बिहार के पश्चिम भाग में गंगा नदी के तट पर स्थित कारूष प्रदेश का वेद भूमि बक्सर की अर्थ-व्यवस्था से खेती पर आधारित है। सातवें वैवश्वत मनु के पुत्र करूष द्वारा कारूष प्रदेश की स्थापना कर बक्सर में वैदिक धर्म की आधारशिला रखी गई थी । बक्सर को सिद्ध वन का राजा विश्वामित्र हुए जिसके द्वारा वैदिक और वैग्यानिक कार्य किया गया था । त्रेतायुग में लंका का अधिपति राण ने ताडका , मारीच का क्षेत्रों का अधिकारी बनाया था । ताडका ने चैत्रवन की स्थान देकर राक्षसी संस्कृति का कार्य करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी और उसके लिए विश्वामित्र की वेदशालाओं को समाप्त कर रही थीं ।चीन काल में इसका नाम 'व्याघ्रसर' था। क्योंकि उस समय यहाँ पर बाघों का निवास हुआ करता था तथा एक बहुत बड़ा सरोवर था जिसके परिणामस्वरुप इस जगह का नाम व्याघ्रसर पड़ा।बक्सर पटना से लगभग ७५ मील पश्चिम और मुगलसराय से ६० मील पूर्व में पूर्वी रेलवे लाइन के किनारे स्थित है। यह एक व्यापारिक नगर है। यहाँ बिहार का एक प्रमुख कारागृह हैं जिसमें अपराधी लोग कपड़ा आदि बुनते और अन्य उद्योगों में लगे रहते हैं। बक्सर की लड़ाई शुजाउद्दौला और कासिम अली खाँ की तथा अंग्रेज मेजर मुनरो की सेनाओं के बीच १७६४ ई॰ में लड़ी गई थी जिसमें अंग्रेजों की विजय हुई। बक्सर में शुजाउद्दौला और कासिम अली खाँ के लगभग २,००० सैनिक डूब गए या मारे थे। कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है, जिसमें लाखों व्यक्ति इकट्ठे होते हैं।
महर्षि विश्वामित्र का आश्रम था। बक्सर मेंं भगवान राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र द्वारा धनुर्विद्या , शस्त्रविद्या , अस्त्रविद्या शिक्षण-प्रशिक्षण दिया गया था । राक्षस , दानव संस्कृति का प्रसिद्ध संचालन कत्री ताड़का राक्षसी का वध राम द्वारा किया गया था। 1764 ई॰ का 'बक्सर का युद्ध' भी इतिहास प्रसिद्ध है। बक्सर के युद्ध (1764) के परिणामस्वरूप निचले बंगाल का अंतिम रूप से ब्रिटिश अधिग्रहण हो गया। मान्यता है कि एक महान पवित्र स्थल के रूप में पहले इसका मूल नाम 'वेदगर्भ' था। वैदिक मंत्रों के बहुत से रचयिता इस नगर में रहते थे। भगवान राम के प्रारंभिक जीवन से जोड़ा जाता है।
2011 की जनगणना के अनुसार बक्सर ज़िले की कुल जनसंख्या लगभग 1,707,643 है।
बक्सर की लड़ाई मीर कासिम ने अवध के नवाब से सहायता की याचना की, नवाब शुजाउदौला इस समय सबसे शक्ति शाली था। मराठे पानीपत की तीसरी लड़ाई से उबर नहीं पाए थे, मुग़ल सम्राट तक उसके यहाँ शरणार्थी था, उसे अहमद शाह अब्दाली की मित्रता प्राप्त थी जनवरी 1764 में मीर कासिम उस से मिला उसने धन तथा बिहार के प्रदेश के बदले उसकी सहायता खरीद ली। शाह आलम भी उनके साथ हो लिया। किंतु तीनो एक दूसरे पर शक करते थे। बक्सर प्रसिद्ध देवताओं, देवताओं के युद्धक्षेत्र और पुराणों के अनुसार राक्षसों और आधुनिक इतिहास में विदेशी आक्रमण और देशवासियों के बीच एक युद्ध क्षेत्र के लिए,महाकाव्य कीअवधि से प्रसिद्ध है। पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त अवशेष, बक्सर की प्राचीन संस्कृतियों के साथ मोहंजोदरो और हड़प्पा को जोड़ता है। यह स्थान प्राचीन इतिहास में “सिद्धाश्रम”,“वेदगर्भापुरी”, “करुष”, “तपोवन”, “चैत्रथ “, “व्याघ्रसर”, “बक्सर” के नाम से भी जाना जाता था। बक्सर का इतिहास रामायण की अवधि से पहले की है। कहा जाता है बक्सर शब्द व्यघ्रासार से निकला है। ऋषि दुर्वासा के अभिशाप का परिणाम से ,ऋषि वेदशीरा के बाघ के चेहरे