गुरुवार, फ़रवरी 18, 2021

भगवान सूर्य: अवतरणोंत्सव...


भारतीय संस्कृति में माघ मास की शुक्ल पक्ष की अचला सप्तमी का  सौर धर्म तथा सनातन धर्म ग्रथों में महत्व है । अचला सप्तमी को रथ सप्तमी , अरोग्य सप्तमी एवं  सात जन्म के पाप को दूर करने के लिए ,  रथारूढ़ सूर्यनारायण की पूजा की जाती है । साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि भगवान सूर्य द्वारा विश्व को  माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को सर्व प्रथम प्रकाशित किया गया है । भूलोक में भगवान  सूर्य की  जयंती अचला सप्तमी को मनाने के लिए सौर धर्म द्वारा परंपरा कायम किया गया है । सूर्यदेव की आराधना से  अक्षय फल ,  सुख-समृद्धि एवं अच्छी सेहत का वरदान प्राप्त होता है । रथ सप्तमी  , भगवान सूर्य की अवतरणोंत्सव है। भगवान सूर्य ने  ब्रह्मांड को प्रकाश दिया था। रथ सप्तमी में भगवान सूर्य की उत्तरी गोलार्ध की यात्रा ,  गर्मियों के आगमन को चिह्नित और विश्व के क्षेत्रों में जलवायु परिस्थितियों में बदलाव करते  है।  किसानों के लिए फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। दान-पुण्य कार्य  करने के लिए रथ सप्तमी का त्योहार अत्यधिक शुभ होता है। सूर्य सप्तमी के  पूर्व संध्या पर दान करने से भक्तों को अपने पापों और बीमारी से छुटकारा मिलता है और दीर्घायु, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का लाभ मिलता है।  तमिलनाडु के क्षेत्रों में लोग पवित्र स्नान करने के लिए इरुकु पत्तियों का उपयोग करते हैं।  अनुष्ठान को सूर्य स्नान के दौरान भगवान सूर्य के नाम पर पवित्र स्नान करने के बाद किया जाना चाहिए। अर्घ्यदान का  भगवान सूर्य को कलश के माध्यम से जल चढ़ाकर और नमस्कार मुद्रा में खड़े होकर किया जाता है।  भगवान सूर्य के विभिन्न नामों का पाठ करते हुए इस अनुष्ठान को बारह बार करना पड़ता है।अर्घ्यदान करने के बाद, भक्त घी से भरे मिट्टी के दीपक जलाकर रथ सप्तमी पूजा करते हैं और भगवान सूर्य को धूप , कपूर और लाल रंग के फूल अर्पित करते हैं।उसके बाद, महिला श्रद्धालु देवता और उनके दिव्य आशीर्वाद का स्वागत करने के लिए पवित्र चिन्ह के रूप में रथ  और भगवान सूर्य के चित्र खींचती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में, महिलाएं समृद्धि और सकारात्मकता के प्रतीक के रूप में अपने घरों के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाती हैं।एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुष्ठान के रूप में, दूध को मिट्टी से बने बर्तन में डाला जाता है और फिर उसे एक दिशा में उबलने के लिए रखा जाता है, जहां वह सूर्य का सामना कर सके। इसे उबालने के बाद, उसी दूध का उपयोग भोग हविष्य को तैयार करने के लिए किया जाता है और बाद में इसे देवता सूर्यदेव को अर्पित किया जाता है। रथ सप्तमी के दिन सूर्यशक्तिम, सूर्य सहस्रनाम, और गायत्री मंत्र का निरंतर जाप करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।सूर्य मंदिर और पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की भक्ति में निर्मित किए गए हैं। इन सभी स्थानों पर रथ सप्तमी की पूर्व संध्या पर विशाल समारोह और विशेष अनुष्ठान होते हैं। तिरुमाला तिरुपति बालाजी मंदिर, श्री मंगूज मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर और आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र , बिहार ,झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य मंदिरों में भव्य उत्सव आयोजित किए जाते हैं। रथ सप्तमी की पूर्व संध्या पर भगवान सूर्य की पूजा करने से, भक्त अपने अतीत और वर्तमान पापों से छुटकारा पाते हैं और मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग के समीप एक कदम बढ़ाते हैं। सौर धर्म के अनुसार, भगवान सूर्य दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य को प्रदान करते है ।