरख नाथ 1100 वर्ष में गोरख बानी लिखा था। संत कबीर दास (1297) का जन्म दिवस भोजपुरी दिवस के रूप में भारत में स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भोजपुरी भाषा प्रधानतया पश्चिमी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा उत्तरी झारखण्ड के क्षेत्रों में बोली जाती है। इन क्षेत्रों के अलावा भोजपुरी विदेशों में भी बोली जाती है। भोजपुरी भाषा फिजी और नेपाल की संवैधानिक भाषाओं में से एक है। इसे मॉरीशस, फिजी, गयाना, सूरीनाम, सिंगापुर, उत्तर अमरीका और लैटिन अमेरिका में भी बोला जाता है। बिहार : बक्सर जिला, सारण जिला, सिवान, गोपालगंज जिला, पूर्वी चम्पारण जिला, पश्चिम चम्पारण जिला, वैशाली जिला, भोजपुर जिला, रोहतास जिला, बक्सर जिला, भभुआ जिला , उत्तर प्रदेश : बलिया जिला, वाराणसी जिला,चन्दौली जिला, गोरखपुर जिला, महाराजगंज जिला, गाजीपुर जिला, मिर्जापुर जिला, मऊ जिला, इलाहाबाद जिला, जौनपुर जिला, प्रतापगढ़ जिला, सुल्तानपुर जिला, फैजाबाद जिला, बस्ती जिला, गोंडा जिला, बहराईच जिला, सिद्धार्थ नगर,आजमगढ जिला ,झारखण्ड : पलामु जिला, गढ़वा जिला, नेपाल : रौतहट जिला, बारा जिला, बीरगंज, चितवन जिला, नवलपरासी जिला, रुपनदेही जिला, कपिलवस्तु जिला, पर्सा जिला ,गयाना : जार्जटाउन , फिजी  है।  डॉ॰ ग्रियर्सन ने स्टैंडर्ड भोजपुरी कहा है वह प्रधानतया बिहार राज्य के आरा जिला और उत्तर प्रदेश के देवरिया, बलिया, गाजीपुर जिले के पूर्वी भाग और घाघरा (सरयू) एवं गंडक के दोआब में बोली जाती है। यह एक लंबें भूभाग में फैली हुई है।
मधेसी शब्द संस्कृत के "मध्य प्रदेश" से निकला है जिसका अर्थ है बीच का देश। चूँकि यह बोली तिरहुत की मैथिली बोली और गोरखपुर की भोजपुरी के बीचवाले स्थानों में बोली जाती है, अत: इसका नाम मधेसी (अर्थात वह बोली जो इन दोनो के बीच में बोली जाये) पड़ गया है। यह बोली चंपारण जिले में बोली जाती और प्राय: "कैथी लिपि" में लिखी जाती हैहॉग्सन ने इस भाषा के ऊपर प्रचुर प्रकाश डाला है। देवरिया (यूपी), दिल्ली, मुंबई, कोलकभोजपुता, पोर्ट लुईस (मारीशस), सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और अमेरिका में इसकी शाखाएं खोली जा चुकी हैं।भोजपुरी साहित्य में भिखारी ठाकुर के योगदान के लिए योगदान के लिए भोजपुरी का शकेस्पीयर कहा गया है। उनके लिखे हुए नाटक तत्कालीन स्त्रियों के मार्मिक दृश्य को दर्शाते हैं, अपने लेखों के द्वारा उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया है। उनके प्रमुख ग्रंथ है:-बिदेशिया,बेटीबेचवा,भाई बिरोध,कलजुग प्रेम,विधवा बिलाप है । महेंदर मिसिर भी भोजपुरी के एक मूर्धन्य साहित्यकार हैं. एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ महेंदर मिसिर भोजपुरी के महान कवि और पुरबी सम्राट के नाम से जाना जाता है। भारतीयता में भोजपुरी संस्कृति की छाप  है ।


                

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