भारतीय वांग्मय साहित्य में भगवान सूर्य का महत्व प्रमुख रूप से उल्लेख किया गया है। वेदों और पुराणों के अनुसार माघ की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी इत्यादि नामों से जानी जाती है । शास्त्रों में भगवान सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है। सूर्य उपासना से रोग मुक्ति होती है। माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी की कथा ग्रंथों में मिलता है। द्वापर युग में श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर अभिमान था। अपने इसी अभिमान के मद में सांब ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। शाम्ब की धृष्ठता को देखकर दुर्वासा ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने शाम्ब को कुष्ठ रोग से निवारण करने के लिए सूर्य भगवान की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना की, जिसके फलस्वरूप सांब को कष्ट से मुक्ति मिली थी। श्रद्धालु विधि-विधान से सूर्य पूजन करते हैं उन्हें आरोग्य, संतान और धन की प्राप्ति होती है । सप्तमी को जो भी सूर्य देव की उपासना तथा व्रत करते हैं उनके सभी रोग ठीक हो जाते हैं। सौर धर्म में शाकद्वीप के मग ब्राह्मण द्वारा सूर्य चिकित्सा का उपयोग आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता है।शारिरिक कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी या जोड़ों में दर्द जैसी परेशानियों में भगवान सूर्य की आराधना करने से रोग से मुक्ति मिलती है। सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से शारीरिक चर्मरोग आदि नष्ट होते हैं। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का महत्व माना गया है। व्रत को श्रद्धा तथा विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है। इस दिन किसी जलाशय, नदी, नहर में सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद उगते हुए सूर्य की आराधना करनी चाहिए। भगवान सूर्य को जलाशय, नदी अथवा नहर के समीप खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। दीप दान विशेष महत्व रखता है इसके अतिरिक्त कपूर, धूप, लाल पुष्प इत्यादि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए। इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों तथा ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर बहते हुए जल में स्नान करना चाहिए। स्नान करते समय अपने सिर पर बदर वृक्ष और अर्क पौधे की सात-सात पत्तियां रखना चाहिए। स्नान करने के पश्चात सात प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देना चाहिए। ॐ घृणिं सूर्याय नम: अथवा ॐ सूर्याय नम: सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके अतिरिक्त आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है । रथ सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी और आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है । रथ सप्तमी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस सप्तमी पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान सूर्य का जन्म हुआ था. रथ सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी और आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है । रथ सप्तमी व्रत कथा, ऐसे करें अर्घ्यदान, सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच भगवान सूर्य का उपासना करना चाहिए ।
रथ सप्तमी को सूर्य ने अपनी किरणें विश्व पर आयी थीं । माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन रथ सप्तमी मनाई जाती है । रथ सप्तमी के दिन सूर्य आराधना सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करने की पंरपरा है । ऐसा करने से जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं । इस दिन सूर्य ने अपनी किरणों से संसार को रोशनी प्रारंभ की है। यही कारण है कि रथ सप्तमी के पर्व पर लोग सूर्योपासना करते हैं । प्रातःकाल उठकर सूर्य की पहली किरण के साथ सूर्य आराधना करते हैं । अचला सप्तमी को नदियों में नहाने से शारीरिक रोगों खासकर त्वचा संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है । इस दिन सुबह सूर्य उगने से पहले उठें. स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देने से पहले सिर पर आक के सात पत्ते रखें औंर अर्घ्य देते समय नमस्कार मुद्रा में रहकर भगवान सूर्य की उपासना करें- नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:। वरुणाय नमस्तेअस्तु ।
माघ माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी भगवान सूर्य नारायण को समर्पित की जाती है। सूर्य सप्तमी, रथ सप्तमी और आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। यदि यह तिथि रविवार को पड़ती है तब इसका महत्व और बहुत अधिक बढ़ जाता है। रविवार के दिन माघ शुक्ल सप्तमी पड़ती है उसे अचला भानु सप्तमी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
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