अचला सप्तमी धार्मिक तौर पर भारत में मनाया जाने वाला बहुत ही मुख्य तथा प्रासंगिक पर्व है। इस पर्व को माघ सप्तमी, रथ सप्तमी, माघ जयंती तथा सूर्य जयंती आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भक्त सूर्य देव की पूजा करते हैं जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।शास्त्रों में  कहा गया है कि इसी दिन भगवान सूर्य ने दुनिया को प्रकाशवान किया था। अर्थात सबसे पहले अपना तेज व प्रकाश दिया था और अपने प्रकाश द्वारा सम्पूर्ण ब्रह्मांड को चमकाकर तेजवान कर दिया था।  इस तिथि को सूर्य जयंती के नाम से भी जाना जाता है। कई क्षेत्रों में तो इस पर्व को सूर्य भगवान के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष के समय माघ के महीने में सातवें दिन या सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी का पर्व होता है। 2021 में सूर्य सप्तमी पर्व 19 फरवरी दिन शुक्रवार है। हिन्दू धर्म में अचला सप्तमी को स्वास्थ्य देने वाली तिथि माना गया है जिस वजह से इसे रथ आरोग्य सप्तमी के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।  इस दिन भगवान सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देने और उनका पूजन करने से समस्त बिमारियों से छुटकारा प्राप्त होता है। भगवान् सूर्य की भक्ति करने पर पिता और पुत्र के आपसी रिश्तों में मिठास बढ़ती है। रथ सप्तमी का दिन भगवान सूर्य की उत्तरी गोलार्द्ध की यात्रा को दर्शाता है, तथा  गर्मियों की शुरुआत और दक्षिणी भारत के सभी क्षेत्रों में मौसम और जलवायु की बदलने वाली परिस्थितियों का संकेत देता है।  पुराणों में अचला सप्तमी का उल्लेख है कि सतयुग में गणिका थी, उसने अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का कोई दान-पुण्य नहीं किया था। जब गणिका का अंत समय आया, तब वशिष्ठ मुनि के पास जाकर उसने पूछा कि मुक्ति के लिए वह क्या कर सकती है।  वशिष्ठ मुनि ने उससे कहा कि - माघ के महीने में सप्तमी के दिन अचला सप्तमी का व्रत किया जाता है।  सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर दीप जलाकर, आक के सात पत्तों को सिर पर रखकर सूर्य भगवान का ध्यान करते हुए गंगा जल को हिलाते हुए इस मंत्र का जाप किया जाता है। नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नमः वरुणाय नमस्तेऽस्तु।।इसके पश्चात दीप को जल में प्रवाहित कर दें और फिर भगवान् शिव तथा माता पार्वती की स्थापना कर विधि द्वारा पूजन करें। तांबे के किसी पात्र को चावल से भरकर उसे दान करें। यह सब ध्यानपूर्वक सुनने के पश्चात गणिका इंदुमती ने वशिष्ठ मुनि के कहे अनुसार रथ सप्तमी का व्रत किया। इसके फलस्वरूप जब उसने अपने शरीर का त्याग कर दिया, भगवान इंद्र ने उसे अप्सराओं की मुख्य नायिका बना दिया। भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब को शारीरिक सौंदर्य तथा बल, शक्ति आदि पर बहुत घमण्ड था। दुर्वासा ऋषि, जिनका शरीर काफी लंबे समय तक तपस्या करने के कारण बहुत ही दुर्बल व कमजोर हो गया था, भगवान श्री कृष्ण से मिलने आये। तब दुर्वासा ऋषि को देखकर शाम्ब ने उनका बहुत ही मजाक उड़ाया जिससे दुर्वासा ऋषि को बहुत क्रोध आया, और क्रोध में आकर उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। उनके श्राप का प्रभाव शाम्ब पर तुरंत ही हो गया। इससे शाम्ब बहुत विचलित हो उठे। उन्होंने उसका हर तरीके का उपचार भी कराया गया परंतु कोई भी उपचार उनके लिए सही साबित नहीं हुआ। फिर भगवान श्री कृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब को सूर्य देव की उपासना अर्थात सूर्योपासना करने के लिए कहा। अपने पिता की इस सलाह को मानकर शाम्ब ने सच्चे मन से सूर्य देव की उपासना की जिससे बहुत ही जल्दी उनका कुष्ठ रोग दूर हो गया। शाम्ब का रोगग्रस्त से मुक्ति द्वापर युग की अचला सप्तमी में हुईं थी। माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि शुक्रवार 2077 दिनांक 19 फरवरी 2021 अचला सप्तमी , सौर धर्म तथा सनातन धर्म की स्थापना एवं भगवान सूर्य के अवतरणोंत्सव के अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

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