को एक पवित्र कुंड में स्नान करने के बाद पूर्वावस्था की प्राप्ति हुआ था । जिसे बाद में व्याघ्रसर नामित किया गया था। पुराणों के अनुसार के अनुसार, ऋषि विश्वामित्र जो भगवान राम के परिवारिक गुरु थे और अस्सी हज़ार संतो का पवित्र आश्रम पवित्र गंगा नदी के किनारे स्थित था जो आधुनिक जिलाबक्सर में है । वह राक्षसों द्वारा बलि चढ़ाव से परेशान थे। जिस स्थान पर भगवान राम ने प्रसिद्ध राक्षसी तड़का का वध किया था , वह क्षेत्र वर्तमान बक्सर शहर के अतर्गतआते हैं। इसके अलावा, भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने बक्सर में अपनी शिक्षाएं लीं। अहिल्या, गौतम ऋषि की पत्नी थी । भगवान राम के चरणों के एक मात्र स्पर्श से मुक्ति प्राप्त कर अपने मानव शरीर को पत्थर से प्राप्त किया। अदरौली के नाम से जाना जाता है और बक्सर शहर से छह किलोमीटर दूर स्थित है। कमलदह पोखरा, जो कि व्याघ्रसर के नाम से भी जाना जाता है,अब एक पर्यटक स्थल है। बक्सर का प्राचीन महत्व ब्रम्ह पुराण और वारह पुराण जैसे प्राचीन महाकाव्यों में वर्णित है ।मुगल काल के दौरान, हुमायूं और शेर शाह के बीच ऐतिहासिक लड़ाई चोसा में 153 9 ईस में लड़ी गई। सर हिटर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने 23 मार्च 1764 को बक्सर शहर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कतकौली का मैदान में मीर कासिम, शुजा-उद-दौलह और शाह आलम-द्वितीय की मुस्लिम सेना को हराया। कतकौली में अंग्रेजों द्वारा निर्मित पत्थर का स्मारक आज भी लड़ाई के प्रतीक के रूप में कायम है।कारूष प्रदेश का वेद भूमि बक्सर
बिहार के पश्चिम भाग में गंगा नदी के तट पर स्थित कारूष प्रदेश का वेद भूमि बक्सर की अर्थ-व्यवस्था से खेती पर आधारित है। यह शहर मुख्यतः धर्मिक स्थल के नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल में इसका नाम 'व्याघ्रसर' था। क्योंकि उस समय यहाँ पर बाघों का निवास हुआ करता था तथा एक बहुत बड़ा सरोवर भी था जिसके परिणामस्वरुप इस जगह का नाम व्याघ्रसर पड़ा।बक्सर पटना से लगभग ७५ मील पश्चिम और मुगलसराय से ६० मील पूर्व में पूर्वी रेलवे लाइन के किनारे स्थित है। यह एक व्यापारिक नगर भी है। यहाँ बिहार का एक प्रमुख कारागृह हैं जिसमें अपराधी लोग कपड़ा आदि बुनते और अन्य उद्योगों में लगे रहते हैं। सुप्रसिद्ध बक्सर की लड़ाई शुजाउद्दौला और कासिम अली खाँ की तथा अंग्रेज मेजर मुनरो की सेनाओं के बीच यहाँ ही १७६४ ई॰ में लड़ी गई थी जिसमें अंग्रेजों की विजय हुई। इस युद्ध में शुजाउद्दौला और कासिम अली खाँ के लगभग २,००० सैनिक डूब गए या मारे थे। कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों व्यक्ति इकट्ठे होते हैं। गुरु विश्वामित्र का आश्रम था। यहीं पर राम और लक्ष्मण का प्रारम्भिक शिक्षण-प्रशिक्षण हुआ। प्रसिद्ध ताड़का राक्षसी का वध राम द्वारा यहीं पर किया गया था। 1764 ई॰ का 'बक्सर का युद्ध' भी इतिहास प्रसिद्ध है। इसी नाम का एक ज़िला शाहबाद (बिहार में) का अनुमंडल है। बक्सर के युद्ध (1764) के परिणामस्वरूप निचले बंगाल का अंतिम रूप से ब्रिटिश अधिग्रहण हो गया। मान्यता है कि एक महान पवित्र स्थल के रूप में पहले इसका मूल नाम 'वेदगर्भ' था। कहा जाता है कि वैदिक मंत्रों के बहुत से रचयिता इस नगर में रहते थे। इसका संबंध भगवान राम के प्रारंभिक जीवन से भी जोड़ा जाता है।
2011 की जनगणना के अनुसार बक्सर ज़िले की कुल जनसंख्या लगभग 1,707,643 है।
