गुरुवार, फ़रवरी 04, 2021

बिहार की सांस्कृतिक विरासत रोहतास ...


भारतीय साहित्य और पुराणों के पन्नों में रोहताश्व  का उल्लेख है । मानव संस्कृति के सातवें वैवश्वत मनु के जेष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु वंशीय राजा हरिश्चंद्र  का पुत्र रोहताश्व  द्वारा रोहतास नगर स्थापना किया गया था और अभिमानी राजा सहस्त्रबाहु और ब्राह्मण परशुराम के साथ भयंकर युद्ध में सहस्त्रबाहु मारे जाने के कारण सहस्त्रराम , सासाराम स्थल हुए हैं। राजा त्रिशंकु चैत्रवन का शासक थे।  पूर्व-प्रागैतिहासिक काल में  पठार क्षेत्र  भार्स, चीयर्स और ओराओं से जुड़ा हुआ हैं।  खेरवार रोहतस के  पहाड़ी क्षेत्रों में  थे। ओरेन्स के अनुसार रोहतस , अरवल , औरंगाबाद क्षेत्र पर शासन किया था।  6 ठी ई.पू. से  5 वीं शताब्दी ई. तक रोहतास मगध साम्राज्य का  था। सासाराम के पत्थर पर उधृत सम्राट अशोक के आदेश मौर्य की विजय की पुष्टि  हैं। 7 वीं शताब्दी एडी में  कन्नौज के हर्ष शासकों के नियंत्रण में आया था। शेर शाह के पिता हसन खान सूरी एक अफगान शासक थे, उन्हें सासाराम की जागीर जमाल खान से उनकी सेवाओं के लिए इनाम स्वरुप मिला और प्रान्त के राज्यपाल की जिम्मेवारी जौनपुर के राजा के साथ अलगाव के बाद मिला था । परन्तु अफगान जागीरदार हसन खां सूरी द्वारा सासाराम जागीर  पर पूर्ण नियंत्रण नहीं कर पाए क्योंकि वे लोगों की निष्ठा खो चुके थे ।१५९२ में बाबर ने बिहार पर हमला किया, शेर शाह जिन्होंने उनका विरोध किया। बाबर ने अपनी यादों में  करमनासा नदी और गंगा  नदी के मध्य में मुगल शासक बाबर  १५२८ में ठहराव रखा था। बाबर की मृत्यु होने के बाद  शेर शाह फिर से सक्रिय हो गया । १५३७ में हुमायूं उनके खिलाफ आगे बढ़े और उन्होंने चुनार और रोहतस गढ़ में अपने किले जब्त किए। हुमायूं बंगाल गए जहां उन्होंने छह महीने बिताए, जबकि दिल्ली लौटने पर उन्हें चौसा में शेर शाह के हाथों एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इस विजय ने दिल्ली के शाही सिंहासन को शेर शाह के लिए सुरक्षित कर दिया। सुर राजवंश का शासन शेर शाह ने स्थापित किया था, बहुत कम समय तक रहा जल्द ही मुगलों ने दिल्ली का शाही सिंहासन हासिल कर लिया। शेर शाह सूरी के निधन के बाद, अकबर ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने और इसे समेकित करने की कोशिश की थी । रोहतास का साम्राज्य में शामिल किया गया था।  बनारस के राजा चैत सिंह का शासन सासाराम पर होने के कारण  शाहबाद का बड़ा हिस्सा शामिल  बक्सर तक था। चैत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया था। चुनार और गाज़ीपुर में, अंग्रेजी सैनिकों को हार का सामना करना पड़ा जिससे भारत में अंग्रेजी शक्ति की नींव हिल गई थी। जगदीश पुर का राजा कुंवर सिंह ने १८५७ के विद्रोहियों के साथ ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह किया। कुंवर सिंह द्वारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन किया गया था। विद्रोह का प्रभाव पड़ा और यहाँ वहां विद्रोह जैसी घटनाएं उत्पन्न हुईं। सासाराम का पहाड़ी इलाकों ने विद्रोह के भगोड़ों को प्राकृतिक संरक्षण प्रदान किया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जिले का भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में पर्याप्त योगदान था। आजादी के बाद रोहतास शाहबाद जिले का हिस्सा बना रहा । १९७२ में रोहतास जिला की स्थापना हुई है । रोहतास ज़िला  मुख्यालय सासाराम तथा क्षेत्रफल : 3,847.82 किमी² और जनसंख्या(2011) के अनुसार 29,62,593 है। जिले में तीन अनुमंडल हैं, जिनमें डेहरी आन सोन, बिक्रमगंज और सासाराम है। रोहतास जिले के बिक्रमगंज में मां अस्कामिनी  प्राचीन मंदिर है। रोहतास जिले के रोहतासगढ़ किले का भी ऐतिहासिक महत्व है। वहीं, सासाराम में शेरशाह सूरी का प्रसिद्ध मकबरा भी अवस्थित है।  शेरशाह सूरी द्वारा डाक-तार व्यवस्था की गई थी।  बिक्रमगंज के समीप स्थित धारुपुर की मां काली का मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है । क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी तथा हिंदी  है।  रोहतास जिले में अनुमंडल बिक्रमगन्ज, सासाराम और डेहरी है। बिक्रमगंज में अस्कामिनि माँ का मन्दिर और धारुपुर काली माँ का मन्दिर   प्रसिद्ध है।  कैमूर पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित मां ताराचंडी का शक्तिपिठ और जिला मुख्यालय सासाराम से 35 किलोमीटर दूर मां तुत्लेशवरी देवी की मंदिर तुत्राही झील के मध्य में स्थित है।  सासाराम में प्रसिद्ध शेरशाह का मकबरा है। रोहतास  जिले में सूर्यवंशीय राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व द्वारा स्थापित रोहतासगढ़ के नाम पर इस क्षेत्र का नामकरण रोहतास हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड ने लिखा है कि रोहतास क़िला का निर्माण कुशवंशी  लोगों ने करवाया है।1582 ई. में मुग़ल बादशाह अकबर के समय रोहतास, सासाराम, चैनपुर सहित सोन के दक्षिण-पूर्वी भाग के परगनों- जपला, बेलौंजा, सिरिस और कुटुंबा शामिल थे। 1784 ई. में तीन परगनों- रोहतास, सासाराम और चैनपुर को मिलाकर रोहतास जिला बना और  1787 ई. में जिला शाहाबाद जिले का अंग हो गया। 10 नवम्बर 1972 को शाहाबाद से अलग होकर रोहतास जिला पुनः अस्तित्व में आया। 1861 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की स्थापना के साथ अलेक्जेंडर कनिंघम पुरातात्विक सर्वेयर नियुक्त हुए। कनिघम ने गया जिले से लेकर पश्चिम में सिंध तक के पुरास्थलों का सर्वे किया था ।1871 ई. में कनिंघम को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण का महानिदेशक नियुक्त किया गया और उसी समय 1882 ई. में सासाराम स्थित शेरशाह रौजे का जीर्णोद्वार हुआ है।
भलुनी भवानी का भूभाग भगवान परशुराम की यज्ञ स्थली है | रोहतास जिले के बिक्रमगंज अनुमंडल से करीब 16 किमी दूर नटवार रोड के दिनारा प्रखंड में भलुनी धाम आस्था का केन्द्र है। इसे सिद्ध शक्ति पीठ माना जाता है। फ्रांसीसी यात्री बुकानन ने पुस्तक ए टूर रिपोर्ट ऑफ नार्दन इंडिया में भी भलुनी धाम का जिक्र किया है। भगवान परशुराम ने भी इस धाम में यज्ञ किया था। उनका हवन कुंड पोखरा है। धाम में सूर्य मंदिर, कृष्ण मंदिर, साईं बाबा का मंदिर, गणिनाथ मंदिर व रविदास मंदिर भी है। श्रीमद देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण के अलावे वाल्मीकि रामायण में  यक्षिणी भवानी का वर्णन  है। इतिहास के पन्नों के अनुसार देवासुर संग्राम के बाद अहंकार से भरे इंद्र को यक्षिणी देवी ने यहीं सत्य का पाठ पढ़ाया था। इंद्र ने देवी दर्शन के पश्चात उनकी स्थापना की थी।  हंस पृष्ठे सुरज्जेष्ठा सर्पराज्ञाहिवाहना, इन्द्रस्यच तपो भूमिरू शक्तिपीठ कंचन तीरे। यक्षिणी नाम विख्याता त्रिशक्तिश्च समन्विता। मां यक्षिणी : पुराणों व अन्य धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी अति प्राचीन हैं। शाकद्वीपीय ब्राह्मण की कुलदेवी यक्षिणी मां है । मग ब्राह्मण का 72 पुरों में भलुनियार की कुल देवी यक्षिणी भवानी है। भलुनि मंदिर में देवी की प्रतिमा के अलावे भगवान शंकर व कुबेर की प्राचीन प्रतिमा भी स्थापित पूर्व मध्यकालीन  है ।मंदिर के बाहर प्राचीन तालाब है। यहां के वन में  लंगूर रहते हैं ।

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