बक्सर की लड़ाई मीर कासिम ने अवध के नवाब से सहायता की याचना की, नवाब शुजाउदौला इस समय सबसे शक्ति शाली था। मराठे पानीपत की तीसरी लड़ाई से उबर नहीं पाए थे, मुग़ल सम्राट तक उसके यहाँ शरणार्थी था, उसे अहमद शाह अब्दाली की मित्रता प्राप्त थी जनवरी 1764 में मीर कासिम उस से मिला उसने धन तथा बिहार के प्रदेश के बदले उसकी सहायता खरीद ली। शाह आलम भी उनके साथ हो लिया। किंतु तीनो एक दूसरे पर शक करते थे।
बक्सर जिले के अपने मूल जिले भोजपुर के साथ निकट संबंध हैं और उनका एक पुराना और दिलचस्प इतिहास है।बक्सर प्रसिद्ध देवताओं, देवताओं के युद्धक्षेत्र और पुराणों के अनुसार राक्षसों और आधुनिक इतिहास में विदेशी आक्रमण और देशवासियों के बीच एक युद्ध क्षेत्र के लिए,महाकाव्य कीअवधि से प्रसिद्ध है। पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त अवशेष, बक्सर की प्राचीन संस्कृतियों के साथ मोहंजोदरो और हड़प्पा को जोड़ता है। यह स्थान प्राचीन इतिहास में “सिद्धाश्रम”,“वेदगर्भापुरी”, “करुष”, “तपोवन”, “चैत्रथ “, “व्याघ्रसर”, “बक्सर” के नाम से भी जाना जाता था। बक्सर का इतिहास रामायण की अवधि से पहले की है। कहा जाता है
कि बक्सर शब्द व्यघ्रासार से निकला है। ऋषि दुर्वासा के अभिशाप का परिणाम से ,ऋषि वेदशीरा के बाघ के चेहरे को एक पवित्र कुंड में स्नान करने के बाद पूर्वावस्था की प्राप्ति हुआ था जिसे बाद में व्याघ्रसर नामित किया गया था।पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि विश्वामित्र जो भगवान राम के परिवारिक गुरु थे और अस्सी हज़ार संतो का पवित्र आश्रम पवित्र गंगा नदी के किनारे स्थित था जो आधुनिक जिलाबक्सर में है । वह राक्षसों द्वारा बलि चढ़ाव से परेशान थे। जिस स्थान पर भगवान राम ने प्रसिद्ध राक्षसी तड़का का वध किया था , वह क्षेत्र वर्तमान बक्सर शहर के अतर्गतआते हैं। इसके अलावा, भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने बक्सर में अपनी शिक्षाएं लीं। यह भी कहा गया है कि अहिल्या, जो गौतम ऋषि की पत्नी थी ,भगवान राम के चरणों के एक मात्र स्पर्श से मुक्ति प्राप्त कर अपने मानव शरीर को पत्थर से प्राप्त किया। इस जगह को वर्तमान में अहिरौली के नाम से जाना जाता है और बक्सर शहर से छह किलोमीटर दूर स्थित है। कमलदह पोखरा, जो कि व्याघ्रसर के नाम से भी जाना जाता है,अब एक पर्यटक स्थल है। बक्सर का प्राचीन महत्व ब्रम्ह पुराण और वारह पुराण जैसे प्राचीन महाकाव्यों में वर्णित है ।मुगल काल के दौरान, हुमायूं और शेर शाह के बीच ऐतिहासिक लड़ाई चोसा में 153 9 ईस में लड़ी गई। सर हिटर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने 23 मार्च 1764 को बक्सर शहर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कतकौली का मैदान में मीर कासिम, शुजा-उद-दौलह और शाह आलम-द्वितीय की मुस्लिम सेना को हराया। कतकौली में अंग्रेजों द्वारा निर्मित पत्थर का स्मारक आज भी लड़ाई के प्रतीक के रूप में कायम है। सनातन संस्कृति का नाम बक्सर में वेदशालाओं, वेधशालाओं का स्थित था । रैवत मन्वन्तर में वेदशिरा सप्तर्षि द्वारा वेदशालाओं की स्थापना कर वेदसर नगर का निर्माण किया गया और रैवत मनु के पुत्र राजा सत्यवाक ने वेदसर मेंं राजधानी रखा था ।वैवश्वत मन्वन्तर मेंं विश्वामित्र सप्तर्षि और साध्य देव तथा सत्यव्रत राजा थे । राजा मंधाता ने अपनी पत्नी चैत्ररथी के नाम पर चैत्रवन देश की स्थापित की और वेदसर का नाम वकसर , बक्सर रखा था।
का विवाह केकय कुल की कन्या सत्यरथा के साथ हुआ था।
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